मानव गुदा के अंदर अथवा बाहर मांस के मस्से निकलना बवासीर के लक्षण है। जिससे गुदा के आस – पास या अगल – बगल सूजन और भारीपन के साथ भयंकर दर्द होता है। जिसमे मल त्याग में अनेको कठिनाइयों समेत, मल से खून आने की समस्या भी देखी जाती है। जो खूनी बवासीर के लक्षण भी हो सकते है।
आयुर्वेदीय खाद्य प्रतिषेधाज्ञानुरूप अनूपदेश के पशु – पक्षियों के मांस सेवन का निषेध किया गया है। इसलिए बवासीर में चिकन खाने से पहले यह जानना जरूरी है कि बवासीर में चिकन खाना चाहिए या नहीं।
अक्सर बवासीर हमारी जीवनचर्या से जुडी हुई बीमारी मानी गई है। जिसमे आहारचर्या, दिनचर्या और ऋतुचर्या का सर्वाधिक योगदान होता है। इसलिए बवासीर को मिटाने के लिए दैनिक गतिविधियों में बदलाव लाना, बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय है। जिसके कारण बवासीर में chicken खाना चाहिए या नहीं को बवासीर में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं को बताया गया है। इस कारण बवासीर में चिकन खाने से पहले ये बातें जानना जरूरी है कि बवासीर में चिकन खाना चाहिए या नहीं।
हालांकि मस्से वाली बवासीर और खूनी बवासीर में, शरीरगत दोषो का अंतर पाया जाता है। जिसकी परिशुद्धि के लिए हमारा भोजन अत्यंत महत्वपूर्ण कारक है। जिसके लिए मस्से वाली बवासीर में क्या खाना चाहिए और खूनी बवासीर में क्या खाना चाहिए को जानने की आवश्यकता है। जिससे बवासीर में चिकन खाने से जुड़ी मिथकों का खुलासा हो सके।
बवासीर में चिकन खाना सही या गलत
बवासीर में नदियों, जलाशयों और पर्वतीय क्षेत्रो में, पाए जाने वाले पक्षियों के मांस सेवन का निषेध है। अब बात करे चिकन की तो मुर्गी के मांस को ही चिकन कहा जाता है। जो लगभग इसी तरह की जलवायु में पैदा होती है। जिसके कारण यह बात जानना स्वाभाविक है कि बवासीर में चिकन खाना चाहिए या नहीं।
मुर्गी अनूप देश में पायी जाने वाली पक्षी है। जिसके मांस में अनूप देश के गुणों का होना स्वाभाविक है। इसकारण चिकन का सेवन करने से कब्ज और गैस की समस्या होने की संभावना पाई जाती है।
अधिक मात्रा में गैस बनने से अपानवायु प्रतिकूल हो जाती है। जिससे मंदाग्नि बढ़ने लगती है। जिसके फलस्वरूप बवासीर उग्र होने लगती है। इसलिए बवासीर के मरीजों के लिए चिकन खाना अच्छा नहीं माना जाता। यह जानना उतने काम का है, जितने कि बवासीर में चाय पीना चाहिए या नहीं।
चिकन एक प्रकार का गरिष्ट भोजन है। जिसको बनाने के लिए अधिक मात्रा में तेल और मसाले डाले जाते है। कुछ लोग तो तेल में तलकर ही चिकन को बनाते है।
जबकि बवासीर में तेल और घी में तली हुई चीजों के सेवन का प्रतिषेध प्राप्त है। जिससे बवासीर में चिकन का सेवन सर्वथा त्याज्य है, अर्थात नहीं करना चाहिए।
उपसंहार :
बवासीर में चिकन का सेवन करने से, बवासीर की समस्या में वृद्धि देखी जाती है। जिसके कारण बवासीर में चिकन खाने से पहले यह जानना चाहिए कि बवासीर में चिकन खाना चाहिए या नहीं।
मुर्गी पक्षी के मांस को ही चिकन कहा जाता है। जिसको बनाने के लिए इसको तेल में तला जाता है। इसके बाद मसाले का प्रयोग करते कढ़ाई आदि में भूना जाता है। जिससे यह स्वाभाविक रूप से कब्ज कारक और अपानवायु को प्रतिलोमित करने वाला हो जाता है। जिससे पाचन अग्नि क्षीण होने लगती है, और बवासीर कुपित होकर तेजी से बढ़ने लगती है। जिससे बवासीर से खून आदि का स्राव होने के साथ दर्द भी हो सकता है। इसलिए बवासीर में चिकन खाने से सदैव बचना चाहिए।
सन्दर्भ :
भैषज्यरत्नावली चिकित्सा अध्याय – 09