फिशर में दूध के फायदे : fishar me doodh ke fayde

दूध हमारे शरीर के पोषण में अत्यंत उपयोगी द्रव्य है। जिसमे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम आदि तत्व पाए जाते है। परन्तु सभी प्रकार के गुदा रोग होने का मूल कारण, पाचन की गड़बड़ी को माना गया है। जिसमे पेट साफ न होना आदि प्रमुख है। जिसको दूर करने में दूध को आयुर्वेद ने गुणकारी माना है। यह मल के पतले होने पर दूध में नींबू मिलाकर पीने से फायदा करता है। जबकि मल के सूखे और कड़े होने पर, दूध के सेवन से मल ढीला कर बाहर निकालता है। इन्ही कारणों से सभी परिस्थियों में फिशर में दूध के फायदे है। 

फिशर में दूध के फायदे

फिशर गुदा में होने वाला जीर्ण रोग है। जो अक्सर बवासीर रोग होने के बाद दिखाई पड़ता है। जिसमे बवासीर से मिलते जुलते लक्षण पाए जाते है। जिसमे गुदा में सूजन और दरार प्रमुख रूप से देखा जाता है। जिसका मूल कारण गुद नली में, लम्बाई की ओर फैली शिराओ का फूल जाना है। जिसके कारण गुदा में सूजन पायी जाती है। जबकि दोषो के तीव्र हो जाने से, गुदा की शिराए कुपित होकर फट जाती है। जिससे गुदा में दरार बन जाती है। 

गुदा फिसर और बवासीर दोनों एक ही स्थान पर होने वाले रोग है। जिनको गुदा में पायी जाने वाली वलिया कहते है। जिसमे अनियमितता होने से, इनमे पायी जाने वाली वलिया आबद्ध होती है। जिसके कारण गुद चीर में पाए जाने वाले ज्यादातर लक्षण, खूनी बवासीर के लक्षण से मेल खाते है। जिसके कारण इसके उपचार में, खूनी बवासीर की तरह चिकित्सा होती है। जिसमे दूध सहित फिशर का घरेलू नुस्खा बहुत ही उपकारक है।

दूध में नींबू के फायदे 

अतिसार वाले रोगो में, दूध में नींबू मिलाकर पीने के फायदे है। फिर चाहे वह किसी भी रोग के कारण हुआ हो या स्वतंत्र रूप से। अधिक समय से हो रहे पतले दस्त को दूर करने में, दूध और नींबू का अनोखा प्रयोग है। जिसका इस्तेमाल करने से नवीन रोगो में चमत्कारिक रूप से फायदा होता है।  

पतले मल की समस्या को शांत करने वाला, यह घरेलू उपाय मल को बांध देता है। जिसके कारण इसका प्रयोग पेचिस और दस्त में भी किया जाता है। जिसके प्रयोग से पेट में फसी गैस भी निकल जाती है। अर्थात प्रतिकूलित वायु भी अनुकूल हो जाती है। जिससे गुदा रोगो में प्रवाहन न होने से आराम मिलता है।  

फिशर में दूध पीने के फायदे

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दूध में प्रोटीन, विटामिन डी, कैल्शियम जैसे जरूरी पोषक तत्व पाए जाते है। जिसके कारण फिशर में इनका उपयोग करने से फायदा होता है। इसके अलावा दूध में पाया जाने वाला, लैक्टोफेरिन और एंटीऑक्सीडेंट गुण गुदा रोगो में अत्यंत लाभकारी है। जिसके सेवन से शरीर को स्वस्थ बनाये रखने के अनुकूल, पोषक तत्वों की आपूर्ति होती है। 

फिसर में दूध का सेवन करने से दो प्रमुख लाभ होते है –

पतले मल की समस्या में कारगार : शरीर में पितादि दोषो के कुपित हो जाने से, पतले मल की समस्या होती है। जिसे दस्त या अतिसार के नाम से जाना जाता है। जिसमे शेष वात और कफ के मिलने से बार – बार पतले मल का वेग आया करता है। जिसमे बवासीर के घरेलू उपाय अत्यंत प्रभवी है। जिसमे दूध में नींबू के फायदे आदि की चर्चा है।  

कड़े और सूखे मल में लाभकारी : शरीर में जब वात भड़क जाता है। तब बादी बवासीर के लक्षण के सामान फिसर के लक्षण देखे जाते है। जो कफ और पित्त के साथ युग्मित होकर, मल को सुखाता है। जिससे मल सूखकर काला और कडा हो जाता है।   

गुदा में फिशर रोग होने पर, इनमे से कोई न कोई समस्या होती ही है। जिसको दूर करने में दूध सहायक है। अंतर केवल उपयोग करने की विधि का ही है। पतले मल की समस्या में कच्चे दूध का प्रयोग होता है। जबकि सूखे मल को निकालने के लिए पके हुए दूध का प्रयोग किया जाता है। यह फिशर में दूध के फायदे है। 

फिशर में दूध पीना चाहिए या नहीं 

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आजकल बाजार में दो तरह के दूध उपलब्ध है –

  1. प्राकृतिक दूध 
  2. और कृत्रिम दूध 

जिसमे आयुर्वेद आदि में जिस गुण की चर्चा की गई है। वह प्राकृतिक दूध है। जिसके निम्नलिखित गुण है –

  • अत्यंत न्यून मात्रा में कफकारक होने के साथ त्रिदोषज है।
  • स्वाद में मीठा और शरीर को ठंडा रखने वाला है।
  • मंदाग्नि को दूर करता है अर्थात अग्नि का दीपन करता है।
  • शरीर में जमे मल को बाहर निकालने में सहायक है।

जिसके कारण दूध में गुदा रोगो को दूर करने के लिए, सभी आवश्यक गुण पाए जाते है। जिसके कारण बवासीर आदि रोगो में भी दूध का प्रयोग किया जाता है। पंरतु जानकारी के आभाव में बवासीर में दूध पीना चाहिए या नहीं की बात भी होती है। 

जबकि कृत्रिम दूध में यह गुण नहीं पाए जाते। जिसके कारण गुदा से सम्बंधित रोगो में, प्राकृतिक दूध का ही सेवन करना चाहिए। न कि रसायन युक्त प्रसंस्कृत दूध का। इसलिए दूध दमेशा भारतीय नस्ल की गाय का ही उपयोगी है। हालाकिं सपने में गाय को भागते हुए देखना celleu.com में शुभ बताया गया है।

प्रसंस्कृत दूध में प्राकृतिक दूध के विपरीत गुण पाए जाते है। जिसके सेवन से गुदा और उदर विकारो के सहित, अन्य बहुत से रोगो के होने की आशंका पायी जाती है। इसके सेवन से फिसर में असहनीय दर्द ( fissure pain unbearable ) हो सकता है। 

उपसंहार :

गुदा विकारो का मूल स्थान गुद नलिका में पायी जाने वाली शिराए है। जिसमें मलत्याग से सम्बंधित दो परेशानिया होती है। एक में मल सूखकर कडा हो जाता है। जबकि दुसरे में मल अत्यंत गीला होकर, दस्त के रूप में निकलने लगता है। जिसमे दूध के इस्तेमाल से शांति आती है। जिसको फिशर में दूध के फायदे कहा जाता है। 

पतले मल की दशा में, कच्चे दूध में नींबू मिलाकर पीने से फायदा होता है। यह बार – बार मल त्याग के वेग और प्रवाहन आदि को रोकता है। जिससे गुदा में पायी जाने वाली शिराओ में खून नहीं जाता। जिसके कारण इसमें सूजन नहीं होती। जबकि मल सूखने पर दूध में, अरंडी के तेल की कुछ बूंदो को मिलाकर पिया जाता है। जिससे गुदा पर सूजन होने पर भी, गुद नलिका की दीवारों पर किसी प्रकार की रगड़ नहीं लगती। जिससे गुदा पर घाव नहीं बनता और मल आसानी से बाहर आ जाता है।

ध्यान रहे : किसी भी रोग में दूध का सेवन करते समय, इसकी मात्रा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। ऐसा न होने पर फायदे के स्थान पर नुकसान भी हो सकता है। 

सन्दर्भ :

  • चरक संहिता चिकित्सा अध्याय – 14
  • सुश्रुत संहिता चिकित्सा अध्याय – 06
  • अष्टांग संग्रह चिकित्सा अध्याय – 10
  • अष्टांग ह्रदय चिकित्सा अध्याय – 08
  • भाव प्रकाश – दुग्ध वर्ग

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