बुखार की सबसे अच्छी दवा कौन सी है : Best Medicine For Fever in Hindi

आयुर्वेदादी शास्त्रों में बुखार को ज्वर कहा गया है। सामान्य रूप से बुखार सभी रोगो में पाया जाता है। इसकारण बुखार की गति सभी रोगो में प्रायः देखने को प्राप्त होती है। शरीरके तापमें वृद्धि को ही सामान्यतया ज्वर की संज्ञा दी गयी है। जो सूक्ष्म से सूक्ष्म किसी भी वाहय या आंतरिक कारणों से हो सकता है। जैसे सर्दी जुकाम आदि। जिसका उपचार करने के लिए संयमित आहार – विहार के साथ साथ दवाइयों की आवश्यकता होती है। जिसमे आज अनेको प्रकारके भेद है। जिसके लिए बुखार की सबसे अच्छी दवा अथवा, बुखार की सबसे अच्छी आयुर्वेदिक दवा क्या हो सकती है? या बुखार की सबसे अच्छी दवा कौन सी है? जानने की उत्कंठा सभीके मन में होती है।

बुखार की सबसे अच्छी दवा घरेलू 
बच्चों में बुखार आना

हमारे प्रमाद के कारण आज बुखार की प्राप्ति होने के सभी द्वार हमारे लिए खुले है। जिसको हम भोजन विसंगति, दिनचर्या विसंगति और ऋतुचर्या विसंगति आदि नामो से जानते है। जिसमे आयुर्वेद में वर्णित नौ प्रकार के वेगो या अन्य किसी कारण से भूलवश विसंगति हो ही जाती है। जिसको नियंत्रित कर पाना बहुत ही कठिन है। आजकल अधिकाधिक लोग शहरो में निवास करते है। जिसमे रोगो को प्रश्रय देने के अनगिनत मार्ग है। जिससे स्वयं को बचा पाना भी उतना ही कठिन है।

अनेको प्रकार के ज्वर भेद के कारण, लोगो के मन में बात जानने की इच्छा होती है कि, बुखार की सबसे अच्छी दवा कौन सी है। जो सभी पर सामान रूप से कारगर हो। आयुर्वेद सहित सभी चिकित्साओं में अंदरूनी बुखार का उपचार बहुत ही जटिल माना जाता है। जिसके लिए अलग से किसी दवा आदि की आवश्यकता प्रायः नहीं पड़ती। इन्ही सब को ध्यान रखकर ही बुखार की सबसे अच्छी दवा को चुना जा सकता है। ठीक उसीप्रकार जैसे फैटी लीवर का उपचार किया जाता है।

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बुखार क्या है (what is Fever in Hindi)

फीवर को ही हिंदी में (fever in hindi) बुखार या ज्वर कहा जाता है। फीवर का हिंदी में अभिप्राय (fever meaning / fever meaning in hindi) भी ज्वर ही है। किसी भी कारण से शरीर में व्याप्त तापांतर में वृद्धि को आयुर्वेद के अनुसार ज्वर कहा जाता है। आज की आधुनिक भाषा में बुखार के अनेको भेद है। जैसे रुमेटिक फीवर (rheumatic fever), यलो फीवर (yellow fever), कुकिंग फीवर (cooking fever) आदि है। ज्वरोपचार में भी सोंठ के फायदे और नुकसान है।

सनातन शास्त्रों में समस्त प्रकार की विद्या और कला का समावेश है। जिसका प्रसार आज हमें आयुर्वेद, पुराणादि के रूप में प्राप्त है। विष्णुपुराण के अनुसार पार्वती विवाह में दक्षप्रजापति द्वारा कियेगए अपमानसे कुपित शिवजी ने अपने निःश्वास से ज्वरको उत्पन्न किया। जबकि वायुपुराण में श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध शिवभक्त वाणासुर के यहाँ बंदी हो गए थे। जिनको मुक्त कराने के लिए वाणासुर और श्रीकृष्ण में भयंकर युद्ध हुआ। उस समय बाणासुर की सहायता के लिए शिव जी ने शैव ज्वर को उत्पन्न किया। जिसका प्रभाव श्रीकृष्ण और बलराम दोनों पर पड़ा। तब श्रीकृष्ण भगवान ने क्रोधित होकर वैष्णव ज्वर को प्रकट किया। जिससे शैव ज्वर परास्त हो गया।

जिसमे शैव ज्वर को उष्ण जबकि वैष्णव ज्वर को शीत बताया गया। आयुर्वेद का सांगोपांग अध्ययन करनेपर, किसीभी कारण से वात, पित्त और कफ के असंतुलितहोने को ही रोग कहा जाता है। चाहे वह ज्वर हो या अन्य कोई और रोग। जिसमे सभी प्रकार की व्याधियों का सन्निवेश है। जो किसी भी कारण को लेकर प्रकट हो सकती है। अभिव्यंजक संस्थान के भेद से इनमे भेद की प्राप्ति होती है। जैसे – वातकी प्रधानतासे प्राप्त ज्वरको वातजज्वर, पित्तकी प्रधानतासे प्राप्त ज्वरको पित्तजज्वर आदि कहा जाता है। इस आधार पर बुखार की सबसे अच्छी दवा (best medicine for fever) क्या हो सकती है?

ज्वर होने का कारण

आयुर्वेद में बुखार की उत्पत्ति के अनेको कारण बताये गए है। जिसमे भय, काम, क्रोध, शोकादि मनोविकारो तथा अंशुघात आदि अनौपसर्गिक कारणों को माना गया है। जिसको चिकित्सा शास्त्रों में कायिक और आगंतुक रोगो की श्रेणी में स्थान दिया है। जिसके आधार पर बुखार के अतिरिक्त अन्य रोगो की भी प्राप्ति होती है। ज्वर के पर्याय के रूप में व्याधि, आमय, गद, आतंक, यक्ष्मा, ज्वर, विकार तथा रोग को माना गया है। जहा पर विकार का अर्थ आयुर्वेद की विधि संहिता के परिपालन में शीथिलता को माना गया है। 

ज्वर होने का कारण

जिसमे दिनचर्या, ऋतुचर्या आदि का वर्णन किया गया है। रह गयी बात रोग की, तो किसी भी व्याधि की प्राप्ति ज्वर की अनुपस्थिति में सम्भव नहीं। चाहे वह सुप्त अवस्था में ही क्यों न हो? आयुर्वेद में अपवाद के रूप में ज्वर (jwar) और संताप का घनिष्ठ सम्बन्ध होने पर भी दोनों को एक नहीं माना जाता क्योकि रोहिणी ( डिप्थीरिया ) और आंतरिक बुखार में आदि में कभी ताप की प्राप्ति नहीं हो पाती। अन्तर्वेग और वातश्लैष्मिक ज्वर में भी ठीक यही स्थिति रहती है। इस कारण ज्वर का निर्णय केवल शरीर ताप को लेकर नहीं किया जा सकता। आजकल बुखार को बहुत ही कमजोर रोग समझा जाता है। जिसके कारण इसके उपचार को बहुत ही सरल समझा जाता है।

जबकि उपरोक्त सिद्धांत के अनुसार विचार करेतो, यह बहुत ही कठिन और सावधानी से की जाने वाले चिकित्सा है। इस कारण बुखार की सबसे अच्छी दवा (best medicine for fever) क्या हो सकती है? ज्वर या बुखार होने के कारणों पर विचार करे, तो आयुर्वेद में इसके अनेक कारण बताये गए है। जिनमे वात, पित्त और कफ का असंतुलन प्रमुख है। जिसके लिए अनेको प्रकार के वाहय और अन्तः कारण है। जिनके निदान के लिए बुखार की सबसे अच्छी आयुर्वेदिक दवा उपयोग में लाई जाती है।

बुखार के प्रकार / ज्वर भेद (types of fever)

आयुर्वेद में वात, पित्त और कफ के सम रहने को ही स्वास्थ्य के रूप में ख्यापित किया गया है। जिसमे विसंगति को रोग की संज्ञा दी गई है। जिसके कारण मुख्यतः तीन प्रकार के कारण भेदो की प्राप्ति होती है। जिसको पृथकदोषज ज्वर, द्विदोषज ज्वर और त्रिदोषज ज्वर के नाम से जाना जाता है। जितने भी प्रकार के बुखार की प्राप्ति और व्याप्ती हमें होती है। वह सब के सब प्रकार में उपरोक्त किसी न किसी प्रकार का होता है। आगे भविष्य में भी यह ज्यो का त्यों रहेगा।

पृथकदोषज ज्वर किसी एक दोष में प्राप्त विसंगति के कारण होता है। जिससे इसके तीन भेद हो जाते है। जिसको वातज, पित्तज और कफज ज्वर के नाम से जाना जाता है।

द्विदोषज ज्वर किसी दो दोष में विसंगति होने के कारण होता है। जिसको वातपित्तज ज्वर, पित्तकफज ज्वर और वातकफज ज्वर के नाम से जाना जाता है। द्विदोषज ज्वर को सम और विषम की दृष्टि से दो नामो से जाना जाता है। जो प्रकृतिसमसमवेत द्विदोषज ज्वर और प्रकृतिविषमसमवेत द्विदोषज ज्वर कहा जाता है।

जबकि त्रिदोषज ज्वर में तीनो ही दोषो में विकृतियों के कारण होता है। जिसे वातपित्तकफज ज्वर या सन्निपात ( सन्निपातिक )  ज्वर के नाम से जाना जाता है। जिसके प्रकृति के आधार पर सम और विषम नामक दो भेद हो जाते है। जिसे  प्रकृतिसमसमवेत सन्निपातिक ज्वर और प्रकृतिविषमसमवेत सन्निपातिक ज्वर कहा जाता है। इनका उपचार बुखार की सबसे अच्छी आयुर्वेदिक दवा, से किया जाता है। प्रायः बुखार में खांसी भी देखी जाती है। जिसके लिए खांसी का इलाज घरेलू उपयोगी है। जबकि बुखार के उपचार के लिए बुखार की सबसे अच्छी दवा का उपयोग होता है।

आधुनिक परिपेक्ष्य में बुखार के प्रकार

आज के समय में बुखार के लक्षण और प्रभाव के आधार पर इनका वर्गीकरण किया गया है। जिसके आधार पर इसके नामो में भेद की प्राप्ति होती है। जैसे विषम ज्वर (typhoid fever / typhoid in hindi), डेंगू बुखार (dengue fever), वायरल बुखार (viral fever), हे फीवर (hay fever), स्कारलेट फीवर(scarlet fever), frozen fever, tulip fever आदि है। दुनिया में ऋतू परिवर्तन होने पर जो बुखार होता है। उसे ही वायरल फीवर ( viral fever) कहा जाता है। जिसको विषाणु जनित ज्वर या रोग भी कहा जाता है। उदाहरण के लिए कोरोना है। जिसको चिकित्सा विशेषज्ञों के द्वारा वायरस कहा गया है।

अब कोरोना और वायरस को मिला कर कहे, तो कोरोनावायरस (coronavirus या corona virus) है। जिसमे होने वाले बुखार को कोरोनावायरस फीवर (coronavirus fever in hindi) कहा जाता है। चिकित्सा शास्त्रों में मानव शरीर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग मस्तिष्क को माना गया है। जिसमे होने वाले बुखार को दिमागी बुखार या मस्तिष्क ज्वर (brain fever) कहा जाता है। जबकि ऊतक विशेष में होने वाले ज्वर को (glandular fever) कहते है। इसी प्रकार एलर्जी से होने वाले बुखार को परागज ज्वर (hay fever) कहा जाता है। जिसका मतलब (hay fever meaning) सर्दी जुकाम जैसे लक्षणों से युक्त बुखार को पैदा करना है। जो वायरस जनित नहीं होता।

इन ज्वरो से प्राप्त होने वाले लक्षणों (fever symptoms) को उस ज्वर विशेष का लक्षण कहा जाता है। जैसे – विषम ज्वर से प्राप्त लक्षण को विषम ज्वर का लक्षण (typhoid fever symptoms)। डेंगू बुखार से प्राप्त लक्षण को डेंगू का लक्षण (dangue fever symptoms)।  वायरल बुखार से प्राप्त लक्षण को (viral fever symptoms)। और कोरोनावायरस फीवर से प्राप्त लक्षण को (coronavirus fever symptoms)। इनके आधार पर ही बुखार की सबसे अच्छी दवा कौन सी है को चुना जा सकता है। जिसको बुखार की सबसे अच्छी आयुर्वेदिक दवा के नाम से भी जानते है। 

नार्मल बुखार कितना होना चाहिए (normal fever body temperature)

आयुर्वेद में मानव शरीर का सामान्य ताप 97.4 से  98.4 तक होता है। जिसे हम गणित की दृष्टि से औसत ताप भी कह सकते है। यह तापक्रम व्यक्ति से व्यक्ति में भिन्न होता है। इस कारण एक समन्वय बिठाने के लिए ऐसा किया जाता है। अब प्रश्न यह उठता है कि ताप में अंतर् क्यों होता है? तो इसका उत्तर देह प्रकृति है।

देह प्रकृति को ही वात, पित्त और कफ के नाम से जाना जाता है। किसी भी कारण जब मानव देह में वात की प्रधानता होती है, तो उसे वात प्रकृति का कहा जाता है। इसी प्रकार जब पित्त की होती है तब पित्त। और जब कफ की होती है तो कफ प्रकृति का कहा जाता है। जब किन्ही दो के सन्निवेश से देह की प्रकृति का निर्धारण होता है। तब उन दोनों के लक्षणों से युक्त शरीर की प्राप्ति होती है।

इसी प्रकार जब तीनो गुणों से युक्त देह की प्राप्ति होती है। तब उसे उन तीनो गुणों से युक्त प्रकृति का माना जाता है। किसी भी कारण व उपाय का आलंबन लेकर देह प्रकृति को बदला नहीं जा सकता। बल्कि देह प्रकृति को पहचान कर, उससे केवल बचाव ही किया जा सकता है। जिसकी चिकित्सा में बुखार की सबसे अच्छी आयुर्वेदिक दवा का उपयोग है।

मानव शरीर का सामान्य ताप 37 डिग्री सेंटीग्रेड होता है। फॉरेनहाइट की बात करे तो लगभग 98 डिग्री होता है। यदि दोनों की बात करे तो एक डिग्री अधिक ताप होने को ही चिकित्सा शास्त्रों में सामान्य बुखार (normal fever temperature) कहा जाता है। इससे अधिक ताप की प्राप्ति (fever body temperature) होने पर रोगी को चिकित्सा विशेषज्ञ से सलाह लेने की आवश्यकता होती है। जिसमे दवा की अपेक्षा होती है। इस कारण बुखार की सबसे अच्छी दवा (bukhar ki sabse acchi dava) क्या हो सकती है?

ज्वर ताप (fever temperature) मापन विधि

किसी भी बुखार के ताप (fever temperature) के आधार पर ही इसकी तीव्रता का ज्ञान होता है। आज के समय में ज्वर को मापने के लिए सामान्यतः यंत्रो का ही उपयोग किया जाता है। जिसमे एनालॉग और डिजिटल दोनों प्रकार के यन्त्र है। इनको थर्मामीटर के नाम से जाना जाता है। डिजिटल थर्मामीटर की मदद से सही ताप को पढ़ने में समस्या नहीं आती। इस कारण यह सुविधाजनक तो है। परन्तु इनके कार्य करने की भी अपनी एक विधा है। जिसके आधार पर यह संचालित होते है। जब हम इनके द्वारा निर्दिष्ट विधि निषेधों का पालन करते है। तब यह हमारे लिए परमोपयोगी सिद्ध होते है, नहीं तो यह हमारे लिए अनुपयोगी सिद्ध है।

किसी भी यंत्र पर किसी भी वैज्ञानिक/ यन्त्र निर्माता का पूर्ण नियंत्रण नहीं है। जिसके कारण यंत्रो में गलतियों की सम्भावना होती है। जिसको मिटा पाना सम्भव नहीं है। यह उस यन्त्र की त्रुटि कहलाती है। यह त्रुटि उस पदार्थ के ऊपर निर्भर है। जिसका उपयोग यन्त्र बनाने में किया गया है। वही दूसरी और बाह्य वातावरण का भी इन पर पूर्ण प्रभाव होता है। जिसको वैज्ञानिक भाषा में उस यन्त्र की सीमा कहते है। जिस कारण इनमे पायी जाने वाली विसंगति को दूर नहीं किया जा सकता। बल्कि प्रयोग के आधारित नियमो का अनुशरण करते हुए इनका उपयोग किया जाता है।

किसी भी बुखार को नापने या मापने के लिए ज्यादातर थर्मामीटर का प्रयोग किया जाता है। जो सस्ता होने के साथ साथ आसानी से सुलभ है। जिसके कारण यह लगभग सभी घरो में उपयोग में लाया जाता है। जिसको उपयोग करने की उपयुक्त विधा का ज्ञान हमें नहीं होता। जिससे हम इससे बुखार का मापन सही से नहीं कर पाते। और बुखार न होने पर भी बुखार की दवा का सेवन करते है। जिससे अनेको प्रकार की समस्याए उत्पन्न होती है।

थर्मामीटर द्वारा बुखार मापने की विधि (Fever Measurement in Thermometer in Hindi)

थर्मामीटर द्वारा बुखार मापने की विधि

सामान्यतः मानव शरीर का तापक्रम 97.4 से 98.4 फारेनहाइट तक मुख में रहता है। कांख या बगल का तापक्रम सामान्य तापक्रम से 1 डिग्री कम रहता है। सुबह का तापक्रम 1 डिग्री कम और शाम का तापक्रम 1 डिग्री अधिक होता है। इससे अधिक तापक्रम का होना बुखार (fever body temperature) कहा जाता है। 99 फारेनहाइट से ऊपर (is 99 a fever) ताप को निश्चित तौर पर बुखार माना जाता है। इसको ही हम बुखार का रेंज (fever temperature range) कहते है। इसके अतिरिक्त रोगी की अवस्था एवं स्वास्थ्य का विचार करके भी तापक्रम का निर्णय रोग विशेषज्ञों के द्वारा किया जाता है। ऊपर सामान्य अवस्था को लेकर विचार किया गया है।

विभिन्न प्रकार के रोगो में इसका स्वरूप स्थिर नहीं रहता। कभी – कभी यह तापक्रम रोगी के साध्य असाध्य होने की स्थिति की भी सूचना देता है। जैसे आंत्रिक ज्वर तथा मस्तिष्कावरण शोथ में सुबह के समय ज्वर का बढ़ना और सायंकाल ज्वर का घटना रोग की असाध्यता का संकेत करता है। क्योकि ज्वर के सामान्य क्रम से यह विपरीत होता है। सामान्य रूप से रात्रि में सो जाने के बाद ऐच्छिक पेशिया अपना कार्य नहीं करती। अतएव शरीर में उष्णता के उत्पत्ति नहीं हो पाती। जिसके कारण सुबह का तापक्रम कम रहता है। इसके विपरीत दिन में उक्त पेशिया कार्यरत रहती है। जिसके कारण शाम का तापक्रम सुबह के तापक्रम की तुलना में अधिक होता है।

इस प्रकार की समस्याओ से बचने के लिए बुखार को मापने की विधि को जानना अतिआवश्यक है। जिसके मापन के लिए थर्मामीटर का होना अनिवार्य है। जिससे रोगी को सही समय पर उपयुक्त उपचार दिया जा सके। अनावश्यक रूप से दवाइयों का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। जिससे हमें बचना चाहिए। मापन के बाद प्रश्न उठता है कि बुखार की सबसे अच्छी दवा (best medicine for fever) क्या है?

बुखार के लक्षण ( Symptoms Of Fever )

ज्वर के लक्षणोंकी बातकी जाय तो तापकी तीव्रताके आधारपर इसके अलग – अलग लक्षणों की प्राप्ति होती है। टाइफाइड फीवर में अलग और वायरल फीवर में अलग। जबकि आयुर्वेदमें अलग अलग प्रकारके ज्वर के अलग लक्षण बाते गए है। जिसके लक्षणोंके आधारपर ज्वरकी पहचान करते है। जिसमे अंदरूनी बुखार की दवा भी है।

आयुर्वेदमें वात ज्वर, पित्त ज्वर, कफ ज्वर, वातपित्त ज्वर, वातकफ ज्वर, पित्तकफ ज्वर, और सन्निपात ज्वर के लक्षणों का वर्णन किया गया है। जिसमे सभीके अपने अपने अलग अलग विभेदो का वर्णन किया गया है। सभी ज्वरोमें प्राप्त होने वाले लक्षणोंमें कुछ लक्षण ऐसे है, जो सभी में प्राप्त होते है। जिसको हम ज्वर का उभयनिष्ठ लक्षणभी कह सकते है। जैसे शरीर ताप में वृद्धि, मुख का स्वाद बदल जाना, नींद न आना आदि प्रमुख है।

ज्वर से प्राप्त लक्षणोंके आधारपर ही रोगीकी चिकित्सा का विधान है। लक्षणकी प्राप्ति न होनेसे उचित चिकित्सा नहीं की जा सकती। इस आधारपर लक्षणों को दबाना चिकित्सा नहीं है। अपितु लक्षणों को समाप्त करना ही चिकित्सा है। सामान्य रूप से वात की प्रगल्भता से प्राप्त होने वाले ज्वर में ज्वर का वेग सामान्य और असामान्य होता है। पित्त की प्रगल्भता में ज्वर तीक्ष्ण होता है। जबकि कफ की प्रगल्भता में होने वाला ज्वर मंद होता है। यदि मुँह के स्वाद के लक्षणों की बात करे, तो वातज्वर में मुँह सूख जाता है। पित्तज्वर में मुँह का स्वाद कडुआ होता है। जबकि कफज्वर में मुँह का स्वाद मीठा होता है।

यदि शरीर की अवस्था की बात करे तो वातज्वर में शरीर रूखा हो जाता है। पित्तज्वर में शरीर में पसीना आता है। जबकि कफज्वर में शरीर अकड़ जाता है। रोगी से प्राप्त इन्ही लक्षणों के आधार पर ही रोग की पहचान और औषधि का चयन किया जाता है। जिसको बुखार की सबसे अच्छी आयुर्वेदिक दवा, भी कहते है।

सामान्य बुखार के लक्षण (Symptoms of Low Fever in Hindi)

यह बुखार लगभग लगभग सभी रोगो में सलग्न होता है। बिना बुखार के किसी भी रोग की प्राप्ति नहीं होती। उदाहरण के लिए सामान्य से सामान्य सर्दी खांसी में भी बुखार होता ही है। किसी भी असामान्य घटना या डरावनी कहानी को सुनने से भी बुखार की प्राप्ति आमतौर पर बच्चो में देखने को मिलती है। ऋतु परिवर्तन के कारण शारीरिक संतुलन में विक्षोभ की अवस्था में भी बुखार देखने को मिलता है। जिसके आधार पर इनके लक्षणों में विभेद की प्राप्ति होती है। जिसके लिए बुखार की सबसे अच्छी दवा (best medicine for fever) कि जरुरत पड़ती है।  फिर भी सामान्य रूप से इसमें कुछ लक्षण पाए जाते है, जो निम्न है –

  • इस प्रकार के बुखार में शरीर का ताप सामान्य ताप से कुछ अधिक होता है।
  • शरीर में दर्द होना।
  • बेचैनी होना।
  • नींद न आना।
  • भूख न लगना।
  • मुँह का स्वाद बदल जाना।
  • सर में दर्द होना।
  • पसीना न होना या अत्यधिक होना।
  • शरीर में आलस्य का बने रहना आदि लक्षणों की प्राप्ति होती है।

जिसमे दिनचर्या की विसंगति महत्वपूर्ण स्थान रखती है। जिसके लिए आधुनिक जीवन की स्वस्थ दिनचर्या का पालन अनिवार्य है। ठीक इसी प्रकार बुखार के लिए बुखार की सबसे अच्छी दवा है। जिनको बुखार की सबसे अच्छी आयुर्वेदिक दवा भी कहा जाता है। प्लीहा या तिल्ली का बढ़ना होने पर भी बुखार देखा जाता है। जिनके इलाज के लिए ज्वरनाशक दवाओं का प्रयोग होता है। 

विषम ज्वर के लक्षण (Typhoid Fever Symptoms in Hindi)

सन्निपात ज्वर के विकराल रूप को ही आयुर्वेद में विषम ज्वर कहा गया है। आंग्ल भाषा में विषम ज्वर (typhoid in hindi) को ही टाइफाइड बुखार के नाम से जाना जाता है। जिसके पांच प्रभेदों का वर्णन किया गया है। जिनमे संतत, सतत, अन्येदयूषक, तृतीयक, चतुर्थक है। इस आधार पर इसमें सभी प्रकार के दोषो की विद्यमानता होती है। इसकारण इसके लक्षणों की बात की जाय तो इसमें सभी सभी प्रकार की विषमता देखने को प्राप्त होती है। आजकल तो पैथालॉजी का विकास हो जाने के कारण अनेको प्रकार के टेस्ट की उपलब्धता है। जिसके कारण किसी भी बुखार को आसानी से पहचाना जा सकता है। इसके लक्षण इस प्रकार है –

  • संतत विषम ज्वर – जो सात दिन से दस दिन तक एक सा बना रह सकता है।
  • सतत विषम ज्वर – यह केवल दिन में या केवल रात में भी आ सकता है।
  • तृतीयक विषम ज्वर – यह एक दिन के अंतर् पर भी आ सकता है।
  • चतुर्थक विषम ज्वर – यह दो दिन के अंतर् पर भी आ सकता है।
  • बुखार का वेग कभी कम होना और अधिक होना।
  • किसी भी समय बुखार का आ जाना।
  • मलेरिया जैसे लक्षणों को पैदा करना।
  • कभी ठंड लगकर बुखार आना और कभी बिना ठण्ड के ही बुखार आना।
  • इन सभी में गिलोय घनवटी भी प्रभावकारी है। जिसको गिलोय घनवटी कब खाना चाहिए कहते है। यह सभी लक्षण बुखार की सबसे अच्छी दवा का चुनाव करने में उपयोगी है।

वायरल फीवर के लक्षण (viral fever symptoms)

वायरस के दुष्प्रभाव के कारण ही वायरल फीवर की प्राप्ति होती है। जिसके कारण वायरस शरीर के जिस अंग को प्रभावित करता है। उसके अनुरूप ही लक्षणों की प्राप्ति होती है। जैसे जब यह आँखों को प्रभावित करता है, तो आँखों से सम्बंधित लक्षण मिलते है। जैसे आँखों का लाल हो जाना, आँखों से पानी गिरना, आँखों में चकाचौध होना ( चमकी बुखार ) आदि है। जब यह नाक को प्रभावित करता है तो सर्दी जुकाम जैसे लक्षणों को प्रकट करता है। जब यह गले को प्रभवित करता है तो गले में चुभन होना, आवाज न निकलना, आवाज का भारी होना आदि लक्षण प्रकट होते है।

जिसके कारण इसको पहचान पाना भी कठिन होता है। इसमें कभी कभी तेज बुखार (high fever temperature) भी पाया जाता है। यह रोगी की अवस्था और रोग की जीर्णता के ऊपर निर्भर करता है। अधिक समय से रोग ग्रस्त व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है। जिससे इन रोगियों में यह अधिक प्रभावी रूप से काम करता है। जिसके कारण यह कभी कभी जानलेवा भी हो सकता है। वाइरल बुखार की सबसे अच्छी दवा (bukhar ki sabse acchi dava) से पहले, इसके लक्षणों (viral fever symptoms in hindi) को जानना आवश्यक है। जो इस प्रकार है –

  • थकान महसूस होना
  • सर चकराना या सर दर्द होना
  • खांसी होना
  • जुकाम होना
  • साँस लेने में समस्या
  • गले में दर्द होना
  • आवाज का भारी होना
  • नाक से पानी गिरना
  • आँखों का लाल हो जाना
  • आँखों से पानी गिरना
  • अतिसार या पेचिस होना
  • ठंड लगना
  • जोड़ो व हड्डी में दर्द होना
  • त्वचा पर रूखापन होना या खुजली होना

अंदरूनी बुखार के लक्षण

सामान्य बुखार और अंदरूनी बुखार में ज्यादातर एक जैसे लक्षणों की प्राप्ति होती है। टीकाकरण के बाद बुखार को भी अंदरूनी बुखार माना जा सकता है। सामान्य रूप से जब मानव शरीर में वात, पित्त और कफ में न्यून आनुपातिक विषमता के परिणामस्वरूप ही अंदरूनी बुखार होता है। गर्भावस्था की दशा में भी अंदरूनी बुखार देखने को प्राप्त होता है। गर्भ धारण के बाद भी कम ताप का बुखार होता है।

जिसके उपचार के लिए गिलोय के काढ़े का, और बुखार की सबसे अच्छी आयुर्वेदिक दवा प्रयोग बहुत ही लाभकारी है। जिसके लिए यह आवश्यक है की गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये? इनके लिए ही बुखार की सबसे अच्छी दवा कौन सी है, जैसे भी प्रश्न होते है।

सामान्य बुखार को ही कम ताप का बुखार ( low fever ) के नाम से भी जाना जाता है। जिसको लोग अंदरूनी बुखार के नाम से जानते है। इसी को कुछ लोग हरारत होना भी कहते है। जिसके उपचार में बुखार की सबसे अच्छी आयुर्वेदिक दवा का भी उपयोग है। ज्वर निदान के लिए बुखार की सबसे अच्छी दवा कौन सी है, की बात भी होती है। जबकि अंदरूनी बुखार प्रायः सभी विकृतियों में पाया जाता है।

कोरोना वायरस में फीवर कैसा होता है (fever in corona)

मानव शरीर में वायरस संक्रमण के कारण होने वाला बुखार कम और ज्यादा दोनों प्रकार का हो सकता है। कोरोना में होने वाला बुखार (fever temperature in corona) बहुत ही तीव्र होता है। कोरोना को ही कोविड – 19 भी कहा जाता है। इस कारण कोविड में तेज बुखार ( high fever in covid) होता है। कोरोना में भी बुखार की सबसे अच्छी दवा (best medicine for fever) , ही इस विकट परिस्थिति से हमें बचा सकती है। इसकी आरम्भिक अवस्था में भी अंदरूनी बुखार पाया जाता है।
कोरोनावायरस बुखार के ताप (coronavirus fever temperature) की बात करे, तो 99 से लेकर 103 या इससे भी अधिक देखने को मिलता है। यह रोगी के संक्रमण की स्थिति और उसकी इम्युनिटी के ऊपर निर्भर करता है। सामान्य रूप से कम ताप के बुखार का उपचार घरेलू नुस्खों से ही भारत में किया जाता है। यह चाहे किसी भी कारण से क्यों न हो? जबकि कोविड के बुखार का ताप (covid fever temperature) 100 फारेनहाइट से अधिक ही पाया जाता है। जिसके कारण इसके उपचार में देरी नहीं करनी चाहिए। 

अधिक तापके कारण होने वाला बुखार शरीर के किसीभी अंगको प्रभावित कर सकता है। जिसके कारण किसी भी प्रकार की गंभीर समस्या हो सकती है। जिससे बचने के लिए जल्दी से जल्दी कुशल चिकित्सक से इलाज कराना चाहिए। जिससे समय रहते रोगीको अतिरिक्त क्षति होने से बचाया जा सके।

कोरोना बुखार की अवधि (Corona fever duration in Hindi) की बात करे, तो यह हर व्यक्ति में अलग अलग पाया जाता है। सामान्यतः 7 दिन से लेकर 15 दिन का होता है। संक्रमण अधिक होनेपर अधिक समय का भी हो सकता है। कोरोना बुखार का उपचार (Corona fever treatment in Hindi) भी आयुर्वेद में वर्णित तेज बुखार के आधारपर किया जाता है। जिसके विविध उपायों की चर्चा नीचे की जा रही है।

ज्वर निवारण ( उपचार ) (Fever Treatment in Hindi)

ज्वरके उपचारके लिए आयुर्वेद में अनेको प्रकारकी औषधियों का वर्णन किया गया है। जिसको आंग्ल भाषामें फीवर मेडिसिन (fever medicine) कहते है। जो बाजारों में बुखार टेबलेट (fever tablets) के रूप में उपलब्ध है। जिनमे कुछ एंटीबायोटिक्स (antibiotics) है। बुखार के उपचार में बुखार की सबसे अच्छी दवा कौन सी है, या किसके लिए कौन सी दवा उपयोगी हो सकती है। दोनों ही महत्व के है।

आयुर्वेद के अनुसार ज्वर निवारण के लिए रोगी से प्राप्त लक्षण के अनुसार उसकी देहप्रकृति को ध्यान में रखकर औषधि का चयन किया जाता है। जो रोगी के समग्र रोग को दूर करने में समर्थ होती है। जिसके कारण प्रत्येक रोगी के लिए विशेष औषधि की आवश्यकता होती है। जिसके लिए बहुत सूक्ष्म ज्ञान और अभ्यास की अपेक्षा होती है। इस आधार पर जब चिकित्सा की जाती है तो पूर्ण रोग शमन का मार्ग प्रशस्त होता है। चिकित्सा का अर्थ रोग का नाश करना है, न की रोगी का। सभी प्रकार के बुखार में प्रायः पाचन क्रिया में विसंगति देखने को प्राप्त होती है। जिसके लिए पाचन क्रिया कैसे सुधारे को समझने की आवश्यकता है।

सर्दी जुकाम, बुखार का घरेलू उपचार (Home Remedies For Fever in Hindi)

सर्दी जुकाम, बुखार का घरेलू उपचार

जब भी मौषम में परिवर्तन, स्थान में परिवर्तन जैसी अवस्थाए होती है, तो सर्दी जुकाम होता है। यह अनादि काल से होने वाली प्रक्रिया है। आयुर्वेदानुसार इसके कारण पर विचार करे तो शरीर में होने वाले त्रिदोष में विषमता के कारण ऐसा होता है। सम्पूर्ण चिकित्सा में सभी रोगो के जनन का मूल भी इसी सिद्धांत को स्वीकार किया गया है। इनको बुखार का उपचार घरेलू के नाम से भी जाना जाता है। कभी कभी सर्दी आदि के कारण भी बुखार की समस्या हो सकती है। जिसके लिए कब्ज का रामबाण इलाज की आवश्यकता पड़ती है। 

अब बात करते है बुखार का घरेलू उपचार (bukhar ke gharelu nuskhe) की, तो इसके लिए अनेको उपाय है। आमतौर पर सर्दी और जुकाम में भी बुखार पाया जाता है। इस कारण सर्दी जुकाम और बुखार की सामान्य दवा के रूप में अनेको प्रकारके काढ़े प्रयोग किया जाता है। जिन्हे हम ज्वर नाशक काढ़ा भी कहते है। भारत में सदियों से सामान्य जुकाम बुखार के लिए सेंधा नमक को पानी में उबाल कर प्रयोग किया जाता है। यह सामान्य सा दिखने वाला असामान्य प्रयोग है। जो किसी भी अवस्था में किसी भी रोगी के साथ किया जा सकता है।

यहाँ पर ध्यान रखने वाली बात यह है कि घरेलू नुस्खे या उपचार भी आयुर्वेदीय उपचार ही है। इनका नाम घरेलू इसलिए कहा जाता है क्योकि यह हमारे घर की रसोई का हिस्सा है। जिससे इन्हे ढूढ़ने में किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं होती। दूसरी बात इनको नियमित रूपसे मसाले आदि में प्रयोग किया ही जाता है। जिसके कारण इनका कोई दुष्प्रभाव होने की आशंका नहीं होती। जिसके कारण इनका प्रयोग और उपयोग सदैव से पूरे भारतवर्ष में घर घर किया जाता रहा है। अंदरूनी बुखार भी एक प्रकार का बुखार ही है। इसी को कम ताप का ज्वर भी कहा जाता है।

ज्वर या बुखार की सबसे अच्छी दवा कौन सी है (Best Medicine For Fever in Hindi)

बुखार की सबसे अच्छी दवा क्या है? यह चिकित्सा जगत में आज भी एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों में ज्वरोपचार के लिए अलग अलग विधियों का प्रयोग किया जाता है। कोई भी चिकित्सा कितने ही अच्छी क्यों न हो जब तक उसका लाभ जनसामान्य तक न पहुंचे तब अधूरी ही मानी जाती है। जब लोगो के द्वारा उसकी उपयोगिता सिद्ध होगी। तभी तो लोग उसका प्रयोग करेंगे। गिलोय के फायदे को ध्यान में रखकर ही, गिलोय को बुखार की सबसे अच्छी आयुर्वेदिक दवा माना गया है। जबकि बुखार की सबसे अच्छी दवा कौन सी है, का चयन अनेक परिपेक्ष्यों का ध्यान रखकर ही किया जाता है।

एलोपैथी में किसी भी दवा के साथ कुछ ऐसी दवाइयों का प्रयोग किया जाता है। जो उसके साथ उत्प्रेरक का काम करे। ताकि दवा शीघ्रता से अपना प्रभाव प्रदर्शित करे। जिसको एंटीबायोटिक्स के नाम से जाना जाता है। बुखार को कम करने के लिए बुखार की एंटीबायोटिक्स (antibiotics for fever) का प्रयोग होता है। जिनमे acetaminophen or ibuprofen का प्रयोग जरुरत पड़ने पर किया जा सकता है। जिनको एलोपैथी में बुखार की सबसे अच्छी दवा माना जाता है। बुखार के प्रभाव (application for fever) के रूप में अनेको प्रकार की दवाइया है। जुकाम, बुखार की अंग्रेजी दवा के रूप में भी इनका प्रयोग होता है।

यदि रोगी के परिपेक्ष्य से विचार करे तो बुखार की सबसे अच्छी दवा वही है। जिससे वह जल्दी से जल्दी रोग मुक्त हो जाए। जो हानिरहित हो। बाद में भी किसी प्रकार का विकार उत्पन्न न करे। फिर चाहे वह किसी भी पद्धति की क्यों न हो? इसके आधार पर ही हम किसी भी दवा की उपयोगिता को व्यवहारिक धरातल पर ख्यापित कर सकते है। यदि इसमें आर्थिक दृष्टिकोण को भी जोड़ दिया जाय, तो सभी तक इसकी पहुंच आसानी से सुलभ हो सकती है।

बुखार की सबसे अच्छी आयुर्वेदिक दवा (Ayurvedik Best Medicine For Fever in Hindi)

आयुर्वेद में अलग अलग प्रकार के बुखार शमन करने के लिए औषधियों का वर्णन किया गया है। जिनमे से कुछ सरल प्रयोगो को यहाँ पर रखा जा रहा है। जिसमे गिलोय सेवन विधि का वरण है। जो इस प्रकार है –

  • सहदेइया की जड़ को मस्तक पर बांधने से ज्वर को नष्ट कर देती है।
  • गिलोय, धनिया, नीम की छाल, लाल चन्दन तथा पद्याख का क्वाथ सब प्रकार के ज्वरो को शांत करता है। इसके साथ ही डाह, हल्लास, तृष्णा, छर्दि और अरुचि को दूर करता है।
  • बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी, सोंठ, धनिया और देवदारु का क्वाथ पीने से सब प्रकार के ज्वर शांत हो जाते है।
  • अजवाइन, पीपल, अडूसा और कुंडा की छाल का क्वाथ पीने से सब प्रकार के ज्वर शांत हो जाते है।
  • गिलोय का क्वाथ पीपल का चूर्ण मिलाकर पीने से जीर्ण ज्वर नष्ट हो जाता है।
  • विषम ज्वर का उपचार (typhoid fever treatment):  नागरमोथा, छोटी कटेरी, गिलोय, सोंठ और आंवला का क्वाथ मधु और पीपल का चूर्ण मिलाकर पीने से विषम ज्वर नष्ट हो जाता है। यह टाइफाइड की सबसे अच्छी दवा है।

उपरोक्त आयुर्वेदिक औषधियों का आलंबन लेकर हम किसी भी ज्वर से आसानी से बच सकते है। किसी भी दवा या औषधी का प्रयोग करने से पूर्व विषय विशेषज्ञ की सलाह लेना आवश्यक है। ऊपर जो योग या उपाय बताए गए है। यह सब के सब बुखार के श्रेष्ठ योग है। गिलोय बुखार की सबसे अच्छी आयुर्वेदिक दवा है। इसप्रकार बुखार की सबसे अच्छी दवा कौन सी है, का चुनाव विभिन्न पहलुओ को ध्यान में रखकर किया जा सकता है। जिनका उपयोग हम आसानी से कर सकते है। और अपने और अपनों का जीवन चिर काल तक स्वस्थ रख सकते है।

बुखार की सबसे अच्छी दवा होम्योपैथिक (Homoeopathic Medicine For Fever in Hindi)

अन्य चिकित्सा पद्धतियों की तरह ही होम्योपैथी में भी बुखार की अनेको दवाएँ है। जिनसे सभी प्रकार के बुखार का इलाज किया जाता है। जिनमे मौसमी बुखार, डेंगू बुखार, टाइफाइड इत्यादी है। अतितीव्र ज्वर के कारण बुखार दिमाग ( मस्तिष्क ) तक पहुंच जाता है। जिसे दिमागी बुखार के नाम से जाना जाता है। होम्योपैथी में इनको ही दिमागी बुखार की होम्योपैथिक दवा कहते है। इसमें और बुखार की आयुर्वेदिक दवा अंतर केवल चयनित सिद्धांत का है।

होम्योपैथिक जगत में बुखार की अनेको दवाइया है। जैसे – एकोनाइट, बेलाडोना, डल्कामारा, ब्रायोनिया, एण्टियम क्रूड, एण्टियम टार्ट, पल्साटिला, लाइकोपोडियम, अर्निका, कैल्केरिया कार्ब, सल्फर, स्पोंजिया, काली आयोड, आयोडम, नैट्रम कार्ब आदि है। 

बुखार की सबसे अच्छी दवा अंग्रेजी ( bukhar ki dawa ka naam )

आमतौर पर fever medicine name पैरासीटामोल (paracetamol), कॉपोल (calpol) का प्रयोग बुखारके उपचारमें किया जाता है। इसी कारण दवोपचारपद्धति में, बुखार की दवा का नाम (bukhar ki dawa ka name) कहा जाता है। 

बुखार की अन्य टेबलेट वाली दवाओंके नाम (fever tablet name) के रूपमें आइबूप्रोफेन (ibuprofen) का प्रयोग किया जाता है। जिसे हम बुखार की टेबलेट (bukhar ki tablet) भी कहते है। जिनका प्रयोग बुखार के इलाज के रूपमें किया जाता है। इनमे से कुछ ऐसी दवाई है, जो अनेको प्रकारके विपरीत लक्षणों को भी उत्पन्न करती है। जिससे बचावके लिए किसी योग्य चिकित्सक आदि से परामर्श लेकर ही प्रयोग करना चाहिए।

FAQ

बिना दवा के बुखार कैसे ठीक करें?

उपयुक्त आहार – विहार, दिनचर्या, ऋतुचर्या आदि का विधिवत पालन करने से वात, पित्त और कफ सम हो जाते है। जिससे बुखार ठीक हो जाता है। हालाकिं इसमें औषधि से अधिक समय लग सकता है। 

बार बार बुखार आने का क्या कारण है?

इसके दो कारण हो सकते है। पहला ऋतु परिवर्तन, विसंगति युक्त आहार, दिनचर्या आदि के कारण। दूसरा रोग की पूर्ण निवृत्ति न होने पर। जिसको रोग का शेष रहना भी कह सकते है। यह समस्या अधिक समय से उखाड़ होने के स्थिति में अक्सर देखी जाती है। 

वायरल फीवर होने पर क्या करें?

ज्यादातर वायरस ( विषाणु ) के संक्रमण होने पर वायरल फीवर होता है। जिसके लिए गिलोय के काढ़े का प्रयोग सर्वोत्तम है।

बुखार क्यों होता है?

किसी भी अस्वाभाविक गतिविधि के कारण वात, पित्त और कफ दोषो में असंतुलन के परिणाम के रूप में बुखार होता है।

37 thoughts on “बुखार की सबसे अच्छी दवा कौन सी है : Best Medicine For Fever in Hindi”

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