आलू हम भारतीयों को सबसे अधिक पसंद आने वाली सब्जियों में से एक है। लेकिन आलू गरिष्ट और चिकना होने से, गैस करने वाला माना जाता है। जिसके कारण बवासीर में आलू खाना नुकसानदायक हो सकता है। तो आइये जानते है कि बवासीर में आलू खाना चाहिए कि नहीं?
बवासीर मानव गुदा में होने वाली गंभीर बीमारियों में से एक है। जिसमे गुदा में या उसके आसपास सूजन और दर्द होना देखा जाता है। जिसके गंभीर होने पर मल के साथ खून आने की संभावना भी बनी रहती है। यह सभी बवासीर के लक्षण है। जो आमतौर पर बवासीर रोग में देखने को मिलते है। जिनको मिटाने में बवासीर के घरेलू उपाय बहुत ही लाभकारी है।
बवासीर हमारे दैनिक दिनचर्या आदि में, व्यवधान के कारण होने वाला रोग है। जिसके कारण बवासीर में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं का विशेष ध्यान रखना चाहिए। क्योकि रोग उपचारक चिकित्सा पद्धतियों में, बवासीर के बहुत से परहेज बतलाये गए है। जिसमे किसी भी गरिष्ठ, चिकनी और देर से पचने वाले खाद्य पदार्थो के सेवन का निषेध किया गया है। इसकारण बवासीर रोग में आलू खाना तकलीफदेह हो सकता है।
परन्तु हम उत्तर भारतीयों के घरों में, बिना आलू के शायद ही कोई सब्जी बनती हो। जिसके कारण हम न चाहते हुए भी किसी न किसी रूप में, आलू खा ही लेते है। जिससे पाइल्स के लक्षण पनपने लगते है। इसलिए बवासीर में आलू खा सकते हैं कि नहीं को जानना आवश्यक है।
बवासीर में आलू खाना चाहिए या नहीं
आयुर्वेद के अनुसार बवासीर के मरीजों के लिए आलू का सेवन करना सही है या गलत का निर्णय करने में मुख्य तीन आधार है –
- कब्ज ( कब्जियत ) बढ़ाने वाला न हो
- अपानवायु का प्रतिलोम न करने वाला हो
- पाचन अग्नि को घटाने वाला न हो
आलू का स्वभाव विष्टंभकारी, चिकना और देर से पचने वाला होता है। हर विष्टम्भक पदार्थ देर से पचने वाले होने से, कब्जकारी होते है। ज्यादातर कब्जकारक पदार्थ अपानवायु का अनुकूलन नहीं करते। जिससे पाचक अग्नि स्वाभाविक रूप से घट जाती है। इस आधार पर तो बवासीर में आलू खाना गवारा नहीं।
जबकि आलू के बिना किसी सब्जी का स्वाद न ले पाने वाले जानकारी के अभाव में, बवासीर में आलू खाने से फायदे होते हैं या नुकसान की बात करते है। जोकि स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयुक्त नहीं है। तो आइये अब बवासीर में आलू खाना चाहिए कि नहीं का खाद्य विशेषण करते है।
बवासीर के मरीजों के लिए आलू खाना सही है या गलत
आधुनिक विज्ञान के अनुसार बवासीर में, आलू खाना सही या गलत का निर्णय तथ्य के आधार पर होना चाहिए। जिसमे मुख्य रूप से ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI) को आधार बनाया गया है। जिसके माध्यम से हमे यह पता चलता है कि आलू में पायी जाने वाली शर्करा का स्तर क्या है।
हमारे – आपके द्वारा खाई जाने वाली आलू एक तरह का तना है। जिसका अधिकांश भाग काम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट (complex carbohydrates) का बना हुआ होता है। जो कार्ब फूड (carbs food) भी कहे जाते है। आमतौर पर दालों, सब्जियों, फलियों और बीजों आदि में पाए जाने वाले कार्ब को स्टार्ची कार्ब (starchy carb) कहा जाता है। जिसका सेवन हम उबालकर या भूनकर करते है। इनसे बनने वाले भोजन को स्टार्ची फूड (starchy foods) कहते है।
यह स्टार्ची कार्ब तीव्र जीआई (high GI) युक्त पदार्थ है। जो मुँह में ठीक वैसे ही घुलते है, जैसे कि चीनी (sugar) अथवा शर्करा (sweetness)। इसलिए आलू खाने पर, इसमें पाया जाने वाला स्टार्च बहुत तेजी से ग्लूकोस में बदलकर, खून में मिल जाता है। जिससे इन्सुलिन ठीक वैसी ही प्रतिक्रिया करता है, जैसा एक चम्मच चीनी खाने पर।
जी आई एक ऐसा मानक है। जिसके द्वारा हमें पता चलता है कि किसी भी खाद्य पदार्थ के द्वारा किस दर से शर्करा ( चीनी ) खून में मिलती है। अर्थात कोई भी खाद्य वस्तु कितनी तेजी से खून में चीनी का स्तर बढ़ाती है। जिसमे 70 या इससे ऊपर को उच्च, 56 – 69 को मध्यम और 55 से नीचे को निम्न ( धीमा ) जीआई माना गया है।
ज्यादातर जमीन के नीचे होने वाली सब्जी का जीआई 70 से ऊपर है। जिसमे से कई आलू के प्रकार ऐसे है। जिनका जीआई 100 से भी अधिक है। जिसका सेवन करने पर, यह हमारे रक्त शर्करा का स्तर ग्लूकोस से भी ज्यादा तेजी से बढ़ाते है। जिसके कारण गुदीय शिराओ की सूजनकारी गतिविधियों को बल मिलता है। इसकारण बवासीर में आलू खाना बहुत ही नुकसानदेह हो सकता है।
उपसंहार
ऐसी ऐसे सभी स्टार्च को बहुत ऊंची जीआई की श्रेणी में स्थान प्राप्त है। जो बहुत ही तेजी से रक्त में शर्करा के स्तर को बढ़ाते है। इसलिए बवासीर में आलू खाना चाहिए कि नहीं को जानना अनिवार्य है।
आयुर्वेदानुसार बवासीर के मरीजों के लिए आलू खाना सही है या नहीं का निर्णय तीन कसौटियों पर कसने के बाद ही किया जा सकता है। जिसमे कब्ज कारक न हो, अपानवायु को अनुकूल और मंदाग्नि को बढ़ाने वाला हो। आयुर्वेद में विष्टम्भक पदार्थ चिकने होते है। जो कब्ज को बढ़ाने वाले होने के कारण मंदाग्नि को कम करते है। इस कारण आलू इन शर्तो पर खरी नहीं उतरती।
बवासीर के रोगियों को कम जीआई वाली चीजे, खाने की सलाह दी जाती है। जिसका सबसे बड़ा कारण खून में पायी जाने वाली शर्करा का स्तर संतुलित बना रहे। जबकि आलू का जीआई 70 – 100 के बीच होता है। जोकि तीव्र जीआई की ओर संकेत करती है। जिसका सेवन करने से रक्त शर्करा का स्तर बहुत तेजी से बढ़ता है। जिसको संतुलित करने के लिए शिराओ में, सूजनकारी गतिविधियों को बल मिलने की संभावना बढ़ जाती है। जिससे बवासीर के मरीजों के लिए आलू का सेवन करना सही नहीं माना जाता।
सन्दर्भ
अष्टांग ह्रदय चिकित्सा अध्याय – 08
चरक संहिता चिकित्सा अध्याय – 14
अष्टांग संग्रह चिकित्सा अध्याय – 10
सप्लीमेंट्स की कुछ सच्चाइयां द्वारा ग्लोरिया एस्क्यू एवं जैर पैकुएट
FAQ
क्या बवासीर में आलू खाना चाहिए?
नहीं, बवासीर में आलू का सेवन करने से रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है। जिससे बवासीर के उग्र होने की संभावना बढ़ सकती है। इसके साथ मलद्वार में सूजन आदि होने से मलत्याग में परेशानी भी हो सकती है।
बवासीर के मरीजों के लिए आलू खाना सही है या नहीं?
आलू का जीआई 70 – 100 के बीच होता है। जिसका सेवन करने पर, यह हमारे रक्त शर्करा का स्तर बहुत ही तेजी से बढ़ाता है। जिसके कारण गुदा की रक्त शिराओ को क्षति पहुंच सकती है। जिसके कारण बवासीर के मरीजों के लिए आलू का सेवन करना सही नहीं माना जाता।
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