बवासीर रोग के दौरान लोगो के मन में, मीठा खाने से जुड़े अनेक सवाल होते हैं। जिसके कारण बहुत से लोग बवासीर में मीठा खाने से डरते हैं। जिसमे ज्यादातर लोग यह नहीं जानते कि बवासीर में मीठा खाना चाहिए या नहीं अथवा बवासीर में चीनी खाना चाहिए या नहीं?
अक्सर लोगो को टॉयलेट से खून आना पेट में गैस बनना होने पर, पाइल्स के लक्षण का अंदेशा होता है। फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष। हालांकि महिला बवासीर के लक्षण और पुरुष बवासीर के लक्षण, काफी हद तक मिलते – जुलते है। जो प्रायः दो प्रकार के हो सकते है। जिसे बादी और खूनी बवासीर के नाम से जाना जाता है। इसलिए अक्सर बवासीर के लक्षणों में भेद कर पाना कठिन होता है।
बवासोर रोग में होने वाले मस्सों में, दो अंतर देखने में आते है। पहले ऐसे मस्से जो फूलकर बहुत बड़े, मोठे, चिकने और कड़े हो गए हो। जिसमे किसी तरह का खून आदि न रिसकर चुभन का दर्द हो रहा हो। दूसरे ऐसे मस्से जिनसे खून निकल रहा हो। जो दर्द और बिना दर्द के भी हो सकता है। इस प्रकार की बवासीर को खूनी बवासीर के लक्षण कहते है।
आजकल लोग चीनी को ही मीठा कहने लगे है। जबकि आयुर्वेद में हर मीठी वस्तु को मधुर या मीठा कहा गया है। जिसके लिए आयुर्वेद में शर्करा शब्द का उपयोग किया गया है। जो पूर्णतया प्राकृतिक रूप से मधुर रस वाला होता है, न कि कृत्रिम।
वही आधुनिक खाद्य विज्ञानानुसार शर्करा के तीन मुख्य प्रभेद है –
- ग्लूकोज
- सुक्रोज
- फ्रक्टोज
यह तीनो ही स्वाद में मीठे है। परन्तु इनमे से कुछ गुणकारी है, और कुछ हानिकर है। जिससे संशय होना स्वाभाविक है कि बवासीर में मीठा खाना चाहिए या नहीं?
बवासीर में चीनी खाना चाहिए या नहीं
हमारे घरो में इस्तेमाल की जाने वाली चीनी, जिसे रिफाइंड शुगर के नाम से भी जाना जाता है। इसकी संरचना ( बनावट ) इतनी सरल होती है कि बहुत तेजी से पेट के रास्ते, आंतो से होते हुए खून में मिल जाती है। जिसका अधिक सेवन करने से अचानक खून में चीनी की मात्रा बढ़ जाती है। जिससे एड्रिनल ग्लैंड के द्वारा बनाई गयी, अच्छी शर्करा और आक्सीजन का संतुलन बिगड़ जाता है।
खून में आवश्यकता से अधिक चीनी होना अर्थात शरीर को नुकसान पहुंचना है। जिससे इसका असर पूरे शरीर पर पहुँचता है। जिसके कारण फुलाव, गैस और पाचक नली में अनावश्यक ग्रोथ, भारीपन, चिड़चिड़ापन और सूजन आदि होना पाया जाता है। जिसको न जानने वाले बवासीर रोगी के मन में प्रश्न आ ही जाता है कि बवासीर में मीठा खाना चाहिए या नहीं?
चीनी का स्वभाव अम्लीय होता है। जिससे यह शरीर से पानी को सोख लेता है। जो चीनी का स्वभाव है। जिसके प्रभाव में आकर शरीर के अंग और उपांग सूखने लगते है। परिणामस्वरूप शरीर में रूखापन आने लगता है, अर्थात शरीर में रुक्षता आने पर पाचन क्रिया पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। जिससे पेट में गैस बनने की दर बढ़ जाती है। इसके साथ यह अपानवायु के प्रतिलोमित करने का भी कार्य करती है।
बवासीर में कौन सी चीनी ( शर्करा ) नहीं खाना चाहिए
हमारे शरीर को स्वस्थ रखने और रोग से मुक्त कराने में, शर्कराओं का भी आनुपातिक मात्रा में योगदान होता है। जिसका मुख्य कारण इन शर्कराओं से, हमे बहुत से महत्वपूर्ण और उपयोगी पोषक तत्व प्राप्त होते है। जिनकी आपूर्ति इनके अतिरिक्त अन्य किसी भी पदार्थ से नहीं हो सकती। इसलिए हम सबकी लाचारी है कि हमें चीनी का उपभोग करना ही पड़ता है। फिर चाहे हम सीधे चीनी खाकर करे या कार्बोहाइड्रेट वाली चीनी खाकर करे।
हम सब को चीनी की मात्रा के साथ, इसकी गुणवत्ता का भी ध्यान रखना आवश्यक है। बिलकुल वैसे ही जैसे खाने के साथ पानी का रखना पड़ता है। बीमारी को भगाने और स्वस्थ बने रहने के लिए, इनका परिपालन अत्यावश्यक है। हालांकि ओस प्रत्यय वाले सभी नाम चीनी ( शर्करा ) के ही पर्यायवाची है। फिर चाहे इनकी प्राप्ति मीठी खाद्य सामाग्री से हो या भोज्य सामाग्री से। जैसे – ग्लूकोस, ग्लेक्टोस, फ्रुक्टोस, लैक्टोस और माल्टोस आदि।
यह सभी ग्लूकोज के जैसे प्रतिक्रया व्यक्त करते है। जो बहुत हद तक सुक्रोज की प्रक्रिया से मेल खाते है। इसलिए बवासीर के मरीजों के लिए, इस तरह मीठा खाना एक बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है। प्राकृतिक रूप में पायी जाने वाली शर्करा ही फ्रक्टोज है। जो सभी शर्कराओं से मीठी है, इसलिए इसे सबसे मीठी शर्करा ( चीनी ) भी कहते है।
जो फलों, शकरकंद, खजूर, ताड़ आदि में प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। ग्लूकोस और ग्लैक्टोस के साथ यह भी, हमारे शरीर के लिए अति आवश्यक रक्त शर्करा है। हालांकि आनुपातिक मात्रा से अधिक और विधि के विपरीत इनका सेवन भी हानिकारक है। फिर भी खून में धीरे – धीरे घुलने के कारण, सभी शर्कराओं में यह उत्तम कोटि की है।
उपसंहार :
जब बात आती है कि बवासीर में मीठा खाना चाहिए या नहीं? तो ध्यान रहे कि मिठास रखने वाली वस्तु प्राकृतिक है या अप्राकृतिक। क्योकि प्राकृतिक रूप से मधुर पदार्थो में, फ्रक्टोज नामक मिठास पायी जाती है। जिसका विघटन पाचन के दौरान एकाएक न होकर, परोवरीय क्रम ( धीरे – धीरे ) से होता है। जिससे शर्करा का अधिकाँश भाग खून में मिलने के बजाय, ऊर्जा में परिणत होकर व्यय हो जाता है। जिसके फलस्वरूप हमें किसी प्रकार की कोई हानि नहीं होती।
जबकि ग्लूकोज और सुक्रोज के अणु का पाचन के दौरान, एकाएक टूटने लगते है। जिससे शरीर को आवश्यक ऊर्जा से अधिक शर्करा प्राप्त होने लगती है। जिसके कारण मजबूरीवश इसको खून में मिलाना पड़ता है। ऐसा होने से यह रक्त शर्करा शरीर की मांसपेशियों, जोड़ों, मलाशय आदि की शिराओ पर दुष्प्रभाव डालता है। जिससे यह बवासीर की तकलीफो को बढ़ाने में सहायक है।
सीधी और आधुनिक भाषा में कहे तो फ्रक्टोज खाने के लिए सबसे उत्कृष्ट शर्करा है। जबकि सुक्रोज मध्यम और ग्लूकोज अधम ( निम्नतम ) कोटि की शर्करा है। जिसके कारण बवासीर में, ग्लूकोज रखने वाली चीनी का उपयोग नहीं करना चाहिए। परन्तु आज के समय में चीनी से बच पाना बहुत कठिन है। फिर भी जहाँ तक बन सके, बवासीर में चीनी के सेवन से बचना चाहिए। जबकि फ्रक्टोज इत्यादि से निर्मित मीठा खाना बवासीर में उपयुक्त है। जैसे – मिश्री, खजूर गुड़, ताड़ गुड़ आदि।
सन्दर्भ :
चरक चिकित्सा अध्याय – 14
भैषज्यरत्नावली चिकित्सा अध्याय – 09
अष्टांग हृदय चिकित्सा अध्याय – 08
अष्टांग संग्रह चिकित्सा अध्याय – 10
सप्लीमेंट्स की कुछ सच्चाईया द्वारा ग्लोरिया एस्क्यू और जैर पैकुएट अध्याय – 05
FAQ
बवासीर में मीठा खाना चाहिए कि नहीं?
प्राकृतिक मिठास से युक्त मीठा खाना बवासीर में प्रशस्त है। जबकि चीनी आदि से बनने वाले पदार्थ का सेवन, बवासीर में हानिकारक है। जिसके कारण बवासीर में चीनी से बनने वाले, मीठे पदार्थ नहीं खाना चाहिए।
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