फिशर में क्या नहीं खाना चाहिए और क्या खाना चाहिए : food to avoid in fissure in hindi

गुदीय रक्तशिराओ के फटने से गुदा में दरार बनने को ही, गुदा फिशर के लक्षण कहते है। जिसके कारण गुदा में तीव्र दर्द के साथ जलन और रक्त स्राव होता है। जिससे बचने के लिए फिशर में परहेज की बात कही गई है। जिसमे फिशर में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं की बात आती है। जैसे मठ्ठे को गुदा रोगो में बहुत ही गुणकारी माना गया है। लेकिन फिशर में दही खाना चाहिए या नहीं यह संशय पैदा करता है। तो आइये विस्तार से जानते है कि फिशर में क्या नहीं खाना चाहिए और क्या खाना चाहिए?

फिशर में क्या नहीं खाना चाहिए

गुदा में होने वाली दरार की प्रकृति, खूनी बवासीर के लक्षण से मेल खाती है। जिसमे पित्त दोष की प्रधानता देखी जाती है। जिसके लिए हमें अपने खान – पान में, पित्त को भड़काने वाली वस्तुओ के सेवन से बचना चाहिए। जिसके लिए फिशर में क्या खाएं और क्या न खाएं को जानने की आवश्यकता है।   

खूनी बवासीर और फिशर दोनों एक ही स्थान में, होने वाले गुदा रोग है। जिससे बचने के लिए खूनी बवासीर में क्या खाना चाहिए। जिसमे वायु को प्रतिलोमित करने, मलबद्ध और पाचक अग्नि को हम करने वाले द्रव्यों के सेवन का प्रतिषेध किया गया है।  

फिशर में क्या खाना चाहिए ( fissure me kya khana chahiye )

फिशर में क्या खाना चाहिए

आयुर्वेदानुसार गुदा से सम्बंधित रोगो में, सबसे अधिक परहेज हमारे भोजन को लेकर बताया गया है। जिसका सबसे बड़ा कारण गुदा रोगो की शुरुआत, उदर विकारो से मानी गई है। जिसका अधिकांश भाग हमारे द्वारा ग्रहण किये गए, अन्न और जल का है। जिसमे विसंगति न होने पर, रोगानुगति की संभावना ही शेष नहीं रहती है। ऐसे भोजन को आंग्ल भाषी एनल फिशर डाइट ( anal fissure diet ) कहते है।

फिशर रोग में उपयोगी द्रव्य इस प्रकार है –

अन्न : कोदो, कंगनी, अगहनी चावल, पुराना साथी चावल आदि फायदेमंद है।  

दाल : चना, मूंग, अरहर, मोट और मसूर गुणकारी है। 

सब्जी : परोरा ( खेस्का ), चौड़ाई, पुनर्नवा, चिरायता आदि का शाक, नीम की पत्ती और पका कद्दू खाना लाभकारी है।    

मसाला : जीरा, अजवाइन, सौफ और धनिया खाने से फायदा होता है। 

मेवा : चिरौजी, नारियल गोला, खजूर, मुनक्का, मिसगरी, मधु, धान के लावा का सत्तू खाने से फायदा होता है।

दूध : भारतीय गाय और बकरी का दूध और घी, भैस का घी गुदा रोगो में उत्तम है।   

पानी : पानी की आवश्यक निर्बाधता अवश्य बनाये रखे। जिसके लिए 100 से 300 टी डी एस का पानी सबसे बढ़िया है।  

फिशर में क्या नहीं खाना चाहिए ( fissure me kya nahi khana chahiye )

गुदा रोगो के निवृत्ति में उपवास आदि की खूब प्रशंसा की गई है। परन्तु खाने में पहेज की बात भी महत्वपूर्ण बताई गई है। जिसमे ऐसी सभी चीजों को खाने से मना किया गया है। जो पेट में दोषो का संचय करती है। जिन्हे फिसर में खाने से बचने वाला आहार ( food to avoid in fissure ) कहा जाता है। जैसे –

  • अधिक तले – भुने, मिर्च – मसाले से युक्त चटपटा भोजन। जैसे -चाट, चाउमीन, पिज्जा आदि। 
  • पचने में भारी, चिकनी और गरिष्ट वस्तुओ का सेवन न करे। जैसे – मिठाई, तरह – तरह के डेयरी उत्पाद आदि।
  • प्रोस्सेड और जनक फूड का सेवन न करे  
  • बर्फ का पानी और कार्बोनेटेड वाटर से दूर रहे
  • रिफाइंड नमक और तेल का सेवन न करे
  • चीनी के सेवन से परहेज करे
  • 300 से अधिक और 100 टी डी एस से अधिक का पानी न पिए
  • तीखे और जलनकारी मसाले के सेवन से बचे
  • कच्चे और पके हुए भोजन को एक साथ न खाये
  • उड़द की दाल को मठ्ठे के साथ न ले   
  • मादक द्रव्य जैसे – कैफीन और शराब आदि का सेवन न करे, आदि।       

फिशर में दही खाना चाहिए या नहीं ( fishar me dahi khana chahiye )

फिशर में दही खाना चाहिए या नहीं

जितने फिशर में दूध के फायदे है। उतने दही के नहीं है, लेकिन दही को मथकर बनाये जाने वाले छाछ के बहुत फायदे है। गुदा रोगो को दूर करने में दही अमृत के सामान गुणकारी है। ऐसा कहा जाता है कि मठ्ठे से आरोग्य हुआ, गुदा रोग दुबारा नहीं होता।  

फिशर में परहेज के रूप में दही का सेवन न करना है। जिसका मूल कारण दही की अम्लता से, पित्त दोष का बढ़ना है। जबकि दही खाने के ढेरो फायदे है। लेकिन गुदा रोगो में दही के बजाय मठ्ठा खाना ही फलदायी है। इसलिर दही फिशर रोग में नहीं खाना चाहिए। 

फिशर में परहेज करने वाले फल ( fruits to avoid in fissure in hindi )

गुदा रोगो में अनार, आंवला, कटहल, सिंघाड़ा, भिलावा, कैथ, तरबूज, केला और ताड़ के फल उपकारी माने गए है। जिनका सेवन करने से पेट की तकलीफे नहीं होती। जिससे उदर रोगो होने की संभावना नहीं होती। यह फल रेशे से भरपूर होते है। जिसके कारण पेट आसानी से साफ होता है।

गुद चीर जैसे रोगो में खट्टे फलों को खाना अच्छा नहीं माना जाता। जैसे – आम आदि। इनके सेवन से पेट में अम्लता बढ़ती है। जिसके कारण पाचन क्रिया में विपरीतता आने की संभावना होती है। जिससे अपानवायु प्रतिलोम हो सकता है।

खट्टे फलों में विटामिन सी की पर्याप्त मात्रा पायी जाती है। जिसके कारण इसको खाने की सलाह दी जाती है। लेकिन खट्टे फल ठंडी तासीर के होते है। जो पित्त को शांत करने में मदद करते है। फिर भी इनको गुदा के रोगो में खाने से रोका जाता है। विशेषकर पित्त दोष से होने वाले रोग में।

अम्ल और पित्त दोनों की स्वाभाविक प्रकृति जलन करने की है। जिसके कारण पित्त को यह कुपित करता है। जिससे पुरुषो में बवासीर के लक्षण में गुदा से खून गिरने के लक्षण दिखाई पड़ते है। जिसके कारण फिशर रोग में खट्टे फलों को खाना वर्जित है।  

फिशर के लिए व्यायाम ( exercise for fissure in hindi )

फिशर में क्या क्या खाना चाहिए और क्या क्या नहीं, को जान लेने के बाद देहानुकूल परिश्रम भी आवश्यक है। जिसमे अभाव में रोग का एक कारण हमारे शरीर में बना ही रहता है। जिसको दूर करने के लिए, यथानुकूल कसरत और व्यायाम नियमित रूप से करना आवश्यक है।   

शरीर को स्वस्थ बनाये रखने के लिए जितनी आवश्यकता हमें भोजन की है। उतनी ही आवश्यकता परिश्रम की है। फिर चाहे वह परिश्रम हम अपने खेत – खलिहान में करे। या फिर पशुओ की देखरेख करने में करे। अथवा खुले मैदान में कसरत और व्यायाम के रूप में करे।   

आजकल व्यायाम के स्थान पर, योगासन का प्रचलन अधिक है। जिसमे पेट को स्वस्थ रखने के अनेक आयाम बताये गए है। लेकिन ध्यान यह रखना चाहिए कि व्यायाम करते समय, गुदा पर अधिक दाब न पड़े। जिसके लिए प्राणायाम आसान से अच्छा उपाय है।

हालांकि गुदा रोगो में अश्विनी मुद्रा अधिक फलवती है। जिसमे गुदा को अंदर ओर सिकोड़ते हुए, ऊपर की ओर खींचा जाता है। फिर ढीला कर दिया जाता है। जिसके कारण गुदा में आयी सूजन और दर्द में बहुत लाभ होता है।  

उपसंहार :

फिशर गुदा में दरार पैदा करने वाला बहुत ही कष्टकारी रोग है। जिससे बचने के लिए फिशर में क्या नहीं खाना चाहिए जानना आवश्यक है। किन्तु गुदा रोग से ग्रस्त हो जाने पर, फिशर में परहेज करना भी जरूरी है। जिसमे फिशर में दही खाना चाहिए या नहीं आदि आते है। 

देह प्रकृति के अनुकूल भोजन से, हमारे शरीर को पोषण मिलता है। जबकि देह प्रकृति के प्रतिकूल भोजन, हमें रोगी बनने के लिए बाध्य कर देता है। जिसके कारण इन कमियों को हमें दूर करने का प्रयास करना चाहिए। देह और ऋतू के अनुकूल भोजन और दिनचर्या आजीवन स्वस्थ बने रहने का अमोघ उपाय है। जिसका विधि – विधान से पालन करने वाला, कभी बीमार नहीं पड़ता।

सन्दर्भ :

चरक संहिता चिकित्सा अध्याय – 14

भैषज्यरत्नावली अर्श रोग चिकित्सा प्रकरण अध्याय – 09

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