मानव गुदा की शिराओ में खून भरकर मांस के मस्से निकल आना, बवासीर के लक्षण कहलाते है। जिसमे देर से पचने और गैस करने वाली वस्तुओ का सेवन तकलीफदेह होता है। जबकि मछली में अन्य बहुत से पोषक तत्व पाए जाते है। जिससे लोगो में मन में संदेह होता है कि बवासीर में मछली खाना चाहिए या नहीं?
प्रायः लोगो में दो प्रकार की बवासीर देखने को मिलती है। एक जिसमे बवासीर के मस्से बहुत छोटे होते है। जिनसे कुछ न कुछ लिसलिसा अथवा खून का स्राव निकलता रहता है। जो दर्द के साथ और बिना दर्द के भी हो सकता है। ऐसी बवासीर को खूनी बवासीर के लक्षण से युक्त मना गया है।
जबकि दूसरे प्रकार की बवासीर में बवासीर के मस्सों का आकार बहुत बड़ा होता है। जिसमे असहा दर्द होता है। यह बादी बवासीर के लक्षण से युक्त माना जाता है। जिसके होने में कब्ज मुख्य रूप से पाया जाता है। जिसके कारण हम सब के मन में होता है कि पाइल्स में मछली खाना चाहिए या नहीं?
यह बवासीर महिला और पुरुष दोनों में किसी को भी हो सकती है। जिसमे दोषो में समानता होने पर एक जैसे लक्षण भी हो सकते है। परन्तु इनके बाद भी महिला बवासीर के लक्षण और पुरुष बवासीर के लक्षण में अंतर देखा जा सकता है। जिसका मुख्य कारण इनमे पाया जाने वाला जननान्त्र है।
हालांकि बवासीर या पाइल्स हमारे जीवनचर्या से जुडी हुई बीमारी है। जिसके कारण पाइल्स में क्या खाना चाहिए क्या नहीं खाना चाहिए का ध्यान रखना अपेक्षित है। जिसके लिए बवासीर में दूध पीना चाहिए या नहीं आदि बहुत सी बाते बताई गई है। बवासीर की बीमारी उन लोगो में अधिक पायी जाती है। जो अधिक समय तक बैठकर या खड़े होकर काम करते है। ऐसा होने से गुदा की शिराओ पर दाब पड़ता है। जिससे बवासीर के उग्र होने का खतरा बना रहता है।
बवासीर में मछली खाना सही है या गलत
आयुर्वेद में बवासीर रोगियों को अनूप देश में पाए जाने जीवो के भक्षण का निषेध किया गया है। और मछली अनूप देश के नदियों, तालाबों और झीलों में पायी जाती है। जिसके कारण सवाल उठना लाजिमी है कि बवासीर में मछली खाना चाहिए या नहीं? इसके अतिरिक्त बवासीर के परहेजों में, पाइल्स में क्या खाना चाहिए ( bawasir kya khana chahiye ) आदि भी बताया गया है। इसलिए सवाल उठता है कि बवासीर के मरीजों के लिए मछली खाना सही है या नहीं।
आयुर्वेदानुसार बवासीर में मछली न खाने के निम्न कारण है –
- मछली का जल में पाया जाना
- मछली को तेल में तलना
- तेल मसालों के साथ भूनने से गरिष्ट होना आदि।
उपरोक्त तीनो निषेधाज्ञाओं पर विचार करे, तो यह तीनों मछली से प्राप्त होने और बनाने में पायी जाती है। जिसका सेवन करने से बवासीर रोगी को कब्ज की समस्या होती है। जिसका प्रबल कारण रोग की पूर्वावस्था में मंदाग्नि की समस्या है। पेट में कब्ज के बनते ही अपानवायु के प्रतिलोमित होने का मार्ग प्रशस्त होता है। जिससे पाचक अग्नि अत्यंत न्यून हो जाती है। जिसके कारण बवासीर की समस्या बढ़ने लगती है।
वही पोषक विश्लेषकों के अनुसार मछली में, बहुत उपयोगी और दुर्लभ पोषक तत्व पाए जाते है। जो हमारे शरीर के लिए उपयुक्त बताये जाते है। जैसे – वसा, प्रोटीन, ओमेगा – 3 आदि। लेकिन यह सब तो पाए जाते है। फिर भी बवासीर रोगियों के इनके सेवन से बचने की ही सलाह दी जाती है। जिससे अनावश्यक परेशानियों से बचकर, आगंतुक रोग के प्रशमन होने का मार्ग प्रशस्त हो सके। इन्ही विशेषताओ के कारण बवासीर में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं का विधिवत विचार किया गया है।
उपसंहार :
आयुर्वेद में बवासीर में मछली खाना चाहिए या नहीं का विचार, रोगी व्यक्ति के रोग की शांति के लिए किया गया है। जिसमे तेल में पकी, गरिष्ट और कब्ज बनाने वाली वस्तुओ को खाने का निषेध किया गया है। जिसके कारण बवासीर रोग में मछली का सेवन नहीं करना चाहिए। रह गई बात पोषक तत्वों की तो इनके अविरुद्ध और अनुकूल विकल्प के माध्यम से उन्हें प्राप्त करना चाहिए। जिससे कम समय में सुगमता पूर्वक बवासीर जैसे रोगो को दूर किया जा सके।
सन्दर्भ :
भैषज्यरत्नावली चिकित्सा अध्याय – 09
अष्टांग ह्रदय चिकित्सा अध्याय – 08
अष्टांग संग्रह चिकित्सा अध्याय – 10