गुदा की शिराओ में खून जमकर, मस्से निकलना बवासीर के लक्षण है। इसमे बवासीर से पीड़ित रोगी की गुदा के अंदर या बाहर, अथवा दोनों स्थानों पर सूजन आ सकती है। जिसमे चावल खाने से हिलने – डुलने, उठने – बैठने जैसी क्रियाओ में तकलीफ बढ़ सकती है। इसलिए बवासीर में यह जान लेना अतिआवश्यक है कि बवासीर में चावल खाना चाहिए या नहीं?
बाबासीर के मरीजों के लिए सुबह मल त्याग करना, किसी चुनौती से कम नहीं होता। जिसके कारण बवासीर रोग में ज्यादातर लोग रोटी के स्थान पर, चावल खाना पसंद करते है। जिसका सबसे बड़ा कारण मलत्याग में सरलता को मानते है। जो खूनी बवासीर के लक्षण पर उतना ही प्रभाव दिखाता है। जितना कि बादी बवासीर के लक्षण पर।
हालांकि खूनी बवासीर और बादी बवासीर में मुख्य रूप से पित्त और वात एवं कफ दोष जिम्मेदार होते है। जिनसे निपटने में खूनी बवासीर में क्या खाना चाहिए और मस्से वाली बवासीर में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं को जानना अतिमहत्वपूर्ण है। जिसका मुख्य कारण हमारा भोजन है। जिसके बिना रोग तो क्या स्वस्थ्य व्यक्ति भी जीवित नहीं रह सकता।
बवासीर के मस्सों को जड़ से खत्म करने का उपाय करने में, बवासीर में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं को जानना फायदेमंद है। इनके बिना बवासीर रोगी के देहगत दोष को नहीं हटाया जा सकता। अर्थात रोग कारण को समाप्त नहीं कर सकते। जिसके कारण रोग को जड़ – मूल से नहीं हटा सकते। आइये अब विस्तार से जाने की बवासीर में चावल खाना चाहिए या नहीं?
बवासीर में चावल खा सकते हैं या नहीं
जब बवासीर में चावल खाना चाहिए कि नहीं की बात आती है। तब प्रश्न उठता है कि क्या सभी तरह के चावल बवासीर में नहीं खाने चाहिए। या केवल कुछ विशेष प्रकार के। जबकि आयुर्वेद में चावलों के अनेक भेद बताये गए है। इसलिए बवासीर में चावल खाने चाहिए या नहीं, यह जानना बवासीर में और भी जरूरी हो जाता है।
चावल में कार्बोहाइड्रेट सर्वांश में पाया जाता है। जिसकी परिणिति अर्थात पाचन के दौरान ग्लूकोज में बदल जाता है। जिससे हमे आवश्यक ऊर्जा प्राप्त होती है। लेकिन फाइबर बहुत कम अथवा न रहने से, पूरा का पूरा कार्बोहाइड्रेट एक बार में ही ग्लूकोज में बदल जाता है।
जो हमारे शरीर के लिए आवश्यक ग्लूकोज से बहुत अधिक होता है। जिसको छिपाने के लिए हमारा शरीर इसे खून में मिला देता है। जिससे रक्त की विकृति उत्पन्न होती है। जो बवासीर होने का एक प्रमुख कारण है।
पॉलिस किये हुए सफेद चावल में फाइबर नहीं के बराबर होता है। जिससे मल आंतो में चिपकता है। जिसके कारण मलवाही स्रोत दूषित हो जाते है, और मल शरीर के बाहर नहीं जा पाता। इस कारण मल एक जगह पड़े – पड़े सड़ने लगता है। जिससे इसके रंग आदि में परिवर्तन होने के साथ सूखा और सख्त हो जाता है।
जिसको निकालने के लिए मलत्याग के समय, गुदवलियो पर जोर लगाना पड़ता है। जिसके प्रभाव में आकर बवासीर के मस्सों में रगड़ लगती है। जिसके कारण इनमे दर्द और खून निकलने लग सकता है।
जबकि आयुर्वेद में कुछ ऐसे विशेष चावल बताये गए है। जिनकी स्वाभाविक प्रकृति बवासीर में सेवन के अनुकूल होती है। जो हमें न केवल बवासीर से होने वाली दिक्क्तों से बचाती है, बल्कि हमें पोषण भी प्रदान करती है। इस आधार पर हमें यह विचार करना चाहिए कि बवासीर में कौन से चावल खाने चाहिए, न कि बवासीर में चावल खाना चाहिए या नहीं?
हालाकिं आयुर्वेद की दृष्टि में बवासीर में चावल खाना गुणकारी है। लेकिन कुछ विशेष चावल जैसे लाल शालि इत्यादि। वही आधुनिक आहार विषेशज्ञ बवासीर में चावल खाने से बचने की सलाह देते है।
बवासीर में कौन से चावल खाने चाहिए
आयुर्वेदानुसार बवासीर रोग में पुराने लाल शालि चावल व साठी के चावल कुलत्थ प्रशस्त है। जबकि कोदो चावल भी अत्यंत उपकारी है। क्योकि इस चावल का भात पकाने पर, हल्का हो जाता है। जिससे यह आसानी से पचता है। इसलिए बवासीर रोगियों के लिए इन दो चावलों के अतिरिक्त अन्य कोई चावल खाना नुकसानदायक हो सकता है।
साठी का चावल चावलों की विशेष किश्म है। जो बहुत ही कम समय में तैयार हो जाती है। जिसके कारण इसकी स्वाभाविक प्रकृति में लघुता आ जाती है। जो बवासीर के रोगियों के लिए उपकारी है। जबकि सफेद चावल भारी होता है। जिससे बवासीर में चावल खाना हम लोगो के लिए एक बड़ी चुनौती है।
आधुनिक आहार – विशेषज्ञ बवासीर में ब्राउन राइस ( brown rice ) अथवा भूरे रंग के चावल को, खाना उपयोगी मानते है। ऐसा कहा जाता है कि इन चावलों में चोकर पाया जाता है। जिसमे फाइबर पाया जाता है। जबकि चिकित्सा विशेषज्ञ बवासीर में, सफेद चावल को खाने से बचने की सलाह देते है। जिसके कारण बवासीर के मरीजों के लिए चावल खाना एक बड़ी चुनौती बन जाती है।
इस आधार पर बवासीर में चावल खाना चाहिए कि नहीं? तो उत्तर स्पष्ट है कि बवासीर में सफेद चावल खाना हानिकर है, न कि सभी तरह के चावल। इनमे भी अधिकाँश लोग चावल का मतलब सफेद चावल ही समझते है। जिसके कारण बवासीर में चावल खाने से बचने की सलाह दी जाती है। न कि साठी और शालि चावल।
बवासीर में चावल कैसे खाएं
बवासीर में कौन से चावल खाने चाहिए को जानने के बाद, आइये जानते है कि बवासीर में चावल कैसे खाएं? ताकि आपको बवासीर में कोई तकलीफ न हो। अर्थात बवासीर में खाये जाने वाले चावलों को, पकाने और खाने की विधि जानते है। जिससे चावल खाने पर बवासीर के रोगियों को कोई तकलीफ न हो। जिसमे पहले बनाने की और फिर खाने की विधी इस प्रकार है –
सबसे पहले उपयुक्त चावलों को ठीक से धो डाले। इसके बाद कुछ समय फूलने के लिए रख दे। जब फूल जाए तो उसमे पांच गुना जल डालकर पकाये। जब भात उबलकर पक जाए, तो उसे आग से नीचे उतारकर मांड निकाल ले। इस प्रकार से मांड निकाला हुआ भात, बवासीर के लिए पूर्णतः पथ्य होता है। जिसको खाने से बवासीर में लाभ होता है।
इस प्रकार के भात का सेवन छाछ, दूध आदि के साथ करना उत्तम है। जबकि यवागू बनाकर इस भात के साथ खाना और भी अच्छा है। क्योकि यह बवासीर रोगियों के लिए अग्निकारक, रोचक और लघु होने के साथ संतर्पण करने वाला होता है। इसकारण बवासीर में चावल खाना चाहिए कि नहीं को जानना उतना ही जरूरी है। जितना कि बवासीर में दूध पीना चाहिए या नहीं .
उपसंहार:
हममे से ज्यादातर लोग अपने रोजमर्रा की, भोजन जरूरतों को पूरा करने के लिए चावल का उपयोग करते है। जिसमे अधिकाँश भाग सफेद चावल का ही होता है। जिसका सेवन बवासीर में लाभप्रद नहीं माना जाता। इसलिए बवासीर रोगियों को जानना जरूरी हो जाता है कि बवासीर में चावल खाना चाहिए या नहीं?
बवासीर रोग में चावल का सेवन हानि पंहुचा सकता है। जिसके कारण बवासीर में चावल खाने से बचना चाहिए। जबकि आयुर्वेद में लाल शालि और साठी के चावल के साथ कोदो के चावल अत्यंत गुणकारी है। जिनका सेवन न केवल हमे बवासीर रोग होने से बचा सकता है, बल्कि बवासीर से ग्रस्त होने पर भी हमे छुटकारा दिला सकता है। इसके कारण इन दो चावलों को बवासीर में औषधि के तुल्य समझा जाता है।
वही कुछ लोग काले, लाल अथवा ब्राउन राइस को बवासीर के लिए उपयोगी बताते है। जिसका कोई ठोस आधार आयुर्वेद में नहीं मिलता। इसलिए सफेद चावल का प्रयोग नियमित तौर पर, खाने के लिए भी करना अनुचित है।
ध्यान रहे : यदि धान को कूटकर खाया जाय तो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत फलदायी है।
सन्दर्भ:
चरक सहिंता चिकित्सा अध्याय – 14
सुश्रुत संहिता चिकित्सा अध्याय – 06
भैषज्यरत्नावली अर्श रोग चिकित्सा अध्याय – 09
भाव प्रकाश – कृतान्न वर्ग
नल पाक दर्शन –
FAQ
बवासीर में चावल खा सकते हैं क्या?
बवासीर में शालि और साठी चावल को खाना प्रशस्त माना गया है, न कि सफेद चावल। बाजारों में मिलने वाले ज्यादातर चावल पोलिस किये हुए होते है। जिससे देखने में और सफेद दिखाई पड़ते है। जिसमे फाइबर लगभग नहीं होता। जिससे कारण मलाशय के अंदर मल प्रसारण में कठिनाई होती है। इस कारण रोगी को बार – बार जोर लगाकर, काँखना पड़ता है। जिसके कारण गुदा की शिराओ पर दाब पड़ने से, बवासीर के मस्से कपित होकर फूल उठते है।