वसा ( लिपिड, फैट ) : lipids or fat in hindi

वसा मानव शरीर के लिए अत्यंत उपयोगी पोषक तत्वों में से एक है। जिसकी अनुकूलता होने पर स्वास्थ्य और अभावता की दशा में, रोगानुगति सनातन एवं नवीन चिकित्साओं को मान्य है। जिसको आंग्ल भाषा में फैट या लिपिड कहते है। पोषण विशेषज्ञों के अनुसार सबसे ज्यादा फैट वाला खाना जंहा, मोटापा आदि का कारण बताया जाता है। वही कम फैट वाला खाना फैट कम करने के उपाय है। जिसके कारण अब प्रत्येक वस्तु का सेवन वसा, प्रोटीन आदि की मात्रा को जांचकर किया जाने लगा है। 

वसा के प्रकार कार्य और उपयोगिता 

गुणवत्ता से युक्त वसा की पर्याप्त आपूर्ति की आवश्यकता, हम मानवो को अनादि काल से रही है। परन्तु कठिनाई यह है कि प्रत्येक द्रव्य में, इसकी मात्रा और गुणवत्ता का अनुपात अलग – अलग होता है। जिसके कारण इनके रख – रखाव और उपयोगिता आदि में भेद हो जाता है। जिसको अब आधुनिक विज्ञान भी पोषक तत्वों को, सहेजने के लिए आवश्यक मानता है। जिसका पालन करने पर यह अमृत के सामान गुणकारी है, और अनदेखा करने पर विष के समान घातक है। उदाहरण के लिए वजन कम करने के उपाय को लीजिए।     

वसा को समझना उतना ही सरल है। जितना कि रेत ( रेगिस्तान ) में दौड़ लगाना। जिसके कारण वसा को लेकर अनेको भ्रम है। जैसे – फैट्स को दिल के दौरों आदि का कारण समझा जाता है। जिसके चलते वसा के सेवन को आमतौर पर हानिकर बताया जाता है। जिससे हमारे सामने दो प्रकार की बाते उभर आती है। पहली वसा का सेवन हानिकारक है। दूसरी वसा की कमी के चलते अन्य पोषक तत्वों का, अवशोषण न होने से शरीर में उन पोषक तत्वों की कमी होने लगती है। जिससे शरीर धीरे – धीरे कमजोर होकर रोगो का शिकार होने लगता है। इस कारण उपयुक्त मात्रा में और गुणवत्तापरक वसा का सेवन अनिवार्य है।  

वसा क्या है ( what is Fats in hindi )

आमजनमानस और विशेषज्ञों में वसा के सेवन को लेकर आज भी संदेह है। जिसका कारण आधुनिकी चिकित्सीय परिष्कृतता और वैज्ञानिक शोध है। जिसने आज बहुतायत लोगो को अचम्भे में डाल दिया है। मॉडर्न साइंस एक ओर इसके सेवन को अति आवश्यक मानता है, वही आधुनिक विशेषज्ञ अधिकांश लोगो को इससे दूर रहने की भी सलाह देते है। इस आधार पर आखिर वसा क्या होती है , को जान लेने में ही बुद्धिमानी और भलाई है। 

मानव शरीर को संचालित होने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। जिसकी आपूर्ति करने वाले वसा इत्यादी होते है। इस कारण इसको शक्तिदायक ईंधन भी कहते है। आमतौर पर वसा को चिकनाई से जोड़ा जाता है। जो सभी प्रकार के वसाओं में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहता है। सामान्यतः जहा यह आनुपातिक मात्रा में लेने पर स्वास्थ्यवर्धक है, वही आवश्यकता से अधिक लेने पर रोगकारक भी है। 

आजकल प्रायः फैट लॉस डाइट का चलन है। जिसमे वसा की कम से कम मात्रा का सेवन, उपयोगी और लोक हितकारी बताया जाता है। जिससे लोग कम से कम चिकनाई को खाना पसंद करते है। जिससे लोगो को पेट में जलन और दर्द होने की समस्या देखी जाती है। 

लिपिड क्या है ( what is lipid in hindi )

लिपिड को रासायनिक तौर पर जल में अघुलनशील और एल्कोहल, क्लोरोफार्म एवं ईथर में घुलनशील माना जाता है। जीवित कोशिकाओं के लिए लिपिड, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन महत्वपूर्ण पोषक तत्व है।कोलेस्ट्रॉल और ट्राईग्लिसराइड लिपिड है। यह आसानी से शरीर में संचित होते है। जो कोशिकाओं के लिए ऊर्जा का स्रोत है। सामान्यतः वसा और लिपिड को एक जैसा समझा जाता है। परन्तु कुछ लोग इसे वसा से अलग मानते है। 

लिपिड का ही हिंदी नाम वसा है 

जबकि मनुष्यो द्वारा चिकनाई युक्त द्रव्यों में तेल, घी आदि का ही प्रयोग होता है। जिसको आधुनिक विज्ञान वसा ( लिपिड ) मानता है। जिसके कारण वैज्ञानिक दृष्टि से भेद होने पर भी, व्यवहारिक रूप से एक मानने की प्रथा है। बिना वसा के मानव का स्वस्थ रहना सम्भव नहीं, और दूसरी ओर इसके सेवन को अस्वास्थ्यकारी भी बताया जाता है। जिसके कारण आज वसा के सेवन को लेकर अनेको भाँतिया है।  जिसकी गुथ्थी को सुलझा पाना आज भी मॉडर्न साइंस के लिए एक चुनोैती है।     

बढ़ा हुआ पेट कम करने के घरेलू उपाय में, वसा ( लिपिड ) का महत्वपूर्ण योगदान है। क्योकि इसकी अधिक मात्रा का सेवन फैट बढ़ाने के उपाय है। वही न्यून मात्रा का सेवन फैट कम करने उपाय है। इस कारण वसा लिपिड क्या है जैसे प्रश्न खड़े होते है। आजकल ज्यादातर लोग इसकी मात्रा को सीमितकर, अनेको रोगो पर नियंत्रण पाने का अमोघ उपाय समझते है। जबकि आयुर्वेदादी शास्त्रों में रोग निदान की अनेको निषेधाज्ञाए निर्धारित है। जिसमें न केवल इसकी मात्रा बल्कि गुणवत्ता पर भी, सामान रूप से ध्यान रखने की बात कही गई है।  

वसा का अर्थ ( fat meaning in hindi )

ज्यादातर लोग फैट का मतलब शरीर में जमा होने वाली चर्बी को समझते है। जिसके अधिक होते ही व्यक्ति का वजन भी बढ़ने लगता है। जिसको ओवरवेट या वजन बढ़ना कहते है। जिसके लिए फैट कैसे कम करें की बात उठती है। वही फैट का अपोजिट थिन या पतला होता है। जिसको पाना मोटे लोगो के लिए सपने जैसा है। 

वसा के कार्यो और उपयोगिताओं को ध्यान में रखकर, आधुनिक विज्ञान ने इनका शोध किया। जिसमे वसा की खोज करने का काम आरम्भ हुआ। बहुत मशक्क्त करने के बाद स्वीडिश वैज्ञानिक स्कीले (scheele) ने, पहली बार इसे अपनी प्रयोगशाला में देखा। जिसके लिए वसा की खोज किसने की जैसे प्रश्न पूछी जाते है। 

लिपिड का अर्थ ( lipid meaning in hindi )

कार्बन, हाइड्रोजन और आक्सीजन परमाणुओ के शृखलीय आनुपातिक संयोजन से लिपिड परमाणुओ का निर्माण होता है। जिसका सेवन करने पर यह मानव शरीर का पोषण करता है। जिसमे मांसल क्षेत्रो के सहित, हड्डिया, कोशिकीय ऊतक और बाल इत्यादी है। जिनका आनुपातीय संयोग मानव देह में स्थित सभी अंगो पर, आवश्यकतानुसार उपयोग में लाया जाता है। 

पूरक मात्रा से अधिक उपभोग करने पर, शरीर द्वारा इसका जमाव और निष्कर्षण किया जाता है। देह में संग्रहित चिकनाई का उपयोग आकस्मिक परिस्थितियों में होता है। जबकि शरीर से निष्कासित चिकनाई, बिना कोई लाभ पहुचाये निरर्थक सिद्ध होती है। गुणवत्ता में न्यूनता के कारण यह चिपकती है। जिससे लिवर में फैटी लिवर के लक्षण आदि को पैदा करती है। फैटी लीवर की समस्या में इसकी गुणवत्ता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।  

महिलाओं का मोटापा कम करने के उपाय में लिपिड का महत्वपूर्ण योगदान है। पेट में इकठ्ठा होने के कारण इसको पेट का वसा भी कहते है। जिसके कारण आजकल इसके सेवन का प्रतिकार करने का चलन है। जबकि वास्तविकता तो यह है कि – चिकनाई का सेवन हमारी विवशता है। जिसके बिना न भोजन में स्वाद है और न ही स्वास्थ।  

वसा या फैट के प्रकार ( types of fat in hindi )

  • संतृप्त वसा ( सैचुरेटेड फैट्स )
  • असंस्तृप्त वसा ( अनसैचुरेटेड फैट्स ) 
  • ट्रांस फैट्स ( हाइड्रोजेनेटेड फैट्स )

लिपिड का वर्गीकरण ( lipid classification in hindi )

टाइप्स ऑफ़ लिपिड की बात करे तो लिपिड 4 प्रकार के होते है। 

    1. फैटी एसिड्स ( सैचुरेटेड फैट्स एवं अनसैचुरेटेड फैट्स )
    2. ग्लिसराइड ( न्यूट्रल फैट्स )
    3. नॉन ग्लिसराइड ( मोम और स्टेरॉइड्स )
    4. कंपाउंड लिपिड में लिपोप्रोटीन, ग्लाइकोलिपिड और फास्फोलिपिड आदि है। 

वसा के मूल स्रोत क्या है

वसा का स्रोत 

आयुर्वेद में खाद्य वसा के स्रोतों में प्राकृतिक उपायों का उपयोग है। जिनको पुरातन काल से ही प्रयोग किया जाता था। इनको ही संतृप्त वसा असंतृप्त वसा का स्रोत भी कहा जाता है। पुरातन कालीन ( आयुर्वेदानुसार ) वसा के तीन स्रोतों निम्न है – 

  1. तेल 
  2. घी 
  3. जानवरो की चर्बी से प्राप्त चिकनाई 

आयुर्वेद सम्बद्ध विभिन्न संहिताओं में तेल ( नारियल तेल ) और घी ( वैदिक गोघृत ) को, वसा का सबसे अच्छा स्रोत माना गया है। जिसका आज भी कोई विकल्प नहीं है। आयुर्वेद ने इनको सर्वोकृष्ट ही नहीं एकमात्र उत्कृष्ट कहा है। आधुनिक समय ( 20 – 21 वी सदी ) में वसा के निम्न स्रोतों का भी वर्णन मिलता है। 

  • प्राकृतिक वसा : के रूप में पश्चात जगत में प्रायः इनका उपयोग किया जाता था। जिनको सुरक्षित रखने के लिए अनेको सावधानिया रखनी पड़ती थी। जिसके कारण यह बहुत जल्दी खराब भी हो जाता था। जिसके कारण इनका विपणन करना भी कठिन था।   
  1. लार्ड ( सूअर की चर्बी )
  2. टैली ( गाय की चर्बी )
  3. मक्खन ( दूध की चर्बी )
  4. ट्रॉपिकल तेल ( पाम आयल )
  • अप्राकृतिक वसा : वनस्पति तेलों से बने ट्रांस फैट्स। 

वसा के कार्य 

भोजन पाक विधाओं में अनेको प्रकार की क्रियाए सम्पादित होती है। जिसके लिए तेल, घी इत्यादी का प्रयोग होता है। इस आधार पर अधिक तेल आदि का उपयोग होने से अधिक वसा वाला भोजन बनता है। जैसे – पूड़ी, पराठे, मिठाईया, इत्यादी। बहुत ही सीमित तेल के उपयोग से बने भोजन को कम वसा वाले भोजन कहते है। जैसे – पोहा, खिचड़ी आदि। सामान्यतया वसा रहित भोजन बनाना संभव नहीं। सामान्य रूप से पके फल आदि में भी वसा वसा का कुछ न कुछ अंश होता ही है। फिर मानव के द्वारा निर्मित भोजन से इसको कैसे निकाला जा सकता है।

इसको समझने के लिए वसा के कार्य क्या है ? लिपिड के कार्य आदि को समझना आवश्यक है। वसा के कार्य सभी जीवो में है। परन्तु मानवो में वसा के निम्नलिखित कार्य है। जिनको कुछ लोग वसाका के फायदे भी कहते है।  

  • शरीर में ऊर्जा का संचय करते है।
  • हार्मोन्स का निर्माण करते है।
  • पानी में घुलने वाली विटामिन्स को सोखते है। 
  • सेल ( कोशिका ) मेम्ब्रेन को बनाने एवं पैड करने का काम करते है। 
  • कोशिकाओं की गहरी मेम्ब्रेन और अंदरूनी अंगीय हिस्सों को सूचना भेजने में मददगार है।  
  • वजन को नियंत्रित रखने में सहयोग करते है इत्यादी। 

वसा का पाचन कहाँ होता है

अन्य भोज्य पदार्थो की भाँती वसा का भी पाचन व्यवहारिक रूप से पेट में होता है। जबकि वैज्ञानिक दृष्टि से अनेको उदरीय अंग और उपांग होते है। जिनके माध्यम से समस्त प्रकार की पाचन प्रक्रियाए सम्पादित होती है। जिनको विसंगतिग्रस्त होने से बचाने के लिए, पाचन क्रिया कैसे सुधारे को जानने की आवश्यकता है। जिससे समय रहते परेशानियों से बचा जा सके। अक्सर हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है समझाइए पूछा जाता है।

वसा का पाचन एक जटिल प्रक्रिया है। जिसमे अनेको पूरक अंगो को अधिक कार्य करना पड़ता है। जिसके कारण इनके पाचन में अधिक समय और ऊर्जा लगती है। आमाशय ( क्षुद्रांत ) में वसा बड़ी गोलिकाओ के रूप में रहता है। इस कारण एंजाइम उस पर कार्य नहीं कर पाता। फिर यकृत द्वारा स्रावित पित्त लवण वसीय गोलिकाओ को छोटी – छोटी गोलियों में तोड़ देता है। जिससे एंजाइम उस पर अधिक क्रियाशील हो जाते है। तदुपरांत वसा का पाचन छोटी आंत ( वृहद् आंत्र ) में हो जाता है। इसको आधुनिक विज्ञान इमल्सीकरण की क्रिया कहता है।  

दूध का फैट बढ़ाने के उपाय  

दूध का फैट बढ़ाने का उपाय 

दूध में फैट बढ़ाने के लिए क्या मिलाया जाता है ? आजकल वजन बढ़ाने के लिए दूध में फैट बढ़ाने का पाउडर मिलाया जाता है। जिसमे कृत्रिम और अकृत्रिम दोनों प्रकार के पदार्थ है। जिनमे से जितने भी कृत्रिम पदार्थ सब के सब, कुछ न कुछ हानिकारक प्रभाव प्रदर्शित करते है। जिससे इनका लम्बे समय तक सेवन हानिकारक है। 

जबकि शास्त्रीय उपायों में दूध की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए गोघृत का उपयोग होता है। जिसको आपस में फेटकर सेवन करना बहुत ही लाभकारी बताया गया है। जिसमे 100 बार फेटे हुए गोघृत मिश्रित दुग्ध का सेवन सर्वाधिक गुणकारी बताया गया है। जिसका सेवन सभी प्रकार के लोगो के लिए उपकारक है। फिर चाहे वह रोगी हो या स्वस्थ।  

सबसे ज्यादा फैट वाला खाना आमतौर पर मांसाहार को माना जाता है। जबकि आयुर्वेदादी शास्त्रों में वसा की गुणवत्ता और मात्रा दोनों के आधार पर भोज्य पदार्थो का चयन किया है। जिसमे सबसे ज्यादा वसा किसमे होता है आदि सम्मिलित है। जिनका विधि विधान से सेवन करने पर यह उपकारी है। 

उपसंहार

गुणवत्तापरक और आनुमानिक मात्रा में वसा का सेवन, अस्वस्थ को स्वास्थ्य बनाती है। इसके साथ स्वस्थ व्यक्ति को चिर काल तक, स्वस्थ बनाये रखने में सहयोगी है। वसा की कमी भी व्यक्ति को बीमार बनाती है। लकड़ी की घाणी से निकाला गया नारियल तेल ( कोल्ड प्रेस्सेड ), और वैदिक घृत सबसे सुरक्षित वसा है। जिनका आज भी कोई विकल्प नहीं है अर्थात निविल्कप है। जिनका सेवन करने पर स्वास्थ्यता और समृद्धि दोनों सुनिश्चित है। 

FAQ

एक केले में कितना फैट होता है

100 ग्राम केले में 0.3 ग्राम फैट पाया जाता है। जिसमे 0.1 ग्राम सैचुरेटेड फैट होता है।

एक अंडे में कितना फैट होता है

उबले हुए 100 ग्राम अंडे में 11 ग्राम फैट होता है। वही कच्चे ( रॉ ) अंडे के पीले ( योल्क ) भाग में सबसे अधिक 27 ग्राम फैट होता है। जबकि सफ़ेद भाग में 0.2 ग्राम फैट पाया जाता है। 

सबसे ज्यादा फैट किसमे होता है

गरिष्ट और गरिष्टतम खाद्य पदार्थो में सर्वाधिक वसा पायी जाती है। जैसे – जंक फ़ूड और फ़ास्ट फ़ूड, केक, पेस्टी, तेल में तली पूड़िया इत्यादि। 

भैंस के दूध में वसा की मात्रा कितनी होती है

भैस के दूध में 6 से 10 फीसदी वसा पायी जाती है। 

फैट वाला खाना कौन सा है

सभी प्रकार के तैलीय पदार्थ, दुग्ध उत्पाद, तेल और घी से बनने वाले व्यंजनों को फैट वाला खाना कहते है।