फिशर ठीक होने के लक्षण और इलाज

गुदा विदर मल द्वार में होने वाला रोग है। जिसमे गुदा की बाहरी दीवारों पर दरार या घाव देखे जाते है। जिसको गुदा फिशर ( एनल फिशर ) के नाम से भी जाना जाता है। यह प्रायः पुराना होने पर जीर्ण हो जाया करता है। जिससे इसमें गुदास्राव की समस्या देखी जाती है। जो फिशर ठीक करने के उपाय करते समय, एनल फिशर का इलाज करने पर भी स्रावित होता रहता है। जिससे फिशर ठीक होने के लक्षण का पता नहीं चल पाता।

फिशर रोग ठीक होने के लक्षण

गुदा में होने वाले रोग गुद रक्त वाहिनियों में, विसंगति होने पर दिखाई पड़ते है। जिसमे मलाशय और गुदा के मध्य पायी जाने वाली, गुद नलिका में मलापनोदन के लिए तीन वलिया पायी जाती है। जो मल का प्रवहण, संवरण और निर्वहण नामक तीन महत्वपूर्ण कृत्यों का सम्पादन करती है। जोकि लम्बाई में फैली रक्त शिराओ से घिरी हुई होती है। जिसमे किसी तरह का कोई कपाट नहीं पाया जाता है। जिनमे रक्त भर जाने से बवासीर और फिशर के लक्षण देखे जाते है। 

यदि फिशर तीन माह तक बना रहता है, तो इसे जीर्ण फिशर ( chronic fissure ) माना जाता है। जो शरीर गत दोषो से मिलकर, अधिक गहराई में जाकर बैठ जाता है। जिसके कारण दिन ब दिन रोग की तीव्रता में बदलाव लाकर, रोगी को कमजोर करता जाता है। जिससे मोटा ताजा नवयुवक भी वृद्धो जैसा दिखाई देता है। जिसके लिए फिशर का आयुर्वेदिक इलाज बहुत ही अच्छा उपाय है।   

फिशर क्या होता है ( fissure kya hota hai )

जब अतिशय कारणों से अतिसार और मलबद्धता रोग विकार, फिशर और बवासीर के लक्षण के पूर्व देखे जाते है। जिसमे आसानी से मल त्याग नहीं होता। फलस्वरूप पेट में गैस बनना, डकार और अपानवायु से सम्बंधित समस्याए बढ़ जाती है। जिसमे सबसे बड़ी कठिनाई मलत्याग को लेकर होती है। जिसको बाहर निकालने के लिए बहुत जोर लगाना पड़ता है। फिर भी मल गुदा से बाहर नहीं आता।

इस दौरान गुद रक्त शिराओ में खून जाता रहता है। जिसकी कुछ दिनों तक पुनरावृत्ति होने से, गुद नली की वलियो में पायी जाने वाली रक्त वाहिनियो में दरार बन जाती है। जिसे गुदा विदर अथवा एनल फिशर कहा जाता है। जिसका उपचार करने में फिशर का घरेलू नुस्खा अत्यंत गुणकारी है।

फीशर के लक्षण ( fisher ke lakshan )

anus fissure pictures

फिशर रोग में आमतौर पर निम्नलिखित लक्षण देखे जाते है –

  • गुदास्राव होना
  • मल द्वार में जलन और दर्द होना 
  • गुदा से रक्तस्राव होना
  • मल द्वार पर सूजन होना 
  • गुदा में सूजन बनी रहना
  • मलत्याग में कठिनाई होना 
  • पेट में गड़गड़ाहट होना
  • भूख न लगना
  • पेट और कुक्षि में दर्द होना
  • पैरो में मसलने के समान दर्द होना
  • बार – बार प्यास और मूत्र का वेग लगना, आदि। 

जीर्ण एनल फिशर के लक्षण ( chronic anal fissure symptoms in hindi )

3 माह से पुराने गुदा विदर को जीर्ण गुदा विदर कहा जाने लगता है। जिसमे सामान्य गुदा विदर के अनुरूप ही लक्षण पाए जाते है। जिसमे अंतर केवल रोग की तीव्रता का होता है। जिससे इसे जीर्ण फिशर सिम्पटम्स ( chronic fissure symptoms ) भी कहा जाता है।

गुदा फिशर के जीर्ण होने पर, गुदा से अधिक मात्रा में रक्तस्राव होता है। जिसके कारण रोगी में घबराहट और बेचैनी होती है। इसके साथ स्राव आदि के निकलने से, कमजोरी बढ़ती है। जिससे रोगी शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से कष्ट पाता है।  

एनल फिशर का इलाज ( fishar ka ilaj )

आयुर्वेद में किसी भी रोग का उपचार, रोगीगत लक्षणों के आधार पर किया जाता है। न कि रोग के लक्षणों को आधार बनाकर। जिसके कारण यह रोगी के अस्वाभाविक लक्षणों का शमन कर देता है। जिससे रोगी रोग से मुक्त हो जाया करता है। जिसके लिए आयुर्वेद में बहुत से उपाय बतलाये गए है। हालांकि होम्योपैथी भी लक्षणों पर आधारित चिकित्सा व्यवस्था है। जिसके कारण इसमें फिशर का होम्योपैथिक इलाज भी लाभकारी है। 

फिशर रोग में शरीर में जमे हुए मल को बाहर निकालना पड़ता है। जिसके लिए आयुर्वेद में रेचनकारी औषधियों की आवश्यकता पर बल दिया गया है। जिसमे तीव्र, लघु और मृदु रेचक का रोग की तीव्रता के अनुसार प्रयोग किया जाता है। जिसमे दूध को मृदु रेचनकारी द्रव्य माना गया है। जिसका सेवन करने से मलत्याग के समय होने वाली, कठिनाई को कम करने में मदद मिलती है। जिसको फिशर में दूध के फायदे कहा गया है। 

आधुनिक प्रचलित चिकित्सा पद्धति में, फिशर के लिए टेबलेट आदि का उपयोग किया जाता है। जो फिशर में होने वाली विविध तरह की, तकलीफो को कम करने में सहायता करता है। वही फिशर के बाहरी घावों पर लगाने के लिए, फिशर के लिए क्रीम का इस्तेमाल किया जाता है। जो फिशर के बाहरी घावों में भरने में फायदा पहुंचाता है।    

जीर्ण एनल फिशर का इलाज ( chronic anal fissure treatment in hindi )

फिशर अधिक जीर्ण हो जाने पर, औषधि उपचार के द्वारा ठीक नहीं होता। जिसके लिए जीर्ण फिशर ट्रीटमेंट ( chronic fissure treatment ) के आधुनिक विधा में, फिशर सर्जरी अथवा ऑपरेशन का सहारा लिया जाता है। जिसकी सहायता से गुदा विदर में होने वाले, क्षतिग्रस्त गुद शिराओ को काटकर निकाल दिया जाता है। जिसके ठीक होते ही फिशर रोग ठीक के लक्षण दिखने लगते है।  

फिशर ठीक होने के चरण ( stages of fissure healing in hindi )

फिशर के ऑपरेशन और औषधि उपचार के समय, समान स्थिति देखी जाती है। जिसको तीन घटको में विभाजित किया जा सकता है। जो फिशर रोग ठीक होने के लक्षणों में देखा जाता है। 

दर्द में कमी : किसी भी रोग का उपचार करने पर, सबसे पहले शारीरिक दर्द में कमी आती है। उसी प्रकार फिसर ठीक होने लगने पर, मल द्वार पर होने वाले दर्द में कमी आती है। जैसे – जलन, खिजली, भारीपन आदि। 

स्राव में कमी : दर्द के धीरे – धीरे कम होने के बाद, गुदास्राव में भी कमी आने लगती है। जिससे रोगी को मानसिक रूप से लाभ होता है। 

गुदा के घाव का सूख जाना : जब दर्द और स्राव में कमी आने लगती है। तब गुदा में दिखाई देने वाला घाव भी सूखने लगता है। 

फिशर ठीक होने के लक्षण ( signs a fissure is healing in hindi )

जब फिशर ठीक होने लगता है, तब निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते है –

  • मलद्वार पे बनने वाले घाव के दर्द में कमी आना
  • गुदा पर होने वाली जलन और खुजली कम होने लगना 
  • गुदा द्वार से होने वाले रक्त स्राव में कमी आना
  • मल द्वार से निकलने वाले स्राव का लगातार कम होते जाना
  • गुदा द्वार में सूजन के लक्षण का कम होने लगना 
  • गुदा की दरारों का भरने लगना
  • अनियमित मलत्याग की समस्या का दूर होने लगना
  • पाचन शक्ति बढ़ने से खुलकर भूख लगना
  • अपान वायु का नियमित तौर पर निकलते रहना
  • पेट और कुक्षि के दर्द में कमी आने लगना
  • बार – बार लगने वाले मल और मूत्र के वेग में कमी आना 
  • पैरो के दर्द आदि में सुधार होना
  • घबराहट और बेचैनी में निरंतर कमी आना, आदि।       

एनल फिशर ठीक होने का समय ( anal fissure healing time in hindi )

साधारण फिशर और जीर्ण फिशर के ठीक होने में, समय का बहुत अधिक अंतर है। जिसका सबसे बड़ा कारण इनमे पाए जाने वाले वैषम्य दोष है। जब यह किसी कारण वश प्रबलता को प्राप्त कर जाते है। तब अधिक तेजी से फैलकर, सम्पूर्ण शरीर पर अपना अधिकार जमाने लगते है। 

अब चिकित्सा की इतनी अधिक व्यवस्था हो चली है। जिसके कारण पहले असाध्य कहे जाने वाले फिसर अब साध्य हो चले है। परन्तु सहज रूप से पाए जाने वाले रोगो का, अब भी कोई उपचार नहीं है। हालाकिं पाइल्स फिशर फोटोज में फिशर ठीक होने के लक्षण बताये गए है।

सामान्यतः औषधि के द्वारा उपचारित होने वाला, फिशर ठीक होने में दो से तीन महीने लग जाते है। जबकि सर्जरी आदि के द्वारा फिशर जल्दी आरोग्य हो जाता है। जिसमे कम से कम एक से डेढ़ माह का समय लग सकता है।   

एनल फिशर के लिए व्यायाम ( exercise for anal fissure in hindi )

exercise for anal fissure

हमारे शरीर को जिस प्रकार भोजन की आवश्यकता है। उसी प्रकार परिश्रम की भी आवश्यकता है। फिर चाहे वह दैनिक कार्य करके की जाय या व्यायाम करके। परिश्रम के अभाव में रोगानुगति संभावित है। जिसके आपनोदन के लिए नियमित परिश्रम की अपेक्षा है। 

आजकल गाँवों का नक्शा शहरो के जैसा होता जा रहा है। जिसमे न खेती, बागवानी को स्थान दिया जा रहा है, और न गोसेवा आदि को। जिसके कारण हमारे पास परिश्रम बचा ही नहीं। जिसके दुष्प्रभाव के कारण हर व्यक्ति बीमार सरीखा है। आजकल तकनीकी का इतना प्रभाव है कि बिना मशीन के किया जाने वाला कार्य हीन दृष्टि से देखा जाता है। जिसके प्रभाव में आ कर इच्छुक व्यक्ति भी परिश्रण से, प्रायः परहेज ही करता है।

इस तरह की विपरीत परिस्थिति में, व्यायाम ही परिश्रम का एक मात्रा साधन दिखाई पड़ता है। जिसको विधि पूर्वक करने पर ही, किसी तरह का लाभ प्राप्त हो सकता है अन्यथा नहीं। इसलिए पैदल घूमना सबसे अच्छा व्यायाम माना गया है। यह जल्दी से जल्दी फिशर ठीक होने के लक्षण को दिखाने में मददगार है।  

पाइल्स और फिशर के लिए योग ( yoga for piles and fissure in hindi )

आजकल साधन की बात तो बहुत दूर है। योग का उपयोग परिश्रम के विकल्प के रूप में होता है। जिसमे योग की शुरुआत ही आसन होती है, और प्राणायाम पर जा कर समाप्त हो जाती है। कुछ भी हो आजकल योग की चर्चा बहुत है। जिसके कारण लोग योग को अच्छा ही मानते, बल्कि इसका नियमित अभ्यास भी करते है। 

जिससे वह स्वस्थ रहकर रोग से बचे रहते है। इसको ही लोग योग का फल समझते है। जबकि योग दर्शन में योग का परम फल समाधि के द्वारा भगवद प्राप्ति को माना गया है। खैर गुदा रोगो में लाभकारी आसन निम्नलिखित है –

  • हलासन
  • पश्चिमोत्तानासन
  • शलभासन
  • सर्वांगासन
  • वज्रासन, आदि।   

फिशर बनाम पाइल्स ( fissure vs piles )

फिशर गुद वलियो की रक्त शिरा में, खून के जमाव से शिरा के फटने से होने वाला रोग है। जबकि गुद वलियो में खून जमकर, गुद वलि शिराओ का अंकुर के रूप में निकल आना बवासीर कहलाता है। यह दोनों ही रोग लगभग समान कारण और दोष के कारण पैदा होते है।    

पाइल्स और फिशर में कौन अधिक खतरनाक है ( piles or fissure which is more dangerous )

आयुर्वेद में सभी रोगो को जड़ से समाप्त करने की बात कही गई है। जिसके कारण हर रोग विप्लवकारी है। जबकि बवासीर और फिशर दोनों गुदा की वलियो में होने वाले रोग है। जिसमे लगभग समान लक्षण पाए जाते है। जिसके आधार पर फिसर और बवासीर, दोनों लगभग एक जैसे रोग है। इसके कारण समान रूप से खतरनाक है।  

उपसंहार :

फिशर गुदा में पाया जाने वाला बहुत ही कष्टकारी रोग है। जिससे एनल फिशर का इलाज के दौरान, रोगी फिशर ठीक होने के लक्षण जानने की कोशिश करता है। यह रोग रोगी और उसके घर वालो को, शारीरिक और मानसिक रूप से आक्रांत करता है। जिसके कारण वह फिशर ठीक करने के उपाय ढूढ़ने लगता है।

हालाकिं आयुर्वेदादी शास्त्रों में, रोग से बचाव को रोगोपचार से उत्कृष्ट माना गया है। जिसके लिए हम सब ऐसे उपायों का सहारा लेना चाहिए। जिनसे हम रोग से ग्रस्त ही न हो। जिसके लिए शास्त्रीय दिनचर्या, ऋतुचर्या, आहार और विहार पर विशेष ध्यान रखना चाहिए।    

FAQ

फिशर कितने दिन में ठीक होता है?

फिशर ठीक होने के समय का निर्धारण, रोग की तीव्रता और रोगी के बलाबल पर निर्भर है। जिसके कारण अलग – अलग रोगियों में इसके ठीक होने का समय भिन्न – भिन्न होता है। परन्तु आमतौर पर डेढ़ से दो महीने में फिशर आरोग्य हो जाया करती है।   

क्या नारियल तेल गुदा फिशर के लिए अच्छा है?

नारियल तेल सभी प्रकार के संक्रमण और घाव को ठीक करता है। जिसके कारण इसका इस्तेमाल फिसर रोगो में करना फायदेमंद है। 

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