आयुर्वेद में गिलोय सेवन विधि में कषाय आदि का वर्णन किया गया है। जिसको हम गिलोय जूस / स्वरस , क्वाथ, काढ़ा, गिलोय घनवटी आदि के रूप में जानते है। जिनका उपयोग सामान्य और विशेष ( चिकित्सा ) दोनों प्रकार से किया जाता है। जिसमे जूस के उपयोग को गिलोय जूस सेवन विधि कहा जाता है। घनवटी के प्रयोग को गिलोय घनवटी सेवन विधि कहते है। जबकि चूर्ण के उपयोग को गिलोय चूर्ण सेवन विधि कहते है। इन सभी को ही गिलोय की सेवन विधि भी कहते है।
इसके अभिव्यजक संस्थान में भेद होने पर इसमें भेद परिलक्षित होता है। इसकारण इसकी उपयोगिता में चिकित्सा की दृष्टि से कुछ विभेद प्राप्त है। जिसके कारण आयुर्वेद में अलग अलग प्रकार की गिलोय का वर्णन किया गया है। इसकी औषधीय गुणों की महत्ता के आधार पर ही उपयोगिता में कुछ अंतर है। इसलिए इनके प्रयोग का आयुर्वेद के अनुसार अलग विधान निर्धारित किया गया है। जिसके आधार पर प्रश्न खड़ा होता है कि गिलोय कब खाना चाहिए? कब नहीं खाना चाहिए। किसको खाना चाहिए? कैसे खाना चाहिए? और क्यों खाना चाहिए?
चिकित्सीय दृष्टि से इस प्रकार के प्रश्नो को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है। जिसका मूल कारण इनका औषधीय प्रयोग है। औषध का प्रयोग सामान्यतया रोग ग्रस्त अवस्था में ही किया जाता है। जिसमे रोगी और उसके सहकर्मी एकमात्र इच्छा रखते है। रोगी के कष्टसाध्य होने की। यदि कोई भी उपाय इनके विपरीत हुआ तो इस प्रकार के उपायों में इनकी अनाशक्ति बढ़ती है। जिसके कारण सलाह देने वाले के साथ साथ आयुर्वेद पर भी सवालिया निशान लगता है। इसकारण दोनों ही ओर से पर्याप्त सावधानी रखने की आवश्यकता होती है। उदहारण के लिए गिलोय का काढ़ा कैसे बनाये को ही ले। जिसमे अनेको प्रकार की सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
गिलोय क्या है (what is giloy)?
जब गिलोय सेवन विधि बात हो तो पहले यह समझना अनिवार्य है कि गिलोय है क्या? आयुर्वेदीय चिकित्सा विज्ञानके अनुसार गिलोय को भारतीय किवनीन कहा जाता है। जिसको लोग कुनैन भी कहते है। जिसका उपयोग प्रायः दवोपचार पद्धति में मलेरिया आदि के उपचार में किया जाता है। जिसको सामान्यतः ज्वरनाशक के रूपमें प्रयोग में लाया जाता है। जबकि गिलोय को आयुर्वेद के अनुसार सर्वश्रेष्ठ ज्वर नाशक औषधि कहा गया है। जिसका उपयोग सदियोंसे ज्वरापचार के लिए प्रयोग किया जाता रहा है। इन्ही विशेषताओं से विशेषित होनेके कारण गिलोय सेवन विधि बताएं जैसे प्रश्न किये जाते है।
जीवविज्ञान के अनुसार गिलोयको स्थावर प्राणियों के उद्भिज्ज श्रेणी में रखा गया है। जिसमे तरु, लता, गुल्मादि को स्थान प्राप्त है। जिसमे गिलोय को एक प्रकार की लता के रूप में स्वीकार किया गया है। जो इसके गुण और स्वभाव के अनुकूल है। जिसके कारण यह किसी भी वृक्षादि का सहारा लेकर अपना प्रसार करती है। जिसे इसका बढ़ना या विकसित होना कहा जाता है। इसमें तना, पत्तिया, फूल और फल पाए जाते है। जबकि जड़ नहीं पायी जाती है। सामान्यतः इसके तनेका ही सर्वाधिक उपयोग सभी प्रकारके प्रयोगो में किया जाता है। इसके साथ ही इसके पत्ते और फल का उपयोग भी होता है। जबकि फूल का कही भी कोई प्रयोग नहीं किया जाता।
इन लताओं की सबसे बड़ी विशेषता इसके तने में पायी जाती है। जिसमे एक विशेष प्रकारकी संरचना पायी जाती है। जिसके कारण यह किसी दुसरे पौधे या वृक्ष का आलंबन लेकरभी पोषण प्राप्त करता हुआ जीवित रहता है। जिसके कारण इसको परपोषी लता या giloy plant कहते है। मात्राके आधारपर गिलोय सेवन विधि बच्चो के लिए और वयस्कों के लिए अलग होती है। इस प्रकार गिलोय के सेवन की विधि में कुछ भेद होता है। जिसका एकमात्र प्रयोजन है। व्यक्ति लाभसे लाभान्वित हो और हानि से बचा रहे।
आयुर्वेद के अनुसार गिलोय के प्रकार
आयुर्वेद में गिलोय को गुडुची कहा गया है। जो गिलोय का संस्कृत नाम है। जिसका कारण आयुर्वेद की भाषा संस्कृत होना है। इस आधार पर आयुर्वेद में जो भी giloy या giloy juice बुखार के प्रयोगमें लाई जाती है। वह नीम के पेड़ पर होने वाली गिलोय है। जिसे आमतौर पर नीम गिलोय कहा जाता है। प्रायः गिलोय के स्वरस में नीम स्वरस के मिश्रण को नीम गिलोय के नाम से जाना जाता है। जिसको आयुर्वेद ने गिलोय की सेवन विधि के रूप में स्वीकार नहीं किया है। इस कारण इसको पूर्ण रूप से गिलोय के सेवन की विधि नहीं मानी जाती। जबकि सामाग्री की अनुपलब्धता में इसका प्रयोग किया जा सकता है।
इसप्रकार गिलोय की सेवन विधि के रूप में तुलसी का प्रयोग किया जाता है। जिसे तुलसी गिलोय के नाम से जाना जाता है। इसमें भी दोनों का स्वरस ही प्रयोग में लाया जाता है। जब तुलसी, नीम और गिलोय के स्वरस को मिला दिया जाता है, तो उसे नीम तुलसी गिलोय कहा जाता है। जिसके सेवन को गिलोय जूस सेवन विधि भी कहा जाता है। यह प्रयोग बुखार की सबसे अच्छी दवा में से एक है। जिसका गिलोय सेवन विधि में ध्यान रखा जाना चाहिए।
आयुर्वेद में गिलोय के प्रकार का कोई वर्णन नहीं प्राप्त होता। जिसके आधार पर गिलोय का कोई प्रकार सिद्ध नहीं होता। अनुपान के आधार पर गिलोय और नीम चिकित्सीय प्रयोग होने के कारण ऐसा कहा जाता है। जबकि गुडुची एक ही है। जिसका वर्णन आयुर्वेद में किया गया है। जब यह नीम के वृक्ष पर होती है, तो उससे पोषित होने के कारण नीम के गुणों का सन्निवेश गिलोय अपने स्वभाव के कारण कर लेती है। जिसके कारण इस प्रकार के गिलोय की महिमा आयुर्वेद में बतायी गई है। इनके कारण ही giloy sevan karne ki vidhi का ज्ञान होना आवश्यक है।
सामान्य रूप से गिलोय सेवन विधि
सामान्यतया गिलोय का सेवन प्रतिरक्षा प्रणालीको सुदृढ़ रखनेके लिए किया जाता है। जिसको giloy sevan karne ka tarika कहते है। इसमें प्रायः गिलोय के तने giloy tree और पत्ते giloy leaves का प्रयोग होता है। जिसको कषाय या क्वाथ की संज्ञा दी जाती है। इसके लिए किसीभी धातु पात्रका प्रयोग किया जा सकता है। फिरभी ध्यान रखने वाली बात यह है कि क्वाथके लिए आयुर्वेदमें मृद पात्र का विधान है। इसकी अनुपस्थितिमें लौहपात्र का प्रयोगभी अच्छा माना गया है। इसके बाद पीतलके प्रयोगकी बात बतायी गई है। आजके समय में प्रायः स्टील और एल्युमिनियम का प्रयोग किया जाता है। जिसका आयुर्वेदमें कही कोई वर्णन नहीं किया गया है।
आयुर्वेद वर्णित पात्रोका उपयोग करते हुए बनाया गया कषाय ही उपयोगी है। जिसके लिए गिलोयकी अंगूठे बराबर मोटी चार अंगुल लम्बी गिलोय की बेल का प्रयोग किया जाता है। जिसको आमतौर पर गिलोय की लकड़ी भी कहते है। इससे होने वाले लाभको गिलोय की लकड़ी के फायदे के नाम से जाना जाता है। इन्ही सावधानियों को गिलोय का सेवन कैसे करे के रूप में देखा जाता है। जिसको पत्थर से कूटकर 60-80 मिली पानीमें बर्तन का मुँह खोलकर 5 मिनट तक पकाया जाता है। इसकेबाद आंचसे उतारकर ढक्क्नसे कुछ देरके लिए ढक दिया जाता है। तदुपरांत छन्नीसे छानकर गुनगुनाही प्रयोग किया जाता है।
सामान्य रूपसे गिलोय सेवन विधि स्वस्थ्य रक्षणके लिए प्रयोगकी जाती है। जिसमे शरीरको पोषकता प्रदान करना आदि आता है। जिसको चिकित्सीय भाषा में प्रतिरोधक क्षमताको मजबूत बनाना कहते है। जिसका उपयोग लगभग सभीलोग कर सकते है। जिसमे एक वर्ष के बच्चे से लेकर वयस्क और वृद्ध आते है। जिसमे गिलोय घनवटी सेवन विधि की बात नहीं है। जबकि क्वाथ या कषाय को सम्मिलित किया गया है। जिसके लिए गिलोय चूर्ण सेवन विधि को जाननेकी आवश्यकता है। इसप्रकार के प्रश्नो को ही giloy ka sevan kaise karen कहा जाता है।
आयुर्वेदीय विधा के अनुरूप गिलोय सेवन विधि
चिकित्सा शास्त्रों में गिलोय सेवन विधि के रूप में अनेको विधियों को बताया गया है। जिसमे गिलोय चूर्ण सेवन विधि, गिलोय स्वरस सेवन विधि आदि है। इसकी अन्य विधियों में गिलोय घनवटी सेवन विधि आदि, को गिलोय की सेवन विधि माना गया है। जिसको विधि संहिता के अनुसार प्रयोग करने को आयुर्वेद की giloy ki sevan vidhi कहा गया है। चिकित्सीय सिद्धांतो के आधार पर उपयोग करने पर ही इसके लाभों से लाभान्वित हुआ जा सकता है। न की किसी अन्य विधा का अनुगमन करने पर।
आयुर्वेद में जब भी गिलोय सेवन करने की विधि बताइए की बात आती है। तो उसे चिकित्सीय लाभ के रूप में देखा जाता है। जिसको औषधि की संज्ञा दी जाती है। जिसके माध्यम से अनेक रोगो के उपचार में इसका प्रयोग किया जाता रहा है। जैसे गिलोय से गठिया का इलाज आदि है। आजकल कोरोना के संक्रमण से बचाव में इसका प्रयोग किया जा रहा है। जिसके लिए कोरोना के बारे में बताइए जैसे प्रश्न किये जाते है। जिसमे गिलोय का सेवन विधि में कुछ अन्य औषधियों को भी मिलाया जा सकता है। जिसके लिए आयुर्वेद में अनुपान का विधान किया गया है।
चिकित्सा में औषधि और मात्रा का अद्भुत महत्व ख्यापित किया गया है। जिसका कारण उपयुक्त औषधि के चयन के बाद भी उपयुक्त मात्रा के अभाव में वांछित परिणाम प्राप्त न होना है। इसकारण रोगी और रोग की तीव्रता को ध्यान में रखकर दोनों का निर्धारण किया जाता है। जिसमे बच्चो, किशोरों, वृद्धो और वयस्कों के लिए अलग – अलग मात्रा का निर्धारण किया जाता है। जिसके कारण giloy sevan vidhi में व्यवहार में कुछ अंतर दिखाई पड़ता है। एवं इसके निर्धारण के लिए विषय विशेषज्ञ की आवश्यकता है। इसको ध्यान में रखकर बच्चो और वयस्कों के लिए सामान्य बात बताई जा रही है –
बच्चो के लिए गिलोय सेवन विधि
मानव शरीर रचनाके अनुसार बच्चो और वयस्कों के शरीर में भेद है। जो क्रियाप्रणाली को लेकर नहीं बल्कि अंग – उपांगो के आयतन को लेकर प्राप्त है। जिसका मूल कारण बच्चे के शरीर का क्रमिक विकासशील होना है। जिसके आधारपर किसी भी खाद्य पदार्थ की मात्राका निर्धारण किया जाता है। जिसका अनुकरण गिलोय सेवन विधि में भी किया जाता है। आनुपातिक मात्रा से अधिक किसी भी तत्व या पदार्थ का सेवन किसीभी प्राणी के लिए अनुपयुक्त है। फिर चाहे वह giloy sewan vidhi हो या कुछ और। ऐसा आयुर्वेदादी शास्त्रों को मान्य है। जो स्वस्थ और रोगी दोनों के लिए उपकारक है।
स्वाभाविक गुणके कारण गिलोय का स्वाद कुछ कड़वा होता है। जिसके कारण बच्चे प्रायः गिलोय जूस का सेवन नहीं करते। इसके लिए इसमें कुछ मीठा पदार्थ मधु या गुड़ मिलाया जाता है। जिसका एकमात्र प्रयोजन बच्चे द्वारा उपयुक्त औषधि की उपयुक्त मात्रा का सेवन कराना है। इसका उत्तर चिकित्सा शास्त्रों में इसप्रकार दिया गया है। बच्चो का शरीर कफ से प्रभावित होता है। जिसके शमन करनेके लिए मीठे का प्रयोग किया जाता है। और इसके कारण ही बच्चा स्वाभाविक रूप से मीठे का सेवन करता है। उदहारण के लिए शिशुओ के मुँह में मीठा डालने पर निगल लेते है। जबकि नमकीन या खारा पदार्थ खिलाने पर उगल देते है।
प्रायः गिलोय जूस की उपलब्धता होने पर गिलोय जूस का सेवन कराया जाता है। आजकल तो बाजार में patanjali giloy juice भी मिलता है। जिसको बच्चोके लिए गिलोय जूस सेवन विधि कहते है। इनको समग्रतासे सम्मिलित करने को गिलोय की सेवन विधि कहा जाता है। इम्युनिटी के कारण पाचन तंत्र भी प्रभावित होता है। जिसके लिए पाचन क्रिया कैसे सुधारे को जानना चाहिए। जिससे रोग से बचे रहे।
वयस्कों के लिए गिलोय सेवन विधि
शरीर रचना क्रिया विज्ञान के अनुसार सभी वयस्कों की क्रियात्मक प्रणाली में अभेद है। जबकि वात, पित्त और कफ की प्रधानता के कारण सभी में भेद है। जिसके कारण गिलोय की सेवन विधि में भेद है। शारीरिक प्रधानता के आधार पर ही औषधि की मात्रा का निर्धारण किया जाता है। जिसके लिए गिलोय सेवन विधि के औषधि विशेषज्ञ से परामर्श लेने की आवश्यकता है। जबकि सामान्य रूप से giloy juice और giloy ghanvati का सेवन किया जा सकता है।
आजकल गिलोय giloy की लोकप्रियता में वृद्धि देखने को प्राप्त हो रही है। जिसका मूल कारण गिलोय का स्वाभाविक गुण है। जिसके सेवन से न केवल हमारा प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत होता है। बल्कि अनेको प्रकार के अन्य रोगो से भी हमारा बचाव करता है। जिसको giloy sevan ke fayde आमतौर पर कहा जाता है। जिसके कारण geloy सेवन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। किसी भी वस्तु या पदार्थ का आनुपातिक मात्रा से अधिक उपयोग विनाशकारी होता है। जिसको गिलोय से हानि कहा जाता है। इसकारण गिलोय से होने वाले नुकसान को भी समझना अनिवार्य है। इसे ही giloy ka sevan vidhi कहा जाता है।
सबसे अधिक गिलोय चूर्ण का सेवन किया जाता है। जिसका कारण इसकी उपलब्धता का बने रहना है। सभी प्रकार की गिलोयो में neem giloy को श्रेष्ठ माना गया है। जिसके कारण गिलोय से लाभ और गिलोय से नुकसान को भी जानना चाहिए। गिलोय लाभ से सम्बंधित शंकाओ के लिए गिलोय से क्या फायदा है? और हानि को गिलोय से नुकसान क्या है के रूप में जाना जाता है। पतंजलि आदि का विस्तार हो जाने से giloy juice patanjali और giloy patanjali वटी आदि उपलब्ध है।
गिलोय घनवटी सेवन विधि ( giloy ghan vati ka sevan vidhi )
चिकित्सा में घनवटियो को लेने की एक विधा है। जिसमे त्रिफला घनवटी, गिलोय घनवटी आदि आती है। इसके विधि संहिता को गिलोय घनवटी की सेवन विधि कहा जाता है। घनवटी को ही वटी के नाम से भी जाना जाता है। जिसके कारण इसे गिलोय वटी सेवन विधि भी कहते है। घनवटी को आयुर्वेद की टेबलेट भी कहा जा सकता है। इसके सेवन की विधि जान्ने अभिलाषा आयुर्वेद पर निष्ठा रखने वालो को होती है। जिसको गिलोय घनवटी का सेवन कैसे करे? या गिलोय वटी का सेवन कैसे करे के रूप में प्रकट करते है। जिसको गिलोय सेवन विधि भी कहते है।
सामान्यतः गिलोय घनवटी सेवन विधि में बच्चो को दो – दो वटी दी जाती है। और वयस्कों को चार चार वटी के सेवन की सलाह दी जाती hai. यह वटी के आकार और वजन भी निर्भर करता है। ऊपर जो नियम संहिता निर्धारित है, वह छोटी आकार की घनवटियो के लिए है। जबकि गिलोय जूस सेवन विधि और गिलोय चूर्ण सेवन विधि इनसे अलग है। अलग अलग रोगो के अनुसार भी घनवटी प्रयोग होती है। जिसको giloy ghan vati sevan विधि के नाम से उच्चारित किया जाता है।
प्रतिरोधक क्षमता को बनाये रखने के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है। जिसकी आवश्यकता लगभग लगभग सभी को होती hai. जिसके कारन इसको गिलोय की सेवन विधि या giloy ghan vati को उपयोग करना कहते है। आजकल patanjali giloy की उपलब्धता होने के कारण आसानी से इसका प्रयोग किया जाता है। यह कोविड-19 से बचाव के उपायों में सम्मिलित है।
गिलोय स्वरस सेवन विधि
आयुर्वेद में गिलोय स्वरस सेवन की दो विधियों का वर्णन किया गया है। जिसको गिलोय सेवन विधि की गिलोय जूस सेवन विधि भी कहते है। इसकी अन्य विधियों में गिलोय घनवटी सेवन विधि भी बतायी गई है। इस विधि को गिलोय रस सेवन विधि का नाम भी दिया जाता है। जो इससे प्राप्त होने वाले रस के आधार पर रखा गया है। ऐसा प्रतीत होता है। जब बात आती है की गिलोय का जूस कैसे बनाते हैं? तो उसके लिए स्वरस वाली विधि का वर्णन किया गया है।
पहली विधि जिसमे शीत ( पाला ) अग्नि तथा कीड़े आदि से नहीं खराब नहीं हुई। तुरंत उखाड़ कर लाई हुई औषधि को कूटकर। कपडे द्वारा निचोड़ने से जो रस निकले, उसको स्वरस कहा गया है। कुछ लोग गिलोय के तने को गिलोय की बेल कहते है। जिसके सेवन के लिए गिलोय बेल का सेवन कैसे करे जैसे प्रश्न किये जाते है। जिसके उत्तर में इस विधि को रखा जाता है।
दूसरी विधि इसमें एक कुड़व ( 4 पल ) परिमित औषध द्रव्य का चूर्ण बनाया जाता है। जिसे द्विगुण जल में डालकर रात दिन भीगने दे। दुसरे दिन अच्छी तरह मलकर उसको कपडे से छान ले। इस प्रकार प्राप्त होनेवाला रस स्वरस के सामान ही उत्तम माना जाता है। इसकारण इसको गिलोय चूर्ण सेवन विधि भी कहा जाता है। यह गिलोय की सेवन विधि में महत्वपूर्ण विधि है। जिसका उपयोग ज्वरनाशक के लिए किया जाता है।
किसी भी प्रकार के रोग और दोष में भोजन का महत्वपूर्ण योगदान है। जिसमे अन्न से अधिक जल का योगदान है। इसके लिए पीने योग्य पानी के गुण धर्म को समझने की आवश्यकता है।
गिलोय जूस सेवन विधि
आज के समय में सबसे अधिक गिलोय जूस का सेवन किया जा रहा है। जिसका कारण यन्त्र आधारित व्यवस्था है। जिसमे समय, सहयोगी और श्रम की बचत होती है। जिससे लाभ अधिक होता है। जो बाजारीकरण का मूल है। वही बोतलादि में होने के कारण इसको आसानी से उपयोग किया जा सकता है। जो उपभोक्ताओं के लिए लाभप्रद है। जिसका मूल श्रम शून्य होना है। जिसके कारण यह गिलोय सेवन विधि कही जाती है। जबकि गिलोय की सेवन विधि में गिलोय घनवटी सेवन विधि और गिलोय चूर्ण सेवन विधि भी आती है।
आयुर्वेद में गिलोय जूस से तात्पर्य स्वरस आदि है। जबकि कुछ लोगो के द्वारा इसके पत्तो के रस का उपयोग भी किया जाता है। जिसके लिए गिलोय के पत्तो का सेवन कैसे करे जैसे प्रश्न पूछे जाते है। पतंजलि आदि के द्वारा भी गिलोय जूस का उत्पादन और विपणन किया जाता है। जिसके सेवन विधि को patanjali giloy juice sevan vidhi कहते है। सामान्यतया गिलोय स्वरस का सेवन 20 मिली दिन दो बार खाली पेट किया जा सकता है। ठीक इसी प्रकार पत्तो के जूस का सेवन भी रस और काढ़ो दोनों के रूप में किया जा सकता है। इसलिए इसको गिलोय स्वरस सेवन विधि भी कहा जाता है।
गिलोय का काढ़ा कब और कैसे पीना चाहिए
गिलोय चूर्ण सेवन विधि
सामान्यतया गिलोय चूर्ण को आंग्ल भाषा में giloy powder कहते है। यह सबसे अधिक उपयोग होने वाली गिलोय सेवन विधि है। जिससे प्राप्त होने वाले लाभ को गिलोय से होने वाले फायदे कहते है। गिलोय की सेवन विधि में गिलोय घनवटी सेवन विधि का भी वर्णन है। जबकी व्यवहारिक धरातल पर गिलोय जूस सेवन विधि ज्यादा प्रचलित है।
इसको प्राप्त करने के लिए ग्रीष्म ऋतु में गिलोय संकलित की जाती है। जिसको धुप में सुखाकर खलबट्टे से कूटकर चूर्ण बनाया जाता है। इस चूर्ण सेवन को ही गिलोय चूर्ण सेवन विधि कहा जाता है। इसके चूर्ण का उपयोग क्वाथ और वटी बनाने में किया जाता है। एक पल परिमित कूटे हुए क्वाथ द्रव्य में सोलहगुणा पानी देकर मिट्टी के पात्र में मंद अग्नि से पकावे। अष्टमांश ( दो पल ) शेष रहने पर उतार कर छान लेवे और कुछ गुनगुना रहते ही पिलाया जावे। एक पल की मात्रा लगभग 10-15 ग्राम होती है।
क्वाथ निर्माण के लिए प्राचीन आचार्यो ने तीन प्रकार के क्वाथ का विचार किया है। जिसमे मृदु, कठिन और कठिनतर द्रव्यों के विचारानुसार परिभाषाओ में क्वाथ द्रव्यके अनुसार जलकी मात्राका विशेष निर्देश किया है। जैसे-
चतुर्गुणं मृदौ द्रव्ये कठिनेअष्टगुणं तथा ।
अत्यर्थकठिने देयं बुधई षोडशिकम जलम ।।
जिसके अनुसार मृदु के लिए चार गुने जल का विधान है। कठोर के लिए आठगुना और कठिनतर के लिए सोलहगुना जल का नियम निर्धारित है। जिसके विषय में अन्य आचार्यो के अन्य मत भी है। इनके भेदो से शृत, क्वाथ, कषाय और निर्युह, यह चार नाम क्वाथ के है।
क्वाथ पान का नियम: भोजन का परिपाक हो जाने पर ही इसका सेवन उपकारक है। जिसके लिए विशेषज्ञ परामर्शानुसार अच्छी तरह पकाया हुआ क्वाथ पीना चाहिए। जिसकी मात्रा दो पल अर्थात लगभग 30 मिली होनी चाहिए।
गिलोय सत्व सेवन विधि
इस विधि में अच्छी मोटी गिलोय बारिस के पूर्व संग्रह की जाती है। इसके बाद ऊपर की छाल छुड़ाकर साफ़ की जाती है। तदुपरांत धोकर छोटे टुकडे बनाकर पत्थर के खरल में महीन कूटा जाता है। इसके बाद इसमें चार गुना जल डालकर 12-24 घंटा भीगने के लिए छोड़ दिया जाता है। उसके बाद अच्छी तरह मसलकर कपडे से छान लेते है। और सत्व नीचे बैठने के बाद ऊपर का जल धीरे से निथार कर सत्व को सुखाकर बंद बोतल में रख लेते है। इसको ही गिलोय का सत्व कहा जाता है। जो गिलोय सेवन विधि में से एक है। यह गिलोय चूर्ण सेवन विधि से अलग है। जबकि इसको चूर्ण के माध्यम से ही प्राप्त किया जाता है।
कुछ लोग निथरे हुए जल में फिर से उसी गिलोय को मसल एवं उबाल कर छान लेते है। तथा उस द्रव को पहले नकाले हुए सत्व में मिलाकर धुप में सूखा लेते है। जिससे उसमे उष्ण जल में घुलनशील पदार्थ भी आ जाते है। कुछ लोग निथारे हुए जल को औटाकर स्वतंत्र प्रयोग भी करते है। कुछ लोगो के द्वारा इसको भी सत्व गिलोय की सेवन विधि कहते है। जो गिलोय घनवटी सेवन विधि और गिलोय जूस सेवन विधि से भिन्न है। इसका प्रयोग कम ही देखने को प्राप्त होता है।
बुखार में गिलोय का सेवन कैसे करे
जब बात आती है गिलोय सेवन की आती है तो इसके चिकित्सीय लाभ है। जिनका उपयोग रोगी द्वारा प्राप्त होने वाले लक्षणों के आधार पर किया जाता है। जिसकी विधि संहिता को समझने को ही गिलोय को कैसे सेवन करे कहते है। ज्वरनाश के लिए गिलोय सेवन के फायदे और गिलोय सेवन के नुकसान को जानने की आवश्यकता है। बुखार में गिलोय की सेवन विधि में सभी विधियों का उपयोग किया जाता है। जिसमे गिलोय घनवटी सेवन विधि और गिलोय जूस सेवन विधि है। जिसमे क्वाथ बनाने के लिए प्रायः गिलोय चूर्ण सेवन विधि का उपयोग होता है।
किसी भी बुखार में गिलोय के काढ़े का प्रयोग निर्भीकतापूर्वक किया जा सकता है। छोटी कटेरी, चिरायता, कुटकी, सोंठ और गिलोय का काढ़ा आठ प्रकार के ज्वर को शांत करता है। जबकि धनिया, गिलोय, नीम की चाल, लाल चन्दन और पद्याख का क्वाथ सभी प्रकार के ज्वरो को शांत करता है। इसके अतिरक्त ज्वरनाशक काढ़े बनाने की विधि और उपयोग को भी जानना चाहिए। यह बुखार में उसी प्रकार लाभदायीहोता है। जैसे खांसी के लिए खांसी का इलाज घरेलू।
कोरोना में गिलोय सेवन विधि
आजकल कोरोना का प्रकोप है। जिसके होने में सबसे बड़ा कारण प्रतिरक्षा प्रणाली की कमजोरी को माना गया है। जिसके लिए गिलोय सेवन की सलाह सभी के द्वारा दी जा रही है। जिसके लिए लोग गिलोय पत्ती, गिलोय वटी, गिलोय स्वरस आदि का प्रयोग कर रहे है। जिसमे पत्तो के सेवन की भी अपनी एक विधा है। जिसके लिए गिलोय के पत्ते का सेवन कैसे करे जैसे प्रश्न किये जाते है। पर ध्यान रहे गिलोय के नुकसान से बचने के लिए अतिरिक्त मात्रा के सेवन से बचना चाहिए।
म्युकर माइकोसिस जो को कोरोना के बाद होने वाला रोग है। जिसमे गिलोय का जूस, चूर्ण, घनवटी उपयोगी है। कोरोना में गिलोय घनवटी सेवन विधि में सामान्यतः चार चार वाटियो का प्रयोग होता है। जबकि गिलोय जूस सेवन विधि में 20 मिली की मात्रा दिन में दो बार प्रयोग की जाती है। अंत में चूर्ण की बात करे तो गिलोय चूर्ण सेवन विधि में 15 से 20 ग्राम काढ़े के रूप में उपयोग होता है। यह भी गिलोय सेवन विधि मानी जाती है। जो गिलोय की सेवन विधि में सर्वाधिक महत्व की है। ध्यान रहे यह सभी मात्राए सामान्य है। जबकि विशेष मात्रा का निर्धारण विशेषज्ञ के द्वारा ही किया जा सकता है।
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