आयुर्वेद में लहसुन को रसायन कहा गया है। जिसमे भोजन में पाए जाने वाले षडरसों में से अम्लरस नहीं पाया जाता। जिससे इसको रसोन भी कहा जाता है। लहसुन में पांचरस पाए जाने से, बवासीर में लहसुन के फायदे है। जिसमे से एक बवासीर के लक्षण को दूर करना भी है। परन्तु अत्यंत तीक्ष्ण होने के कारण लोगो को भ्रम हो जाता है कि बवासीर में लहसुन खाना चाहिए या नहीं?
बवासीर मानव गुदा में होने वाली वह बीमारी है। जिसमे गुदा की शिराओ में खून के जमाव से मांस के मस्से निकल आया करते है। जिन्हे पाइल्स के लक्षण कहा जाता है। जिनको दूर करने के लिए भोजन के चुनाव पर जोर डाला गया है। जैसे – बवासीर में चावल खाना चाहिए या नहीं आदि।
आमतौर पर बवासीर की समस्या से छुटकारा पाने के लिए, बवासीर के घरेलू उपाय का प्रयोग किया जाता है। पर चिकित्सा आदि की दृष्टि से, महिला और पुरुष बवासीर के लक्षण में भेद देखा जाता है। जिससे महिला और पुरुषो में होने वाली बवासीर का इलाज अलग माना गया है।
बवासीर रोग के उपचार में, एक बात देखी जाती है। वह है रोग की पुनरावृत्ति। जिसका सबसे प्रमुख कारण दिनचर्या की अव्यवस्था है। जिसमे बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय बहुत ही लाभकारी है। परन्तु इसमें भी दिनचर्या आदि का विधिवत पालन करना ही पड़ता है।
गुदा के बाहर पायी जाने वाली बवासीर का उपचार, अंदरूनी बवासीर के उपचार की तुलना में आसानी से हो जाता है। कितुं समस्या तब अधिक दुखदायी हो जाती है। जब यह गुदा के आंतरिक हिस्सें में अर्थात न दिखाई पड़ने वाले जगहों पर हो जाती है। जिसको दूर करने के लिए फिर बवासीर का गारंटी की दवाई ही अंतिम विकल्प शेष रह जाता है।
लहसुन के गुण
आयुर्वेद के अनुसार लहसुन धातुवर्धक, वीर्यवर्धक, स्निग्ध, उष्णवीर्य पाचक और सारस होता है। यह रस तथा पाक में कटु एवं मधुर रस वाला, तीक्ष्ण, भग्न – सन्धानकारक ( टूटी हड्डियों को जोड़ने वाला ), कंठ को हितकारी, गुरु, पित्त और रक्तबर्धक, शरीर में बल और वर्ण को उत्पन्न करने वाला, मेधाशक्ति एवं नेत्रों के लिए हितकर और रसायन होता है। जिसके कारण कुक्षिशूल, मल तथा वातादिक की विवंधता, अरुचि, शोथ, बवासीर, वायु, श्वास और कफादि को नष्ट करता है।
आयुर्वेद में लहसुन को शाको में स्थान दिया गया है। जिसके कारण इसके पौधे के अलग – अलग हिस्सों में अलग – अलग गुण पाए जाते है। जैसे – पत्तियों में तिक्त रस, नाल में कषाय रस, बीज में मधुर रस, नाल के आगे के भाग में लवण रस और मूलभाग में कटु रस पाया जाता है। इस प्रकार इसके अलग – अलग स्थानों पर 5 गुण पाए जाते है। जिनका उपयोग विभिन्न रोगो में, भिन्न – भिन्न हिस्सों का प्रयोग होता है।
बवासीर में खान – पान का बड़ा महत्व है। जिसके कारण बवासीर में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है। जिसमे कुछ ऐसी सब्जयां है। जिनका सेवन बवासीर में बहुत हानिकारक है। जिसके लिए बवासीर में कौन सी सब्जी नहीं खाना चाहिए को जान लेना जरूरी है।
बवासीर में लहसुन के फायदे ( Benefits Of Garlic In Piles )
बवासीर में लहसुन खाने से निम्न फायदे होते है –
सूजन को कम करता है : लहसुन को आयुर्वेद में शोथहर कहा गया है। जिसका सेवन करने से बवासीर के मस्सों में होने वाली सूजन में राहत पहुंचाता है। जिससे बवासीर में होने वाली रगड़ लगने की समस्या काफी कम हो जाती है।
वायुनाशक : यह विबंध का नाश करने वाला होने के कारण, मलाभेदन में अत्यंत निपुण है। जिसके कारण इसका सेवन करने से पेट में गैस बनने की समस्या नहीं होने पाती। जिससे बवासीर को उग्र होने से बचाने में सहायता मिलती है। यह वायु का नाश करता है। इसलिए प्रतिलोम हुई अपानवायु को अनुकूल करने में मदद मिलती है। जो बादी बवासीर के लक्षण को मिटाने में सहायक है।
रक्तवर्धक, धातु और वीर्य वर्धन में सहायक : लहसुन में ये तीनो गुण स्वाभाव से पाए जाते है। जिनका बवासीर में नाश हो जाता है। जिसके कारण शरीर कृष हो जाता है। जिसको दूर करने के लिए बवासीर रोगी को लहसुन खाने से बल की प्राप्ति होती है।
वायु, पित्त और कफ : लहसुन में तीनो दोषो को मिटाने के गुण पाए जाते है। जिसके कारण सभी प्रकार की बवासीर में लहसुन का सेवन बहुत ही गुणकारी है। जिसके कारण यह बादी हुए खूनी बवासीर के लक्षण को ख़त्म करने में उपयोगी है।
अरूचिनाशक : बवासीर रोग में मंदाग्नि के कारण भोजन के प्रति रूचि कम हो जाती है। जिसके कारण रोगी दिन ब दिन भोजन से दूर होता जाता है। जिसके कारण बवासीर रोगी में भूख कम हो जाती है। इन परिस्थियों में लहसुन खाने से अरुचि दूर होकर भूख खुलती है।
यह बवासीर में लहसुन खाने के फायदे है। जिनको हम लहसुन खा कर आसानी से प्राप्त कर सकते है।
बवासीर के लिए लहसुन का उपयोग कैसे करें
बवासीर में लहसुन खाने के फायदे और नुकसान है। जिनके कारण लहसुन को किसके साथ खाये और किसके साथ न खाये का ध्यान रखना होता है। लहसुन के साथ मद्य, मांस और अम्लरसयुक्त भक्ष्य पदार्थ खाना हितकारी है। जबकि व्यायाम, धूप में घूमना, क्रोध करना, बहुत अधिक जल पीना, दूध और गुड़ खाना अहितकर है। जिसके कारण बवासीर रोगियों को इस दौरान, इन कर्मो का त्याग कर देना चाहिए।
दूध मृदु रेचक होने से बवासीर में पीना लाभकारी है। परन्तु लहसुन के साथ दूध का सेवन निषिद्ध है। इसकारण बवासीर में दूध पीना चाहिए या नहीं को ठीक से जानना आवश्यक है।
उपसंहार :
बवासीर में लहसुन के फायदे बहुत है। फिर भी लहसुन के तीक्ष्ण स्वाभाव के कारण लोगो में भ्रम होता है कि बवासीर में लहसुन खाना चाहिए या नहीं। आयुर्वेद में लहसुन को बवासीर में खाने के अनुकूल बताया गया है। यह बवासीर के मस्सों में होने वाली सूजन को दूर करने से लेकर, अपानवायु को अनुकूल कर मल का भेदन करने का भी काम करता है। जिसके कारण बवासीर की ज्यादातर समस्या हल हो जाती है।
इतना ही नहीं लहसुन पेट की तमान समस्या का भी हक कर देती है। जिसका सबसे बड़ा कारण वात, पित्त और कफ त्रिदोष का निवारण है। जिसके कारण लहसुन न केवल बवासीर में, बल्कि अन्य बहुत से रोगो में भी लाभकारी है। लेकिन लहसुन का पूरा लाभ लेने के लिए, इसके प्रतिषेधक वचनो का पालन अपेक्षित है।
सन्दर्भ :
भाव प्रकाश – हरीतक्यादिवर्ग – ७७ लहसुन
भैषज्यरत्नावली अर्श रोग चिकित्सा प्रकरण अध्याय – 09