आज दुनियाभर में अन्न के लिए गेहूं की खेती की जाती है। जिससे आज जितनी खपत गेहूँ की है। उतनी शायद ही किसी अन्न की होती होगी। परन्तु गेहूं में कार्बोहाइड्रेट यानी शर्करा ( sugar ) लगभग 70 – 75 % पायी जाती है। जबकि रेशा ( फाइबर ) लगभग 1 – 1.5% पाया जाता है। जिसके कारण यह मध्यम ग्लाइसेमिक इंडेक्स रखता है। आमतौर पर कार्ब्स / कार्बोहाइड्रेट ( carbs / carbohydrates ) शुगर रोगियों के लिए हानिकारक माना जाता है। इसलिए शुगर रोगियों में संशय बना रहता है कि शुगर में गेहूं खाना चाहिए या नहीं।
आयुर्वेद में गेहूं को धान्यों के शूक वर्ग में रखा गया है। हालांकि गेहुओं की कुछ किस्मों में शूक नहीं भी पाया जाता। जोकि गेहूं की उन्नत किस्मों में देखने को मिलता है। सामान्यतया गेहूं दो तरह का पाया जाता है। पहला कुछ कडा तो दूसरा कुछ मुलायम होता है। जबकि मूल रूप से गेहू के दाने सफेद एवं लाल आदि रंग के होते है। जिसमे खाने के लिए कडा और स्टार्च के लिए मुलायम गेहूं काम में लाया जाता है।
गेहूं में प्रोटीन 8 – 24%, स्नेह 1 – 2%, और राख 1.5 – 2% पायी जाती है। जिससे गेहूँ खाने से शुगर लेवल उतना नहीं बढ़ता। जितना कि चावल खाने से बढ़ता है। इसलिए शुगर रोगियों को जानना आवश्यक है कि शुगर में चावल खाना चाहिए या नहीं।
हालाकिं आयुर्वेद में गेहूँ के संस्कृत नामों की भी चर्चा है। जिसे गोधूम और सुमन आदि नामों का वर्णन है। जोकि मुख्य रूप से शूक धान्य वर्ग का ही हिस्सा है। जिनको बिना चले खाने पर विबंध ( constipation ) आदि रोगों में लाभकारी बताया गया है। परन्तु फिर भी मधुमेह रोगियों में संदेह बना रहता है कि मधुमेह में गेहूं खाना चाहिए या नहीं।
गेहूं के गुण
आयुर्वेद में गेहूं के निम्नलिखित गुण बताये गए है –
गेहूँ स्वाद में मधुर, शीतल, पचने में भारी, कफ पैदा करने वाला, वीर्य जनक, बल कारक, स्निग्ध, टूटी हड्डियों को जोड़ने वाला, सारक, जीवनी शक्ति को बढ़ाने वाला, रस – रक्तादि को बढ़ाने वाला, वर्ण को उत्तम करने वाला, व्रण के लिए हितकर, रुचिकारक, स्थिरता को करने वाला एवं वात और पित्त का नाशक होता है।
शुगर के लक्षण क्या है?
आमतौर पर मधु के सामान मीठा पेशाब और शरीर मधुर होने को, शुगर का मुख्य लक्षण माना गया है। लेकिन इसके साथ मधुमेह में अन्य लक्षण भी पाए जाते है। जैसे –
- बार – बार भूख और पेशाब लगना
- अचानक से वजन का बढ़ना या घटना
- मुँह का सूखना
- शरीर में कमजोरी का अनुभव होना
- आँखों से धुंधला दिखाई पढ़ना
- हाथों – पैरों में झुनझुनी होना
- घावों का बहुत देर से भरना
- त्वचा रूखी होना, आदि।
शुगर में गेहूं खाना चाहिए या नहीं ( sugar me gehu khana chahie ya nahi )
आज हमारे आस पास जितने भी शुगर रोगी है। सब के सब type-2 डायबिटीज वाले है। जिसमे हम भोजन तो बढ़िया – बढ़िया करते है। अर्थात साफ सुथरा पैकेट, डब्बा और सील बंद। लेकिन इसमें कमी यह होती है कि यह सब का सब कार्बोहाइड्रेट ( चीनी ) ही होता है। फिर चाहे वह गेहूं के रूप में हो या चावल आदि के रूप में।
हमारे शरीर में भोजन के पचने पर कार्बोहाइड्रेट बड़ी आसानी से ग्लूकोज ( glucose) आदि में बदल जाता है। जो आँतों के द्वारा अवशोषित होकर सीधे रक्त में मिल जाता है। परन्तु अभी भी कार्बोहाइड्रेट का पाचन नहीं होता अर्थात हमारी कोशिकाओं तक अभी भी ऊर्जा नहीं पहुँचती।
कोशिकाओं तक ऊर्जा पहुंचाने के लिए जरूरत होती है – इन्सुलिन की। जिसका निर्माण यकृत या अग्नाशय में होता है। जब तक पर्याप्त मात्रा में इन्सुलिन निकलती रहती है। तब तक शरीर में चीनी ( कार्बोहाइड्रेट ) का पाचन होता रहता है। क्योकि इन्सुलिन कोशिकाओं में ऊर्जा पहुंचाने का एक मात्र माध्यम है।
जिसकी कमी होने पर अतिरिक्त शर्करा का संचय हमारे रक्त में होने लगता है। जिसको हम शुगर या डायबिटीज कहते है। आजकल हम भोजन के रूप में गेहूं का सबसे अधिक सेवन करते है। ऐसे में सवाल उठता है कि शुगर में गेहूं खाना चाहिए या नहीं।
आमतौर पर गेहूं का रेट कम होने से, यह हमारे बजट में आ जाता है। लेकिन आजकल खेती आधुनिक रीति रिवाज से होने लगी है। इसलिए आजकल गेहूं में खरपतवार नाशक आदि का इस्तेमाल किया जाता है। जोकि पूर्णतया कृत्रिम और हानिकारक रसायन होते है। जिनको खाने पर कुछ न कुछ असर हमारे शरीर पर होता ही है।
शुगर रोगियों को गेहूं खाना चाहिए या नहीं ( sugar patient ko gehu khana chahie ya nahin )
जब बात शुगर को नियंत्रित या ठीक करने की आती है। तो इसके हमारे पास दो उपाय है –
- हम कार्बोहाइड्रेट का सेवन न करे : हम ऐसा नहीं कर सकते क्योकि कार्बोहाइड्रेट हमारे शरीर की मुख्य ऊर्जा स्रोतों में से एक है। जिसकी कमी होने पर अक्सर पुरुष एवं महिलाओं में low शुगर के लक्षण दिखाई पड़ने लगते है।
- हमारे शरीर में आनुपातिक रूप से इन्सुलिन बनती और निकलती रहे : यह सबसे सुरक्षित और उपयुक्त उपाय है। जिनके माध्यम से डायबिटीज पर नियंत्रण पाया जा सकता है। लेकिन इसके लिए कार्बोहाइड्रेट के साथ उचित मात्रा में फाइबर आदि लेने की आवश्यकता पड़ती है।
आजकल शुगर के लक्षण और इलाज में शुगर फ्री शुगर ( sugar free sugar ) को खाने की सलाह दी जाती है। जबकि इसके लिए हमें अपनी खाने – पीने की आदतों पर अंकुश लगाना आवश्यक है। परन्तु जब हमारे शरीर में षड रसों में से जिस रस की कमी होती है। हमारा मन उसी प्रकार के रस की मांग करने लगता है। जिस पर ध्यान न देने से भी बीमारी होने की संभावना बनी रहती है।
आमतौर गेहूं में पाया जाने वाला शर्करा उतना खतरनाक नहीं होता। यदि गेहूं का सेवन मौसमी और ताजी सब्जियों एवं फलों आदि के साथ किया जाय। लेकिन जिन लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होती। उनमे यह जानने की ललक बनी रहती है कि डायबिटीज में गेहूं खाना चाहिए या नहीं।
हालाकिं आजकल गेहूं की उन्नत किस्में बाजारों में उपलब्ध है। जिसमे कार्बोहाइड्रेट के साथ स्नेह ( gluten ) पाया जाता है। जो सीलिएक रोगियों के लिए बहुत ही हानिकारक है।
शुगर में गेहूं खाने के नुकसान
आयुर्वेद के अनुसार 20 प्रकार के प्रमेहों में, जिस मेह में मधु के सामान मूत्र होता है। उसे मधुमेह कहते है। जो आमतौर पर दो तरह का होता है –
- वायु के कुपित होने से धातुओं का क्षय होने से
- पितादि दोष के कारण मार्ग के अवरुद्ध ( बंद ) हो जाने से
गेहूं में आमतौर पर 1- 2 % स्नेह ( ग्लूटेन ) का पाया जाता है। जिसका इस्तेमाल आमतौर पर खाद्य सामाग्री को आकार देने के लिए किया जाता है। जिसको खाने पर अक्सर पाचन की समस्या हो जाया करती है। जो स्वाभाविक रूप से गेहूं में पाया जाता है।
फिर शुगर हो जाने पर शरीर कमजोर हो जाता है अर्थात आंते कमजोर हो जाया करती है। परन्तु जब हम गेहूं का इस्तेमाल शुगर हो जाने पर भी करते है। तब आंते बहुत ही तेजी से क्षतिग्रस्त होने लगती है। जिससे पाचन की समस्या लगातार बढ़ती चली जाती है।
फलस्वरूप अग्नाशय से उतनी इन्सुलिन नहीं निकल पाती। जितनी कि निकलनी चाहिए। फिर गेहूं में 70 -75% कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है। जबकि फाइबर 1.5% पाया जाता है। जिससे गेहूं आसानी से और जल्दी पच जाता है। जिसके कारण हमें जल्दी – जल्दी भूख लगने लगती है। जिससे हमारा शरीर इन्सुलिन प्रतिरोधी हो जाता है।
अर्थात बिना इन्सुलिन के शर्करा का प्रवेश कोशिकाओं में नहीं हो पाता। जिससे अतिरिक्त शर्करा हमारे खून में ही मिली रहती है। अतः हमारे शरीर का ब्लड शुगर लेवल सामान्य नहीं रह पाता। जिससे हम डायबिटीज या शुगर की बीमारी से ग्रसित हो जाते है।
निष्कर्ष :
आयुर्वेद में शुगर अथवा मधुमेह होने पर गेहूं न खाने की मनाही नहीं है। लेकिन लगतार और बार बार इसे खाने से शुगर होने की संभावना अवश्य पायी जाती है। इसलिए ऋतुनुकूल अलग – अलग धान्यों को अन्न रूप में खाना एक बेहतर विकल्प है। जो सभी आयुर्वेदज्ञ मनीषियों को भी मान्य है।
नया गेहू कफप्रद बताया गया है। इसलिए यदि गेहूं का उपभोग करना ही पड़े तो पुराने गेहूं का ही करे। गेहूं का आटा सामान्य रूप से आँतों में चिपका करता है। जिसको दूर करने के लिए गेहूं की रोटियों के साथ घी या रसेदार सब्जी का प्रयोग करना गुणकारी है।
यदि फिर भी गेहूं खाने से किसी प्रकार की समस्या हो रही हो तो दोपहर के खाने के बाद छाछ और रात्रि भोजन के बाद दूध का सेवन अवश्य करे।
ध्यान रहे : यह सभी विधि – निषेध type-2 डायबिटीज पर लागू होते है। न कि type-1 डायबिटीज पर। क्योकि type-1 डायबिटीज लाइलाज बीमारी है। जिसमे सावधानी और वैकल्पिक उपायों का आलंबन लेकर ही जिया जा सकता है।
उद्धरण :
- भाव प्रकाश धान्यवर्ग
- चरक सूत्र अध्याय -25
- चरक संहिता चिकित्सा अध्याय – 6
- माधव निदान अध्याय –
- सुश्रुत संहिता चिकित्सा अध्याय – 11
- अष्टांग संग्रह चिकित्सा अध्याय –
- अष्टांग हृदय चिकित्सा अध्याय – 12
- योगरत्नाकर उत्तरार्धगत प्रमेह और मेह चिकित्सा
- भैषज्य रत्नावली अध्याय – 38
FAQ
शुगर में गेहूं की रोटी खा सकते हैं क्या?
आमतौर पर शुगर रोगियों में पाचन की समस्या पायी जाती है। लेकिन जिन रोगियों में पाचन की कोई समस्या न हो। वह अतिरिक्त फाइबर जैसे सलाद, फल आदि का सेवन करते हुए गेहूं की रोटी का स्वाद ले सकते है। परन्तु गेहूं के आटे में किसी अन्य का आटा ( चना आदि ) मिलाकर नहीं खाना चाहिए।
गेहूं में शुगर की मात्रा कितनी होती है?
गेहूं में सबसे अधिक चीनी ( कार्बोहाइडेट ) पाया जाता है। जोकि उसके कुल वजन का लगभग 70 – 75% होता है।
गेहूं में कितना शुगर होता है?
गेहूं में उसके वजन का लगभग दो तिहाई शुगर होता है।
गेहूं में कितनी शुगर होती है?
आमतौर पर गेहूं और इसके आटे में लमसम 70% शुगर पायी जाती है।