चीनी और गुड़ हमारी दैनिक खानपान में, इस्तेमाल होने वाली आवश्यक खाद्य सामाग्रियों में से एक है। जिनका निर्माण आमतौर पर गन्ने को पेरकर, मिलने वाले रस से किया जाता है। जिसमे अधिकांश मात्रा ग्लूकोज की पायी जाती है। जिसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स 100 माना गया है।
जबकि गन्ने के रस का ग्लाइसेमिक इंडेक्स सदैव 100 से काफी कम होता है। क्योकि ताजे गन्ने के रस में पानी की पर्याप्त मात्रा पायी जाती है। लेकिन जब गन्ने के रस से चीनी बनाई जाती है, तब गन्ना रस से जल का वाष्पीकरण कर दिया जाता है। जिससे चीनी का ग्लाइसेमिक इंडेक्स ग्लूकोज के लगभग बराबर हो जाता है।
रह गई बात गन्ने से बनने वाले गुड़ की, तो गुड़ बनाने के लिए भी वाष्पीकरण की मदद ली जाती है। जिससे तकनीकी रूप से गुड़ का ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी चीनी के लगभग बराबर ही है। इस कारण चाहे आप गुड़ का सेवन करे या चीनी का, दोनों ही हमारे लिए नुकसान देह है।
फिर भी कुछ लोगों का मानना है कि गुड़ खाना चीनी खाने से सुरक्षित है। लेकिन यह सम्पूर्ण सत्य नहीं है, क्योकि इनके निर्माण की सामाग्री एक जैसी ही है। फिर खाने के लिए चीनी खराब और गुड़ अच्छा कैसे हो सकता है। यह अंतर इनके निर्माण की विधि में है। जिसके कारण चीनी का रंग सफेद और गुड़ का रंग लाल या काले रंग का होता है।
हालाकिं चीनी के वाष्पीकरण की प्रक्रिया के दौरान, चीनी को आकार और रंग देने के लिए बहुत से कृत्रिम यौगिकों का इस्तेमाल किया जाता है। जबकि गुड़ को बनाते समय लोहे के बर्तन में प्राकृतिक रूप से उबाला जाता है। जिससे गुड़ की पोषकता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। जबकि चीनी के अधिकांश पोषक तत्व नष्ट हो जाते है। इसलिए गुड़ खाना चीनी खाने से बढ़िया हो सकता है, लेकिन सुरक्षित नहीं।
गन्ने के रस का ग्लाइसेमिक इंडेक्स ( glycemic index of sugarcane juice in hindi )
चीनी का ग्लाइसेमिक इंडेक्स भले ही ग्लूकोज के लगभग बराबर हो। किन्तु गन्ने के रस का ग्लाइसेमिक इंडेक्स 45 के आस – पास होता है। जो कि लो जी आई रखने वाला खाद्य है। जिसके सेवन से हमें बहुत से फायदे मिलते है। लेकिन पूरे साल गन्ने का रस उपलब्ध नहीं रहता। जबकि मीठा खाने की इच्छा और जरूरत हमें वर्ष भर होती है।
जिसके लिए गन्ने के रस का शोधन किया जाता है। जिसमे मुख्य क्रिया के रूप में वाष्पीकरण को अपनाया जाता है। जिससे गन्ने के रस में पाया जाने वाला पानी, हवा को उड़ जाता है। जिसके बाद केवल ठोस पदार्थ ही शेष रहता है। जिससे चीनी और गुड़ का ग्लाइसेमिक इंडेक्स, गन्ने के रस से अधिक हो जाता है।
चीनी का ग्लाइसेमिक इंडेक्स ( glycemic index of sugar in hindi )
गन्ने के रस से बनने वाली, चीनी का ग्लाइसेमिक इंडेक्स ग्लूकोज के बहुत पास होता है। इस कारण चीनी हाई ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाला खाद्य पदार्थ कहलाता है। इसलिए चीनी देखने में जितनी अच्छी और खाने में स्वादिष्ट होती है। स्वास्थ्य की दृष्टि से उतनी ही अधिक हानिकारक भी होती है।
परन्तु आज भी बहुत से लोग चीनी द्वारा, शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभवों से अनजान है। जिसके कारण वह किसी न किसी रूप में चीनी का सेवन करते है। भले ही उस पदार्थ में हमे चीनी दिखाई पड़े या न पड़े। लेकिन स्वाद में मीठी लगने वाली हर चीज में चीनी निश्चित रूप से पायी जाती है।
आजकल मिठास को बढ़ाने के लिए चीनी का प्रयोग किया जाता है। फिर चाहे वह बेकरी उत्पाद हो, कार्बोनेटेड वाटर हो या कोई अन्य मीठे उत्पाद हो। इन सभी में हमेशा गन्ना से बनी चीनी का प्रयोग किया जाता है। जो हाई जी आई वाला उत्पाद होने से, स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत ही हानिकारक है।
गुड़ का ग्लाइसेमिक इंडेक्स ( glycemic index of jaggery in hindi )
गुड़ ( जग्गेरी ) और चीनी का ग्लाइसेमिक इंडेक्स, गन्ने के रस के ग्लाइसेमिक इंडेक्स से अधिक होता है। क्योकि यह गन्ने के रस का शोधन कर, जागरी को बनाया जाता है। जिसमे पानी का पूर्णतः वाष्पन हो जाया करता है। जिससे गन्ने के रस की अपेक्षा, इसमें मिठास बढ़ कर ग्लूकोज के बराबर हो जाती है।
इस कारण शुगर ( मधुमेह ) रोग में गुड़ खाना अच्छा नहीं माना जाता। जिसका प्रमुख कारण है – मधुमेह खून के मीठेपन से होने वाला रोग है। जिसमे हमारे द्वारा खाये जाने वाले अन्न आदि, पाचन के बाद शर्करा में परिवर्तित हो जाया करते है।
जो शरीर की व्यवस्था के अनुसार सीधे हमारे खून में मिला दिए जाते है। जिससे हमारे शरीर में पाया जाने वाला खून मोटा और भारी हो जाता है। जिसके कारण आक्सीजन को पहुंचाने और कार्बन डाई ऑक्साइड को बाहर निकालने में नाकाम हो जाता है।
इसको ही आजकल की भाषा में शरीर का डिटॉक्सीफाई न होना कहा जाता है। जिसके कारण यकृत ( लीवर ) पर अधिक काम पद जाता है। जिससे वह ठीक से काम करना बंद कर देता है। जिसके कारण नियमित रूप से आम इंसान के लिए गुड़ खाना अच्छा नहीं माना जाता।
जबकि खेती और मेहनत – मजदूरी करने वालों के लिए गुड़ बहुत ही फायदेमंद है। जिसकी दो मुख्य वजहें है –
- अधिक समय तक काम करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। जिसमे शर्करा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस कारण ये लोग आसानी से गुड़ को पचा लेते है।
- गुड़ ( जागरी ) फास्फोरस, कैल्शियम, सेलेनियम आदि का अच्छा स्रोत है। जो इन्हे सहज रूप में प्राप्त हो जाती है। अधिक धूल और धुए में काम करने वालों के लिए फास्फोरस जरूरी है।
उपसंहार :
गन्ने के रस से बने होने के कारण चीनी और गुड़ दोनों ही मीठे होते है। इस कारण चीनी का ग्लाइसेमिक इंडेक्स और गुड़ का ग्लाइसेमिक इंडेक्स में ज्यादा अंतर नहीं होता। परन्तु रसायन के अनुसार चीनी एक तरह का यौगिक है। जिससे गन्ने के रस से बनने वाले, यह दोनों ही उत्पाद उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले होते है।
जबकि गन्ने के रस का ग्लाइसेमिक इंडेक्स, चीनी और गुड़ से बहुत कम 45 के लगभग होता है। जिससे यह लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स रखने वाला आयुर्वेदिक पेय है। जिसको पीने से पीलिया, गुर्दा रोग आदि में फायदा होता है। इसके साथ मधुमेह रोगी भी इसका सेवन कर सकते है।
ध्यान रहे : आनुपातिक मात्रा में ग्लाइसेमिक इंडेक्स रखने वाली वस्तुओ का सेवन, हम सभी के लिए उपयोगी है। इसलिए हमें अपने भोजन में है और लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स रखने वाली, खाद्य वस्तुओ के संयोजन पर सदैव ध्यान रखना चाहिए।
सन्दर्भ :
ग्लोरिया ऐस्क्यू और जेर पैकुएट द्वारा लिखी सप्लीमेंट्स की कुछ सच्चाइयाँ
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