बवासीर में रोटी खाना चाहिए या नहीं : chapati is good for piles

बवासीर में रोटी खाना चाहिए या नहीं? यह एक आम सवाल है, जो बवासीर के रोगियों के मन में उठता है। ज्यादातर लोगो का मानना है कि रोटी खाने से मल कडा होता है। जिससे मल त्याग के समय गुदा पर, निकलने वाले मस्सों पर रगड़ लगती है। जिसके कारण बवासीर उग्र हो उठती है और भयंकर दर्द करती है। इसलिए इन परिस्थियों से बचने के लिए, बवासीर में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए का ध्यान रखना आवश्यक है।    

बवासीर में रोटी खाना चाहिए या नहीं 

गुदा द्वार पर मस्से निकल आना, दर्द होना और गुदा द्वारा से खून निकलना बवासीर के लक्षण है। जो महिला और पुरुष दोनों को हो सकते है। शारीरिक बनावट में अलगाव के कारण, पुरुष और महिला बवासीर के लक्षण में कुछ अंतर देखने को मिलता है। 

मस्से वाली बवासीर के मस्से आकार में बहुत बड़े होते है। जिसमे मल त्याग के समय अत्यधिक दर्द और चुभन होती है। जिससे बचने के लिए मस्से वाली बवासीर में क्या खाना चाहिए जानने की आवश्यकता है।

जबकि खूनी बवासीर के लक्षण में दर्द कम, लेकिन तीव्र जलन देखने को मिलती है। जो अलग – अलग रोगियों में विविधता के साथ देखी जाती है। किसी को मल का वेग आते ही जलन शुरू हो जाती है। तो कुछ को मलत्याग के दौरान और बाद में भी हो सकती है।

जब खूनी बवासीर अत्यंत उग्र हो जाती है तो इसमें जितना अधिक दर्द होता है, उतना ही अधिक मात्रा में खून भी निकलता है। जो किसी – किसी में बिना दर्द के भी देखा जाता है। कुछ लोगो में गुदा की जलन घंटो तक बनी रह सकती है। खूनी बवासीर की इन समस्याओ से छुटकारा पाने में, खूनी बवासीर में क्या खाना चाहिए को जानना आवश्यक है।  

बवासीर में रोटी खाना अच्छा है या नहीं

बवासीर में आहार विशेषज्ञ की सलाह लेना बहुत महत्वपूर्ण है। बवासीर के आहार विशेषज्ञ आपको बवासीर की स्थिति के आधार पर, सही आहार चुनने में मदद करेंगे। जो आपको बवासीर में होने वाली तकलीफो से निजात दिलाने में मददगार होंगें।  

बवासीर के मरीजों को रोटी खाने के बारे में अक्सर संदेह होता है। जिसके कारण वह रोटी पसंद होने पर भी नहीं खाते। जबकि मोठे अन्नो ( मिलेट ) की रोटियां, चावल की अपेक्षा अधिक गुणकारी है। जिसका सबसे बड़ा कारण इनमे पायी जाने वाली फाइबर की उच्च गुणवत्ता और मात्रा है। जो चावल आदि में नहीं पायी जाती।

परन्तु खाद्य विश्लेषकों का यह मानना है कि बिना चाले ( छाने ), गेहूँ के आटे की रोटी खाने पर हमें फाइबर प्राप्त होता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि गेहूँ के चोकर में फाइबर पाया जाता है। लेकिन बहुत ही कम मात्रा में। जिससे गेहूँ पचते समय एकाएक ग्लूकोज में परिवर्तित हो जाता है। जो पानी सोखता है।     

पंरतु चावल पानी डालकर या पानी में पकाया जाता है। जिससे चावल पर्याप्त मात्रा में पानी सोख लेता है। जिसके पचने पर अधिक पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती। जबकि आटा से बनी रोटी में पानी बहुत ही कम होता है। जिससे आटे को पचने के लिए पानी की अधिक आवश्यकता पड़ती है।

जो बवासीर रोगी करते नहीं। जिसके कारण रोटी खाने पर, उनका मल कडा हो जाता है। जिसका कारण बवासीर रोग में पानी की अधिक मात्रा का प्रतिषेध है। परन्तु रोटी को पचने के लिए आनुपातिक मात्रा में पानी चाहिए ही। इस कारण जानकारी के अभाव में इस प्रकार की घटनाए होती है।  

क्या गेहूँ की रोटी बवासीर में खानी चाहिए

आज के समय में ज्यादातर लोग रोटी के नाम पर, गेहूँ की ही रोटी खाते है। जिसमे फाइबर बहुत ही कम, लगभग न बराबर पाया जाता है। जिसके कारण गेंहू और चावल दोनों समान गुण धर्म रखते है। जिसको खाने से वही फायदे मिलते है। जो चावल और गेहूँ में पाए जाते है।

गेंहू की रोटी खाने से मल अक्सर कडा हो जाता है। जिसका सबसे बड़ा कारण गेंहू में पाया जाने वाला कार्बोहाइड्रेट ( शर्करा ) है। जिसके कारण गेहूँ के पाचन में, जल के अधिक मात्रा की आवश्यकता पड़ती है। परन्तु बवासीर में अधिक जल पीना मना है। जिसके कारण हम पानी नहीं पीते। 

इस कारन गेहूँ की शर्करा, हमारे शरीर में उपस्थित पानी को सोखता है। जिससे मल कडा हो जाता है। इसकारण लोगो के मन में संदेह हो जाता है कि बवासीर में रोटी खाना चाहिए या नहीं। जिसके कारण बवासीर में गेहूँ की रोटी खाने से बचना चाहिए। 

उपसंहार :

जब बवासीर में रोटी खाना चाहिए या नहीं का प्रश्न होता है तो बेशक खाना चाहिए। लेकिन गेहूँ की रोटी नहीं, क्योकि गेहूँ में लगभग पूरा का पूरा कार्बोहाइड्रेट ही पाया जाता है। जो पाचन के उपरांत ग्लूकोज आदि में बदलता है। जिसके अपघटन में पानी की आवश्यकता अधिक पड़ती है। जिससे हमारा मल कडा हो जाता है। इस कारण बवासीर रोग में गेहूँ के आटे से बनी रोटी खाने से बचना चाहिए।   

पहले और आज भी हमारे पास दुनिया भर के अन्नो की रोटियां है। फिर भी हम गेहूँ की ही रोटी खाते है। जोकि बवासीर के अच्छी नहीं है। जिसके दो मुख्य कारण है। पहला फाइबर की न्यूनतम मात्रा, और दूसरा पानी को सोखने से मल को कडा करना। इसके बावजूद आटा पानी सोखता है। जिसके कारण रोटी खाने पर, रोटी के अनुपात में पानी कुछ अधिक पीना चाहिए। 

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