बवासीर रोगियों को खान – पान का विशेष ध्यान रखना आवश्यक होता है। जिसके कारण इनके मन में बादाम को लेकर संशय होता है कि बवासीर में बादाम खाना चाहिए या नहीं? जबकि बादाम में तेल की मात्रा अधिक पायी जाती है।
जिसके कारण बादाम को वसा आदि का मुख्य स्रोत माना गया है। बादाम तेल का सेवन करने से, सिर दर्द और कफ रोगो में बहुत लाभ होता है। पोषण की दृष्टि से बादाम में पोषक तत्वों की उपयुक्त मात्रा पायी जाती है। जिसका सेवन करने से हमारे शरीर को बहुत लाभ होता है।
बवासीर गुदा में होने वाली बीमारी है। जिसमे कब्ज आदि की समस्या आमतौर पर देखी जाती है। जिसके उग्र होने पर गुदा में मांस के मस्से निकल आते है। जिन्हे बवासीर के लक्षण कहा जाता है। जिसके होने पर पेट में गैस बनने की समस्या होने से, अपानवायु प्रतिलोम हो जाती है। जिसके कारण पाचक अग्नि पर विपरीत प्रभाव देखा जाता है। इस कारण मन में शंका बनी रहती है कि पाइल्स में बादाम खाना चाहिए या नहीं?
बवासीर में निकलने वाले मस्से, दोष विशेष के कारण आकार में छोटे – बड़े, काले, हरे, पीले अथवा सफ़ेद रंग के होते है। जिनमे चुभन, जलन का आदि दर्द होता है। जिनको दूर करने में बवासीर के घरेलू उपाय बहुत लाभकारी है। परन्तु भोजन का सीधा प्रभाव हमारे सगरीर पर होता है। जिससे बवासीर में क्या नहीं खाना चाहिए और क्या खाना चाहिए का ध्यान रखना भी जरूरी है।
बादाम के गुण
बादाम की गिरी स्वाद में मधुर, वीर्यवर्धक, शुक्रकारक, गुरु, उष्ण, स्निग्ध, कफ – कारक और वात एवं पित्त को दूर करने वाली होती है। जिसके कारण बादाम खाने से शरीर में बल बढ़ता है, और अनुकूल वीर्य होने से चेहरे पर कांति आती है।
बादाम में 35 – 62 प्रतिशत स्थिर तेल होता है। जिसका सेवन करने से, यह मृदु रेचक के जैसा काम करता है। जिसके कारण बवासीर के रोगियों के लिए बादाम खाना फायदेमंद हो सकता है। फिर भी बवासीर में बादाम खाना चाहिए या नहीं जानना बहुत आवश्यक है।
बवासीर में बादाम खाना सही है या गलत
बादाम के गुणों के आधार पर विचार करे तो यह पित्त और वातनाशक है। जिसका सेवन करने से वात और पित्त दोष के कारण होने वाली बवासीर में लाभ होना स्वाभाविक है। लेकिन कफ कारक होने से कफ दोष को बढ़ाने वाला है। जिसके कारण कफ दोष से पीड़ित रोगी को, बादाम के सेवन से अवश्य बचना चाहिए।
खूनी बवासीर के लक्षण में पित्त दोष की विकृति पायी जाती है। जिसमे बवासीर के मस्सों के रंग हरे अथवा पीले रंग के और बहुत जलन करने वाले होते है। जिनमे किसी न किसी तरह का लसलसा स्राव निकलता रहता है। फिर चाहे वह खून हो या मवाज। खूनी बवासीर से पीड़ित रोगी को मल का वेग आते ही गुदा में तीव्र जलन होने लगती है। जो मल त्याग के घंटो बाद भी बनी रहती है। इस प्रकार की बवासीर के निवारण में बादाम बहुत ही उपयोगी है।
जबकि वात दोष के कारण होने वाली बवासीर के मस्से काले रंग के होते है। जिसमे पेट में मरोड़ और गुदा में चुभन का दर्द बना रहता है। जिसमे मल का वेग बार – बार लगता है। फिर भी पेट साफ़ नहीं होता। मल त्याग के समय बहुत गुड़गुड़ाहट के साथ बेचैनी और छटपटी बनी रहती है। इसका मल बहुत ही पतला और रुक – रुक होता है। जिसको निकालने के लिए गुदा पर जोर लगाना पड़ता है। फिर भी पूरा मल बाहर नहीं आ पाता। जिससे पेट साफ़ न होने का एहसास बना रहता है। इनको चिकित्सा शास्त्रों में बादी बवासीर का लक्षण कहा गया है। जिसमे बादाम खाने से लाभ होता हैl
उपसंहार :
बादाम खाने से दिमाग बढ़ता है। यह बात ज्यादातर लोग जानते है। लेकिन बवासीर में बादाम खाना चाहिए या नहीं बहुत कम लोग जानते है।
बादाम वात और पित्त दोषो को दूर करने में लाभदायक है। जबकि कफ को बढ़ाने वाला है। जिससे सभी प्रकार की बवासीर में बादाम खाना उपकारी नहीं है। परन्तु खूनी बवासीर की समस्याओ को दूर करने में बादाम बहुत ही लाभ करता है। केवल वात दोषो से होने वाली बवासीर को भी मात देने में सक्षम है। जबकि कफ अथवा इससे विमिश्रित दोषो से होने वाली बवासीर में बादाम खाना अच्छा नहीं है।
बादाम को पचने में गरिष्ट कही गई है। जिसका मुख्य कारण बादाम का वसा प्रधान होना है। जिसके पचने में समय अधिक लगता है। फिर भी देह प्रकृति के अनुकूल और आनुपातिक मात्रा में, बादाम खाने से बवासीर में फायदा होता देखा जाता है। क्योकि बादाम में एंटी – इन्फलामेटरी गुणों के साथ, पर्याप्त मात्रा में फाइबर पाया जाता है। जिससे बवासीर की सूजन को कम करने में सहायता मिलती है। वही फाइबर आंतो को साफ़ करने का काम करता है।
संदर्भ :
भाव प्रकाश – आम्रादिफलवर्ग
अष्टांग संग्रह चिकित्सा अध्याय – 10
अष्टांग ह्रदय चिकित्सा अध्याय – 08