हिचकी को आयुर्वेद ने दो विशेषणों से विभूषित किया है। पहली शीघ्रमारक और दूसरी दुर्जय ( कठिनाई से जीती जाने वाली )। चिकित्सा की दृष्टि से यह वह परिस्थिती है। जो क्षणभर में ही व्यक्ति को मौत के घाट उतारने के लिए पर्याप्त है। इस कारण हिचकी क्यों आता है ? या हिचकी आने का कारण क्या है ? को जानना चाहिए। जिससे हिचकी रोकने का मंत्र जानकर, उचित समय पर हिचकी रोकने के उपाय किये जा सके।
आयुर्वेद में ऐसे अनेक रोगो का वर्णन है, जो प्राणोपहारक है अर्थात प्राणियों को मार डालने वाले है। किन्तु वे ( रोग ) उतनी जल्दी प्राणो को नहीं हरते, जितनी कि हिचकी या हिक्का ( हिधमा ) रोग। इन्ही कारणों से हिचकी को शीघ्रमारक रोगो की श्रेणी में स्थान प्राप्त है। आयुर्वेदोक्त सिद्धान्तानुसार सभी रोग प्राणघातक है। जैसे – तीव्र बुखार आदि। जिसके लिए बुखार की सबसे अच्छी दवा उपकारक है। इनके कारण रोग निवृत्ति को भी चिकित्सा का ही अंग माना गया है। जिसको ढूढ़ निकालने में माहिर रोग विशेषज्ञों की, आज के तकनीकी युग में भी आवश्यकता है।
ऐसे विशेषज्ञों की शास्त्रों में भूरी – भूरी प्रशंसा की गई है, क्योकि ऐसे में समय का महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह वह समय है। जिसमे रोगी और चिकित्सा विशेषज्ञ, दोनों के पास समय की बाध्यता है। ठीक उसी प्रकार जैसे तिल्ली बढ़ने पर होती है। ऐसे समय में चिकित्सक की चिकित्सा दक्षता, और बीमार व्यक्ति का जीवन दोनों दाव पर लगा होता है। इस काल खंड में कौन विजयी होगा, इसका दावा कोई नहीं कर सकता। ऐसी घडियो में दावेदार का निर्धारण ईश्वर के हाथ में होता है। परन्तु समय का सदुपयोग करने वाला जानकार भी, गुरुओ से प्राप्त विज्ञा और अनुभव द्वारा ही सफल हो पाता है।
हिचकी क्या है ( hichki kya hai )
आयुर्वेदादी शास्त्रों में हिचकी के सम्बन्ध में, अलग – अलग आचार्यो के अपने मत है। जिसमे समन्वय बिठाने पर हिचकी के वैज्ञानिक कारण का पता चलता है। जिसको लोग हिचकी है क्या द्वारा भी व्यक्त करते है। जबकि लोगो के मन में हिचकी क्यों चलती है ? एवं हिचकी आने से क्या होता है ? जैसी अनेको जिज्ञासाए है। जिसका समाधान जानने के लिए क्यों आती है हिचकी आदि, प्रश्न किये ( उठाये ) जाते है। जबकि चिकित्सीय दृष्टि से, हिचकी आने का कारण और उपाय जानना आवश्यक है।
हिचकी तब आती है जब पेट में, वायु का दाब अधिक हो जाता है। जिससे उदानवायु प्राणवायु के साथ मिल जाता है। और जोर – जोर से मुँह द्वारा हिक – हिक शब्द निकलने लगता है। इसमें ऐसा मालूम पड़ता है मानो यकृत, प्लीहा एवं आंतो को मुँह से बाहर फेक रहा है। यह घोषवान शब्द प्राणघातक होता है। जिसके कारण इसको हिचकी ( हिक्का ) कहा जाता है। कभी – कभी सही समय पर हिचकी न रुकना भी, मृत्यु का कारण बनता है। जैसे मोटापा होने के कारण में देखने को मिलता है।
आमतौर पर विशेषकर भारतीय जनमानस में हिचकी आना, प्रियजनों द्वारा स्मरण किये जाने का द्योतक माना जाता है। जिसको शांत करने के लिए स्मृरित व्यक्ति की, स्मृति होते ही यह स्वतः बंद हो जाती है। परन्तु चिकित्सा की दृष्टि में लगातार हिचकी आना घातक है। जिसके कारण हिचकी को कैसे बंद करें आदि, का विचार ही नहीं उठता। जिससे धीरे – धीरे रोग प्रबल होकर, गंभीर से गंभीरतम अवस्था को प्राप्त होता है। और रोगी शरीर और मन से अत्यंत दुर्बल होता चला जाता है। ऐसी दशा से बचने के लिए उचित समय पर, हिचकी के उपाय का प्रबंध करना चाहिए।
हिचकी क्यों आती है ( hichki kyu aati hai )
चिकित्सा में हिचकी क्यो आती हैं को, जान पाना कठिन है। क्योकि शरीर दोष प्रकृतिनुसार व्यक्ति से व्यक्ति में, लक्षणों की भिन्नता देखी जाती है। जिसके कारण अमूमन हिचकी क्यों होता है को बतलाना दुर्गम है। जबकि कुछ ऐसे लक्षण है। जो अधिकाँश लोगो में देखे जाते है। जिनका समय पर उपचार रोगनिवारण में हेतु है। इस कारण हिचकी आती क्यो है को जान लेना आवश्यक है।
हिचकी क्यों आती है वैज्ञानिक कारण की बात करे, तो आधुनिक पद्धति में इसको इस प्रकार बताया गया है। इसमे हिचकी की उत्पत्ति मध्यच्छद ( डायाफ्राम या मध्यपट ) के, सहसा संकुचित हो जाने के कारण होता है। डायाफ्राम हमारे शरीर की वह मांशपेशी है। जो हमारे पेट और छाती को अलग करती है। जिससे श्वास – प्रश्वास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जिसमे संकुचनात्मक दबाव के कारण कंठ अवरुद्ध हो जाता है। जिससे श्वासमार्ग में रुकावट आ जाती है। परिणामस्वरूप मुँह से हिक – हिक शब्द निकलने लगता है। इसको ही हिचकी आना कहते है।
व्यावहारिक दृष्टि से बहुत ही कम लोगो में, हिचकी विध्वंशक रूप में प्रकट होती है। जबकि प्रायः यह कुछ ही क्षणों में अपने आप, अथवा बहुत ही आसान उपायों द्वारा शांत हो जाती है। परन्तु रोग की तीव्रता होने पर बहुत ज्यादा हिचकी आती है। जिससे बचने के लिए ज्यादा हिचकी क्यों आती है ? की बात विशेषज्ञों से पूछी जाती है। जिसको कुछ लोग हिचकी क्यों आता है भी कहते है। अक्सर पेट में गैस बनने से भी हिचकी देखी जाती है।
हिचकी का अर्थ ( hiccup meaning in hindi )
हिचकी आने का मतलब एक निश्चित समयांतराल पर, हिक – हिक शब्द का मुँह से उच्चारित होना है। जो उदरांगो पर तीव्र दबाव के कारण होता है। जिससे इनका मुँह से बाहर, निकल पड़ने जैसा अनुभव होता है। इस कारण यह बहुत ही कष्टकारी और प्राणघातक रोग है। जिसमे अलग – अलग रोगियों में इसकी पुनरावृत्ति में अंतर देखा जाता है। यह रोग रोगी को अत्यंत दर्द तो देता ही है। इसके साथ व्याकुलपन, घबराहट और शोकातुर भी बनाता जाता है। जिससे रोगी में जीने की भावना क्षीण होने लगती है।
हिचकी कैसे बंद करें में उपरोक्त अर्थ को समझकर, विहित चिकित्सीय उपचार ही इनसे बचने का उपाय है। जिसको आम बोलचाल की भाषा में, हिचकी बंद करने का तरीका भी कहते है। जिस प्रकार पेट में जलन और दर्द होने पर पित्त वर्धक उपायों को अपनाया जाता है। जो हीचकी रोकने के उपाय कहलाते है।
हिचकी का अंग्रेजी अर्थ ( hichki in english meaning )
सामान्यतः हिचकी को आंग्ल भाषा में हिकुप या हिकप कहा जाता है। इसको ही हिचकी in english भी कहा जाता है। जिसके लिए लोग हिचकी को इंग्लिश में क्या कहते हैं भी पूछते है। जिसके मात्र दो प्रायोजन है। पहला हिचकी से बचना और दूसरा हिचकी का इलाज। जिसको हिचकी आए तो क्या करना चाहिए द्वारा भी, व्यक्त किया जाता है।
जिस प्रकार अन्य कार्यो में समय का महतव है। उसी प्रकार रोगोपचार में भी समय का उतना ही महत्व है। इस कारण ही हिचकी कैसे बंद करे की बात होती है। जिस प्रकार एसिडिटी होने पर, एसिडिटी को जड़ से ख़त्म करने के उपाय किये जाते है।
हिचकी आने का कारण ( hichki aane ka karan )
आयुर्वेदादी शास्त्रों में हिचकी आने के अनेको कारणों की चर्चा की गई है। जिसमे लगातार हिचकी आने के कारण इत्यादि पर भी विचार किया गया है। जिनको आज की सभी उपचार पद्धतियों द्वारा स्वीकारा जाता है। जिसमे बार बार हिचकी आने का कारण भी बताया गया है। लगातार हिचकी रोकने के उपाय में कारण को, समझना अनिवार्य है। जिसके निम्नलिखित कारण इस प्रकार है –
- धूल अथवा धुँआ का प्रवेश श्वास मार्ग में होने से
- ठन्डे पानी को पीने से
- शीतल स्थान में रहने से
- अधिक शारीरिक परिश्रम करने से। जैसे – व्यायाम, अधिक रास्ता चलना आदि।
- अधिक मैथुन करने से
- रुक्ष ( अस्नेह ) अन्ना का लगातार सेवन करने से
- विषम भोजन करने से
- अधिक उपवास करने से
- आमदोष से
- आनाह से
- मर्मस्थानो में चोट लग जाने से
- शीत – उष्ण आदि विपरीत भावो के निरंतर प्रयोग से
- अधिक कमजोरी आ जाने से
- वमन – विरेचन इत्यादि संशोधनों के अत्यधिक प्रयोग से
- बुखार
- अतिसार
- उल्टी
- जुकाम
- घाव ( क्षत ) लगने से
- क्षय, रक्तपित्त, हैजा, उदावर्त, गुम हैजा, पाण्डु रोग इत्यादि से
- जाने – अनजाने में विष – भक्षण से हिचकी रोग उत्पन्न होते है।
नवजात शिशुओ में हिचकी आने का कारण ( hiccup for newborn in hindi )
दुधमुहे और छोटे बच्चो में भी हिचकी की समस्या देखी जाती है। परन्तु इनमे प्रायः यह समस्या पेट की विसंगति से होती है। वही कुछ लोग बच्चो में हिचकी आने को, स्नेही स्वजनों की याद के साथ भी जोड़ते है। ऋतुपरिवर्तन, स्वच्छता आदि के अभाव और प्रभाव में बच्चो के स्वभाव में परिवर्तन देखा जाता है। जो लगभग सभी रोगो में सामान रूप से अनुकरणीय है। हिचकी आने पर पेट दर्द होने की समस्या होती है।
हिचकी आने के लक्षण ( hiccup symptoms in hindi )
हिचकी का समाधान चिकिस्ता में लक्षणों के आधार पर ही होती है। जिसके लक्षण इस प्रकार है –
- गले ( विशेषकर कंठ ) और छाती में भारीपन
- मुख का स्वाद कसैला लगना
- पेट में गुड़गुड़ाहट होना
- पेट का फूलना
- पसलियों में दर्द होना
- छाती ( विशेषकर ह्रदय ) में पीड़ा
- प्राणवायु का विपरीत होना
हिचकी के प्रकार ( hichki ke prakar )
आयुर्वेद में हिचकी के पांच भेदो की चर्चा की गई है।
महाहिक्का :
जिस व्यक्ति का रोगादि किसी कारण से मांस, बल, प्राण, पित्त क्षीण हो जाता है। ऐसे लोगो के शरीर में कफ सहित वायु एकाएक कंठ के ऊपरी भाग स्वरयंत्र आक्रांत कर अत्यधिक उच्च शब्द उत्पन्न करने वाली हिचकी को बार – बार पैदा करती है। यह कभी एक बार आकर रुक जाती है, कभी दो, तीन या इससे भी अधिक बार वेग के साथ आती है। यह कुपित कफ के साथ वह वातदोष प्राणवाही स्रोतों, मर्मो ( मर्मवहस्रोत – रूप ह्रदय ) एवं जठराग्नि को रोककर, अनेको प्रकार के उपद्रव करती है।
जैसे – उस व्यक्ति को बेहोश कर देती है। शरीरांगों में जकड़न पैदा कर देती है। अन्नवाही एवं जलवाही स्रोतों को रोक देती है। जिससे रोगी के आँखों से आंसू निकलते रहते है। भौहो को नीचे झुका देती है। शंख प्रदेश में स्तब्धता आ जाती है। रोगी बोलने की इच्छा करने पर भी स्पष्ट बोल नहीं पाता। जो कुछ बोलता है वह अनर्गल प्रलाप ( उलटा सीधा ) होता है। इस प्रकार की हिचकी को महामूला, महावेगा, महाशब्दा और महाबला कहते है। महा विशेषण से विशेषित यह हिक्का शीध्रता से प्राणो को हरने वाली होती है।
गम्भीरा हिक्का :
यह अत्यंत वृद्ध अथवा कफ और वात दोष की, अधिकता से अत्यधिक कमजोर लोगो को होती है। जिसमे रोगी उदास रहता है। जर्जर फेफसो से बड़ी कठिनता से अस्पष्ट एवं गंभीर शब्द का उच्चारण करता है। जँभाई लेता है। अपने अंगो को कभी सिकोड़ता है कभी फैलाता है।
दाहिनी और बाई पसलियों को समेटता है। कराहता है। जकड़न और वेदना से पीड़ित रोगी की नाभि या पक्वाशय से जो हिचकी होती है। वह पूरे शरीर को कम्पित करती हुई, शरीर को धनुष की तरह झुका देती है। जिससे आँखों के सामने अन्धेरा छा जाता है। श्वास – प्रश्वास को के मार्ग को अब्रद्ध कर देती है। यह रोगी के शारीरिक और मानसिक बल को नष्ट क्र प्राणो को हरने वाली होती है।
व्यपेता हिक्का :
यह अशित, खादित, लीड एवं पीत आहारों के सेवनोपरांत उत्पन्न होती है। उन आहारों के पच जाने पर जो हिचकी फिर से बढ़ जाती है। अर्थात फिर से शुरू हो जाती है। इस प्रकार के हिचकी आवृत्ति बढ़ने पर, रोगी अंट – संट बोलने लगता है, उल्टियां आती है, अतिसार ( दस्त ) होता है, तेज प्यास लगती है, मुँह सूखने लगता है, बेहोश होने लगता है, जम्भाई आने लगती है, आँख आसुओ से भर जाती है, शरीर धनुष की तरह आगे या पीची झुक जाता है, पेट में अफारा हो जाता है।
यह ग्रीवास्थि ( हसुली ) से पैदा होती है। जिसका वेग रुक – रुक कर प्राणो का नाश करने वाला होता है। इसको यमला हिक्का केनाम से भी जाना जाता है।
क्षुद्रा हिक्का :
जब व्यायाम आदि मेहनतीय भावो से अल्प मात्रा में कुपित वातदोष ठेस पाकर उदर से कंठ की ओर चला जाता है। तब क्षुद्रा हिक्का नामक हिचकी उत्पन्न होती है। यह अधिक कष्टप्रद नहीं होती। यह सिर, छाती और मर्मस्थलो को कष्ट नहीं देती। इस हिक्का में वातादि दोष श्वासद्वार, अन्नवाही स्रोत और उदकवाही स्रोतों में आश्रित नहीं रहते। यह हिक्का प्रायः मेहनत करने पर ही उभड़ती है और भोजन के बाद शांत हो जाती है। यह ह्रदय, ग्रसनी, कंठ, तालू आदि स्थानों में आश्रित रहती है।
अन्नजा हिक्का :
यह हिक्का उन व्यक्तियों को होती है। जो एकाएक अधिक मात्रा में भक्ष्य ( रोटी, दाल आदि ) का और पानो ( शरबत, दूध आदि ) का सेवन करता है। या अधिक तीक्ष्ण मद्यो ( अत्यधिक नशीली शराब ) को पीने से। उनसे पीड़ित वायु उदर प्रदेश से ऊपरी भागो की ओर चला जाता है। और अत्यंत क्रोध, अधिक जोर से बोलना अथवा ऊँचे स्वर से पढ़ना, बहुत दूर तक पैदल चलना, जोर – जोर से हँसना, सामर्थ्य से अधिक बोझ ढोना इत्यादि कारणों से कुपित कोष्टगत वायु अधिक सेवन किये गए खान – पानो द्वारा पीड़ित होकर वक्षस्थल के स्रोतों ( फुप्फुसो, श्वासनलिका आदि ) में घुसकर अन्नजा हिचकी को पैदा कर देती है।
जिससे रोगी धीरे – धीरे हिचकिया लेने लगता है, छीके आने लगती है। जो मर्मस्थानो और इन्द्रियों को कष्ट नहीं देती।
हिचकी कैसे रोके ( hichki kaise roke )
सनातन शास्त्रों की भाषा दर्शन परक है। जिसको समर्थ गुरु बिना समझ पाना अत्यंत दुर्लभ है। सिद्धांत को समझना और उसका व्यवहारिक प्रयोग दोनों अलग है। सर्वचिकित्सा प्रधान संहिताओं में मंत्र शब्द का प्रयोग सिद्धांत के अर्थ में प्रयुक्त है। जिसका अनुगमन चिकित्सीय सिद्धी के लिए नितांत आवश्यक है। जिसमे चूक होने पर पल भर में, किसी के भी प्राण लेने के लिए पर्याप्त है। फिर चाहे व्यक्ति प्रबल हो या दुर्बल।
चिकित्सा की दृष्टि से कुछ रोग देखने में, उतने प्राणघातक नहीं होते जितने दिखाई पड़ते है। परन्तु कुछ उतने ही प्राणघातक होते है जितने दिखाई पड़ते है। किन्तु सभी रोगो में एक बात स्पष्ट रूप से देखी जाती है। कष्ट या पीड़ा ( दुःख ) पहुँचाना। जिसकी प्राप्ति और व्याप्ति का मूल आयुर्वेद ने मनुष्यगत प्रमाद को स्वीकारा है। जोकि लगातार हिचकी आने का कारण भी है। इन सभी परिस्थितियों में धैर्य के साथ उपचार की आवश्यकता होती है। जैसे – लीवर बढ़ने पर होती है।
हिचकी आने के उपाय में रोगोत्पत्ति के शारीरिक अवयव, कारण और मूल दोष की पहचान होना अतिआवश्यक है। इनमे त्रुटि होने पर चिकित्सा में संदेह होता है। हिचकी के स्थान को आयुर्वेद ने सिर के नीचे और कमर के ऊपर माना है। कारणों में कार्मिक और रोगादि की विसंगति मानी गई है। जबकि दोषो में कफ और वात नामक दोषो को स्वीकारा गया है।
हिचकी को कैसे रोके ( hichki ko kaise roke )
चिकित्सीय परिपेक्ष्य में डकार आना और हिचकी आना, दोनों ही अलग – अलग बाते है। परन्तु सामान्यतः कुछ लोग डकार को भी हिचकी समझते है। जो केवल स्थानीय बोलचाल की भाषा है। अन्नजा हिचकी में छींक आना भी पाया जाता है। जिसका वास्तव में हिक्का से कुछ लेना देना नहीं है। यह लक्षणों के संकलन में भ्रम पैदा करते है। जिसका विभेद करना चिकित्सीय कार्यो में अतिआवश्यक है।
इस कारण उचित समय पर हिचकी को कैसे बंद करे ? जिससे अनावश्यक विप्लवकारी दुर्घटना से बचा जा सके। कुछ हिक्काओं को प्राणनाशक ( असाध्य ) कहा गया है। जैसे – महती, व्यपेता और गम्भीरा। यह रोगो की वह श्रेणी है, जिसमे रोगी के जीवित रहने की संभावना कम होती है। जबकि साध्य और याप्य लक्षणों वाले रोगियों की, शीघ्रता से चिकित्सा करवाने पर लाभ मिलता है। जिसको हिचकी बंद करने का उपाय कहते है।
हिचकी के चिकित्सा सूत्र में, दोषो के शोधन की बात कही गई है। जिसके लिए स्नेहन और स्वेदन नामक विधियों को बताया गया है। जिसका मूल उद्देश्य कफ एवं वात दोष से रोगी को मुक्त करना है। पतंजलि में हिचकी का इलाज भी इसी प्रकार मान्य है। जिसमे आयुर्वेदीय औषधियों के आनुपातिक और उपयुक्त मिश्रण का उपयोग है। फैटी लीवर की समस्या होने पर भी हिचकी हो सकती है।
हिचकी का घरेलू उपचार ( hichki rokne ke upay )
सामान्य हिचकी बंद न हो रही तो क्या करे ? इसके लिए थोड़ा सा पानी या पेय का सेवन से लाभ मिलता है। कुछ हिचकिया खाना खाते समय होती है। जिसका मुख्य कारण ग्रास नली का अवरुद्ध होना है। जिसके निवारण के लिए रूखे के स्थान पर, स्नेह युक्त खाद्य पदार्थो का सेवन करना चाहिए। भोजन को चबाकर खाना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर पानी पीना चाहिए। परन्तु जल आवश्यक न भी हो फिर भी बीच – बीच में थोड़ा – थोड़ा जल का सेवन करना चाहिए।
हिचकी आना कैसे बंद करें के घरेलू उपचार में, रोगी को सर्वप्रथम सेंधानमक और गोघृत की छाती पर मालिस करे। इसमें यदि घी पुराना हो तो अच्छा परिणाम देता है। यह हिक्का रोगियों का स्नेहोपचार है। तदन्तर नाडीस्वेद, प्रस्तरस्वेद, संकरस्वेद इत्यादि करे। ऐसा करने से रोगी के स्रोतों में गाँठ के समान बंधा हुआ कफ पिघलकर स्रोतों में विलीन एवं मृदु हो जाता है। जिससे विलोम हुआ वायु अनुलोम हो जाता है। जिससे हिचकी की समस्या धीरे – धीरे कम होकर समाप्त हो जाती है। यह उपचार ज्यादातर जीर्ण रोग होने पर उपयोगी है।
सामान्यतः हिचकी कभी कभार होने पे मुँह में कुछ रख लेने, पानी पी लेने आदि से ठीक हो जाया करती है। जैसे – हरड़ का चूर्ण फांक लेने, सोंठ मिला गुड़ या उसकी गोली खा लेने से हिचकी शांत हो जाती है। हिचकी रोग में यह सोंठ के फायदे है। नीबू, काला नमक को पानी में घोलकर लेना भी गुणकारी है।
हिचकी की दवा ( hiccup remedies in hindi )
जब हिचकी आने पर क्या करें की बात आती है। तब हिचकी आने की दवा का स्मरण होता है। जिसमे आयुर्वेदिक, एलोपैथिक और होम्योपैथिक आदि दवाए उपयोग की जाती है। जो अपने – अपने सिद्धांत के अनुरूप कार्य करती है। जिनका वर्णन आगे किया गया है। हिचकी से बचाव में नियमित रूप से किये जाने वाला भोजन महत्वपूर्ण है। जिसमे उपयोग होने वाला कुकिंग आयल या खाद्य तेल विशेष महत्व का है। जिसकी अनुपस्थिति में अपोषकता पलती है। जो आगे चलकर किसी न किसी रोग को जन्मती है।
हिचकी की अंग्रेजी दवा ( hichki rokne ki tablet )
हिचकी की एलोपैथिक दवा में अनेको दवाईयां है। जिन्हे एलोपैथिक मेडिसिन फॉर हिचकी के नाम से भी जाना जाता है। जिसमे हिचकी रोकने का इंजेक्शन और टेबलेट आदि है। इनको ही हिचकी रोकने की अंग्रेजी दवा कहा जाता है। हिचकी बंद करने की टेबलेट निम्नलिखित है-
- मीटोक्लोप्रामाइड
- पेरीलिन
- पेरीनोर्म
हिचकी की आयुर्वेदिक दवा ( ayurvedic hiccup remedy in hindi )
हिचकी रोकने की आयुर्वेदिक दवा की बात करे, तो इसके अनेको उपाय आयुर्वेद में वर्णित है। जिनको हिचकी की आयुर्वेदिक दवा के नाम से भी जाना जाता है। वही आंग्ल भाषा में आयुर्वेदिक मेडिसिन फॉर हिचकी कहा जाता है। जिनका उपयोग हाउ तो रिमूव हिचकी में होता है। हिचकी के लिए आयुर्वेद में निम्नवत उपाय है –
- भटकटैया, बेल की गुद्दी, काकड़ासिंगी, दुरालभा, गोखरू, गुडूची, कुलथी, चीता की जड़ का समान भाग लेकर मोटा – मोटा कूटकर क्वाथ तैयार कर छान ले। प्राप्त रस को घी छौक दे। इसमें पिप्पली, सोंठ का चूर्ण और सेंधानमक मिलाकर हिचकी रोगी को पीने के लिए दे।
- घी में भुनी हुई हींग, सोंचर नमक, जंगली बेर, मजीठ, पिप्पली, बला की जड़ को संभाग लेकर कपड़छान चूर्ण बना ले। इसको बिजौरानीबू के रस या कांजी से पीसकर पीना हितकारी है।
हिचकी की होम्योपैथिक दवा ( homoeopathic remedies for hiccup in hindi )
हिचकी की होम्योपैथी में अनेको दवाई है। जिनका उपयोग लक्षणों के आधार ही होता है।
नक्स वोमिका : बहुत ज्यादा खाने पीने के कारण हिचकी आना, खट्टी अथवा धुंध डकार के साथ हिचकी आना, अंग्रेजी दवा का सेवन करने के बाद हिचकी आना, पेट फूलना, ठंडा पानी पीने पर हिचकी बढ़ने पर इसका प्रयोग होता है।
एमोन म्यूर : सभी प्रकार की हिचकियो में यह बहुत लाभ पहुँचाती है।
पल्साटिला : खट्टी डकार के साथ हिचकी आना और कोई भी ठंडी चीज का सेवन करते ही हिचकी बढ़ने पर इसका प्रयोग होता है।
कार्बो वेज : हिलने – डुलने पर हिचकी बढ़ जाना, अफरा, हिचकी के बाद आँखे उलट जाना और रोगी का आँखे चढ़ाये सुस्त पड़े रहने पर उपयोगी है।
लाइकोपोडियम : पेट में बहुत वायु एकत्र होना, अफरा के साथ हिचकी आने पर लाभकारी है।
फास्फोरस : पेट में कुछ जाते ही हिचकी आना, पेट में जोर का चुनचुनाहट होने पर उपयोगी है।
रैटान्हिया : जोर की हिचकी आने पर उपयोगी है।
कैली ब्रोम : लगारत हिचकी आने पर लाभ करती है।
एसिड सल्फ : हिचकी नहीं रुकने पर फायदा पहुँचाती है।
बेलाडोना : हिचकी आते ही शरीर का काँप उठना, बार – बार और रह – रह कर हिचकी आना, एक हिचकी के बाद दूसरी हिचकी आने पर ऐसा मालूम पड़ना जैसे कान है ही नहीं। वमन की इच्छा होने पर लाभदायक है।
इग्नेशिया : पानी पीते ही या कुछ खाते ही हिचकी आना, खाना खाते वक्त हिचकी आना, कड़वी ( तीती ) डकार के साथ हिचकी आना, नाभि के चारो ओर लकड़ी चुभने जैसा दर्द होने पर फायदा पहुँचाती है।
जिनसेंग : होम्योपैथी में इसको सभी प्रकार की हिचकियो की महौषधि कहा गया है।
हिचकी के लिए योग ( yoga for hichki )
हिचकी रोग का स्थान छाती, ह्रदय, हृद पेशी, कंठ, गला, हसुली, यकृत, प्लीहा इत्यादि है। जिससे किसी भी प्रकार की छोटी या मोटी परिश्रम अनुपयोगी है। जबकि योग में श्वास – प्रश्वास के बिना कोई उपाय संभव नहीं। परन्तु सुखासन में बैठना और साधारण साँस गति रखना उपयोगी है। शवासन हिचकी में सर्वाधिक उपयोगी है।
हिचकी मे क्या खाना चाहिए ( diet for hiccup in hindi )
आयुर्वेद में हिचकी रोगियों के लिए अनेको प्रकार के यूष ( जूस ), यवागू, पेय आदि बताये गए है। जिसका विधि – विधान से सेवन करने पर हिचकी से छुटकारा मिलता है।
हिचकी यूष : विधिवत मूंग आदि का क्वाथ बनाकर जवाखार, नमक, सहिजन बीज, कालीमिर्च इन सबका 20 मिली की मात्रा का सेवन करने पर हिचकी दूर हो जाती है।
हिचकी यवागू : क्वाथ को भात आदि में सानने पर यवागू बनता है। हींग, सोचार नमक, जीरा, बिरिया नमक, पोहकरमूल, चीता जड़, काकड़ासिंगी। इन सबको
हिचकी पेय : हिचकी के रोगी को जब भी प्यास लगे, तब दशमूल का क्वाथ या देवदारु का क्वाथ पिए। इसमें मदिरा को पीना भी लाभदायी माना गया है। जिन क्वाथों की आवश्यकता समझी जाती है, उनको बनने के लिए सूर्योदय का समय उपयोगी है। इनको थोड़ा – थोड़ा और बार – बार पीने के लिए देना चाहिए।
वही शरीर में बल वर्धन के लिए अन्नो के सेवन को उपयोगी बताया गया है। जिसमे शालीधान और साठी का चावल, जौ एवं गेहू का आटा आदि पुराने अन्नो को हिचकी रोग में पथ्य माना गया है। हिचकी रोग में सूर्यास्त का समय भोजन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। ऐसा करने पर पाचन इत्यादि भी सुचारु रूप से काम करता है।
हिचकी से बचाव ( hiccup prevention in hindi )
सामान्यतया हिचकी आने के फायदे नहीं है। जब हम ज्यादा खाना खा लेते तो पाचन प्रक्रिया में, हिचकी के फायदे है। जिसमे ग्रासनली में फंसा हुआ अन्न जल आदि, पुनः लौटकर मुंह में वापस आ जाता है। जिसके अन्य उपाय इस प्रकार है –
- हिचकी में जलन पैदा करने वाले, शीघ्र नहीं पचने वाले, कब्जकारक, रूखे और कफकारक पदार्थो के सेवन से बचना चाहिए। जैसे – चॉकलेट, मिठाईया, स्नैक्स आदि।
- शीतल पेयों जैसे ठंडा शरबत, बर्फ, आइसक्रीम आदि नहीं खाना चाहिए।
- शीतल स्थान पर नहीं रहना चाहिए। जैसे – नमी वाले स्थान आदि।
- धूल, धुप, धुँआ और वायु के सेवन से बचना चाहिए।
- परिश्रम और थकावट पैदा करने वाले कार्यो को करने से बचना चाहिए। जैसे – व्यायाम, पैदल चलना, भार ढोना आदि।
- अधारणीय वेगो जैसे भूख, प्यास, पेशाब आदि को नहीं रोकना चाहिए।
- अधिक उपवास करने से भी हिचकी की संभावना होती है। इसलिए शरीर क्षमता के अनुकूल ही इनका आश्रय लेना चाहिए।
हिचकी के नुकसान
डिहाइड्रेशन आदि के कारण हैजा होने पर, हिचकी का उपाय शीघ्र करना चाहिए। क्योकि हैजा में पाकस्थली की उत्तेजना के कारण अक्सर हिचकी आती है। जब बहुत सी हिचकिया एक साथ आये और शरीर काँप उठे तो प्राणघातक अवस्था है। जिसमे हिचकी रोकने की दुआ या प्रार्थना ही काम आती है।
FAQ
शराब पीने के बाद हिचकी क्यों आती है
शराब की अधिक मात्रा का सेवन करने पर हिचकी होती है। जिसका मूल कारण गले का रुक्ष होना है।
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