भारत सनातन सिद्धांत का परिपालक देश है। जिसमे सस्कारो और संस्कृतियों के महत्व को ख्यापित किया गया है। जो हम भारतीयों को अन्यो से श्रेष्ठ बनाता है। षोडस संस्कार उनमे से एक है। जिनमे गर्भाधान संस्कार भी है। जिसको आज की आधुनिक भाषा में शादी के बाद बच्चा कैसे पैदा किया जाता है ? या बच्चा कैसे पैदा होता है के नाम से जानते है। सामान्यतया इस परिपेक्ष्य में एक बात और आती है। वो यह कि बच्चा पैदा होने के लिए पुरुष का स्पर्म कितना होना चाहिए जिससे बच्चा ठहर सकता हो आदि। फैटी लीवर, पेट दर्द जैसे रोग बच्चा होने में बाधक है।
आयुर्वेद भारतवासियो के ह्रदय में बसता है। आयुर्वेद का मूल वेदादी शास्त्र है। जिस कारण वेद और आयुर्वेद दोनों में सामजस्य है। दोनों ही शास्त्रों में षोडस सस्कारो की बात स्वीकार की गयी है। जिनमे विवाह, अंत्येष्ठी, उपनयन, पुंसवन आदि संस्कारो का सन्निवेश है। आयुर्वेद के अनुसार कुल, गोत्र, शील, वय, अवर आदि सम्पन्न स्त्री पुरषके सम्मिलन को शादी कहा जाता है। जिसे विवाह के नाम से जाना जाता है। इन सभी को सनातन शास्त्रों में विवाह संस्कार के अंतर्गत रखा गया है। मलिनता का आपनोदन ही संस्कारो का मूल उद्देश्य है। जो हम सभी के लिए तारक है। जैसे – अदरक को संस्कारित कर सोंठ बनाया जाता है। सोंठ के फायदे अनेक रोगो में है।
देश, काल, परिस्थिति की विसंगति के कारण ही मलिनता का आधान होता है। चिकित्सा में मलिनता और मल को समान अर्थो में देखा जाता है। जो आयुर्वेदादी शास्त्रों में रोगो का मूल माना गया है। शादी का प्रयोजन ही विशुद्ध वंश परम्परा का संरक्षण है। जिसमे प्रजनन क्रिया के माध्यम से अपनी ही जाती के जीव का प्राकट्य होता है। अब प्रश्न यह उठता है कि यह सब कैसे होता है ? यह सब क्रिया शास्त्र सम्मत नियोजित योजना के अनुसार होने पर धर्म कही जाती है। और मनःकल्पित विधा का आलंबन लेने पर अधर्म।
बच्चा कैसे होता है या बच्चा कैसे पैदा किया जाता है (Baccha Kaise Paida Hota Hai)?
सनातन शास्त्रों के आधारपर जीवका प्रकटीकरण पंचाग्नि विद्या के आधार पर होता है। जिसके चार प्रमुख चरण है। जिसमे चरणों के नियोजित क्रमो के आधारपर किसी अन्य लोकका जीव भूलोक पर आता है। जिस जीव के पास जितना पुण्य होता है। उतने उत्कृष्ट जीव को कर्षित करने की क्षमता उसमे होती है। जिसको आजकल की भाषा में शादी के बाद बच्चा कैसे पैदा किया जाता है कहा जाता है।
पृथ्वी पर जितने भी अमलात्मा विमलात्मा आते है। किसी न किसी लोकच्युति के परिणाम है। सामन्यतया सभी जीवो के साथ यह घटना घटती है। लोकच्युति का कारण सनातन शास्त्रों में पुण्यक्षय को माना गया है। स्वर्गलोक में पुण्य जलता है और नर्क में पाप। जिसके आधारपर ही व्यक्ति की जीव संज्ञा होती है। पुण्योदय होने पर स्वर्ग की और पापोदय होने पर नरक की प्राप्ति सुनिश्चित है। स्वर्ग में देवता रहते है और नरक में दानव। जबकि मिश्र होने पर मनुष्य देह की प्राप्ति होती है। अंत में युगल दम्पती में जितना पुण्य का प्रभाव होता है। उसी कोटी के जीव को वह जन्म देता है।
जबकि आयुर्वेद में बच्चा पैदा होने के विभिन्न चरण है। जिनका वर्णन आयुर्वेद के पारम्परिक आचार्यो के द्वारा किया गया है। जिसमे बच्चा पैदा होने के लिए पुरुष का स्पर्म कितना होना चाहिए जिससे बच्चा ठहर सकता हो भी एक चरणांतर्गत है। जिनका अनुपालन स्वस्थ्य समाज और देह की दृष्टि से भी अपेक्षित है। जो योग्य शारीरिक और मानसिक क्षमता से सबल संतान को जन्म देने में सहायक है। जिसके लिए अनेको प्रकार के विधि निषेधों की भी चर्चा की गयी है।
शादी के बाद बच्चा कैसे पैदा किया जाता है में इनका महत्वपूर्ण योगदान होता है। मातृशक्ति की शील संरक्षण को ध्यान में रखकर शादी के बाद बच्चा पैदा करना उचित है। यह बात सनातन शास्त्रों और आयुर्वेदादी शास्त्रों को भी मान्य है।
पंचाग्नि विद्या
इस विद्या के अनुसार द्युलोक से पर्जन्य के माध्यम से आकाश का निर्माण होता है। आकाश से वायु का निर्माण होता है। वायु से अग्नि का निर्माण होता है। अग्नि से वाष्पीकरण की क्रिया के फलस्वरूप जल का निर्माण होता है। जो पृथ्वी पर वर्षा के माध्यम से प्राणीयो को आहार के रूप में प्राप्त होता है। जिससे उद्भिज्जो का उद्भव होता है। उद्भिज्जो से स्वेदजो का और स्वेदजो से अण्डजों का प्रादुर्भाव होता है। अंत में अण्डजों से जरायुज प्राणियों का उद्भव होता है। जिसको जानने को ही बच्चा कैसे पैदा होता है के नाम से भी जाना जाता है।
जिस माता पिता या दम्पती को जिस कोटी के संतान को जन्म देना है। उस कोटी का जीव पर्जन्य के रूप में उद्भिज्ज प्राणियों के रूप में उनका आहार बनता है। जैसे मनुष्यो का अन्न आदि। जो पाचन की चरणबद्ध प्रक्रिया के फलस्वरूप रज और वीर्य के रूप में परिणत हो जाता है। गर्भाधान की प्रक्रिया के बाद अंडे का निर्माण होता है। अंत में अंडे के परिपुष्ट होने पर जेर सहित जरायुज प्राणी के रूप में प्रकट होता है। जिसके लिए सात्विक भोजन को सर्वोकृष्ट बताया गया है। जिससे अनेक प्रकार के रोगो से हमारा बचाव होता है। जैसे – लीवर का बढ़ना ( यकृत वृद्धि ) आदि।
इस प्रकार मनुष्य शरीर उद्भिज्ज, स्वेदज, अंडज और जरायुज चारो प्रकार का है। दुसरे शब्दों में कहे तो मनुष्य उद्भिज्ज प्राणी से विकसित होकर स्वेदज। स्वेदज से विकसित होकर अंडज। अंडज से विकसित होकर जरायुज प्राणी का रूप धारण करता है। यह मनुष्य के विकास का क्रम है। इस दृष्टि से मनुष्य सर्वाधिक विकसित प्राणी है। शादी के बाद बच्चा कैसे पैदा किया जाता है का निराकरण पंचाग्नि विद्या में इस प्रकार है। यहाँ स्वेद से तात्पर्य बच्चा पैदा होने के लिए पुरुष का स्पर्म कितना होना चाहिए जिससे बच्चा ठहर सकता हो, से समझना चाहिए।
आयुर्वेद के अनुसार बच्चा कैसे पैदा होता है
आयुर्वेद को चिकित्सा पद्धति ही नहीं अपितु जीवन पद्धति भी माना गया है। जिसके आधार पर जीवन को संचालित करने के अनेको विधाओं का वर्णन किया गया है। जिसको आज के युग में समझने और समझकर व्यवहार में उतरने की आवश्यकता है। जिससे हम जीवो का जीवन बेहतर बन सके। जैसे पानी के सेवन की विधा को लीजिए। इसको चिकित्सीय भाषा में बच्चा पैदा होने के लिए पुरुष का स्पर्म कितना होना चाहिए जिससे बच्चा ठहर सकता होके रूपमें भीदेखा जाताहै। जिसमे प्रतिरोधक क्षमता का योगदान होता है। जिसके लिए गिलोय सेवन विधि को जानने की आवश्यकता है।
बच्चा कैसे होता है (baccha kaise hota hai)? विस्तार पूर्वक समझया और बताया गया है। जिसमे विवाहोपरांत की जाने वाली विविध क्रियाओ का वर्णन है। जिसमे स्त्री पुरुष का अभ्यंग या पंचकर्म आदि का आलंबन लेकर निरोगी बनाना है। ऋतुनुकूल रतिक्रिया के सम्पादन का विधान है। रतिक्रिया के अनुकूल स्त्री और पुरुष का उल्लेख करते हुए सम्भोग कालकी आवृत्ती और समय की बात कही गए है। इस प्रकार शादी के बाद बच्चा पैदा किया जाता है। जिसमे बालक और बालिका के लिए अनुकूल समय और उपायों की बात भी कही गयी है। जिनका विधिवत पालन करने पर एक स्वस्थ्य बालक के जन्म की कल्पना को साकार किया जा सकता है।
जबकि आधुनिक जीवन शैली में इस प्रकार की बातो का कही कोई उल्लेख ही नहीं प्राप्त होता। आधुनिक विधा से शिक्षा पद्धति के क्रियान्वयन के कारण इस प्रकार के ज्ञान विज्ञान से हम वंचित रह जाते है। जिससे अनेको प्रकार की विसंगतिया हमारे आस पास व्याप्त हो जाती है। जिससे बचने के लिए हमारे पास कोई अन्य मार्ग नहीं है। जिसका शादी के बाद बच्चा कैसे पैदा किया जाता है में प्रतिषेध किया गया है।
शादी के बाद बच्चा पैदा होने के चरण
बच्चा पैदा होनेसे पूर्व इसका नियोजन महत्वपूर्ण है। जिसे हम शिशु नियोजन या baby planning के नामसे जानते है। शादी के बाद बच्चा कैसे पैदा किया जाता है में इसका बड़ा महत्व है। नियोजनका तात्पर्य माता – पिता दोनोंका स्वस्थ होना, घर का माहौल, आवश्यक वस्तुओ आदिकी आनुपातिक आपूर्ति को माना गया है। जिनको जानना और समझना अनिवार्य है।
इसके प्रमुख रूपसे तीन चरण हो सकते है। जो गर्भधारण, गर्भपोषण और प्रसव (बच्चेका जरायुज प्राणीके रूपमें प्रकट होना)। गर्भधारण में बच्चा पैदा होने के लिए पुरुष का स्पर्म कितना होना चाहिए जिससे बच्चा ठहर सकता हो। बड़ा महत्व का है। जबकि तीनो ही चरणों में अन्न जल आदिका विशेष महत्व है। जिनके द्वारा हम मनुष्योके स्वास्थ्यका संचालन होता है। सामान्य व्यक्तिको स्वाथ्य रहनेके लिए अनुकूल जल और अन्न की अपेक्षा है।
जलकी बातकरे तो हमारे शरीरका 70 प्रतिशत भाग जलका है। जो शुद्ध अर्थात संरचनात्मक है। जिसका सेवन करके हम जलसे प्राप्त होने वाले पोषक तत्वोंको ग्रहण करते है। आजके समयमें प्रदूषण आदिके कारण जल दूषित है। दूषित जल पीकर हम बीमार ही हो सकते है। इन विसंगतियों से बचनेके लिए तांबे के बर्तन का पानी पीना चाहिए।
अन्न शुद्धि कीबात करेतो यहठीक उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि जल। दोनोंमें से किसी एक में भी विसंगति होनेपर हम स्वस्थ नहीं हो सकते। आजहम जोकुछ भी खारहे है। सब के सब फाइबर हीन या अजैविक उत्पादों कोही खारहे है। गेहू और चावल में सबसे कम फाइबर पाया जाता है। जबकि मिलेट में सर्वाधिक फाइबर पाया जाता है।
जब तक हम भोजन, दिनचर्या और ऋतुनुकूल विधि निषेधका पालन नहीं करते। तबतक स्वास्थ्यकी प्राप्ति नहींकर सकते। जब हम स्वस्थ्य ही नहीं होंगे तो स्वस्थ्य संतान को कैसे जन्म देंगे? वही दूसरी ओर गर्भधारण और उसके पोषणके लिएभी शुद्ध आहार विहार अपेक्षित है। इसकारण बच्चा कैसे पैदा होता है में यह महत्वपूर्ण चरण है।
पुरुष का स्पर्म कितना होना चाहिए जिससे बच्चा ठहर सकता है
हेल्थलाइन वेवसाइट से प्राप्त आकड़ो के अनुसार स्वस्थ्य व्यक्ति में 15 मिलियन से 200 मिलियन शुक्राणु प्रति मिलीलीटर का पाया जाना सामान्य है। जबकि पिता बनने के लिए कम से कम 15 मिलियन प्रति मिलीलीटर या एक बार में 39 मिलियन वीर्य में उपस्थित शुक्राणुओ का पाया जाना आवश्यक है। इससे कम शुक्राणु पाए जाने पर गर्भ के ठहरने की सम्भावना नहीं होती। या 15 मिलियन प्रति मिलीलीटर से कम शुक्राणु होने पर पिता बनने में कठिनाई हो सकती है। बच्चा पैदा होने के लिए पुरुष का स्पर्म कितना होना चाहिए जिससे बच्चा ठहर सकता है। इसका निर्धारण वीर्य की गुणवत्ता के आधार पर ही किया जाता है। न की इसकी मात्रा के आधार पर। गुण और मात्रा का सम होना स्वास्थ्य का परिचायक है।
शुक्राणु की सक्रियता के मुख्य रूप से तीन कारक है। जिसके फलस्वरूप गर्भ ठहरता है। जिसमे शुक्राणुआओ की संख्या, आकार और इसकी गति है। गर्भ ठहरने के लिए इन तीनो का पाया जाना आवश्यक है। इनमे से किसी एक में विसंगति आने से गर्भधारण में कठिनाई हो सकती है। जो आज के समय में एक चिंता का विषय हो गया है। इसी कठिनाई को नपुंसकता (infertility) के नाम से जाना जाता है। इसप्रकार बच्चा कैसे पैदा होता है में यह जानने और समझने योग्य बात है।
इन सभी समस्याओ के समाधान के लिए व्यक्ति का स्वस्थ्य होना आवश्यक है। जिसके लिए अनुकूल भोजन, व्यायाम, ध्यान, दिनचर्या का विधिवत पालन करना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर औषधियों आदि के माध्यम से रोग निदान करना चाहिए। जिससे शुक्राणु जनन की क्रिया निर्बाध रूप से चलती रहे। भूषण और आभूषण भी स्वास्थ्य में चार चाँद लगाने की योग्यता रखते है। यदि इनका विधि विधान से पालन किया जाय। जब शादी के बाद बच्चा कैसे पैदा किया जाता है कीबात आती हैतो उपरोक्त कथनको ध्यानमें रखना आवश्यक है।
बच्चा कैसे ठहरता है
बच्चे का माँ के गर्भ में ठहरने को ही गर्भधारण कहा जाता है। जिसमे बच्चा पैदा होने के लिए पुरुष का स्पर्म कितना होना चाहिए जिससे बच्चा ठहर सकता है भी है। गर्भधारण की पूर्णावस्था को गर्भावस्था कहा जाता है। जिसको कुछ लोग शादी के बाद बच्चा कैसे पैदा किया जाता है के रूप में भी जानते है। जिसको हम व्यवहार में रतिक्रिया के नाम से जानते है। जिसमे माता पिता बनने की इच्छा रखने वाले युगल विवाहित दम्पती शारीरिक सम्बन्ध बनाते है। जिसमे अनुकूल राज और वीर्य के सम्मिलन से इच्छित महिला के गर्भाशय में शुक्र की प्राप्ति होती है।
अंडोत्सर्जन की क्रिया के फलस्वरूप अंडे का गर्भाशय में निषेचित होने को ही गर्भ ठहरना कहा जाता है। जिसमे अंडे के अंदर पुरुष वीर्य में उपस्थित शुक्राणु प्रवेश करता है। जो परिपक्व होकर भ्रूण बनता है। यह सभी क्रियाए माता के शरीर में सम्पादित होती है। जिसको आंग्ल भाषा में प्रेगनेंसी (pregnancy) कहते है। ज्वर आदि से ग्रस्त होने पर गर्भधारण की क्रिया में व्यवधान होता है। जिसके बुखार की सबसे अच्छी दवा आदि का प्रयोग लाभकारी है। इसप्रकार यह बच्चा कैसे पैदा होता है में अत्यंत महत्व का है।
गर्भ धारण के विभिन चरणयही भ्रूण परिपक्व होकर शिशु के रूप में जन्म लेता है। जो आगे चलकर बाल्यावस्था ऐ वृद्धवस्था को प्राप्त होता है। गर्भ के ठहरने के लिए माता पिता को शारीरिक और मानसिक रूप से सबल होना आवश्यक है। जिससे नवजात शिशु स्वस्थ हो। जिसको क्रियान्वित करना प्रत्येक माता पिता का दायित्व है। बच्चे के ठहरने के लिए एक परिपक्व आयु की अपेक्षा है। समय के साथ ही वृक्ष में फल इत्यादि की प्राप्ति होती है।
बच्चे के ठहरने के आयुर्वेद सम्मत उपाय
- युगल दम्पति को विधिवत गर्भाधान संस्कार शील संपन्न श्रोत्रीय, ब्रह्मनिष्ठ, ब्राह्मण आदि से पूछकर करना चाहिए।
- प्राप्त विधि निषेध का पालन करते हुए पति पत्नी को स्नान, इत्र, फूलो की माला और आभूषण आदि से अलंकृत होना चाहिए।
- संतान प्राप्ति की भावना से अपने इष्टदेव की समर्चा करनी चाहिए।
- शायिका को मुलायम, साफ स्वच्छ एकांत और मध्यम रोशनी में लगानी चाहिए।
- आवश्यकता पड़ने पर मधुर गंध युक्त धुप आदि को जलाना चाहिए।
- मुँह पान या वाजीकरण आदि उपायों का आलंबन लेकर रति क्रिया का सम्पादन करना चाहिए।
- जिसको काम शास्त्र में अनेको विधियों के माध्यम से ख्यापित किया गया है।
- रति सम्पादन की क्रिया मासिक चक्र के चौथे दिन से सोलहवे दिन के बीच करनी चाहिए।
- एक महीने तक प्रतीक्षा करनी चाहिए। यदि मासिक स्राव नहीं होता तो ठीक है। यदि ऐसा नहीं होता तो प्रक्रिया को पुनः दोहराना चाहिए।
- यह क्रिया गर्भधारण कहलाती है। जिसको गर्भ का ठहरना भी कहा जाता है। जो बच्चा कैसे पैदा होता है का उपाय भी कहा जा सकता है।
बच्चा कैसे बनता है
महिला जब गर्भधारण करती है तो उस महिला को गर्भवती कहा जाता है। बच्चे का निर्माण गर्भधारण की क्रिया के बाद का चरण है। जिसको आयुर्वेद चिकित्सा में गर्भ पोषण के नाम से जाना जाता है। महिला के गर्भाशय की परिपुष्टि को ही व्यवहारिक जगत में बच्चे का बनना कहा जाता है। जो चिकित्सा का गूढ़ रहस्य है। जिसको पूर्ण रूप से समझ पाना भगवान के हाथ में है। फिर भी चिकित्सीय दृष्टि से शादी के बाद बच्चा कैसे पैदा किया जाता है को जानना आवश्यक है। जिसमे बच्चा पैदा होने के लिए पुरुष का स्पर्म कितना होना चाहिए जिससे बच्चा ठहर सकता है भी है।
फिर भी आधुनिक चिकित्सा में यंत्रो का आलंबन लेकर बहुत कुछ जाना जा सकता है। जिसमे बच्चे के क्रमिक विकास को गर्भगत महिला से माध्यम से जाना जाता है। जिसमे बच्चा रज वीर्य से घनीभूत होकर पिंड के रूप में परिणत होता है। जो धीरे धीरे विकास क्रम से अनेको चरणबद्ध प्रक्रियाओं के माध्यम से परिपुष्ट होता हुआ शिशु के रूप में जन्म लेता है।
जिसमे भोजन को उचित विधा के अनुसार लेना आवश्यक है। जिसकी विधि संहिता को भोजन कब कितना और कैसे करे कहा जाता है। जो गर्भ पोषण की क्रिया के अंतर्गत आता है। इसलिए बच्चा कैसे पैदा होता है में यह भी अनिवार्य है। बच्चे के विकास में कब्ज बाधक है। जिसके लिए कब्ज की रामबाण दवा को जानना महत्व का है।
गर्भ पोषण
गर्भ पोषण शादी के बाद बच्चा कैसे पैदा किया जाता है, में होने वाले चरणों में महत्वपूर्ण चरण है। यह लगभग नौ महीने तक चलने वाली प्रक्रिया है। जो अलग अलग महिलाओ में भिन्न भिन्न प्रकार से व्यक्त होती है। जो देह प्रकृति में भेद के कारण भी समझा जा सकता है। जिसको समझने और क्रियान्वित करने के लिए समय समय पर, अनेको निषेधों का वर्णन चिकित्सा शास्त्रों में क्या गया है। जिसको ध्यान में रखकर हम माता और जन्म लेने वाली संतान दोनों के स्वास्थ्य का रक्षण उचित विधा से कर सकते है।
माता को गर्भपोषण काल में अनेको प्रकार की समस्याओ से जूझना पड़ता है। जैसे भूख न लगना, अत्यधिक नींद का आना, मन का अस्थिर रहना आदि है। जिसके लिए पाचन क्रिया कैसे सुधारे को जानना चाहिए। जिसका निवारण करने के लिए औषधि से अधिक देख रेख की आवश्यकता होती है। जिसमे पति का सहयोग, परिवार का सहयोग आपेक्षित है। इस अवस्था में इसप्रकार का सहयोग जन्म देने वाली माता के लिए औषधी है। जिसकी आज के समय में समयाभाव के कारण कमी देखी जाती है। इसकारण बच्चा कैसे पैदा होता है में उपयोगी है।
गर्भ के पोषण को ही भ्रूण का पोषण कहा जाता है। जिसमे अनेक आयुर्वेदीय औषधियों का प्रयोग होता है। इन क्रियाओ के सम्पादन से भ्रूण का अनेको क्रियाओ के, माध्यम से क्रमिक विकास होता है। जो धीरे धीरे परिपुष्ट होकर एक शिशु का रूप धारण करता है। जिसका मासिक विकास इसप्रकार है-
प्रथम मास में गर्भ की अवस्था :
गर्भाशय में जैसी अवस्था में शुक्र या स्पर्म तथा रज गिरता है। पहले महीने में वह वैसी अवस्था ( द्रवरूप ) में ही रहता है। जिसमे गर्भ का पोषण माता के शरीर से प्राप्त होने वाले पोषक तत्वों के द्वारा पूर्ण होता है। इसलिए बच्चा पैदा होने के लिए पुरुष का स्पर्म कितना होना चाहिए जिससे बच्चा ठहर सकता हो।
द्वितीय मास में गर्भ की अवस्था :
दुसरे मास में गर्भाशय में स्थित वायु, पित्त और कफ की ऊष्मा से पकता है। और कलल में स्थित पृथिव्यादि पच्चमहाभूतों से बना हुआ कललरूप शुक्र और रज घन हो जाता है।
तृतीय मास में गर्भ की अवस्था :
तीसरे मास में शिर, दोनों हाथ और दोनों पैर इन पांच अवयवों के ठन पर पांच पिंड और शरीर के सूक्ष्मभाव से अंगो के अवयव भी निकलते है।
चतुर्थ मास में गर्भ की अवस्था :
चौथे मास में जितने अंग और उपांग है। वे सभी साफ साफ प्रकट हो जाते है। इसके साथ ह्रदय के व्यक्त हो जाने से चेतना भी व्यक्त हो जाती है। इसी कारण गर्भिणी स्त्री को दौहृदिनी कहलाती है। अतः दौहृदय की अवज्ञा होने पर विकार ग्रस्त बालक उत्पन्न होता है। जिसमे अनेको प्रकार के भोजनादि की इच्छा गर्भवती माता को होती है। इसके लिए भोजन को स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक बनाने के उपाय को जाना चाहिए। जिससे गर्भवती माता को उच्च गुणवत्ता का आनुपातिक मात्रा में भोजन दिया जा सके। इसकारण शादी के बाद बच्चा कैसे पैदा किया जाता है में सर्वाधिक ध्यान रखने वाली बात है।
पंचम मास में गर्भ की अवस्था :
पांचवे मास में मन की उत्पत्ति होती है।
षष्ठम मास में गर्भ की अवस्था :
छठवे मास में बुद्धि उत्पन्न होती है। इसप्रकार इसको बच्चा कैसे पैदा होता है की चरणबद्ध प्रक्रिया कहा जाता है।
सप्तम मास में गर्भ की अवस्था :
सातवे मास में सभी अंग और उपांग भली भाती व्यक्त हो जाते है। यह बच्चे के शारीरिक विकास का मास कहा जाता है। जिसमे बच्चे का वजन बढ़ाना आदि क्रियाए होती है। इसकारण शादी के बाद बच्चा कैसे पैदा किया जाता है में यह भी उपयोगी चरण है।
अष्टम मास में गर्भ की अवस्था :
आठवे मास में ओज की उत्पत्ति होती है।
नवम मास में गर्भ की अवस्था :
गर्भिणी स्त्री नवें या दशवे मास में संतान को जन्म देती है। कभी कभी ग्यारहवे और बारहवे मास में जन्म देती है। इस प्रकार यह शादी के बाद बच्चा कैसे पैदा किया जाता है की यह चरणबद्ध क्रिया है। गर्भिणी महिला को यदि किसी कारण से खांसी हो, तो खांसी का घरेलू इलाज अपनाना चाहिए।
प्रसव
शादी के बाद बच्चा कैसे पैदा किया जाता है में प्रसव सबसे अधिक सावधानी से की जाने वाली क्रिया है। गर्भवती महिला बच्चे को कैसे जन्म देती है? तो यह क्रिया प्रसव के माध्यम से सम्पादित होती है। यह गर्भ के परिपुष्ट होने की अवस्था है। गर्भावस्था की परिपक्व अवस्था के बाद प्रसव होता है। जिसको बच्चा पैदा होने की अंतिम अवस्था के रूप में भी जाना जाता है। जिसमे शिशु माता के गर्भ के बाहर आने के अनुकूल, बल या सामर्थ्य की प्राप्ति कर चुका होता है। एक निश्चित समय के बाद गर्भिणी स्त्री में प्रसव पीड़ा प्रारंभ होती है। जो गर्भगत शिशु को बाहर निकलने की क्रिया है। जिसको योग्य, अनुभवी और कुशल परिचयित्री से सम्पादित करवाना चाहिए।
इस काल को ही प्रसव काल के नाम से भी जाना जाता है। जिसमे प्रसव वेदना होती है। जिसे आंग्ल भाषा में लेबर पेन कहते है। जो गर्भगत शिशु के समय का पूरा होना बताता है। जिसे हम सभी यहाँ दर्द होना समझते है। उसे चिकित्सा में लक्षण के रूप में देखा जाता है। लक्षण की प्राप्ति के पूर्व ही योग्य और कुशल परिचयित्री से मार्गदर्शन लेना चाहिए। जिससे सुव्यवस्थित प्रसव सम्पादित हो सके।
इसमें स्त्री को सबसे अधिक सावधानी रखनी चाहिए। जिसका कारण यह है कि प्रसव दिन और रात दोनों में से कभी भी हो सकता है। जिससे बच्चा और जच्चा दोनों के स्वास्थ्य का रक्षण हो सके। प्रसव विसंगतियों के कारण माँ और बच्चे दोनों को अनेको प्रकार की समस्याओ का सामना करना पड़ सकता है। जैसे माँ के कमर में दर्द आदि। इसकारण बच्चा कैसे पैदा होता है में प्रसव भी महत्व का है।
बच्चा कहां से निकलता है या बच्चा कहां से पैदा होता है
मानव शरीर में होने वाली घटना को चिकित्सीय ग्रंथो में मानव शरीर रचना के नाम से जाना जाता है। जिसमे प्रत्येक अंग से सम्बंधित क्रियाओ का अध्ययन किया जाता है। जो अंग विशेष में होने वाली समस्त रोग निदानात्मक प्रक्रियाओं के निराकरण में उपयोगी है। जिनका आलंबन लेकर ही चिकित्सा में सिद्ध महानुभाव चिकित्सा निदान की क्रिया को पूर्ण करते है। जिसको व्यवहारिक रूप से बच्चा कैसे पैदा होता है भी कहते है।
मानव शरीर रचना के अनुसार गर्भाशय का मुख योनी में खुलता है। जिस कारण योनी मार्ग का आलंबन लेता हुआ शिशु योनी से ही बाहर निकलता है। जो एक प्रकार से गर्भधारण और शिशु जनन में सहायक है। अब इसप्रकार बच्चा कहा से पैदा होता है जैसा प्रश्न का निराकरण हो जाता है। जिसको शादी के बाद बच्चा कैसे पैदा किया जाता है में सम्मिलित करना चाहिए।
बच्चा बाहर कैसे निकलता है
बच्चे के बाहर निकलने की प्रक्रिया भी प्रसव के अंतर्गत ही आती है। जिसमे प्रसवसिद्धस्त परिचयित्रीके द्वारा प्रसवयित्रीके योनीके मुखपर तेल या स्निग्ध पदार्थ लगाकर गर्भिणी को काखनेके लिए कहा जाता है। जिससे गर्भगत शिशु का सिर योनी के मुख पर आ जाए। जो शिशु के बाहर निकलने के लिए बहुत ही महत्पूर्ण है। इस क्रिया के पूर्ण होने पर शादी के बाद बच्चा कैसे पैदा किया जाता है की क्रिया पूर्ण होती है।
शिशु के बाहर निकलने में वायु दाब का ही प्रयोग होता है। जिसको चिकित्सा में वायु के वेग के कारण ही शिशु का जन्म कहा जाता है। जो काख्ने के दौरान होने पर पूर्ण होती है। आजकल इस क्रिया का सम्पादन लिटाकर कराया जाता है। जबकि भारत में आज भी कुछ ऐसी जनजातियाँ है। जहा पर प्रसव उकडू या मुकुरु बैठाकर कराया जाता है। इसमें वायु का दाब बनाना अपेक्षाकृत आसान होता है।
जोर से काखने की क्रिया के फलस्वरूप गर्भगत शिशु गर्भ के बाहर निकलता है। जिसकी विधिवत निषेधाज्ञा का पालन करते हुए संस्कार करना चाहिए। जिससे सभी प्रकार के दोषो का निराकरण हो सके। बच्चे के जन्म लेने के बाद महिला को अत्यधिक दर्द आदि के कारण चक्कर या बेहोशी भी हो सकती है। जिसमे घरेलू उपायों का आलंबन सुरक्षा और उपलब्धता के कारण अधिक उपयोगी है। आवश्यकता पड़ने पर कुशल मार्गदर्शन में औषधि लेने में देरी नहीं करनी चाहिए। देरी होने से जान जाने का भी ख़तरा होता है। इस प्रकार शादी के बाद बच्चा कैसे पैदा किया जाता है की क्रिया पूर्ण होती है।
ध्यान रखने योग्य बात :
गर्भधारण के प्रथम तीन माह अधिक महत्वपूर्ण होते है। इस कारण इस समयावधि का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसलिए शादी के बाद बच्चा कैसे पैदा किया जाता है को जानने की आवश्यकता सभी माता – पिता को है। जिसमे सबसे अधिक बात लोगो के द्वारा पूछी जाती है कि पुरुष का स्पर्म कितना होना चाहिए जिससे बच्चा ठहर सकता हो। तो इसके लिए 15 – 39 लाख प्रति मिली होना चाहिए। इस तरह उपरोक्त सभी चरण बच्चा कैसे पैदा होता है में उपयुक्त और विनियुक्त है।
FAQ
बच्चा पैदा करने के लिए क्या करना पड़ता है?
व्यावहारिक दृष्टि से बच्चा होने के लिए गर्भाधान आवश्यक है। जिसमे पारम्परिक जोड़ो का शारीरिक सम्बन्ध अपेक्षित है।
शादी के कितने दिन बाद बच्चा होता है?
शादी के लगभग 1 वर्ष बाद बच्चे का पैदा होना अच्छा माना गया है। क्योकि इतने समय में पति और पत्नी दोनों एक दुसरे को समझने लगते है। जो बच्चे के पालन – पोषण के लिए बहुत उपयोगी है।
शादी के बाद बच्चा क्यों होता है?
विवाह का उद्देश्य ही वंश परम्परा का संरक्षण है। जिसका समय स्वास्थ्य, शील की रक्षा आदि की दृष्टि से विवाहोपरांत शास्त्रों में निर्धारित है।
बच्चे पैदा करने से पहले क्या किया जाता है?
बच्चे के जन्म के पूर्व उसका नियोजन किया जाता है। जिसमे आवश्यक सामाग्री जैसे – भोजन, वस्त्र, आवास आदि की आवश्यकता होती है। साथ ही पति – पत्नी में अनुकूल सम्बन्ध की अपेक्षा होती है।
बच्चा पैदा करने के लिए कब करना चाहिए?
मासिक धर्म के बीच के समय को बच्चा पैदा करने के लिए चिकित्सा में सर्वाधिक उपयोगी बताया गया है।
बच्चा पैदा करने का सही समय कब होता है?
वैसे तो बच्चा पैदा करने का सही समय औसतन 21 से 27 वर्ष माना जाता है। परन्तु जब दोनों के अनुकूल परिस्थिया हो। वह समय सबसे अधिक उपयोगी है।
नार्मल डिलीवरी में बच्चा कंहा से निकलता है?
प्राकृतिक रूप से सामान्य प्रसव में बच्चा योनी द्वार से बाहर आता है।
शादी के बाद दूल्हा दुल्हन क्या करते हैं?
शादी के बाद नवदंपती अपने वास्तविक जीवन की शुरुआत करते है। जिसमे वह आने वाली पीढ़ी को तैयार करते है। जिससे उनके जीवन में भोग और मोक्ष का द्वार खुलता है।
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