काजू दुनिया भर में खाया जाने वाला प्रसिद्द मेवा ( ड्राई फ्रूट्स ) है। आधुनिक खाद्य विज्ञान के अनुसार इसको नट्स की श्रेणी में रखा गया है। जिसका अनोखा स्वाद लोगो को अपना दीवाना बना लेता है। इसका अधिक मात्रा में सेवन करने से पेट में दर्द आदि की समस्या होती है। जो बवासीर के लक्षण में भी देखा जाता है। इसलिए बवासीर रोग से पीड़ित लोगों को जानना आवश्यक है कि बवासीर में काजू खाना चाहिए या नहीं?
मानव गुदा में मस्से निकल आने को ही पाइल्स के लक्षण कहा जाता है। जो प्रायः दो प्रकार की होती है –
- मस्से वाली बवासीर या बादी बवासीर
- खूनी बवासीर
यह बवासीर महिला और पुरुष दोनों में देखे जाते है। परन्तु महिला बवासीर के लक्षण गर्भ की अवस्था में विशेष रूप से देखे जाते है। जो पुरुष बवासीर के लक्षण से कुछ अलग होते है। इन सभी में एक बात समान रूप से देखी जाती है। वह है पेट से सम्बंधित किसी प्रकार की समस्या। जिसके कारण बवासीर के रोगी को पाइल्स में काजू खाना चाहिए या नहीं का संशय बना रहता है।
बावासीर के उपचार में परहेज रखना जरूरी है। जिसके लिए बवासीर में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं का ध्यान रखा जाना अनिवार्य है। बादी बवासीर के लक्षण में बवासीर के मस्से बहुत बड़े आकार के होते है। जिससे मलत्याग के समय गुदा में भयंकर दर्द होता है।
जबकि खूनी बवासीर के लक्षण में, गुदा में जलन के साथ खून का रिसाव होता रहता है। जो मलत्याग के समय रगड़ लगने से बढ़ जाता है। जिससे गुदा में तीव्र और असहनीय जलन के साथ, खून की धारा फूट पड़ती है। जिससे रोगी को मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार की वेदना सहनी पड़ती है।
बवासीर में काजू खाना सही या गलत
काजू में कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, कई तरह की विटामिन और अनेको तरह के खनिजों के साथ कम मात्रा में फाइबर पाया जाता है। जिसके कारण काजू को पोषण की दृष्टि से, अच्छा माना जाता है। इन्ही आवश्यक खनिजों, विटामिनो, प्रोटीनों और वसाओं आदि के आनुपातिक संयोजन से काजू में रंग और स्वाद पाया जाता है।
आयुर्वेद में बवासीर रोगियों के लिए उपयुक्त भोजन की तीन विशेषताए बताई गई है –
- कब्जियत अथवा मल को बांधने वाला न हो
- अपानवायु का विलोमक न हो
- पाचक अग्नि को कम करने वाला न हो
सही अर्थो में बवासीर में काजू खाना चाहिए या नहीं का निर्णय उपरोक्त शर्तो के अनुसार ही होना चाहिए।
- खनिज, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा की प्रचुरता होने पर भी फाइबर की कमी पायी जाती है। जिससे काजू का सेवन करने से गरिष्टता आती है।
- तैलीय वसा की उपस्थिति के कारण, रेचक औषधि के जैसे गुण इसमें पाए जाते है। जिससे यह अपानवायु का अनुलोमन करता है।
- काजू में वनस्पतिक वसा पाए जाने से, पाचक अग्नि का उद्दीपन करता है।
काजू में नीचे के दोनों गुण पाए जाते है। जिसके कारण यह बवासीर में उपकारी है। लेकिन फाइबर की कमी और पचने में गरिष्ठ होने से काजू का सेवन बवासीर में हानि भी पहुंचा सकता है। जिसके कारण काजू का सेवन बवासीर में बहुत ही सीमित करना चाहिए। इसके बारे में हिंदी ब्लॉगर में लिस्टेड बहुत सी साईट है।
उपसंहार :
बवासीर खान – पान के कारण होने वाली बीमारी है। इसलिए बवासीर में काजू खाना चाहिए या नहीं की जानकारी होना आवश्यक है। काजू हमारे लिए जहाँ एक ओर विभिन्न प्रकार के पोषक और आवश्यक तत्वों का स्रोत है। वही दूसरी और अधिक मात्रा में खाने से गरिष्ट होने के कारण हानिकारक भी हो सकता है।
काजू में कैल्शियम, ताँबा, लोहा, मैग्नीशियम, मैगनीज, फास्फोरस, पोटैशियम, सेलेनियम, सोडियम और जस्ता जैसे आवश्यक और उपयोगी खनिज पाए जाते है। जिसका सेवन करने से हमारा स्वस्थ्य स्थिर बना रहता है। परन्तु पेट और इससे सम्बंधित रोगो में, काजू का बहुत संभल कर प्रयोग करना चाहिए।
सन्दर्भ :
अष्टांग ह्रदय चिकित्सा अध्याय – 08