फैटी लीवर कारण, लक्षण और घरेलू उपचार : Causes, Symptoms and Home Remedies for Fatty Liver in Hindi 

आज का समय आर्थिक क्रांति का है। जिसको प्राप्त कराने में स्वाथ्य का अभूतपूर्व योगदान है। जिसमे यकृत (liver) अपनी विशेषता के लिए जाना जाता है। जिसमे होने वाले रोगो में लीवर का बढ़ना आदि है। जिसके होने में खान – पान, रहन – सहन, उठना – बैठना इत्यादि का महत्वपूर्ण योगदान है। जो रोगोपचारक होने के साथ – साथ स्वास्थ्यसंरक्षक भी है। जबकि रोगोपचार में फैटी लिवर में क्या खाना चाहिए आदि का भी विचार है। आधुनिक उपचार और वैदिक उपचार में दवाइयों का उल्लेख है। जैसे – फैटी लीवर की अंग्रेजी दवा, और फैटी लीवर की आयुर्वेदिक दवा इत्यादि।

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शरीर रचना क्रिया विज्ञान ने, यकृत को शरीर का सबसे बड़ा अंग माना है। जिसके कारण इसका दायित्व भी अधिक है। जिसमे भोजन को पचाना, ऊर्जा को संचित करना और विषाक्तता आपनोदन आदि है। इनसभी क्रियाओ में यह हमारे शरीर की मदद करता है। जिससे शरीर का सञ्चालन ( कार्मिक क्रिया का सम्पादन ) होता है। यह प्रक्रियाए जितनी जटिल है उतनी ही आवश्यक भी है। इनमे सामंजस्य ( तालमेल ) सधने पर ही, सहज स्वास्थ्य की अभिव्यक्ति सुनिश्चित होती है। आयुर्वेदमें फैटी लिवर को यकृदाल्युदर का कारण बताया गया है। कही – कही इसको यकृत शोथ सेभी उद्भाषित किया गया है।

यकृतादि अंगो की सैद्धांतिक सुव्यवस्थित क्रियाओ की निर्बाधता सुनिश्चित कर, आजीवन यकृत विसंगतियों से बचे रहनेका यह अनोखा सिद्धांत है। आयुर्वेदान्तर्गत इनके मेरुरज्जुओ में आहार – विहार, दिनचर्या, ऋतुचर्या आदि को स्वीकारा है। जिसके कारण इनका शास्त्रोक्त शैली में अनुगमन अपेक्षित है। न कि किसी अन्य विधा या उपाय का आलंबन लेकर। ऐसा सुयोग सधने पर ही स्फुट स्वास्थ्य की प्राप्ति, और रोग से मुक्ति मिलती है। आयुर्वेद के अविरुद्ध और अनुकूल जीवन यापन ही स्वास्थ्यता है। जिसकी विसद व्याख्या आयुर्वेदादी शास्त्रों में सनातन काल से है।

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फैटी लीवर क्या है (what is Fatty liver in Hindi )

लीवर को हिंदी में यकृत कहते है। जिसको अन्य भाषाओ में जिगर या कलेजा भी कहते है। जो कशेरुकीय प्राणियों में ही पाया जाता है। यह भोजन को पचाने से लेकर, पित्त निर्माण की सभी चयापचयी क्रियाओ का सम्पादन करता है। जिससे शरीर का संतुलन व्यवस्थित रहता है। विसंगतियों के कारण जब वसाका जमाव लिवरमें होने लगता है, तब लीवरमें सूजनादि के कारण वजन बढ़ने लगता है। जिससे फैटी लीवर की समस्या जन्म लेती है। आधुनिक विज्ञान के अनुसार सामान्य लीवर के वजन से, 10 प्रतिशत अधिक वजन होनेपर फैटी लीवर की समस्या होती है।

आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान दोनों में एक बात उभयनिष्ठ है। वह यह कि वसा के जमाव से यकृत शोथ। जिसके अनेको कारणों की चर्चा आगे की गई है। ऐसा होनेपर यह कार्य करने में अक्षम हो जाता है। जिससे हमें अनेको प्रकार की शारीरिक कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। जिसको फैटी लीवर के नुकसान कहा जाता है। फैटी लिवर और गैस घनिष्ठ सम्बन्ध है। गैस आदि ही इस प्रकार के रोगो का मूल है। जिसके निदानको पेट में गैस बनने का उपचार कहते है। जबकि फैटी लीवर के उपचार के लिए, फैटी लीवर की अंग्रेजी दवा आदि की आवश्यकता होती है।

फैटी लीवर का मतलब (fatty liver means) यकृत में, वसाके जमावके कारण इसके भार और आकार में वृद्धि है। जिसको फैटी लीवर क्या होता है भी कहते है। जो अनेको प्रकार की प्रतिकूल क्रिया कलापो का परिणाम है। चिकित्सा में अंग की विकृति का प्रभाव उपांग में, और उपांग की विकृति का प्रभाव प्रत्यंग आदि में मानी गई है। जो रोग होने पर देखी जाती है। जिसके कारण लीवर में fatty liver infiltration आदि में देखा जाता है। इसमें कभी कभी खांसी जैसी समस्या भी होती है। जिसके लिए खांसी का इलाज घरेलू उपयोगी है।

फैटी लीवर क्यों होता है (fatty liver causes in Hindi /fatty liver reasons in Hindi )

विदाहकारक एवं अभिष्यंदी पदार्थो के नियमित सेवन से बढ़ा हुआ, कफदोष और रक्तधातु दूषित होकर यकृत को बढ़ा देते है। ( विदाहकारक पदार्थो में अत्यधिक तेल मसाले वाली चटपटी चीजे है। जैसे जंक फ़ूड, पिज्जा, बर्गर आदि। जबकि अभिष्यंदी पदार्थो में गुरु और चिकने पदार्थ है। जैसे अरुई आदि )। जिसको फैटी लीवर या यकृत दोष कहते है। इसमें यकृत में वसा जमने से वृद्धि हो जाती है। लीवर में जमने वाली इस वसा को ट्राइग्लिसराइड्स कहते है। जो वसा का परिस्कृत या जटिल रूप है। जिसका निर्माण रक्ताणुओ द्वारा होता है।

जब प्लीहा के बाई ओर का हिस्सा बढ़ जाता है, तो इसको ही तिल्ली का बढ़ना कहते है। जिसमे रोगी विशेष रूप से कष्ट का अनुभव करता है। जैसे हल्का बुखार, पाचकाग्नि का मंद होना इत्यादी। इस रोगमें प्रायः कफ और पित्त दोष दिखाई पड़ता है। जिसके कारण रोगी का बल क्षीण हो जाता है। और पांडुरोग से घिर जाता है। आयुर्वेद में यकृत और प्लीहा का संबंध जोड़ा गया है। जिसको चारकादि महर्षियो ने भी स्वीकारा है। जिसके उपचार में फैटी लीवर की आयुर्वेदिक दवा का उपयोग है। सामान्यतः यकृत में वसा आदिके जमावको फैटी लिवर कहते है। जो प्लीहा के वृद्धि में हेतु है।

जिसमे महर्षि सुश्रुत ने यहाँ तक कहा है कि – जो पित्त, यकृत और प्लीहा में रहता है। उसे रंजक अग्नि या पित्त कहते है। क्योकि यह रस के श्वेताणुओ को रंगकर, रक्ताणुओ के रूप में परिवर्तित कर देता है। जिसको आयुर्वेदानुसार रक्त निर्माण की प्रक्रिया कहते है। इस कारण इन्ही दोनों अंगो को रक्त निर्माण के लिए, उत्तरदायी भी माना गया है। नवीन रक्त के निर्माण और पुरानी रक्त कोशिकाओं का विघटन, भी इन्ही के द्वारा संचालित होता है। इस दृष्टिसे इन अंगोकी विशेष महत्ता का ख्यापन होता है।

यकृत ( लिवर ) का सामान्य आकार ( Liver normal size in Hindi )

मानव शरीर रचना क्रिया विज्ञान और आयुर्वेद के अनुसार, सभी के शरीर में भेद है। जिसमे अंगो के आकार, लम्बाई, दोष की प्रधानता आदि है। जिसको स्त्री पुरुष की शारीरिक रचना का भेद भी कहते है। जो व्यवहार के साधक है न की बाधक। जबकि क्रिया प्रणाली सामान है। नर और मादा में भेद होने के साथ साथ, दो नरो में भी भेद है। जिसमे अंगो के आकार, लम्बाई आदि है। जिनके कारण ठीक ठीक लम्बाई का निर्धारण असंभव है। जबकि औसत आकार, वजन और लम्बाई का निर्धारण किया जा सकता है। औसतसे अधिक और कम संख्याका प्राप्त होना रोग नहीं है। अपितु दर्द या कठिनाई होनेपर ही रोगादि का होना सम्भव है।

यकृत का सामान्य औसत आकार महिलाओ में 7 सेमी, और पुरुषो में 10.5 सेमी होती है। इसमें 2 – 3 सेमी की कमी और अधिकता को, सामान्य माना गया है। जिसका मूल कारण गणितीय औसत है। जबकि इसके वजन की बात करे तो, महिलाओ के यकृत का भार 1200 से 1400 ग्राम है। वयस्क पुरुषो के लिवर का भार 1400 से 1500 ग्राम है। जिसमे 100 से 200 ग्राम का अंतर सामान्य है। इससे अधिक होने पर इसके इलाज की आवश्यकता है। जिसमे फैटी लीवर की अंग्रेजी दवा का उपयोग होता है। ठीक उसी प्रकार जैसे बुखार की सबसे अच्छी दवा है।

फैटी लीवर के प्रकार ( Types of Fatty Liver in Hindi )

फैटी लीवर के मुख्यतः दो प्रकार है – अल्कोहलिक ( एल्कोहलिक ) और नॉन अल्कोहलिक।

एल्कोहलिक फैटी लीवर रोग (simple or Alcoholic Fatty liver disease or AFLD)

इसको फैटी लिवर टाइप 1 के नामसे भी जानते है। यह रोग अत्यधिक मदिरादि के सेवन से होता है। जिसको आज की आधुनिक भाषा में एल्कोहल कहते है। अधिक मात्रा में इसका सेवन लिवर पर वसा संक्षेपण, का एक प्रमुख कारण है। जिससे लिवर पर सूजन होने लगती है, और लिवर को क्षतिग्रस्त करती है। जिससे यह जानलेवा भी हो सकती है। जिसके इलाजमें फैटी लीवर की अंग्रेजी दवा भी उपयोगी है।

नॉन एल्कोहलिक फैटी लीवर रोग  ( Non-Alcoholic Fatty liver disease or NAFLD)

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इसको फैटी लिवर टाइप 2 भी कहते है। वसायुक्त, अपथ्य, कच्चा, विरोधी और गुरु भोजनके सेवन और आयुर्वेदादी शास्त्रों के, विरुद्ध जीवनशैली के अनुगमन के कारण मोटापा आदि रोग होता है। मोटापे से मधुमेह आदि रोगोका जन्म होता है। जो फैटी लीवरका प्रमुख कारण है। मादक द्रव्यों का सेवन न करनेपर भी, इन परिस्थितियों में फैटी लिवर होनेकी पूरी संभावना होती है। क्योकि लीवर वसाको तोड़नेमें अक्षम हो जाता है। जिससे लीवरके ऊतकोंमें वसा जमने लगता है। फैटी लीवर की समस्या होनेपर अन्य रोगोके, होनेकी भी संभावना होती है।

नॉन एल्कोहलिक फैटी लीवर रोगके चार चरण होते है –

    1. सामान्य फैटी लीवर और स्टियाटोसिस (Normal fatty liver and steatosis) – इसमें बिना सूजन के ही लीवरमें, वसा का जमना प्रारम्भ हो जाता है। जिसमे किसी प्रकारका कोई लक्षण प्राप्त नहीं होता। जिसको उचित भोजनाहारके द्वारा उपचारित किया जाता है।
    2. नॉन-एल्कोहलिक स्टियाटोहेपाटाइटिस (Non-alcoholic steatohepatitis) – इस स्थिति में लीवरमें वसा जमने, के कारण सूजन आने लगती है। जब लीवर में सूजन आ जाती है तो, लीवर क्षतिग्रस्त ऊतकों को ठीक करने का प्रयास करता है। जिससे और अधिक ऊतक क्षतिग्रस्त होते है, और लीवर अधिक सक्रियतासे उनको सक्रिय करनेका प्रयास करता है। इसकारण सूजनग्रस्त ऊतक वाले हिस्सेमें घावहो जाता है। ऐसी अवस्थामें घाव वाले ऊतक वहापर विकसित होने लगते है। तब फाइब्रोसिस (फिबरोसिस) होनेकी अवस्था होती है।
    3. फिबरोसिस (Fibrosis) – यह लीवरकी वह अवस्था है। जिसमे उसके आस – पासकी रक्त कोशिकाओं और रक्त वाहिनियों, में स्थाई रूपसे घाव वाले ऊतक बनने लगते है। इस अवस्थामें लीवर कुछ सामान्य रूपसे ही कार्य करता है।
    4. सिरोसिस (Cirrhosis) – इस अवस्थामें लीवर, सामान्य रूपसे कार्य करनेमें अक्षम होता है। इसके साथही इसमें,अनेको प्रकारके लक्षण प्राप्त होने लगते है। जैसे आँखों और त्वचाका पीला होना इत्यादी। इससमय लीवरके जिन हिस्सोमे घाव होता है। उनको मिटाना मुश्किल होता है। यह कई वर्षोंमें विकसित होनेवाला रोग है।

फैटी लीवर के ग्रेड ( fatty liver grades in Hindi )

आजकल रोगो की जांच के लिए, अत्याधुनिक इलेक्ट्रानिक मशीनों का उपयोग होता है। जिनको इमेजिंग सिस्टम भी कहा जाता है। फैटी लीवर का जांच करनेके लिए अल्ट्रासाउंड किया जाता है। जिसमे विशेषज्ञ लीवर के परिवर्तनों को चित्र आदि के, माध्यम से देखते है। यदि कोई परिवर्तन होता है तो, उसे तीन ग्रेडों में विभाजित किया गया है। जिन्हे ग्रेड 1, ग्रेड 2 और ग्रेड 3 के नाम से जाना जाता है। रोग निदान में भोजन की उपयोगिता होने के कारण, फैटी लिवर में क्या खाना चाहिए पूछा जाता है।

फैटी लिवर ग्रेड १ का मतलब (Fatty Liver Grade 1 in Hindi)

यह फैटी लीवर का सबसे सामान्य रूप है। जिसमे वसा लीवर के बाहर जमा होता है, और लीवर के कार्य को प्रभावित नहीं करता। इसको ही फैटी लिवर ग्रेड १ मीनिंग भी कहते है। इसकी शंकाको लोग ग्रेड १ फैटी लिवर क्या होता है, द्वारा प्रकट करते है। जिसके उपचार में गिलोय का उपयोग होता है। जिसमे गिलोय सेवन विधि का उल्लेख है।

फैटी लिवर ग्रेड 2 का मतलब (Fatty Liver grade 2 in Hindi)

यह इसका माध्यम लेकिन गंभीर रूप है। जिसमे उपचार की आवश्यकता होती है। इसका इलाज समय पर न कराने पर, समस्या के बढ़ने की संभावना होती है। इस कारण ही कुछ लोग इसको खतरनाक, ( is fatty liver grade 2 dangerous ) मानते है। यह एल्कोहलिक (is grade 2 alcoholic fatty liver dangerous) हो, या नॉन एल्कोहलिक दोनों ही जानलेवा हो सकते है।

फैटी लिवर ग्रेड 3 का मतलब (Fatty Liver grade 3 in Hindi)

यह फैटी लीवर का गंभीरतम रूप है। जिसमे अनेको प्रकार के भयानक लक्षण दीखते है। जिसमे शीघ्रातिशीघ्र उपचार की आवश्यता होती है।

फैटी लीवर के लक्षण (Fatty Liver symptoms in Hindi)

आमतौर पर फैटी लीवर के शुरुआती लक्षण नहीं दिखते। परन्तु जैसे – जैसे यह रोग बढ़ता है। इसके लक्षणों की प्राप्ति होने लगती है। फैटी लीवर के लगभग 75 प्रतिशत रोगियों का लीवर बढ़ जाता है। इसी को फैटी लीवर का क्या लक्षण है भी कहते है। इसके कुछ लक्षण निम्न है –

  • कमजोरी और थकान होना
  • भोजन पचाने की क्षमता का क्षीण होना
  • वजन कम होना
  • आँखों और त्वचा का पीलापन
  • पेट दर्द, कुछ लोगो में पेट के ऊपरी हिस्से में दाहिनी ओर सूजन होना
  • मितली

फैटी लीवर के इन लक्षणों के प्राप्त होने पर विशेषज्ञ की, सलाह लेनी चाहिए और पूर्ण चिकित्सा करानी चाहिए। इस बीमारी का पता प्रायः 40 – 60 वर्ष बाद लगता है। जिससे यह जीर्ण अवस्था को प्राप्त करता है। जिससे रोगी की चिकित्सा कठिन हो जाती है और रोगी, के दुर्बल होनेसे उसको बचा पाना मुश्किल हो जाता है। लिवर में इन्फेक्शन के लक्षण (fatty liver disease in hindi), में उपरोक्त लक्षण पाए जाते है। इनके लक्षणों को जानने के लिए, फैटी लीवर के क्या लक्षण है? जैसे प्रश्न किये जाते है। उपरोक्त लक्षणों (Fatty Liver Ke Lakshan) को आंग्ल भाषा में, fatty liver disease symptoms कहते है। 

जबकि बच्चो में यह बहुत ही कम देखा जाता है। इनमे एल्कोहलिक फैटी लीवर रोग का कोई लक्षण नहीं पाया जाता। फिर भी मोटापे आदि से ग्रस्त बच्चे या जिनमे, जन्म से ही चयापचय विकार ( metabolic disorder) पाया जाता है। उनमे नॉन – एल्कोहलिक फैटी लीवर की समस्या देखी जाती है। जिसका कारण इनके द्वारा ग्रहण किया जाने वाला कृत्रिम भोजन है। जैसे चॉकलेट, जंक और फ़ास्ट फ़ूड इत्यादी का अत्यधिक सेवन करना, एवं शारीरिक परिश्रम ( खेल कूद ) नहीं करना। जो शहरो में रहने वालो को झेलना ही पड़ता है। जिसके उपचार हेतु फैटी लीवर की अंग्रेजी दवा भी उपयोगी है।

फैटी लीवर का परीक्षण (Fatty Liver Test in Hindi)

शारीरिक परीक्षण : इसमें चिकित्सा विशेषज्ञ द्वारा रोगी की जांच की जाती है। जिसमे लीवर में होने वाली सूजन का पता लगाया जाता है। साथ ही संवाद के द्वारा भूख लगाने, दर्द, पूर्व में ली जाने वाली दवाइया जैसे हेल्थ सप्लीमेंट, स्टेरॉयड आदि है। इसके साथ ही यदि शराब आदि का सेवन करते है, तो उसको सूचित करे। जिससे इनका उचित उपयोग इस रोगोपचार में हो सके।

खून की जांच : रक्त परीक्षण के माध्यम से चिकित्सा विशेषज्ञ लीवर में, एंजाइम की मात्रा की जांच करते है। जिसमे इसकी अधिकता और न्यूनता का मापना होता है। लेकिन फैटी लीवर की पुष्टि नहीं हो पाती। जिसके अन्य परीक्षणों का आलंबन लेना पड़ता है।

इमेजिंग परीक्षण : इसके माध्यम से चिकित्सक अल्टासाउंड के माध्यमसे लीवर की सूजन, मोटापा आदि का पता लगाते है। अल्ट्रासॉउन्ड द्वारा प्राप्त चित्र में, मोटापे वाला भाग सफ़ेद रंग का दिखाई पड़ता है। इसके अतिरिक्त सि टी स्कैन या एम आर आई स्कैन, के द्वारा भी इसका पता लगाया जा सकता है। अल्ट्रासॉउन्ड जैसा एक अन्य इमेजिंग टेस्ट फाइब्रोस्कैन होता है। जिसकी सहायता से लीवर की सूजन, घनत्व आदि से प्रभावित क्षेत्रो की जांच होती है। इमेजिंग जांच के द्वारा लीवर की वसा का पता लगाया जा सकता है। जबकि इसके द्वारा लीवर की अन्य समस्याओ की पुष्टि नहीं हो पाती।

लीवर बायोप्सी : इसमें सुई द्वारा रोगीके लीवर का एक टुकड़ा निकालते है। जो आधुनिक विज्ञान से लीवर जांच का अंतिम उपाय है। जिसके द्वारा चिकित्सको को रोग निर्धारण में मदद मिलती है। इन्ही जांचो से फैटी लीवर की समस्या को जानकर, उसके निर्मूलन का प्रयास चिकित्सीय सिद्धान्तानुसार किया जाता है। जिसमे फैटी लीवर की आयुर्वेदिक दवा, और फैटी लीवर की अंग्रेजी दवा आदिका उपयोग होता है। इन परीक्षणों को आंग्ल भाषामें Diagnosis of Fatty Liver in Hindi, कहते है।

फैटी लीवर का ख़तरा किन लोगो को अधिक होता है ( Risk Factor of Fatty Liver in Hindi )

यह रोग सबसे अधिक मदिरापान या शराब पीने से होता है। परन्तु फैटी लिवर की समस्या उन लोगो में भी देखी जाती है। जो शरण या किसी प्रकार का नशा नहीं करते। यह रोग तब होता है। जब शरीर तेजी से वसा को मेटाबोलाइज़ नहीं कर पाता। जिससे शरीर अधिक वसा बनाने लगता है। जो संतृप्त वसा और चीनी खाने से होना स्वाभाविक है। शराब के अतिरिक्त फैटी लिवर अन्य कारण भी है। जैसे –

  • मधुमेह ( डायविटीज )
  • मोटापा या वजन का बढ़ना
  • वजन का कम होना
  • हाईपरलिपिडिमिया
  • अत्यधिक स्टेरॉयड, एस्पिरिन, टेट्रासाइक्लीन जैसी दवाओं का सेवन।
  • आनुवंशिकता

फैटी लिवर का ख़तरा बढ़ने का कारण (Fatty Liver how to reduce)

कुछ रोगो और कारणों के कारण फैटी लिवर का ख़तरा बढ़ जाता है। जैसे –

  • उच्च और निम्न रक्तचाप की बीमारी होने पर
  • रक्त में ट्राई ग्लिसराइड की अधिकता होने पर
  • मेटाबोलिक सिंड्रोम ( बच्चो में चयापचयी संक्रियाओं के कारण )
  • पालीसिटिक ओवरी सिंड्रोम
  • हाइपोथयरॉइडज्म
  • हाइपोपियूटेटेरिज्म
  • पेट का मोटापा बढ़ने से 
  • टाइप 2 डायबटीज 
  • नींद की बीमारी के कारण 
  • अधिक आयु बढ़ने पर

फैटी लीवर का उपचार (Fatty Liver treatment in Hindi)

अन्य रोगो की तरह फैटी लीवर के उपचार की भी अनेको विधिया है। जिनको फैटी लीवर उपचार (fatty liver kaa ilaaj) कहते है। जिसमे फैटी लीवर की अंग्रेजी दवा, फैटी लीवर की आयुर्वेदिक दवा और उपचार है। इसके साथ ही कुछ घरेलू उपाय भी है। जिनसे फैटी लिवर का उपचार किया जाता है। जिनकी विधि संहिता को फैटी लिवर में क्या करें, या फैटी लीवर में क्या किया जाय भी कहते है। जिसमे दवाइयों, पथ्य आहार, दिनचर्या ( जीवन शैली ) आदि सम्मिलित है। जिसको आधुनिक जीवन की स्वस्थ्य दिनचर्या कहते है। जिसमे फैटी लिवर में क्या खाना चाहिए आदि है।

आयुर्वेदिक चिकित्सा में सभी रोगो के उपचार और बचाव में, आहार के महत्व को प्रबलता से ख्यापित किया गया है। जिसमे चिकित्सा से पूर्व, दौरान और उपरांत भोजन की चर्चा है। जिसमे फैटी लिवर में क्या खाना चाहिए भी समाहित है। इसको ही आंग्ल भाषा में fatty liver treatment diet in Hindi कहते है। भोजन आयुर्वेदीय चिकित्सा का प्रमुख आधार बताया गया है। जिसके माध्यम से औषधि मिश्रित भोजन के रूप में पिया, विलेपी, यूस आदि का प्रयोग रोग की तीव्रता और रोगी की, क्षमता के अनुसार किया जाता है। इनको ही फैटी लिवर में क्या खाना चाहिए, के नाम से भी  जाना जाता है।

फैटी लीवर के घरेलू उपचार (Home Remedies for Fatty Liver in Hindi )

घरेलू उपचारो को आज भी सम्मान प्राप्त है। जिसका कारण इनकी सैद्धांतिक और व्यवहारिक विश्वसनीयता है। जो पूर्णतया आयुर्वेदीय उपचार पद्धति की क्रियान्वयन के कारण है। घरेलू उपायों की प्रसिद्धी का मूल औषधियों की उपलब्धता, और उनसे प्राप्त होने वाला लाभ है। जिसके कारण फैटी लिवर के उपचार (Fatty Liver Cure in Hindi), में प्रयुक्त होता है। जिसको fatty liver icd 10 in Hindi भी कहते है। परन्तु आजकल अंग्रेजी इलाज का प्रचार और प्रसार है। जिसमे फैटी लीवर की अंग्रेजी दवा का उपयोग होता है।

सभी प्रकारके रोगोमें भोजन विसंगति को नजरअंदाज नहीं कियाजा सकता। जिसमे भोजन पकाने, परोसने और सेवन की समस्त विधाए आती है। जिनमे गड़बड़ी होनेके कारण ही भोजन की विसंगति होती है। जिसको फैटी लिवर में क्या खाना चाहिए कहते है। जबकि यहभी अपने आपमें अनेको चिकित्सीय संक्रियाओं का समूह है। जिनकी सहायता से शास्त्र सम्मत स्वास्थ्य की प्राप्ति सुनिश्चित है। जिसको आधार बनाकर आयुर्वेददीतिरिक्त अन्य चिकित्सा पद्धतियों मेंभी भोजन से, सम्बंधित विधि – निषेध बताने की विधा है जिसको आजकल चिकित्सा का एक अलग विभाग माना जाता है।

इनके लिवर के उपचार में कुछ प्रसिद्द उपाय –

  • मधु, तिल का तेल, मीठा वच, सोंठ, सोया, मीठा कूठ, सेंधा नमक। इन सब को मिलाकर मठ्ठे में मिलाकर पीने के लिए दे।
  • शक्ति वर्धन और संचय हेतु दुग्ध, आसव, आरिष्ट आदि का प्रयोग होता है।
  • सभी प्रकार के उदर रोगो में, हरे पत्ते वाली सब्जियों का प्रयोग वर्जित है। यह सभी दवाए फैटी लीवर के लिए आयुर्वेदिक दवा है।

फैटी लीवर का होम्योपैथिक इलाज (Fatty Liver homoeopathic medicine in Hindi )

आयुर्वेद चिकित्सा की तरह ही होम्योपैथी चिकित्सा का विधान है। जिसमे रोग लक्षणों पर विशेष ध्यान न देकर रोगी के, लक्षणों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। जिसे रोगी का लक्षण कहते है। जिसको आधार बनाकर होम्योपैथिक विधाके अनुरूप दवाका चयन होता है। इसी दवा को फैटी लीवर की होम्योपैथिक मेडिसिन, या फैटी लीवर की होम्योपैथिक दवा कहते है। जो समग्रता से सभी शरीरगत में लाभ पहुँचाती है। कब्ज आदि के कारण ही इन रोगो का जन्म होता है। जिसके लिए कब्ज का रामबाण इलाज जानने की जरूरत है।

होम्योपैथिक सिद्धांतो के अनुसार लाइकोपोडियम, ब्रायोनिया, लैकेसिस, नाइट्रिक एसिड, कार्बो बेज, चाइना, साइलीशिया, कैल्केरिया आदि का प्रयोग होता है। जिनको फैटी लीवर का होम्योपैथिक दवा के नाम से, होम्योपैथिक जगत में जाना जाता है। जबकि एलोपैथी में फैटी लीवर की अंग्रेजी दवा के उपयोग, के विधान उनके सिद्धांत के अनुरूप है।

फैटी लीवर का आयुर्वेदिक उपचार (Fatty Liver Ayurvedic medicine in Hindi)

आयुर्वेद में उदर रोगो के उपचार में, वाह्य और आंतरिक विधाओं का वर्णन है। जिसमे स्नेहन, स्वेदन, विरेचनोपरान्त निरूहण और अनुवासन वस्तियों का प्रयोग है। जिससे लगभग सभी प्रकार के पेट रोग उपचारित होते है। जिनमे अनेको प्रकार की जड़ी – बूटिया, वनस्पतियाँ, मसाले और औषधियां है। जिनको फैटी लीवर की आयुर्वेदिक दवा कहते है। जिसको सामान्य रूपसे फैटी लीवर की दवा (fatty liver medicine), कहा जाता है। जबकि टेबलेट, कैप्सूल आदि को फैटी लीवर की अंग्रेजी दवा, के नाम से जाना जाता है। इन्ही को फैटी लीवर के उपाय भी कहते है।

आजकल फैटी लीवर में (Fatty Liver liv 52 in Hindi), हिमालया आयुर्वेद का लिव 52 प्रयोग होता है। जो लीवर से सम्बंधित ज्यादातर समस्याओ का समाधान करता है। जबकि आयुर्वेद में इसके कुछ उपाय इस प्रकार है –

  • पारिजात, तालमखाना और चिरचिटा का क्षार या क्वाथ पिलाये।
  • सहिजन के जूस में तिल तैल मिलाकर और पिप्पली, सेंधानमक, चीता के मूल का चूर्ण मिलाकर पिलाये।
  • दूध में हींग और सोंचर नमक मिलाकर पिलाये ।
  • समुद्री सीपी का क्षार दूध के साथ पिलाये।
  • सभी पेट रोगो में विडंग क्षार, तक्रारिष्ट आदि उपयोगी है। जो अर्श के साथ साथ उदर रोगो में भी उपयोगी है।

आयुर्वेदमें दवाइयों सेभी अधिक प्रभावी भोजन को माना गया है। जिसके कारण फैटी लिवर में क्या खाना चाहिए, को जानना और भी अधिक महत्व का है। जिसमे उनके चयन, निर्माण और सेवनादि की समस्त विधियों का सन्निवेश है। इनके कारण ही इनकी चिकित्सा में उपयोगिता सिद्ध है। इसके साथ ही गिलोय के फायदे भी जाना जरूरी है।

फैटी लीवर की अंग्रेजी दवा (Fatty Liver Medicine name in Hindi )

फैटी लिवर की दवाओं में अनेको आयुर्वेदीय नुस्खे है। जबकि कुछ ऐसी दवाई है। जो फैटी लीवर की अंग्रेजी दवा कहलाती है। कुछ फैटी लीवर की आयुर्वेदिक दवा कहलाती है। इनका प्रयोग वर्षो से होने के कारण विश्वसनीय है। फिर भी प्रयोग से पूर्व विशेषज्ञ का परामर्श आवश्यक है।

  • लिव 52 टेबलेट 
  • लिव 52 सिरप
  • वैद्यनाथ लिवोरेक्स 

फैटी लीवर के लिए योग (Fatty Liver Exercise in Hindi or yoga)

उदर से सम्बंधित रोगोमें विश्राम करना औषधि के सामान है। जबकि आरामसे कुछ दूर फैटी लीवर में टहलना उचित है। अधिक शारीरिक परिश्रम जैसे अधिक व्यायाम और रास्ता चलना, अधिक मोटर साईकिल, कार आदि चलाना निषिद्ध है। यह सभी उपाय फैटी लीवर की आयुर्वेदिक दवा कहलाते है। ठीक उसी प्रकार जैसे फैटी लिवर में क्या खाना चाहिए। दवा की भूमिका प्रस्तुत करता है। जबकि इस रोग की सामान्य जानकारी को, फैटी लीवर के बारे में बताएं कहा जाता है।

विधि – विधान पूर्वक योग स्वास्थ्य प्रदान करता है। जब किसी कारण से इसमें सैद्धानिक त्रुटि होती है, तो रोग आदि के होने का मार्ग भी प्रसस्त करता है। इस कारण इसमें विशेषज्ञ से परामर्श लेना अनिवार्य है। आजकल लोग योग को रोगोपचारक उपाय बताते है। ध्यान रहे योग विधि, रोग और शारीरिक क्षमता को परखकर करना चाहिए। इस प्रकार का योग ही आरोग्यता प्रदान करता है। अन्यथा यह भी रोग का कारण ही बनता है।

उदार रोगो में अनुलोम – विलोम, त्राटक, भ्रामरी आदि प्राणायाम उपयोगी है। जबकि आसनो में सुखासन, शवासन आदि है। जिनको आसानी से किया जा सकता है। जिसको करने में न अधिक बल लगता है। न अधिक परिश्रम करना पड़ता है। जो फैटी लिवर रोग के अनुकूल है। इससे बचनेके लिए पाचन क्रिया का व्यवस्थित होना अनिवार्य है। जिसके लिए पाचन क्रिया कैसे सुधारे को जानना चाहिए।

फैटी लिवर में क्या खाना चाहिए (Fatty Liver Diet in Hindi)

भारत अन्नो, मांस ( शाकाहारी और मांसाहारी ), यूष ( जूस ), दूध आदि से आज भी परिपुष्ट है। आयुर्वेद का प्रादुर्भाव वेद से हुआ। जिसके कारण आयुर्वेद को सनातन चिकित्सा भी कहा गया। जिसमे अन्न आदि का चिकित्सामें भी प्रचुर प्रयोग स्वाभाविक है। जिनके आधार पर आयुर्वेदीय महर्षियो ने इनका विस्तार किया। जिनको फैटी लीवर का भोजन (fatty liver diet) कहते है। जो चिकित्सीय परिपेक्ष्य में फैटी लीवर की आयुर्वेदिक दवा कहलाती है। जबकि फैटी लीवर की अंग्रेजी दवा में कृत्रिम रसायनो का प्रयोग होता है।

आधुनिक आहारविशेषज्ञ इसको fatty liver diet chart indian कहते है। जिसमे भारतकी जलवायु में उत्पन्न होने वाली फैसले आती है। जिसको फैटी लीवर के लिए क्या खाना चाहिए द्वारा भी सम्बोधित करते है। जबकि ग्रेड के अनुसार भोजनाहार में भी विभेद है।

फैटी लिवर ग्रेड 1 डाइट प्लान : यह फैटी लिवर का आरम्भिक समय होता है। जिसका पूर्ण उपचार भोजन आदि के माध्यम से होता है। जिसमे बिना पानी या बहुत पानी में उगने वाले अन्न आदि है। जैसे जौ, मूंग, लाल शालीचावल आदि। इसके साथ ही हरे पत्ते वाली जैसे पालक, चौरई आदि और गरिष्ट जैसे अरुई, बंडा आदि। जबकि हल्के खट्टे फल जैसे – आंवला, नीबू, अनार, मौसम्बी, नीबू आदि का प्रयोग लाभकारी है। दिन में 15 मिनट धुप का सेवन आदि करे। अधिक तेल, मसाला, खटाई, चीनी का प्रयोग न करे। शराब का सेवन न करे।

फैटी लिवर ग्रेड 2 डाइट प्लान : इसमें ग्रेड 1 की सभी बातो का अनुशरण करे। इसके साथ ही बहुत ही कम तली भुनी चीजों जैसे – नमकीन, चाट, जंक फ़ूड का प्रयोग बहुत ही कम करे। यदि न करे तो और भी अच्छा है। यह सभी उपाय फैटी लीवर की आयुर्वेदिक दवा कहलाती है।

फैटी लिवर ग्रेड 3 डाइट प्लान : इसमें ग्रेड 1 और ग्रेड 2 दोनोंका पूर्णतः पालन करे।

फैटी लीवर में चावल खाना चाहिए

इस रोग में केवल लाल शालीचावल उपयोगी है। जबकि अन्य प्रजाति के चावलों का सेवन निषिद्ध है। जिसका कारण पानी में उगना और पकना। 

फैटी लीवर में दूध का प्रयोग

सभी उदर रोगो में आयुर्वेद के अनुसार दूध उपयोगी है। जिसमे गाय, बकरी, भैस और ऊटनी के दूध का उपयोग है। फैटी लीवर (fatty liver) में पेट को तन्दु रुष्ट  रुष

फैटी लीवर में हल्दी का प्रयोग

हल्दी अपने चिकित्सीय गुणों के कारण प्रसिद्द है। जिसके सेवन से प्रतिरक्षा प्रणाली में सुदृढ़ता आती है। जो मल विक्षेपण में भी महती भूमिका प्रदर्शित करती है।

फैटी लीवर से सम्बंधित प्रश्न ( FAQ Related to Fatty Liver)

फैटी लिवर का पता कैसे चलता है?

फैटी लीवर का पता रोगी से प्राप्त होने वाले लक्षणों, और जांच परीक्षणों के आधार पर लगाया जाता है। 

फैटी लिवर की बीमारी में मरीज़ को क्या क्या परेशानियां होती है?

पेट के अन्य रोगो की भाँती इसमें भी पाचन से, सम्बन्धिक सभी समस्याओ के साथ अन्य समस्याए जैसे खांसी आना, छाती में दर्द होना, नींद न आना जैसी समस्या होती है।

फैटी लीवर की सबसे अच्छी दवा कौन सी है?

लीवर का समग्रता से पोषण करने के कारण भुई आवला, हल्के खट्टे अनार का रस, तेल – मसाले का कम से कम प्रयोग। फैटी लीवर की दवा और बचाव है।

फैटी लिवर का दर्द कहाँ होता है?

अमूमन यकृत या लिवर का दर्द दाहिनी और छाती के नीचे होता है। लेकिन गंभीर परिस्थियों में यह अन्य स्थानों पर भी देखा जा सकता है। 

26 thoughts on “फैटी लीवर कारण, लक्षण और घरेलू उपचार : Causes, Symptoms and Home Remedies for Fatty Liver in Hindi ”

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