पेट दर्द को ही आयुर्वेद में उदर रोग कहा गया है। जिसके अनेक हेतुओ में भोजनादि पर विचार किया गया है। जिसकी विसंगति के कारण ही पेट दर्द जैसी समस्याए होती है। इनके समाधान के लिए चिकित्सीय उपचार का विधान किया गया है। जिसमे पेट दर्द का देसी उपचार और आयुर्वेदीय उपचार आदि है। जिसमें दवाओं की आवश्यकता होती है। जिनको पेट दर्द की दवा कहा जाता है। अब यह बात दूसरी है है कि आयुर्वेद में इसको पेट दर्द की आयुर्वेदिक दवा कहा जाता है। जबकि एलोपैथी में पेट दर्द की टेबलेट नाम आदि का प्रयोग होता है।
हालाकिं गैस और पेट दर्द दोनों का गहरा सम्बन्ध है। जिसके कारण पेट दर्द और गैस की दवा भी एक जैसी ही होती है। इसका सैद्धांतिक भाग ही पेट दर्द का मंत्र कहलाता है। इसलिए रोग होने पर प्रायः दर्द होता ही है। जिसको आचार्य सुश्रुत ने दुःख कहा है। जो व्याहारिक जगत में भी देखने को मिलता है। जिसके लिए अन्य चिकित्सा विशेषज्ञों ने कहा है कि – रोग होने पर दर्द होना स्वाभाविक है। जैसे – लीवर बढ़ने ( यकृत वृद्धि ) में विध्वंसक दर्द होता है। दर्द और दुःख का आपस में पारस्परिक सम्बन्ध है। जिसके कारण दर्द में दुःख होता है। या दुःख ही दर्द के रूप में प्रकट होता है।
जिसका कारण शारीरिक क्रियाप्रणाली की अवरुद्धता को स्वीकारा गया है। जिसमे मुख्य रूप से विसंगतियों की प्रधानता बतलाई गई है। जिसके अनेक कारण है। जैसे विरुद्ध भोजन, दिनचर्यादि की शिथिलता आदि। जिससे छुटकारा पाने के लिए पेट गैस की टेबलेट आदिका, उपयोग चिकित्सीय सिद्धान्तानुसार करने का प्राविधान है। जबकि पेट में दर्द (pet me dard) होने पर, कारण की परख करना भी अनिवार्य है।
पेट दर्द क्या है ( What Is Stomach Pain in Hindi)
जीव विज्ञान के अनुसार मानव एक प्रकार का जीव है। जिसकी अन्य जीवो की भाँती अपनी शारीरिक क्रिया प्रणालियाँ है। जिसको आधुनिक विज्ञान शरीर रचना क्रिया विज्ञान कहता है। जिसमे मानवो की क्रिया को, मानव शरीर रचना क्रिया विज्ञान कहा जाता है। जिसके अनुसार मानव शरीर अनेको अंग, उपांग और प्रत्यंग आदि से मिलकर बना है। जिनमे हमारे सिर से लेकर पाँव तक के, सभी अंगो का समावेश है। जो अपनी – अपनी क्षमता के अनुसार, अपने दायित्व का दक्षता पूर्वक परिपालन करते है। जिनके कारण सभी अंगो का आपस में, पारस्परिक सहयोग होता है। जिससे स्वास्थ्य की अभिव्यक्ति होती है।
जिसके लिए सभी अंगो का स्वयं में स्वस्थ होना, आवश्यक है तब तो अन्यो के सहयोगी होंगे। मानव शरीर में पाए जाने वाले, सभी अंगो का आपसी तालमेल ही स्वास्थ्यता का द्योतक है। न की एकल अंग के स्वस्थ होने से। स्वास्थ्य एक व्यपक शब्द है। जिसके लिए अंगो का आपस में सामजस्य होना अनिवार्य है। जिसमे प्रतिकूलता आने पर ही रोग की प्राप्ति होती है। मानव शरीर की भाँती पेट भी अनेको अंग, उपांग से मिलकर बना है। जिसमे यकृत, प्लीहा, छोटी आंत और बड़ी आंत आदि है। इन अंगो की कार्यप्रणाली में विकृति आने पर पेट दर्द (pet dard) होता है।
पेट में पाए जाने वाले अंगो को, पुनः कार्यक्षम बनाने को ही उपचार कहा जाता है। जिसमे पेट दर्द का देसी उपचार भी है। जो पूर्णतः आयुर्वेदीय उपचार है। जिसका वर्णन आयुर्वेदीय ग्रंथो में प्राप्त है। इन उपायों का प्रयोग प्रायः सभी घरो में होता है। जिसको पेट दर्द की दवा भी कहते है। जब गैस के कारण पेट दर्द होता है। तो उसको पेट दर्द और गैस की दवा कहा जाता है। सभी प्रकार के रोगो में दिनचर्या का अनोखा महत्व है। जिसको आधुनिक जीवन की स्वस्थ्य दिनचर्या भी कह सकते है।
पेट दर्द के प्रकार ( Types Of Stomach Pain in Hindi)
आयुर्वेद में उदर रोगो के आठ प्रकार बताए गए है। जिसमे वातोदर आदि है। जबकि व्यवहारिक रूप से, इसके अनेको प्रकारो की प्राप्ति होती है। जिनको सामान्य रूप से तीन भागो में बाटा जा सकता है। जो दर्द प्रकृति, स्थान और अवस्था को लेकर है।
दर्द की प्रकृति अनुसार मरोड़, ऐठन, सुई चुभना, जलन आदि को लेकर विचार करे, तो इसके अनेको भेद हो जाते है। जिनका उपचार लक्षणों के आधार पर, पेट दर्द की दवा द्वारा किये जाने का विधान है।
स्थान को लेकर विचार करे तो मानव शरीर में, अलग अलग स्थानों पर पेट दर्द होता है। जिसमे पेट के ऊपरी हिस्से मे दर्द, पेट के निचले हिस्से में दर्द , पेट के बाए हिस्से में दर्द, पेट के दाए हिस्से में दर्द और पेट के मध्य में दर्द। जिसको नाभि का दर्द भी कहते है। पेट के ऊपरी और निचले हिस्से को लेकर भी विभेद है। जिसको बाईं ओर पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द, दाई ओर पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द, बाई ओर पेट के निचले हिस्से में दर्द, और दाई ओर पेट के निचले हिस्से में दर्द। इस प्रकार कुल नौ प्रकार के दर्द प्राप्त होते है। जिसके लिए पेट दर्द का देसी उपचार अत्यंत लाभकारी है।
अवस्था विशेष को लेकर भी पेट दर्द के भेद है। जिसमे बच्चो, महिलाओ, वयस्कों और वृद्धो में होने वाला पेट दर्द है। जो उपरोक्त दोनों का अनुशरण करते है। यहाँ पर विशेषता आयु को लेकर प्राप्त है। जिसके कारण यह भेद स्वीकार किया जाता है। प्रायः बच्चो में त्वरित ( एक्यूट ) रोग, और बूढ़ो में जीर्ण ( क्रोनिक ) रोग देखने को मिलता है। जिसको लेकर चिकित्सा में सावधानी अपेक्षित है। जैसे पेट के निचले भाग में दर्द होने पर, पेट के निचले हिस्से में दर्द के उपाय ढूढ़ते है।
पेट दर्द होने का कारण ( Causes Of Stomach Pain )
आयुर्वेद में सभी प्रकार के उदर रोगो का मूल कारण, जठराग्नि दूषण और मल वृद्धि को माना है। जिसको सामान्यतः विसंगति भी कहा जाता है। जिसके अनेको हेतुओ की सम्प्राप्ति का वर्णन चिकित्सीय ग्रंथो में किया गया है। जिसमे अफारा, एसीडिटी, कब्ज, गैस, अजीर्णता आदि को भी स्वीकारा गया है। इनके कारण भी पेट दर्द की समस्या होती है। जिनका प्रमुख कारण भी उपरोक्त दोनों ही है। जिनको पेट दर्द के कारण के रूप में स्वीकार किया गया है। इसका शमन गिलोय के द्वारा भी किया जाता है। जो गिलोय के फायदे के नाम से ही जाना जाता है।
आयुर्वेदानुसार जठराग्नि दूषण को पेट दर्द का कारण माना है। जो पेट में दर्द के कारण में प्रथम कारण है। जिसके हेतुओ में मलिन आहार द्रव्यों का सेवन आदि है। यहाँ मलिन द्रव्य से तात्पर्य दोषोतसर्जक भोजनंनादि है। जिसको देहप्रकृति के विरुद्ध भोजन को मानना चाहिए। जिनका नियमित सेवन करने से अग्नि मंद हो जाती है। जिसके फलस्वरूप पाचन क्रिया शिथिल पड़ जाती है। और भोजन का पाचन ठीक से नहीं हो पाता। दुसरे कारण के रूप में मल वृद्धि है। जिसके कारण में वात, पित्त और कफादि दोष है। इनके साथ ही आयुर्वेद में शारीरिक वेगो को रोकना भी दोष उत्सर्जक है। जैसे मल, मूत्रादि का वेग।
जिसके कारण इनका भी समावेश इसमें कर लिया गया है। जिसका समर्थन अन्य आचार्यो ने भी किया है। ऐसा होने पर पेट में दोषो का संचय होने लगता है। यह संचित दोष समूह प्राणवायु, पाचकाग्नि और अपानवायु को विशेष रूप से दूषित करके, उनके नीचे तथा ऊपर के मार्गो को रोककर। यह दोषसमूह त्वचा और मांस के बीच में आकर, कुक्षि प्रदेश में आध्मान ( अफारा ) को उत्पन्न कर, उदर रोग का जनन करते है। जिससे पेट में दर्द होता है। यह हेतु पेट मे दर्द होने के कारण है। जिसकी समाप्ति के लिए (pet dard ka upay), की आवश्यकता पड़ती है।
पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द के कारण (pet ke upari hisse me dard)
आयुर्वेद ने कुक्षि प्रदेश पेट के दोनों ओर को माना गया है। जिसमे पूरा पेट आता है। जिसे कोखा के नाम से भी जाना जाता है। अफारा भी एक प्रकार का वायु या गैस है। जिसका स्थान विशेष में एकत्रीकरण होनेसे पेट दर्द होता है। इनको ही समग्रता से दोष समूह कहा जाता है। जब यह ऊपरी हिस्से में संचित होता है, तो ऊपरी हिस्से के पेट में दर्द होता है। जिसको समझने के लिए पेट में दर्द क्यों होता है, जैसे प्रश्न किये जाते है। गैस को हिंदी में अनिलचुल्ली या अनिलचुल्य कहते है। जिसके कारण इसकी गति ऊपर और नीचे, दोनों स्थान पर हो सकती है।
पेट के ऊपरी भाग में दर्द होने का एक कारण, गैस का ऊपरी भाग में एकत्रीकरण है। जिससे पेट का दीवारों या आवरण पर दाब पड़ता है। जिसके कारण कभी – कभी पेट से संलग्न अंगो में भी पीड़ा होती है। इस पीड़ा या दर्द को, पेट के ऊपर दर्द होना कहा जाता है। जो प्रायः गैस बनने के कारण होता है। जिसको उपचारित करने को पेट दर्द का इलाज कहते है। जिसको गैस के कारण पेट दर्द होना कहते है। जबकि गैस के कारण पैर में भी दर्द होता है। कभी कभी फैटी लीवर भी पेटदर्द का कारण होता है।
पेट के नीचे दर्द होने के कारण
जब उपरोक्त कारणों से, मलिनता का संचय पेट के निचले हिस्से में होता है। तब भी अफारा आदि ही इसके कारण है। जिनको सामान्यतः गैस का नाम दिया जाता है। जो उपलक्षण है। जिसको पेट के निचले हिस्से में दर्द गैस के नाम से जानते है। जिसके उपचार में पेट दर्द की आयुर्वेदिक दवा उपयोगी है। जबकि पेट दर्द की दवा में, अनेको प्रकार की टेबलेट आदि का भी प्रयोग होता है। जिसको पेट दर्द की टेबलेट नाम कहा जाता है। जिसका उपचार देसी दवाइयों द्वारा भी होता है। जिसको पेट दर्द का देसी उपचार कहा जाता है।
पेट से सम्बंधित सभी रोगो में, पाचन क्रिया का विशेष योगदान है। जिसमे विसंगति होने पर ही, पेट में दर्द आदि की समस्या होती है। जिसके लिए पाचन क्रिया कैसे सुधारे की आवश्यकता होती है। इसका आलंबन लेकर भी पेट का दर्द ठीक किया जा सकता है। फिर चाहे वह पेट दर्द बाईं ओर हो या दाई ओर।
नाभि के नीचे पेट दर्द के कारण
चिकित्सा में नाभि को शरीर का केंद्र माना जाता है। जिसके आधार पर शरीर को प्रातीतिक रूप से, दो भागो में विभाजित किया जाता है। अधिक समय से पेट दर्द होने से, शरीर के अन्य अंग भी प्रभावित होते है। जिसके कारण इनका उपचार शीघ्रता से करने की आवश्यकता है। जिसके लिए पेट दर्द और गैस की दवा उपयोगी है। जो पढ़ने में दो अलग अलग प्रतीत होते है। जबकि आयुर्वेद में दोनों का उपचार, एक ही औषधि से करने का विधान है। जिसका मूल रोगी से प्राप्त होने वाला लक्षण है।
आंतो की मलबद्धता के कारण ही नाभि का दर्द होता है। जो पेट मे दर्द के कारण भी है। जिसका प्रभाव पेट के नीचे दर्द के रूप में, अनुभव किया जा सकता है। यह पेट के बाईं ओर में दर्द और दाई ओर, में दर्द उत्पन्न कर सकता है। जिसको हम कब्ज भी कहते है। जिसके उपचार को कब्ज का रामबाण इलाज कहा जाता है। ऐसा होने पर पेट दर्द गैस, जैसी समस्याओ का स्वतः शमन हो जाता है। जबकि एलोपैथी में पेट दर्द की tablet का प्रयोग होता है।
नाभि के ऊपर पेट दर्द के कारण
पेट दर्द के सामान्य कारणों में अफारा ( गैस ) आदि है। जबकि विशेष कारणों में जीर्ण व्याधियों है। जिनका निराकरण विशेष द्वारा ही किया जाना उचित है। जिनको चिकित्सा विशेषज्ञ के नाम से जाना जाता है। जो अभ्यास और प्रयोग के बल पर, गुरु अनुग्रह प्राप्त कर अपनी उपयोगिता सिद्ध करते है। जिसमे पेट दर्द की आयुर्वेदिक दवा का प्रयोग किया जाता है। जिसको पेट दर्द और गैस की दवा भी कहते है।
नाभि में होने वाले दर्द को, पेट के बीच में दर्द होना कहा जाता है। जिसका उपचार पेट दर्द का देसी उपचार कहलाता है। जिसमे सामान्य उपायों का आलंबन लेकर, इससे पार पाया जा सकता है। जिसको पेट दर्द की दवा कहते है। जबकि आधुनिक चिकित्सा में इसके लिए गोली का प्रयोग होता है। जिसको पेट दर्द की टेबलेट नाम से जाना जाता है।
पेट दर्द और उल्टी का कारण
सामान्यतः पेट दर्द में अफारा आदि का संयोग होता है। अफारा एक प्रकार के गैसों का समूह है। जो परिभ्रमणित होने के कारण आमाशय आदि को प्रभावित करती है। जिससे उल्टी जैसी समस्याओ का जन्म होता है। जो पेट दर्द और उल्टी का कारण है। जब पेट में अत्यधिक मात्रा में गैस उत्सर्जन होता है, तब पेट में दर्द होता है। जब यही कार्य आमाशय में होता है, तो उल्टी की समस्या होती है। रोग की तीव्रता में दोनों प्रक्रियाए एक साथ होने से, उल्टी और पेट दर्द दोनों एक साथ होता है।
जिसके उपचार में सहयोगी औषधियों को पेट दर्द की दवा, और पेट दर्द और गैस की दवा भी कहते है। कभी कभी खांसी होने पर भी पेट दर्द की समस्या होती है। जिसके लिए खांसी का इलाज घरेलू प्रभावी है।
बच्चों के पेट मे दर्द होने का कारण
बच्चो में पेट दर्द होनेका एक कारण इनका नटखट स्वभाव है। जिसके कारण यह कुछभी कभी भी खाते पीते रहते है। जिसमे यह न तो सफाई का ध्यान रखते है, और न विरुद्ध आहार आदि का। जिसका कारण उनको इन सब का ज्ञान न होना है। जिसके कारण इनकी जठराग्नि दुर्बल पड़ जाती है। परन्तु कारण की विद्यमानता ही रोग का कारण है। जिसके आधार पर, बच्चे अनायास ही रोग के चपेट में आ जाते है। और पेट दर्द जैसे रोगो के शिकार हो जाते है।
दूसरा इनकी देह प्रकृति है। जो ऋतुपरिवर्तन आदि के कारण विषमता को प्राप्त होते है। जिसके फलस्वरूप रोग को प्रकट करते है। जिनमे पेट दर्द, सर्दी, जुकाम, बुखार आदि है। जिसमे पेट में दर्द होने पर निदान का विधान आयुर्वेदादी शास्त्रों के आधार पर प्राप्त है। जिनको पेट दर्द का देसी उपचार कहा जाता है। ठीक उसी प्रकार जैसे बुखार के लिए, बुखार की सबसे अच्छी दवा का प्रयोग होता है। जबकि दवोपचार पद्धति में पेट दर्द और गैस की दवा, के रूप में पेट दर्द की टेबलेट का प्रयोग होता है। जिसको पेट दर्द की टेबलेट नाम से जानते है।
महिलाओं में पेट के निचले भाग में दर्द का कारण
उदर रोग स्त्री और पुरुष दोनों में पाया जाता है। महिला में उपरोक्त कारण से पेट दर्द हो सकता है। जबकि एक विशेष अवस्था में भी पेट दर्द हो सकता है। जिसको गर्भावस्था में पेट दर्द कहते है। जो पुरुषो में नहीं पाया जाता। जिसका कारण इनकी शारीरिक रचना है। यह केवल अवस्था विशेष में ही होता है। इस अवधि के पूर्ण होने पर महिलाओ में पेट दर्द, का यह कारण मान्य नहीं है। जबकि ऐसा होने पर चिकित्सा की दृष्टि विचारणीय है।
गर्भावस्था के दौरान, गर्भस्त मूढ़ ( उचित ढंग से योनिमार्ग की और प्रवृत न हुआ ), बाल ( शिशु ) जब योनिद्वार में आकर अटक जाता है। तो योनि, पेट आदि में दर्द और पेशाब रुक जाता है। जो उदर रोग का कारण है। महिला का गर्भ भी पेट के अंदर होता है। जिसके कारण इससे होने वाले दर्द को पेट दर्द कहा जाता है। जिसके उपचार के लिए पेट दर्द की आयुर्वेदिक दवा, का उपयोग किया जाता है। जबकि सामान्य अवस्था में होने वाले दर्द के लिए पेट दर्द के घरेलू उपचार का प्रयोग होता है।
पेट में दर्द का एक कारण तिल्ली या प्लीहा की वृद्धि भी है। जिसमे दाहिनी और बाई ओर दर्द होता है। प्लीहा वृद्धि के कारण पेट के बाई ओर दर्द होता है। जबकि यकृत में सूजन होने पर पेट के दाई ओर दर्द होता है। इससे प्रभावित होने पर किसी भी आयु वर्ग के लोग इससे प्रभावित होते है।
पेट दर्द के लक्षण ( Symptoms Of Stomach Pain )
पेट दर्द के लक्षणों की बात करे, तो शरीरगत दोषो की प्रधानता से लक्षणों में भेद है। जिसे वात, पित्त और कफ के नाम से जाना जाता है। यह शब्द चिकित्सा में प्रयुक्त है। जबकि व्यवहारिक जगतमें इनको अलग अलग नामोसे जाना जाता है। जिसको चिकित्सीय परिपाटी में रोग लक्षण कहते है। जिसका कारण रोगी को होने वाली वाली परेशानिया है। जिनके आधार पर पेट मे दर्द का उपचार किया जाता है। जिसे पेट में दर्द का इलाज भी कहते है। इसके लक्षण इस प्रकार है –
- हाथ, पैर , पेट आदि में सूजन
- पेट फटने जैसा दर्द होना
- पेट में मरोड़ होना
- पेट में सिलाई करने के सामान दर्द होना
- अंगो में मसलने के सामान दर्द होना
- सूखी खांसी का आना
- पेट का अनिश्चित गति से फूलना और पिचकना
- खाये हुए भोजन का न पचना
- पेट और पसलियों में दर्द होना
- शरीर में कमजोरी, आलस्य और निद्रा का बने रहना
- अपान वायु, मल, मूत्रादि में रुकावट होना
- त्वचा, मल, मूत्रादि का काला, भूरा, पीला, हरा, सफ़ेद या लाल होना
- बार बार प्यास लगना
- बेहोशी, दस्त, चक्कर आदि का आना
- अत्यधिक पसीना होने से पेट के ऊपर गीलापन बने रहना
- जी मिचलाना, नींद न आना आदि।
पेट दर्द का उपचार ( Treatment For Stomach Pain )
पेट में दर्द के लिए कारणों में दोषो को माना गया है। जिसके निदान में संशोधन, संसजर्न, निरुह तथा अनुवासन का उत्तरोत्तर प्रयोग का विधान है। जिनमे अनेको प्रकार की स्नेहक, स्निग्ध, विरेचक इत्यादि औषधियों का प्रयोग होता है। जिनको पेट दर्द की आयुर्वेदिक दवा, या सामान्यतः पेट दर्द की दवा कहा जाता है। इस प्रकार के प्रयोग को पेट दर्द का देसी उपचार, के नाम से भी जाना जाता है। नवीन रोग की दशा में इनका आलंबन लेने पर, पेट दर्द रोग से छुटकारा मिल जाता है। जबकि जीर्ण रोग की दशा में, और प्रगाढ़ता की आवश्यकता होती है। जिसको पेट दर्द का इलाज (pet dard ka ilaaj) कहते है।
संसोधन की क्रिया में स्नेहन, स्वेदन, और विरेचन कराया जाता है। इसके बाद पेट को सूती कपड़ा लपेट कर बाँध दिया जाता है। जिसको उदरवेष्ठन भी कहते है। स्नेहन में स्नेहक द्रव्य जैसे घृत आदि को पिलाया है। जिससे शरीर की रुक्षता का आपनोदन होता है। स्वेदन में शरीर में तेल की मालिस करके, पसीना आदि निकाला जाताहै। और विरेचन की क्रिया में अरंडी के तेल, तिल तेल आदि के द्वारा आंतो की सफाई का कार्य होता है। यह प्रयोग पेट दर्द और गैस की दवा में भी प्रयुक्त होते है।
संसर्जन की क्रिया में पेया, विलेपी आदि पेयों का सेवन कराकर। रोगी को शक्ति संपन्न बनाने के लिए दूध पिलाया जाता है।
निरुह की क्रिया में रोगी की मंद हुई अग्नि को पुनः तीव्र किया जाता है। जिसके लिए अनार आदि के रस से कुछ खट्टा किये हुए, मूंग आदि के जूस आदि का सेवन कराया जाता है। इनको भी पेट दर्द की दवाई कह सकते है।
अनुवासन की क्रिया में गुद मार्ग से स्नेहक द्रव्यों से, मिश्रित वस्ति का प्रवेश कराया जाता है। यह उनके लिए है। जिनका मल जठराग्नि की प्रबलता से सूख गया हो, और अपान वायु रुक गया हो।
पेट दर्द की टेबलेट नाम ( Stomach Pain Tablets Name )
एसिक्लोफेनाक पेट दर्द के लिए एंटीबायोटिक tablet है। यह स्टेराइड रहित एंटी इन्फ्लामेट्री दवा है। जो किसी भी प्रकार के दर्द में, विशेषज्ञ की सलाह पर उपयोग की जा सकती है। डाइसाइक्लोमिन भी पेट दर्द के लिए टेबलेट (pet dard ki tablet) है। इनको एलर्जी आदि में भी प्रयोग किया जाता है। इसके जैसे ही डायजेस्टोमैक्स, टवेरा एम टेबलेट, रानीटाईडाइन आदि है। जिनका उपयोग विशेषज्ञ की परामर्श के आधार पर करना ही उचित है। इनको ही पेट दर्द की मेडिसिन नाम, पेट दर्द की दवा tablet, पेट दर्द के लिए एंटीबायोटिक, और पेट दर्द की टेबलेट नाम से जाना जाता है।
यह सभी एलोपैथिक दवाइया है। जिनका प्रयोग खाली पेट नहीं करना चाहिए। इसके लिए सुबह नास्ते के बाद, और शाम में खाना खाने के बाद किया जा सकता है। एक दिन में दो खुराक पर्याप्त है। इनको ही पेट दर्द की दवा का नाम भी कहते है। जो ज्यादातर कृत्रिम उपायों का आलंबन लेकर तैयार की जाती है। जबकि आजकल आयुर्वेदिक दवाइयों को भी, टेबलेट आदि का रूप दिया गया है। जिनको आयुर्वेदिक पेट दर्द की टेबलेट नाम से जाना जाता है।
आजकल केरल आयुर्वेद द्वारा हिस्तानटिन टेबलेट निर्मित है। जो पेट दर्द की दवा की अच्छी दवा है। पेट दर्द और उल्टी के सुधा सिंधु नाम की दवा है। जो शीघ्र लाभकारी है। जबकि गिलोय घनवटी भी लक्षण के अनुसार उपयोगी है। जिसको गिलोय घनवटी कब खाना चाहिए भी कहते है।
पेट दर्द का देसी उपचार ( Stomach Pain Home Remedies in Hindi)
प्रायः पेट दर्द और गैस होने पर पेट फूल जाता है। जिसके कारण पेट दर्द के उपाय में स्नेहन, स्वेदन, विरेचन आदि की व्यवस्था आयुर्वेदादी शास्त्रों में है। जिसके द्वारा असंतुलित दोषो का निर्हरण किया जाता है। जिससे पेट का शोथ या सूजन कम होने लगती है। इसके बाद पेट में कपड़ा लपेटकर इसको बाँध दिया जाता है। ऐसा करने से वायु को पेट में, पुनः प्रवेश करने का अवसर नहीं प्राप्त होता। जिससे आध्मान, अफारा आदि की समस्या नहीं होती। क्योकि पेट में दर्द होने का कारण अफारा आदि ही है। जिसके कारण पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द, पेट में बाएँ तरफ़ दर्द होना आदि है।
तिल्ली ( प्लीहा ) के बढ़ने पर पेट के बाये तरफ दर्द होता है। वही यकृत ( लीवर ) में दोष होने पर दाहिनी तरफ दर्द होता है। जिसको उपचारित करने के लिए पेट दर्द के घरेलू नुस्खे का प्रयोग भी होता है। जिसको पेट दर्द का घरेलू उपाय, या पेट दर्द का घरेलू उपचार कहते है। जिसमे दूध, हींग, गिलोय, विभिन्न प्रकार के नमक, जवाखार, पिप्पली, सहिजन, निशोथ, सेहुड़, रेड़, गोमूत्र आदि का प्रयोग किया जाता है। जिनको पेट दर्द की आयुर्वेदिक दवा के साथ – साथ, पेट दर्द और गैस की दवा भी कहा जाता है। यह सभी देशी है। जिसके कारण इसको पेट दर्द का देसी उपचार भी कहते है।
आजकल एलोपैथी में पेट दर्द की दवा अनेको है। जिनमे से कुछ का वर्णन ऊपर किया गया है। इनको ही पेट दर्द की टेबलेट नाम से जाना जाता है। इनमे अनेको प्रकार के दुष्परिणाम है। जबकि पेट दर्द के घरेलू उपाय दुष्परिणाम रहित है। जिसके कारण निर्भीकता से पेट म दर्द का इलाज इनके द्वारा होता है। उदहारण के लिए गिलोय सेवन विधि को ही लीजिए।
पेट दर्द की आयुर्वेदिक दवा ( Ayurvedic Medicines For Stomach Pain )
आयुर्वेद में सभी प्रकार पेट दर्द का समाधान प्राप्त है। फिर चाहे वह पेट में बाईं ओर दर्द हो या दायी ओर। सभी प्रकार के दर्द असहनीय दर्द होते है। जिसके कारण पेट का दर्द का इलाज शीघ्रता से करने की आवश्यकता है। जिनमे पेट दर्द की आयुर्वेदिक दवा, जिसको पेट दर्द और गैस की दवा भी कहते है। इन औषधियो से किए जाने वाले उपचार को, पेट दर्द का देसी उपचार कहते है। जबकि अन्य उपचारो में पेट दर्द की टेबलेट नाम का भी प्रयोग होता है।
पिप्पली, सोंठ, जमालगोटा की जड़, चित्रकमूल, वायविडंग – इन सभी को सम भाग में ले। और हरीतकी को दूनी मात्रा में ले। इन सबको कूट – पीसकर चूर्ण बना ले। इसका सेवन 10 ग्राम की मात्रा में गरम पानी से करे। इसको ही पिपल्यादि चूर्ण कहते है।
इसके साथ ही विडंगक्षार, तक्रारिष्ट आदि भी उपयोगी है। जो उदर रोगोपचार में सहयोगी है।
पेट दर्द की होम्योपैथिक दवा ( Homoeopathic Medicines For Stomach Pain )
होम्योपैथी में इस समस्या से निपटने की अनेको दवाई है। जिनका उपयोग रोगी से प्राप्त होने वाले लक्षणों के आधार पर किया जाता है। ठीक उसी प्रकार जैसे एलोपैथी में पेट दर्द की टेबलेट नाम, ओर आयुर्वेद में पेट दर्द की आयुर्वेदिक दवा का। आयुर्वेद में इसको पेट दर्द का देसी उपचार भी कहा जाता है।
पेट से सम्बंधित समस्याओ के लिए होम्योपैथी में डायोस्कोरिया, पल्साटिला, लाइकोपोडियम, चाइना, कार्बो वेज, एण्टियम क्रूड, कैलकेरिया कार्ब, फॉस्फोरस आदि का प्रयोग होता है। जिसमे गैस आदि होनेपर कार्बो वेज आदिका प्रयोग होता है। जिसे अफारा के नाम से जाना जाता है। तैलीय, वसा युक्त आहार से होने वाली अपच में पल्साटिला आदि का प्रयोग होता है। यह विशेषकर पेट के ऊपरी हिस्से में होने वाले दर्द पर अधिक उपयोगी है।
पेट दर्द में सहयोगी आहार ( भोजन )
आयुर्वेद में दवाइयों से अधिक भोजन पर बल दिया गया है। जिसको आजकल पेट दर्द का देसी उपचार कहते है। ठीक उसी प्रकार जैसे बुखार आने पर गिलोय का काढ़ा प्रयोग होता है। जिसको गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये भी कहते है। जिनका यथावत अभ्यास करने पर रोग नहीं होता, यदि होता भी है तो कुछ दिनों का मेहमान ही होता है। जिसके कारण इनका महत्व ख्यापित होता है।
सभी प्रकार के उदार रोगो में लाल शालि चावल, जौ, मूंग – ये अन्न और जांगल प्रदेश में होने वाले पशु – पक्षियों के मांस, दूध, मूत्र, आसव, अरिष्ट, मधु, सिद्धू और सुरा का प्रयोग किया जाता है। जो रोगी की सामर्थ्यता और चिकित्सक दोनों के अनुकूल होने पर प्रयुक्त होता है। पंचमूल के क्वाथ से बनाये हुए जूस में थोड़ा सा खट्टे अनार का रस, घी और मरिच का चूर्ण मिलाकर यवागू या भात इसमें परम उपयोगी है। जबकि छाछ का प्रयोग भी अत्यंत लाभकारी है। जिसके कुछ योग इस प्रकार है –
- पेट मे दर्द होने पर न अधिक गाढ़ा, न अधिक पतला एवं मधुर स्वाद वाला मठ्ठा पीना हितकारी है।
- वात प्रधान रोगी को पील का चूर्ण ओर नामक मिलाकर मठ्ठा पीना चाहिए।
- पित्त प्रधान रोगी को चीनी तथा मुलेठीका चूर्ण मिलाकर मठ्ठा पीना चाहिए।
- कफ प्रधान रोगी को अजवाइन, सेंधनमक, जीरा, सोंठ, काली मिर्च, पीपर एवं मधु मिला हुआ गुनगुना मठ्ठा पीना चाहिए। जो अधिक पतला न हो।
- वात ओर कफ दोष से पीड़ित व्यक्ति को दस्त होने पर मठ्ठे का सेवन अमृत के सामान है। इन प्रयोगो को भी पेट दर्द का देसी उपचार कहा जाता है।
पेट दर्द में पूछे जाने वाले प्रश्न ( FAQ Related To Stomach Pain )
पेट में हल्का हल्का दर्द क्यों होता है?
प्लीहा और यकृत में सूजन आदि के कारण, पेट में हल्का हल्का दर्द बना रहता है।
कैसे 5 मिनट में पेट दर्द से छुटकारा पाए?
गुनगुने पानी से हींग का सेवन करे या अजवाइन, जीरा और काला नमक को गुनगुने पानी से ले।
पेट दर्द की सबसे अच्छी दवा कौन सी है?
सोंठ, काली मिर्च ( मरिच ), पीपर, जवाखार और सेंधानमक मिलाकर मठ्ठा पिए।
गैस का दर्द कहाँ कहाँ होता है?
जहा जहा गैस की पहुंच होती है। वहा वहा दर्द होने की पूर्ण संभावना होती है। जैसे पीठ, छाती आदि। सामान्यतया सर्दियों में गैस के कारण, पीठ के ऊपरी हिस्से में दर्द होता है। जबकि गर्मियों में गैस के कारण पेट में दर्द होता है।
पेट दर्द के घरेलू उपचार
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