गेहूं का ग्लाइसेमिक इंडेक्स : wheat glycemic index in hindi

भारत में हरित क्रांति आने के बाद से गेहूं की खेती की जाने लगी। आज गेहू की खपत इतनी बढ़ गयी है कि इसको प्रमुख अन्नों में शामिल कर लिया गया है। जिसका सबसे बड़ा कारण इसमें बहुतायत मात्रा में कार्बोहाइड्रेट का पाया जाता है। जिससे यह हमारे लिए ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत भी है। लेकिन क्या तकनीकी रूप से गेहू खाने लायक है। इसका पता गेहू के ग्लाइसेमिक इंडेक्स से लगाया जाता है। तो आइये जान लेते है कि गेहूं का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कितना होता है?

गेहूं का ग्लाइसेमिक इंडेक्स

अच्छा गेहूं का रेट और उच्च उत्पादकता के कारण, दुनिया भर में मुख्य फसल के तौर पर इसको उपजाया जाता है। वही ऊर्जा की जरूरतों की मांग के चलते, अधिक मात्रा में गेहू को खाया भी जाता है। लेकिन गेहू की जितनी भी नस्ले है, सभी में 55 से लेकर 64 ग्लाइसेमिक इंडेक्स पाया जाता है। जबकि गेहूं का ग्लाइसेमिक लोड 11.5 है। वही उसी नस्ल के गेहू और गेहूं की रोटी का ग्लाइसेमिक इंडेक्स में भी कुछ अंतर् पाया जाता है।

हम भारतीय पेट भरने के लिए गेहू की रोटी खाते है। जबकि परदेशी लोग पाँव और ब्रेड आदि खाकर पेट भरते है। हालांकि गेहू से बनने वाले सभी व्यंजन गेहू के आटे से ही बनाये जाते है। परन्तु गेहू में कार्ब्स की सर्वाधिक मात्रा पायी जाती है। जो पाचनोपरांत चीनी में तब्दील होकर, हमारे खून में मिल जाती है। जिससे हमारे खून का शुगर बढ़ने की आशंका बनी रहती है। इसलिए तकनीकी रूप से गेहूं के आटे का ग्लाइसेमिक इंडेक्स जानना बहुत जरूरी है। ताकि हम बीमार होने से बचे रहे।  

गेहूं का ग्लाइसेमिक इंडेक्स ( glycemic index of wheat in hindi )

glycemic index of wheat

दुनिया और भारत में गेहूं का उत्पादन आज बहुतायत में हो रहा है। जिसका मुख्य कारण बढ़ता जनसंख्या दबाव है। जिनके भोजन की पूर्ति करने के लिए गेहू को उपजाया जाता है। जिससे बाजारों में गेहू और इससे बने हुए उत्पादों की भरमार है। अब जब बाजार में गेहू का विकल्प नहीं बचा, तो लोग किसी न किसी रूप मे इसे खाने के लिए भी विवश है। 

परन्तु अब इसमें सुधार की शुरुआत हो चुकी है। आज साक्षरता बढ़ने से जागरूकता में इजाफा हुआ है। लेकिन अभी भी हममे से बहुत से लोग गेहू का सेवन करते ही है। इसके तकनीकी कारणों को समझे बिना। इस कारण उम्र के किसी न किसी पड़ाव पर, बहुत सावधान रहने पर भी गंभीर बीमारियों का शिकार हो जाते है। इसलिए यदि आप भी नियमित रूप से गेहू का सेवन करते है, तो सावधान जो जाए। 

गेहू में पाए जाने वाले कार्बोहाइड्रेट और फाइबर के अनुपात को गेहू का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कहा जाता है। जो आमतौर पर 54 – 64 के बीच होता है। यह मध्यम और तीव्र ग्लाइसेमिक इंडेक्स के अंतर्गत आता है। जिसका सेवन करने से ब्लड शुगर के बढ़ने का खतरा होता है। इसलिए नियमित रूप से गेहू का सेवन आयुर्वेद आदि में अच्छा नहीं माना गया है। जहा पर गेहू के लिए गोधूम नामक शब्द प्रयोग किया गया है। जिससे एक बात स्पष्ट है कि आयुर्वेद के जानकारों को गेहू की जानकारी थी। फिर भी नियमित रूप से गेहू का सेवन नही करते थे।

गेहूं के आटे का ग्लाइसेमिक इंडेक्स ( glycemic index of wheat flour in hindi )

glycemic index of wheat flour

आज के समय में गेहू अन्नों में प्रमुख स्थान रखता है। जो पौधों से दानो के रूप में प्राप्त होता है। जिसको हम सीधे नहीं पचा सकते। इसलिए इसको पत्थर की चक्की में पीसकर, आटे का रूप दिया जाता है। जिसमे फाइबर रूपी चोकर मिला रहता है। जिससे इसके ग्लाइसेमिक इंडेक्स में कोई विशेष अंतर् नहीं आता। कित्नु जब किसी कारण वश इसको अलग कर दिया जाता है, तब इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कुछ बढ़ जाया करता है।

गेहूं की रोटी का ग्लाइसेमिक इंडेक्स ( glycemic index of wheat roti in hindi )

glycemic index of wheat roti

भारत में गेहू के आटे की खपत रोटी बनाकर की जाती है। जबकि अन्य देशों में गेहू के आटे से ब्रेड, डबल रोटी आदि बनायी जाती है। जिसमे अंतर् केवल इतना है कि ब्रेड बनाने में, चोकर अलग करके आटे का प्रयोग होता है। जिससे ब्रेड देखने में आकर्षक लगे। जिसके निर्माण की विधि में भी अंतर देखने को मिलता है। जिससे इसके स्वाद और रख रखाव में भेद देखा जाता है। 

लेकिन आजकल लोग रोटी बनाने के लिए, आटे को चालकर प्रयोग करने लगे है। जिससे रोटी देखने में सुन्दर लगे। किन्तु आटे को चालने से इसके ग्लाइसेमिक इंडेक्स में, बहुत अंतर पड़ जाता है। जिसका मुख्य कारण आटे से फाइबर का अलग हो जाना है। इसलिए छाना हुआ आटा ग्लूकोज के लगभग बराबर जी आई वाला हो जाता है। जोकि तेजी से खून में चीनी को मिलाता है। जिससे हमारे शरीर की रक्त शर्करा बढ़ने का खतरा होता है। ग्लोरिया इस कारण चाले हुए गेहू की रोटी खाने में स्वादिष्ट और देखने में सुन्दर हो सकती है, किन्तु स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छी नहीं होती।

उपसंहार :

गेहूं का ग्लाइसेमिक इंडेक्स 54 से 64 के बीच होता है। जिसको जीआई श्रेणी में मध्यम और तीव्र ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाला कहा जाता है। इसका आटा गेहू को पीसकर बनाया जाता है। जिससे गेहूं के आटे का ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी लगभग – लगभग गेहू के बराबर ही होता है। जबकि गेहू के आटे से रोटी बनाने के लिए, चलनी से चालकर अक्सर चोकर को अलग कर दिया जाता है। जिससे गेहूं की रोटी का ग्लाइसेमिक इंडेक्स गेहू से कुछ अधिक हो जाता है। 

जिसका सबसे बड़ा कारण चोकर के रूप में फाइबर का अलग हो जाना है। जिससे गेहू के कार्बोहाइड्रेट और फाइबर अनुपात में बदलाव आ जाता है। इसलिए गेहू को बिना चाले / छाने ही बेहतर है। वही गेहू से मैदा बनने पर इसका जीआई लगभग ग्लूकोज के बराबर चला जाता है। जिसके सेवन से सबसे अधिक बीमारियों के लगने का खतरा होता है।

आज जब भी हम बीमार पड़ते है तो बीमारी को ठीक करने के लिए दवाइया लेते है। लेकिन खान – पान में कोई बदलाव नहीं करते। जिससे दवाइयों के प्रभाव से हम कुछ दिन के ठीक तो हो जाते है। किन्तु कारण विद्यमान रहने पर पुनः किसी न किसी स्वास्थ्य समस्या का शिकार हो जाते है। इसलिए आजीवन स्वस्थ रहने के लिए उपयुक्त और आवश्यक खान – पान की, निर्बाधता बनाये रखना अत्यंत आवश्यक है।   

सन्दर्भ :

ग्लोरिया एस्क्यू और जेर पैकुएट द्वारा लिखी सप्लीमेंट्स की कुछ सच्चाइयाँ 

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