गुदा की गुद रक्त वाहिनियों का खून से भरकर, मांस के अंकुरों का रूप ले लेना ही बवासीर का लक्षण है। जिसके उपचार से आजकल स्क्लेरोथेरेपी की प्रक्रिया अपनाई जाती है। जिसे बवासीर का इंजेक्शन से इलाज कहा जाता है। जिसमे स्क्लेरोजिंग एजेंट को इंजेक्शन में भरकर, बवासीर के दर्द भरे मस्सों में लगाया जाता है। जिससे कुछ ही दिनों में बवासीर के मस्से सूखने लगते है। परन्तु बहुत से लोगो को यह शंका होती है कि – दर्दनाक बवासीर के मस्सों में बवासीर का इंजेक्शन कैसे लगता है और बवासीर का इंजेक्शन का नाम क्या होता है। हालाकिं पाइल्स इंजेक्शन साइड इफ़ेक्ट भी है।
यह बिना ऑपरेशन बवासीर के उपचार की पद्धति है। जो ग्रेड 1 और ग्रेड 2 वाले बवासीर के मस्सों को, दूर करने के लिए अपनाई जाती है। जिससे यह मस्से ग्रेड 3 और 4 की ओर न बढ़ सके। यह बहुत ही आसानी से होने वाली प्रकिया है। जिसमे न तो अधिक समय लगता है, और न हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़ता है।
लेकिन हर मस्से को सुखाने के लिए, बारी – बारी से स्क्लेरोथेरेपी की प्रकिया अपनाई जाती है। जिसमे अमूमन एक ही मस्से में दो – तीन बार इंजेक्शन लेना पड़ता है। परन्तु आवश्यकता पड़ने पर, इससे अधिक इंजेक्शन भी लगना पड़ सकता है। जिसके लिए बार – बार चिकित्सा विशेषज्ञ के पास जाना पड़ता है।
बवासीर क्या होता है ( bawaseer kya hota hai )
मानव गुदा में गुदौष्ठ और मलाशय के बीच गुद नलिका का स्थान है। जिसमे तीन वालिया पायी जाती है। जिनमे रक्त की शिराए लम्बाई में बिना कपाट की फ़ैली रहती है। जिसमे मलत्याग के समय प्रवाहन करने पर, रक्त का कुछ न कुछ अंश वलि शिराओ में चला जाता है। जिनमे कपाट न होने से वापस नहीं निकल पाटा। जिससे वही एकत्रित होता रहता है।
लेकिन जब कब्ज और अतिसार रोग से हमारा पाला पड़ता है। जो बवासीर की पूर्व अवस्था के रूप में देखा ही जाता है। तब मलत्याग के लिए प्रवाहन करने पर, गुद वलि शिरा वाहिनियों में रक्त जमा होने लगता है। जिसके कारण इन्ही गुद वलियो में, मांस के अंकुर निकल आते है। जिन्हे बवासीर के नाम से जाना जाता है।
बवासीर के कुछ मस्से रक्त स्राव करते है। जबकि कुछ बिना रक्त स्राव के ही होते है। जिसके कारण इनमे दर्द और रक्तस्राव की समस्या देखी जाती है। हालाकिं बवासीर में खुजली, चुभन और जलन मुख्य रूप से पाए जाते है।
बवासीर लक्षण ( bawaseer symptoms in hindi )
बवासीर अलग – अलग दोषो से लिप्त होने के कारण, अलग – अलग लक्षण को प्रदर्शित करती है। इसलिए बवासीर में निम्न लक्षण देखे जाते है –
- मल त्याग के समय गुदा में दर्द होना
- मल का सूखा और कडा होना
- गुदा से दर्द और बिना दर्द के खून आना
- गुदास्राव से गुदा गीला अनुभव होना
- पेट और कुक्षि में दर्द होना
- बार – बार प्यास, मल – मूत्रादि का वेग लगना
- पैरों में दर्द होना
- गुदा में विभिन्न आकार के मस्से होना
- मल में आंव आना
- गुदा में जलन और चुभन होना
- गुदा में खुजलाहट बनी रहना, आदि।
बवासीर का इंजेक्शन से इलाज
बवासीर का इंजेक्शन द्वारा इलाज करने के लिए, स्केलेरोथेरेपी की प्रकिया अपनाई जाती है। जो बवासीर सर्जरी ( hemorrhoids surgery ) से बिलकुल अलग है। इसमें सर्जरी के जैसे बवासीर के मस्सों को काटा नहीं जाता। बल्कि इंजेक्शन की मदद से दवा डालकर, उसको सुखाया जाता है। जिससे इसे पाइल्स इंजेक्शन ट्रीटमेंट भी कहा जाता है।
स्क्लेरोथेरेपी प्रक्रिया ( sclerotherapy procedure in hindi )
स्केलेरोथेरेपी एक ऐसी प्रकिया है। जिसमे विशेष प्रकार के रासायनिक घोल को, बवासीर के आस – पास के क्षेत्र में लगाया जाता है। जिससे बवासीर के मस्सों में भरा हुआ संक्रमित रक्त सूखने लगता है। जिससे बवासीर के मस्सों का आकार धीरे – धीरे कम होने लगता है।
बवासीर के इंजेक्शन को ही स्क्लेरोथेरेपी इंजेक्शन ( sclerotherapy injeksan ) कहा जाता है। जो स्क्लेरोजिंग एजेंट के मिश्रण से तैयार होने वाली दवाई है। जिसे आजकल की भाषा में सलूशन कहा जाता है। जिसको सीधे बवासीर के मस्सों की रक्तवाहिनियों में न लगाकर, आंत्र की परत के नीचे पाए जाने वाले ऊतक के क्षेत्र में लगाया जाता है।
यह प्रक्रिया गुदा रोग विशेषज्ञ के द्वारा की जाने वाली प्रक्रिया है। जिसमे आमतौर पर एनीस्थीसिया का इस्तेमाल नहीं किया जाता। किन्तु गुदा में पाए जाने वाले मस्सों को देखने के लिए, प्रोक्टोस्कोप या एंडोस्कोप का प्रयोग किया जाता है। जो एक प्रकार की प्रकाश देने वाली छोटी ट्यूब होती है। जिससे चिकित्सा विशेषज्ञ आसानी से, बवासीर के मस्सों को देखकर पहुंच सकें।
इसके गुदा के भीतरी हिस्से के सबम्युकोशल क्षेत्र में, इंजेक्शन की मदद से स्क्लेरोजिंग एजेंट के रासायनिक मिश्रण को वहां डाला जाता है। जहाँ बवासीर के मस्से होते है। इसके बाद हेमोराइड इंजेक्शन से एक ऊतक का विकास होता है। जो सूखकर कडा ( सख्त ) हो जाता है। जिससे बवासीर के मस्से का आकार घटने लगता है।
स्क्लेरोथेरेपी के बाद की सावधानी
बवासीर का इंजेक्शन से इलाज कराने के बाद, बहुत सावधानी रखनी पड़ती है। जैसे –
- अधिक समय तक बैठने से बचे
- तेज गति की सवारी से पात्रा न करे
- अधिक मेहनत वाले व्यायाम के स्थान पर धीरे – धीरे पैदल घूमे
- किसी तरह का तनाव न ले
- स्क्लेरोथेरेपी के बाद आंतो को नरम बनाये रखे।
- जिसके लिए पर्याप्त मात्रा में पानी और तरल चीजों का ही सेवन करे।
- खाने में रेशेदार भोजन का ही प्रयोग करे
- मल त्याग के लिए अधिक जोर न लगाए
- शौच के बाद मलद्वार को गुनगुने पानी से धोकर अवश्य सुखाये
- किसी प्रकार का दर्द और बुखार आदि होने पर चिकित्सीय परामर्श ले, आदि।
पाइल्स इंजेक्शन साइड इफ़ेक्ट ( sclerotherapy side effects for piles in hindi )
स्क्लेरोथेरेपी के बाद देखे जाने वाले संभावित दुष्प्रभाव निम्नलिखित है –
- श्वास लेने में कठिनाई होना
- शरीर में खुजली होना
- इंजेक्शन लगने के स्थान पर दर्द और सूजन होना
- इंजेक्शन के स्थान पर अल्सर और रक्तस्राव होना
- प्रोस्टेट ग्रंथि में मवाज बनने लगना
- नपुंसकता और संक्रमण होने के खतरे का बढ़ना
- बवासीर का सघन होने लगना, आदि।
उपसंहार :
बवासीर का इंजेक्शन से इलाज को मेडिकल की भाषा में स्क्लेरोथेरेपी कहा जाता है। जिसमे गुदा शिराओ में रक्त परिसंचरण को धीमा करके, बवासीर के सूजे हुए मस्सो को सिकोड़ा जाता है। जिसके लिए स्क्लेरोजिंग एजेंट का प्रयोग किया जाता है। पाइल्स इंजेक्शन साइड इफ़ेक्ट को पैदा करता है। जिसके लिए इसके बाद चिकित्सक के देखरेख में रहना चाहिए।
FAQ
बवासीर में क्या होता है?
बवासीर गुद वलियो की रक्त शिराओं में होने मांस का अंकुर है। जिसमे मलत्याग आदि के कारण दाब लगने से भीषण दर्द होता है।
बवासीर का इंजेक्शन से इलाज कैसे होता है?
स्क्लेरोजिंग एजेंट को इंजेक्शन की मदद से, बवासीर के मस्सों में डालने से बवासीर के मस्से सूखने लगते है। जिसे बवासीर का इंजेक्शन से इलाज कहा जाता है।
पाइल्स इंजेक्शन का क्या नाम है?
पाइल्स इंजेक्शन नाम स्क्लेरोसैंट ( Sclerosant ) है। जो इंजेक्शन में भरकर लगाया जाता है।
सदर्भ :
हेमोर्रोइड्स : फ्रॉम बेसिक पैथोलॉजी से क्लीनिकल मैनेजमेंट। वर्ल्ड जनरल ऑफ़ गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी 5 मई 2012; 18 ( 17 ) 2009 https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC3342598/
पैथोसाइकोलॉजी ऑफ़ इंटरनल हेमोर्रोइड्स। एनल्स ऑफ़ गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी 27 अप्रैल 2019 को प्रकाशित https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC6479658/