मानवो में पाचन क्रिया कैसे सुधारे के महत्वपूर्ण उपाय

कायिक रोगोके जनन का मूल आयुर्वेद में आहार – विहार आदिकी विसंगति को माना गया है। आधुनिक जीवन शैली आयुर्वेद के विपरीत है। जिसके कारण पाचनशक्ति की समस्यासे बुजुर्ग ही नहीं युवावर्ग भी पीड़ित है। इसकारण हर किसीके मनमें एक प्रश्न बार बार उठता है कि पाचन क्रिया कैसे सुधारे? सामान्यतः इसको पाचन शक्ति कैसे बढ़ाएं के रूपमें भी देखा जाता है। शहरी जीवनपद्धति में पाचनक्रिया कमजोर होना आमतौर पर देखने को मिलती है। 

पाचन क्रिया कैसे सुधारे

जिसको दूर करनेके लिए पाचन शक्ति कैसे बढ़ाएं का ज्ञान हमारे लिए आपेक्षित है। पाचनशक्ति की सक्रियता पर ही स्वास्थ्य निर्भर है। इसकारण पाचन शक्ति कैसे बढ़ाये को चिकित्सीय दृष्टिसे जानना भी आवश्यक है। पाचनक्रिया की स्वाभाविक अनुकूलता कोही चिकित्सा शास्त्रोंमें स्वास्थ्यकी संज्ञा दी गई है। जिसको प्राप्त करनेके अनुकूलित परिवर्तन अपेक्षित है। जिसमे दिनचर्या, आहारद्रव्य, परिश्रम, सकारात्मक सोच आदिपर विशेष बल दिया गया है। आवश्यकता पड़नेपर औषधि आदि का भी विधान आयुर्वेदादी शास्त्रोंमें प्राप्त है।

जो सिद्धस्त आचार्य, वैज्ञ या चिकित्सक के माध्यमसे लेनेपर ही लाभकारी है। जबकि मनःकल्पित विधाका आलंबन लेकर लेना सर्वथा अनुपयुक्त है। किसीभी औषधिके उपयोगकी अपनी मर्यादा है। जिसको हम विधि और निषेधके नामसे भी जानते है। जिसका निर्धारण उसमे पाए जाने वाले गुणोंके आधारपर किया जाता है। बिना पाचनक्रिया को सुधारे स्वास्थ्य की कल्पना हीनहीं कीजा सकती। जिसका मूल कारण भोजनादिके पाचनोपरांत प्राप्त होने वाली ऊर्जा है। जिसके बलपर हमारा शरीर स्वाभाविक रूपसे अपने क्रियाकलापों का सम्पादनकर हमें स्वस्थ रखता है।

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क्या है पाचन क्रिया?

यंत्रादि में जिसप्रकार ईंधन ऊर्जा का श्रोत है ठीक उसीप्रकार जीवो ( मानव ) में भोजन। जिसका मुख्य कार्य शक्ति प्रदान करना है। जिसके लिए पाचनक्रिया का सम्पादन होता है। जो एकप्रकार की चरणबद्ध प्रक्रिया है। जिसमे अनेको प्रकारके अंग और प्रत्यंग का सामजस्य होता है। जिसका निगमन मस्तिष्क द्वारा किया जाता है। इसप्रक्रिया की बाधकता कोही पाचन क्रिया कमजोर होना कहा जाता है।

पाचन शक्ति, पाचन तंत्र और पाचन क्रिया तीनो को आमतौर पर समता की दृष्टि से देखा जाता है। परन्तु चिकित्सा शास्त्रों में तीनो को अलग अलग बताया गया है। जिनमे भेद न परिलक्षित होते हुए भी भेद है। जिस कारण चिकित्सा कर्म सम्पादन में लक्षणों पर जोर दिया जाता है। जो उपद्रव का स्थान बतलाते है। जिनमे विभेद कर विशेषज्ञ औषधि का चयन करते है। जिसके आधार पर किसी भी रोग और रोगी की चिकित्सा की जाती है। जिसमे अनेको प्रकार की विधि – निषेधों की प्राप्ति चिकित्सीय शास्त्रों के आधार पर होती है। जिसका पालन करने पर ही रोगी की रोग से निवृति और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।

मानवो सहित सभी जीवो में भोजन को पचाने के लिए स्वाभाविक रूप से एक तंत्र प्राप्त है। जिसे पाचन तंत्र के नाम से जाना जाता है। तंत्र शब्द से अभिप्राय अनेको अंगो के समूह को समझना चाहिए। जो मस्तिष्क द्वारा प्राप्त दिशानिर्देशों के अनुसार अपने कार्य को सम्पादित करते है। पाचन तंत्र में होने वाली क्रिया को पाचन क्रिया कहा जाता है। पाचन क्रिया की दक्षता को पाचन शक्ति कहा जाता है।  इस आधार पर पाचन क्रिया और पाचन शक्ति दोनों ही पाचन से सम्बंधित है। व्यावहारिक जगत में पाचन शक्ति और पाचन क्रिया को एक ही समझा जाता है। इसकारण पाचन क्रिया कैसे सुधारे में पाचन क्रिया को जानना आवश्यक है।

पानी की अनुकूल मात्रा भी पाचन क्रिया में सहायक है। जबकि चिकित्सा में कब्ज का रामबाण इलाज भी बताया गया है। जिसका जल्दी से जल्दी निवारण करना आवश्यक है। 

पाचन क्रिया कैसे होती है या पाचन क्रिया कैसे काम करती है?

मानवशरीर रचनाक्रिया विज्ञानके अनुसार पाचनक्रिया का आरम्भक मुखको माना गया है। जिसमे भोजनको चबानेकी क्रिया सम्पादित होती है। जिसके परिणामके रूप में दो प्रकारकी क्रियाए होती है। जिसमे पहली क्रियाके रूप में भोजनको छोटे छोटे टुकड़ोमें बाटा जाता है। जबकि दूसरी  क्रिया में दांतो द्वारा स्रावित होने वाले लारका समिश्रण भोज्य पदार्थ में किया जाता है। जो भोजनको रासायनिक रूपसे विघटित करनेके साथ साथ आहार नालके द्वारा आगे बढ़ानेमें चिकनाई भी प्रदान करता है। जिससे भोजन आहार नालसे होता हुआ जठरके अग्र भाग आमाशयमें आकर गिरता है। जिसमे आमाशय स्वयं अनेको प्रकारके रसका श्रावण करता है। जो भोजनको पचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

आमाशय में भोजनके विखंडित अणुओका सम्मिलन जब पाचक रसो से होता है। तो रासायनिक रूपसे पाचनकी क्रिया का आरम्भ होता है। जिसका मुख्य प्रयोजन भोजनके अणुओको विखंडित करना है। भोज्य परमाणुओके विखंडनकी क्रियाको ही पाचनक्रिया के नामसे भी जाना जाता है। जिसमे आमाशयके अतिरिक्त अन्य अंग जैसे प्लीहा, यकृत आदिके द्वाराभी अनेको प्रकारके पाचक रसोका श्रावण किया जाता है। विखंडनसे अभिप्राय गुरुताको लघुतामें परिवर्तित करनेसे है। जिसके लिए अम्लोंकी आवश्यकता होती है। इसलिए पाचनकी क्रियामें जितने भी पाचकरस स्रावित होते है। सब के सब अम्लही होते है। जो स्वभावसे जलन या दाह उत्पन्न करते है।

इसकारण जठर में श्रावित अम्लको भी पारिभाषिक रूपसे अग्नि माना जाता है। जिसे आयुर्वेदादी ग्रंथोमें जठराग्नि कहा जाता है। यहाँ की अग्नि का पर्याय अग्निकी दाहिका शक्तिके लक्षणसे है। जो सभी अम्लों में स्वाभाविक रूपसे पायी जाती है। इस प्रकार अग्नि और अम्लके लक्षण की समानता के आधारपर ही इसे अग्नि माना गया है। जिसका मूल कार्य मानव द्वारा भोजनके रूप में ग्रहण किये गए भोज्य पदार्थोके परमाणुओ को विखंडित करना है। जबतक यह क्रिया संतुलित रूपसे सम्पादित होती रहती है। तबतक पाचनशक्ति की निर्बाधता बनी रहती है। इनके अभावमें पाचन क्रिया को कैसे सुधारे यहएक गंभीर और प्रायोगिक प्रश्न है।

पाचन शक्ति कमजोर होने के लक्षण

मानव शरीर रचना क्रिया विज्ञान के अनुसार विचार करने पर, प्रत्येक व्यक्ति में समानता परिलक्षित है। जबकि देहप्रकृति के अनुसार विचार करने पर, सभी की शरीर रचना में भेद है। इस आधारपर कौन सा सिद्धांत सही है और कौन सा नहीं। इसमें भेदकर पाना भी कठिन है। जब विद्वानों की यह गति है तो सामान्य व्यक्तियों का कहना ही क्या? इसकारण इसप्रकार की विद्या को परम्परा प्राप्त आचार्य या गुरु से ग्रहण करने की आवश्यकता है। जिसको बोलचाल की भाषामें गुरु गम्य विद्या कहा जाता है। स्वाध्याय आदिके बलपर विरोधाभाषी सिद्धांतो में तालमेल बिठा पाना कठिन होता है। जबकि गुरुओ में विद्या की पूर्णता और अभ्यास के बलपर समन्वय स्थापित करनेकी विद्या ईशवरानुग्रह द्वारा परम्परा से उन्हें प्राप्त है।

उपरोक्त दोनों सिद्धांत में समन्वय बिठाने पर सभी का शरीर भिन्न भिन्न है। जिसके कारण उनको प्राप्त होने वाले रोग भी भिन्न भिन्न है। जिसके अनेको कारण है। इसलिए अलग अलग व्यक्तियों में पाचन क्रिया के लक्षणों में भी भिन्नता है। इसकारण सभी में पाचन क्रिया कैसे सुधारे भी एक जटिल समस्या है। पाचन क्रिया की विसंगति को पाचन क्रिया का कमजोर होना भी कहा जाता है। आमतौर पर पाचन क्रिया कमजोर होने के लक्षण इस प्रकार है –

  • कच्ची या खट्टी डकार आना
  • पेट में गैस बनना
  • खुलकर पेट साफ न होना
  • पेट भरा – भरा लगना 
  • मल का रंग परिवर्तित होना अथवा उसका कडा या सूखा होना
  • खुलकर भूख न लगना
  • पेट में मरोड़ या बिना मरोड़ के साथ दर्द होना ( पेट दर्द )
  • उबकाई और उल्टी होना
  • मुँह का सूख जाना आदि।

पाचन क्रिया में विसंगति आने का कारण

पाचन शक्ति कैसे सही करें पर विचार करे तो उसका एक ही उपाय है। रोग के हेतु या कारणों का समूल नाश करना। किसी भी चिकित्सा विशेषज्ञ का उद्देश्य रोगी का नाश नहीं, बल्कि रोग नाश ही होता है। जिसके उपाय के रूप में विसंगतियों को स्थान दिया गया है। जिसमे अनेको विधि – निषेधों को भी बतलाया गया है। जिसका विधिवत पालन करने पर, जीवन में स्वास्थ्य की उपलब्धि होती ही है। जबकि विसंगति की विद्यमानता होने पर, रोग की अनुगति स्वाभाविक रूप से होती है। आज भोग भोगने की लालसा से सभी लालायित है। जिसके लिए पाचन क्रिया कैसे सही करें को जानने इच्छा हर किसी के मन में है।

पाचन क्रिया कैसे सही रखें का विचार, कभी न कभी हम सभी के मन आता है। फिर चाहे वह गरीब हो या धनवान। अब प्रश्न यह उठता है की क्या विचार करने से कोई समस्या हल हो जाती है। या उसके लिए विचारो को व्यवहारिक धरातल पर उतारना पड़ता है। जिसके लिए अनेको प्रकार की कठिनाइयों का सामना करते हुए उन्हें पार करना होता है। इस लिए पाचन क्रिया कैसे सही होगा का विचार करना ही पर्याप्त नहीं है। उसको मूर्त रूप देकर व्यवहारिक धरातल पर भी उतारना होगा। जिसके लिए इन विसंगतियों को जानना और समझना होगा। जिससे समय रहते हम फैटी लीवर जैसी समस्याओ से बच सके।

दिनचर्या विसंगति

शहरीकरण और आधुनिकता का सर्वाधिक प्रभाव हम मानवो के जीवन में है। जिसके कारण दिनचर्या में विसंगति का आना स्वाभाविक है। जिसमे अनेको प्रकार की समस्या पायी जाती है। जिसमे आलस्य और प्रमाद को सर्वोपरि स्थान दिया जा सकता है। जिसके कारण दिनचर्या की विसंगति स्वाभाविक रूप से न चाहते हुए भी हो जाती है। आलस्य और प्रमाद को पालने से व्यक्ति का पतन होता है। जिसको वेदादि शास्त्रों से लेकर चिकित्सा शास्त्रों में स्वीकार किया गया है।

जिसके आधार पर शहरी जीवन को स्वास्थ्य के प्रतिकूल माना गया है। जबकि आधुनिक पाठ्यक्रमों में कुछ अलग ही बताया गया है। दिनचर्या का सीधा अभिप्राय काल (समय) से है। जिसमे सूर्य को मूल में रखा गया है। जिसके कारण प्रकाश की अनुकूलता वाले कार्यो का सम्पादन दिन में किया जाता था। जैसे पढाई – लिखाई, नौकरी – चाकरी, व्यापार आदि। जबकि इसके विपरीत प्रकाश की प्रतिकूलता वाले कार्यो का सम्पादन रात्रि में किया जाता था। जैसे शयन, विश्राम आदि। आज बिजली के आविष्कार ने दिन और रात की विभाजक रेखा ही बदल दी है।

जिसके दुष्प्रभाव के कारण अब दिन के कार्यो का क्रियान्वयन रात्रिमें और रात्रिके कार्यो का सम्पादन दिनमें किया जाने लगा है। इस प्रकार दिन और रात के विलोप के साथ साथ हमारे स्वास्थ्य का भी विलोप हो रहा है। जिनके कारण लीवर बढ़ना आदि समस्याए पनप रही है। जिसके लिए पाचन क्रिया कैसे सुधारे या पाचन क्रिया को कैसे सुधारें में दिनचर्या अनुपालन एक है।

आहार विसंगति

अन्य जीवो के सहित मानव भी आहार के रूप में भोजन को ग्रहण करता है। जिसके पचने के फलस्वरूप ही हमें ए टी पी के रूप में ऊर्जा प्राप्त होती है। जिसका उपयोग हम अपने कर्म सम्पादन में करते है। अनुकूल (देह प्रकृति और ऋतु) आहार को उपयुक्त विधा से लेने पर ही स्वास्थ्यप्रदायक है। न कि इसके विपरीत। इसलिए पाचन क्रिया को सही कैसे करें में आहार का महत्वपूर्ण योगदान है। जिसके लिए आहार की मीमांसा करने की आवश्यकता है।

परस्पर विरोधी आहार का सेवन करने पर ही रोग जन्म लेते है। फिर चाहे वह मानव हो या कोई और। जिनमे खांसी आदि है। जिसके उपचार के लिए खांसी का इलाज घरेलू उपयोगी है। सभी रोगो में खान – पान की गलतिया प्रायः होती है। जिसके चलते भोजन को रोग के प्रमुख हेतुओ में स्थान प्राप्त है।

भोजन और पानी को प्लास्टिक आदि में रखकर पकाना और सेवन करना

आजकल आधुनिकता और तकनीकी का मारा हुआ पूरा विश्व है। जिसमे प्लास्टिक का सर्वाधिक प्रयोग किया जा रहा है। बाजारवाद को वैश्विक स्तर पर ले जाने में प्लास्टिक का बहुत बड़ा योगदान है। आज खाने पीने, पहनने ओढ़ने से लेकर राकेट, कम्प्यूटर, एटम और मोबाईल तक में इसका प्रयोग किया जा रहा है। प्लास्टिक की थैलियों में सूखे और गीले दोनों के प्रकार पदार्थो का क्रय और विक्रय किया जा रहा है। जिसमे आज सभी प्रकार की खाद्य सामाग्रियो का समावेश है।

जिनका सर्वाधिक सेवन करने वाले हम मनुष्य है। आधुनिक विधा का आलंबन लेकर बाजार में बिना प्लास्टिक के कोई वस्तु पहुचायी ही नही जा सकती। लेकिन पानी को जब प्लास्टिक बोतल में भरकर रखा जाता है। तब प्लास्टिक के अतिसूक्ष्म कण ( जिन्हे नैनो पार्टिकिल कहा जाता है) घुलकर उस पानी में जाते है। जिससे पानी अम्लीय हो जाता है। जिसको विज्ञान की भाषा में असंरचनात्मक जल कहा जाता है। जो अवशोषण की क्रिया में छोटी आंतो में जाकर चिपक जाता है। जिससे अवशोषण की क्रिया में बाधा पहुँचती है। इसकारण पेट साफ न होने के लक्षण हमें दिखाई पड़ते है। 

वही जब गर्म खाद्य या पेय पदार्थ, जब प्लास्टिक की थैली एवं थाली में रखा जाता है। तब भी उपरोक्त क्रिया की ही पुनरावृत्ति होती है। जिससे पाचन क्रिया बाधित होती है। जिसके कारण असंतुलन स्थापित होता है, और हम बीमार पड़ जाते है। इस कारण पाचन शक्ति को बढ़ाने के लिए, प्लास्टिक का परित्याग अपेक्षित है।

परिश्रम का अभाव

शास्त्रों की दृष्टि में शहरी जीवन को कृत्रिम जीवन समझा जाता है। जहा रोग और भोग की पराकाष्ठा है। भोग भोगने की इच्छा के फलस्वरूप ही शहरो का जन्म होता है। जिसकी उत्कृष्ट अवस्था को ही स्मार्टसिटी आदि का नाम दिया गया है। जिसको अच्छी तकनीकी, परिश्रम न करना आदि की परिभाषाओ से गढा गया है। एक वाक्य में कहा जाय तो मौज मस्ती पूर्ण जीवन को ही शहर कहा जाता है। जहा न तो परिश्रम है और न ही स्वास्थ्य। चिकित्सा शास्त्रों में स्वास्थ्य और परिश्रम दोनों को एक दुसरे का पूरक माना गया है। जहा परिश्रम है वहा स्वास्थ्य होगा ही और जहा स्वास्थ्य है वहा परिश्रम की अनुगति सुनिश्चित है।

जब हम परिश्रम नहीं करते तो दो प्रकार की स्थितियां उत्पन्न होती है। पहली हमारे शरीर की मांसपेशिया, जोड़ आदि शिथिल पड़ जाते है। जिससे यह धीरे धीरे कमजोर होने लगते है। दूसरी अतिरिक्त शर्करा का पाचन करने के लिए कोई उपाय शेष नहीं रह जाता। तो यह शर्करा किसी न किसी रूप में शरीर में ही संग्रहित कर ली जाती है। जो परिश्रम के अभाव में, आगे चल कर किसी न किसी रोग को जन्म देती है। जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, उदर विकार आदि प्रमुख है। इस प्रकार पाचन क्रिया कैसे ठीक करें में यह सर्वाधिक ध्यान रखने वाली क्रियाओ में से एक है।

कृत्रिम विधा से ठन्डे पेय एवं खाद्य पदार्थो का सेवन

मानव शरीर में होने वाली पाचन क्रिया में ताप का महत्वपूर्ण योगदान है। कहने का आशय एक निश्चित ताप पर ही हमारे शरीर में भोजन पचता है। यह वह ताप होता है, जो हमारे शरीर का ताप है अर्थात 37 डिग्रीसेन्टीग्रेड। परन्तु जब हम इससे ठन्डे पदार्थ का सेवन करते है। तो रक्त परिसंचरण के माध्यम से ताप संतुलन की क्रिया सम्पादित होती है। जिसके लिए रक्त की आवश्यकता होती है। जिसकी पूर्ति शरीर में अन्य अंगो से पूरी की जाती है क्योकि मानव शरीर स्वचालित व्यवस्था पर आधारित है। जिसके परिणाम के रूप में अन्य अंगो पर भी इसका विपरीत प्रभाव होता है।

जब हम अत्यधिक ठन्डे पेय एवं खाद्य पदार्थोका सेवन करते है तो स्थिति पहले से भी विकट होती है। जो कही न कही पाचन की क्रिया में व्यवधान पहुँचाती है। इस कारण पाचन क्रिया कैसे मजबूत करें में कृत्रिम विधा से ठन्डे पेय और खाद्य पदार्थो का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से प्रतिरोधक क्षमता न्यून होती है। जिसके लिए गिलोय के फायदे जानने की आवश्यकता पड़ती है।

क्षमता से अधिक कार्य हाथ में लेना

आजकल अधिक धन कमाने के लालच में व्यक्ति अधिक कार्य को हाथ में ले लेता है। जो शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार का हो सकता है। इनको पूरा करने की समय की बाध्यता निर्धारित होती है। जिसके कारण वह दिन का कार्य रात्रि में और रात्रि का कार्य दिन में पूर्ण करता है। जिसमे रात्रि में जगना, समय की बाध्यता के कारण तनाव होना। जिसके परिणामस्वरूप शारीरिक परिश्रम में न्यूनता या समाप्ति देखने को प्राप्त होती है। जिससे अवसाद आदि रोगो को बढ़ावा मिलता है।

क्षमता से अधिक कार्य हाथ में लेने पर मस्तिष्क पर अतिरिक्त तनाव बनता है। जिसके कारण मानसिक असंतुलन पैदा होता है। असंतुलन को ही चिकित्सा शास्त्रों में रोग की संज्ञा दी गई है। जब बात मानसिक असंतुलन की हो तो मस्तिष्क को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है। मस्तिष्क का ही पूर्ण नियंत्रण हमारे शरीर पर होता है। इस कारण पाचन क्रिया कैसे सुधारे में भी यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मस्तिष्क जब तनाव ग्रस्त होता तो शरीर के अंग और प्रत्यंग में शिथिलता देखने को प्राप्त होती है। जिससे पाचन क्रिया की अनुकूलता पर विपरीत प्रभाव देखने को मिलता है।

जब बात आती है कि पाचन क्रिया कैसे सही करें? तो मानसिक और शारीरिक क्षमता से अधिक कार्य हाथ में न ले। यह ऐसी क्रिया है जिसका आकलन सामने वाला करने में समर्थ हो या न हो। परन्तु इसका अंदाजा अपना शरीर लगा लेता है। परन्तु लालच आदि का शिकार होने से, हम इसे समझ नहीं पाते।  

अवांछित भोज्य पदार्थो का सेवन

आधुनिक तकनीकी का प्रसार होने के कारण, खाद्य पदार्थो का निर्माण भी अब उद्योगों में होने लगा है। जिसमे अनेको प्रकार के कृत्रिम और हानिकारक रसायनो आदि का प्रयोग किया जाता है। इस कारण कारखानों में उत्पादित किसी भी पदार्थ को स्वास्थ्य का परिपोषक नहीं माना जा सकता। आजकल अवांछित भोज्य पदार्थो के रूप में जंक फ़ूड आदि है। बाजारवाद के विस्तार के कारण इनकी उपलब्धता भी है। जिसके कारण इनकी पहुंच आज हम सभी तक है। जंक फ़ूड के रूप में आज पिज्जा, बर्गर, चावमीन, स्नैक्स, चिप्स आदि है। जिनका निर्माण वैश्विक स्तर पर किया जाने लगा है। जिससे भोजन भी अब बाजार का विषय बन गया है।

यह सभी पदार्थ कृत्रिम है जबकि मानव शरीर जैविक पदार्थो के पाचन तक ही सीमित है। जिसके कारण इनका पाचन हमारे शरीर में नहीं हो पाता। जिस प्रकार यह ग्रहण किये जाते है ठीक उसी प्रकार या आंशिक पाचन यह शरीर द्वारा बाहर निष्कासित कर दिए जाते है। जिससे शरीर की ऊर्जा का व्यय होता है। और अनुकूल पोषक तत्व और ऊर्जा की प्राप्ति न होने पर शरीर कमजोर भी होता है।  इसलिए पाचन क्रिया कैसे सुधारे में इस प्रकार के खाद्य पदार्थो के सेवन का प्रतिषेध किया गया है। इसकारण पाचन शक्ति कैसे सही करें में कारखानों द्वारा उत्पादित वस्तुओ का सेवन न करना भी है।

मादक द्रव्यों का उपयोग करना

आजकल फैशन या आधुनिकता के नाम पर, अनेको प्रकार के नशीले  पदार्थो के सेवन का चलन है। जिसमे चाय, चॉकलेट से लेकर शराब या एल्कोहल को माना जा सकता है। सामान्यतः मानव मुख द्वारा ग्रहण किये गए पदार्थ का ही पेट में पाचन होता है। जबकि नशीले पदार्थो के सेवन के अन्य उपाय भी है। जिनको सूँघकर, त्वचा पर रगड़कर इत्यादि विधियों से भी लिया जाता है।

चाय और काफी दोनों ही देखने में एक जैसे है। इसकारण इनसे प्राप्त होने वाली विषाक्तता भी लगभग एक जैसी है। इसका सेवन करने पर शुक्र का क्षय, निद्रा से उपरामता और भूख में कमी होती है। जो किसी भी मानव को बीमार करने के लिए पर्याप्त है।

नशीले पदार्थ का यह गुण है कि पहले इसकी व्याप्ती होती है। तदुपरांत इसका पाचन होता है। जिसके कारण इसके पाचन में भी अधिक समय लगता है। जो पाचन की क्रिया में बाधा पहुंचाते है। इसकारण शराब, बीड़ी सिगरेट, अफीम, गाजे आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए। पाचन शक्ति कैसे बढ़ाए में इसका परित्याग अनिवार्य है। इसके विकल्प के रूप में गिलोय का सेवन किया जा सकता है। जिसके लिए उपयुक्त गिलोय सेवन विधि की जानकारी अपेक्षित है।

अधिक समय तक खड़े या बैठे रहना

आज का युग मशीनी युग है। जिसके कारण प्रत्येक कार्य अब मशीनों द्वारा ही किया जाता है। जिसका संचालन करने के लिए अधिक समय तक खड़े या बैठे रहना पड़ता है। जिससे पाचन की क्रिया में व्यवधान होता है। आजकल कार्यालयों और दफ्तरों में कम्प्यूटर आदि पर अधिक समय बिताना पड़ता है। जिससे अन्य शारीरिक रोगो के साथ साथ पाचन से सम्बंधित रोगो की भी अनुगति देखने को मिलती है। जिसके कारण पाचन तंत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। जब बात पाचन क्रिया कैसे सुधारे या पाचन शक्ति कैसे मजबूत करें तो उसके लिए इस प्रकार के उपाय से बचाना ही उपयोगी है।

पाचन शक्ति बढ़ाने का उपाय

स्वास्थ्य एक ऐसा विषय है। जो सभी के लिए सामान रूप से अनिवार्य है। जिसमे पाचन शक्ति का बहुत बड़ा योगदान है। इसलिए पाचन शक्ति की अनुकूलता को ही स्वास्थ्य और इसकी प्रतिकूलता को ही रोग कहा जा सकता है। पाचन क्रिया की अबाधित गति के संचालित रहने पर ही स्वास्थ्य का कल्पना को साकार किया जा सकता है। तब प्रश्न खड़ा होता है कि पाचन शक्ति कैसे मजबूत बनाएं या पाचन पाचन शक्ति कैसे बढ़ाएं? जिससे हमारा स्वास्थ्य बना रहे और हम अधिक समय के लिए कष्टरहित जीवन व्यतीत कर सके।

सभी प्रकार के योग और भोग को प्राप्त करने के लिए हमारा स्वस्थ होना आवश्यक है। जब हम अस्वस्थ है तो कैसा भोग और कैसा योग? सब व्यर्थ है। अस्वास्थ्यता की अवस्था में भोग आदि का प्रयोजन ही सिद्ध नहीं होता। बीमारी की अवस्था को भोग भोगना नहीं कहा जा सकता। इसलिए जब भी स्वास्थ्यकी बातकी जाती है तब प्रथम स्थान चिकित्सा शास्त्रोंके अनुसार पाचन क्रिया को दिया जाता है। जिसको पाचन क्रिया कैसे सुधारे या पाचन क्रिया कैसे बढ़ाये का नाम दिया जाता है।

सभी प्रकार के रोगो में प्रायः पाचन क्रिया कमजोर होना पाया जाता है। जिसको समाप्त करनेके लिए विशेषज्ञ सुनियोजित ढंगसे सिद्धांत का अनुपालन करते हुए पाचन शक्ति कैसे बनाएं का विचार करते है। जिसमे पाचन शक्ति कैसे बढ़ाये आदि भी सम्मिलित है। गिलोय त्रिदोष नाशक होती है। जिसका सेवन घनवटी के रूप में भी किया जाता है। जिसके लिए गिलोय घनवटी कब खाना चाहिए को जानना चाहिए।

दिनचर्या का विधिवत पालन करे

कर्म सम्पादन के लिए काल ( समय ) का सर्वाधिक महत्व है। जिसको चिकित्सीय ग्रंथो में दिनचर्या कहा गया है। जिसमे काल के अनुसार मानवो के क्रमबद्ध कर्म सम्पादन का विचार उनके स्वास्थ्य को लक्ष्य बनाकर किया गया है। जिसके आधार पर अनेको प्रकार के विधि – निषेधों का वर्णन किया गया है। जिसका एकमात्र उद्देश्य उपभोक्त को लाभान्वित करना और हानि से बचाना है। इस आधार पर कौन है जो लाभ से लाभान्वित और हानि से बचना नहीं चाहता। अर्थात हर कोई ऐसी कामना रखता है। जिसकी पूर्ति के लिए दिनचर्या का विधिवत पालन करने के लिए हम सभी बाध्य है।

दिनचर्या और पाचन क्रिया दोनों एक दूसरे के पूरक है। दिनचर्या के अनुसार आहार मीमांसा का पालन करते हुए किया गया भोजन ही हमारे शरीर में पूर्णतः पचता है। इस आधार पर पाचन शक्ति कैसे बढ़ती है तो दिनचर्या पालन उसमे से एक है। जिसका अनुपालन करने पर स्वास्थ्य की सिद्धी सुनिश्चित है। अबदूसरा प्रश्न यहाँ यह खड़ा होता है कि पाचन क्रिया कैसे सुधारे तो उसके लिएभी दिनचर्याकी नितांत आवश्यकता है।

आहार विसंगति को दूर करे

आधुनिक तकनीक का सीधा प्रभाव हम जीवो के आहार पर पड़ा है। जिसने भोजन को विष बना दिया है। उदहारण के लिए शङ्करीकरण की क्रिया को ही लीजिए। जिसके माध्यम से आज सभी प्रकार के बीजो में विकृति डाली जा रही है। जिसमे फल- फूल, शाक – पात, वृक्ष – लता सभी सम्मिलित है। कृषि में आज विकृति की पराकाष्ठा है। जिसके कारण अब खेती भी यन्त्र आधारित बन कर रह गयी है। जिसमे खाद और जंतु नाशको के रूप में कृत्रिम जैव रसायनो का प्रयोग होने लगा है। जिसके कारण एक ओर जहा इसकी लागत में वृद्धि हो रही है। वही दूसरी ओर भोजन में विकृति के कारण विषाक्तता का आधान हो रहा है। जब आती है कि पाचन क्रिया कैसे सुधारे तो आहार विसंगति को दूर करना अत्यावश्यक है।

मानव शरीर केवल जैविक आहार का ही पाचन करने में समर्थ है। इस कारण भोजन को उत्पादित करने, पकाने और खाने की क्रिया में जैविकता को ही प्रश्रय दिया जाना चाहिए। इनतीनो चरणोंमें किसी एक चरण में भी कृत्रिमता का प्रवेश होतेही हमारा भोजन जैविक न रहकर अजैविक हो जाता है। जिसके कारण पाचन क्रिया कमजोर होना आमतौर पर पाया जाता है। जबहम विचार करतेहै कि पाचन शक्ति कैसे तेज करें तो आहार की पोषकता, उत्पादकता आदिका विधिवत विचार किया जाना चाहिए।

भोजनादि की विसंगति से कभी कभी बुखार की समस्या भी देखने को मिलती है। जिसके शमन के लिए बुखार की सबसे अच्छी दवा का प्रयोग किया जाता है।

एक चित्त होकर भोजन करे

आजकल तकनीकी कायुग होनेके कारण हरकोई एक समयमें अनेको कार्यो को सम्पादित करता है। जिसे आज की भाषा में मल्टीटास्किंग कहा जाता है। जैसे टी वी देखते हुए भोजन करना। टहलते हुए भोजन करना, यात्रा करते हुए भोजन करना, बात करते हुए भोजन करना।  जिसमे व्यक्ति का चित्त एक विषय पर न होकर अनेको विषयो पर होता है। जिससे पाचन की क्रिया मस्तिष्क की व्यस्तता के कारण बाधित होती है। जिसके कारण भोजन से आनंद की प्राप्ति नहीं होती।

साथ ही साथ भोजन से रूचि भी घटती है। इस लिए भोजन करने के लिए शांत मस्तिष्क और स्थिर चित्त को आवश्यक माना गया है। इस कारण पाचन क्रिया कैसे सुधारे में भी यह महत्वपूर्ण चरण है। अस्थिर चित्त महायंत्रों द्वारा प्राप्त होने वाला वरदान है। जिसके कारण नियंत्रण शक्ति में क्षीणता की प्राप्ति होती है। इसकारण पाचन शक्ति कैसे मजबूत बनाएं या पाचन शक्ति कैसे बनाएं के लिए चित्त का स्थिर होना आवश्यक है।

भोजन करते समय उपयुक्त विधि का अनुपालन करे

भोजन करने की सही विधि का ज्ञान न होने पर भोजन में रूचि का अभाव होता है। जिससे भोजन का पूरा स्वाद नहीं मिलता। भोजन से प्राप्त होने वाले आनंद से भी हम वंचित रह जाते है। जिससे शरीर के अंग प्रत्यंगो के कार्य करने की सक्रियता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। जिसके कारण पित्त की आनुपातिक साम्यता पर भी प्रभाव पड़ता है। जिसके कारण पाचन क्रिया से सम्बंधित समस्याओ का जन्म होता है। जैसे पाचन क्रिया कमजोर होना आदि। ऊपर पाचन क्रिया का वर्णन किया गया है। जिसमे होने वाली विसंगति का भी वर्णन किया गया है। जैसे जब भूख, प्यास दोनों एक साथ लगी हो तो पहले क्या करना चाहिए

रात्रि भोजन के बाद दूध और दिन के भोजन के बाद छाछ का प्रयोग करे

आज के समय में पाचन क्रिया कैसे सुधारे? यह जनसामान्य ही नहीं विद्वानों के द्वारा भी किया जाने वाला प्रश्न है। आज सभी के मुँह से एक बात सुनने में आती है। भोजन के बाद पेट जलता है। यह पाचन की क्रिया का स्वाभाविक गुण है। जो सदैव ही होता आया है और आगे भी होगा। पेट में भोजनोपरांत होने वाली दाह का मुख्य हेतु जठराग्नि का प्रद्दीपन है। जिसके शमन के लिए प्रायः लोग जल या पानी का प्रयोग करते है। जिससे जठराग्नि शिथिल पड़ जाती है और पाचन क्रिया में विकार उत्पन्न हो जाता है। जब यह क्रिया अधिक समय तक दोहराई जाती है तो अनेको प्रकार के रोगो का कारण बनती है।

यह समस्या आज चिकित्सा विशेषज्ञों के लिए गले की हड्डी बनी हुई है। जिसका कारण दवाइयों का लम्बे समय तक सेवन करते रहने के बाद भी समस्या ज्यो के त्यों बनी रहती है। यह स्वभाव सिद्ध पाचन का गुण धर्म है। जिसको समाप्त करने के आयुर्वेद में रात्रि भोजनोपरांत दूध और दिवस भोजन के बाद मठ्ठा या छाछ पीने का विधान किया गया है। जिसका प्रतिदिन पालन करने से पाचन की क्रिया को सुधारा जा सकता है। जब भी पाचन क्रिया कैसे बढ़ाये और पाचन शक्ति कैसे बढ़ाएं में यह ध्यान रखने योग्य है।

भोजन का समय निर्धारित करे

स्वास्थ्य जीवन के लिए दिनचर्या आदि का अद्भुत महत्व आयुर्वेदादी शास्त्रों में ख्यापित किया गया है। जिसमे विसंगति होने के कारण भोजन आदि का समय ही निर्धारित नहीं होता। जिसके कारण पाचन से सम्बंधित समस्याओ का जन्म होता है। जिसके लिए ऋतुनुकूल देहप्रकृति को ध्यान में रखकर दिनचर्या के भोजन का समय निर्धारित करने की आवश्यकता है। इस लिए पाचन क्रिया कैसे बढ़ाये के उत्तर में भोजन समय निर्धारण एक है। भोजन समय निर्धारण न करने से पाचन क्रिया कमजोर होना स्वाभाविक है।रात्रि में जल्दी सोये और सुबह जल्दी जगे

बिजली आदि के आविष्कार के कारण दिन और रात की विभाजक रेखा का ही विलोप है। जिसके कारण रात्रि को सम्पादित होने वाले कार्य को दिन में सम्पादित किया जाताहै। और दिन में होने वाले काम को रात में किया जाता है। जिससे दिन और रात्रि में कुछ लोगो को सोने की आदत लग जाती है। जबकि प्रायः ज्यादातर लोग रात को देर तक जागते है और सुबह देर से उठते है।

जिसके कारण पेट साफ़ न होने की समस्या होती है जो आगे चलकर कब्ज आदि का कारण बनती है। जिससे पाचन की क्रिया पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। और धीरे धीरे  पाचन क्रिया कमजोर होना आरम्भ हो जाती है। इसलिए पाचन क्रिया कैसे सुधारे और पाचन शक्ति कैसे बढ़ाएं के लिए रात में जल्दी सोये और सुबह जल्दी जगे।

जल पात्र के रूप में तांबे के बर्तन का प्रयोग करे

आयुर्वेदादी शास्त्रों में जल पात्र के लिए ताम्र धातु ( तांबे ) को सर्वाधिक उपयोगी बताया गया है। जिसका उपयोग सभी ऋतुओ में उपयोगी बतया गया है। जबकि ग्रीष्म ऋतु में तांबे के बर्तन का पानी पीना औषधि है। जिसके सेवन की अपनी सीमा है। पाचन शक्ति कैसे बढ़ाये में यह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जिसके कारण पाचन शक्ति कैसे सुधारे में यह एक उपाय के रूप में स्वीकार किया जाता है।

जल का सेवन भी आनुपातिक मात्रा के अनुसार करना ही स्वास्थ्यप्रद है। जिसका ध्यान रखकर हम पाचन क्रिया कमजोर होना जैसी समस्या का स्थाई निदान भी कर सकते है। जिसको चिकित्सीय ग्रंथो में पाचन क्रिया कैसे बढ़ाये का नाम भी दिया जाता है।

भोजन पात्रो के लिए मिट्टी, लोहा, पीतल, कांसा आदि का प्रयोग करे

आज के समय में भोजन पकाने के लिए स्टील और एल्युमिनियम धातु से निर्मित बर्तनो का प्रयोग किया जाता है। जो स्वास्थ्य के हानिकारक है। इनमे पकने वाला भोजन इनके गुणों को धारित करता है। जिससे भोजन में विकृति आती है। आजकल समयाभाव से बचने के लिए भी अनेको प्रकार के पात्रो का प्रयोग तकनीकी के नाम पर होने लगा है। जैसे प्रेशर कूकर आदि। इनमे भोजन पकने के बजाय अधिक दाब और ताप के कारण फट जाता है। जिससे भोजन देखने में पका हुआ प्रतीत होता है। परन्तु चिकित्सा की दृष्टि में पकता नहीं। जिसका सेवन करने पर हम भोजन से प्राप्त होने वाले पोषक तत्वों से वंचित रह जाते है।

इसलिए पाचन शक्ति कैसे बनाएं के लिए आवश्यक है कि आयुर्वेद में वर्णित धातु पात्रो का प्रयोग करे। जो पाचन क्रिया कमजोर होना इत्यादि समस्याओ से सदैव के लिए दूर रखे। आयुर्वेदानुसार भोजन पात्रो के रूप में सोना, चांदी, पीतल, कासा, लोहा, मिट्टी और पत्तल का विधान किया गया है। इसकारण पाचन शक्ति कैसे बढ़ाएं में इन धातु पात्रो का उपयोग हम सभी को करना चाहिए।

नियमित व्यायाम करे

पाचन शक्ति कैसे बढ़ाएं

स्वास्थ्य रहने के लिए नियमित व्यायाम करना अच्छा है। जबकि स्वास्थ्य रहने के लिए सवा घंटा परिश्रम करना आवश्यक है। आज इस बात की पुष्टि आधुनिक विज्ञान के द्वारा भी कर दी गई है। जिसमे बच्चो के लिए खेलना और वृद्धो के लिए पैदल चलना आवश्यक माना गया है। ध्यान रहे आयुर्वेदीय ग्रंथो में सूर्य की उपस्थिति और खुले आकाश को परिश्रम के लिए उपयुक्त स्थान माना है। जबकि आज इसके विपरीत देखने को प्राप्त हो रहा है। जब भी पाचन क्रिया कैसे सुधारे की बात होगी इस उपाय का अनुगमन होगा ही। इसलिए पाचन क्रिया कैसे बढ़ाये के एक निदान के रूप में इसको देखा जाना चाहिए।

पाचन शक्ति बढ़ाने के घरेलू उपाय

आयुर्वेद ने सभी प्रकार के रोगो का मूल आहार – विहार, दिनचर्या आदि को माना है। जिसको स्वव्यवस्थित रखने के लिए रसोई का विधान किया गया है। जिसके लिए अनेको प्रकार के मसाले, तेल और पात्रो का भी विधान है। सभी को स्वास्थ्यानुकूल बनाने के लिए रसोई में भोजन का चयन और निर्माण की विधि संहिता का निर्धारण किया गया। जिसमे उपयोग होने वाली सामग्रियों को घरेलू सामाग्री कहा गया। इनका उपयोग कर रोग दूर करने वाले उपायों को ही घरेलू उपाय के नाम से जाना गया। इस कारण पाचन शक्ति बढ़ाने के घरेलू उपायों की बात यहाँ कही गई है।

पाचन तंत्र की शुद्धी के लिए कौन सी क्रिया की जाती है? तो इसके लिए आयुर्वेद में मल शोधन की क्रिया का विधान किया गया है। जिसका मूल कारण मानव शरीर की बनावट है। जिसमे मुँह से लेकर गुदा द्वार तक एक खुली नलिका के द्वारा जुडी है। जिसको शरीर में सर्वाधिक लम्बी रचना भी नलिका की दृष्टि से कही जा सकती है। जिसको साफ़ करने को ही शोधन कहा गया है। इस नलिका में जब अधिक दिनों तक भोजनादि ग्रहण किया जाता तो मल के रूप में इसका जमाव होता है। जैसे मैदा, बिस्किट आदि में यह लक्षण स्वाभाविक रूप से पाया जाता है। इसमें उपस्थित मल के विक्षेपण को ही मल विक्षेपण या मल शोधन की क्रिया कही जाती है।

इस नलिका में मल संचयन होने के कारण पाचन क्रिया कमजोर होना पाया जाता है। जिससे बचने को ही पाचन शक्ति कैसे बढ़ाएं या पाचन शक्ति कैसे बनाएं कहा जाता है। आयुर्वेद में पाचन शक्ति कैसे बढ़ाये के उपायों की बात बतायी गई है। जिसमे से कुछ उपाय इस प्रकार है-

  • अजवाइन को गर्म जल के साथ पीना
  • तम्बाकू रहित पान खाना
  • गिलोय काढ़े का प्रयोग
  • सोने के लिए चारपाई का प्रयोग करना आदि।

पाचन क्रिया के लिए योग

अनुलोम - विलोम

योग भी शरीर को स्वथ्य रखने में सहायक है। लेकिन कब जब आहार – विहार, दिनचर्या और ऋतुचर्या आदि का विधिवत पालन किया जाय। केवल योग का आलंबन लेकर हम स्वस्थ्य नहीं रह सकते। योग को आरम्भ करने के लिए भी इसके आरम्भिक चरणों में यम और नियम का विधान है। जिसको ताक पर रखने पर योग के वास्तविक फल की प्राप्ति नहीं की जा सकती। आज के समय में लोगो के द्वारा यह कहा जाता है कि मै प्रतिदिन योग करता हूँ फिर भी बीमार पड़ जाता हूँ। इसका कारण उपरोक्त सिद्धांत का पूर्णतः परिपालन न करना ही है। इसलिए  पाचन क्रिया कैसे सुधारे yoga को आज जानने की आवश्यकता है।

पाचन शक्ति बढ़ाने के योग की बात करे तो उसमे अनेको प्रकार के आसान है। जिसको योग दर्शन में अनुलोम – विलोम, भ्रामरी प्राणायाम कहा जाता है। आसनो की बात करे तो वज्रासन, पश्चिमोत्तानासन, नौकासन आदि है। जिनका अभ्यास किसी विशेषज्ञ की देख रेख में ही करना उचित है। इनका नियमित अभ्यास करके हम अपने स्वास्थ्य को सहेज सकते है।

पाचन शक्ति बढ़ाने की आयुर्वेदिक दवा

पाचन तंत्र मजबूत करने की आयुर्वेदिक दवा के रूप में अनेको दवाई है। जिनका उपयोग मल शोधक के रूप में होता है। जैसे त्रिफला आदि। जिनका निर्माण पतंजलि आयुर्वेद के द्वारा किया जाता है। जिसको कुछ लोग पाचन शक्ति बढ़ाने की आयुर्वेदिक दवा पतंजलि के नाम से भी जानते है। इस उपाय को ही पाचन शक्ति बढ़ाने के उपाय पतंजलि कहा जाता है। परन्तु आज पतंजलि द्वारा कुछ ऐसी दवाई भी बनाई जाती है। जिनका उपयोग सामान्य जन भी कर सकते है। जिसको ही पाचन शक्ति बढ़ाने की दवा patanjali के नाम से जाना जा रहा है।

पाचन शक्ति बढ़ाने की आयुर्वेदिक दवा पतंजलि में त्रिफला, इसबगोल की भूसी आदि का प्रयोग होता है। जो मूल रूप से आयुर्वेदीय उपाय है। जिनका वर्णन आयुर्वेदीय शास्त्रों में किया गया है। पतंजलि आयुर्वेद में इनकी निर्मिती होने के कारण इसको पतंजलि के नाम से जाना जाता है। जबकि त्रिफला के अनेको गुण है। जो मल शोधक के रूप में सर्वाधिक उपयोग किया जाने वाला आयुर्वेदीय उपाय है। इसलिए पाचन क्रिया कैसे सुधारे में एक महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाता है। जो पाचन क्रिया कमजोर होना जैसी समस्याओ के लिए रामबाण औषधि है। फिर भी पाचन क्रिया कैसे बढ़ाये के कुछ उपाय इस प्रकार है –

  • त्रिफला
  • काला नमक और अजवाइन का प्रयोग करे।
  • प्रत्येक भोजन के पूर्व अदरक और सेंधा नमक का सेवन करे। यह पाचन दुरुस्त करने में अदरक के फायदे है।
  • नियमित ताम्रजल का सेवन करना आदि।

पाचन शक्ति बढ़ाने की होम्योपैथिक दवा

होम्योपैथी में पाचन शक्ति बढ़ाने की मेडिसिन के रूप में कार्बो वेज, लाइकोपोडियम, पल्साटिला आदि का प्रयोग होता है। होम्योपैथी में आयुर्वेद की तरह ही लक्षणों के आधार पर चिकित्सा की जाती है। इसी कारण प्रत्येक व्यक्ति से प्राप्त होने वाले लक्षण समूह से प्राप्त लक्षणों की प्रधानता वाली औषधि का चयन किया जाता है। इस कारण होम्योपैथी और आयुर्वेद में व्यक्ति  की प्रधानता के अनुसार ही दवा का चुनाव संभव है।

पाचन शक्ति बढ़ाने का चूर्ण

चिकित्सा शास्त्रों में पाचन क्रिया की दक्षता को ही पाचन शक्ति कहा जाता है। जिसको सुदृढ़ करने के लिए लवणभास्कर चूर्ण, त्रिफला चूर्ण आदि सर्वाधिक उपयोगी चूर्ण है। जिनका सेवन पाचन क्रिया कमजोर होना में किया जाता है। पाचन क्रिया कैसे सुधारे में इन चूर्णों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। आयुर्वेद में पाचन शक्ति कैसे बढ़ाएं के रूप में इनके नियमित सेवन की भी सलाह दी गई है।

पाचन क्रिया कैसे सुधारे सिरप

पाचन शक्ति सिरप की बात करे तो अलग अलग कंपनियों के द्वारा अनेको प्रकार के उत्पाद है। जिनको पाचन क्रिया कैसे सुधारे syrup के नाम से जाना जाता है। पाचन शक्ति बढ़ाने की सिरप के रूप में वैद्यनाथ फार्मेसी की पंचासव, लोहासव, द्राक्षासव प्रसिद्द है। झंडू की झंडू पंचारिष्ट प्रसिद्द है। डाबर की कुमार्यासव, लोहासव आदि प्रमुख है।

उपसंहार

किसी भी भोजन को पचाने  के लिए पाचन क्रिया का ठीक होना आवश्यक है। जिसके लिए देहप्रकृति को ध्यान में रखकर मौसम के अनुकूल उपयुक्त विधा का पालन करते हुए भोजन करना चाहिए। इन्ही उपायों की संहिता को चिकित्सीय दृष्टि से पाचन क्रिया कैसे सुधारे के नाम से जाना जाता है। जिसको पाचन क्रिया कैसे बढ़ाये या पाचन शक्ति कैसे बढ़ाएं का नाम भी दिया गया है। पाचन क्रिया कमजोर होना रोग है। जिसको बढ़ाने के उपायों को जानने को ही पाचन शक्ति कैसे बढ़ाएं कहते है। इसको लम्बे समय तक बनाए रखने के उपाय को ही पाचन शक्ति कैसे बनाएं कहा जाता है।  

सन्दर्भ :

चरक संहिता चिकित्सा अध्याय – 13

सुश्रुत संहिता चिकित्सा अध्याय – 14

FAQ

पाचन शक्ति कैसे बढ़ाए? 

पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए आहार, दिनचर्या आदि की विसंगति को दूर करना आवश्यक है। इसके साथ उपयुक्त परिश्रम आदि अवश्य करना चाहिए। 

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