अमूमन मिल्लेट्स का नाम लेते ही, हमारे मस्तिष्क में सबसे पहले बाजरे का ही नाम आता है। जोकि मोटे अन्नों में अपना एक विशेष स्थान रखता है। आज दुनियाभर में बाजरे का सेवन सबसे अधिक किया जाता है। इसलिए मोटे अनाजों में इसकी प्रसिद्धी अधिक है। हालाकिं मोटे अनाज के फायदे बहुत है। इसलिए आजकल आहार विशेषज्ञ, इन्हे आहार में शामिल करने की सिफारिस करते है।
मिलेट्स में कई तरह के अनाज आते है। जिनमे से कुछ के दाने गोल तो कुछ चपटे होते है। लेकिन अचम्भे वाली बात यह है कि मिलेट्स की श्रेणी में चना जैसी दालें भी आती है। जिससे लोगों को संदेह होता है कि आखिर मिलेट्स क्या है?
इसमें प्रोटीन और आयरन पाया जाता है। जिससे इसका सेवन करने से भरपूर ऊर्जा मिलने के साथ, खून की गड़बड़ी नहीं होने पाती। फिर इसमें मिथाईनीन और लाइसीन पाए जाने से, त्वचा के लिए सबसे जरूरी है। इसके साथ मिलेट्स में विटामिन डी और कैल्शियम का जबरजस्त कॉम्बिनेशन होता है। जिससे यह हमारे मस्तिष्क, हड्डियों और मांसपेशियों के लिए उपयोगी है।
मिलेट्स को आहार में शामिल करने के 7 कारण ऐसे है। जिसके कारण मिलेट्स को भोजन में स्थान देना आवश्यक है। जो न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए हितकारी है। बल्कि पर्यावरण के अनुकूल होने से भी हमें स्वस्थ बनाये रखते है।
मिलेट्स क्या है ( what are millets in hindi )
लोग मिल्लेट्स को अलग – अलग नाम से जानते है। जिसके हिंदी में मिलते जुलते शब्द कदन्न आदि है। जिसके लिए लोग बाग कदन्न क्या है की बात भी करते है। किन्तु अधिकांशतः कदन्न का अर्थ होता है, मोटे अनाज। जिन्हे लोग बाजरा आदि नामों से जानते है।
आमतौर पर मिलेट्स के दाने ( millet grain ) गोल और छोटे होते है। इसलिए ऐसे अनाज जिनके दाने छोटे होते है। उन्हें मिलेट्स का नाम दिया जाता है। जैसे – सांवा, कोदो, कुटकी, बाजरा आदि।
लेकिन व्यवहार में बड़े दानों के अन्न को भी, मिलेट कहा जाता है। जैसे – चना आदि। इसलिए लोगों में मोटे अनाज के नाम को लेकर विभ्रम बना रहता है।
मिलेट्स मीनिंग इन हिंदी ( millets meaning in hindi )
मिलेट्स अंग्रेजी भाषा का शब्द है। जिसका इस्तेमाल मोटे अनाजों के लिए किया जाता है। फिर चाहे वह छोटे दाने वाले हो या बड़े दाने वाले। जिससे मिलेट्स मीनिंग ( millets meaning ) को समझना आवश्यक है।
आमतौर पर मिलेट्स लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स ( low glycemic index ) रखने वाले अनाज होते है। जिन्हे हिन्ही वाले जानने के लिए millets in hindi के बात करते है।
मिलेट्स को आहार में शामिल करने के 5 कारण
आमतौर पर मिल्लेट्स में कार्बोहाइड्रेट और फाइबर का अनुपात संतुलित होता है। जिससे इनको खाने पर पचने के बाद खून में, ग्लूकोज छोड़ने की दर नियंत्रित रहती है। एक स्वस्थ मनुष्य के 5 लीटर खून में एक चम्मच चीनी ( 5 ग्राम ) की आवश्यकता होती है। लेकिन जब खून में शर्करा की मात्रा बहुत बढ़ जाती है। तब हमारा खून गाढ़ा हो जाता है।
जिससे खून हमारे शरीर में सुचारु रूप से अपना काम नहीं कर पाता। क्योकि खून का प्रमुख काम ह्रदय से आक्सीजन को ले जाना और कार्बन डाई ऑक्साइड को ले आना। लेकिन खून जब गाढ़ा हो जाता है, तब भारी हो जाता है। जिससे कार्बन डाई ऑक्साइड नीचे बैठ जाता है। जिसके कारण हमारे शरीर में टॉक्सिन के रूप में गंदगी जमा होने लगती है। जो बीमारी होने का सबसे बड़ा कारण है। जिससे बचने के लिए मिलेट खाना लाभकारी है।
जबकि गेहू और चावल भी एक तरह के मिलेट है। लेकिन ये हाई ग्लेसिमिक इंडेक्स ( high glycemic index ) रखने वाले है। जिसके कारण इनका सेवन करने से, हमारी रक्त शर्करा बहुत तेजी से बढ़ती है। जिससे हमारे भीतर इन्सुलिन स्राव आदि में कमी आने से, शुगर ( मधुमेह ) जैसे रोगों के होने का ख़तरा बढ़ जाता है। जिसमे मजबूरी वश मोटे अनाज वाला भोजन ( millet food ) अर्थात लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाला भोजन करना पड़ता है। जबकि मिल्लेट्स खाना आवश्यक होने के 5 कारण इस प्रकार है –
उत्पादन में बहुत कम पानी की खपत करता है
मोटे अनाजों को उपजाने में बहुत ही कम पानी की आवश्यकता पड़ती है। जिसके कारण इसे किसी भी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। फिर चाहे वह पर्वतीय क्षेत्र हो अथवा मरुस्थली।
इतना ही नहीं कुछ मिलेट तो ऐसे है। जो पानी की अधिकता और पानी के अभाव में भी, अच्छा उत्पादन देते है। जैसे सांवा आदि।
पूरी तरह से जैविक है
मिलेट की खेती में अक्सर किसी तरह के कीटनाशक और जंतु नाशक की आवश्यकता नहीं होती। जिसके कारण यह पूरी तरह से जैविक होते है। यदि आवश्यकता हो भी तो इसमें खाद के रूप में, देशी गोबर का उपयोग किया जाता है। जिससे हमें जैविक मिलेट ( organic millet ) खाने को मिलते है।
जबकि कृत्रिम खाद के द्वारा उत्पादित अनाजों में, इनके पौधों द्वारा खाद में पाए जाने वाले रसायन पाए जाते है। जो हमारे शरीर के लिए हानिकारक होते है।
कम लागत में उगता है
आमतौर पर खेती की लागत जुताई, सिंचाई, खाद और बीज आदि पर निर्भर करती है। जबकि मिलेट में केवल और केवल जुताई की आवश्यकता पड़ती है। जिसमे न तो कीट और जंतु नाशक की आवश्यकता पड़ती है। और न किसी तरह के कृत्रिम खाद आदि की। जिससे इनको उपजाने में बाहर कम लागत आती है। जिससे इनका उत्पादन किसान आसानी से कर सकते है।
इतना सब कुछ होने के बाद, प्रतिवर्ष पैदा होने वाले बीज की बुआई करने से इसकी पैदावार बढ़ती जाती है। जो शंकरीकृत ( जेनेटकली मोडिफाइड ) बीजो में नहीं होता है। बल्कि ऐसे बीज एक बार बोन के बाद दुबारा उगते ही नहीं। इसलिए हर बार इन्हे बोन के लिए बाजार से बीज खरीदना पड़ता है।
आसानी से पचता है
आयुर्वेद में कदन्न को पचने में लघु किन्तु रुक्ष गुण वाला बताया गया है। जिससे यह बहुत ही जल्दी और आसानी से पचता है। लेकिन रुक्षता को दूर करने के लिए इनका सेवन घी के साथ अत्यंत लाभदायी है।
इसमें एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है। जो हमारे शरीर में पाए जाने वाले, फ्री रेडिकल के प्रभाव को कम करता है। जिससे हमारे भीतर जल्दी बुढ़ापा नहीं आता।
ग्लूटेम मुक्त है
ग्लूटेन गेहू में पाया जाने वाला ऐसा तत्व है। जो पानी के साथ मिलकर खिंचाव या लचीलापन पैदा करता है। जिसको ग्लूटेन असहिष्णुता वाले लोग नहीं पचा पाते। जिनको सीलिएक रोग से पीड़ित माना गया है। ऐसे लोगों के लिए मिलेट्स एक अच्छा विकल्प है। जिसके लिए इन्हे millets in hindi को जानना आवश्यक है।
पोषण से भरपूर होने पर भी कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स रखता है
मोटा अनाज प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, खनिज और फाइबर से भरपूर होता है। जिसका सेवन करने से हमें ऊर्जा के साथ आनुपातिक मात्रा में पोषण प्राप्त होता है। जिससे हमारे भीतर अधिक समय तक, जीवनी शक्ति बनी रहती है।
मिलेट्स में फाइबर अधिक पाए जाने से, लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स पाया जाता है। जिसकी चर्चा ऊपर की गई है। जिसके कारण हमारी रक्त शर्करा के स्तर में कोई गड़बड़ी नहीं आने पाती। इस कारण शुगर बढ़ने का कोई खतरा नहीं होता।
प्रदूषण मुक्त होता है
आज के समय में प्रदूषण बहुत बड़ी समस्या है। जिससे निपटने का एकमात्र उपाय, प्रदूषण के कारण को पनपने से रोका जाना है। जो एकल नहीं अपितु सामूहिक प्रयास से ही पूरा किया जा सकता है। लेकिन आजकल खेती ट्रैक्टर आदि से की जाती है। जिसमे ईंधन के रूप में डीजल आदि का प्रयोग होता है। जिसके दहन में धुँआ निकलने से ध्वनि और वायु प्रदूषण होता है।
जबकि खेतों में डाला जाने वाला कीट नाशक और जंतु नाशक, हवा में विसरित होकर हवा को दूषित करते है। जिसका हानिकारक प्रभाव उलट – पलट कर, हमारे ऊपर ही पड़ता है। जबकि मिलेट को उत्पादित करने में, किसी भी तरह के हानिकारक उपक्रमों की आवश्यकता नहीं पड़ती। जिससे मिलेट किसी भी तरह का कोई प्रदूषण नहीं करते। अंत में रह गई बात पराली जलाने आदि की तो इसमें इसकी जरूरत ही नहीं पड़ती। यह खेत में दाल देने से बहुत जल्दी सड़ जाते है।
आजकल मिलेट्स को इतना महत्त्व क्यों दिया जा रहा है?
आज के समय में सबसे अधिक रोग खून में शर्करा की गड़बड़ी से हो रहे है। जबकि मिलेट लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले अनाज होते है। जिसमे फाइबर की उच्च मात्रा पाई जाती है। जो अनाज के दानो में परत दर परत पाई जाती है। जिससे इन अनाजों का पाचन एकाएक न होकर, धीरे – धीरे होता है। जिसका प्रयोग हमारे शरीर में नियमित रूप से होता रहता है। जिससे हमारी रक्त शर्करा का स्तर बढ़ने का खतरा नहीं होता।
यह सभी विशेषताए मिलेट्स में पायी जाती है। जिसके कारण आजकल चारों ओर से मिलेट के सेवन की बात की जा रही है। यह सभी प्रकार के लाइफ स्टाइल डीजीज में लाभदायक है। फिर चाहे वह सिरोसिस हो, मधुमेह हो अथवा कैंसर जैसा भीषण रोग क्यों न हो?
हिंदी में मिलेट के नाम ( millet names in hindi )
भारत आदि देशों में मिलेट की किस्मे ( millet varieties ) बहुत है। जिससे कुछ लोग मिलेट्स को पहचानने में भूल कर बैठते है। जिसके लिए millet example की बात करते है। जो इस प्रकार है –
- सांवा
- कंगनी
- हरी कंगनी
- कोदो
- कुटकी
- ज्वार
- बाजरा
- मक्का
- चना, आदि।
उपसंहार :
भारत के प्रति दुनियाभर में अफवाह फैलाई गई की भारत में भुखमरी है। लोग घास फूस खाकर गुजारा करते है। लेकिन आयुर्वेद में शाली, व्रीहि, शूक, शिम्बी और क्षुद्र धान्यो के गुणों आदि का वर्णन किया गया है। जिसकी प्रशस्त परम्परा आज भी चल रही है। जिन्हे आजकल मिलेट्स कहा जा रहता है। जिसको जानने के लिए मिलेट्स इन हिन्दी कहा जाता है। जो और कुछ नहीं बल्कि मोटा अनाज है।
जिस देश में धान्यों के सेवन का इतना विस्तार से वर्णन हो। उस देश के लोग घास का सेवन करेंगे, तो उनके गुणों को जानकर ही करेंगे न कि अनजाने अथवा मजबूरी में। फिर यह बात कहना कहाँ तक कहना सही है? लेकिन बीमारी से बचकर स्वस्थ रहने के लिए न कि अन्यों की तरह बीमार होने के लिए। इसलिए वास्तव में यह हमारे इतिहास के साथ खिलवाड़ किया गया है।
आपने सुना होगा की पहले लोग खाने के लिए मरते थे। परन्तु आजकल लोग खा कर मर रहे है। परिणाम तो दोनों से एक तरह का ही प्राप्त हो रहा है। फिर काहे का विकास और काहे की तकनीकी। ऐसे तकनीकी विकास का क्या लाभ जो हमारे पतन में हेतु है।
सन्दर्भ :
- चरक संहिता सूत्रस्थान अध्याय – 27
- सुश्रुत संहिता सूत्र स्थान अध्याय – 46
- भाव प्रकाश निघण्टु धान्यवर्गाः
- अष्टांग ह्रदय सूत्र स्थान अध्याय – 06
- अष्टांग संग्रह सूत्र अध्याय – ०७, 12
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