अमरूद उच्च गुणवत्ता के फाइबर, हाई एंटीऑक्सीडेंट और कई तरह के विटामिन का प्रमुख स्रोत है। जिसका अम्लीय स्वाद हमारे पाचन तंत्र पर क्षारीय प्रभाव दिखाता है। जिससे हमें पाचन से जुडी समस्याए नहीं होती। जो बवासीर के लक्षण में प्रमुखता से देखी जाती है। जिसके कारण बवासीर में अमरूद खाने के फायदे बहुत है। इसमे भी लाल अमरूद को सफ़ेद वाले से अच्छा माना जाता है। जिसके कारण बवासीर में लाल अमरूद के फायदे अधिक माने जाते है। तो आइये बवासीर में अमरूद के फायदे जानते है।
हालाकिं लाल और सफेद दोनों ही अमरूद की प्रजातियां है। फिर भी गुण विशेष के कारण, इनके रंगादि में परवर्तन दिखाई पड़ता है। जिसके कारण बवासीर में अमरूद के फायदे और नुकसान, को ध्यान में रखकर ही सही विधि के साथ इसको खाना चाहिए। जिससे इसमें पाए जाने वाले गुण, हमें हमारे शरीर के अनुकूल उचित मात्रा में प्राप्त हो सके। जैसे – अमरूद में पाया जाने वाला एंटी आक्सीडेंट गुण, ऑक्सीकरण की प्रक्रिया को धीमा करता है। जिसके कारण लम्बे समय तक हमारे त्वचा पर, झुर्रिया नहीं पड़ती और युवा बने रहते है।
पाचन समबन्धी समस्या के निवारण में, अमरूद का कोई विकल्प नहीं। जिसका सबसे बड़ा कारण, इसमें पाया जाने वाला फाइबर और विटामिन सी एवं विटामिन के आदि है। जिसके कारण यह पचने में आसान और आंतो की सफाई करने वाला है। वही इसका अम्लीय स्वाद पाचन तंत्र पर, क्षारीय असर दिखाता है। जिससे पाचन रसों के श्रावण को बढ़ावा मिलता है। जिसके कारण हम कब्ज, अपच, गैस और पेट दर्द की समस्या से बचे रहते है।
अमरूद के गुण
बवासीर में अमरूद के फायदे और नुकसान, इसमें पाए जाने वाले स्वाभाविक गुणों पर निर्भर है। जिसके कारण इसकी विशेष उपयोगिता सिद्ध होती है। आमतौर पर अमरूद में निम्नलिखित गुण विद्यमान होते है –
- कच्चा अमरूद स्वाद में कषैला, किन्तु पका हुआ अमरूद स्वाद में मधुर ( मीठा ) होता।
- रेचक होने से वातनाशक होता है।
- अम्ल और पित्त को शांत करने वाला होता है।
- तासीर में ठंडा होने से कफ कारक होता है।
लाल अमरूद के फायदे और सफेद अमरूद के फायदों में बहुत अंतर नहीं है। हालांकि इनके स्वाद में भिन्नता तो है ही। ऊपर अमरूद के फायदे और नुकसान दोनों बताये गए है। जिसके लिए लोग बवासीर में अमरूद के फायदे बताइए की बात करते है।
बवासीर में अमरूद खा सकते हैं या नहीं
आयुर्वेद में बवासीर को पाचन से जुड़ा हुआ, रोग कहा गया है। जिसमे सबसे अधिक योगदान हमारे द्वारा पायी जाने वाली अग्नि का है। जिसे पाचक अग्नि कहा जाता है। जिसके मंद पड़ जाने पर, इसे मंदाग्नि कहा जाने लगता है। जिसके कारण आयुर्वेदज्ञों ने ऐसे वस्तुओ के सेवन का निषेध किया है। जिसमे यह गुण पाए जाते है –
- मल का बंधन करे अर्थात मलबद्धता पैदा करें
- अपान वायु को प्रतिकूल करे
- पाचन अग्नि को कम करे
उपरोक्त तीनो बिन्दुओ के आधार पर अमरूद को लेकर विचार करे तो अमरूद में बवासीर को मिटाने वाले गुण पाए जाते है।
- अमरूद में फाइबर की प्रचुरता होती है। जिसके कारण इसमें रेचक गुण पाए जाते है। जो कब्जियत आदि को मिटाते है।
- अमरूद में पाए जाने वाले बीज, कुछ देर से पचते है। लेकिन इसमें प्रतिकूल हुए अपान वायु को अनुलोम करने का गुण पाया जाता है।
- रेचक गुण रखने वाले पदार्थ पाचक अग्नि को बढ़ाते ही है। जिसके कारण अमरूद का सेवन करने से, जठराग्नि मजबूत होती है।
इस आधार पर अमरूद में वो सभी गुण पाए जाते है। जिसकी बवासीर रोग के उपचार में आवश्यकता पड़ती है। जिससे इसका सेवन करने से, बवासीर में फायदा होता है। आमरुद न खा पाने वाले लोग, अमरूद जूस ( guava juice ) का सेवन कर सकते है। परन्तु अमरूद जूस के फायदे तो है, लेकिन उतने नहीं जितने कि अमरूद खाने के है। परन्तु ध्यान रखे कि कच्चा अमरूद बवासीर रोग में न खाये। यह पाहे हुए अमरूद से विपरीत गुण प्रदर्शित करता है।
अमरूद से बवासीर का इलाज
बवासीर में अमरूद खाने के फायदे है। जिसका मुख्य कारण अमरूद का वात और पित्त दोष को दूर करने वाला होना है। जिसके कारण इन दो दोषो से होने वाली बवासीर के उपचार में, अमरूद बहुत ही फलकारी है। इसलिए वातज एवं पित्त बवासीर में अमरूद खाने के फायदे है। जो मुख्य रूप से तीन प्रकार के बवासीर में उपयोगी है।
वातज बवासीर : वातज बवासीर में बवासीर के मस्से आकार में बड़े होते है। जो काले – काले, खुरदरे और चुभने वाले होते है। जिसमे भीषण चुभन का दर्द होता है। इस तरह की बवासीर में भीषण कब्ज की समस्या होती है। जिसके कारण इसका मल सूखा और कडा होता है। जिससे आसानी से बाहर नहीं निकलता। जिसको जोर लगाने पर भयकर चुभने वाला दर्द होता है। जिससे रोगी मल का वेग आने पर काँपने लगता है। यह सब बादी बवासीर के लक्षण है। इस तरह की बवासीर में अमरूद के फायदे है।
खूनी बवासीर : इसको पित्तज बवासीर के नाम से भी जाना जाता है। इस बवासीर के मस्से आकार में छोटे, किन्तु गुदा पर भीषण जलन करने वाले होते है। जो हरे – पीले रंग के, फटे हुए और रक्त मिश्रित स्राव वाले होते है। जिसके कारण इनको खूनी बवासीर के लक्षण से युक्त माना गया है।
वातानुबन्धी खूनी बवासीर : यह द्वंदज बवासीर है। जिसमे पित्त दोषों के साथ, वात दोष का अनुबंध पाया जाता है। जिसके कारण इसमें पित्तज और वातज बवासीर के मिलते हुए लक्षण देखे जाते है। जिसके मस्सों के रंग और आकार भी आपस में मिले हुए होते है। जिसमे होने वाले मस्सों के दर्द की प्रकृति भी एक साथ देखने को मिलती है। अर्थात चुभन और जलन दोनों ही एक साथ दिखाई पड़ते है। जिसमे बवासीर की गारंटी की दवाई बहुत लाभकारी है।
उपसंहार :
अमरूद में पाए जाने वाले गुणों के कारण, बवासीर में अमरूद के फायदे है। लेकिन कफ दोषो में अमरूद के सेवन का निषेध है, वो भी कच्चा अमरूद न कि भुना हुआ। इसलिए यदि भूनकर अमरूद का सेवन किया जाय तो बवासीर में अमरूद खाने के फायदे बहुत है। हालांकि अमरूद के फायदे और नुकसान, इसके गुणों पर निर्भर है। इसलिए बवासीर में लाल अमरूद के भी फायदे है।
बवासीर को आयुर्वेद ने महारोग है। जिसका विकास रोग के रोग से होता है। जिससे इसके समाधान के लिए मूल रोग के वारण की आवश्यता पड़ती है। जिसके शिथिल होने पर, महा रोगो के शांत होने का क्रम आरंभ हो जाता है। जिसमे औषधि के अतिरिक्त, आहार – विहार – निद्रा आदि को उपयुक्त और अनुकूल रखने की भी आवश्यकता पड़ती है।
ध्यान रखे : कच्चे अमरूद में कषैला रस अधिक मात्रा में पाया जाता है। जिसके कारण इसके गुण पके हुए अमरूद से अलग होते है। इसलिए इसका इस्तेमाल बवासीर रोग में नहीं किया जाता है।