20 साल पुरानी बवासीर का इलाज : 20 saal purani bawaseer ka ilaj

आयुर्वेद में कुछ ऐसी बवासीर की आयुर्वेदिक दवाई बतायी गई है। जिससे 20 साल पुरानी बवासीर का इलाज सुगमता से किया जा सकता है। हालांकि बवासीर के लक्षण और कारण के आधार पर ही, बवासीर का 100 परसेंट इलाज किया जा सकता है। फिर भी बवासीर का अचूक इलाज करने में, बवासीर की गारंटी की दवाई अत्यंत गुणकारी है। 

20 साल पुरानी बवासीर का इलाज

वर्षो पुरानी बवासीर भौतिक रूप से दो प्रकार की पायी जाती है। जिन्हे बादी और खूनी बवासीर के नाम से जाना जाता है। जो गुदा में पायी जाने वाली शिराओ में खून जमने से पैदा होती है। जिसमे गुदा के अंतिम भाग पर मांस के अंकुर निकल आते है। इनमे से कुछ गुदा के अंदर और कुछ गुदा के बाहर पाए जाते है। जिनको उपचारित करने में बवासीर के घरेलू उपाय बहुत ही उपकारी है। 

अक्सर गुदा के बाहर होने वाली बवासीर को, मस्से वाली बवासीर कहा जाता है। जिसमे बादी बवासीर के लक्षण देखे जाते है। जबकि गुदा के भीतर पायी जाने वाली बवासीर में, खूनी बवासीर के लक्षण पाए जाते है। इस प्रकार शुष्क बवासीर गुदा के बाहर और स्रावी बवासीर गुदा के अंदर अपना प्रभाव दिखाती है। जो पुरानी होने पर सुखसाध्य न होकर कष्टसाध्य हो जाती है। जिसके कारण 20 साल पुरानी बवासीर का इलाज करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। 

बवासीर में क्या होता है ( bawasir me kya hota hai )

मानव गुदा में निकलने वाले मांस के मस्सो को ही बवासीर कहा जाता है। जिसमे चुभन और जलन का दर्द होता है। जबकि कुछ ऐसी बवासीर भी होती है। जिनमे दर्द न होकर केवल रगड़ लगने पर ही दर्द होता है। जिससे रोगी का उठना – बैठना, चलना – फिरना दूभर हो जाता है। इसके साथ सबसे अधिक तकलीफ तब होती है। जब व्यक्ति मलत्याग के लिए बैठता है। ऐसी स्थिति में रोगी को असहनीय दर्द से गुजरना पड़ता है। 

यह वह स्थिति है। जिसमे गुदा के भीतर और बाहर पाए जाने वाले मस्सों पर, सबसे अधिक रगड़ लगती है। ऐसा इसलिए होता है क्योकि पेट में वायु का प्रतिलोम होने से मरोड़ होती रहती है। जिसको कम करने के लिए रोगी मलत्याग का प्रयास करता है। परन्तु मलत्याग के लिए बैठते ही गुदा में भयंकर चुभन और दर्द होता है। जिसके कारण रोगी पसीना – पसीना हो जाता है।

इसके उपरान्त ठन्डे पानी से गुदा को धोने पर, बवासीर के मस्से अधिक तीव्र गति से प्रभाव दिखाते है। जिसके कारण रोगी बवासीर के मार से दर्द सहता रहता है। जिसके कारण रोगी को शारीरिक दर्द के साथ, मानसिक दर्द का अनुभव होता है। जिसके कारण शरीर और दिमाग दोनों से दुर्बल हो जाता है। जिससे निजात पाने के बारे में वेदना युक्त मन से विचार भी करता है। लेकिन बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय न जानने के कारण सालो से बवासीर का दुःख और दर्द भोगता रहता है। 

बवासीर होने के कारण ( bawasir hone ke karan ) 

बवासीर होने के कारण

20 साल पुरानी बवासीर के वही कारण है। जो अन्य बवासीर में पाए जाते है। अंतर केवल इतना होता है कि अधिक समय तक बने रहने से यह अधिक सक्रिय हो जाते है। जिसके कारण इनकी तीव्रता बढ़ जाती है, पर लक्षण बही रहते है। आयुर्वेद आदि में बवासीर होने के निम्न कारन बताये गए है –

  • देह प्रकृति के प्रतिकूल भोजन करने से
  • अधारणीय वेगो को धारण करने से जैसे मल – मूत्रादि।
  • कम फाइबर वाली वस्तुओ का सेवन करने से
  • मात्रा से अधिक और न्यून भोजन करने से  
  • अधिक समय तक बैठे और खड़े रहने से
  • अनियमित गति के यान की सवारी करने से
  • अधिक स्त्री/पुरुष प्रसंग करने से    
  • गरिष्ट और अत्यधिक वायु करने वाली वस्युओ का सेवन करने  

 इत्यादि कारणों से दोष आपस में मिलकर या रक्त के सहित अनेक प्रकार से प्रसृत होकर शरीर की प्रधान शिराओ का आश्रय लेते हुए नीचे जाकर गुद में पहुंचकर गुदा की वलियो का दूषण करते हुए मांस के अंकुर उत्पन्न करते है।  

20 साल पुरानी बवासीर के लक्षण क्या है ( bawasir ke lakshan kya hai )

अधिक पुरानी बवासीर रोग में, पेट एवं गुदा से सम्बन्धित निम्न लक्षण देखे जाते है –

  • गुदा पर अलग – अलग आकार और रंग के मस्से निकलना
  • भोजन करने की अनिच्छा
  • आसानी से अन्न का न पचना
  • पेट में जलन और गैस बनना
  • बार – बार प्यास लगना
  • खट्टी डकारे आना
  • पेट में गुड़गुड़ाहट का बने रहना
  • मल का अत्यधिक कडा होना
  • गुदा में सुई के समान जलन और चुभन होना
  • मल के साथ खून आना
  • गुदा से खून बहना 
  • मलत्याग के घंटों बाद गुदा पर जलन का बने रहना, आदि।  

बवासीर की पहचान कैसे करें ( bavasir ki pahchan kaise karen )

बवासीर की पहचान बवासीर या पाइल्स के लक्षण के आधार पर होती है। जिसमे गुदा और इससे जुड़े अंगो के लक्षण देखे जाते है। जिनकी चर्चा ऊपर की जा चुकी है। कभी – कभी बवासीर की शुरुआत, गुदा में भारीपन और खुजली के साथ शुरू होती है। जिसमे कब्ज के कारण मलत्याग में, कठिनाई का भी सामना करना पद सकता है। यह सब का सब बवासीर होने के भी संकेत हो सकते है। जिनपे ध्यान न देने पर कुछ समय बाद, बवासीर के स्पष्ट लक्षण दिखाई पड़ने लगते है। 

पुरानी बवासीर का इलाजवर्षो पुरानी बवासीर का इलाज कैसे करे 

हालांकि बवासीर शस्त्र से उपचारित होने के कारण, अब असाध्य नहीं माना जाता है। परन्तु फिर भी अनेक लोग वर्षो से बवासीर से पीड़ित रहते है। इस कारण बावसीर में आप की मदद कोई और नहीं, बल्कि आप स्वयं कर सकते है। जिसका सबसे बड़ा कारण रोग का सर्वप्रथम अनुभव रोगी को ही पहले होता है। इसलिए रोगी को रोग से बचने के लिए सावधानी रखने की आवश्यकता है। जिसमे उपयुक्त समय पर रोग की जानकारी, चिकित्सा विशेषज्ञ को पुरुष अथवा महिला बवासीर के लक्षण के रूप में देना और उपचार प्राप्त करना है।

बवासीर की चिकित्सा या किसी भी चिकित्सा में, शारीरिक कष्ट होने पर उतना कष्ट का अनुभव नहीं होता। जितना मानसिक रूप में होता है। इसलिए रोग जब शरीर को प्रताड़ित करता है। तब उतना दुखदायी नहीं होता। जितना की मानसिक रूप से दुखदायी होता है। व्यवहार में शरीर जब दुखदायी होता है। तब उसका प्रभाव मस्तिष्क पर होता ही है। जिससे बचने के लिए चिकित्सीय विधाओं के अनुरूप, बवासीर के उपचार करने की कुल चार विधियां है –

  1. औषध चिकित्सा
  2. क्षार सूत्र चिकित्सा
  3. अग्निकर्म चिकित्सा या अग्निदाह चिकित्सा ( अग्निकर्म शलाका )
  4. शस्त्र चिकित्सा

बवासीर के मस्से हटाने का तरीका ( bawasir ke masse hatane ka tarika )

आयुर्वेद में अलग – अलग प्रकार की बवासीर में, अलग – अलग ढंग से उपचार की बात कही गई है। जैसे – नए और अल्पदोष, लक्षण और उपद्रवों से युक्त बवासीर औषधसाध्य होते है। कोमल, फैले हुए, गहराई में स्थित तथा ऊपर उभरे हुए बवासीर क्षारसाद्य होते है। कर्कश ( खुरदरे ), स्थिर, मोठे और कड़े बवासीर अग्निसाध्य होते है। पतली जड़ वाले, ऊपर उभरे हुए और क्लेदयुक्त ( चिपचिपे ) बवासीर को शस्त्र साध्य कहा गया है।   

बवासीर के उपाय से सम्बंधित अनेक सामान्य और विशेषज्ञीय शंकाए है। जिसका मूल चरक, सुश्रुत और वाग्भट्ट आदि के ग्रन्थ है। जिनमे से चरक महर्षि कायचिकित्सा पर अधिक बल देते है। जबकि आचर्य सुश्रुत शल्य ( शस्त्र, क्षार और अग्नि ) क्रिया की बात करते है। वही वाग्भट्ट जी दोनों के मिलेजुले प्रारूपों को प्रदर्शित करते है। इन सभी आचार्यो के अपने – अपने शास्त्रीय तर्क है। जिनके आधार पर इन आचर्यों में कोई विगान ( विरोध ) नहीं, बल्कि रोग निवारण में सहायक क्रमिक प्रक्रमों – उपक्रमों का संकलन आयुर्वेद शास्त्र है। 

जिसका बुद्धिपूर्वक आवश्यकतानुसार आलंबन लिए बिना चिकित्सा के वास्तविक ( दार्शनिक ) स्वरूप को नहीं जाना जा सकता। अर्थात आजकल की भाषा में हम चरक जी को दार्शनिक, सुश्रुत जी को वैज्ञानिक और वाग्भट्ट जी आदि को व्यवहारिक चिकित्सा विशेषज्ञ मान सकते है। जिनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत ( मंत्र ) की भाषा दर्शन परक है। जिनके व्यवहारिक प्रकटीकरण का माध्यम दर्शन और विज्ञान परक है। जिसका अवलंबन लेकर 20 साल पुरानी बवासीर का इलाज भी सम्भव है। फिर चाहे वह पुरुष बवासीर के लक्षण हो या महिला के। 

बवासीर की आयुर्वेदिक दवाई ( bawaseer ki ayurvedic dawai )

बवासीर की आयुर्वेदिक दवाई

बवासीर की बीमारी में सबसे बड़ी कठिनाई पेट साफ न होना है। जिसका सबसे बड़ा कारण कब्ज का लगातार बने रहना है। जिसको दूर करने के लिए कब्ज का परमानेंट इलाज की आवश्यकता पड़ती है। खैर बवासीर के मस्से हटाने की दवा में, कब्ज को मिटाने वाले सभी गुण पाए जाते है। जिनसे प्रतिकूलित अपानवायु अनुकूल होकर कब्ज को मिटाती हुई, 20 साल पुरानी बवासीर का इलाज करने में सहायता करती है।

आयुर्वेद में बवासीर का उपचार करने के लिए, बवासीर की दवा ( bawasir ki dawa ) का प्रयोग किया जाता है। जिसका चिकित्सीय अवलंबन लेकर, बवासीर से हम छुटकारा पा सकते है। जिसके कुछ उपाय निम्न है –   

  • सेंधानमक, बाझककोड़ें का बीज कांजी में पीसकर, बवासीर पर लगाने से एक जगह पर होने वाला मस्सा भी ठीक हो जाता है।
  • प्रातः काल पुराने गुड़ और हरीतकी का सेवन करने से, बवासीर में बहुत आराम लगता है। जिसको कुछ दिन करते रहने से बवासीर के मस्से सूख जाते है। 
  • शुष्क बवासीर को ठीक करने में भिलावा बहुत ही उपकारी द्रव्य है। जिसका यथा विधि एक महीना सेवन करने से मस्से वाली बवासीर नष्ट हो जाती है। इसके साथ बवासीर के कारण कमजोर हुए शरीर में, पुनः बल और पौरुष का संचार हो जाता है।  
  • भिलावे के चूर्ण से युक्त धान के लावे का सत्तू का मंथ बनाकर, बिना नमक मिलाये मठ्ठे के साथ सेवन करने से बवासीर नष्ट हो जाती है। 
  • आर्द्र ( गीली ) बवासीर को उपचारित करने की कुटज रामबाण दवा है। कुटज और बंदाक की जड़ का कल्क, मठ्ठे के साथ सेवन करने से खूनी बवासीर नष्ट हो जाती है।   
  • 20 साल पुरानी बवासीर का इलाज करने के लिए, बवासीर का सिरप बहुत उपयोगी द्रव्य है। 

बवासीर के दर्द का घरेलू उपाय ( bawasir ke dard ka gharelu upay ) 

बवासीर की आयुर्वेदिक दवा की जानकारी, बावशिर की आयुर्वेदिक चिकित्सा कहलाती है। जिससे नई, जीर्ण और पुरानी सभी तरह की बवासीर का इलाज किया जाता है। जिसको न जानने वाले 20 साल पुरानी खूनी बवासीर का इलाज रामबाण बताइए की बात करते है।

बवासीर की चिकित्सा में घरेलू उपायों का बड़ा महत्व है। यह आसानी से उपलब्ध होने के कारण लोग इनको सर्वप्रथम अपनाते है। जिसके कारण आज भी आयुर्वेद जगत में घरेलू उपायों का बोलबाला है। आयुर्वेद में वर्णित सुप्रसिद्ध घरेलू उपाय निम्न है – 

  • ताजे मक्खन में मधु मिलाकर खाने से, 20 साल पुरानी बवासीर का इलाज आसान हो जाता है।
  • सूरन ( सूरणकंद ) की सब्जी का सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।   
  • अपामार्ग की जड़ तण्डुलोदक के साथ मधु मिलाकर, प्रतिदिन सेवन करने से बवासीर का नाश हो जाता है। 
  • सेहुंड के दूध के साथ हल्दी का चूर्ण मिलाकर, बनाया गया लेप बवासीर को नष्ट कर देता है।
  • पिप्पली, कूठ, सेंधा नमक और शिरीष के फल को मदार अथवा सेहुण्ड के दूध में पीसकर बनाया गया लेप बवासीर को नष्ट कर देता है। यह बहुत ही बढ़िया बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय है।     

बवासीर में परहेज क्या करना चाहिए

आधुनिक समय में बवासीर से बचाव के लिए, बवासीर का टीका भी प्रयोग होने लगा है। जबकि आयुर्वेदीय चिकित्सा ग्रंथो में, बवासीर में परहेज करने की बात बताई गयी है। जो आयुर्वैदिक काल से लेकर अब तक चिर, परीक्षित और प्रयुक्त है। जिसके कारण इनका पालन करने पर, निश्चित रूप से हम बवासीर आदि रोगो के चपेट में आने से बच सकते है। जैसे –     

  • मलत्याग के समय गुदा पर अधिक जोर न लगाए
  • गुदा को रगड़ लगने से बचाये।
  • गुदा पर खुजली होने पर खुजलाए नहीं 
  • मलत्याग के उपरान्त गुदा को उष्ण जल से धोये।
  • तीखे, चटपटे, तले – भुने, मिर्च – मसाले वाला भोजन न करे।
  • चिकनी और अत्यंत गरिष्ट भोजन का त्याग करे। 
  • कच्चे और पके फल और भोजन को मिलाकर न खाएं।
  • विपरीत और विरुद्ध आहार न ले। जैसे – दही के साथ उड़द की दाल आदि।
  • रात्रि में अधिक समय तक जगे नहीं और सुबह जल्दी उठे। 
  • दिन में सोये नहीं।
  • भोजन में गेहूँ और चावल के स्थान पर मिलेट का प्रयोग करे।
  • प्रोसेस्ड और रिफाइंड नमक और तेल के स्थान पर, अनप्रोसेस्ड और बिना रिफाइंड वाले नमक और तेल का उपयोग करे।
  • भोजन के बीच में थोड़ा – थोड़ा पानी जरूर पिए।
  • भोजन के पहले और अंत में पानी न पिए, आदि।     

क्या बवासीर का स्थाई उपचार संभव है ( can piles be cured permanently ) 

किसी भी रोग का स्थाई उपचार तभी संभव है। जब हम रोग से सम्बंधित सभी कारणों का जड़ – मूल से नाश कर दे। जब तक ऐसा करने में हम सक्षम नहीं होंगे, तब तक कोटि – कोटि उपायों का आलंबन लेकर भी हम व्याधि मुक्त नहीं हो सकते। अस्तु बवासीर का उपचार करने के लिए रोग कारण की ठीक – ठीक पहचान करनी चाहिए। तदुपरांत उनको पूर्ण रूप से मिटाने के सोपानो को अपनाना चाहिए। तब जाकर रोग से हमारा नाता टूटता है।   

उपसंहार :

भिलावा और कुटज दो ऐसी बवासीर की आयुर्वेदिक दवाई है। जिनसे 20 साल पुरानी बवासीर का इलाज भी संभव है। इस कारण आयुर्वेद ने इनको बवासीर का अचूक इलाज करने की उत्कृष्ट कोटि की औषधि कहा है। हालांकि बवासीर का 100 परसेंट इलाज करने के लिए आहार और विहार चर्या का शास्त्रानुसार अनुशासन अपेक्षित है। जिसमे दिनचर्या और ऋतुचर्या का भली भाँती ध्यान रखना समाहित है।

ध्यान रहे : चिकित्सीय विशेषज्ञ के परामर्श के बिना किसी भी उपाय को अपनाने से बचे। ऐसा न करने पर हानि होने की पूर्ण संभावना बनी रहती है।    

सन्दर्भ :

चरक संहिता चिकित्सा अध्याय – 14

सुश्रुत संहिता चिकित्सा अध्याय – 06

अष्टांग ह्रदय चिकित्सा अध्याय – 08

FAQ

बवासीर की शुरुआत में क्या होता है?

बवासीर की शुरुआत गुदा में भारीपन, खुजली और सूजन हो सकती है। जिसके कारण मलत्याग के समय गुदा में दर्द और चुभन का अनुभव हो सकता है। 

बवासीर की आयुर्वेदिक दवा कौन सी है?

मस्से वाली बवासीर के लिए भिलावा और खूनी बवासीर के लिए कुटज आयुर्वेद की श्रेष्ठ औषधिया है। जो दिखाई पड़ने वाली और न दिखाई पड़ने वाली, दोनों प्रकार की बवासीर में लाभकारी है।  

20 साल पुरानी बवासीर कैसे ठीक करें?

देहगत रोग लक्षणानुसार औषधि का सेवन करने के साथ, उपयुक्त आहार – विहार का उचित समय तक धैर्य पूर्वक सेवन करने से वर्षो पुरानी बवासीर भी ठीक हो जाती है।  

बवासीर का इलाज कैसे करें?

वात प्रधान बवासीर में स्नेह, स्वेद, वमन, विरेचन, आस्थापन और अनुवासन का प्रयोग कर इलाज करना चाहिए। पित्तज वबासीर में विरेचन एवं रक्तज बवासीर में संशमन चिकित्सा करनी चाहिए। जबकि कफज बवासीर में अदरक और कुलथी से इलाज करना चाहिए। 

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