बवासीर में घी खाना चाहिए या नहीं : bavasir mein ghee khana chahie ya nahin

बवासीर के रोगियों के लिए घी खाना एक अच्छा उपाय माना जाता है। किन्तु बवासीर में तैलीय वस्तुओ के सेवन से परहेज करने की सलाह दी जाती है। जिससे हमारे मन में बवासीर में घी खाना चाहिए या नहीं की शंका हो ही जाती है।

इस कारण बवासीर से पीड़ित व्यक्ति बार – बार सोचता है कि बवासीर में घी खा सकते हैं या नहीं? हालांकि ज्यादातर लोग बवासीर में घी का प्रयोग करते है। जिसमे वो देशी घी को अच्छा मानते है, तो आइये जानते है कि बवासीर में देसी घी खाना चाहिए या नहीं?

बवासीर में घी खाना चाहिए या नहीं

पेट में जब किसी कारणवश रुक्षता ( रूखापन ) आने लगती है। तब कब्जियत होने के लक्षण दिखने लगते है। जिसमे अपान वायु प्रतिलोमित होकर, मंदाग्नि पैदा करती है। जिसके कारण गुदा की शिराओ में दाब पड़ता है और वो फूल जाती है।

जिसको चिकित्सा विशेषज्ञ बवासीर के लक्षण कहते है। जो किसी भी आयु वर्ग के स्त्री – पुरुष में हो सकता है। हालांकि महिला बवासीर के लक्षण और पुरुष बवासीर के लक्षण लगभग सामान होते है। जिसके उपचार में बवासीर के घरेलू उपाय सर्वाधिक उपयोगी है।   

यह बवासीर खूनी और बादी दो प्रकार की हो सकती है। जिनकी पहचान खूनी बवासीर के लक्षण एवं बादी बवासीर के लक्षण से लगाईं जा सकता है। जिसमे खूनी बवासीर गुदा के भीतरी भाग में पायी जाती है। वही बादी बवासीर गुदा के बाहर होने से बाहरी बवासीर भी कही जाती है। जिनका उपचार करने में बवासीर की गारंटी की दवाई लाभकारी है। 

घी बनाने की विधि

आजकल घी को वसा आदि का स्रोत माना जाता है। जिसमे घी को संतृप्त वसा का आदर्श रूप कहा गया है। जबकि आयुर्वेद आदि में, आयुर्वेदिक विधा से बनाया गया घी बवासीर के लिए अमृत तुल्य है। इस आधार पर एकमात्र आयुर्वेद में, वर्णित प्रक्रिया से बनाया गया घी ही घी कहने योग्य है। अन्य कोई नहीं।

जिसके लिए विशद्ध नस्ल की गाय ( उपलक्षण ) का, प्राकृतिक गर्भाधान से युक्त होना आवश्यक है। इतने पर भी गाय से दूध प्राप्त करने की विधि भी सात्विक होनी चाहिए। अर्थात गाय को मार – पीटकर, इंजेक्शन आदि का आलंबन लेकर दूध न निकाला जाय।

फिर दूध को मिट्टी की हांडी में कंडे ( उपलों आदि ) पर पकाया जाय। तदुपरांत अमलांश ( जावन ) डालकर दही बनाकर, बिलोनी ( मथानी ) से बिलोकर ( मथकर ) मक्खन निकाला जाय। जिसको धीमी आंच में तपाकर, छानने से घी प्राप्त होता है। जो सर्वथा दोषो से रहित होता है।

जिस प्रकार बवासीर के उपचार की विधि में दोष होने पर, रोग से उपरत हो पाना संभव नहीं। उसी प्रकार घी बनाने की प्रक्रिया में विसंगति होने से, घी में दोष आना तय है। जिसका सेवन करने पर बवासीर जैसे रोग होना भी निश्चित है। इतना ही नहीं बवासीर में घी खाने से अनेक लाभ होते है, लेकिन इसको सही तरीके से खाना जरूरी है। अब इतना जान लेने के बाद, क्या बवासीर में घी खाना चाहिए का संशय नहीं बचता। 

बवासीर में घी खाने के फायदे 

बवासीर में घी खाने के फायदे 

आयुर्वेद में घी के सेवन से होने वाले लाभ, इस प्रकार बताये गए है – 

  • घी पाचकाग्नि को बढ़ाने वाला है।
  • घी खाने से कब्जियत दूर होती है।
  • घी अपान वायु का अनुलोमन करता है।
  • घी रक्तपित्त विकार को मिटाता है।
  • घी सेवन करने से शरीर में बल बढ़ता है।
  • सामान्यतः घी वात और पित्त को मिटाने वाला और कफ कारक माना गया है। जबकि गाय और बकरी का घी त्रिदोषों का शमन करता है।
  • घी शरीर की दाह को मिटाकर शीतलता प्रदान करता है।
  • घी पेट के अधिकाँश रोगो को मिटाता है।

उपसंहार :

आज घी को लेकर इतना भ्रम फैल चुका है कि हर कोई किसी न किसी संशय का शिकार है। जिसके कारण बवासीर रोगी घी खाने को लेकर एक बार अवश्य विचार करता है कि बवासीर में घी खाना चाहिए या नहीं? उन्नत तकनीकी में जानकारी आसान है, लेकिन सही जानकारी मिल पाना आज भी कठिन है। इन सब के बावजूद बवासीर में घी खा सकते हैं या नहीं को सही तरीके से जानना ज्यादा जरूरी है।

आजकल देशी घी का चलन ज्यादा है। जिसे कुछ लोग घी से भी अच्छा मानते है। इस कारण बवासीर में घी का प्रयोग करते भी है तो देशी घी का। लेकिन बवासीर में देसी घी खाना चाहिए या नहीं का निर्णय करने से पहले तथ्यात्मक विचार अवश्य करना चाहिए। इसके आधार पर ही बवासीर में घी खाना चाहिए कि नहीं सोचना चाहिए। 

किसी भी वस्तु का विधि पूर्वक और मात्रात्मक उपयोग सदैव लाभकारी होता है। वही अमात्रात्मक और विधि को ताक पर रखकर किया गया उपयोग विषकारी है। जिसका स्मरण रखकर बवासीर में घी का सेवन करने वाला शीघ्र ही बवासीर को जीत लेता है। 

चरकानुसार दिव्य औषधियों से सिद्ध घी बवासीर में बहुत उपयोगी है। जबकि सुश्रुतानुसार घी अग्नि का दीपन करता है। जिसमे पिपल्यादिघृत अत्यंत श्रेष्ठ है। अस्तु मात्रानुसार बवासीर में दोष युक्त नहीं, अपितु दोष रहित घी निश्चिन्त होकर खा सकते है।

सन्दर्भ :

चरक संहिता चिकित्सा अध्याय – 14

सुश्रुत संहिता चिकित्सा अध्याय – 06

अष्टांग हृदय चिकित्सा अध्याय – 08

अष्टांग संग्रह चिकित्सा अध्याय – 10

भैषज्यरत्नावली चिकित्सा अध्याय – 09

भाव प्रकाश – घृत वर्ग 

FAQ

बवासीर में घी खाना चाहिए कि नहीं?

आयुर्वेद में बताये नियमो का पालन कर बनाई गई घी, बवासीर में बहुत ही उपयोगी है। यह शरीर को शीतल, स्निग्ध बनाने के साथ मंदाग्नि को दूर करती है।   

क्या घी पाइल्स के लिए अच्छा है ( is ghee good for piles )?

पाइल्स के इलाज में घी खाना गुणकारी है। परन्तु ध्यान रखे कि घी शुद्ध होना चाहिए, अर्थात इसको बनाने की विधि में त्रुटि नहीं होनी चाहिए। 

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