संतृप्त वसा जो आजकल सैचुरेटेड फैट्स के नाम से प्रसिद्द है। जिसका उपयोग हम प्रतिदिन भोजन के रूप में करते है। यह न केवल हमारे भोजन का स्वाद बढ़ाता है, अनेको पोषक तत्वों का अवशोषण करता है, बल्कि शरीर सञ्चालन के लिए आवश्यक ऊर्जा भी प्रदान करता है। सैचुरेटेड फैट का गुणवत्तापरक और मात्रात्मक उपयोग, जहाँ हमें स्वस्थ रखता है। वही अमात्रात्मक और न्यून गुणवत्ता का फैट, मोटापा जैसे भीषण रोग को जन्म देता है। जिसको समझने के लिए संतृप्त को समझना अनिवार्य है। कुछ लोग इसको सैचुरेटेड मीनिंग इन हिंदी भी कहते है।
सनातनी चिकित्सीय ग्रंथो का अवलोकन करने पर प्रकृतिनिष्ठ वसा को प्राप्त करने की दो विधियों का उल्लेख है। पहली जानवरो ( जंघम जीवो ) के माध्यम से, दूसरी वनस्पतियो ( स्थावर जीवो ) के द्वारा। जो आज भी प्रशस्त विधा से अनुगमनीय है। जबकि आधुनिक शोधो के परिणामस्वरूप आज वसा के अन्य विकल्प भी उपलब्ध है। जैसे – वनस्पति घी इत्यादि। जिनका सेवन कितना सुरक्षित है ? यह आज भी शोध का विषय है।
आमतौर पर जानवरो से प्राप्त होने वाली सभी प्रकार की वसाए संतृप्त वसा है। जिसको पूरे विश्व में एक मत से स्वीकारा जाता है। जबकि वनस्पतियो से प्राप्त होने वाली सभी वसाओं में संशय है। कुछ तो इन्हे संतृप्त मानते है, कुछ इन्हे असंतृप्त बताते है। इसके कारण जनसामान्य में भी इसको लेकर अनेको भ्रांतिया है। वही आधुनिक समय में संतृप्त वसा का सेवन, प्रायः अनुपयोगी माना जाने का प्रचलन है। इतिहास प्रमाण है हमारे पूर्वजो ने वसा के रूप में, सबसे अधिक संतृप्त वसा का ही सेवन किया। और आजीवन निरोगी रहते हुए शतायु होकर देहत्याग किया।
संतृप्त वसा क्या है ( what is saturated fat in hindi )
मानव शरीर में वसा ऊर्जा के स्रोत है। जिनकी उपस्थिति से मानव देह में अनेको भौतिक और रासायनिक क्रियाओ का सम्पादन होता है। सभी भौतिक क्रियाए व्यवहार परक ( दृश्य ) है। जैसे – अंग विन्यास ( हाथ – पैर चलाना, दौड़ना, भागना आदि ), बोझा ढोना, खाना बनाना इत्यादि। जबकि सभी रासायनिक क्रियाए विज्ञान परक ( अदृश्य ) है। इन्ही क्रियाओ के सम्यक सामजस्य से स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इसलिए विशेषज्ञों ने वसा की गुवात्तापरक संतुलित मात्रा, शरीर की चर्बी कम करने का उपाय माना है।
वसा हम मनुष्यो के लिए परम उपयोगी पोषक तत्व है। जिसको लोग चिकनाई या चिकनापन भी समझते है। जिसको आयुर्वेद ने स्नेही द्रव्य के रूप में ख्यापित किया। जो पेट दर्द आदि की दवा के रूप में प्रयोग होता है। अप्रशस्तीकृत आधुनिक तकनीक ने वैज्ञानिक शब्द जैसे सैचुरेटेड फैट आदि गढ़े। जिनको समझने के लिए सैचुरेटेड फैट क्या है ? जैसे प्रश्न उठते है। जिसको समझने के लिए विज्ञान की विशेष शाखा के, अंतर्गत द्रव्य संरचना आदि का अध्ययन किया जाता है। जिसमें इसे इसप्रकार से परिभाषित किया गया है –
ऐसे वसा जो कम ( न्यून ) ताप पर ठोस आकार में रहते है, और ताप बढ़ते ही द्रवित ( द्रव ) हो जाते है। उन्हें सैचुरेटेड फैट ( संस्तृप्त वसा ) कहा जाता है। लोग प्रायः ठोस ( सॉलिड ) वसा को वसा ( फैट्स ) कहते है। किन्तु द्रवित ( तरल ) वसा का तेल का नाम दिया जाता है। वास्तव में नाम कुछ भी हो, है दोनों वसा ही। इस बात पर विशेषज्ञ समानता से सहमत है। इसका सबसे बढ़िया उदाहरण गोघृत है। जिसकी प्रशंसा करते आयुर्वेदीय विद्वान् भी नहीं अघाते। वही पश्चात जगत में इसकी कही कोई चर्चा ही नहीं। जिसका मूल कारण आज भी वह इससे अनभिज्ञ है।
संतृप्त का वसा अर्थ ( saturated fat meaning in hindi )
रसायन के अनुसार परमाणुओ की घनीभूत अवस्था ही पदार्थ है। जिसमे यह आनुपातिक शृखलीय संरचना के सुव्यवस्थित क्रम में युग्मित होता है। इसी कारण इसमें स्थायित्व की प्राप्ति होती है। जिसका दूसरा नाम ही संतृप्त ( सैचुरेटिड) है। जो वसा के लिए प्रयोग होता है। इसको ही संतृप्त अर्थ में प्रयुक्त समझा जाता है। संतृप्त और असंतृप्त वसाओं के ही प्रकार है। ठीक उसी प्रकार जैसे संतृप्त और असंतृप्त कार्बन यौगिक होते है। जिनके असंतुलित होते ही मानवो में वजन बढ़ने लगता है।
कालिख ( कार्बन ) की विद्यमानता सभी पदार्थो ( पृथ्वी ) का मूल है। जिससे अन्य तत्व युग्मन करके एक नए पदार्थ को निर्मित करते है। जो प्रकृतिनिष्ठ होने के कारण प्रकृति में चलती रहती है। जैसे – जैव रासायनिक अभिक्रिया। और अप्राकृतिनिष्ठ होने से अप्राकृतिक ( मानव निर्मित ) कही जाती है। जैसे – ट्रांस फैट इत्यादि। जिसको बनाने के लिए कृत्रिम ढंग की प्रक्रियाओं के माध्यम से, इनकी आंतरिक संरचना में फेरबदल कर बनाया जाता कहते है। जिसका निरंतर और नियमित सेवन करने पर, लीवर बढ़ना जैसी समस्याए जन्म लेने लगती है।
आयुर्वेद में घी को आदर्श स्नेह माना जाता है। जो पूर्णतया घी के धारित गुण धर्मो के कारण है। शायद इस कारण ही घी को सभी वसाओं में सर्वोकृष्ट माना जाता है। वही दूसरी ओर ( मॉडर्न साइंस ) घी का सेवन हानिकारक बताया जाता है। जिसकी उपयोगिता का वर्णन शब्दब्राहात्मक वेद से लेकर आयुर्वेद संहिताओं सहित पाक शास्त्र इत्यादि में है। जो न केवल दार्शनिक और वैज्ञानिक बल्कि प्रायोगिक धरातल पर अज्जयी है। अर्थात सभी दृष्टियों से जांची पारखी है।
संतृप्त वसा के प्रकार ( types of saturated fat in hindi )
परिभाषा और प्रयोग में तालमेल बिठाने पर, वसा के मुख्य दो भेदो की प्राप्ति होती है। पेट में तिल्ली बढ़ने का एक कारण वसा को माना जाता है। जिसमे अधिकांशतः गरिष्टतम वसाए है। जिससे इनका सेवन बहुत ही सावधानी से करने की सलाह दी जाती है।
- ठोस संतृप्त वसा : सामान्य ताप पर जो ठोस अवस्था में होते है। उन्हें संस्तृप्त वसा के नाम से जाना जाता है। जैसे – सूअर की चर्बी, मक्खन आदि।
- तरल संतृप्त वसा : सभी अवस्थाओं में जो द्रव के रूप में ही रहते है। उन्हें तरल संतृप्त वसा कहते है। जैसे – मछली का तेल इत्यादि।
संतृप्त वसा के स्रोत ( sources of saturated fat in hindi )
आयुर्वेदीय संहिताओं में स्पष्ट रूप से वसा शब्द की प्राप्ति नहीं होती। जबकि स्नेहन, स्वेदन आदि क्रियाओ में तैल, घी आदि का वर्णन है। जिनको आधुनिक विज्ञान वसा के रूप में स्वीकारता है। जिसको प्राप्त करने की आयुर्वेद ने दो उपाय सुझाये है –
- जंगम जीवो ( जानवरो ) से प्राप्त वसा । जैसे – घी, दूध से बने पदार्थ, मक्खन आदि।
- स्थावर जीवो ( पेड़ – पौधे, वनस्पतियो आदि ) से प्राप्त वसा। जैसे – नारियल तेल, सरसो तेल इत्यादी।
जबकि मॉडर्न साइंस ने वसा के तीन भेद बतलाये है –
- बड़े ( चार पैर ) पशुओ से पायी जाने वाली वसा। जैसे – सुअर की चर्बी, दूध की चर्बी, मीट आदि।
- छोटे ( दो पैर ) पशुओ या जलीय जीवो से प्राप्त होने वाली वसा। जैसे – पोल्ट्री ( चिकन ), मछली इत्यादि।
- वनस्पतियो से प्राप्त होने वाली वसा। जैसे – पाम तेल आदि।
भौतिक रूप से जानवरो से प्राप्त होने वाली वसाए, संतृप्त वसा के उदाहरण माने जाते है। जबकि रासायनिक ( फैटी एसिड्स ) दृष्टि से इनमे भी अपवाद है। उदहारण के लिए घी और नारियल तेल। दोनों लगभग एक जैसे गुण धर्म रखते है। फिर भी प्राप्त होने वाली विधि के भेद से, एक को घी और दुसरे को तेल की संज्ञा दी गई है। जिसके मात्रात्मक सेवन से पेट में गैस बनने जैसी, अनेक समस्याओ से छुटकारा मिलता है।
संतृप्त और असंतृप्त वसा में अंतर ( difference between saturated and unsaturated fat in hindi )
वैज्ञानिक और व्यवहारिक दृष्टि से विचार करने पर, दोनों प्रकार की वसा में निम्नलिखित अंतर देखा जाता है –
- संतृप्त वसा सामान्य ताप पर ठोस रहता है। और ताप बढ़ने ( गर्म करने, हाथ में लेकर रगड़ने ) पर द्रवित ( पिघल ) जाता है। जबकि असंतृप्त वसा किसी भी ताप पर, सदैव पिघली अवस्था में ही होता है।
- संरचनात्मक दृष्टि से इनके आणुविक संरचना में भेद है।
- सैचुरेटेड फैटी एसिड से संतृप्त वसा बनता है। जबकि अनसैचुरेटेड फैटी एसिड से असंतृप्त वसा बनते है।
उपसंहार :
घी और नारियल तेल सबसे सुरक्षित वसा के स्रोत है। यह दोनों भौतिकता में संतृप्त वसा के गुणों को धारण करते है। किन्तु इनकी आणुविक संरचना भिन्न है। जिसके कारण इनके आक्सीकरण ( जलने ) में भी भेद है। अभी तक ज्ञात सभी प्रकार के वसाओं से, इनका आक्सीकरण बहुत अधिक ताप पर होता है। जिसके कारण यह सभी प्रकार की वसाओं में सर्वश्रेष्ठ है। सामान्य भाषा में कहे तो एकमात्र उत्कृष्ट है। जिनका नियमित सेवन करने पर ही हम स्वस्थ रह सकते है।
आजकल जरुरत से ज्यादा सैचुरेटेड फैट का सेवन, शरीर के लिए हानिकारक माना गया है। आधुनिक अनुसंधानात्मक प्रणाली में इनके सेवन से, हानिकारक एल डी एल कोलेस्ट्रॉल बढ़ना बताया जाता है। इसलिए इन्हे संतुलित मात्रा में लेने की सलाह दी जाती है। जबकि गौघृत और घाणी युक्त ( कम ताप पर निकाले गए ) नारियल तेल, को छोड़कर अन्य सभी प्रकार की वसा सदैव से असुरक्षित रही है। जैसे – फैट फ्री खाना और मीट, हायड्रोजेनेटेड तेल से बना भोजन आदि। इनका सेवन करने पर स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
FAQ
क्या संतृप्त वसा स्वास्थ्य के लिए अच्छा है
मानव शरीर में संतृप्त वसा का ही जमाव होता है। जो आपात स्थिति में प्रयोग में लाई जाती है। जिसकी निशिचत मात्रा का सेवन आवश्यक है।
घी में संतृप्त वसा की मात्रा
घी में लगभग 65 प्रतिशत संतृप्त वसा होती है।
नारियल तेल में संतृप्त वसा की मात्रा
नारियल तेल में लगभग 87 प्रतिशत संतृप्त वसा होती है।
सरसो के तेल में संतृप्त वसा की मात्रा
सरसो तेल में लगभग 12 प्रतिशत संतृप्त वसा होती है
मक्खन में संतृप्त वसा की मात्रा
मक्खन में लगभग 51 प्रतिशत संतृप्त वसा होती है
तिल के तेल में संतृप्त वसा की मात्रा
तिल तेल में लगभग 14 प्रतिशत संतृप्त वसा होती है
मूमफली के तेल में संतृप्त वसा की मात्रा
मूमफली तेल में लगभग 17 प्रतिशत संतृप्त वसा होती है
अलसी के तेल में संतृप्त वसा की मात्रा
अलसी तेल में लगभग 9 प्रतिशत संतृप्त वसा होती है
सोयाबीन के तेल में संतृप्त वसा की मात्रा
सोयाबीन तेल में लगभग 16 प्रतिशत संतृप्त वसा होती है
रिफाइंड तेल में संतृप्त वसा की मात्रा
रिफाइंड के तेल में लगभग 7 प्रतिशत संतृप्त वसा होती है
छाछ में संतृप्त वसा की मात्रा
छाछ में लगभग 0.5 % संतृप्त वसा पायी जाती है।
दूध में संतृप्त वसा की मात्रा
दूध में लगभग 0.6 % संतृप्त वसा होती है।
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