बुखार के लिए गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये

आयुर्वेदादी शास्त्रों में गिलोय को सर्वश्रेष्ठ ज्वर नाशक औषधि कहा गया है। जिसका उपयोग हम कषाय के रूप में करते है। जिसमे स्वरस, क्वाथ आदि आते है। स्वरस के रूप में गिलोय जूस (giloy juice) और क्वाथ के रूप में काढ़े का प्रयोग सर्वाधिक किया जाता है। सामान्यतः स्वरस की उपलब्धता प्रत्येक मास में सम्भव नहीं होती। जिसके कारण इसके काढ़े का ही सर्वाधिक उपयोग चिकित्सा आदि की दृष्टि से किया जाता है। इन्ही उपयोगिताओं के कारण यह जानना जरूरी है कि प्राय गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये? प्रायः पेट दर्द आदि समस्याओ में भी गिलोय का प्रयोग होता है। 

गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये

इसको अलग अलग भाषा में अलग अलग नामो से जाना जाता है। सबसे प्राच्य ( पुरानी ) भाषा के रूप में संस्कृत को स्वीकार किया गया है। आयुर्वेद की भाषा भी संस्कृत ही है। भाषा की महत्ता के कारण ही इसका अनुगमन इन सनातन शास्त्रों में किया गया है। इसको संस्कृत में गुडुची (guduchi), हिंदी में गिलोय (giloy in hindi) कहा जाता है। मराठी (marathi) गुलवेल या अम्बरबेल के नाम से जाना जाता है। जबकि अन्य भाषाओ में इसको अमृता, जीवंती, गुरुच आदि नामो से भी जाना जाता है। covid-19 से बचाव में इन काढ़ो का प्रयोग किया जा सकता है।

गिलोय में नीम गिलोय (neem giloy) को सबसे उत्कृष्ट माना गया है। जो पूर्णतया द्रव्यगत गुणों के कारण है। जिनको व्यवहारिक जगत में फायदे और नुकसान कहा जाता है। जिस प्रकार गिलोय के फायदे है। उसी प्रकार अदरक के फायदे भी है। ज्वरापचार में गिलोय का सर्वाधिक प्रयोग है। जिसके कारण बुखार के लिए गिलोय का काढ़ा कैसे बनाएं, को जानना और भी महत्व का हो जाता है। 

गिलोय काढ़ा क्या है?

गुरुच या गिलोय ( giloy in hindi) का काढ़ा कषाय का ही एक प्रकार है। जिसमे पानी, गिलोय और कड़वाहट को मिटाने के लिए गुण डाला जाता है। जिसमे तीनो को मिलाकर मिट्टी या लोहे के पात्र में मंद आंच पर उबाला जाता है। जो धीरे धीरे पाक कर अर्थात जल को वाष्पित करता है। उबलते उबलते चतुर्थांश शेष जल को ही गिलोय का काढ़ा कहते है। जिसका उपयोग निरोग होने और स्वास्थ्य संरक्षण के लिए करते है। जो आयुर्वेद के सैद्धांतिक पक्ष का निरूपण करता है।

आयुर्वेद में अलग प्रकार के काढ़े को बनाने के लिए अलग प्रकार की विधि बतायी गई है। जिसका उपयोग कर हम अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित रख सकते है। यह सबसे आसान और अनेको विशेषताओं से युक्त काढ़ा होता है। जिसको आज के युग में टेबलेट(tablet) आदि के माध्यम से प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसकी बेलो से प्राप्त होने वाले लाभ को गिलोय की लकड़ी के फायदे कहते है। जैसे खांसी आदि में भी घरेलू उपायों के रूप में गिलोय का प्रयोग होता है। जिसे खांसी का इलाज घरेलू के नाम से भी जाना जाता है।

किसी भी प्रकार के काढ़े को बनाने में तांबे के द्वारा शोधित जल का उपयोग किया जाय तो उत्तम है। आज प्रदूषणादि के कारण पानी में अनेको प्रकार की विसंगतिया प्राप्त है। जिनका वारण करने के लिए ताम्रपात या तांबे के बर्तन का उपयोग किया जाता है। जो जल में उपस्थित टी डी एस के अतिरक्त सभी प्रकार की विसंगतियों को मिटाने की क्षमता रखता है। परन्तु ध्यान रहे उपयोग में विधि – निषेध का पालन अनिवार्य है। जैसे ताम्र जल सेवन की आयुर्वेदादी सम्मत विधि निषेध है।

गिलोय जूस (giloy juice) क्या है ?

बुखार में गिलोय जूस के फायदे 

सामान्यतः जूस को लोग किसी फल का जूस समझते है। जिस प्रकार फल का जूस निकाला जाता है। उसी प्रकार अन्य औषधियों का भी जूस निकाला जाता है। परन्तु चिकित्सा भेद के कारण इसको यहाँ अलग नाम से उच्चारित किया जाता है। जिसको आयुर्वेद में स्वरस कहा जाता है। जिसको निकालने के लिए निम्नलिखित विधि का उपयोग किया जाता है। जिसको गिलोय सेवन विधि भी कहते है।

इसके लिए ताजी हरी गिलोय (gloeye, guduchi in hindi) को पत्थर पर बढ़िया से कूटा जाता है। तदुपरांत किसी सूती साफ कपडे में रखकर निचोड़कर उसका रस निकाला जाता है। इसी को गिलोय रस (giloy ras) या गिलोय का स्वरस कहा जाता है। स्वरस को आयुर्वेद में कषाय का एक प्रकार या भेद माना जाता है।  किसी भी फल, सब्जी, वनस्पति को कूटकर दबाकर या निचोड़कर उसका रस निकाला जाता है। जिसको हम सभी आम बोलचाल की भाषा में जूस कहते है। इसी तरह हम आम से आम का जूस निकलते है। अनार से अनार का जूस और आवला से आंवले आदि का जूस प्राप्त करते है।

सामान्यतः जब किसी फल से रस की प्राप्ति की जाती है तो उसे जूस कहा जाता है। जबकि किसी वनस्पति से जो रस की प्राप्ति होती है। उसे स्वरस कहा जाता है। यहाँ भाषा को लेकर भेद है। यह केवल सुबह ही आसानी से प्राकतिक रूप से उपलब्ध है सकता है। जबकि शाम को ताजा स्वरस मिलना कुछ कठिन है। जिसको गिलोय की लकड़ी के फायदे के नाम से जाना जाता है। इसलिए इसका सेवन करने के लिए गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये की विधि का ज्ञान हमें होना चाहिए।

नीम गिलोय (neem giloy) क्या है?

गिलोय एक प्रकार की लता है। जिसकी विशेषता यह है की यह एक परपोषी लता है। इसका मतलब यह सीधे जमीन से जुड़ने पर भी किसी अन्य वृक्ष पर आश्रित होकर भी पोषण प्राप्त करता है। जिसके कारण यह अपने लिए आवश्यक सामग्री का संचयन भी उसी के द्वारा करता है। जिसके कारण यदि वह औषधीय वृक्ष है तो उसके गुणों का समावेश भी यह अपने अंदर कर लेता है। जिसके कारण इसमें अतिरिक्त विशेषता का आधान हो जाता है। जिसको हम विशेष गुणों से युक्त होना भी कह सकते है।

गिलोय 1

जब बात नीम गिलोय की आती है। तब सामान्य गिलोय का नीम की पेड़ पर चढ़ा होना समझना चाहिए। जिससे उस गिलोय में गिलोय और नीम दोनों के गुण समानता के साथ प्राकृतिक रूप में आ जाते है। या कुछ कम ज्यादा भी हो सकता है। इस प्रकार से सुसज्जित गुणों से युक्त गिलोय को ही नीम गिलोय कहा जाता है। नीम गिलोय का उपयोग हम काढ़ो के रूप में करते है। जिसके लिए गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये यह हमें पता होना चाहिए।

यहाँ पर विशेष बात यह है कि नीम और गिलोय दोनों ही ज्वर नाशक औषधिया है। नीम ज्वर का नाश करने के लिए अलग प्रकार की परिस्थिति उत्पन्न करता है। जबकि गिलोय ज्वर का नाश करने के लिए नीम से भिन्न प्रकार की परिस्थिति पैदा करता है। नीम और गिलोय का जब आपस में अनुपान होता है। तब इसमें विलक्षण गुणों की प्राप्ति होती है। जिससे यह किसी भी प्रकार के बुखार की एक उपयोगी औषधि बन जाती है। कोरोना विषाणू के संक्रमण से होने वाले बुखार में यह प्रभावी रूप से कार्य करने का काम भी करती है। जिसके लिए बुखार की सबसे अच्छी दवा का भी विधान है।

गिलोय का पौधा कैसे लगाएं

इसका पौधा लगाना बहुत ही आसान है। इसको लगाने के लिए मुख्यतः दो प्रकार की विधि है। जिसमे एक विधि कलम या कटिंग है। दूसरी विधि बीज के द्वारा। यह दोनों ही विधियों से लगाई जाती है। यह मुख्यतः जंगल में पैदा होने वाली औषधि है। यह वहा पर दोनों ही प्रकार से पनपती है। यह सर्द और गर्म दोनों प्रकार के परिवेश में आसानी से लग सकती है। जिसके कारण हम इसे अपने आस पास भी लगा सकते है। यह लता होने के कारण गमले आदि में भी लगाईं जा सकती है।

कलम से इसको लगाने के लिए 10 से 12 इंच लंबा तना लेकर इसे आधा लगभग 6 इंच मिट्टी में गाड़ दिया जाता है। और कुछ दिनों तक उस मिट्टी में नमी को बना कर रखा जाता है। जिससे कुछ दिनों के बाद इसमें से नए पत्ते युक्त कोपले निकलने लगती है। इस विधि से यह कभी भी लगाया जा सकता है। जो देखने में सूखी हुई लगती है। जिससे होने वाले लाभ को गिलोय की लकड़ी के फायदे कहते है। जिसको आमतौर पर गिलोय के फायदे भी कहते है।

बीज से इसको लगाने के लिए वैसाख और ज्येष्ठ मास में इसके फल पाक जाते है। जिनका संकलन कर इसको नमी युत मिट्टी में रोपा जाता है। जिसमे कुछ दिन तक नमी बना कर रखना आवश्यक होता है। जिससे कुछ दिनो के बाद इसमें से अंकुर फूटकर लता निकलती है। यह सामान्य रूप से बारिस के मौसम में होने वाली प्रक्रिया है। दोनों ही विधि से लगे पौध में गुणों में कोई अंतर् नहीं होता है। जिसके कारण दोनों ही प्रकार से हम इसका लाभ उठा सकते है। इसका व्यावहारिक धरातल पर लाभ लेने के लिए गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये का ज्ञान अपेक्षित है।

गिलोय के फायदे (giloy ke fayde)

giloy ke fayde

गिलोय को हम गुरुच, गुड़बेल, गुडुची आदि नामो से जानते है। इस कारण गुरुच के फायदे और giloy ka fayda एक ही है। इनमे कोई भेद नहीं है। हरी गिलोय का ही उपयोग सामान्य रूप से किया जाता है। जिसको पतंजलि गिलोय स्वरस के फायदे के नाम से भी जाना जा सकता है। गिलोय के पत्तो से प्राप्त होने वाले लाभ को गिलोय के पाते के फायदे के नाम से भी जाना जा सकता है। गिलोय जब सूख जाती है तो इसे ही गिलोय की लकड़ी कहा जाता है। जिसका काढ़ा बनाया जाता है। तो गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये यह जानना महत्व का है। इसके फायदों को ही गिलोय की लकड़ी के फायदे भी कहा जाता है।

  • यह जीवाणु और विषाणु नाशक है। जिसके कारण वायरल फीवर के उपचार में भी उपयोगी है।
  • पेट के कीड़ो को समाप्त करती है।
  • टी बी के जीवाणुओ की वृद्धि को रोकने का कार्य करती है।
  • आंतो का पोषण करने में सहायक है। वृक्कों ( किडनियों ) की सफाई करने का कार्य करती है।
  • आँखों के रोगो में लाभकारी है।
  • कान की बीमारी और कानो की मैल को साफ़ करने का कार्य करती है।
  • हिचकी रोकने में सहायक है।
  • पीलिया रोग का नाश करती है।
  • पेट में गैस की समस्या से निजात दिलाने में सहायक है।
  • प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाती है। ज्वर नाशक का कार्य करती है।
  • सभी प्रकार के प्रमेहो का नाश करने में सहायक है।
  • मूत्र प्रणाली का निगमन करती है।
  • सभी प्रकार के हड्डी रोगो में लाभकारी है।
  • आमाशय से सम्बंधित सभी प्रकार के रोगो का नाश करती है।
  • मधुमेह का नाश करने में सहायक है।
  • कैंसर रोगो में लाभकारी है।
  • हृदय विकारो में लाभकारी है।
  • सभी प्रकार के कफकारक रोगो का नाश करने में सहायक है।

 गिलोय तुलसी के फायदे

तुलसी का मिश्रण जब गिलोय के साथ है जाता है तो यह विशेष गुणों को धारण कर लेता है। जिसका हम चिकित्सीय लाभ उठाते है। यह न केवल हमें शारीरिक रूप से सबल बनाता है। बल्कि हमारे शरीर में पाए जाने वाले सभी अंगो को उनकी आवश्यकता के अनुसार पोषण प्रदान करता है। जिससे हमारे शरीर की इम्मुनिटी मजबूत बनती है। जो कोरोना या कोविड आदि से बचाव तो करता है। साथ ही साथ म्यूकर माइकोसिस (ब्लैक फंगस) से भी हमें सुरक्षित रखता है।

गिलोय तुलसी का सेवन हम काढ़े और अर्क के रूप में करते है। जब बात काढ़े की है तो गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये को जान लेना जरूरी है। काढ़े का ही सर्वाधिक उपयोग किया जाता है। क्योकि यह आसानी से हमारे पास उपलब्ध है जाती है। बाजार में उपलब्ध गिलोय का रस पतंजलि (patanjali giloy ke fayde in hindi) सामान्य गिलोय ही है। जो गिलोय के फायदों के सामान ही गुणकारी है। जिसे हम गिलोय की लकड़ी के फायदे भी कहते है।

तुलसी और गिलोय दोनों का मेल किसी भी प्रकार के कफ जनित रोगो का नाश करता है। चाहे वह कोरोना विषाणु है या कुछ और। कोरोना में सर्वाधिक संक्रमण श्वास जनित अंगो और उपांगो में पाया जाता है। जिसके कारण यह नाक, गला, मुँह और फेफड़ो को सर्वाधिक रूप से प्रभवित करता है। जिनके कारण खांसी होना, नाक बहना, गले में दर्द होना, साँस लेने में कठिनाई होना आदि लक्षण पाए जाते है। इनके साथ ही आंतो में संक्रमण के कारण अतिसार, पेचिस या डायरिया आदि की समस्या पायी जाती है। जिनका वारण गिलोय और तुलसी के काढ़े का आलंबन लेकर दूर किया जा सकता है।

नीम गिलोय के फायदे (neem giloy ke fayde) 

नीम और गिलोय दोनों उष्ण औषधिया है। इस कारण ही यह अधिक ताप बाले बुखारों के उपचार में उपयोगी है। यह विशेषकर ग्रीष्म ऋतु में अधिक देखने को मिलता है। इस कारण हम सभी के लिए गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये की जानकारी होनी आवश्यक है। इसके अभाव में हम इस प्रकार की गुणकारी औषधि का लाभ नहीं ले सकते। गिलोय से कब्ज का रामबाण इलाज भी किया जाता है।

नीम गिलोय के फायदे इन हिंदी की बात करना आवश्यक है। क्योकि इसको लाभों की जानकारी हिंदी में बहुत ही काम लोगो को है। आयुर्वेद का प्रचार और प्रसार भी आज काम ही दिखाई पड़ता है। जिसको आज अपनाने की आवश्यकता है, यह न केवल आसानी से उपलब्ध है। सस्ती है बल्कि दुष्परिणाम रहित भी है। जो आज के समय में किसी अन्य विधा में सम्भव नहीं है। जिसे कारण आज भी आयुर्वेद की आवश्यता और भविष्य में भी इसको अपनाने की आवश्यकता है।

इसके फायदों की बात करे तो यह सभी प्रकार की तीव्र ज्वर का नाश करने में समर्थ है। चाहे वह लू लगने के कारण है या वात विकारो के उत्पात के कारण हो। सन्निपात ज्वरो में भी इसको महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। जो इसके गुणों का ख्यापक सिद्ध है। जबकि चिरायता (chirata) भी एक अच्छा ज्वर नाशक है। जो अनुपान के अनुसार प्रयोग में लाया जाता है। जबकि ज्वर नाश के लिए ज्वर नाशक काढ़ो की विधि और उपयोगो की चर्चा की गई है। जिसमे गिलोय की लकड़ी के फायदे भी है।

गिलोय का सेवन कैसे करें (giloy ko kaise use kare) 

आयुर्वेद में गिलोय (gloeye) सेवन की विधि के रूप में कषाय का वर्णन किया गया है। जिसको बनाने की पांच विधिया बतायी गई है। जिनको स्वरस, कल्क, क्वाथ, हिम और फाण्ट कहा गया है। जिसको बनाने की अलग विधियों का भी वर्णन किया गया है। जिसकी अपनी अपनी विशेषता है। इन पांचो को उत्तररोत्तर लघु बताया गया है। अर्थात स्वरस की अपेक्षा कल्क को लघु बताया गया है। कल्क की अपेक्षा क्वाथ को लघु बताया गया है। क्वाथ की अपेक्षा हिम को लघु बताया गया है। और हिम की अपेक्षा फाण्ट को लघु बताया गया है। यहाँ लघु से अभिप्राय पाचन में हल्का या जल्दी पच जाने वाला बताया गया है।

गिलोय का सेवन कैसे करें

जिसका उपयोग चिकित्सा में किया जाता है। जैसे शारीरिक रूप से दुर्बल रोगी में गुरु औषधीय का पाचन नहीं हो पाता। जिसका कारण जठराग्नी का मंद होना है। जबकि शारीरिक रूप से सबल रोगी जठराग्नी की तीव्रता के कारण गुरु औषदीयो का पाचन भी आसानी से कर लेता है। नए रोगो (acute disease) में स्वरस को अच्छा माना जाता है। जबकि जीर्ण रोगो (chronic disease) में हिम या फाण्ट को अच्छा माना जाता है।

व्यवहारिक जगत में क्वाथ ही सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है। इस कारण गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये को जानना महत्वपूर्ण है। जिसका कारण क्वाथ को कषाय की श्रेणी में मध्य का स्थान प्राप्त होना है। जिसके कारण न यह अधिक गुरु है और न यह अधिक लघु है। अर्थात सम है, जिसके कारण क्वाथ को सभी के द्वारा प्रयोग में लाया जाता है। क्वाथ को ही आम बोलचाल की भाषा में काढ़ा के नाम से जाना जाता है। जब बात गिलोय के सेवन की हो तो गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये? यह प्रश्न आकर खड़ा हो जाता है। गिलोय का सेवन हम निम्नलिखित प्रकार से कर सकते है –

स्वरस (juice) के रूप में

स्वरस को ही सामान्यतः जूस के नाम से जाना जाता है। जब बात गिलोय सेवन की हो तो इसे ही गिलोय जूस (giloy juice, giloy ras) के नाम से जाना जाता है। यह स्वरस का ही रूप है। आज के समय में patanjali giloy juice या giloy juice patanjali की बाजार में उपलब्धता है। जिसके कारण यह पिछले कुछ वर्षो से प्रयोग में लाया जा रहा है। आजकल इसका प्रयोग प्रायः प्रतिरक्षा प्रणाली ( immune system) को मजबूत बनाने के लिए भी किया जा रहा है। जिससे कोरोना (corona) या coronavirus से बचाव हो सके। जिसको covod-19 के नाम से भी उच्चारित किया जा रहा है।

जबकि आयुर्वेद में इसको बनानेके लिए तुरंत उखाड़कर लाईगई औषधिको कूटकर साफ़कपडे से छानकर जो रस प्राप्त होता है। उसे स्वरस कहा गया है। जिसमे किसीभी प्रकार का कोई अन्य द्रव्य मिश्रित नहीं किया जाता। जिसको जल्दी से जल्दी सेवन करने के लिए कहा जाता है। तीन घंटेसे अधिक समय का निकला हुआ किसी भी स्वरस का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा न करने पर औषधि की असरकारक शक्ति क्षीण होने लगती है। यदि गिलोय 3 से 4 महीने एक्सपायरी हो तो इसका सेवन नहीं करना चाहिए। जिससे हमें इसका पूरा लाभ नहीं प्राप्त होता। इसके आभाव में हम काढ़े का प्रयोग करते है। जिसके लिए यह जानना अति आवश्यक है कि गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये?

स्वरस का सेवन प्रातःकाल और खाली पेट करना चाहिए। जिससे इसका सर्वाधिक लाभ हमें प्राप्त हो सके। स्वरस प्राप्त करनेके लिए आजकल कुछ लोग एकही दिन अधिक मात्रा में गिलोय आदि को कूटकर रस निकालकर रख लेते है। जिसका उपयोग निरंतर करते है। यह आयुर्वेद के नियमो के विरुद्ध है। जिसका सेवन करने पर लाभ के स्थान पर हानि भी होसकती है। ध्यान रहे आयुर्वेद में औषधि को कूटने के लिए पत्थर का प्रयोग किया गया है। जिसको गिलोय की लकड़ी के फायदे के रूप में भी देखते है।

क्वाथ ( kwath ) रूप में गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये

पूर्णरूप से परिपक्व गिलोय की बेल को धूप में सुखाकर रख ले। नीम गिलोय (neem giloy) को ही काढ़ो के रूपमें ज्यादातर प्रयोगमें लाया जाता है। जो ज्वरनाशक औषधि का काम करती है। किसीभी ज्वरका नाश करनेके लिए गिलोय से अच्छी औषधि कोई अन्य नहीं है। यह भारत में लगभग लगभग सभी स्थानों पर पायी जाती है। स्थानीय भाषा के नाम में भेद के कारण ही, इसके नामांतर में भेद की प्राप्ति होती है। क्वाथ को बनाने में प्रयुक्त जल शुद्ध होना चाहिए। 

काढ़ा बनाने के लिए गिलोय का चूर्ण 20 ग्राम और 80 ग्राम पानी मिलाकर मिट्टी या धातु पात्र में धीमी आंच में पकाते है। कड़वाहट का क्षारण करने के लिए इसमें 20 ग्राम की मात्रा में गुण ( खाने वाला ) मिलाया जा सकता है। पकते पकते जब चतुर्थांश ( एक चौथाई या 25 प्रतिशत ) शेष रह जाए तो इसको आंच से उतारकर गुनगुना ही सेवन करना चाहिए। काढ़ा बनाते समय कभी भी ढककर नहीं पकाना चाहिए। ऐसा करने से काढ़ा लघु से गुरु हो जाता है। जिसके पाचन में कठिनाई आ सकती है। काढ़े को बहुत अधिक समय तक बनाकर नहीं रखना चाहिए। अच्छा तो यही है कि इसको ताजा ही बनाकर पिए।

यह नियम सभी प्रकारके काढ़ोपर लागू नहीं होता। यह कुछ विशेष प्रकार के काढ़ी होते है। ज्यादातर विषम ज्वर के निवारण में जितने भी काढ़े बनाये जाते है। सभी के सभी ढक्क्न बंद करके ही बाए जाते है। जिससे काढ़ो में सन्निहित तेल ता गंध दोनों का निष्कर्षण न हो। यह दोनों रोगो का नाश करने के आवश्यक होते है। काढ़ोकी महत्ताको व्यवहारिक जगत में ख्यापित करनेके लिए गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये को हम सभीको जानना चाहिए। गिलोय काढ़े का सेवन एलोपैथिक दवाओं के साथ भी किया जा सकता है। अल्सरेटिव कोलाइटिस में गिलोय का उपयोग बहुत ही लाभकारी है।

घनवटी( गिलोय की गोली ) के रूप में

घनवटी को ही गिलोय की गोली आमतौर पर कहा जाता है। जिसको बनाने के लिए क्षार की आवश्यकता होती है। किसी भी प्रकार के क्षार में गिलोय चूर्ण या गिलोय सत (giloy sat) मिलाकर इसका निर्माण किया जाता है। इसको बनाने के लिए आनुपातिक क्षार में मात्रा और आवश्यकतानुसार गिलोय चूर्ण को मिलाया जाता है। जिसको छोटी छोटी गोलियों का रूप दिया जाता है। जिससे इसका रख रखाव आसानी से किया जा सके। इसको रखने के लिए एयर टाइट डिब्बे का प्रयोग किया जाता है। ताकि इसमें किसी भी प्रकार की नमी न आने पाए। नमी आने से इसकी गुणवत्ता प्रभावित होती है। इसको सामान्यतः स्वस्थ्य व्यक्ति दो दो गोली सुबह और शाम खा सकता है

इस प्रकार से निर्मित गोलियों को ही गिलोय की गोली या घनवटी कहा जाता है। यह घनवटी गिलोय से निर्मित होने के कारण इसको गिलोय घनवटी के नाम से भी जाना जाता है। जिसके लिए गिलोय घनवटी कब खाना चाहिए भी लोगो के द्वारा पूछा जाता है। जिसका सेवन रोगी की अवस्था और प्राप्त व्याधि के आधार पर किया जाता है। शरीर की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है। जिसमे पाचन क्रिया का महत्वपूर्ण योगदान है। जिसको पाचन क्रिया कैसे सुधारे के रूप में जानने की आवश्यकता है। जो सभी प्रकार के संक्रमण के रोक थाम के लिए उपयोग में लाया जाता है।

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए भी इसका प्रयोग किया जा सकता है। घनवटी (ghanvati) को बनाना काढ़ो की अपेक्षा कुछ कठिन है। इस कारण गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये को सामान्य व्यक्ति को भी जानना चाहिए। जिससे हम इनसे लाभ उठा सके। इसके लिए गिलोय की बेल का उपयोग होता है। जिसे हम गिलोय की लकड़ी के फायदे के रूप में देखते है।

गिलोय रस पीने का तरीका

आयुर्वेदमें किसीभी रसका सेवन खालीपेट करनेकी सलाह दी जाती है। सामान्यतः जिसके लिए दिनभर में तीन बार सेवनकी सलाह दी जाती है। जिसमे प्रातःकाल, गोधूलि से पूर्व और रात्री में शयन के पूर्व समय निर्धारित किया गया है। यह समय आयुर्वेदिक दिनचर्या का विधिवत अनुपालन करने वालोके लिए है। ठीक यही नियम काढ़ो पर भी लागू होता है। जितना लाभ गिलोय रस का है उतना ही गिलोय काढ़े का भी है। इस कारण गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये यह हमे पता होना चाहिए।

आजकल शहरी जीवन जीने वालो का दिनचर्या आदि से कोई लेना देना ही नहीं है। और इसका ज्ञान न होने के कारण किसी के अंदर इनके प्रति कोई सजकता भी नहीं है। जिसके कारण या अन्य किसी कारण से इसका परिपालन करना सम्भव नहीं हो पाता। जिससे सामान्य रूप से मानव शरीर रचना के अनुसार एक नियम निर्धारित किया गया है। आयुर्वेदमें इसका कही कोई वर्णन नहीं है। इसकारण यह कितना सही है? यह आजभी एक प्रयोग का विषय है। भोजन करने के 5 से 7 घंटे के बाद भजन का पाचन हो जाता है। जिसके कारण पेट हमारा खाली हो जाता है। इस आधारपर इसको प्रातःकाल और शाम के समय निसंकोच लिया जा सकता है।

आजकल गिलोय रस का सेवन लोग अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को सुदृढ़ बनाने के लिए किया जाता है। जिसको हम सभी सुबह और शाम ले या पी सकते है। जबकि किसी रोगके उपचारमें इसका प्रयोग चिकित्सक के निर्देशानुसार ही करना चाहिए। जिससे इसका भरपूर लाभ हमें प्राप्त हो सके। आजकल तो पतंजलि गिलोय जूस (patanjali giloy juice) बाजर में आसानी से उपलब्ध है। ताजा स्वरस गिलोय जूस पतंजलि (giloy juice patanjali) से बेहतर है। यह ताजा होनेके कारण आसानी से पचता है। जबकि अन्यो में अनेको प्रकारके कृत्रिम रसायनो का प्रयोग किया जाता है। जिससे पाचन में कुछ कठिनाई होती है।

गिलोय कब खाना चाहिए

गुलवेल / गुडवेल(gulvel) या गिलोय खाने से आशय गिलोय का सेवन है। ऊपर इसके सेवन की विधियों पर प्रकाश डाला गया है। जहा पर इसको सेबन की विधि से सम्बंधित सभी प्रकार की बातो को बताया गया है। जिसका पालन करते हर कोई इसका सेवन कर सकता है। काढ़ो और कषायो के अतिरिक्त इसको नहीं खाया जा सकता।

इसका सेवन कब करना चाहिए तो इसके लिए कुछ सामान्य नियम है। आयुर्वेद के नियमानुसार नियमित रूप से 90 दिन से अधिक किसी भी औषधि का सेवन नहीं करना चाहिए। नहीं तो हमारा शरीर उस औषधि विशेष के लिए सहिष्णु हो जाता है। आज के समय में बहुत सी दवाई अपना प्रभाव दिखाने में अक्षम हो गई है। उनका एक कारण यह भी है। किसी भी औषधि का सेवन करने के पूर्व चिकित्सा विशेषज्ञ से परामर्श लेना अनिवार्य है। जबकि सामान्य परिस्थियों में इनका सेवन आसानी से निर्भीकता पूर्वक किया जा सकता है।

मात्रा से अधिक और नियम के विरुद्ध किसी भी औषधि का सेवन हानिकारक है। इसी को गिलोय से हानि या giloy ke fayde aur nuksan कहा जाता है। इस बात का ध्यान रखते हुए ही इनका सेवन करना चाहिए। जब बात काढ़े(kada) के सेवन की हो तो इसकी विधि संहिता का ज्ञान भी आवश्यक है। जिसमे इसको बनाने के लिए गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये को जानना चाहिए। किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचाव के लिए इसके काढ़े का प्रयोग आसानी से किया जा सकता है। फिर चाहे वह कोरोना वायरस हो या कुछ और। इसकारण इसको गिलोय की लकड़ी के फायदे कहते है।

गिलोय के काढ़े से सम्बंधित प्रश्न (FAQ Related To Giloy Decoction Benefits in Hindi)

गिलोय का काढ़ा कब पीना चाहिए?

रोग विशेष होने पर चिकित्सा विशेषज्ञ के परामर्शानुसार और स्वास्थ्य संरक्षणार्थ नियमित ( 90 दिन के बाद 15 दिन अन्तरालोपरांत ) पीना चाहिए।

गिलोय काढ़ा कैसे बनाते हैं?

सामान्य रूप से आपके अंगूठे जितनी मोटी और चार अंगुल लम्बी गिलोय के तने को मोटा – मोटा कूटकर, 100 मिली पानी में पकाये और चतुर्थांश शेष भाग को गिलोय का काढ़ा कहते है। जिसका सेवन गुनगुना रहने पर छानकर किया जाता है। 

गिलोय को कैसे पिए ?

गिलोय को सेवन करने के दो तरीके है। पहला जिसमे ताजे तने को पत्थर पर कूचकर, जूस निकालकर ले सकते है। और इसके तने को तीन – चौथाई उबालकर काढ़े के रूप में पिया जा सकता है।

गिलोय का सेवन कैसे करे ?

गिलोय सेवन विधि के अनुसार गिलोय का सेवन करे।

21 thoughts on “बुखार के लिए गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये”

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