शहरों में रहने वाले लोगों की आयु कम क्यों? Why do people living in cities have shorter life spans?

आज दुनिया भर में शहरों का बोलबाला है। फिर चाहे वह कम जनसंख्या वाला देश हो या अधिक जनसंख्या वाला।आमतौर पर शहरों में रहने वाले लोग अपने को पढ़ा – लिखा और सभ्य समझते है। जिसका वह इंटरनेट और मोबाइल आदि के माध्यम से प्रचार और प्रसार भी करते है। जिसके कारण अधिक से अधिक लोगो को शहर अपनी ओर लुभाने लगता है। परन्तु सवाल यह उठता है कि आखिर शहरों में रहने वाले लोगों की आयु कम क्यों?

शहरों में रहने वाले लोगों की आयु कम क्यों?

आमतौर पर शहरों में तकनीकी के नाम पर, सुख और सुविधा को बढ़ावा दिया जाता है। जिसकी दीवानगी में लोग अधिक पैसे खर्च करके शहरों में इकठ्ठा होने लगते है। जिससे बहुत ही सीमित स्थान पर लोगों का घनत्व बढ़ जाता है। और अंत में इन्हे बहु मंजिला इमारत में रहना पड़ता है। जहाँ बने रहने के लिए एक ओर पैसा कमाना पड़ता है और दूसरी ओर इसे खर्च भी करना पड़ता है। जिससे शहर में रहने वालों लोगों की चिंता बढ़ती ही जाती है।    

सामान्य तौर पर यह बाते हमें पता तब लगती है। जब तक हम स्वयं आकर शहर में रहने नहीं लगते। पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। जिससे अपने आप को उस स्थान पर बनाये रखने के लिए अधिक मशक्क्त करनी पड़ती है। जिससे हमारे भीतर तनाव बढ़ने लगता है। जिसका बुरा असर हमारे आपके स्वास्थ्य पर पड़ता है। फिर चाहे वह मानसिक हो अथवा शारीरिक। फिर भी अक्सर हमारा ध्यान नहीं जाता कि शहर में रहने वाले लोगों की उम्र कम क्यों होती है?  

गांव से लोग शहर में क्यों आते हैं?

जबकि शहरों में परिवार में लोग काम होते है। जिससे उनकी देखभाल पर अधिक पैसा खर्च होता है। मौसम के उतार – चढाव के अनुरूप भोजन, आवास और वस्त्र आदि उपलब्ध होते है। फिर भी शहरों में रहने वाले लोगों की आयु कम क्यों?

एक बड़ी और महत्वपूर्ण बात कि शहरवासी परिश्रम भी गाँव की तुलना में कम ही करते है। जबकि भोजन बढ़िया – बढ़िया करते है। न कि गाँव की तरह रखा – सूखा। फिर तो शहर वालों का जीवन गाँव वालों से अधिक होना ही चाहिए। लेकिन फिर भी शहरों में रहने वाले लोगों की आयु अमूमन कम ही होती है।   

अमूमन लोगो के गांव से शहर आने की निम्नलिखित वजहें होती है –

  1. अच्छा रोजगार
  2. अच्छी शिक्षा 
  3. बेहतर स्वास्थ्य सुविधाए
  4. आधुनिक सुविधा युक्त घर
  5. स्वादिष्ट और पोषण युक्त भोजन, आदि।

माना कि शहरों में चारों ओर चाक – चौबंद व्यवस्था होती है। जिसके प्रभाव में आकर लोग शहरों की ओर रूख करते है। परन्तु फिर भी सब कुछ अच्छा होने के बावजूद, शहरों में रहने वाले लोगों की आयु कम क्यों?

किन्तु देशी – विदेशी समाचार पत्रों के सम्पादकों की ओर से, नित बढ़ते प्रदूषण और खानपान आदि को लेकर सचेत रहने की सलाह दी जाती है। जिसके लिए अनेको प्रकार की संस्थाए अपना – अपना काम करती है। फिर भी गाँव की अपेक्षा शहरों में रहने वालों का जीवन कम क्यों?  

शहर में रहने के फायदे

शहर में रहने के फायदे

आमतौर पर शहरों को इस तरह से बसाया जाता है कि कम स्थान पर अधिक लोग रह सके। जिससे शहर में रहने वाले लोगों का घनत्व अधिक हो जाता है। जिससे शहर ( सिटी ) में रहने के निम्नलिखित फायदे है –

  1. शहरों में रहने के लिए बहु मंजिला इमारत आदि का निर्माण किया जाता है। इसके साथ यहाँ रहने वाले लोगों की सुरक्षा आदि का पूरा ध्यान भी रखा जाता है।
  2. शहरों में लोगों के लिए बेहतर आधुनिक शिक्षा की व्यवस्था होती है। जिसमे तकनीकी और गैर तकनीकी दोनों तरह के प्रशिक्षण शामिल है।  
  3. खाने – पीने के लिए शॉपिंग माल, रेस्टोरेंट और होटल आदि बनाये जाते है। जिससे शहरों में रहने वाले वाले लोगों के पास रहने के लिए खाने – पीने के विविध विकल्प मौजूद होते है। इसके साथ पर्यटन आदि को भी बढ़ावा मिलता है।
  4. यातायात के बढ़िया और उपयुक्त साधन उपलब्ध होते है। जिसकी मदद से बहुत ही कम समय में अधिक दूरी तय की जा सकती है।  
  5. चिकित्सा के लिए अत्याधुनिक सुविधा से युक्त अस्पताल होते है। जिसमे अनेकों तरह की बीमारियों का विशेषज्ञों द्वारा इलाज किया जाता है।   
  6. इनसे शहरों में पैदा होता है – व्यापार और रोजगार।

आजकल ऐसा माना जाता है कि शहर में सुख – सुविधा की कोई कमी नहीं है। पर इतना सब कुछ होने पर भी आखिर शहरों में रहने वाले लोगों की आयु कम क्यों?

शहरों में रहने से होने वाले नुकसान

अक्सर आपने सूना होगा कि शहर में रहने वाले लोग कम समय तक जीते है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा कि आखिर शहर में रहने वाले लोग क्यों कम जीते है?

शायद नहीं, क्योकि हमें इतनी फुर्सत कहाँ कि हम इन बातों पर ध्यान भी दे पाए। हम तो रोजमर्रा की भागम – भाग में फसे रहते है। जिसकी आड़ में व्यपारी व्यापार करते है। जिसको अधिकांश लोग समझ ही नहीं पाते। पर कुछ लोग समझकर भी नजरअंदाज कर देते है।      

लेकिन जब हम पड़ताल करते है कि शहरों में रहने वाले लोगों की आयु कम क्यों? तो आमतौर पर शहरों में रहने से हमें बहुत से नुकसान उठाने पड़ते है। जैसे –

प्रदूषण

प्रदूषण

भवन – सड़क आदि के निर्माण के साथ शहर बसाया जाता है। जिसमे अनेको तरह की मशीनरी आदि का प्रयोग किया जाता है। जिससे उपजता है ध्वनि, वायु एवं जल के सहित अन्य प्रदूषण।

यह अधिक गंभीर तब हो जाता है। जब अधिक संख्या में लोग एक ही स्थान पर एक साथ रहने लगते है। जिसमे मुख्य रूप से शामिल है – ऊर्जा एवं खाद्य जरूरतें। जिनको पूरा करने में प्रदूषण स्वाभाविक रूप से होता ही है। फिर चाहे वह नया शहर हो या पुराना।

आधुनिक सुविधा से युक्त घरों में सुविधा के नाम पर, उद्योगों में निर्मित वस्तुओं का उपभोग किया जाता है। जिससे इनको बनाते समय और उपयोग के बाद भी प्रदूषण होता ही है। जिसका नकारात्मक प्रभाव रोग आदि के रूप में हमारे ऊपर पड़ता ही है। जिसके कारण शहरों में रहने वाले लोगों की आयु कम होना लाजिमी है। 

आज का अधिकांश शहरी व्यक्ति प्रदूषण से परिचित है। फिर भी इसके उपचार के लिए हमारे पास कोई रास्ता नहीं है। जब तक कि हम शहर छोड़ न दे। परन्तु रोजगार आदि का क्या। 

अधिक धन व्यय होना

शहरों में रहने के लिए खर्च अधिक आता है। जिससे अधिक और कम धन कमाने वाले व्यक्तियों की अलग – अलग श्रेणियाँ बन जाती है। जिसको मिटाने के लिए धन कमाने की प्रतियोगिता शुरू हो जाती है। इस कारण कही न कही हमारे मन में द्वेष – विद्वेष पलने लगता है। जिसका प्रतिफलन हमें ईर्ष्या आदि के रूप में दिखाई पड़ता है।   

यह मन में होने वाला वह रोग है। जिसका उपचार दवाइयों से नहीं। बल्कि विचारधारा में परिवर्तन ला कर ही संभव है। जो शहरों में हो पाना कठिन है। जिसको न जानने वाले लोग पूछ बैठते है कि शहरों में रहने वाले लोगों की आयु कम क्यों?

अकेलापन

अकेलापन

 

शहरों में चलन है कि पैसे के बल पर स्वास्थ्य और सुख को खरीदा जा सकता है। जोकि केवल और केवल अहंकार मात्र है। जो शहरवासियों में कूट – कूट कर भरा होता है। जिसका पता तब चलता है। जब हम सबसे कटकर अलग हो चुके होते है।

यही कारण है कि शहरवासी रहते तो एक ही जगह पर है, पर अलग – अलग। ऐसा होने पर वह अपनी मानवीय संवेदनाए एक दुसरे से साझा नहीं कर पाते। अंततः शिकार हो जाते है अकेलेपन जैसे मानसिक रोगो के।   

सुरक्षा

अकेलेपन से भय उत्पन्न होता है। जो लगभग हर शहरवासी में देखने को मिलता है। आमतौर पर असुरक्षा अपराध को जन्म देती है। जिससे शहरों में समय – समय पर तमाम तरह की अमानवीय घटनाए होती रहती है। 

जिसके मूल में छिपा होता है – अन्याय। जिसकों अक्सर पैसों के बल पर छिपा लिया जाता है। लेकिन इसका विपरीत प्रभाव हमारे भीतर दिखाई पड़ता है। जिसके कारण शहरों में रहने वाले लोगों की आयु कम हो सकती है।

मानसिक तनाव

शहरो में रहना बहुत खर्चीला है। जिसके कारण शहर में केवल सीमित लोगो को ही रख सकते है। जिसके कारण शहर में वही लोग रहते है। जो कुछ न कुछ कमाते हो अथवा कमाने वालों की मदद करते हो

ऐसे में पनपता है दबाव। जो न केवल हमारे दिमाग ( मन ) पर पड़ता है, बल्कि शरीर पर भी अपना असर दिखाता है। आमतौर पर मन और शरीर दोनों एक दुसरे के समानुपाती है।

इस कारण मन के बीमार होने की दशा में शरीर रुग्ण हो ही जाता है। और शरीर में रोग होने पर मन दुखी हो जाता है। सामान्य रूप से यह वह समस्या है। जिससे हर शहरवासी पीड़ित है। पर करे तो क्या? इस कारण कहाँ जाता है कि रहने की जगह पर मनुष्य की आयु निर्भर करती है। 

पोषण की अनुपलब्धता

शहरों में महीनों बासी खाना खाने का चलन है। जिसको तरो – ताजा बनाये रखने के लिए कृत्रिम रसायन आदि का प्रयोग किया जाता है। ऐसे भोजन में पोषण के नाम पर केवल अतिरिक्त शर्करा ही प्राप्त होती है। जिससे शहरों में रहने वाले लोगों की आयु स्वतः कम होने लगती है। हालाकिं पोषण प्राप्त करने के लिए मौसमी फल और सब्जियां खाने के फायदे है। 

आज प्लास्टिक की पहुंच हमारे भोजन तक है। क्योकि आज रेस्टोरेंट और होटल ही नहीं, बल्कि हमारे घरों में भी प्लास्टिक के दोनों एवं बर्तनों का उपयोग होने लगा है। जब प्लास्टिक में गर्म खाना डाला जाता है। तब प्लास्टिक से हमारे खाने में लगभग 3200 तरह के रसायन मिल जाते है।

जिनको खाने से जीर्ण कब्ज, मधुमेह, ह्रदय रोग ही नहीं अपितु कैंसर जैसा महारोग हो सकता है। परन्तु इन बातों से अनजान लोग आज भी सवाल उठाते है कि आखिर शहरों में रहने वाले लोगों की आयु कम क्यों?    

दिनचर्या की गड़बड़ी   

शहरों में रहने वाले लोगों के पास न सोने का समय है और न खाने का। जिसमे सबसे बड़ा योगदान बिजली आदि का है। जिससे आजकल दिन और रात में कोई अंतर ही नहीं रह गया है। 

इसके चलते शहरों में दिन – रात काम होने लगा है। लेकिन इसका दुष्प्रभाव हमारे स्वास्थ पर पड़ने लगा है। इस कारण शहर में रहने वाले लोगों की उम्र में कमी देखी जाने लगी है। जिसको सही करने के लिए सुबह जल्दी उठने की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन सुबह जल्दी कैसे उठे? 

श्रम न करना

हम मनुष्यों को स्वस्थ रहने के लिए गति करना आवश्यक है। जिसके लिए पर्याप्त परिश्रम की आवश्यकता पड़ती है। जोकि शहरों में नहीं हो पाता। जिसके कारण शहर में रहने वाले लोगों को बीमारिया लगने का ख़तरा अधिक होता है। 

पहनावा 

पहनावा 

हमें वही वस्त्र पहनने चाहिए, जिसमे तीन विशेषताए हो –

  1. शील को सुरक्षित करने वाले हो : हर महिला और पुरुष में कुछ विशेष अंग पाए जाते है। जो प्रजनन में सहयोगी होने के साथ कामुकता को बढ़ाते है। जिनको छिपाकर रखना अत्यंत आवश्यक है। ताकि इन अंगों पर किसी तरह का कोई दूषण न हो।    
  2. स्वास्थ्य में बाधक न हो : आज हम जो भी कपडे पहनते है। उसमे पोलिस्टर, रियान, सिफॉन आदि के नाम पर प्लास्टिक ही होता है। जिनको पहनने से सर्दियों के दिनों में अधिक ठण्ड लगती है। और गर्मियों के दिनों अधिक गर्मी लगती है। इस कारण यह हमारी त्वचा के लिए विघातक है। जिससे चमड़ी के रोग होने की संभावना सबसे अधिक होती है। वही जो कपड़ा कमर पर कसा होता है। वह पेट रोग को पैदा करता है। जिसका अनुभव पैंट पहनने वाले लोग करते ही है।  
  3. पहनने पर सुन्दर लगे : आजकल फैशन के नाम पर, ऐसे अटपटे कपडे बेचे जाते है। जो कामुकता को बढ़ाते और सुंदरता को छिपाते है। इतना ही नहीं इनको खरीदने के लिए अधिक पैसे भी खर्च करने पड़ते है।  

उपसंहार :

यह सब होने से हमें बीमारियों के लगने की संभावना बढ़ जाती है। जिसके कारण हमारी आयु स्वभावतः धीरे – धीरे कम होने लगती है। जिसका हमें पता तब चलता है। जब हम सब कुछ गवा चुके होते है। कहने का आशय किसी जीर्ण रोग का शिकार हो चुके होते है। 

आखिर यह सब किस लिए किया जाता है? आप को स्वस्थ, धनवान और सुखी रखने के लिए अथवा केवल व्यापार करने के लिए। खैर शहरों की जानबूझकर ऐसी व्यूह रचना की गई है। जिसमे फसने वाला बड़ी आसानी से फसा लिया जाता है। किन्तु फंसने के बाद इससे बाहर निकलना बहुत ही कठिन है। यह सब पूर्णतया सुनियोजित व्यापार है। जिस पर हमारा आपका कभी ध्यान ही नहीं जाता या यूं कहे कि ध्यान पहुंचने ही नहीं दिया जाता।

इतिहास गवाह है कि जब एक राजा पर दोनों ओर से हमला हो जाता है। तब उसका हारना निश्चित है। लेकिन शहर में रहने वाले लोगों पर तो अनेको ओर से हमला है। ऐसे में स्वस्थ रहना हथेली पर सरसों उगाने के सामान है। जब हम स्वस्थ रहेंगे नहीं तो हमारी आयु तो कम होगी ही। 

ध्यान रहे : इन लेखों का एकमात्र उद्देश्य जागरूकता फैलाना है। ताकि समय रहते आप अपना ध्यान रख सके।

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