केला स्वाद में जितना स्वादिष्ट होता है। उतना ही मुलायम और कैल्शियम आदि का बढ़िया स्रोत भी है। जिससे यह बच्चों, बूढ़ो और युवाओ सभी को पसंद आता है। परन्तु बवासीर में मीठा खाना अच्छा नहीं माना जाता। जिसके कारण बवासीर रोगियों के मन में संशय बना रहता है कि बवासीर में केला खाना चाहिए या नहीं?
मानव गुदा की शिराओ का खून से भरकर फूल आना, मुख्य रूप से बवासीर के लक्षण कहलाते है। जिसमे गुदा के आस – पास भारीपन और दर्द के साथ सूजन आना आम बात है। जो महिला में देखे जाने पर, महिला बवासीर के लक्षण कहे जाते है। एवं पुरुषो में देखे जाने पर, पुरुष बवासीर के लक्षण कहे जाते है। जो प्रायः दो प्रकार के होते है।
- मस्से वाली बवासीर ( बादी बवासीर )
- खूनी बवासीर
बवासीर के रोगियों में मीठा खाने से, बवासीर की समस्या बढ़ने के आसार बने रहते है। जिससे बवासीर में केला खाना चाहिए या नहीं को जानना आवश्यक हो जाता है। जबकि केले में कैल्शियम, आयरन और फाइबर की भरपूर मात्रा पायी जाती है। जिसका सेवन करने से बवासीर में बहुत से लाभ हो सकते है। परन्तु केले को तीव्र ग्लाइसेमिक इंडेक्स में स्थान मिलने के नाते, बहुत से लोग बवासीर में इसका सेवन करने से हिचकते है।
क्या बवासीर में केला खाना सही है या नहीं ( is banana good for piles )
बवासीर में केला खाना फायदेमंद हो सकता है या नुकसानदायक। इसका निर्णय करने के लिए आयुर्वेद में बताई गई निम्न बातो पर दृष्टि डालनी चाहिए।
- कब्ज करने वाली न हो
- अपानवायु को अनुकूल करने वाली हो
- पाचकाग्नि को बढ़ाने वाली हो
उपरोक्त कसौटियों पर कसने से केले में, तीनो बाते चरितार्थ हो जाती है। केले में फाइबर अधिक मात्रा में पाया जाता है। जिससे मल बाधित होने की समस्या नहीं होती। इसके साथ अपानवायु पूरे पेट में प्रसारित न होकर, अपने मार्ग से होती हुई बाहर निकल जाती है। जिसके कारण आंतो की पूरी सफाई हो जाती है। जिसके कारण पाचक अग्नि उद्दीप्त होती है।
आधुनिक विज्ञान के अनुसार केले में, मिठास के रूप में फ्रक्टोज पाया जाता है। जो केले में पाए जाने वाले अन्य तत्वों ( फाइबर ) आदि से बंधा होता है। जिससे पाचन के दौरान केले में पायी जाने वाली शर्करा ( सिंपल कार्ब ), खून में एकाएक न मिलकर कुछ समयांतराल पर मिलते है। क्योकि फ्रक्टोज सीधे ग्लूकोज में बदलकर, चयापचयी प्रक्रियाओं के माध्यम से ग्लूकोज में बदलता है। जिसके कारण इसमें कुछ समय खर्च होता है।
जबकि हमारे शरीर को लगभग 15 ग्राम प्रति घंटे ग्लूकोज की जरूरत पड़ती है। जिसके चलते हमारे खून में अतिरिक्त चीनी नहीं पहुंच पाती। जिसके कारण पेट में अपान वायु की स्वाभाविक गति बनी रहती है। जिससे पाचक अग्नि बलवती होकर कब्ज नहीं होने देती। इसलिए बवासीर रोग में केला खाना गुणकारी, और बवासीर में चाय पीना हानिकारक है।
उपसंहार :
हालांकि केला, आम आदि फलों में फ्रक्टोज पाया जाता है। जिनमे प्रायः सिंपल कार्ब की मात्रा अधिक होती है। इसके बावजूद इसे तीव्र जीआई पदार्थो की सूची में रखा गया है। इस कारण बवासीर में केला खाना चाहिए या नहीं का प्रश्न अक्सर बवासीर रोगियों में बना रहता है।
फ्रक्टोज सभी शर्कराओं में सबसे सुरक्षित शर्करा है। जिसके कारण इसका अपघटन धीरे – धीरे होता है। जिससे रक्त शर्करा का स्तर बाधित नहीं होने पाता। इसके साथ इसमें फाइबर की मात्रा भी भरपूर पायी जाती है। जिसका सेवन करने से पेट भी साफ़ होता है। जिससे बवासीर रोगियों के लिए यह बहुत ही गुणकारी है। केले में पाए जाने वाले एंटी – इंफ्लामेटरी और एंटी – बैक्टीरियल गुण बवासीर की सूजन और संक्रमण को कम करने में सहायक है।
यह बात पूर्ण रूप से नैसर्गिक और प्राकृतिक विधि से प्राप्त होने वाले केले पर लागू होती है। न कि अप्राकृतिक विधा का आलम्बन लेकर पकाये गए केले आदि पर। जिसका सेवन करने से थोड़े बहुत लाभ के साथ, हानि होने की भी आशंका बनी रहती है।
सन्दर्भ :
अष्टांग ह्रदय चिकित्सा अध्याय – 08
अष्टांग संग्रह चिकित्सा अध्याय – 10
सप्लीमेंट्स की कुछ सच्चाईया – ग्लोरिया एस्क्यू और जैर पैकुएट