आयुर्वेद में दिनचर्या को कायिक रोगो के जनन कारको में से एक माना गया है। जिसके कारण स्वस्थ जीवन शैली दिनचर्या का पालन स्वास्थ्य प्राप्ति में हेतु है। अनादि काल से स्वस्थ और सुखी जीवन की कामना सभी जीव करते है। जिससे स्वस्थ जीवन का महत्व ख्यापित होता है। जबकि आधुनिक समय में दिनचर्या में विसंगति के अनेक कारण है। जिनमे बिजली आदि के कारण महायंत्रों का प्रचुर आविष्कार और प्रयोग भी है। इसकारण आधुनिक जीवन की स्वस्थ दिनचर्या का ज्ञान और विधिवत परिपालन आवश्यक है। जिसमे आहार परिभाषा भी सम्मिलित है। इनको ही आयुर्वेदज्ञों ने दिनचर्या के नियम कहा है।
आज के युग को महायन्त्रिक युग कहा जाता है। जिसमे कार्यो का सम्पादन यंत्रो से न करके महायंत्रों से किया जाता है। जिससे समय की बचत होती है। संपत्ति ( धन ) की बचत की बचत होती है। सहयोगी की बचत होती है और लाभ अधिक होता है। एक वाक्य में कहे तो कम लागत में धनार्जन अधिक होता है। जो आधुनिक युग की मांग है। परन्तु बिना स्वास्थ्य के महायंत्रों और धनादि का उपभोक्ता कौन होगा? धन तो स्वयं खर्च होगा नहीं। इसका उपयोग करने वाला कोई न कोई होना चाहिए न। ठीक यही सिद्धांत महायंत्रों को लेकर भी क्रियान्वित है। जो फैटी लीवर आदि के हेतु है।
कोई भी उपाय कितना ही उपयोगी क्यों न हो? उपभोक्ता के अभाव में उसके सभी प्रायोजन निष्प्रयोजन ही सिद्ध है। जिसे दर्शन, विज्ञान और व्यवहार तीनो ही धरातल पर समझना होगा। तदुपरांत उसमे सन्निहित भावो का यथा योग्य समादर भी करना होगा। तभी वह हमारे लिए उपयोगी होगी। ऐसा कौन सा जीव है। जिसे अपना सुख नहीं सुहाता। अर्थात सभी को अपना अपना सुख प्रिय है। फिर भी वह उससे दूर या वंचित क्यों है ? किसके कारण ? अज्ञानता, अविवेक, विषय लम्पटता आदि के कारण। जिसको दूर ( शून्य ) करने पर ही सभी प्रकार की समस्याओ से छुटकारा पाया जा सकता है।
दिनचर्या क्या है इसका महत्व?
प्रायः दिनचर्या का अर्थ लोगो द्वारा दिनमें किया जाने वाला कार्य समझा जाता है। जिसको आमतौर पर सूर्य की उपस्थिति में सम्पादित कार्यके रूपमें भी देखा जाता है। जिनको स्वस्थ रहनेके नियमभी कहा जाता है। जिसको आधुनिक जीवन की स्वस्थ दिनचर्या भी समझा जाता है। जिसमे अनेको प्रकारकी क्रियाए है। जिसको जीवन शैली के नाम से भी जाना जाता है। जिसके महत्वको जीवन शैली का महत्व कहते है। जो स्वस्थ और सुखी जीवन का आधार है। सरल भाषामें जीवनशैली का मतलब दिन और रात्रिमें जीवो द्वारा किया जाने वाला कर्म है।
चिकित्सा शास्त्रमें दिनचर्याको मानव स्वास्थ्य का संरक्षक माना गया है। जिसमे कालानुसार विधि – निषेधका पालन करते हुए शारीरिक कर्मो के सम्पादनकी बातकही गई है। जो स्वस्थ जीवन का महत्व ख्यापित करता है। जिसका अनुकरण सृष्टिमें रहने वाला प्रत्येक जीव – जंतु करते है। यह सभी सिद्धांत अनादि कालसे प्रकृतिमें सन्निहित है। जिसको प्रकृति का अनुगत सिद्धांत कहते है। जिसका निर्माण सृष्टि निर्माता ( ईश्वर ) के द्वारा होता है। जिसपर पूर्ण नियंत्रणभी उसी का होता है। जिसका निगमन ईश्वर अपनी दूती प्रकृतिके माध्यमसे करते है। जिसको इनकी शक्ति या माया कहते है। निरालम्बोपनिषद का उद्घोष है – ” ब्रह्मशक्तिः रेवा प्रकृतिः ”
स्वस्थ जीवनका महत्व समझकर ही स्वस्थ जीवन शैली दिनचर्या निर्धारित है। जिसका वर्णन आयुर्वेदादी शास्त्रोंके माध्यमसे किया गया है। जिसमे जीवन शैली परिभाषा और आहार परिभाषा दोनोंपर प्रकाश डाला गया है। जिसका उपभोग संहिताओं में वर्णित सिद्धांतानुसार करने पर ही सार्थक है। जिसका उल्लेख भगवत कृपा से इस पुस्तक में किया गया है। जो न केवल हमें रोगो से मुक्त करेगी बल्कि चिरआयु भी प्रदान करेगी। आजसे शताब्दियों पूर्व सामान्य व्यक्ति का जीवन भी शतायु हुआ करता था। आयुर्वेद के प्रसिद्द आचार्य शारंगधर ने तो सामान्य व्यक्ति की आयु 120 वर्ष मानी है। जिसमे इन्होने बुखार की सबसे अच्छी दवा का भी उल्लेख किया है।
आहार और भोजन का आधुनिक जीवन की स्वस्थ दिनचर्या में महत्व
आजके समयमें प्रायः आहार को भोजन समझा जाता है। आंग्ल भाषामें आहार और भोजन को diet लिखा और पढ़ा जाता है। जिसके कारणभी इसप्रकार की संदेहास्पद बाते आती है। जो भ्रम पैदा करती है। जिससे विसंगतियों का जन्म होता है। जिसके कारण हम रोगके शिकार हो जाते है और रोगी कहलाते है। आयुर्वेदके अनुसार कायिक और आघातजन्य नामक दो प्रकारके रोग होते है। जिसमे सभी प्रकारके रोगो का समावेश हो जाता है। कायिक रोगोमें आहार का विशेष योगदान होता है। इसके साथही भोजन का ऊर्जा के रूप में महत्व ख्यापित होता है। इनके समुचित योगदान से ही समस्त शारीरिक क्रियाए होती है।
आयुष वर्धन के समस्त उपायोंको आयुर्वे ने अपने अंदर समाहित किया है। जिसमे आहार, भोजन, दिनचर्या, औषधि आदिकी विस्तृत विवेचना भी की गई है। जिसमे आहार के सिद्धांत, आहार का अर्थ क्या है? आहार की परिभाषा और संतुलित आहार की परिभाषा दोनों का यथावत वर्णन किया गया है। आहार कितने प्रकार के होते हैं? भोजन के पोषक तत्व कौन-कौन से हैं? आहार चिकित्सा क्या है? आहार एवं पोषण के साथ साथ भोजनका विधान भी किया गया है। जिसमे स्वस्थ जीवनशैली में आहार और भोजनकी भूमिका महत्वपूर्ण बतायी गई है। इसप्रकार दोनों स्वस्थ जीवन का महत्व बताते है।
जब बात आधुनिक जीवन की स्वस्थ दिनचर्या की होती है। तो उसमेभी भोजन और आहारका योगदान निहित है। सामान्यतया भूखकी निवृत्ति करानेवाले भोज्य पदार्थोको भोजन कहा जाता है। समग्र शरीरके पोषणमें उपयुक्त सामाग्रियोको आहार कहा जाता है। जैसे शास्त्र, जल, प्रजाजन, देश, समय, कर्म, जन्म, ध्यान, मंत्र और संस्कार। इनको सनातन शास्त्रोंमें आहार कहा गया है। जबकि शाक – पात, फल, सब्जियों आदिको भोजनकी श्रेणीमें रखा गया है। स्वस्थ और सुखी जीवन में आहार परिभाषा और भोजन परिभाषामें विभेद अनिवार्य है। स्वस्थ जीवन शैली दिनचर्या में इनका योगदान है। ठीक उसी प्रकार जैसे गिलोय के फायदे है ज्वरनाश में।
शरीर को स्वस्थ रखने के लिए क्या करना चाहिए?
आमतौर पर स्वस्थ जीवनके लिए व्यायाम आदि की बात होती है। जिनको दिनचर्या के नियम भी कहते है। जबकि सनातन शास्त्रोंमें इसका विस्तारसे उल्लेख किया गया है। जबकि आयुर्वेदमें आठ प्रकारकी चिकित्साका विधान किया गया है। जिसमे काय, शल्य, शालाक्य, भूतविद्या, कौमारभृत्य, अगदतंत्र, रसायनतंत्र, वाजीकरणतंत्र नामक चिकित्सा है। इनमे शल्य चिकित्सा प्रधान ग्रन्थ सुश्रुत संहिता है। जिसमें रोगको इस प्रकार परिभाषित किया गया है। तददुःखसंयोगा व्याधय उच्यन्ते ||सुश्रुत संहिता 1.32 जिनके संयोग से पुरुष ( मनुष्य ) को दुःख होता है, उसे रोग कहते है। जिसके अनुसार दुःखमुक्त रहना ही शरीर को स्वस्थ रखना है।
श्रीमद्भागवतगीता के 14.24 में ” स्वस्थः ” शब्दका प्रयोग हुआ है। इसमें व्याधि, आधि और अविद्या शून्य जीवको स्वस्थ कहा गया है। शास्त्रोंमें तीन प्रकारके शरीरकी चर्चाकी गई है। जिसमे स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर है। स्थूल शरीरमें होने वाले रोगको व्याधि कहते है। सूक्ष्म शरीरमें होने वाले रोगको आधि ( मनोविकार ) कहते है। जबकि कारण शरीरमें होने वाले रोगको अविद्या कहते है। इन तीन प्रकारके रोगोसे मुक्त व्यक्तिको गीताके अनुसार स्वस्थ माना गया है। शरीरको पूर्ण स्वस्थ रखनेके लिए तीनो दोषोसे बचनेकी आवश्यकता है। जैसे बुखारसे बचनेके लिए गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये को जानना महत्व का है।
स्वस्थ रहनेके लिए कायचिकित्सा में इसके उपायोंकी बात कही गई है। जिसमे देहप्रकृति के अनुकूल आहार – विहार, दिनचर्या, ऋतुचर्या आदि के वधिवत पालन करनेकी बात कही गई है। जो स्वस्थ और सुखी जीवन के लिए अनिवार्य है। स्वस्थ जीवन शैली का महत्व दिनचर्या आदिके कारण है। जिसके आधारपर आधुनिक जीवन की स्वस्थ दिनचर्या बतायी गई है। जिसमे मूल दिनचर्या का उल्लेख भाव प्रकाश आदि के माध्यमसे पूर्वसे ही हमें ज्ञात है। जिसको देश, काल और परिस्थिति में ढाला गया है। जिसको स्वस्थ जीवन शैली दिनचर्या कहा जा सकता है। जिसमे स्वस्थ जीवन का महत्व भारतीय जीवनशैली द्वारा प्रस्तुत किया गया है।
आज के समय में दिनचर्या पालन की आवश्यकता
आजके समयमें लोग स्वयंको आधुनिक कहनेलगे है। किसके कारण? ऐसा क्याहै जो आधुनिक है? पुरातन कालसे लेकर अब तक क्या परिवर्तन हुआ कि हम आधुनिक हो गए। इसका उत्तर मनुस्मृति 11.63 ” महायंत्रप्रवर्तनम ” है। महायंत्रोंके आविष्कार और प्रयुक्ता होनेके कारण। जबकि अन्य परिपेक्ष्यमें कही कुछभी नहीं बदला। यदि दिनचर्या पहले स्वास्थ्य का द्योतक था तो आज भी है। यदि दृढ़ता से दिनचर्या पालन का फल स्वास्थ्य था तो उसका फल आज भी वही है। जबकि आजके समयमें इसके विपरीत देखने और सुनने को प्राप्त हो रहा है।
महायंत्रों को लेकर भ्रम फैलाया जाता है कि महायंत्र सब कुछ करनेमें सक्षम है। यदि ऐसा है तो आज सभी इसके प्रयोक्ता है और सभी बीमार है। परिश्रमसे मुँह मोड़नेके विकल्पके रूपमें इनका आविष्कार और प्रयोग होता है। जबकि वास्तवमें यह हमारे स्वास्थ्यके लिए अपहारक है। जिनके कारण अनेको प्रकारकी वस्तुओके विलोपका मार्गभी प्रसस्त हो रहा है। जिनमे हमारा स्वास्थ्य भी है। बिना स्वास्थ्यके हमारा अस्तित्व और आदर्श भी दांवपर लगा है। उसी प्रकार जैसे कोरोना वायरस के बारे में बताइए जाने बिना। आज रसोई बनाने से रोगोपचार तक महायंत्रों काही प्रयोग होता है। जिसकी विद्यमानताके कारण आज अनेको प्रकारकी नवीन समस्याए जन्मले रही है।
इसकारण आजभी आयुर्वेदादी शास्त्र सम्मत चिर, परीक्षित और प्रयुक्त सिद्धांतोको अपनानेकी आवश्यकता है। यदि पूर्वकालो में स्वस्थ रहने के लिए दिनचर्या का पालन अनिवार्य था तो क्यों नहीं? आज ही नहीं इसके पालन कि आवश्यकता भविष्य में भी जो के त्यों रहने वाली है। जिसका कारण बिना दिनचर्या के स्वास्थ्य की कल्पना अपूर्ण है। जिसको स्वस्थ जीवन शैली के नियम के रूप में देखा जाना चाहिए। आजीवन स्वस्थ रहनेके लिए दिनचर्या पालन अनिवार्य है। जिसकी चर्चा आधुनिक जीवन की स्वस्थ दिनचर्या नामक पुस्तकमें की गई है। जो स्वस्थ और सुखी जीवन का महत्वपूर्ण घटक है। यह आधुनिक जीवन शैली और स्वास्थ्यके लिए भी अनिवार्य है।
सही दिनचर्या क्या होनी चाहिए?
दिनचर्या पालन में यह प्रश्न महत्व का है। जो सभी के लिए हितकारक है। जिसका मूल सभी के द्वारा स्वास्थ्य कि कामना करना है। जिसमे अनेको प्रकार के भ्रम और प्रमाद है। प्रमाद शून्य जीवन ही अपने और अन्यो के हित में प्रयुक्त है। जिसको सामान्य भाषा में शास्त्रों के अनुरूप चलना कहा जाता है। शास्त्रों के अविरुद्ध और अनुकूल दिनचर्या ही शास्त्र सम्मत फल प्रदायक है न की इसके विपरीत। आज जहा कही जो कुछ नियम या सिद्धांत है। उनका मूल स्रोत सनातन शास्त्र है। जिसका गुणगान करते गुनिया नहीं अघाती। जैसे ऋगादि वेद है। जिससे आयुर्वेद आदि का प्रादुर्भाव हुआ।
मूल सिद्धांत में बदलाव संभव नहीं। आवश्यकता है तो देश, काल और परिस्थिति के अनुकूल आधुनिक परिपेक्ष्य में ढालने की। जब बात दिनचर्या को ढालने की हो तो उसे ही आधुनिक जीवन की स्वस्थ दिनचर्या कह सकते है। जो अपने आप में कोई नवीन कल्पना नहीं है। मूल सिद्धांतो के भाव में परिवर्तन किये बिना दिनचर्या के नियम को निर्धारित करना। जिसमे आधुनिक जीवन शैली का अर्थ परिभाषित है। जो स्वस्थ और सुखी जीवन की आधारशिला है। जिसको स्वस्थ जीवन का महत्व या स्वस्थ जीवन शैली दिनचर्या कहते है।
आज आधुनिक जीवन-शैली एवं बढ़ती स्वास्थ्य समस्या को लेकर प्रश्न किये जाते है। जैसे अच्छे स्वास्थ्य का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? स्वास्थ्य सकारात्मक जीवन शैली के महत्व का वर्णन कीजिए। आधुनिक जीवन शैली और स्वास्थ्य पर निबंध एवं आहार की परिभाषा लिखिए आदि। इन सभी पर दृष्टि डाले तो स्वास्थ्य शब्द को मूल में रखकर विचार किया गया है। ठीक उसी प्रकार जैसे गिलोय घनवटी कब खाना चाहिए का विचार है।
स्वास्थ्य रक्षण में आधुनिक जीवन की स्वस्थ दिनचर्या
यहाँ स्वास्थ्य रक्षणसे तात्पर्य कायिक रोगोसे बचाव है। जिससे बचनेके लिए चिकित्सा शास्त्रोंमें उपाय बताए गए है। जिसमे आहार, दिनचर्या, ऋतुचर्या आदि का विधान किया गया है। जिसका विधिवत पालन व्यक्ति को स्वस्थ रहनेके लिए आवश्यक है। जब आधुनिक परिपेक्ष्यमें दिनचर्याको सुनिश्चित करने की बात आती है। तब उसको आधुनिक जीवन की स्वस्थ दिनचर्या का नाम दिया जाता है। जिसको स्वस्थ जीवन शैली दिनचर्या या दिनचर्या के नियम कहते है। जो स्वस्थ और सुखी जीवन की कुंजी है। जिसके बिना स्वास्थ्य तो एक कोरी कल्पना मात्र है।
दिनचर्याके द्वारा जीवोका जीवन नियोजित विधाका अनुगमन करता है। जिसके फलके रूपमें स्वास्थ्यकी प्राप्ति होती है। स्वास्थ्यसे सुखकी प्राप्ति होती है। ऐसा कौन है जो सुख नहीं चाहता। सनातन शास्त्रोंमें धर्मके तीन फल बताये गए है। सिद्धी, सुख और पराम गति या परम गति ( मोक्ष )। जिसमे आयुर्वेदके अनुसार धर्मके पालनसे अभिप्राय दिनचर्या आदिका पालन है। जिससे प्राप्त होने वाला फल सुखद स्वास्थ्य है। जिसमे सभीकी प्रीती प्रवृत्ति होती है। आयुर्वेदानुसार इसको प्राप्त करनेकी एकमात्र विधा है। इनका विधिवत अनुपालन। ऐसा न होने पर स्वास्थ्य की प्राप्ति संभव नहीं। यदि किसी कारणवश हो भी गयी तो वह क्षणिक है। जिसको स्वास्थाभाष अर्थात स्वास्थ्य का आभाष मात्र कहा जा सकता है।
बिना स्वास्थ्यके स्वस्थ जीवन का महत्व हो ही नहीं सकता। जिसके कारण इनका उपयोग चिर काल तक स्वास्थ्य रक्षणमें उपयुक्त है। सभी प्रकारके अनेकानेक उपायोंका अपने जीवनमें प्रयोग करनेसे भी शरीर दुर्बल होता है। जिसका दुष्प्रभाव हमें अपने जीवनमें कही न कही झेलना ही पड़ता है। जिसके कारण भी दिनचर्या आदि के माध्यम से हम अपने स्वास्थ्य को स्थिर रख सकते है। बल्कि खोये हुए स्वास्थ्य को पुनः प्राप्त किया जा सकता है। स्वास्थ्य का जो स्वरूप गीता आदि में बताया गया। उसकी प्राप्ति आधुनिक विधा में कोटी कोटी यांत्रिक, मांत्रिक और तांत्रिक उपायों का आलंबन लेकरभी संभव नहीं।
शरीरिक स्वास्थ्य के लिए आधुनिक जीवन की स्वस्थ दिनचर्या
आज की जितनी विधाए है। सभी शारीरिक स्वास्थ्य को ही स्वास्थ्य स्वीकार करती है। जिसमे सभी प्रकार के रोगो को सम्मिलित किया गया है। जैसे ह्रदय रोग, किडनी रोग, मूत्र रोग, नेत्र रोग, मधुमेह, कैंसर आदि है। जिसके उपचार के लिए अत्याधुनिक विधा का उपयोग किया जाता है। जिसमे रोग का उपचार किया जाता है। जबकि आयुर्वेदादि में रोग के कारण को मूल में रखकर विचार करते है। और रोग के कारण का आपनोदन करने का यथा संभव प्रयास करते है। जिससे रोग स्वतः ही तिरोहित हो जाता है। जिसके परिणाम के रूप में स्वस्थ और सुखी जीवन प्राप्त होता है।
जबकि सनातन चिकित्सा पद्धति में रोग और दोष पर सामान दृष्टि रखी जाती है। जिसके कारण रोग के कारण और दोष के कारण पर गहनता से विचार करते है। जिसको निर्मूल कर रोग का उपचार औषधि आदि के माध्यम से करते है। जिसके परिणाम स्वरूप रोगी के अंदर तेजी से सुधार देखने को मिलता है। जिसमे दिनचर्या के नियम महत्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत करता है। दिनचर्या की उपयोगिता सभी के जीवन में अनिवार्य है। इसलिए आधुनिक जीवन की स्वस्थ दिनचर्या को स्वस्थ जीवन शैली दिनचर्या भी कहा जा सकता है।
आज ब्लड प्रेशर blood pressure की समस्या भी बहुतायत में देखी जा रही है। जिसको उच्च रक्तचाप और निम्न रक्तचाप नामक दो विभागों में विभाजित किया जा सकता है। जिसको हाई ब्लड प्रेशर (high blood pressure) और low blood pressure भी कहते है। इन सभी रोगो के न रहने पर ही स्वस्थ जीवन का महत्व है। जिसमे गिलोय सेवन विधि भी है।
मानसिक स्वास्थ्य के लिए जीवन की स्वस्थ दिनचर्या
आमतौर पर एक बात कही जाती है। वह यह कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। जिसको लेकर लोग अनेको प्रकार के प्रश्न करते है। जैसे मानसिक विकास के लिए शारीरिक स्वास्थ्य क्यों आवश्यक है? मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक स्वास्थ्य का आपस में क्या सम्बन्ध है? स्वस्थ और सुखी जीवन के लिए मानसिक स्वास्थ्य क्यों आवश्यक है? मानसिक स्वास्थ्य में आधुनिक जीवन की स्वस्थ दिनचर्या का महत्व आदि।
मानव शरीर रचना क्रिया विज्ञानके अनुसार शरीर अंगो, उपांगो आदि का समूह है। जिसके आधारपर मस्तिष्क भी एक अंग है और हृदयादि भी एकअंग ही है। जिसकी अनुकूल क्रियाशीलता के लिए इनका स्वस्थ रहना अनिवार्य है। इसको और गहराईमें जाकर विचार करे तो अनेको बाते निकलकर आती है। जिसमे से सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह निकलकर आती है। वह यह कि शरीरके किसी अंग विशेषके स्वस्थ्य रहने को ही स्वास्थ्य नहीं माना जा सकता। स्वास्थ्यके लिए शरीरके सभी अंगोका स्वयंमें स्वस्थ रहना, इसके साथही सभी अंगोका आपसमें अनुकूल सम्बन्ध होनेके कारण सामंजस्य होनाभी आवश्यक है। जैसे पाचन क्रिया कैसे सुधारे में होता है।
जब तक शारीरिक रूपसे यह नहीं हो जाता। तब तक किसीको शारीरिक रूपसे स्वस्थ नहीं कहा जा सकता। मस्तिष्क का गुप्त रूप से पूरे शरीर पर नियंत्रण होता है। जिसके कारण यह शरीर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है। जबकि महत्व तो शरीर में सभी अंगो का है। जबकि मष्तिस्क का सूचना विनिमय आदि के द्वारा विशेष महत्व भी है। जिसकी अनिवार्यता अन्य अंगो की तुलना में अधिक है। जिसके कारण मानसिक स्वास्थ्य की आपूर्ति के लिए शारीरिक स्वास्थ्य का होना आवश्यक है। जिसके लिए स्वस्थ जीवन शैली दिनचर्या का अनुगमन करना भी अनिवार्य है। स्वस्थ जीवन का महत्व दिनचर्या के नियम के बिना अधूरा है।
आहारचर्या और आधुनिक जीवन की स्वस्थ दिनचर्या
कोरोना या COVID-19 में जब सभी उपायों ने हाथ खड़ा कर लिया, तो आहारचर्या और दिनचर्या ही इससे बचने का एकमात्र उपाय बचा। जिसने इसका विधिवत पालन किया वह इस रोग से न केवल सुरक्षित रहा, बल्कि आज भी स्वस्थ्य है। जिसके कारण इन उपायों की अजेयता पुनः सिद्ध हुई। इस कारण आयुर्वेद पर आस्था और निष्ठा रखने वालो का आत्मविश्वास भी बढ़ा। जिससे आयुर्वेद चिकित्सा को एक बार फिर से बल मिला है।
जिस प्रकार यह कोरोनावाइरस जैसे महामारी में अजेय साबित हुआ। वैसे ही यह brain stroke, skin diseases, heart disease, kidney disease में भी उपयोगी है। यह रोग के कारण ( causes of diseases ) की बात करे तो उसमे भी यह महत्वपूर्ण भूमिका में है। जिसके कारण जीवन की स्वस्थ दिनचर्या क्या हो सकती है। पर विचार करना भी जरूरी है। हर व्यक्ति स्वस्थ और सुखी जीवन चाहता है। परन्तु आलस्य और प्रमाद के कारण दिनचर्या के नियम का पालन नहीं करता। जिससे उसकी जीवन शैली तो प्रभावित होती ही है। साथ ही साथ अन्यो के जीवन पर भी इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है।
जिसके कारण त्वचा, आंत, फेफड़ो आदि से सम्बंधित बीमारिया जन्म लेती है। जो स्वस्थ जीवन का महत्व को धूमिल करती है। जबकि स्वास्थ्य को सुरक्षित करने के लिए आदर्श दिनचर्या की आवश्यकता होती है। जिसको स्वस्थ जीवन शैली दिनचर्या के साथ जोड़ा जाता है। जबकि आयुर्वेद आदि में दिनचर्या को ( dincharya in hindi ) बीमारी से बचने का मुख्य उपाय बताया गया है।
आधुनिक जीवन की स्वस्थ दिनचर्या के लाभ
स्वस्थ जीवन शैली के लाभ अनेको है। जिसमे स्वास्थ्य संरक्षण मुख्य है। जिसमे सभी प्रकार के रोग और दोष का प्रमुख कारण भी है। जो पेट, आमाशय से सम्बंधित रोगो को जन्म देते है। आज हमें जितने रोग दिखाई पड़ रहे है। सभी आधुनिक जीवन शैली के कारण जिसमे दिनचर्या आदि को कोई महत्व नहीं दिया गया है। जिसके कारण रक्तविकार, liver disease आदि देखने में आते है। जिनसे मुक्ति पाने का एकमात्र उपाय आयुर्वेद वर्णित दिनचर्या का पालन। जिसको आधुनिक जीवन की स्वस्थ दिनचर्या नामक पुस्तक में संजोया गया है। जिसका अनुपालन स्वस्थ जीवन शैली दिनचर्या के लिए आवश्यक है।
आजकल खान – पान का ध्यान नहीं रखा जाता। जिससे सबसे अधिक पेट सम्बन्धी रोग होते है। जैसे – पेट मे गैस बनना, तिल्ली का बढ़ना, फैटी लीवर आदि।
स्वस्थ और सुखी जीवन की अभिलाषा सभी को है। जिसमे आहार परिभाषा आदि एक घटक है। जिसके आधार पर स्वस्थ जीवन का महत्व निर्भर है। जिसके कारण आयुर्वेदादी सम्मत दिनचर्या के नियम और आज की दिनचर्या में कुछ भेद है। इसलिए आधुनिक जीवन की स्वस्थ दिनचर्या का निर्धारण करना अनिवार्य है। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह पुस्तक जितनी दार्शनिक है उतनी ही वैज्ञानिक और व्यावधारिक भी है। वंश संरक्षण की दृष्टि से भी दिनचर्या आदि का पालन अनिवार्य है। जिसको शादी के बाद बच्चा कैसे पैदा किया जाता है कहते है।
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