पृथ्वी पर समुत्पन्न सभी जीव भूख, प्यास से संतृप्त है। फिर चाहे वह मानव हो या कोई और जीव जंतु। यह सामान्य रूप से सभी को प्राप्त होते हुए भी असाधारण है। जिसका कारण आयुर्वेद में स्पष्ट रूप से बताया गया है। दोनों में से किसी एक या दोनों में विसंगति होने के कारण, भूख और प्यास में दोष की प्राप्ति होती है। जिससे भूख लगने में कमी या वृद्धि देखी जाती है। जिससे निपटने के लिए आयुर्वेद में भूख बढ़ाने की दवा का भी विधान है। जो हमारे शरीर के लिए महौषधि का कार्य करता है। जिसे मानवो में पाचन क्रिया कैसे सुधारे के महत्वपूर्ण उपाय कहा जाता है।
व्याधि को निर्मूल करने में भूख और प्यास का अत्यधिक महत्व है। इनकी महत्ता का ख्यापन इनसे प्रदत्त लक्षणों के आधार पर प्राप्त होता है। जो चिकित्सा आदि के दौरान सकारात्मकता और नकारात्मकता के रूप में दिखाई पड़ता है। जिनके आधार पर रोगी और चिकित्सक को रोग पर नियंत्रण, वारण और उच्छेद के अनुकूल लक्षणों की प्राप्ति होती है। इन्ही अनुकूलताओं के प्रभाव के कारण जहा हमारा शरीर सबल और पुष्ट होता है। वही दूसरी और अनेको रोगादि से विमुक्त होकर चिर काल तक स्वस्थ बना रहता है।
भूख की निवृत्ति भोजन से और प्यास की निवृत्ति पानी या जल से पूरी होती है। यह अनादि काल से चला आ रहा सिद्धांत है। जो प्रलयकाल तक प्रभावी होगा। जिसके कारण हम आयुर्वेदगत प्राप्त विधि निषेधों को मानने के लिए बाध्य है। इनका विधिवत परिपालन ही हमारे उत्कर्ष में हेतु है, न की इनका उच्छेद। भोजन हमारे शरीर के लिए ईंधन का कार्य करता है। जिससे प्राप्त होने वाली शक्ति का उपयोग हम कर्म संचालन के लिए करते है। जिसमे जीविका अर्जन के विविध आयाम, व्यायाम, परिश्रम, ज्ञान परिष्करण, राष्ट्र रक्षा, वाणिज्य और सेवादि सम्मिलित है। जिसको आज के समय में समझना अत्यावश्यक है।
भूख, प्यास क्या है?
भूख, प्यास जीवो को स्वाभाविक रूप से प्राप्त है। पार्थिव प्रपंच के रूप में आज जो कुछ भी परिलक्षित है। सब के सब प्राणी ही है। अब यह अलग बात है की इनकी श्रेणियाँ भिन्न भिन्न है। अब मनुष्यो की बात की जाय तो इनको प्राणियों के सबसे उत्कृष्ट श्रेणी में स्थान प्राप्त है। जिसे जरायुज प्राणी के नाम से जाना जाता है। मानव शरीर की संरचनानुरूप ही इनका संचालन होता है। जो ईश्वर प्रदत्त प्रणाली के आधार पर चलता है। जिसे आज का आधुनिक विज्ञान स्वचालित प्रणाली के रूप में स्वीकार करता है। जो निरंतर कार्य करता है।
जिसे श्वास – प्रश्वास प्रणाली के नाम से भी जाना जाता है। जिसमे प्राणवायु की प्रमुखता होती है। मानव शरीर पांचभौतिक होने के कारण आकाश, वायु, तेज, जल और पृथ्वी के सम्मिलन से प्राप्त है। जिसमे किसी का शरीर पृथ्वी प्रधान है। किसी का जल प्रधान है। किसी का अग्नि प्रधान है। किसी का वायु प्रधान है। किसी का आकाश प्रधान है। किसी का इनका सम्मिश्रण है। जिसमे दो और तीन का योग भी सम्मिलित है। जिसे आयुर्वेद में वात आदि के नाम से जानते है। आहार के रूप में भौतिक रूप से पृथ्वी के रूप में अन्न का। जल के रूप में जल या पानी का।
अंत में वायु के रूप में आक्सीजन का अवशोषण हम मानवो द्वारा किया जाता है। इस आधार पर हम वायु, जल और अन्न का सेवन भोजन के रूप में प्रत्यक्षतः करते है। जिनसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का कर्षण भोजन से प्राप्त होने वाले पोषण के आधार पर किया जाता है। जब हमारे शरीर में इन पोषक तत्वों में किसी तत्व की कमी हो जाती है। जो हमें भूख और प्यास के रूप में प्राप्त होती है। जो हमारे शरीर की स्वचालित प्रणाली के अंतर्गत हमें प्राप्त होती है।
भूख, प्यास कब लगती है?
मानव शरीर में सूक्ष्म पोषक तत्वों का एक आनुपातिक संयोजन होता है। जिसे आयुर्वेद के अनुसार व्यक्ति विशेष की प्रकृति कही जाती है। जिसे आयुर्वेद में देह प्रकृति कहा गया है। इस प्रकार हमे दो प्रकार की प्रकृति प्राप्त है। एक वाहय और दूसरी आंतरिक। वाहय प्रकृतियो में ऋतुकालादि का सन्निवेश होता है।
जबकि आंतरिक प्रकृति को आयुर्वेदादि शास्त्रों में देह प्रकृति के नाम से जाना जाता है। भूख प्यास विशेष रूप से देह प्रकृति के अंतर्गत ही आते है। जो सभी जीवो का स्वाभाविक रूप से प्राप्त है। जिसकी उचित समय पर निवृत्ति न होने पर अनेको प्रकार की विसंगतिया हमें प्राप्त होती है। जैसे – भूख नहीं लगना एवं भूख कम होना आदि।
देह प्रकृति के अनुसार प्राप्त सूक्ष्म पोषक तत्वो के अनुपात में, न्यूनता होने पर ही हमको भूख और प्यास लगती है। अब प्रश्न उठता है कि इस न्यूनता का कारण क्या हो सकता है? तो इसका कारण अंग विन्यासादि की क्रिया के परिणाम स्वरूप है। परन्तु कुछ लोग ऐसे भी है जो कार्य न करने पर भी भूख प्यास से संतृप्त हो जाते है। जैसे रोगी व्यक्ति।
इसका क्या कारण है? मानव शरीर स्वसंचालित होने के कारण आंतरिक अंगो के क्रियाशील होने के कारण। इस कारण ही हम सभी को भूख प्यास की प्राप्ति होती है। ऐसा होने पर हर व्यक्ति भूख प्यास से संतृप्त होना स्वाभाविक है। जिसका आपनोदन करने के लिए नियमित अंतराल पर, आहार के रूप में भोजन की अपेक्षा है।
अब विचारणीय प्रश्न यह है कि आहार के रूप में किस प्रकार का भोजन लिया जाय? किस प्रकार का भोजन न लिया जाय? कैसा भोजन लिया जाय? कैसा भोजन न लिया जाय? जिससे हमारी भूख और प्यास के निवारण होने के साथ साथ हमारा स्वास्थ्य भी बना रहे।
भूख, प्यास शमन का उपाय
भोजन के रूप में यहाँ हमें दो प्रकार के उपाय देखने को प्राप्त होते है। एक आज के अनुसंधानिक विज्ञान के द्वारा प्राप्त उपाय। दूसरा वेदादि ( आयुर्वेदादी ) शास्त्र द्वारा प्राप्त उपाय। दोनों ही प्रयोगो से हमारी भूख कि पिपासा शांत होती है। परन्तु दोनों में असाधारण भेद क्यों परिलक्षित है?
दोनों का गहनता से निरीक्षण और परीक्षण करने पर, सिद्धांत में अंतर स्पष्ट रूप से देखने को प्राप्त है। जो भोजन को उगाने, पकाने और खाने में भी भेद की प्राप्ति कराता है। सिद्धांत तो सिद्धांत है। सिद्धांत में तारक सामग्री को मारक और मारक सामाग्री को तारक बनाने की क्षमता सन्निहित है।
सिद्धांत को समझना और समझकर उसका क्रियान्वयन करना, दोनों ही अलग मगर महत्वपूर्ण है। दोनों में सामजस्य साध पाना उससे भी कठिन है। माना कि सामंजस्य सध भी गया गया तो दर्शन, विज्ञान और व्यवहार की घाटी पर खरा उतरना उससे भी कठिन है।
जो सिद्धांत इन सभी शंकाओ का समाधान करने में सक्षम हो, वही सर्वोकृष्ट नहीं एकमात्र उत्कृष्ट सिद्धांत हो सकता है। जिसको शास्त्रों में अकाट्य शब्द से उच्चारित किया गया है। जिसको कोई चुनौती नहीं दे सकता। इस प्रकर हमें भूख और प्यास की निवृत्ति तक ही सीमित नहीं रहना है।
अब हमे विचार करना होगा कि वास्तव वह कौन से उपाय है। जो हमारे शरीर के लिए हितकारक है। प्रकृति के लिए उपकारक है। समाज, देश और पूरे विश्व के लिए हितैषी हो। जिससे हमारे भोग और योग में गति बनी रहे। जिसमे भूख, प्यास की महती भूमिका है।
भूख, प्यास शमन का आधुनिक उपाय
आज के समय में यंत्रो का प्रचुर अविष्कार और प्रयोग हो रहा है। जिसके कारण यांत्रिक विधा से भोजन निर्माण को ही प्रश्रय दिया जा रहा है। जिसमे यन्त्र के माध्यम से कारखानों में भोजन को आधुनिक विधा से परिष्कृत किया जाता है। यंत्रो की प्रभावशीलता के कारण ही अब घरो में भी इसका प्रयोग किया जाने लगा है।
जिसके प्रभाव में भोजन में अनेको प्रकार की विसंगतियों का जमाव होता है। जिसका सेवन अनेको व्याधियों का कारण है। लेकिन शहरीजीवन शैली में इनका बोलबाला होने से, किसी न किसी रूप में इनका सेवन हमें करना ही पड़ता है। इस कारण हमें खाना खाने से पूर्व अपने स्वास्थ्य के विषय में विचार करना चाहिए।
आधुनिक विज्ञान में शोध आधारित आवश्यक ऊर्जा प्राप्ति को ही भूख शमन की संज्ञा दी गई है। जिसको प्राप्त करने के लिए प्राकृतिक और अप्राकृतिक दोनों उपायों को प्रश्रय दिया गया है। जिसके अधिक विधि निषेधों की प्राप्ति नहीं होती। परन्तु इस प्रकार के भोजन से व्याधियों के होने की आशंका अधिकतम होती है।
जिसको आज का आधुनिक विज्ञान भी स्वीकार करता है। अब इसका लोगो ने विकल्प जैविक आदि कहकर निकाला है। जो आयुर्वेद के आधार पर है। आयुर्वेद के समक्ष नहीं, इस बात का हमें ध्यान रखना चाहिए। आधुनिक विधा में भोजन उत्पादन, पकाना और खाना तीनो ही यन्त्र आधारित है।
जिस कारण इसका निर्माण जितना जल्दी होता है। उतनी ही जल्दी हमारे शरीर में, रोगादि को भी देने में भी यह समर्थ है। इस कारण हमें अपने भोजन और पानी का चयन बहुत ही बुद्धि पूर्वक करना चाहिए। केवल और केवल विज्ञान और तकनीकी के आधार पर नहीं। बल्कि गहनता से निरीक्षण और परीक्षण के उपरांत प्राप्त सकारत्मक परिणाम के आधार पर ही उसे अपने जीवन में उतारना चाहिए।
भूख प्यास शमन का आयुर्वेदादी सम्मत उपाय
आयुर्वेदादी शास्त्रों में भूख प्यास का शमन करने के साथ, हम सभी के स्वास्थ्य पर सूक्ष्मता से विचार किया गया है। जिससे हमारा जीवन व्याधिग्रस्त होने से बचा रहे। जीवन में पुरुषार्थ चतुष्टय को प्राप्त करने के अनुकूल बल और वेग की प्राप्ति हो सके। जीवन को ऊध्वमुखी बनाने के लिए भी स्वास्थ्य अपेक्षित है।
आयुर्वेदादी शास्त्रों में मंत्र, भावना, सामाग्री, विधि और निषेध को लेकर अत्यधिक बल दिया गया है। जो हमारे भोजन में अनेको दिव्यताओं का आधान करने में समर्थ है। जो योग परक भी है और भोग परक भी है। दोनों में पारस्परिक संतुलन भी है। जिसका विधिवत पालन करने पर हमारे जीवन स्वास्थ्य की उपलब्धि सुनिश्चित है।
शास्त्रोक्त विधा में तो देश, काल, परिस्थिति, देह प्रकृति आदि को ध्यान में रखकर भोजन का परिमार्जन किया गया है। जिसे आयुर्वेद के आचार्यो ने विस्तार से ऋतुकाल, दिनचर्या आदि के रूप में ख्यापित किया है। जिसे जानने का स्वाध्याय, गुरुभक्ति और ईशवरानुग्रह एकमात्र उपाय है।
यहाँ पर भोजन को उगाने के लिए कृषि विज्ञान की बात भी स्वीकार की गई है। जिसमे बैलचालित हल से खेत की जुताई, देशी बीज, भूमि सिंचन के पारपरिक प्रयोगादि सम्मिलित है। इसके साथ भोजन को बनाने के लिए ईंधन और पात्रो पर भी बहुत ही बारीकी से ध्यान दिया गया है।
अलग अलग प्रकार के अन्न को पकाने की विधा का भी विस्तार किया गया है। भोजन को परोसने और खाने की अद्भुत विधा का वर्णन भी आयुर्वेदादी ग्रंथो में किया गया है। जो हमारे समग्र स्वास्थ्य को सहेजने में महती भूमिका निभाते है। जिससे विसंगतियों को कही कोई स्थान ही प्राप्त नहीं होता।
भूख शमन के आयुर्वेदादी सम्मत उपाय
भूख शमन के उपायों की बात की जाय तो आयुर्वेद में अनेको उपाय बताये गए है। जिससे न केवल हमारे भूख का निवारण होता है। बल्कि हमारे स्वास्थ्य का संरक्षण भी होता है। ज्यादा भूख लगने के कारण भी हमें स्वास्थ्य में हीनता प्राप्त होती है। ठीक इसी प्रकार कम भूख होने से भी हमे हमारे स्वास्थ्य में हीनता का दर्शन होता है।
जिसके निदान के लिए आयुर्वेद में दिनचर्या का विधिवत पालन करने का निर्देश किया गया है। ऋतुनुकूल सामग्री चयन कर भोजन निर्माण को श्रेयस्कर बताया गया है। मात्रा के अनुसार गुणवत्ता को सहेजने के विविध आयामों पर प्रकाश डाला गया है। पकाने और खाने की विधि आदि का भी वर्णन किया गया है।
इस प्रकार भोजन के समग्र स्वरूप को प्रदर्शित किया गया है। जो हमारे लिए न केवल ऋतू के द्वारा प्राप्त व्याधियों से हमें सुदूर रखता है। बल्कि जीवाणु और विषाणु जनित रोगो से भी हमें दूर रखता है। आजकल कार्बन या कालिख के संक्षेपण के कारण भी अनेको रोगो की प्राप्ति हमें हो रही है।
जिससे बचने में इस प्रकार के उपायों का आलंबन लेकर ही हम बच सकते है। जो न केवल सनातन है बल्कि दर्शन, विज्ञान और व्यवहार में सामंजस्य साधने में भी समर्थ है। जिस पर अनादिकाल से बार बार प्रयोगकर निष्ठा पूर्वक पालन करने के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है।
इस प्रकार यह उपाय चिर, परीक्षित और प्रयुक्त उपाय है। जो लौकिक ही नहीं पारलौकिक उत्कर्ष में हेतु है। साथ ही साथ परमात्मप्राप्ति कराने में भी समर्थ है। जो हम सभी के जीवन को अधोमुख से ऊर्ध्वमुख की ओर ले जाने में भी उपयुक्त है।
दिनचर्या के आधार पर
भूख शमन के लिए सबसे उपयुक्त उपाय आयुर्वेद के अनुसार दिनचर्या है। जिसको लक्ष्य बनाकर हमें अपने दिन का उपयोग करना चाहिए। जिसमे सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त के पहले भोजन करने का विधान निर्धारित किया गया है। संध्याकाल या रात्री में भोजन का निषेध किया गया है।
अब प्रश्न उठता है कि यदि रात्रि में भूख लग जाए तो क्या करे? तो उसके लिए दुग्धपान का वर्णन हमें आयुर्वेदादी शास्त्रों में प्राप्त होता है। मध्यरात्री में भोजन का सर्वथा निषेध है। आयुर्वेद और आधुनिक विधा में समयांतर होने के कारण इस प्रकार के भ्रम को प्रश्रय प्राप्त होता है। जिसका निवारण ही इनसे बचने का एकमात्र उपाय है।
भोजन का समय दिनचर्या के आधार पर करना ही सर्वोत्तम उपाय है। जिसके लिए भोजन की गुरुता पर भी प्रकाश डाला गया है। अत्यधिक भारी भोजन करने के लिए प्रातः काल का समय सबसे उपयुक्त होता है। जबकि हलके सुपाच्य भोजन के लिए संध्याकाळ का। इस बात का हमें अपने भोजन में विशेष ध्यान रखना चाहिए।
बिजली का अविष्कार हो जाने के कारण दिन और रात की विभजक रेखा ही आजकल लुप्त है। जिससे कालके प्रभावके दोषके कारण, हमें अनेको प्रकारके रोगो की प्राप्ति उपहार के रूप में प्राप्त हो रही है। जैसे भूख नहीं लगना और भूख कम होना आदि प्रमुख है। जिसके स्थाई निदान के रूप में दिनचर्या के अतिरक्त कोई उपाय ही नहीं है।
आज का समय जीवाणु और विषाणु के चपेट में है। जिससे बाहर निकलने और उनसे प्रतिरक्षण करने में दिनचर्या का विशेष योगदान है। जो आज के समय में एक विप्लवकारी महामारी के रूप में प्रकट है। जिसे कालांतर में कोरोना आदि नामो से जाना जा सकता है।
सामाग्री के आधार पर
सामग्री के आधार पर भूख शमन की बात की जाए तो विशेष रूप से इसकी गुणवत्ता है। जिसको भोजन के रूप में उत्पादित सामाग्री का रख रखाव, उसकी पैकेजिंग आदि प्रमुख रूप से आती है। आज के समय में खाद्य तेलों को प्लास्टिक आदि के बोतलो में भरकर बाजार में बेचा जाता है।
जिससे प्लास्टिक आदिके अतिसूक्ष्म अणुओ का मिश्रण तेलोंमें होजाने के कारण तेल की गुणवत्ता में कमी आ जाती है। इन अणुओ को हम विज्ञान की भाषा में नैनो पार्टिकिल के नाम से जानते है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। जो अनेको प्रकार के रोगो के वाहक है।
इसी समस्या से बचने के लिए भारत में घर घर खेती का विधान किया गया था। जो आजकल तो लुप्तप्राय सा है। इस कारण तेलों को रखने के लिए कांच या लोहे का टिन आदि का प्रयोग करना चाहिए। यांत्रिक युग में तेल निष्कर्षण की विधा में भी विकृति है। जो तेल की गुणवत्ता को समाप्त या मार देती है।
खाद्य तेल केवल लकड़ी की घाणी से निकला हुआ और कांचदि में रखा हुआ और नया ही खाना चाहिए। जिससे तेल से प्राप्त होने वाले सभी उपयुक्त पोषक तत्वों की प्राप्ति हमें हो सके। इनसे प्राप्त होने वाली विसंगति के कारण ही अक्सर भूख नहीं लगने की समस्या होती है।
भोजन को स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक बनाने में तेलों का अहम योगदान है। यह भोजन बनाने का मुख्य का आधार है। यहाँपर एकबात और ध्यान देने वाली बात हैकि भोजन कब करे कैसे करे का आयुर्वेदोक्त नियमके अनुसार पालन करना चाहिए। भोजन की गुणवत्ता में मोठे अन्न ( मिलेट ) का भी विशेष योगदान है।
प्यास शमन के आयुर्वेदादी सम्मत उपाय
प्यास शमन के उपायों की बात की जाय तो यह भोजन से भी अधिक महत्वपूर्ण है। जिसका कारण दो तिहाई भाग जल की उपस्थिति के कारण है। जिसमे जल की गुणवत्ता की महत्ता के साथ साथ उसकी मात्रा की अत्यावश्यक है। इन दोनों के योग से ही हमारे शरीर में इनसे प्राप्त होने वाले तत्वों की अनुकूलता बनी रहती है।
सामन्य रूपसे बात की जाय तो प्यास की निवृत्ति का एकमात्र उपाय सही समय पर जल की प्राप्ति है। जिसके लिए हमारा शरीर इसकी मांग हमसे करता है। आयुर्वेद के अनुसार कुए का जल स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम माना जाता है।
यदि आठ दस घंटे के लिए इस जल को ताम्बे के बर्तन में भरकर रख दिया जाय, तो इससे अच्छा कुछ भी नहीं हो सकता। यह जल हमारे शरीर में मल का शोधन करने जैसे अनेको कार्यो को करने में निपुण है। जिसको हम आज जल का संरचनात्मक होना कहते है। यह धातु जल में स्थित दो मुख्य अशुद्धियों को भी दूर करता है।
जल का टी डी एस। जो आज के समय में बहुत बड़ी समस्या के रूप में हमे प्राप्त है। जो किडनी आदि रोगो के जनन का एक प्रमुख हेतु है। अब अंतिम गुण जल को जीवाणु और विषाणु रहित बनाना। जिसको करने में इसे स्वभाव से महारथ हासिल है। इस कारण ताम्रजल का सेवन हम सभी के लिए हित करक है।
अब रह गई बात जल के पीने की तो इसके पीने के भी अनेको उपायों की चर्चा की गई है। इसप्रकार हमे आज भी अनेको स्वास्थ्यपरक बाते आज भी आयुर्वेद के रूप में प्राप्त है। जल पीने में हुई विसंगति के कारण अनेको व्याधियों की प्राप्ति हमें होती है। जैसे प्यास का कम लगना और अधिक लगना।
ज्यादा भूख, प्यास लगने के कारण
भूख का कम लगना या अधिक लगने को ही चिकित्सा शास्त्रों में रोग कहा गया है। जिसमे उचित समय पर उचित सामग्री का प्राप्त न होना भी एक प्रमुख कारणों में से एक है। जिसका आपनोदन करने के लिए आयुर्वेद में, अनेको प्रकार की चिकित्सा विधानों का वर्णन किया गया है।
भूख प्यास की समस्या को ज्यादातर पाचनतंत्र के साथ जोड़कर देखा जाता है। जिससे इसमें अनेको प्रकार की कुछ आम समस्याए होती है और कुछ विशेष। जिनका समाधान करने के लिए भी अनेको प्रकार की चिकित्सा विधानों का वर्णन हमें अलग अलग चिकित्सा पद्धतियों में प्राप्त होता है।
जिसमे दवा आदि के माध्यम से उपचार किया जाता है। जिसमे भूख बढ़ाने वाली दवा का विधान किया गया है। आयुर्वेद की दृष्टि से विचार करे तो भूख लगने की आयुर्वेदिक दवा के रूप में अनेको दवाओं का निर्माण और प्रयोग किया गया है।
आधुनिक युग के दवोपचार की बात करे तो इसमें भी भूख लगने की अंग्रेजी दवा की बात की गई है। ज्यादातर घरेलु उपचारो को आयुर्वेद से ही जोड़कर देखा जाता है। इसकारण इसको देशी दवा के नाम से जाना जाता है। भूख लगने की देसी दवा की बात करे तो खाना खाने के बाद हरण को चूसने आदि का विधान है।
भूख लगने और प्यास लगने में आयी हुई विसंगतियों को शीघ से शीघ्र शमन करना चाहिए। जिससे अन्य व्याधियों को पनपने का अवसर प्राप्त न हो सके। आयुर्वेद में पाचनतंत्र ही समस्त रोगो के पनपने का मूल कारण बताया गया है। जिसमे समस्त प्रकार के विकारो को जन्म देने की क्षमता सन्निहित है।
जब भूख और प्यास दोनों साथ लगी हो तो पहले क्या करना चाहिए?
आयुर्वेद में कहा गया है कि भूख लगने पर भोजन करना चाहिए। प्यास लगने पर पानी पीना चाहिए। यदि दोनों ही परिस्थिति किसी कारणवश एक साथ हो तो क्या करना चाहिए? यह एक सामान्य सा दिखने वाला असामान्य प्रश्न है। जिसका उत्तर आज भी ज्यादातर लोग नहीं जानते। जिससे अज्ञानवश प्रामाद हो जाता है।
स्वास्थ्य की दृष्टि से व्यवहारिक जगत में यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। जिसका उत्तर जानना हम सभी के लिए श्रेयकर है। इसप्रकार की परिस्थिति कभी न कभी हम सभी के जीवन में संयोगवश या अन्य कारणों से आती ही है। इस प्रकर की परिस्थितियां ही व्याधियों को जन्म देने में सहायक है।
इस कारण इनका निराकरण हम सभी के लिए उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करने वाला सिद्ध है। निवारण ऐसा होना चाहिए जो वास्तव में हमारे लिए उपयोगी हो। इसलिए इसको जानने का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। भूख लगने के कारण जहा हमारा शरीर कमजोर हो जाता है।
वही प्यास लगने पर सभी नलिकाओं के साथ हमारा शरीर सूख जाता है। जिस कारण ऐसी परिस्थिति खड़ी होती है कि प्राण रक्षा भी चुनौती बन जाती है। इस कारण प्यास को सहना, भूख को सहने से अधिक कठिन माना जाता है।
तीव्रता की दृष्टि से विचार करे तो प्यास का वेग, भूख के वेग से अधिक तीव्र माना गया है। जिसका परीक्षण करने के लिए ईश्वर ने हमें यह शरीर दिया है। जिसको हम जब चाहे तब परीक्षित कर सकते है। क्योकि हमारा शरीर चौबिसो घंटे हमारे साथ है।
भूख, प्यास लगने पर पहले पानी पीना चाहिए या भोजन करना चाहिए
भूख से प्यास की तीव्रता अधिक होने के कारण ज्यादातर लोग स्वाभाविक रूप से जल का सेवन पहले करते है। जो आयुर्वेद को भी मान्य है। इसके साथ ही अन्य चिकित्सा पद्धतियों को भी मान्य है। प्यास का शमन करने की आयुर्वेदोक्त रीति के अनुसार प्रथम आवश्यक तत्व की पूर्ती करना चाहिए।
आयुर्वेद के अनुसार भूख और प्यास की प्राप्ति साथ होने पर पहले प्यास की निवृत्ति करना चाहिए। तदुपरांत भूख निवृत्ति के प्रकल्पो या उपायों को करना चाहिए। प्यास के शमन के उपरांत ही भोजन करना श्रेयस्कर माना गया है। ऐसा न करने पर पाचन तंत्र से सम्बंधित व्याधि को बल मिलता है।
जो सभी प्रकार की व्याधियों के उद्गम का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य सम्पादित करता है। उपयुक्त उपायों के प्राप्त होने से शरीर ऋतू आदि के प्रभाव को सह पाने में अक्षम होता है। जिससे शरीर में दो तरफ से प्रहार होता है। जिसको संभाल पाना एक चुनौती पूर्ण कार्य है।
जिसके लिए इस प्रकार की छोटी छोटी बातो का ध्यान रखना आवश्यक है। भूख की विसंगति होनेपर भूख बढ़ने की दवा भी प्रयोग करने पर इसप्रकार के फलकी कल्पना नहीं की जा सकती। रोगादि होने पर मानसिक, शारीरिक और आर्थिक तीनो ही विकारो से झूझना पड़ता है। इस आधार पर रोगादि से बचने में ही बुद्धिमानी है।
भूख प्यास लगने पर पहले पानी ही क्यों पीना चाहिए?
प्यास का शमन करना इसलिए भी अनिवार्य है कि जलकी अनुपस्थिति में शरीर में पाचन की क्रिया में व्यवधान होता है। स्पष्ट भाषा में कहे तो जल की अनुपस्थिति में पाचन होता नहीं। जबकि अधिक जल की उपस्थिति में भी पाचन नहीं होता। जिससे धीरे – धीरे पेट दर्द आदि की समस्या जन्म लेने लगती है।
भोजन को पचाने के लिए प्राथमिक रूप से जल की अपेक्षा है। जिस कारण दोनों की प्राप्ति एक साथ होने पर प्यास की व्याप्ति अधिक होती है। जिसके कारण प्यास का वेग भूख की अपेक्षा अधिक होता है। पाचन की क्रिया में शरीर के द्वारा विभिन्न प्रकार के पाचक रसों का श्रावण होता है।
जिनके उपयुक्त समिश्रण के लिए भी जल की आवश्यकता होती है। जब प्यास को रोककर भोजन किया जाता है तो जल के आभाव में पाचन प्रणाली पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। जिससे व्याधियों को बल मिलता है। जिसमे ज्यादा भूख लगने, कम भूख लगने, भूख कम होना जैसी समस्याए उत्पन्न हो जाती है।
ज्यादा भूख लगने के कारण अधिक सामाग्री, अधिक श्रम के बाद भी आवश्यक ऊर्जा की प्राप्ति नहीं होती। जबकि भूख कम लगने से शरीर भी जीर्ण शीर्ण होकर कृशकाय हो जाता है। जिसमे सुधार लाने के लिए भूख लगने की दवा इत्यादि का प्रयोग होता है।
आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में भूख बढ़ाने की आयुर्वेदिक दवा का प्रयोग किया जाता है। जबकि एलोपैथी चिकित्सा में भूख लगने की अंग्रेजी दवा प्रयुक्त होती है। फिर भी इन समस्याओ से बचना ही सर्वोपरि है। जिसके लिए इस प्रकार की महत्वपूर्ण बातो का ज्ञान होना भी अनिवार्य है।
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