मूंगफली में प्रोटीन, वसा और फोलिक एसिड पर्याप्त मात्रा में पाए जाते है। जो हमें पोषण और ऊर्जा प्रदान करने के साथ, हमारी त्वचा को भी स्वस्थ रखते है। जिसके कारण मूंगफली बवासीर के लक्षण को दूर करने में सहायक है। वही बवासीर गुदा में होने वाली बीमारी है। जिसके कारण इस रोग से पीड़ित रोगी को यह जानना आवश्यक है कि बवासीर में मूंगफली खाना चाहिए या नहीं?
मूंगफली में मांस से 1.5, अंडो से 2.5 और फलों से 8 गुना अधिक प्रोटीन पाया जाता है। इसके गुलाबी लाल रंग के छिलके में उच्च गुणवत्ता युक्त फोलिक एसिड पाया जाता है। जो त्वचा में आने वाली सभी विसंगतियों का नाश करता है। जैसे – त्वचा में झुर्री पड़ना, त्वचा में ढीलापन आना आदि समस्याओ को दूर करता है। इसलिए मूंगफली पाइल्स के लक्षण को भी दूर करने में सहायक मानी गई है।
मूंगफली में बहुत से ऐसे तत्व पाये जाते है। जो हमारी पाचकाग्नि को उद्दीप्त करते है। जिससे यह खूनी और बादी बवासीर के लक्षण में लाभकारी मानी जाती है। नियमित रूप से विधि पूर्वक मूंगफली का सेवन करते रहने से, बवासीर जैसे बहुत से रोगो से हमारा बचाव होता है। फिर भी लोगों के जहन में शक बना रहता है कि बवासीर में मूंगफली खाना चाहिए या नहीं?
बवासीर में मूंगफली खा सकते हैं या नहीं
मूंगफली पोषक तत्वों का खजाना है। मूंगफली के वजन का लगभग आधा हिस्सा वसा, चौथाई हिस्सा प्रोटीन, 10.2% कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है। जबकि मांस, अंडो और मछली में उसके वजन का 10 प्रतिशत से अधिक नहीं पाया जाता। जिसके कारण 250 ग्राम मूंगफली से 300 ग्राम सोया पनीर, 2 ली दूध और 15 अंडो के बराबर ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
मूंगफली में वसा की मात्रा अधिक होने से, लगभग 44- 55% तेल पाया जाता है। जिसके कारण मूंगफली का सेवन करने से, रेचक औषधि के समतुल्य गुण हमें प्राप्त होते है। जिससे हमारे शरीर की पाचक अग्नि उद्दीप्त होती है। जिसके कारण इसे पूरब का बादाम कहा जाता है। जोकि शाकाहारियों के लिए बहुत ही उपयोगी है।
परन्तु मूंगफली में वसा की मात्रा अधिक होने से, वसा को पचाने में कठिनाई होती है। जिससे बवासीर में मूंगफली खा सकते हैं या नहीं का संशय मन में बना रहता है। मूंगफली के भीतर वो सभी पोषक तत्व पाए जाते है। उनकी हमे प्रतिदिन और प्रतिक्षण आवश्यकता होती है। जैसे – वसा, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट आदि।
यह सभी पोषक तत्व, हमारे शरीर को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करते है। जिसके कारण इनकी हमें नित्य आवश्यकता होती है। इसमें पाया जाने वाला वसा, पूर्णतया वानस्पतिक वसा होता है। जिसको हम संतृप्त वसा ( सैचुरेटेड फैट्स ) के नाम से जानते है। जोकि मूंगफली में तेल के रूप में पाया जाता है। जिसके कारण वीगन (vegan) लोग मूंगफली को दूध, मांस और अंडो से ज्यादा अहमियत देते है।
बवासीर में मूंगफली खाने के फायदे और नुकसान
100 ग्राम मूंगफली में 1 ली दूध के जितना प्रोटीन पाया जाता है। इसको एक प्रकार से हम वसा भी कह सकते है। इसके साथ मूंगफली में 10% रेसा ( फाइबर ) पाया जाता है। जिससे वसा आदि के पाचन में सहायता मिलती है। जिसके कारण हमे तीन लाभ प्राप्त होते है –
- नियमित पेट साफ होने से मलबद्ध ( कब्जियत ) की शिकायत नहीं होती।
- मूंगफली में पाया जाने वाला तेल, मृदु रेचक के जैसे काम करता है। जिसके कारण बवासीर में प्रतिकूलित अपानवायु अनुकूल हो जाता है।
- मूंगफली में स्वभाव से पाए जाने वाला फाइबर, पेट को दुरुस्त रखता है। और वनस्पति तेल जठराग्नि को उदीप्त करता है। जिसके कारण यह पाचकाग्नि का उद्दीपक है।
इन गुणों के आधार पर, बवासीर में मूंगफली खाना सुरक्षित है। आयुर्वेद में बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय बताया गया है। जिसमे बवासीर में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए की बात भी आयी है। जिसके निषेधक वचनो में ऐसी वस्तुओ के सेवन का प्रतिषेध है। जो कब्जियत और अपानवायु को प्रतिलोम कर, पाचक अग्नि को घटाती हो।
बवासीर में मूंगफली के कुछ भी नुकसान नहीं है। परन्तु पाचक क्षमता से अधिक मूंगफली का सेवन करने से, पाचन में समस्या हो सकती है। जिसके कारण पेट में दर्द आदि होने की संभावना होती है। जिसके कारण मूंगफली का उचित और मात्रात्मक उपयोग ही करना चाहिए।
उपसंहार
मूंगफली में अनेक पोषक और ऊर्जा देने वाले तत्व पाए जाते है। जिसके सेवन से एक ओर हमें बीमारियों से छुटकारा मिलता है। वही दूसरी ओर हमें जीवन जीने से लिए आवश्यक ऊर्जा की भी आपूर्ति करता है। फिर भी लोग बवासीर में मूंगफली खाना चाहिए या नहीं की शंका करते है।
इसमें पाए जाने वसा ( प्रोटीन ) और कार्बोहाइड्रेट हमें ऊर्जा देते है। वही इसमें पाया जाने वाला तेल, फाइबर, और फोलिक एसिड। हमें बवासीर जैसे रोगो से बचाता ही नहीं, छुटकारा भी दिलाता है। जिसके कारण बवासीर में मूंगफली खा सकते हैं या नहीं का कोई प्रश्न ही नहीं रह जाता। अर्थात बवासीर की बीमारी में मूंगफली खाना लाभकारी है।
सन्दर्भ
अष्टांग ह्रदय चिकित्सा अध्याय -08