एनल फिशर ( गुदा में दरार या गुदचीर ) : Rectal Fissure / Anal Fissure In Hindi

फिशर गुदा में होने वाला अत्यंत पीड़ादायी रोग है। जिसमे बवासीर के लक्षण के समान ही फिशर के लक्षण दिखाई पड़ते है। जिससे फिशर का इलाज करते समय, रोगी के रोग और देहगत लक्षणों को परखा जाता है। तब जाकर फिशर की अचूक दवा से गुदा में दरार का उपाय किया जाता है।  

गुदा में दरार

मानव स्थूलांत्र में लगा हुआ चार अंगुल लंबा भाग गुदा है। जिसमे पायी जाने वाली प्रवाहिणी पेशी में आने वाली दरार, गुदा फिशर ( anal fissure ) कहलाती है। जिसको गुदा में दरार आना भी कहा जाता है। यह गुदा में होने वाला बहुत ही पीड़ादायी रोग है। जिसका शीघ्र उपचार करना अत्यंत आवश्यक है। जिसका उपचार करते समय फिशर क्या होता है आदि को समझना आवश्यक है। 

हालांकि फिसर गुदा के अतिरिक्त अन्य बहुत से स्थानों पर पाए जाते है। जिनको स्थान भेद से अलग – अलग नामो से जाना जाता है। परन्तु एनल फिशर ( fissure in ano ) होने का एक कारण, बवासीर को भी माना गया है। जिसके कारण बवासीर के घरेलू उपाय बहुत ही लाभकारी है। यदि दोष लक्षण और रोग लक्षण की साम्यता प्राप्त होती है। यह अधिक समय बात जाने के बाद दिखाई पड़ता है। जिससे इसे जीर्ण रोगो ( chronic disease ) का दर्जा प्राप्त है।   

एनल फिशर क्या होता है ( fisher kya hota hai )

एनल फिशर क्या होता है

मानव गुदा की गाढ़े रंग की रक्त शिराए, जो गंदे खून को ह्रदय तक ले जाती है। उनमे होने वाला रोग है। यह रोग रोम प्रांतो के ऊपर पायी जाने वाली वलियो में पाया जाता है। जिसका कारण खूनी बवासीर के लक्षण आदि का पाया जाना है। जिसमे गुदनलिका में लम्बाई की और फैली, शिराए होती है। जिसमे मल को बाहर निकालने के लिए जोर – जोर से काँखने पर, इन शिराओ में गया हुआ खून वापस नहीं आ पाता। जिसके कारण यह रक्तवाहिनियां फूलने लगती है। 

जिससे मलद्वार पर सूजन के लक्षण दिखाई पड़ते है। जिसे मलाशय शोथ भी कहते है। इसके कारण गुदा द्वार पर दरार बनने लगती है। जिसको पाइल्स फिशर ( piles fissure ) कहते है। जिसके हो जाने पर गुदा में अनेक प्रकृति के दर्द के सहित, खून निकलने की समस्या हो सकती है। 

एनल फिशर मीनिंग इन हिंदी ( anal fissure meaning in hindi )

फिशर का अर्थ गुदा में होने वाली दरार है। जिसको ऊपर फिशर फोटो में दिखाया गया है। फिसर के समानार्थी शब्द ( fissure synonym ) गुदीय दरार, गुदा में दरार, गुदा विदर, गुदा दरारें आदि है। जिसमे मल त्याग के स्थान गुदा पर दरार बन जाती है। जिसके कारण तीव्र दर्द होता है। जैसे बादी बवासीर के लक्षण में देखने को मिलता है। 

गुदा में दरार होने पर मल त्याग में बहुत कठिनाई होती है। जिसका सबसे बड़ा कारण गुदा की दरारों में, तनाव आना है। यह मलाशय में होने के कारण रेक्टल फिशर ( rectal fissure ) भी कहा जाता है। जिस प्रकार गुदीय अर्श को बवासीर कहा जाता है। जिसमे बवासीर की गारंटी की दवाई अत्यंत उपकारी है। 

फिशर के कारण ( anus fissure causes in hindi )

फिशर रोग ( fissure disease ) के कारणों में वात, पित्त और कफादि के असंतुलन को प्रधान रूप से माना गया है। जो हमारे शरीर में पाए जाने वाले मलों की वृद्धि कर देता है। जिसमे सहायक गतिविधियों में निम्न को शामिल किया गया है –

  • तिरछे – मिरछे, वोषम और गड़ने वाले आसन पर बैठना
  • झोका मारने वाले वाहन की सवारी करना
  • ऊंट, घोड़ा आदि की सवारी करना
  • अधिक स्त्री / पुरुष का संगम करना
  • बस्तिनेत्र का गुदा में असम्यक प्रवेश करने से चोट पहुंचना 
  • बार – बार शीतल जल से गुदा को धोना
  • मिट्टी के ढेले, तृण आदि से गुदा पर रगड़ लगने से ( शौच के समय )
  • मल त्याग के समय लगातार काँखते रहने से
  • मल – मूत्रादि के आये हुए वेग को रोकने से
  • बिना वेग आये ही मल – मूत्रादि को जोर लगाकर निकालने से
  • गर्भावस्था में गर्भ के दबाव से
  • स्त्रियों को कच्चा गर्भ गिरने से
  • विषम प्रसव होने आदि से।    

फिशर के लक्षण ( anal fissure symptoms in hindi )

फिशर के लक्षण

गुदा में होने वाली दरार को एनल फिशर के लक्षण ( fissure ke lakshan ) कहा जाता है। जिसमे निम्न लक्षण देखने में आते है –

  • मलत्याग होने में कठिनाई होना
  • मल का अत्यधिक सूखा, कडा और लंबा होना 
  • मलत्याग के समय गुदा में भयंकर दर्द होना
  • गुदा से खून आना
  • बहुत कम मात्रा में मल निकलना
  • पेट में नाभि के पास पत्थर रखे होने के समान दर्द होना
  • गुदमार्ग से अत्यंत कठिनाई के साथ अपानवायु का निकलना
  • आंतो में गड़गड़ाहट बनी रहना
  • मूत्र का बार – बार वेग आना
  • गुदा द्वार में चुभन होना
  • गुदा में जलन होना
  • मलत्याग के बाद घंटो जलन बनी रहना, आदि।  

फिशर के प्रकार ( anal Fissure types in hindi ) 

ज्यादातर फिशर दो प्रकार के देखने को मिलते है – 

एक्यूट फिशर ( acute anal fissure ) : यह गुदा की त्वचा पर होने वाला दरार है। जो सामान्य उपायों से पूरी तरह से ठीक हो जाता है। जिसके लिए आहार – विहार, दिनचर्या और ऋतुचर्या को संतुलित रखना पड़ता है। इसके साथ साफ़ सफाई, उष्ण जल से गुदा का प्रक्षालन आदि की आवश्यकता पड़ती है। यह बिना ऑपरेशन के ही ठीक हो जाया करता है।  

जीर्ण फिशर ( chronic anal fissure ) : यह अधिक समय से गुदा पर बनी रहने वाली दरार है। जो दोषो के अंसतुलित हो जाने से शारीर को कमजोर कर जीत लेता है। जिससे बचने और समय पर इलाज की जरूरत पड़ती है। जिसमे आवश्यक होने पर ऑपरेशन आदि की भी आवस्य्क्ता पड़ सकती है। परन्तु धैर्य पूर्वक औषधि उपचार विशेषज्ञीय विधि से करने पर, इसको भी हराया जा सकता है। जैसे बवासीर के उपायों द्वारा 20 साल पुरानी बवासीर का इलाज किया जाता है।    

फिशर का इलाज ( anal fissure treatments in hindi ) 

फिशर का इलाज 

आयुर्वेदादी शास्त्रों में रोगो का उपचार करने की प्रशस्त विधि बतलाई गई है। जिसमे त्रिदोषो के संतुलन को मुख्य आधार बनाया गया है। जबकि रोग होने पर इन दोषो में, विकूलता आ जाती है। जिसको सम करने पर सभी आगंतुक रोगो का आपनोदन हो जाता है। तदुपरांत स्वाभाविक स्वास्थ्य की पुनः प्राप्ति हो जाती है। जो पुरुष बवासीर के लक्षण को दूर करने में ज्यों के त्यों अपनाई जाती है। 

फिशर होने के कारण ( fissure hone ke karan ) पर ही, पाइल्स फिशर का इलाज हो सकता है। क्योकि कारण की विद्यमानता होने पर, कार्य होना सुनिश्चित है। इसलिए एनल फिशर का इलाज करते समय, इसके कारणों के सर्वथा विपरीत उपायों का अपनाया जाता है। अर्थात कारण को नष्ट करने वाले उपाय किये जाते है। तब fissure पाइल्स फिशर फोटोज में दिखाई गयी समस्या का समाधान हो पाता है। 

महिलाओ का शरीर अंग विशेष की प्रधानता से पुरुषो से अलग होता है। जिसकी सिद्धी वंश या संतान को जन्म देने वाली है। जिसका ध्यान महिला बवासीर के लक्षण को दूर करने में भी अपनाया जाता है। अकसर गर्भाधान के समय महिलाओ को पाचन सम्बन्धी समस्या होती है। जिसके फलस्वरूप गुदा में दरारे आ जाती है। जो गर्भ की परिपक्वता के बाद प्रसव होने पर, स्वतः शांत हो जाता है।   

आयुर्वेद में अलग – अलग रोगियों के उपचार के लिए, अलग तरीके अपनाने की बात कही है। जैसे – कब्ज की समस्या से पीड़ित रोगी की चिकित्सा उदावर्त की भाँती। जिन रोगियों को गुदा दरारों की समस्या में पतला मल आने की समस्या हो, उनकी चिकित्सा अतिसार की भाँती। जिन फिशर रोगियों में अधिक खून बहता हो, उनकी चिकित्सा रक्तपित्त की भाँती करने का विधान निर्धारित किया गया है।   

फिशर की अचूक दवा ( fissure medicine in hindi )

आयुर्वेद में गुदा में दरार को भरने वाली औषधियों को, फिशर की दवा कहा गया है। जिसमे निम्न उपाय बहुत लाभदायी है –

  • 10 ग्राम पुराने गुड़ में 5 ग्राम हरीतकी चूर्ण मिलाकर, गर्म या ठन्डे पानी से लेने पर गुदा की दरार नष्ट हो जाती है।
  • काली मिर्च, सोंठ, पीपर, चित्रकमूल की चाल, वायविडंग, शुद्ध भिलावा, तिल और हरड़ को बराबर – बराबर लेकर चूर्ण बना ले। फिर इन सब के बराबर आठ भाग पुराना गुड़ मिलाकर, नियमित 10 ग्राम की मात्रा में सेवन करे। जिससे गुदा का फिशर कुछ ही दिन में आरोग्य हो जाता है।
  • चित्रकमूल के चूर्ण को गाय के दूध में डालकर, दही जमाये और मठ्ठा बनाये। जिसको पीने से गुदा के रोगो में लाभ होता है।
  • त्रिफला चूर्ण को मठ्ठे में मिलाकर पीने से गुदा में आयी दरार भर जाती है।    
  • कफ प्रधान रक्तस्राव में कुटज की छाल और सोंठ का काढ़ा बहुत लाभदायी है।
  • अभयारिष्ट : गुदा की दरारों में यह बहुत ही उपयोगी है। इसका उपयोग करने से पेट विकार मिट जाते है। जिससे पाचक अग्नि बढ़ जाया करती है। फलस्वरूप प्रतिलोम हुई अपानवायु अनुलोम होने लगती है। जिससे गुदा पर अनावश्यक दबाव नहीं पड़ता। यह बवासीर की सिरप भी कहलाती है।    

फिशर के लिए सोने की स्थिति ( sleeping position for fissure )

sleeping position for fissure

गुदा में फिशर हो जाने पर, तीव्र दर्द होता है। जिसके कारण पीठ के बल लेटना बहुत ही कष्टदायी होता है। जबकि पेट के बल सोने से स्वास्थ्य सम्बन्धी हानिया हो सकती है। इसलिए करवट सोना ही एक मात्रा रास्ता है। जिसका उपयोग करने से हमें फिशर का उपचार करने में सहायता मिलती है।

करवट सोने पर गुदा पर किसी तरह का कोई दाब नहीं लगता। जिससे नींद में बाधा नहीं आती। परिणाम स्वरूप हम पूर्ण विश्राम कर पाते है। जिसका सकारात्मक प्रभाव हमारे मनोबल को बढ़ाता है। इसलिए यह बवासीर के मस्से सूखने का उपाय है।   

फिशर के लिए योग ( yoga for fissure in hindi )

योग शरीर को स्वस्थ रखकर, ईश्वर से जोड़ने का एक साधन है। जिसका आलंबन लेने से आत्म और मन दोनों संयत होते है। जिसका सकारात्मक प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है। जिससे सभी रोगो को दूर करने में योग उपकारक है। फिर चाहे वह रोग मानसिक हो या शारीरिक।

गुदा में होने वाले रोग प्रायः उदर विकारो के परिणाम है। जिसमे सबसे बड़ा योगदान कब्ज, उदावर्त ( बोवेल मोमेंट ), अतिसार और ग्रहणी आदि रोगो का है। यह सभी उदर रोगो के अंतर्गत आने वाले रोग है। जिसको दूर करने में योग बहुत ही कारगार है। 

जिसको करने के लिए ध्यान यह रखना चाहिए कि योग का आरम्भ आसन से न कर, यम – नियम से करना चाहिए। तब जाकर योग से पूर्ण लाभ मिलता है। हालाकिं योगासन करने पर, शारीरिक लाभ तो प्राप्त होता ही है। जिसमे पश्चिमोत्तानासन, शलभासन आदि बहुत ही गुणकारी है। इसके अतिरिक्त अश्विनी मुद्रा भी गुदा रोगो में रामबाण है। 

बवासीर और फिशर में अंतर ( difference between piles and Fissure in hindi )

बवासीर और फिशर दोनों ही ही गुदा में होने वाले रोग है। इसके साथ यह की शिराओ में विकृति के कारण पैदा होती है। फिर भी दोनों रोगो का स्थान भी एक है। अंतर केवल इतना है कि बवासीर में गुदा शिराए खून से भरकर फूल जाती है। जबकि फिशर में बवासीर की गुदीय शिराओ के फूलने से, गुदा में दरार आ जाती है।   

गुदा में दरार ( फिशर ) से बचाव के उपाय ( precaution for anal fissure in hindi )

फिशर एक ऐसी समस्या है। जो गुदीय त्वचा के आसपास दरारों के रूप में प्रकट होती है। जिसमे भीषण दर्द के साथ रक्तस्राव, खुजली और त्वचा के रंग में परिवर्तन हो सकता है। जिससे बचने के निम्न उपाय लाभकारी है –

  • खाने में मिर्च – मसाले, तले – भुने खाद्य पदार्थो का सेवन न करे। 
  • गरिष्ट, चिकने और देर से पचने वाले खाद्य आहारों के सेवन से बचे।
  • बासी, अत्यधिक ठंडा और गरम खाने का सेवन न करे।
  • विरुद्ध और विपरीत आहार का सेवन न करे।
  • ताजे हुए फाइबर युक्त खाद्य पदार्थो को नियमित रूप से खाये।
  • भोजन में रिफाइंड नमक के स्थान पर काले अथवा सेंधा नमक ही खाये।
  • रिफाइंड और प्लास्टिक में रखे तेल के स्थान पर, बैल चलित घानी और धातु पात्र में रखे तेल का ही उपयोग करे। 
  • प्लास्टिक के बर्तन में रखे पानी को न पिए।
  • दिन में थोड़ी मात्रा में खट्टे फल अवश्य खाये। जैसे आंवला और नींबू आदि।
  • गेंहू और चावल के स्थान पर मिलेट का प्रयोग करे। 
  • प्राप्त मात्रा में शुद्ध जल का सेवन करे। 
  • दिन में सोने से बचे। 
  • मलत्याग के बाद गुदा को सूखे वस्त्र को सुखाये। 
  • नियमित स्थान करे और मलत्याग के लिए अवश्य जाए। 
  • मल – मूत्रादि के वेग को रोके नहीं।
  • वेग न होने पर जोर लगाकर, मल – मूत्रादि को बाहर निकालने का प्रयास न करे।
  • सफाई का विशेष ध्यान रखे।
  • मादक पदार्थो के नियमित सेवन से बचे। 
  • अधिक तकलीफ होने पर चिकित्सा विशेषज्ञ को दिखाए।

उपसंहार :

पेट रोगो के परिणाम के रूप में गुदा में दरार देखे जाते है। जिन्हे चिकित्सीय शैली में फिशर के लक्षण कहते है। गुदा का फिशर जीर्ण रोग है। जो गर्भावस्था में आमतौर पर देखा जाता है। इसलिए गर्भावस्था को छोड़कर फिशर का इलाज समय से करना अत्यंत आवश्यक है। जिसमे फिशर की अचूक दवा बहुत ही प्रभवसजाली है।   

वही रोग से बचाव और आजीवन स्वस्थ बने रहने के लिए, आहार, दिनचर्या और ऋतुचर्या का विधिवत पालन आवश्यक है। यह हर देश, हर काल, हर परिस्थिति में हर व्यक्ति को स्वास्थ्य बनाये रखने का अमोघ उपाय है। इस कारण देश, काल और वस्तु का यथार्थ ज्ञान ही नहीं, बल्कि इसके सेवन की विधा को जानना भी आवश्यक है।   

ध्यान रहे : यहाँ बताये गए कोई भी उपाय चिकित्सीय उपाय नहीं है। जिसका इस्तेमाल करने से पूर्व चिकित्सीय सलाह अवश्य ले।  

सन्दर्भ :

  • अष्टांग संग्रह निदान अध्याय – 07
  • सुश्रुत संहिता निदान अध्याय – 02
  • अष्टांग संग्रह चिकित्सा अध्याय – 10
  • सुश्रुत संहिता चिकित्सा अध्याय – 06
  • भैषज्यरत्नावली अर्श रोग चिकित्सा प्रकरण
  • योग रत्नाकर अर्श रोग चिकित्सा 

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