क्या बहुत तरह का भोजन खाने से बुद्धि घटती है? Does eating many kinds of food decrease intelligence?

आजकल यह कहा जाता है कि विज्ञान और तकनीकी के आ जाने से खाने – पीने की कही कोई कमी नहीं है। जिसके कारण अब कम समय में अनेको तरह का भोजन पकाया और खाया जाने लगा है। बिना यह सोचे कि क्या बहुत तरह का भोजन खाने से बुद्धि घटती है?

क्या बहुत तरह का भोजन खाने से बुद्धि घटती है? 

आज अधिकांश घरों में खाने के लिए पर्याप्त अन्न – धन आदि उपलब्ध है। जिसके कारण आजकल बाजारू खाने कि बहुत मांग है। जिसमे पोषण और स्वाद के नाम पर विविध प्रकार के भोजन को परोसा और खिलाया जाता है। जिसका परिणाम यह होता है कि धीरे – धीरे हमारी याददाश्त कमजोर होने लगती है। 

आजकल के खाद्य विशेषज्ञ भी पोषण का विशेष ध्यान रखने लगे है। जैसे – एंटीऑक्सीडेंट, फैटी एसिड, ओमेगा -3 एवं 6, विटामिन, खनिज आदि को भोजन में निरंतर लेने की सलाह देते है। जिसमे अक्सर कच्चे – पक्के, हरी सब्जिया और खीर आदि विविध तरह के पकवान शामिल होते है। हालाकिं मिल्लेट्स में भी यह सब पाए जाते है। इन पोषक तत्वों की आपूर्ति के लिए ज्यादातर हम इस तरह के खाने को एक साथ खाते है। जिसके परिणामस्वरूप अक्सर हमारे ध्यान में कमी आना शुरू हो जाती है। 

लेकिन अक्सर इन गलतियों पर हमारा ध्यान नहीं जाता। क्योकि हम आप भोजन की गुणवत्ता से अधिक उसके स्वाद के दीवाने होते है। जिसके कारण हम अनायास ही वैसा भोजन करना पसंद करते है। जिसकी बनावट और स्वाद दोनों हमें पसंद हो। ऐसा इसलिए होता है क्योकि हमें नहीं पता होता कि क्या बहुत तरह का भोजन खाने से बुद्धि घटती है? 

बहुत तरह का भोजन एक साथ खाने से बुद्धि घटने का कारण 

मिलाजुला भोजन करने से याद्दाश्त कमजोर होने का कारण

आज हम इतने समृद्ध हो गए है कि जो चाहे वो खा सकते है। वह भी पका – पकाया अपनी जगह पर बैठे – बैठे। पर क्या ऐसा करना हमारे आपके स्वास्थ्य के लिए सही है?  

भूख और प्यास को आयुर्वेद में स्वाभाविक रोग माना गया है। इसलिए हमारी लाचारी है कि भूख लगने पर खाना खाना पड़ता है। प्यास लगने पर पानी पीना पड़ता है। लेकिन केवल इतने से काम नहीं चलता। बल्कि पोषण आदि के लिए हमारे शरीर को विविध प्रकार के भोज्य पदार्थों की आवश्यकता पड़ती है।

जिसकी आपूर्ति के लिए आयुर्वेद में विस्तृत आहार शैली का उल्लेख है। परन्तु आधुनिक आहार शैली इसके लिए भोजन में विविध तरह के व्यंजन खाने को अनिवार्य मानती है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या किया जाय और क्या न किया जाय? 

बहुत से लोगो को भ्रम होता है कि खान – पान का असर केवल हमारे शरीर पर पड़ता है। जोकि पूर्ण सत्य नहीं है। बल्कि खानपान का उतना ही असर हमारे मस्तिष्क पर होता है। जितना कि शरीर पर। 

वैज्ञानिक भाषा में हमारा शरीर हमारे मन ( बुद्धि ) का समानुपाती है। इस कारण शरीर में पीड़ा होने पर मन पीड़ित होता है। और मन में दुःख होने पर शरीर भारी लगता है। जिसका अनुभव बीमार होने पर हम सभी करते है। लेकिन दुर्भाग्य कि बात है कि इसको मापने क़ी अब तक कोई मशीन नहीं बनी। जहाँ तक बनेगी भी नहीं, क्योकि इस मशीन के बनने से कोई व्यापारिक फायदा होगा?  

आइये समझते है की कैसे हमारी खाने पीने की आदत हमारी बुद्धिमत्ता को खा जाती है। जिस पर आयुर्वेद में बहुत सूक्ष्मता से विचार किया गया है –

विरुद्ध आहार का सेवन करना

आयुर्वेद में विरुद्ध आहार की विविध श्रेणियां है। जिसका भोजन करते समय ध्यान रखना आवश्यक है। जैसे – मूली और प्याज का एक साथ सेवन करना आदि। 

विपरीत आहार करना

आयुर्वेद में भोजन करते समय विपरीत आहार करने की मनाही है। जैसे – ठंडा – गरम, कच्ची और पकी हुई चीजों का एक साथ सेवन करना आदि। 

भोजन करते समय अनुपान आदि का ध्यान न रखना

हम लोग अक्सर भोजन करते समय अनुपान का ध्यान नहीं रखते। अनुपान का तात्पर्य ऐसे तत्व से है। जो उस तत्व की शक्ति को कई गुना बढ़ा दे। जैसे – सोंठ के साथ गुड़ का सेवन करना आदि।  

भोजन को खाते समय रस का ध्यान न रखना

आयुर्वेद में भोजन को षड रस प्रधान बताया गया है। जिसके सेवन का आयुर्वेद ने क्रम निर्धारित किया है –

  1. मीठा
  2. खट्टा
  3. नमकीन
  4. तीखा
  5. कडुआ
  6. कसैला 

भोजन के बीच – बीच में पानी न पीना   

आयुर्वेदानुसार भोजन के अंत और आरम्भ में पानी पीना विष के सामान है। जबकि भोजन के बीच – बीच में पानी का उचित मात्रा में उपयोग करना अमृत के बताया गया है। परन्तु हममे से ज्यादातर लोगों को यह बात पता ही नहीं होती।

हम लोग खाना खाते समय अक्सर पानी तब पीते है। जब हमें भोजन तीखा लगता है। परन्तु बहुत से लोग सर्दियों में पानी की आवश्यकता पड़ने पर, खीर या सूप इत्यादि का प्रयोग करते है। 

क्या एक साथ बहुत तरह का भोजन खाने से बुद्धि कम हो जाती है?

कब्ज का जीर्ण होना 

ऊपर बतलाई गई बातों का ध्यान न रखने से , पेट साफ न होना अर्थात कब्ज एवं बदहजमी ( अजीर्णता ) जैसी समस्याए पनपती है। जिनको बिना परहेज के दूर कर पाना किसी वैद्य ( चिकित्सक ) के बस की बात नहीं। 

बुद्धिमत्ता का सीधा सम्बन्ध हमारे पाचन तंत्र से है। पाचन ठीक न होने से अक्सर पेट में कब्ज आदि का कारण बनता है। जिससे हमारा ध्यान काम पर न होकर पेट की गड़बड़ियों पर ही लगा रहता है। परिणामतः बुद्धि घटने लगती है। 

लेकिन जब हम अनेको प्रकार के व्यंजन का सेवन एक साथ करते है। तब पेट साफ होने में समस्या आती है। जो लगातार करते रहने पर बढ़ती जाती है। जिससे कब्ज धीरे – धीरे जीर्ण होता जाता है। जिसका आयुर्वेद के अलावा कही कोई जिक्र नहीं है। आखिर हो भी क्यों? क्योकि सच्चाई तो कुछ और है। 

एक साथ बहुत तरह का भोजन करने से हम कितना भी फूक कर पाँव रखे। उपरोक्त सिंद्धान्तो में तालमेल बिठा पाना बहुत कठिन है। सिद्धांत में गड़बड़ी होने पर पेट के रोग होने तय है। पेट के रोग होने से बुद्धि में कमजोरी आना स्वाभाविक है।

हालाकिं बुद्धि के कमजोर होने के बहुत से कारण होते है। लेकिन स्वास्थ्य की दृष्टि से बुद्धि के दुर्बल होने का प्रमुख कारण है। लेकिन अभी भी बहुत से लोग नहीं जानते कि क्या बहुत तरह का भोजन खाने से बुद्धि घटती है?

बुद्धि घटने के लक्षण

  • किसी काम में मन न लगना
  • भुलक्कड़पन ( याददाश्त कमजोर होना )
  • शरीर में दर्द और आलसपन का रहना
  • निर्भीकता पूर्वक निर्णय न ले पाना
  • भय लगना
  • काम से जी चुराना
  • सामने आने से बचना 
  • एक काम को ख़त्म किये बिना ही दूसरा काम शुरू कर देना
  • धैर्य की कमी
  • बार – बार याद दिलाने पर भी याद न आना, आदि।  

उपसंहार :

बुद्धि घटे बहु भोजन खाये की कहावत तो आपने सुनी ही होगी। यह सूत्र शैली में कही गई बात है। जिसका अनुपालन करने से बुद्धि दिन ब दिन प्रखर होती जाती है। वही इसका पालन न करने से बुद्धि में दुर्बलता देखी जाती है। हालाकिं अनेको तरह के व्यंजन का सेवन एक साथ करने के बजाय, हर दिन बदलकर व्यंजन खाने से बुद्धि तीव्र होती है। 

आजकल हम तकनीकी दुनिया में रह रहे है। जिसमे सबसे बड़ा योगदान वैज्ञानिक सिद्धांतो से प्राप्त होने वाली मशीनों का है। लेकिन हमारा आपका का शरीर कोई मशीन नहीं है। अर्थात हमारे शरीर की अपनी एक बायोलॉजिकल संरचना और क्रिया कलाप है। जिसको सुव्यवस्थित रखने के लिए स्वास्थ्य सम्बन्धी सिद्धांतो का पालन करना हमारी आपकी मजबूरी है। नहीं तो हमें वैसे ही परिणाम प्राप्त होंगे। जो हम स्वप्न में भी नहीं चाहते।  

परन्तु जाने अनजाने में की गई गलती का फल तो हमें भुगतना ही पडेगा। फिर हम चाहे या न चाहे।  ध्यान रहे अब तक जितने भी वैज्ञानिक आविष्कार और प्रयोग हुए है। सब के मूल में धन का लोभ छुपा हुआ है। फिर चाहे वह चिकित्सा के नाम पर हो या सुविधा आदि के नाम पर। 

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