स्वास्थ्य मानव जीवन की अपूर्वता का ख्यापक है। जिसमे यकृत ( लीवर ) का महत्वपूर्ण योगदान है। लीवर बढ़ने ( Liver Enlargement) को आयुर्वेदमें यकृदाल्युदर कहा गया है। आंग्ल भाषा में लिवर का बढ़ना हिपेटोमिगेली कहलाता है। जिसके उपचार में लिवर की एलोपैथिक दवा, और लिवर के लिए आयुर्वेदिक दवा का उपयोग है। चिकित्सा में लक्षणों को सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है। जब बात लिवर के बढ़ने (Enlarged Liver) की हो तो, लीवर बढ़ने के लक्षण की स्वाभाविक अनुगति है। जिसका उपयोग रोगोपचार में होना लाजिमी है। जिससे पेट में दर्द होने जैसी समस्याए उत्पन्न होती है।
यकृत में शोथ ( सूजन ) आदि को यकृत वृद्धि कहा जाता है। जिसको आयुर्वेद ने प्लीहावृद्धि का नाम दिया है। साथ ही स्थान विशेष से इसके नामांतर को दर्शाया गया है। जबकि लक्षण की दृष्टि से दोनों में समानता है। जिसके कारण दोनों की सामान चिकित्सा का वर्णन है। इनके आधार पर ही दोनों को एक माना गया है। जबकि व्यवहार में दोनों को भिन्न देखा जाता है। यह दोनों अंग पेट में पाए जाते है। जिसके कारण दोनों को उदर रोगोमें स्थान दिया गया है। दिनचर्या की अनुगति सभी रोगो में है। जिसके लिए आधुनिक जीवन की स्वस्थ दिनचर्या को जानने की आवश्यकता है।
लिवर की समस्या प्रायः दाहिनी तरफ होती है। वही प्लीहा रोग बाई तरफ होता है। जिसको तिल्ली का बढ़ना कहते है। जिसमे पाचन, फेफड़ो और ह्रदय आदि से सम्बंधित अनेको प्रकार की समस्याए होती है। जिसका कारण यकृत का उपरोक्त अंगो से पारस्परिक सम्बन्ध है। जिनमे आपेक्षिक अनुकूलता सधने पर ही हमे परिणाम के, रूप में आपेक्षित स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। जिसका उपयोग हम कर्म सम्पादन ( उद्देश्य पूर्ति ) में करते है।
लीवर बढ़ना क्या है (What is Enlarged Liver in Hindi)
लिवर अंग्रेजी भाषा का शब्द है। वही लीवर का हिंदी नाम यकृत है। जिसमे विकृति आने पर इसके आकार में वृद्धि होती है। जिसको लीवर बढ़ना कहते है। बढे हुए लिवर से तात्पर्य (enlarged liver meaning), इसके आकार, भार इत्यादि का बढ़ना है। वसा आदिके जमाव को फैटी लीवर का कारण बताया जाता है। जो फैटी लिवर हिपेटोमिगेली (fatty liver hepatomegaly) कहा जाता है। हिपेटोमिगेली का अर्थ लीवर का बढ़ना व सूजन होना है। जिसकी पहचान में लीवर बढ़ने के लक्षण सहायक है।
मानव शरीर रचनानुसार तिल्ली और लीवर मानव शरीर में, पसलियों के ठीक नीचे बाई और दाई ओर होते है। जिसमे होने वाली वृद्धि को ही प्लीहा वृद्धि एवं यकृतवृद्धि कहते है। जिनको मॉडर्न साइंस में हिपेटोमिगेली (Hepatomegaly) कहा जाता है। जिसके होने में आहार, दिनचर्या आदि का योगदान है। यकृत रोगो से निपटने के लिए लिवर की एलोपैथिक दवा, हिपेटोमिगेली आहार आदि का प्रयोग होता है। सही समयपर चिकित्सा होनेपर ही इनसे बचा जा सकता है। क्योकि इन रोगो का पता जल्दी नहीं चल पाता है। इन रोगो से बचाने में अदरक सहायक है। जिसको अदरक के फायदे कहते है।
यह रोग प्रायः अधिक उम्र वालो को होता है। यह शुरू में बहुत ही धीमी गतिसे आरम्भ होता है। साथ ही हमारे मतिष्क में इस प्रकार के गंभीर रोग, होने की आशंका भी नहीं होती है। जिससे रोग पहचान और उपचार में देरी होती है। इस कारण लिवर का आकार बढ़ना प्रारम्भ रहता है, और हमें पता भी नहीं चलता। शनैः शनैः प्रबल होकर जीर्णता को प्राप्त होता है। जिसके कारण हमें विषमयकारी परिणामो की प्राप्ति होती है। इसको ही लिवर का बढ़ना इन हिंदी कहते है। जिसकी दवाओं में लिवर के लिए आयुर्वेदिक दवा का विशेष योगदान है।
लीवर बढ़ने का कारण (Enlarged Liver Causes in Hindi)
आयुर्वेदानुसार हिपेटोमिगेली कारणों में पित्त और कफ दोषो को स्वीकारा गया है। जिनमे विदाहकारक तथा अभिष्यंदी पदार्थो को इनका हेतु माना गया है। आयुर्वेद का पूर्ण अनुगामक पाकशास्त्र है। जिसमे अचार, खटाई, मिर्च और मसाले आदि को जलन ( विदाह ) कारक माना गया है। जबकि रिफाइंड तेल, जर्सी घी ( वनस्पति घी ), अरुई, इत्यादी को गरिष्ट ( अभिष्यंद ) पदार्थ कहा गया है। आजकल जंक और फास्ट फ़ूड इनके ही रूप है। जिसमे चाउमीन, बर्गर, पिज्जा आदि है। जो लीवर के बढ़ने के कारणों में प्रधानकारक है। साथ ही कब्ज आदि को भी जन्म देते है। जिसके उपचार को कब्ज का रामबाण इलाज कहा जाता है।
विदाहोकारक वस्तु पित्त दोष का उद्दीपन करती है। वही अभिष्यंदोत्सर्जक वस्तुए पाचकाग्नि को मंदकर कफ दोषो का उत्सर्जन करती है। जिनके कारण बड़ी हुई लीवर और तिल्ली (enlarged liver and spleen), की समस्या जन्म लेती है। आधुनिक विज्ञान भी यह मानता है कि प्लीहा और यकृत, का रक्त निर्माण के साथ घना सम्बन्ध है। जिसे सुश्रुत आदि आचार्य पहले से जानते थे। नवीन धारणाओं के अनुसार फैटी लीवर का मुख्य कारण – जीवाणुओ से होने वाले रोगो को माना गया है।
जैसे – पुराना मलेरिया, कालाज्वर ( काला बुखार ), हॉजकिन्स रोग, लीवर सिरोसिस, प्लीहा के अर्बुद आदि। इसके साथ इसमें रक्तके रोगको भी स्वीकार किया गया है। जैसे – ल्यूकेमिया ( श्वेत कणवृद्धि ), प्लेहिक पांडुरोग ( स्पेनिक एनीमिया ), दुष्टपाण्डुरोग ( परनीसियस एनीमिया ) आदि। इसके अतिरिक्त रक्त के दूषित हो जाने से रक्त में, रोगोके जीवाणुओके प्रविष्ट होने से इनका कार्य बढ़ जाता है। इस बढे हुए कार्य को पूर्ण करने के लिए धीरे – धीरे प्लीहा और यकृत में वृद्धि होती है।
लीवर बढ़ने के अन्य कारण (Other Enlarged Liver Reasons in Hindi)
आधुनिक विज्ञान के अनुसार लीवर बढ़ने के उपरोक्तारिक्त कारण भी है। जैसे –
- अत्यधिक मात्रा में मादक द्रव्यों का सेवन। जैसे – शराब, जर्दा, पान मसाला आदि।
- अनेको प्रकार की दवाइयों का मात्रा से अधिक सेवन करना। जैसे – स्टेराइड, एंटीबायोटिक आदि।
- लीवर में अनेको प्रकार के मलो का एकत्रीकरण होना। जैसे – आयरन ( लोहा ), ताम्बा आदि।
- आवश्यकता से अधिक वसा, प्रोटीन आदि का इकठ्ठा होना।
- वायरस जनित रोगो का होना। जैसे – हेपेटाइटिस – ए, हेपेटाइटिस – बी, हेपेटाइटिस – सी, टॉक्सिक हेपेटाइटिस आदि।
- पित्त की थैली या बाइल डक्ट में अवरोध होना। पित्त की पथरी आदि के कारण।
- अनेको प्रकार के रोगो का होना। जैसे – कैंसर ( ल्यूकेमिया, लिम्फोमा, लीवर कैंसर ), फैटी लीवर, सिरोसिस, ह्रदय रोग ( ह्रदय वाहिनियों में रुकावट होना, हार्ट फेल होना आदि )
- ह्रदय रक्तवाहिनियों का सकरा होना या फूल जाना ( पेरीकार्डिटिस )
बच्चो में लिवर बढ़ने (enlarged liver in children) की समस्या, प्रायः नहीं पायी जाती। परन्तु आजकल की जीवन शैली में किसको, कब, क्या हो जाए? कुछ कहा नही जा सकता। जिसके कारण बच्चो में भी इन रोगो के, अनुगति की संभावना होती है। जिनमे लिवर के लिए आयुर्वेदिक दवा प्रायोगिक है। यह दवाई जहा एक ओर सस्ती है। वही दूसरी ओर प्रभावकारी भी है। कभी – कभी लीवर रोग में खांसी भी पायी जाती है। जिसके लिए खांसी का इलाज घरेलू बड़े काम का है।
लीवर बढ़ने के लक्षण (Enlarged Liver Symptoms in Hindi)
अलग – अलग व्यक्तियों की प्रकृति में भेद है। जिसके चलते लीवर बढ़ने का लक्षण में भिन्नता है। जिनको हिंदी में लीवर बढ़ने के लक्षण इन हिंदी, के नाम से जाना जाता है। इसके उपचारार्थ लिवर के लिए आयुर्वेदिक दवा का उपयोग है। जिनके कुछ लक्षण इस प्रकार है –
- शरीर में दुर्बलता
- भोजन से अरुचि
- खाएं हुए भोजन का भली प्रकार न पचना
- मल एवं मूत्र में रुकावट होना
- आँखों के सामने अंधेरा छा जाना ( चक्कर आना )
- थकान होना और बार – बार प्यास लगना
- उल्टी होना, बेहोश होना, अंगो का शिथिल पड़ जाना या इनसे पीड़ित होना
- हल्का बुखार, खांसी, साँस लेने में कठिनाई होना
- आनाह, अग्नि का मंद पड़ना, मुँह का फीकापन होना
- जोड़ – जोड़ में दर्द होना
- पेट में मरोड़ आदि के साथ दर्द होना
- पेट के ऊपरी भाग का रंग परिवर्तित होना ( जैसे – लाल, पीला, नीला होना )
- पीलिया होना
लिवर का साइज कितना होता है (Liver Size in mm)
आधुनिक विज्ञान के द्वारा लीवर के भार और आकार का, अनुमान लगाना सम्भव हो गया है। जबकि वास्तव में हर व्यक्ति की मोटाई, चौड़ाई, लम्बाई आदि में भेद होता है। इसके कारण प्रत्येक व्यक्ति के शारीरिक बनावट में भेद है। जिसका प्रभाव लीवर आदि पर भी देखा जाता है। इस आधार पर किसी व्यक्ति के किसी भी अंग को, छोटा या बड़ा कहना कठिन है। विज्ञान (Scince) का मूल गणित है। जिसके कारण विज्ञान में गणित आरोपित है। इसलिए गणितीय संक्रियाओं का आलंबन लेकर औसत (average)का निर्धारण किया गया है। जो वास्तविक न होकर काल्पनिक है।
महिला और पुरुष शरीर में भी भेद है। जिनके कारण दोनों के लिवर आदि में अंतर है। सामान्यतः महिलाओ का लीवर पुरुषो की तुलना में छोटा है। महिला में 70 मिमी और पुरुषो में 105 मिमी, लीवर को सामान्य समझा जाता है। लीवर के औसत भार की बात करे, तो 1200 से 1400 ग्राम स्त्रीयो में, और 1400 से 1500 ग्राम पुरुष में है। इससे अधिक आकार और भार में परिवर्तन होने को ही, आभाषी रूप से लीवर बढ़ना कहा जाता है। 17 सेमी का लीवर (enlarged liver 17cm) खतरनाक है। जिसमे लिवर के लिए आयुर्वेदिक दवा का प्रयोग होता है।
मोटापा और कब्ज लीवर रोगो का प्रमुख कारण है। जिसके उपचार को मोटापे कब्ज का आयुर्वेदिक इलाज कहते है। इससे पीड़ित लोगो में यह आसानी से अपना प्रभाव दिखाता है। जिसके लिए कब्जोपचार की अपेक्षा है। इन परिस्थितियों में लिवर के लिए आयुर्वेदिक दवा patanjali, असरकारक है।
लीवर बढ़ने का परीक्षण ( Diagnosis Of Enlarged Liver in Hindi)
लीवर बढ़ने का परीक्षण कैसे करे – चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा लीवर परीक्षण की अनेको विधिया अपनाई जाती है।
- मौखिक परीक्षण – इसमें चिकित्सा विशेषज्ञ आपके पेट को छूकर भौतिक रूप से, लीवर बढ़ने का पता लगाते है। जिसमे पेट के आकार और बनावट पर विशेष ध्यान देते है।
- रक्त परीक्षण – रक्त के माध्यम से लीवर में रसायनिक तत्वों ( एंजाइम आदि ) की जांच की जाती है। जिसमे विविध प्रकार के संक्रमण का पता लगता है। जो लीवर बढ़ने के लक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत करते है।
- इमेजिंग परीक्षण – अल्ट्रासॉउन्ड, सिटी स्कैन, एम आर आई इत्यादि के द्वारा इलेक्ट्रानिक चित्रों के माध्यम से लीवर बढ़ने की जांच की जाती है।
- मैग्नेटिक रेजोनेंस एलास्टोग्राफी (Magnetic Resonance Elastography) – यह भी एक प्रकार की बायोप्सी है। जिसमे विकीरण यंत्र के द्वारा ध्वनि तरंगो को भेजा जाता है। जो लीवर कोशिकाओं की जकड़न का चित्र बना कर दिखाता है।
- बायोप्सी – इसमें लम्बी और पतली सुई के माध्यम से लीवर की मृत कोशिकाओं को निकालकर प्रयोशाला में परीक्षण के लिए भेजा जाता है। इसको ही लीवर बायोप्सी कहा जाता है।
- नाड़ी परीक्षण – यह प्रामाणिक आचार्यो का परम्परा प्राप्त विज्ञान है। जिसमे रोगी की नाड़ी का चिकित्सा सिद्ध जांच करते है। जिसके माध्यमसे लीवर बढ़ने के लक्षण की पुष्टिहो जाती है। यह वह विधा है। जिसमे समय, सामाग्री आदि की बचत होती है। साथ ही साथ त्वरित और सटीक चिकित्सा सफलता पूर्वक संपन्न होती है।
क्या बढ़ा हुआ लीवर खतरनाक है (is enlarged liver dangerous in Hindi)
बढे हुए लीवर का प्रभाव (enlarged liver effects), सम्पूर्ण शरीर पर होता है। यह लक्षण सामान्य रूप से सभी रोगो में विद्यमान है। जिसकी पहचान लीवर बढ़ने के लक्षण द्वारा होती है। यकृत को शरीर का अहम अंग माना गया है। जो पाचन, रक्त निर्माण और शुद्धि, प्रतिरक्षा जैसे अनेको महत्वपूर्ण कार्यो का सम्पादन करता है। जिसकी रुग्ण होने पर यह सभी बाधित होते है। जिससे शरीर संचालनमें आवश्यक तत्वों की आपूर्ति बाधित होती है। जिससे यह प्राणघातक होता है।
जिसके लिए चिकित्सा शास्त्रों में, त्वरित और पूर्ण निदान की बात बताई गई है। लीवर रोग पुराना होने के बाद असाध्य हो जाता है। जिसके कारण इसकी चिकित्सा भी गंभीर हो जाती है। इन घटनाओ से बचने के लिए लिवर की एलोपैथिक दवा, और लिवर के लिए आयुर्वेदिक दवा। दोनों अपने – अपने स्थान पर उपयोगी है। बुखार जिसे हम ज्वर भी कहते है। यह बहुत की सामान्य रोग है। जिसकी अनुगति सर्व रोगो में है। यह अनियंत्रित होने पर अत्यंत प्रलयकारी होता है। जिसके लिए बुखार की सबसे अच्छी दवा का उल्लेख है।
विचार करना आवश्यक है कि – जब बुखार गंभीर से गंभीरतम अवस्थाओं को उत्पन्न कर सकता है, तो यकृत विकृति क्यों नहीं कर सकती। रोग की तीव्रता ही रोगी को सामान्य से असामान्य परिस्थिति तक पहुंचाने में समर्थ है। इस आधार पर रोग कोई भी असामान्यता की अवधि में खतरनाक होता है।
क्या बढ़ा हुआ लीवर कष्ट साध्य है (is enlarged liver curable)
आधुनिक विज्ञान पर आधारित शोधानुसार लीवर को स्टेज, आदि में विभाजित किया गया है। जिसमे शुरुआती चरणों को साध्य कहा गया है। और बाद के चरणों को असाध्य रोगो की, श्रेणी में रखा गया है। जिसको हम नए और पुराने रोग के नाम से जानते है। एलोपैथी में लीवर बढ़ने के लक्षण पर ही विभाजन है।
सनातन चिकित्सा में वातज, पित्तज, कफज और रक्तज लीवर को साध्य कहा गया है। जबकि सन्निपातज लीवर को असाध्य कहा गया है। जोकि दोष आधारित है। और दोष ही आयुर्वेद चिकित्सा का मूल आधार है। जिसके कारण लीवर बढ़ने को घातक (enlarged liver dangerous), कहा गया है। जिसको साध्य करने में लिवर के लिए आयुर्वेदिक दवा, बहुत ही लाभकारी है।
लीवर बढ़ने का उपचार (enlarged liver treatment in Hindi)
यकृदाल्युदर की समस्या होने पर प्रायः प्लीहोदर देखा जाता है, क्योकि प्लीहा की परिष्कृत विकृति ही लिवर का बढ़ना है। अंतर् केवल इतना है कि – तिल्ली में दर्द बाई पसली के नीचे होता है, तथा लीवर बढ़ने पर दायी पसली के नीचे होता है। दोनों रोगो में लक्षणों की समानता पायी जाती है। जबकि एक साथ दर्द दोनों ओर न होकर एक ओर ही होता है। बाई ओर दर्द होनेपर रोग को दुर्बल जबकि दाई ओर, दर्द होने पर रोग को प्रबल माना जाता है। जिसके कारण यकृदाल्युदर को प्लीहोदर की तुलना में, अधिक खतरनाक समझा जाता है।
आयुर्वेद में लीवर बढ़ना और यकृदाल्युदर दोनोंको अलग समझा जाता है। यह वह अवस्था है। जिसमे प्लीहा के साथ यकृत भी बढ़ता है। उसे यकृदाल्युदर कहते है। इसको ही एलोपैथी में इन्लार्जमेण्ट ऑफ़ दि स्प्लीन विथ इन्लार्जड लीवर (Enlargement of the spleen with enlarged liver) कहते है। जिसके उपचार में लिवर की एलोपैथिक दवा प्रयुक्त है। यकृदाल्युदर से हिपेटोमिगेली उपचार को कुछ मृदु माना जाता है। इनको ही लिवर का इलाज भी कहते है। जिसमे लिवर के लिए आयुर्वेदिक दवा भी असरकारक है।
यकृत को परिपुष्ट करने वाली औषधियों को, लीवर मजबूत करने की दवा कहा जाता है। जो लीवर बढ़ने के लक्षण का नाश करता है। जिनमे लिवर का रामबाण इलाज पतंजलि भी प्रभावकारी है। जिसमे अनेको औषधीय द्रव्यों का आनुपातिक प्रयोग है। जिनसे लीवर बढ़ने के लक्षण पर विजय प्राप्तकी जाती है। लीवर बढ़ने से फैटी लीवर, लीवर फाइब्रोसिस आदि रोग होते है। जबकि लीवर सिरोसिस, लिवर कैंसर आदि लीवर सिकुड़ने एवं गलने से होते है। पाचन के अभाव में सभी रोग बढ़ते है। जिसके लिए पाचन क्रिया कैसे सुधारे को समझकर अपनाने की आवश्यकता है।
लीवर बढ़ने के घरेलू उपचार (Home Remedies for Enlarged Liver in Hindi)
आयुर्वेद चिकित्सा में उपयोग होने वाली औषधिया रसोई में, मसालों के रूप में उपयोग की जाती है। जैसे – हींग, सोंठ, मिर्च, पिप्पली, कूठ, जवाखार, सेंधानमक, कालानमक, नीबू, मधु, अजवाइन, पीपरामूल इत्यादी। इनके अतिरिक्त हम कुछ औषधियां सब्जी, फल आदि के रूप में ग्रहण करते है। जो स्वास्थ्य प्राप्ति में अभूतपूर्व भूमिका प्रस्तुत करती है। जिनके कारण ये घरेलू नुस्खा, उपाय आदि नामो से प्रसिद्द है। इनकी मदद से लीवर की सफाई, पोषण आदि का कार्य होता है। इसीलिए लीवर बढ़ने का घरेलू उपाय आज भी पूर्ववत उपयोगी है।
लीवर बढ़ने के लक्षण को मिटाना ही मूल निदान है। जिसको लगभग सभी पद्धतियों में स्वीकारा भी जाता है। जिसमे लिवर के लिए आयुर्वेदिक दवा कारगार है। जबकि आजकल एलोपैथी को अन्यो से अधिक प्रभावी माना जाता है। जिसमे लिवर की एलोपैथिक दवा का उपयोग है। यह लीवर बढ़ने के लक्षण के आधार नहीं, बल्कि आधुनिक शोधो पर आधारित है। लीवर रोग में सोंठ भी गुणकारी है। जिसे सोंठ के फायदे और नुकसान कहते है।
आयुर्वेद में शरीर या शारीरिक अंगो ( लिवर ) की सफाई को, मल निष्कर्षण कहा जाता है। इस विधि को आयुर्वेद रेचन कहता है। जिन औषधियों से रेचन किया जाता है। उन्हें रेचक औषधियां कहते है। इनको ही लीवर साफ करने के लिए आयुर्वेदिक दवा भी कहते है। जैसे – त्रिफला, तिल का तेल, अरंडी ( रेडी ) का तेल, घृत आदि। इसके साथ ही लीवर को मजबूती देने के लिए भी अनेको दवाएँ है। जिनको लीवर मजबूत करने के लिए आयुर्वेदिक दवा कहते है। जैसे – पिप्पली, गुड़ के साथ हरीतकी एवं क्षारो ( आरिष्टों ) आदि का प्रयोग है।
लीवर बढ़ने का आयुर्वेदीय उपचार (Ayurvedik Treatment for Enlarged Liver in Hindi)
आयुर्वेद में लीवर बढ़ने के उपचार की अनेको सिद्धस्त औषधियां है। जो लीवर बढ़ने के लक्षण का समूल नाश करने, में उपयुक्त होती है। जिसके कारण इनको लिवर के लिए आयुर्वेदिक दवा के रूप में देखा जाता है। जिनकी प्रकृति लिवर की एलोपैथिक दवा से अलग है। जिसका मुख्य कारण इनका स्वाभविक गुण है। यकृत को परिपुष्ट करने वाली दवाइयों को ही, लीवर ठीक करने के लिए आयुर्वेदिक दवा कहते है। जिनमे कुछ ऐसी दवाइयां है। जो लिवर शोथ में उपयोगी है। जिनको लीवर की सूजन के लिए आयुर्वेदिक दवा कहते है।
यकृत में अत्यधिक वृद्धि होने पर रक्तमोक्षण का भी विधान है। जो भाव प्रकाश में वर्णित है। जबकि सुश्रुत आदि में बाए हाथ की कोहनी के अंदर, की ओर जाने वाली शिरा का बेधन बताया गया है। जिसको हम लीवर बढ़ने की शल्य क्रिया ( आपरेशन ) कहते है। जो शल्य विशेषज्ञों द्वारा ही किया जाता है। चिकित्सा की दृष्टि से यह अनिवार्य भी है। जिसकी शास्त्रोक्त विधि है। जिसका अनुपालन करने पर ही शास्त्र सम्मत फल ( स्वस्थ्यता ), रोगी और चिकित्सक दोनों को प्राप्त होता है। जबकि सामान्य क्रिया में स्नेहन, स्वेदन, विरेचन आदि का उल्लेख है।
जिनमे आयुर्वेदोक्त विधि द्वारा निर्मित दवाओं का प्रयोग होता है। जिनके कुछ योग इस प्रकार है –
- सोंठ, पिप्पली, वायविडंग, जमालगोटा जड़, चित्रकमूलक – इन सभी को समान भाग और हरीतकी को दोगुनी मात्रा में लेकर। सभी कूट – पीस कर चूर्ण बना ले। इसका सेवन उचित मात्रानुसार गर्म पानी के साथ करे।
- रोहतकी की पतली शाखाओ के छोटे – छोटे टुकड़े करके हरीतकी के क्वाथ में, या गोमूत्र में सात दिनों तक भिगोकर रख दे। सातवे दिन हाथ से मलकर कपडे से छानकर सेवन करे। यह उदर सम्बंधित सभी रोगो में लाभकारक है।
लीवर बढ़ने का होम्योपैथिक उपचार (Homoeopathic Treatment for Enlarged Liver in Hindi)
आज के समय में होम्योपैथी को दुनिया की दूसरी सर्वाधिक प्रचलित उपचार पद्धति कहा जाता है। जिसके कारण इसका चलन भी है। यह पूर्णतया लक्षणों पर आधारित है। जिसमे रोगी के लीवर बढ़ने के लक्षण का सूक्ष्मता से आकलन किया जाता है। तदनुकूल दवाई का चयन होता है। रोगी सामर्थ्यानुसार उसकी मात्रा निर्धारित की जाती है। जो लिवर की एलोपैथिक दवा की ठीक विपरीत है। जबकि लिवर के लिए आयुर्वेदिक दवा के लगभग अनुकूल है।
लीवर को ठीक करने की मैटेरिया मेडिका में अनेको दवाए है। जैसे – नक्स वोमिका, लाइकोपोडियम, चाइना, कार्बोवेज, लैकेसिस, कैल्केरिया कार्ब, पैलेडियम, सीपिया, इग्निसिया, पल्साटिला, सल्फर, बेलाडोना, अकोनाइट, डल्कामारा, डायोस्कोरिया, चेलिडोनियम आदि है। सभी की अपनी अलग स्वाभिवक प्रवृत्ति है। जिसके अनुकूल लक्षणों की प्राप्ति होने पर ही इनका उपयोग होता है।
ध्यान रहे : रोगी से लक्षण प्राप्त करने में त्रुटि होने पर उपयुक्त दवा का चयन असम्भव है। जिसको गलत दवा का चयन भी कह सकते है। ऐसी दवा से रोग उपचार सम्भव नहीं। जैसे – अधिक शराब आदि का सेवन करने एवं परिश्रम विहीन जीवन व्यापन करने वालो को नक्स वोमिका, पेट में गैस आदि की समस्या होने पर लाइकोपोडियम, पीलिया आदि होने पर चेलिडोनियम, शरीर काला पड़ने पर लैकेसिस का प्रयोग होता है।
लीवर बढ़ने में योग और व्यायाम ( Yoga for Enlarged Liver in Hindi)
योग और व्यायाम मानव स्वास्थ्य के लिए नितांत आवश्यक है। जिसको पुराने लोग परिश्रम या मेहनत कहते है। अब आधुनिक विज्ञान भी परिश्रम को बल देता है। जिसके अनेको कारणों की चर्चा व्यायाम आधारित पुस्तकों में की गई है। जिनके माध्यम से लीवर बढ़ने के लक्षण को कम करने में सहायता मिलती है। एलोपैथी जगत में लिवर की एलोपैथिक दवा के साथ, व्यायाम की भी अब सलाह दी जाने लगी है। ऐसा होने पर रोगी में तेजी से सुधार भी आमतौर पर देखा जाता है। जिससे रोगी का आत्मविश्वास बढ़ता है। जो रोग की मनोवैज्ञानिक चिकित्सा है।
जिनका वर्णन आयुर्वेदादी शास्त्रों में सूत्रशैली में किया गया है। जबकि लिवर के लिए आयुर्वेदिक दवा का विस्तृत विचार तो है ही। साथ इस रोग से पीड़ित व्यक्ति शरीर से कृशकाय होता है। जिसके कारण आयुर्वेद में व्यायाम को लेकर कुछ निषेधात्मक बाते भी है। जिनका परिपालन करना हमारे हित में है। जैसे – किसी प्रकार का अधिक श्रम, अधिक दूरी की पैदल यात्रा, दिवस शयन, यानो से यात्रा करना ( घुड़सवारी, वाहन इत्यादी ) आदि।
आजकल योग का प्रचलन अधिक है। लेकिन अधिक श्रम का चिकित्सीय निषेध है। जिसके कारण कम श्रम, न्यून श्रम और कम हलचल वाले आसन एवं प्राणायाम ही करना चाहिए। जैसे – सुखासन, शवासन, पद्मासन, अनुलोम – विलोम आदि ही करना चाहिए। यदि बच्चे लीवर की समस्या से ग्रस्त है, तो उन्हें ज्यादा दौड़ – भाग वाले खेलो से बचाना चाहिए। जिससे कम समय में औषधि आदि के द्वारा भरपूर लाभ मिल सके।
लीवर बढ़ने पर क्या खाना चाहिए (Diet For Enlarged Liver in Hindi)
बढे हुए लीवर के भोजन (enlarged liver diet in hindi), में सुपाच्य भोजन करना चाहिए। जिससे पाचन अग्नि के अभाव में भी पाचन हो सके। जिसके लिए लघु ( आसानी से पचने वाले ) भोजन सर्वोत्तम है। जिसमे दालो में मूंग, चावल में लाल शालीचावल, आटे में जौ इत्यादि अन्न का सेवन उपकारक है। इनके अतिरिक्त वनो में पाए जाने वाले पशु – पक्षियों के मांस, दूध, मूत्र, आसव, आरिष्ट, मधु, सिद्धू और सुरा का प्रयोग आयुर्वेद में हितकारी बताया है।
लीवर बढ़ने के लक्षण को उपचारित करने में, औषधि विमिश्रित द्रव्यों का विधान आयुर्वेदादी शास्त्रों में है। यह असरकारक इसलिए भी है क्योकि, इसमें भोजन को दवा बनाकर खाया जाता है। जिसका एकमात्र उल्लेख आयुर्वेद में प्राप्त है। जहां भी इसका उपयोग होता है। वह इसी सिद्धांत का अनुकरण है। जैसे – पंचमूल के क्वाथ से बनाये गए जूस में हल्के खट्टे अनार का रस, कालीमिर्च का चूर्ण और घी मिलाकर भात के साथ खाना उत्तम है। इन्ही उपायों के कारण ही आयुर्वेद आज भी लोगो के ह्रदय में आस्थान्वित है।
ध्यान रहे : शाकाहारी रोगी को उसकी इच्छा के विरुद्ध, या उससे छिपाकर मांसाहार का सेवन कराना पाप है। अनुकूल औषधि द्रव्यों से ही चिकित्सा विदित है। विकल्प की अनुपस्थिति में ही मांसाहार का सेवन उपयुक्त है। जबकि मांसाहार का सेवन करने वाला, मांसाहारी सामाग्री का उपभोग कर सकता है। इन सिद्धांतो की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि – जहां एक ओर रोगी को मनपसंद भोज्य पदार्थ प्राप्त होता है, वही दूसरी ओर रोग से निवृत्ति ( छुटकारा ) होती है।
लीवर बढ़ने पर क्या नहीं खाना चाहिए (Don’t Eat In Enlargerd Liver in Hindi)
पेट से सम्बंधित रोग होने पर भूख आदि का विलोप हो जाता है। जिससे लीवर बढ़ने पर क्या खाएं और न खाए ? यह जानना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। भूख लगने पर भोजन की मांग शरीर करता है, न कि दवा का। जबकि एलोपैथी में रोगोपचार के लिए लिवर की एलोपैथिक दवा, का ही ज्यादातर उपयोग होता है। जिसके चलते खाने में बहुत ही सीमित सामाग्रिया उपलब्ध हो पाती है। जिनके कारण लोग इनका परिपालन चाहकर भी नहीं कर पाते। एक ओर जहां सामाग्री की अनुपलब्धता, इनको ऐसा करने से रोकती है। वही दूसरी ओर अनुकूल स्वाद की विवसता सिद्धांत का अवरोधक है।
दोनों में तालमेल के अभाव के कारण भी रोगी पर, रोग का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जिससे रोगी में रोग के प्रति असहिष्णुता बढ़ती है। और रोग प्रतिरोधक क्षमता का ह्रास होने लगता है। जिससे रोग अधिक प्रबल होकर सम्पूर्ण शरीर को अपने प्रभाव, से प्रभावित करता है। अर्थात रोग की तीव्रता को बढ़ाता है। परिणाम के रूप में रोगी को गुस्सा, चिड़चिड़ापन आदि होता है। जिससे भोजन का चिकित्सा से पूर्व, दौरान और बाद तीनो ही स्थानों पर अभूतपूर्व योगदान है। जैसे – प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने के लिए गिलोय का प्रयोग होता है। जिसकी सेवनीय विधा को गिलोय सेवन विधि कहा जाता है।
पेट रोग के प्रतिकूल भोजन
- अधिक पानी पीना
- जल और जल प्रधान क्षेत्रो में उत्पन्न होने प्राणियों ( जल में -मछली, कछुआ आदि। जल प्रधान में – सूअर, साही इत्यादी ) के मांस
- अनेक प्रकार की पत्ते वाली शाक- सब्जी
- चावल के आटे से बनने वाले पदार्थ
- उष्ण भोजन
- नमकीन, खट्टे, तले, भुने और चटपटे पदार्थ
- और तिल के सेवन को अहितकर कहा गया है।
लीवर बढ़ने से सम्बंधित प्रश्न ( FAQ Related to Enlarged Liver)
लिवर खराब की पहचान क्या है?
खराब लीवर की पहचान रोगी से प्राप्त होने वाले लक्षणों द्वारा होती है। जिसमे पाचकाग्नि मंद पड़ना, पेट के दाहिनी भाग में कड़ापन, सूजन और दर्द होना इत्यादी है।
लीवर बढ़ने का लक्षण क्या है?
शरीर में दर्द, थकान, उल्टी, जोड़ो में दर्द, पीलिया, चक्कर आना इत्यादि है।
लिवर की बीमारी में मरीज़ को क्या क्या परेशानियां होती है?
खाना न पचना, मल – मूत्र में रुकावट होना, बुखार होना, पेट में दर्द, मितली, उलझन जैसी समस्याए होती है।
लीवर बढ़ने से क्या होता है?
लीवर बढ़ने से अनेको प्रकार की समस्याए होती है। जैसे – पीलिया, अत्यधिक उल्टी होना, खाना न पचना, दाहिनी ओर पसलियों के नीचे मरोड़ युक्त असहनीय पीड़ा होना, उबकाई आदि। लक्षणों के गंभीर होनेपर जान जाने का भी खतरा होता है।
लिवर की कौन सी जांच होती है?
आजकल लीवर को जांचने के लिए लीवर फंक्शन टेस्ट एवं फिजिकल, रक्त, सोनोग्राफी, एम आर आई, बायोप्सी जैसे परीक्षण किये जाते है।
लीवर की सबसे अच्छी दवा कौन सी है?
आयुर्वेद में लिवर की अनेको औषधियों का वर्णन है। जिसमे यकृतवृद्धि शांति के उत्तम योगो में, पके हुए आम रस में मधु मिलाकर पीना अत्यंत लाभकारी बताया गया है।
लीवर कैसे ठीक होगा?
चिकित्सीय औषधियों के साथ आयुर्वेदोक्त आहारचर्या, दिनचर्या आदि का विधिवत पालन धैर्यपूर्वक करने पर।
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