तिल्ली का बढ़ना पेट से सम्बंधित रोग है। जिसको आयुर्वेद में प्लीहावृद्धि भी कहा जाता है। जिसकी चर्चा आयुर्वेद में उदर रोग नामक अध्याय में की गई है। जिसमे इसके विविध आयामों पर प्रकाश डाला गया है। जैसे तिल्ली बढ़ने का आयुर्वेदिक इलाज आदि। जबकि तिल्ली का उपचार अनेक प्रकार से किया जाता है। जिसको सामान्यतः तिल्ली बढ़ने का इलाज कहा जाता है। जिस प्रकार बाई ओर तिल्ली बढ़ती है। उसी प्रकार दाई ओर लीवर बढ़ने जैसी समस्याए होती है।
चिकित्सीय ग्रंथो में ( विशेषकर काय चिकित्सा प्रधान ) पेट को, शरीर का ऊर्जा का स्रोत माना गया है। जिसके आधारपर पेट को केंद्र में रखकर विचार करने पर, इससे सम्बंधित अनेको रोगो की प्राप्ति होती है। जैसे गैस बनना, बदहजमी, अफारा, अध्यमान , पेट फूलना और जिगर तिल्ली का बढ़ना ( तिल्ली बढ़ना ) आदि है। जिनके अलग – अलग व्यक्तियों में भिन्न – भिन्न कारण होते है। जिसके अनेक हेतुओ कीबात चिकित्सा जगतमें स्वीकार की जाती है। जबकि आयुर्वेदादी शास्त्रों में, मुख्यतः शरीरगत दोषो को उत्तरदायी माना जाता है। जिनको पेट दर्द के कारण आदि के रूप में देखा जाता है।
जिनके हेतु के रूप में भोजन, दिनचर्या, ऋतुचर्या आदि की विसंगति को बताया गया है। इन विसंगतियों का सीधा प्रभाव देहगत दोषो पर होता है। जिनको प्रकृतिगत शारीरिक दोष कहा जाता है। इस कारण प्रत्येक व्यक्ति में, किसी न किसी दोष की प्रधानता अवश्य होती है। जिसको किसीभी उपाय का आलंबन लेकर समाप्त करना असंभव है। बल्कि देहप्रधान दोष को पहचानकर अनुकूल चिकित्सीय योगो के द्वारा, केवल इनको नियंत्रित रखा जा सकता है। और आजीवन निरोगी रहा जा सकता है।
तिल्ली का बढ़ना क्या है (what is spleen enlargement in hindi)
वाहय अथवा आंतरिक कारणों से शरीरगत दोषो में आनुपातिक असंतुलन, होने से प्लीहा में शोथ या सूजन होती है। जिसके कारण प्लीहा के आकार में प्रसार होता है। तो उसको ही तिल्ली का बढ़ना कहते है। आजकल आधुनिक विज्ञान का बोलबाला है। जिसमे वाहय कारण के रूप में विविध प्रकार के, जीवाणु और विषाणु जनित संक्रमण को बताया जाता है। जबकि आंतरिक कारणों में रोग प्रतिरोधक शक्ति के, ह्रास को स्वीकार किया है। जिसको आयुर्वेद ने समग्रता से देखने के कारण, शरीरगत दोष के रूप में स्वीकारा है।
अब बात तिल्ली का बढ़ना अर्थ (spleen enlargement meaning), तो उपरोक्त कारणों के कारण प्लीहा में वृद्धि है। हल्के तिल्ली का बढ़ना अर्थ में कम सूजन होना है। जिसको मध्यम तिल्ली का बढ़ना अर्थ भी कहते है। जो सामान्यः तिल्ली के बढ़ने पर ही होता है। जिसके निदान को हल्के तिल्ली का बढ़ना उपचार कहते है। प्लीहावृद्धि को लेकर लोगो के मन अनेको प्रश्न होते है। जैसे – तिल्ली का बढ़ना क्या होता है, तिल्ली बढ़ना क्या है, तिल्ली बढ़ना किसे कहते हैं इत्यादि? ऐसा होने पर खांसी की समस्या भी होती है। जिसके लिए खांसी का इलाज की आवश्यकता है।
पेट में तिल्ली कहां पर होती है
मानव शरीर रचना क्रिया विज्ञान के अनुसार विचार करने पर, प्लीहा का स्थान पेट के बाए हिस्से में है। जबकि पेट का स्थान छाती और कमर के मध्य है। छाती के बाए पार्श्व में हृदय का स्थान है। जो रक्त का मुख्य स्रोत है। और आयुर्वेद के अनुसार प्लीहा रक्त से उत्पन्न होती है। इस आधार पर प्लीहा और हृदय का घनिष्ट सम्बन्ध है। जिसके कारण हृदय के ठीक नीचे प्लीहा होती है। जिसको सामान्य रूप से बाए भाग में ह्रदय से नीचे, और पेट के बाए भाग में ऊपर रहती है। जिसमे प्रसार होनेको स्प्लेनोमेगाली या तिल्ली का बढ़ना कहते है। जिसके लिए तिल्ली बढ़ने का इलाज की आवश्यकता होती है।
तिल्ली का बढ़ना के कारण (spleen enlargement causes in hindi)
हिंदी में तिल्ली का बढ़ना कारणों ( spleen enlargement reasons ), उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त कुछ अन्य कारण है। जिसको spleen enlargement meaning in hindi भी कहते है। जो निम्न है –
- भोजन करने के बाद सवारी द्वारा यात्रा करना
- अधिक भार या बोझा ढ़ोने से
- अत्यधिक स्त्री प्रसंग करने से
- अधिक दूर तक पैदल चलने से
- अधिक उल्टियों के हो जाने से
- किसी बीमारी आदि के कारण कमजोर हो जाने आदि से
पेट के बाए भाग में स्थित तिल्ली ( प्लीहा ), अपने स्थान से हटकर धीरे – धीरे बढ़ने लगती है। जिसके परिणाम स्वरूप पेटमें दर्द आदि की समस्या होती है। जिससे रोगीमें अनेको प्रकारके लक्षणों की प्राप्ति होने लगती है। जिसके लिए तिल्ली बढ़ने का इलाज की आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए आयुर्वेद में भी अनेको रामबाण उपाय है। जिनको तिल्ली बढ़ने का आयुर्वेदिक इलाज कहा जाता है। अल्ट्रासाउंड में तिल्ली का आकार आदि का पता लग जाता है। जिसमे तिल्ली का चित्र स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है। इसको कुछ लोग तिल्ली का बढ़ना उदारवादी भी कहते है।
तिल्ली का बढ़ना के लक्षण (spleen enlargement symptoms in hindi)
सामान्यतः सूजनादि के कारण प्लीहा ( तिल्ली ) बढ़ती है। जिनको तिल्ली का बढ़ना लक्षण कहते है। इनको ही तिल्ली में सूजन के लक्षण भी कहा जाता है। जिनकी लक्षणों के आधार पर पहचानकर चिकित्सा की जाती है। जिसको तिल्ली बढ़ने का इलाज कहा जाता है। रोगोपचार सिद्धान्तानुसार इस रोग में निम्न लक्षण पाए जाते है –
- शरीर में दुर्बलता या कमजोरी का होना
- भोजन के प्रति अरुचि
- खाये हुए भोजन का ठीक से पाचन न होना
- मल और मूत्र में रुकावट होना
- आँखों के सामने अंधेरा- सा छा जाना
- बार – बार प्यास का लगना
- अंगो में मसलने के सामान पीड़ा होना
- उल्टी, मूर्छा और अंगो का शिथिल पड़ जाना या इनसे पीड़ित होना
- खांसी, श्वास, हल्का बुखार, आनाह, मंदाग्नि आदि होना
- मुँह में फीकापन, जोड़ – जोड़ में दर्द होना
- पेट में कोष्ठबद्धता होने के कारण दर्द होना। जिसके लिए कब्ज का रामबाण इलाज की आवश्यकता होती है।
- पेट के ऊपरी भाग के रंग परिवर्तित होना। जैसे लाल या नीला हो जाना, अपने स्वाभाविक रंग से रहित हो जाना।
तिल्ली का नार्मल साइज (spleen enlargement size in hindi)
सभी की शारीरिक बनावट में कुछ भेद होता है। जबकि क्रियाप्रणाली सामान होती है। जिसके कारण उनमे पाए जाने वाले अंगो के आकार में, कुछ अंतर होता है। ठीक यही बात तिल्ली पर भी लागू होती है। जिसके कारण तिल्ली के आनुपातिक आकार को, चिकित्सा सन्दर्भ में लिया जाता है। जिसका पता सोनोग्राफी (ultrasound) आदिके माध्यम से लगाया जाता है। जो 12 – 14 सेमी के होने पर सामान्य समझा जाता है। इससे अधिक होने पर रोग ग्रस्त माना जाता है।
तिल्ली के वजन 500 ग्राम सामान्य है। जबकि तिल्ली का आकार 11 – 20 सेमी ( 4.3 – 8 इंच ) होता है। वजन 1000 ग्राम और लम्बाई 20 सेमी से, अधिक होने पर इसको स्प्लेनोमेगाली (splenomegaly) कहा जाता है। इनको तिल्ली का बढ़ना की सीमा रेखा भी कहा जाता है। जिसके उपचार को तिल्ली बढ़ने का इलाज कहा जाता है। जब इसका उपचार आयुर्वेदमें उल्लेखित औषधियों द्वारा किया जाता है, तो उसे तिल्ली बढ़ने का आयुर्वेदिक इलाज कहते है। गिलोय घनवटी पेट की समस्याओ में उपयोगी है। जिसकी सेवन विधि को गिलोय घनवटी कब खाना चाहिए, कहते है।
तिल्ली का बढ़ना स्वपरीक्षण (enlarged spleen self test)
तिल्ली बढ़ने के परीक्षण अत्याधुनिक तकनीकी द्वारातो होता ही है। इसके साथ ही इसका परीक्षण मौखिक रूप से, भी किया जा सकता है। प्लीहा रोग से पीड़ित व्यक्ति के प्लीहा स्पर्श करने पर, पत्थर के समान कड़ी लगती है। आरम्भ में जब वह बढ़ती है, तो छूने पर कछुए के समान प्रतीत होती है। जब समय पर इसकी चिकित्सा नहीं के जाती है, तो यह पूरे पेट के सहित इससे सम्बद्ध अंगो को, अपने आवेश में ले लेती है। जिसको आयुर्वेद में तिल्ली बढ़ने का आयुर्वेदिक इलाज कहते है। तिल्ली बढ़ने को (Enlarged Spleen in Hindi) भी कहते है।
तिल्ली का बढ़ना उपचार (spleen enlargement treatment)
रोग निदान शास्त्रों के अनुसार किसी भी व्याधि का उपचार, मुख्य रूप से दो बातो पर निर्भर है। व्याधिग्रस्त दोष प्रधान देह प्रकृति और रोग लक्षण। जिनको केंद्र में रखकर चिकित्सा के विधान है। जिसमे रोग, रोग कारण, रोग निवृत्ति के उपाय और रोग निवृत्ति के कसौटिया सम्मिलित है। इनको ही संक्षेप में पूर्ण चिकित्सा कहा जाता है। यह चिकित्सा के सनातन सिद्धांत है। जो दर्शन, विज्ञान और व्यवहार तीनो में सामंजस्य के कारण अजेय है। यह आयुर्वेद के सार्वभौमिकता है। जिसको अपनाने से सर्वहित सन्निहित है।
आयुर्वेद के अनुसार वात, पित्त और कफ नामक तीन प्रमुख दोष है। जिनका पारस्परिक संतुलन स्वास्थ्य के द्योतक है। इनका असंतुलन व्याधि ग्रस्तता या अस्वस्थ्यता है। जिसको निर्मूल करने को उपचार कहा जाता है। जिसके लिए आयुर्वेदिक दवाइयों के आवश्यकता होती है। इसको ही spleen enlargement treatment in hindi कहते है। देह उपचार के आज अनेको पद्धतियाँ है। जिनमे आयुर्वेद, योग, होम्योपैथी, एलोपैथी आदि है। जिनका उपयोग लोग रोगोपचार और स्वास्थ्यरक्षण के लिए करते है।
जिस प्रकार आयुर्वेद द्वारा तिल्ली बढ़ने का आयुर्वेदिक इलाज है। उसी प्रकार अन्य पद्धतियों में इसके उपचार व्यवस्था है। जिसको तिल्ली बढ़ने का इलाज कहा जाता है। गिलोय का सेवन पेट की समस्या में उपयोगी है। जिसको गिलोय सेवन विधि कहते है।
तिल्ली का बढ़ना घरेलू उपचार (enlarged spleen natural treatment)
वास्तव ने घरेलू उपाय आयुर्वेदीय उपचार है। जिसका उल्लेख सनातन चिकित्सीय सहिताओ में है। जो आज भी प्रभावी और असरदार है। जिसका कारण औषधिगत स्वाभाविक गुणों के विद्यमानता है। जिनके रहने पर ही द्रव्यके सत्ता और उपयोगिता है। इनके कारण ही घरेलू नुस्खों के रूप में इनकी प्रसिद्धी है। आयुर्वेदवर्णित होने के कारण इनको तिल्ली बढ़ने का आयुर्वेदिक इलाज, भी चिकित्सा विशेषज्ञों के द्वारा माना जाता है। पाचन क्रिया की विसंगति के कारण ही पेट की समस्याए होती है। जिसके लिए पाचन क्रिया कैसे सुधारे को जाननेकी आवश्यकता है।
घरेलू उपायों द्वारा तिल्ली बढ़ने का इलाज के, कुछ योग निम्न है –
- पूर्ण रूप से पके हुए आम का रस मधु मिलाकर, पीने से प्लीहा अवश्य शांत हो जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं है।
- प्लीहा की शांति के लिए सेमल के फूल को उबालकर, रात भर पड़ा रहने दे। फिर प्रातः काल राई के चूर्ण के साथ खाना चाहिए।
- मदार के पत्तो को नमक के साथ पुटपाक द्वारा जलाकर, चूर्ण करके दही के तोड़ के साथ पीने से। अत्यंत दारुण प्लीहा भी नष्ट हो जाता है।
तिल्ली का बढ़ना की आयुर्वेदिक औषधिया (Ayurvedic Medicine for Spleen Enlargement in Hindi)
जिस प्रकार आयुर्वेद में ज्वर आदि की औषधिया है। उसी प्रकार तिल्ली के उपचार की औषधिया भी है। जिनको तिल्ली बढ़ने का आयुर्वेदिक इलाज कहते है। इन्ही औषधियों को आंग्ल भाषा में (medicine for spleen enlargement), कहते है। हींग, सोंठ, मिर्च, पिप्पली, अजवायन, पीपरामूल, चित्त, दंती, कूठ, जवाखार, सेंधा नमक, बिजौरा नीबू, पलासक्षार, मदार, समुद्री सीप की भस्म, जंबीरी नीबू, शंख नाभि की भस्म, शेरपुंखा की जड़, पके आम का रस, सेमल फूल आदि का प्रयोग होता है।
इन औषधियों के द्वारा तिल्ली बढ़ने का इलाज होता है। जिनको कुछ आनुपातिक योगो के वर्णन यहाँ किया गया है। जिनके द्वारा तिल्ली का उपचार किये जानेके विधान निर्धारित है। यह तिल्ली का बढ़ना ( tilli kaa badna ) में उपयोगी है। इनमे से कुछ औषधिया ऐसी है, जो बुखार की सबसे अच्छी दवा है। इनको tilli kaa ilaaj भी कहते है।
तिल्ली बढ़ने का आयुर्वेदिक इलाज (Spleen Enlargement ayurvedic treatment in Hindi)
आज के समय में भोजन, दिनचर्या आदि की विसंगति के कारण रोग व्यापता है। जिनको शीघ्रातिशीघ्र दूर में ही हमारा कल्याण है। आधुनिकता आदिके कारण इनका परित्याग करनेमें हम मोह करते है। जिसके कारण आजीवन रोगो के मायाजाल में फंसे रहते है। इनको ही आधुनिक जीवन की स्वस्थ दिनचर्या कहते है। जबकि तिल्ली बढ़ने का आयुर्वेदिक इलाज में औषधियों, दिनचर्या, खान – पान आदि पर भी उतना ही बल दिया गया है। जितना की उपचार में उपयोगी औषध द्रव्यों पर। आज तिल्ली बढ़ने का आयुर्वेदिक इलाज patanjali मेंअनेको दवाइया है। जिससे तिल्ली बढ़ने के उपचार किया जाता है।
यहाँ पर कुछ विशेष तिल्ली से सम्बंधित योगो को, रखा जा रहा है। जो आसान और उपयोगी है।
- प्लीहा के शांति के लिए समुद्र के सीप के भस्म, को युक्तिपूर्वक दूध के साथ पीना चाहिए। अथवा पिप्पली के चूर्ण को दूध के साथ पिए।
- सोंठ, पिप्पली, मिर्च, हींग, जवाखार, कूट और सेंधानमक के चूर्ण को बिजौरे नीबू के रस, के साथ पीने से प्लीहा तथा शूल नष्ट होता है।
- पलाशक्षार के जल से भावित पिप्पली चूर्ण, तिल्ली के पीड़ा को शांत करता है। इसके साथ ही अग्निमाद्य को दूर करता है।
- जंबीरी नीबू के रस के साथ चार माशे के, मात्रा में शंखनाभि के भस्म को सेवन करने से। कछुए के समान प्लीहा अवश्य ही शीघ्र पूर्णतया नष्ट हो जाती है।
- शरपुन्खा के जड़ की चटनी को मठ्ठे में घोलकर, पीनेसे किसी भी प्रकार की तिल्ली नष्ट हो जाती है।
तिल्ली बढ़ने का होम्योपैथिक इलाज (Spleen Enlargement treatment in homeopathy)
होम्योपैथी में तिल्ली का इलाज की अनेको दवाईया है। जैसे – कार्बो वेज, लाइकोपोडियम, ब्रायोनिया, नाइट्रिक एसिड, लाइकोपोडियम, नक्स वोमिका, लैकेसिस आदि है। जिनका उपयोग रोगी से, प्राप्त होने वाले लक्षणों के आधार पर होता है। जिनको तिल्ली का बढ़ना की दवाई कहा जाता है। इनसे तिल्ली के उपचार होने के कारण, तिल्ली बढ़ने का इलाज भी कहा जाता है।
तिल्ली का बढ़ना कम करने में सहयोगी भोजनाहार (spleen enlargement diet)
आयुर्वेदादी शास्त्रोंमें विशुद्ध आहार सेवन की बात बताई गई है। जिसमे भोजनादि को लेकर वृहद् विवेचन है। जिसमे अभक्ष्य, अभोज्य और कलंज भोजन के विधान है। इसके साथ ही विरुद्ध, अपथ्य आदि भोजन की बात भी स्वीकारी गई है। जिसमे प्रमाद होनेके कारणभी अनेको प्रकार की व्याधिया होती है। इनको ही समग्रता से आयुर्वेद ने पथ्यापथ्य कहा गया है। जिसको तिल्ली बढ़ने का आयुर्वेदिक इलाज भी कहते है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को मूंग, शालीचावल, जौ, दूध, आरिष्ट, आसव, मधु आदि के प्रयोग के विधान है। इसके साथ जांगल प्रदेश में उत्पन्न पशु – पक्षियों के मांस, सीधु और सुरा के भी विधान है।
पंचमूल क्वाथ से तैयार जूस, या मांसरस में हलके खट्टे अनार का रस, घी और कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर यवागू, या भात खाने को दे। जबकि जल या जल प्रधान देश में उत्पन्न होने वाले प्राणियों ( जैसे मछली, कछुआ आदि ) के मांस, अनेक प्रकार के पत्रशाक, चावल के आटे द्वारा बनाये गए व्यंजन, तिल आदि के प्रयोग वर्जित है। गर्म, नमकीन, विदाहकारक, खट्टे, गुरु, भोज्यपदार्थो का सेवन और अधिक जल पीना, तिल्ली रोगियों के लिए असेवनीय है। जबकि गिलोय का काढ़ा परमोपयोगी है। जिसके लिए गिलोय का काढ़ा कैसे बनाए को जानना चाहिए।
प्लीहा रोग से पीड़ित रोगी को सेंधानमक, मधु, तिल के तेल, मीठा वाच, सोया, सोंठ, मीठा कूट – ये सब मिलाकर मठ्ठे में पीने के लिए दे। अत्यधिक कमजोर रोगियों को गाय, भैंस और बकरी के दूध पीने के लिए दे। जिसमे भारतीय नस्ल को ही उपयोगी माना गया है। यह सभी उपाय तिल्ली बढ़ने का आयुर्वेदिक इलाज है।
तिल्ली का बढ़ना के लिए योग (Yoga For Spleen Enlargement in Hindi)
योग प्रकट फल देने के कारण दुनियाभर में प्रसंशित है। जिसके कारण लोग इसका प्रयोग रोगोपचार में करते है। प्लीहा या तिल्ली का बढ़ना रोगों में परिश्रम वर्जित है। जिसके कारण उपयुक्त आसान और प्राणायाम का प्रयोग करना चाहिए। षड्दर्शनो में योग दर्शन भी है। जिसके स्वस्थ्य को लेकर भी विचार किया गया है। जबकि आयुर्वेद में तो तिल्ली बढ़ने का आयुर्वेदिक इलाज, का विस्तृत विवेचन है ही।
फिर भी आसानी से कम मेहनत वाले आसनादि को किया जा सकता है। जैसे अनुलोम – विलोम, भ्रामरी आदि। उपरोक्त सभी उपायों में विषय विशेषज्ञ की सलाह अपेक्षित है।
तिल्ली का बढ़ना से सम्बंधित प्रश्न (FAQ related to spleen enlargement)
पेट में तिल्ली बढ़ने से क्या होता है?
पेट में तिल्ली बढ़ने से अनेको प्रकार की समस्याए होती है। जैसे पेट में मरोड़, जलन और दर्द आदि।
स्प्लीन या तिल्ली का कार्य क्या है?
यह मृत लाल रक्त कोशिकाओं को समाप्त करती है। जिसके कारण इसको आरबीसी का कब्रिस्तान भी कहते है। यह रक्त का संचित भण्डार भी है।
तिल्ली बढ़ने के क्या कारण है?
मलेरिया, टी बी ( टुबरकुलोसिस ) आदि संक्रमणों, दिनचर्या, भोजन इत्यादि की विसंगति के कारण प्लीहावर्धन की समस्या आमतौर पर होती है। किन्तु यकृत रोगो के साथ कुछ प्रकार के कैंसर भी इसमें शामिल हो सकते है।
शरीर में खून ( रक्त ) कँहा बनता है?
आधुनिक विज्ञान के अनुसार रक्त अस्थिमज्जा में बनता है। जबकि आयुर्वेद के अनुसार प्लीहा और यकृत में बनता है।
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