गिलोय के फायदे : Giloy Ke Fayde in Hindi

अमृत को सनातन शास्त्रों में अमरत्व प्रदायक माना गया है। जबकि गिलोय को संस्कृत में अमृता कहा गया है। जो इसके स्वाभाविक गुणों को दर्शाता है। इसकारण यह गिलोय का स्वभावलक्षण लक्षित नाम है। जिसको गिलोय के फायदे ( benefits of giloy ) कहते है। सामान्यतया गिलोय की बेल दूर से देखने पर, सूखी लकड़ी की भाँती परिलक्षित होती है। जिसके कारण इससे प्राप्त होने वाले लाभ को गिलोय की लकड़ी के फायदे कहते है। गिलोय के फायदे की प्राप्ति के लिए यम – नियम की आवश्यकता होती है। जिसको गिलोय कब खाना चाहिए प्रायः कहा जाता है। 

गिलोय के फायदे

आयुर्वेदादी शास्त्रों में गिलोय के लाभों से लाभान्वित होने की विधाओं का वर्णन है। जिसमे चूर्ण, जूस या स्वरस, क्वाथ आदि है। जिनको बनाने और प्रयोग करने की अलग अलग विधिया बतायी गई है। जिनका ध्यान रखने पर शास्त्रोक्त परिणाम की प्राप्ति सुनिश्चित है। इन परिणामो की प्राप्ति में जितनी महत्ता सिद्धांत और फल की है। ठीक उतनी ही महत्ता सिद्धांत से परिणाम तक पहुंचाने वाली विधा की भी है। यहाँ सिद्धांत से अभिप्राय गिलोय से प्राप्त होने वाला उसका मौलिक गुण है। जिसका उपयोग हम चिकित्सीय उपयोग में करते है। जैसे रोग प्रतिरोधक क्षमता की अबाधित अनुकूलता आदि है।

जिसको संरक्षित करने के लिए विधा की आवश्यकता होती है। द्रव्य से द्रव्यगत गुणों को संरक्षित रखते हुए मानवसेवन के अनुकूल बनाने के लिए जिन उपायों की आवश्यकता होती है। उन्हें ही द्रव्यसेवन की विधि चिकित्सा शास्त्रों में कहा गया है। जिसको हम औषध सेवन की विधा भी कह सकते है। जिसमे दो महत्वपूर्ण बाते है। पहली द्रव्य और दूसरी द्रव्य की मात्रा। जिसके लिए विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है। जो विद्या और कला दोनों में पारंगत होता है। जिसे वैद्य या चिकित्सक कहा जाता है। जिसका रोग निदान में अभूतपूर्व योगदान होता है।

गिलोय की उत्पत्ति

गिलोयोत्पत्ति के विषय में रामायण काल का वर्णन आयुर्वेदादी शास्त्रों में मिलता है। जिसमे असुरो के राजा लंकाधिपति रावण ने कामाशक्त होकर श्रीरामभद्र की पत्नी सीता का हरण कर लङ्का ले आया। जिसके लिए श्री रामभद्र ने वानरोआदि के सहित, रावण से युद्ध करने के लिए सेना का निर्माण किया। जिसमे श्रीरामचन्द्र के सहित उनकी सेना ने दक्षतापूर्वक, असुराधिपति रावण को परास्त कर दिया। जिससे इन्द्र प्रसन्न हुए और युद्ध में मारे गए वानरों को अमृत वर्षा से सिंचित कर पुनः जीवित कर दिया। उसके बाद जिन स्थानों पर वानरों के शरीर से अमृत की बूंदे पृथ्वी पर गिरी, उनसे गिलोय की उत्पत्ति हुई।

इसके कारण ही गिलोय के नामो में अमृता, अमृत आदि शब्दों की प्राप्ति होती है। जो जिलोय की गुणों का ख्यापन करती है। जिसको व्यावहारिक भाषा में गिलोय के फायदे कहते है। जिसके लिए क्वाथ या काढ़ा आदि का निर्माण किया जाता है। जिसके लाभों को गिलोय क्वाथ के फायदे और गिलोय का काढ़ा के फायदे कहते है। इसके सेवन की संहिता को लेकर लोगो के मन में एक जिज्ञासा होती है। वह यह कि गिलोय का काढ़ा कितने दिनों तक पीना चाहिए? जिसके लिए गिलोय सेवन विधि को जानने की आवश्यकता है। किसी भी द्रव्य सेवन के पूर्व उसकी विधि को समझना आवश्यक है। जिससे अनावश्यक हानि से बचे रहे।

गिलोय की पहचान

प्रायः गिलोय का पौधा भारत के सभी प्रांतो में पाया जाता है। यह परपोषी होने के कारण जंगल और झाड़ियों में अधिक होता है। विशेषकर गर्म जलवायु वाले क्षेत्रो में। जैसे देहरादून और सहारनपुर के जंगलो में। इसकारण ही इसकी तासीर भी उष्ण होती है। यह बहुवर्षीय, चिकनी और मांसल लता होती है। जो विस्तार से वृक्षों पर फ़ैल जाती है।

तने – इसकी शाखाओ से डोरे के सामान शिरिया निकलकर भूमि की ओर लटकती है। चिकित्सीय उपयोग के लिए लता के बेल या तने का ही प्रयोग होता है। जिसके फायदों को आम बोलचाल की भाषा में गिलोय के फायदे कहते है। जिससे गिलोय की घनवटी बनाई जाती है। जिसके लिए गिलोय घनवटी कब खाना चाहिए जैसे प्रश्न किये जाते है।

पत्ते – इसके पत्ते पान के सामान, 2 से 4 इंच के घेरे में होते है। जो गोलाकार नुकीले, चिकने और पतले होते है। साथ ही 7-9 शिराओ से युक्त एवं 1-3 इंच लम्बे पर्णवृन्त से युक्त होते है। प्रायः वसंत ऋतु में इसके पत्ते पीले होकर गिर जाते है। और ग्रीष्म ऋतु के अंत तक नए पत्ते निकल आते है।

इसी समय हरापन लिए हुए पीले रंग के पुष्प के गुच्छे आते है। यह वह समय है जब इसमें फल लगते है। जिसका सेवन लोग प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने में करते है। जिसको गिलोय के पत्ते खाने के फायदे कहते है। सामान्य रूप से गिलोय के पत्ते का फायदा है लेकिन चिकित्सीय उपयोग न के बराबर है। इसके कारण ही इसका उपयोग स्वस्थ व्यक्ति करते है।

फल – मटर के सामान इसके फल होते है। जो कच्चे रहने पर हरे होते है और पकने पर लाल हो जाते है। इससे प्राप्त होने वाले लाभों को ही गिलोय के फल के फायदे कहा जाता है।

बीज – इसके बीज कुछ टेड़े तथा चिकने होते है।

गिलोय के उपयोगी भाग

इसके मूल और काण्ड का प्रयोग औषधके लिए किया जाता है। ताजी अवस्थामें कांड की छाल हरी तथा मांसल रहती है। उस पर पतली भूरे रंगकी वाहय त्वचा रहती है। इसपर उसके छोटे -छोटे गढ्ढे होते है। इसको काटने से अंदरका भाग गोलाकार दिखाई देता है। ताजी एवं हरी गिलोय अधिक लाभदायक होती है।

गर्मी के वैशाख महीने ( मई ) के आखिर में इसका संकलन किया जाता है। इसका प्रयोग करने के पूर्व ऊपर की छाल खुरचकर निकाल दी जाती है। इसमें गंध नहीं होती बल्कि इसका स्वाद कड़वा होता है। जबकि गिलोय के पत्तो के रस में गंध होती है। जिसके सेवनको गिलोय के पत्ते पीने के फायदे कहते है।

इससे भिन्न इसकी कुछ अन्य जातिया भी पायी जाती है। जो प्रायः बड़ी, मृदु रोमश और त्रिखंड पत्तियोंवाली होतीहै। इसके बीजके कठोर आवरणपर छोटे – छोटे दाने होते है। दोनों प्रकारकी गिलोयमें गुण और स्वरूप में भौतिक रूपसे कोई अंतर नहीं होता है। जिसके कारण दोनों काही सामान रूपसे व्यवहार किया जाता है।

जबकि गिलोय के पत्ते के बारे में बहुत कम जानकारी मिलती है। जिसके कारण गिलोय के पत्ते के फायदे और नुकसान को समझकरही उपयोग करना चाहिए। इससे सम्बंधित जिज्ञासाके निवारणके लिए गिलोय के पत्ते के बारे में बताइए जैसे प्रश्न किये जाते है।

आजकल ज्यादातरलोग शहरीकरण की चपेटमें है। जिसमे इन औषधियोंको कही कोई स्थानही नहीं दियागया है। जिसके कारण इनको गमले आदिमें ही स्थान मिलता है। जिसमे मिट्टी आदि कम होनेके कारण पर्याप्त पोषणके अभावमें पत्तिया ही मिल पाती है। जिसकेकारण गिलोय के फायदे के रूप में पत्तियों का प्रयोग किया जाता है।

जबकि आयुर्वेदादी शास्त्रोंमें इसके तने कोही उपयोगी बताया गया है। जिसके कारण गिलोय के पत्ते के बारे में जानकारी भी कमही उपलब्ध है। लोगोकी एक मान्यता यहभी है कि तनेसे ही पत्तिया निकलती है। जिसके कारण पत्तियों मेंभी इसकेगुण पाएजाते है।

गिलोय के नाम

भारत में अनेको प्रकार की भाषाए और संस्कृतिया है। जिनका कारण यहाँ की भौगोलिक स्थिति को माना जा सकता है। जिसके कारण किसी भी तत्व या पदार्थ के नाम में भेद देखने को मिलता है। इसकारण एक ही पदार्थ के अलग अलग नामो की प्राप्ति होती है। जब बात giloy ke fayde की हो तो इसके नामो में भी भेद दिखाई पड़ता है। अलग अलग भाषाओ में इसके नाम इसप्रकार है –

संस्कृत में – गुडूची, मधुपर्णी, अमृता, अमृतवल्लरी, छिन्ना, छिन्नरुहा, छिन्नोद्भवा, वत्सादनी, जीवंती, तंत्रिका, सोमा, सोमवल्ली, कुण्डली, चक्रलक्षणिका, धीरा, विशल्या, चन्द्रहासा, वयस्था, मण्डली और देवनिर्मिता।

हिंदी में ( giloy in hindi )- गिलोय, गुरुच, गुडुच

बंगाली में – गुलंच, पालो ( सत्व )

मराठी में ( giloy in Marathi ) – गुलवेल, गरुड़ बेल

गुजराती में – गलो

कन्नड़ में – अमरदवल्ली, अमृत वल्ली

तेलगू में – तिप्पतीगे

तमिल में – शिन्दिल्कोडी, अमृडवल्ली

अंग्रेजी में – टीनोस्पोरा

लेटिन में – टीनोस्पोरा कर्डिफोलियो मायर्स

आयुर्वेद की भाषा संस्कृत है। जिसके कारण गिलोय के संस्कृत नामो की अधिक प्राप्ति होती है। जबकि गिलोय के अन्य नाम और भी है। जो भाषा के भेद से प्राप्त होते है। जिसके लाभों को हम benefits of giloy के नाम से जानते है। जब भी giloy ke fayde की बात औषधीय दृष्टि से कही जाता है।

तो उसमे अनेको प्रश्नो की प्राप्ति होती है। जैसे – गिलोय कब खाना चाहिए? इसके तने को कुछ लोग लकड़ी के नाम से जानते है। इसकारण इसको गिलोय की लकड़ी के फायदे भी कहा जाता है। यह कोरोना से बचाव के उपायों के रूप में भी उपयोग के जाती है।

गिलोय के गुण

यह कटु, तिक्त तथा कषाय रस युक्त एवं विपाक में मधुर रसयुक्त, रसायन, संग्रही, उष्णवीर्य, लघु, बलकारक, अग्निदीपक तथा त्रिदोष, आम, तृषा, दाह, मेह, कास, पांडुरोग, कामला, कुष्ठ, वातरक्त, ज्वर, कृमि और वमि को दूर करती है

कही कही इसको कड़वी, उष्ण, त्रिदोषघ्न, रसायन, बल्य, ज्वरहर, दीपन, मूत्रजनन, त्वचारोगहर, पित्तसारक तथा विषघ्न बताया है। नवीन अनुसंधानों से गुडूची का व्याधिप्रतिकारक गुण व्यापक रूप में प्रमाणित हुआ है। जिसने इसकी उपयोगिता में चार चाँद लगा दिया है। इन गुणों को ही benefits of giloy कहा जाता है।

चिकित्सा शास्त्रों में गुणों के ही आधार पर लक्षण का निर्धारण किया जाता है। यहाँ पर गुण औषधि विशेष में पाया जाने वाला स्वाभाविक गुण है। जबकि गुण विशेष का धारण करने वाली औषधि के सेवन से प्राप्त प्रतिक्रया का नाम लक्षण है। गुण के आधार पर लक्षण और लक्षण के आधार पर चिकित्सा की जाती है।

इसप्रकार दोनों में सामंजस्य साधकर ही चिकित्सा की जाती है। जिसका विधान आयुर्वेदादी शास्त्रों के माध्यम से सदियों पूर्व से लेकर आज तक हमें प्राप्त है। जैसे गिलोय का गुण ज्वरहर बताया गया है। जिसके कारण यह ज्वर को हरने वाली सिद्ध है। जिनको आम बोलचाल की भाषा में giloy ke fayde का नाम दिया गया है।

सभी प्रकार की औषधि सेवन की विधा का निर्धारण शास्त्रों में किया गया है। फिर चाहे गिलोय सेवन की बात हो या कुछ और। जिसके आधार पर गिलोय के फायदे व नुकसान भी है। जिसमे मात्रा आदि की बात कही गई है। जब बात गिलोय के फायदे की हो तो प्राप्त नियम को मानने के लिए हम सभी बाध्य है। फिर चाहे गिलोय की पत्ती के फायदे हो या कुछ और।

रासायनिक संगठन

इसकी ताजी कांड त्वक में तीन रवेदार पदार्थ पाए जाते है। जिनमे गिलोइन ग्लूकोसाइड, गिलोइनिन नामक कड़वा पदार्थ तथा गिलोस्टेरॉल होता है। इसके अतिरिक्त इसमें बर्बेरिन एवं मोम की तरह का एक पदार्थ पाया जाता है। जिसके कारण गिलोय का चिकित्सीय महत्व ख्यापित होता है। यहाँ पर ध्यान रखने वाली बात यह है कि गिलोय के पत्ते के गुण तो है। लेकिन उतने नहीं जितने की गिलोय के तने या बेल के है। जिसका कारण उसमे पाया जाने वाला तत्व या यौगिक है। जिसकी विद्यमानता गिलोय के औषधीय गुणों को धारण करती है।

इसके कारण ही ताजी गिलोय को सर्वाधिक प्रयोग में लाया जाता है। जिसको गिलोय की लकड़ी के फायदे कहा जाता है। सर्वाधिक रूप से गिलोय के इसी भाग का ही उपयोग किया जाता है। जब भी गिलोय के नुस्खे की बात होती है, तो उसमे गिलोय की बेल का ही प्रयोग होता है। इसलिए गिलोय कब खाना चाहिए और कब नहीं? इसका ध्यान रखना अतिआवश्यक है। जिससे हम गिलोय के फायदे से लाभान्वित होने के साथ हानि से बचे रहे। आज के समय में गिलोय से सम्बंधित बाते भी है। जैसे गिलोय के पत्ते के फायदे बताएं आदि।

रसायनो की उपस्थिति के कारण ही गिलोय को रसायन भी कहा जाता है। जो चिकित्सीय उपयोग में महती भूमिका प्रस्तुत करता है। जबकि गिलोय के पत्ते के फायदे तो है। परन्तु उतने नहीं जितने की उसकी औषधीय भाग में है। इसके पत्ते के फायदे अपने है और तने के अपने है। जब बात कोरोना वायरस की हो तो इसमें भी यह उपयोगी है। जिसके लिए कोरोना के बारे में बताइये जैसे प्रश्न किये जाते है।

गिलोय के फायदे और नुकसान (benefits and sideeffects of giloy in hindi)

किसीभी औषधिके फायदे उस औषधिके स्वाभाविक गुणही है। जिसका निर्धारण चिकित्सा सिद्ध लोगोके द्वारा होता है। जिसमे विधि – निषेध को मूलमें रखकर विचार किया जाता है। जिसको बोलचालकी भाषामें कब करे? कब न करे? कैसे करे? कैसे न करे? कौन करे? कौन न करे? यह सभी प्रश्न व्यवहारिक और चिकित्सीय दोनोंही विधामें महत्वके है।

जिसका पालन करनेपर हमें लाभ की प्राप्ति होती है। और न करने पर हानि। जब बात गिलोय के फायदे नुकसान की हो, तो इसमेंभी पूर्णतया लागू होती है। इन्ही विधि – संहिताओं को हिंदी में गिलोय के फायदे और नुकसान इन हिंदी कहते है।

प्रायः काढ़े या कषायके रूपमें गिलोयका प्रयोग किया जाता है। जिसको गिलोय चूर्ण के फायदे के नाम से जाना जाता है। इसी प्रकार गिलोय जूस का प्रयोग होता है। जिसे गिलोय जूस के फायदे कहते है। जूसको ही स्वरस कहा जाता है। जिसकेकारण इसको गिलोय स्वरस के फायदे इन हिंदी कहते है। जब गिलोय को घनवटी के रूप में प्रयोग करते है।

तो उसके फायदे को गिलोय घनवटी के फायदे कहते है। यह सब गिलोय के फायदे ही है। जिनको हिंदीमें जाननेको गिलोय के फायदे इन हिंदी भी कहते है। पतंजलि आदिके उत्पादोंके रूपमें इनकी उपलब्धता है। जिसके कारण लोग गिलोय के फायदे बाबा रामदेव के नामसे भी जानते है। जिसको सामान्यतया गिलोय के फायदे बताएं कहा जाता है।

आंग्ल भाषामें गिलोय के फायदे को benefits of giloy कहा जाता है। जिसको गिलोय की लकड़ी के फायदे भी कहते है। जिसके सेवनके नियमके रूपमें सवाल उठता है कि गिलोय कब खाना चाहिए? हिंदी समझने वाले लोग गिलोय के फायदे हिंदी में जानना चाहते है।

जिसके लिएवो अपनी जिज्ञासा व्यक्त करते है, कि गिलोय के फायदे बताइए। मात्रासे अधिक किसीभी वस्तुका सेवन प्राणघातक है। इसकारण गिलोय के नुकसान भी है। जिनको हिंदी में गिलोय के नुकसान इन हिंदी कहते है।

गिलोय के नुकसान (Disadvantage of giloy in hindi)

चिकित्सीय नियमो में लक्षण के आधार पर औषधि का चयन होता है। रोग की तीव्रता और रोगी के सामर्थ्य पर इसकी मात्रा का निर्धारण किया जाता है। इसके साथ अन्य नियम भी है। जिसमे आवृत्ति, काल आदि का विचार किया गया है। जब किसी भी कारण से इनमे तालमेल नहीं बैठता तो दुष्परिणामों की प्राप्ति होती है।

जिनको गिलोय खाने के नुकसान कहते है। यह सब गिलोय के फायदे से ठीक विपरीत है। जिसको गिलोय के नुकसान बताइए कहा जाता है। नीम गिलोय से होने वाले नुकसान को नीम गिलोय के नुकसान कहते है। benefits of giloy के लिए इसके दुर्गुणों को भी समझना आवश्यक है। इसलिए जानते है गिलोय के नुकसान क्या है?

  • इसका अधिक मात्रा में सेवन करने से शरीर में गर्मी बढ़ती है। जिससे पित्त रोगो के पनपने की संभावना होती है।
  • शरीर पर दाने और लाल दाने भी निकलते है।
  • इससे कभी कभी लाल चकत्ते भी हो सकते है।
  • मूत्र प्रणाली से सम्बंधित रोगो को पैदा करती है।
  • त्वचा रोगो को भी उत्पन्न कर सकती है।
  • यह विषघ्न होने के कारण अतिरेकता के साथ उपयोग करने पर शरीर में कालापन भी ला सकती है।
  • इसका अत्यधिक सेवन ज्वर जैसी परिस्थिति भी उत्पन्न कर सकती है।

इस प्रकार गिलोय की लकड़ी के फायदे तो है। यदि इनका सही प्रकार उपयोग किया जाय। यदि ऐसा नहीं हटा तो giloy ke fayde के स्थान पर हानि की ही प्राप्ति होती है। जिसके कारण गिलोय कब खाना चाहिए और कैसे खाना चाहिए? को समझना आवश्यक है। अब बात करते है कि giloy ke fayde kya kya hai?

कोरोना में गिलोय के फायदे ( giloy ke fayde in corona )

सदियोंसे आयुर्वेद में बुखार, आलस्य, थकान आदि का उपचार किया जाता रहा है। जब कोरोना आया तो यह सभीके लिए एक नए रोग जैसा था। परन्तु आयुर्वेदादी वालो के लिए एक सामान्य रोग। जिसका मूल कारण रोगके प्रभावके कारण रोगीसे प्राप्त होने वाला लक्षण है।

जिसके आधारपर किसीभी व्याधि का समाधान औषधियों आदि के माध्यम से किया जा सकता है। इसकारण कोरोना का उपचार giloy ke fayde के आधार पर किया गया। जिसमे गिलोय की लकड़ी के फायदे आदि है।

कोरोना का सर्वाधिक प्रभाव फेफड़ो पर देखा गया। जिसमे नाक बहना, खांसी आना, जुकाम होना, नाक बंद होना आदि पाया गया। इसके साथही साँस लेनेमें कठिनाई, गला चुभना, तेज बुखार होने जैसी समस्या भी देखी गई। जिसको आयुर्वेद  कफ का स्थान माना गया है। इनके कारण होने वाली समस्याओ को कफ रोग कहा गया।

जिसके कारण कोरोना कफ कारक कहा गया। जिसके उपचारके लिए गिलोय के काढ़े का प्रयोग किया गया। क्योकि गिलोयको आयुर्वेद ने त्रिदोषघ्न कहा है। जिसके कारण यह वात, पित्त और कफ तीनोपर सामान रूपसे उपयोगी है। जिसके कारण कोरोनासे प्राप्त कमजोरी आदि को दूर करने मे भी इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

धीरे धीरे समय के साथ जब इसमें परिवर्तन देखा गया। जिसको कोरोना की दूसरी लहर कहा गया। जिसे डेल्टा और डेल्टा प्लस आदि का भी नाम दिया गया। जिसमे इसके प्रभावको फेफड़ो के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर भी देखा। जिसमे प्राणवायुके स्तरमें गिरावट आदि भी देखने को मिला। जिसके कारण यह पुनः कफ रोगही सिद्ध हुआ। इसमें अंतर केवल इतना था कि पहलेसे यह अधिक तीव्रता लिए हुए था।

जिसके बाद म्युकर माइकोसिस ( ब्लैक फंगस ) आदि का प्रकोप भी देखने को मिला। जिसको गिलोय के काढ़े आदिका आलंबन लेकर ठीक कियाजा सकता है। इसकारण गिलोय कब खाना चाहिए और कब नहीं इसको जाननेकी आवश्यकता है।

त्वचा के लिए गिलोय के फायदे ( giloy ke fayde for skin )

इसको त्वचा रोगो की प्रधान औषधि माना गया है। जिसमें एक प्रमाण में गिलोय, गुग्गुल के साथ या कड़वी नीम या हरिद्रा, खदिर एवं आंवला के साथ देते है। इससे कंडू, दाह, दाग एवं चकत्ते आदि अच्छे होते है। इसप्रकार के रोग ज्यादातर वर्षा के काल में पाए जाते है। जिसमे तरह – तरह के फोड़े – फुंसी आदि है। जिनमे खुजली, जलन और चुभन होने के भी समस्या होती है। यह रोग पित्त के बिगड़ने से होता है। जिसके परिणाम के रूप में इनकी प्राप्ति होती है। जिसके लिए गिलोय की लकड़ी के फायदे को जानना चाहिए।

जब किसी भी कारण से वातरक्त की समस्या होती है। तब दुग्ध के साथ सिद्ध किया हुआ इसका तेल लाभदायक माना गया है। इसकारण benefits of giloy को जान लेना आवश्यक है। सूखी न होने पर भी रंग आदि के कारण सूखी लकड़ी जैसी परिलक्षित होती है। जिसका उपयोग चिकित्सीय लाभार्जन के लिए किया जाता है। जिसके कारण ही गिलोय की लकड़ी के फायदे बताए जैसी बाते पूछी जाती है। जबकि गिलोय लकड़ी के फायदे अनेक है। जिनका उपयोग आवश्यकता और उपयोगिता को ध्यान में रखकर किया जाता है।

त्वचा से सम्बंधित ज्यादातर समस्याओ में पित्त की प्रबलता होती है। पित्त की अधिकता को सम करने में गिलोय महत्वपूर्ण कार्य करता है। जिसको गिलोय की लकड़ी के फायदे कहते है। जब नीम गिलोय का प्रयोग होता है, तो उसे नीम गिलोय के फायदे इन हिंदी भी कहा जाता है। पित्ताधिक्य युक्त वातरक्त में इसका क्वाथ पिलाते है। जिसके गिलोय का काढ़ा कैसे बनाए को जानना आवश्यक है। इसलिए giloy ke fayde के साथ गिलोय कब खाना चाहिए का भी ज्ञान हमें होना चाहिए।

बुखार में गिलोय के फायदे ( giloy ke fayde bukhar mein )

सामान्य रूप से गिलोय को सभी प्रकार के ज्वर में उपयोगी माना गया है। जिसमे इसका प्रयोग लाला चन्दन के साथ किया जाता है। ज्वर नाशक औषधियों के रूप में इसका प्रयोग अनादि काल से होता आया है। आयुर्वेद में इसको सर्वश्रेष्ठ औषधि के रूप में स्वीकार किया गया है। जिसके कारण दोनों वाक्यों में सामंजस्य है। दोनों एक दुसरे के विरोधी नहीं अपितु पूरक है। इनको हिंदी में giloy ke fayde in hindi कहते है। जिसको कुछ लोग giloy benefits के नाम से भी जानते है। इसको ही हिंदी में benefits of giloy in hindi कहा जाता है।

इसका उपयोग ज्यादातर शीतज्वर में किया जाता है। जिसमे ठण्ड अधिक लगती है। तरुण ज्वर में इसके क्वाथ का प्रयोग वर्जित है। जिसका कारण इस अवस्था में कषाय से दोष अविचल हो जाते है। जिनका बड़े विलम्ब से एवं कठिनाई से पाचन होता है। इसकारण गिलोय के जूस का प्रयोग यहाँ हितकर है। जिसके लिए गिलोय जूस के फायदे और नुकसान इन हिंदी जानना महत्व का है। benefits of giloy में सभी प्रकार के बुखार के लिए प्रसिद्द उपाय दिया गया है। जिसका प्रयोग सदियों से लेकर अब तक किया जा रहा है। जिसके कारण निर्भीकता से इसका प्रयोग किया जा सकता है।

  • बड़ी कटेरी, छोटी कटेरी, सोंठ, धनिया और देवदारु का क्वाथ पीने से सब प्रकार के ज्वर शांत होते है।

जीर्ण ज्वर में गिलोय के फायदे

यह न केवल सामान्य ज्वर की श्रेष्ठ औषधि है। बल्कि जीर्ण ज्वर की भी उत्तम दवा है। विशेषकर ऐसा जीर्ण ज्वर जिसमे शीत मालूम पड़ता हो। जिसमे इसके क्वाथ में या स्वरस में छोटी पीपर एवं मधु मिलाकर पिलाते हैजिसके प्रभाव से बुखार, कफ, प्लीहावृद्धि और अरुचि आदि दूर होती है। जिसको आमतौर पर गिलोय रस के फायदे के रूप में लोगो द्वारा जाना जाता है।

  • गिलोय का क्वाथ पीपल का चूर्ण मिलाकर पीने से जीर्णज्वर को नष्ट करता है।
  • छोटी कटेरी, गिलोय और सोंठ का क्वाथ पीपल का चूर्ण मलाकर पीने से जीर्णज्वर को नष्ट करता है।

ज्वरनाशक काढ़े बनाने की विधि और उपयोग अलग अलग है। जिनका प्रयोग बुखार में किया जाता है। इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह हमारे घरो में उपलब्ध है।

विषम ज्वर में गिलोय के फायदे ( benefits of giloy in typhiod fever )

आयुर्वेदादी शास्त्रों में विषम ज्वर को सन्निपात रोग माना गया है। जिसके कारण इसकी प्राप्ति होने पर रोगी के अंदर भय होता है। जो किसी भी रोग को अधिक प्रभावी रूप से सक्रिय बनाने का कार्य करता है। जिससे रोगी की अवस्था में अनेको प्रकार के परिवर्तन होते है। इस कारण चिकित्सा विशेषज्ञ का प्रथम दायित्व यह है कि मनोविज्ञान का प्रयोगकर रोगी को भयमुक्त करे। तदुपरांत औषधियों का प्रयोग करे। यहाँ पर विषमज्वर का उपचार गिलोय से करने के कुछ उपाय बताये गए है।

  •  नागरमोथा, छोटी कटेरी, गिलोय, सोंठ और आंवला का क्वाथ मधु और पीपल का चूर्ण मिलाकर पीने से विषमज्वर को नष्ट करता है।
  • परवल के पत्ते, इन्द्रजौ, देवदारु, त्रिफला, नागरमोथा, मुनक्का, मुलेठी, गिलोय और अडूसा का क्वाथ मधु मिलाकर पीने से विषमज्वर शांत होता है। फिर चाहे वह संतत, सतत, द्वितीयक, तृतीयक और एकाहिकविषम ज्वर, दाहपूर्व ज्वर और नवज्वर ही क्यों न हो।

अब बात आती है कि गिलोय की लकड़ी के क्या फायदे है? उपरोक्त दोनों उपायों में गिलोय का प्रयोग हुआ है। जिसके लिए बुखार की सबसे अच्छी दवा जानने की उत्सुकता ज्वर पीड़ित व्यक्ति को होती है।

प्रमेह रोग में गिलोय के फायदे

नवीन सोजाक और प्रमेह रोगो की गिलोय एक अच्छी दवा है। जिसमे इसका स्वरस अधिक मात्रा में दिया जाता है। जिससे अधिक मात्रा में पाखाना साफ़ होता है। प्रमेह में गिलोय स्वरस, पाषाणभेद चूर्ण मधु या दुग्ध या शर्करा के साथ दिन में तीन बार पिलाते है। हरिद्रा, गिलोय और आंवला का क्वाथ भी प्रमेह की एक अच्छी दवा है। अथवा मधु एवं गिलोय स्वरस का प्रयोग भी प्रमेह रोगो में लाभदायक है। जिसको giloy juice benifits कहते है। जबकि हिंदी में giloy juice benifits in hindi कहते है।

giloy juice ke fayde की बात करे तो जहा भी स्वरस का प्रयोग बताया गया है। वह सभी जूस ही है। अंतर केवल इतना है की स्वरस प्रामाणिक नाम है। जिसका वर्णन आयुर्वेद में किया गया है। जबकि जूस किसी भी फल, शाक आदि को मसलकर निकाला जाने वाला द्रव है। जिसको हम giloy ke fayde कहते है। इससे लाभ प्राप्त करने के लिए गिलोय कब खाना चाहिए? जिससे हमें गिलोय की लकड़ी के फायदे का पूरा लाभ मिल सके। इन्ही उपायों को ही benefits of giloy के नाम से भी जाना जाता है।

मूत्र विकारो में गिलोय के फायदे

ताजी जिलोय को खुरचकर, साफ़ धोकर बनाया कल्क 10 तोला और अनंतमूल का चूर्ण 10 तोला इनको 100 तोला उबलते जल में बंद पात्र में दो घंटे बंद रखे। फिर मसल कर छान ले। यह फाँट उत्तम रसायन एवं मूत्रजनन है। जिसका प्रयोग सभी प्रकार के मूत्रावरोधो में किया जा सकता है। जो गुर्दे आदि की सफाई करने का भी कार्य करता है। जिनको giloy ke fayde के रूप में जाना जाता है। इसको गिलोय की लकड़ी के फायदे के नाम से भी जाना जाता है। इन लाभों को प्राप्त करने के लिए गिलोय कब खाना चाहिए और कैसे खाना चाहिए? यह जानना भी महत्व का है।

दौर्बल्य या कमजोरी दूर करने में गिलोय के फायदे

बुखार के पश्चात दौर्बल्य तथा अन्य दौर्बल्य युक्त व्याधियों में इसके फाँट का प्रयोग किया जाता है। जिसका वर्णन ऊपर किया गया है। इसको ही benefits of giloy कहा होता है। किसी भी कारण से आयी कमजोरी को दूर करने के लिए गिलोय के उपयोग की बात बतायी गई है। यह बहुत ही उपयोगी उपाय है। जिसका कारण किसी भी कारण से शरीर में कमजोरी आ सकती है। सर्दी, जुकाम, अतिसार जैसे रोगो में भी कमजोरी पायी जाती है। नवप्रसूताओं में भी यह उपयोगी नुस्खा है।

पित्त रोगो में गिलोय के फायदे

आयुर्वेद में गिलोय को पित्त रोगो की अच्छी औषधि बताया गया है। गुडूची या गिलोय से पित्तमार्ग का अभिष्यंद कम होने के कारण पित्त का स्राव ठीक होने लगता है। जिससे कुपचन, मंद उदरशूल तथा कामला में इसका प्रयोग किया जाता है। कामला में गिलोय स्वरस को मधु के साथ सुबह सुबह पिलाना चाहिए।

इसमें गिलोय के पत्तो का कल्क तकर या दही के साथ लाभदायक होता है। पैत्तिक वमन में इसका स्वरस पिलाने से लाभ होता है। जिसको गिलोय का पत्ता के फायदे कहते है। इनके कारण ही गिलोय के पत्तों के फायदे बताओ जैसे प्रश्न जनसामान्य के मन में उठते है। इसको ही कुछ लोग giloy ke fayde या benefits of giloy भी कहते है।

किसी भी औषधि से लाभ प्राप्त करने के लिए उसकी विधि को जानना जरूरी है। इसकारण गिलोय कब खाना चाहिए जैसी शंकाए होती है। जिसका निवारण होना ही चाहिए। पित्त रोगो का एक कारण पाचन क्रिया की शिथिलता को माना गया है। जिसके लिए पाचन क्रिया कैसे सुधारे को जानना भी महत्व का है।

बबासीर ( अर्श ) में गिलोय के फायदे ( giloy ke fayde in piles)

अर्श गुदा मार्ग में होने वाला रोग है। जिसमे अनेको प्रकार की कठिनाइयाँ होती है। जैसे मल के सूख जाने के कारण इसका कडा होना या अत्यधिक कडा होना आदि। जो मवाज और खूनी दो प्रकार का होता है। जिसमे दर्द और जलन होने के साथ चुभन आदि भी होती है। जिसमें इसका स्वरस या चूर्ण तक्र ( दही ) के अनुपान से देते है। जिसको benefits of giloy कहा जा सकता है।

अन्य रोगो में गिलोय के फायदे 

  • स्तन्यशुद्धि के लिए इसका क्वाथ पिलाया जाता है।
  • रसायन रूप में इसका स्वरस और मधु या गुड़ के साथ इसके चूर्ण का प्रयोग किया जाता है।

आयुर्वेद में गिलोय के फायदे को उपरोक्त आयामों के आधार पर प्रस्तुत किया गया है। जिनको आजकल benefits of giloy कहते है। giloy ke fayde के लिए गिलोय कब खाना चाहिए? इसका ज्ञान आपेक्षित है। इसके बेल से स्वरस को प्राप्त किये जाने के कारण ही गिलोय की लकड़ी कहा जाता है। जिसके फायदे को गिलोय की लकड़ी के फायदे कहते है। इसके प्रयोगो का उपयोग कर हम चिर काल तक अपने स्वास्थ्य का रक्षण कर सकते है। जिसका उपयोग हम परम लक्ष्य में कर सद्गति को भी प्राप्त कर सकते है। जिसको सनातन शास्त्रों में मनुष्यो का परम कर्तव्य बताया गया है।

उपसंहार :

बुखार को उतारने में गिलोय के फायदे है। जिससे इसका उपयोग सदियों से सफलता पूर्वक किया जा रहा है। वही आजकल प्लेटलेट को बढ़ने के लिए भी गिलोय का उपयोग किया जा रहा है। जबकि प्रतिरक्षा प्रणाली को सुदृढ़ करने में गिलोय का महारथ हासिल है।  

सन्दर्भ :

भाव प्रकाश – गुडुच्यादिवर्ग 

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