मानव गुदा में निकलने वाले मांस के अंकुरों को, गुदार्श या बवासीर के लक्षण कहा जाता है। जिसका उपचार करने का एक तरीका क्षार विधि है। जिसे क्षार – सूत्र ( kshar sutra ) विधि के नाम से भी जाना जाता है। जिसके लिए धागे को आयुर्वेदिक रसायनो में, अनेक बार डूबा कर सुखा कर रख लिया जाता है। फिर इसी धागे से बवासीर का उपचार किया जाता है। जिससे इस उपाय को लोग धागे से बवासीर का इलाज कहते है।
हालाकिं आयुर्वेद में सभी अर्शो का आश्रय ( स्थान ) मेद, मांस और त्वचा को बताया गया है। जबकि स्थूल आंत्र में लगे हुए साढ़े चार अंगुल लम्बे भाग को गुदा कहते है। जिसमे वलि नाम की तीन पेशिया पायी जाती है। जो डेढ – डेढ़ अंगुल लम्बी होती है। जिन्हे प्रवाहिणी, विसर्जनी और संवरणी नाम से जाना जाता है।
वाह्य रोमो से लेकर डेढ़ यव परिणाम गुदौष्ठ कहलाता है। जिनमे होने वाले गुदांकुरों में, खूनी और बादी बवासीर के लक्षण पाये जाते है। मुलायम, दूर तक फैले हुए, गहराई में होने वाले तथा ऊपर उभरे हुए ( छाते की तरह फैले हुए ) बवासीर क्षारसाद्य होते है।
यह बवासीर के ऐसे गुदांकुर होते है। जिसमे शस्त्र आदि के माध्यम से मस्से तक पहुंचना संभव नहीं होता। जिसके लिए इन मस्सों पर क्षार गिराया जाता है। जो मस्सों को जलाकर, नष्ट कर डालता है। परन्तु यह उपाय ऐसे मस्सों पर अपनाया जाता है। जो पुराने हो चुके होते है। इसलिए आँख से दिखाई देने वाले पुराने बवासीर में धागे से बवासीर का इलाज कारगर है।
लेकिन नए और दिखाई न देने वाले मस्सों के उपचार में बवासीर की गारंटी की दवाई अत्यंत उपकारी है। जो रोग के लक्षणों के अनुसार प्रयोग में लाई जाती है। इसलिए यह धागे से बवासीर का इलाज के जितनी कष्टदायी नहीं है।
क्षार किसे कहते हैं ( kshar kise kahte hai )
स्वाभाविक रूप से क्षारीय गुण रखने वाली, औषधियों के मिश्रण से क्षार बनता है। जो दो प्रकार का होता है –
- वाह्यपरिमार्जन
- अन्तःपरिमार्जन
जिनका आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जाता है। बवासीर रोग में आयुर्वेदानुसार बाह्यपरिमार्जन का ही विधान है।
क्षार के कार्य
अलग – अलग औषधियों के मिश्रण और उनके अनुपात से क्षार के निम्नलिखित कार्य है –
- यह मधुर, कटु, कषाय आदि रसों वाला है। किन्तु इसमें कटु – लवण रस अधिक होते है।
- तीक्ष्ण है, उष्ण है, जलाने वाला है, पकाने वाला है, फाड़ने वाला है, घोलने वाला है, शोधन और रोपण है।
- कृमि, आम, मेद और विष का नाशक है।
- सभी शस्त्र और अनुशस्त्रों में श्रेष्ठ है।
- छेदन, भेदन, पाटन, लेखन आदि कार्य करने वाला है। इसलिए ऐसे स्थानों में कठिनाई से शस्त्र क्रिया होती है। वहां इसका प्रयोग होता है।
- शस्त्र क्रिया से अच्छे नहीं होने वाले दुष्टव्रणों को ठीक करता है।
- बार – बार प्रकुपित होने वाले दूषित व्रण में क्षार बरता जाता है।
क्षार सूत्र विधि क्या है
आयुर्वेद में बवासीर के इलाज की एक विधि क्षार सूत्र प्रक्रिया है। जिसमे किसी प्रकार का कोई ऑपरेशन नहीं किया जाता है। बल्कि कपास के धागे को विशेष प्रकार से तैयार किया जाता है। जो शस्त्र के जैसे बवासीर के मस्सों का उपचार करती है।
जबकि आयुर्वेद में बवासीर के मस्सो पर सूती और स्वच्छ वस्त्र को रखकर, क्षार द्रव्य को गिराकर बवासीर के मस्सों को दग्ध किया जाता है। वही इसके अतिरिक्त शलाका में रुई को भिगाकर भी बवासीर के मस्सो को जलाया जाता है।
बवासीर में प्रयुक्त होने वाले बहिःपरिमार्जक क्षार तीन प्रकार के होते है –
- मध्य
- मृदु
- तीक्ष्ण
क्षार के गुण
आयुर्वेद में क्षार के दस गुण बातये गए –
- न हो बहुत तीक्ष्ण हो
- न बहुत मृदु हो
- श्वेत हो
- चिकना हो
- शीघ्रकारी हो
- पिच्छिल हो
- शिखरी ( ऊपर से पिटकावान – ऊपर को उठता हो )
- कांजी आदि से सुखपूर्वक शांत होने वाला हो
- थोड़ी वेदना करने वाला हो
- अनभिष्यंदी हो
क्षार के दोष
क्षार के गुणों के सामान ही क्षार में दस दोष पाये जाते है –
- बहुत नरम
- बहुत शीतल
- बहुत तीक्ष्ण
- बहुत मृदु
- बहुत पतला
- बहुत घट्ट
- बहुत पिच्छल
- फैलने वाला
- हीन औषध वाला
- हीन पाकवाला
क्षार के धागे से बवासीर का इलाज ( kshar sutra treatment in hindi )
उपरोक्त गुणों से युक्त क्षार के द्वारा, क्षार सूत्र धागा तैयार किया जाता है। जिसको क्षार में बार – बार डुबोकर सुखाया जाता है। जिससे इसकी मजबूती और क्रियाशीलता बढ़ती जाती है। हालाकिं कम से कम 100 बार, इस धागे को क्षार में डुबोकर और सूखा कर ही इस धागे से बवासीर का इलाज किया जाता है। जिसके कारण इसको बवासीर से छुटकारा पाने के उपाय में शामिल किया गया है।
बवासीर के मस्सों पर उपयोग होने वाले, औषधि क्षार को अपामार्ग ( चिरचिटा ) आदि से बनाया जाता है। धागे से बवासीर का इलाज, ऐसे मस्से पर किया जाता है। जो आकार में बड़े, लम्बे और गुदा के बाहर पाये जाते है। किन्तु गुदा पर छाते की तरह फैली, बवासीर का इलाज क्षार गिराकर किया जाता है।
जिसके लिए रोगी को पेट के लिटाकर बवासीर के मस्से को, क्षार से तैयार किये गए सूत्र से बांधा जाता है। फिर मस्से पर क्षार डालकर जलाया जाता है। यह प्रक्रिया तब तक अपनाई जाती है। जब तक कि मस्सों का रंग जामुन की तरह काला न हो जाय।
गुदा में निकले अंकुरों पर लगाया गया क्षार, मस्से को सूखा देता है। जबकि इन अंकुरों पर बाधा गया, क्षार सूत्र मस्से को गुदा से काटकर अलग के देता है। जिसमे होने वाली घाव और खुजली को मिटाने के लिए, बवासीर में घी का प्रयोग आदि भी किया जाता है। जिससे बवासीर के मस्से जड़ से समाप्त हो जाया करते है।
हालांकि बवासीर के मस्से को जड़ खत्म करने के उपाय बहुत ही उपकारक है। जिनका प्रयोग करने से खूनी बवासीर अथवा मस्से वाली बवासीर दोनों में लाभ होता है। जिसमे बाहरी मलहम के रूप में बवासीर के मस्से सुखाने की क्रीम लगाईं जाती है।
क्षार सूत्र साइड इफेक्ट्स ( kshar sutra side effects in hindi )
क्षार सूत्र से बवासीर का उपचार करने निम्न लिखित समस्याओ के होने की आशंका होती है –
- क्षार सूत्र ट्रीटमेंट पेनफुल होता है।
- कभी – कभी क्षार डालते समय, यह अधिक दूर तक फैल जाता है। जिससे वहा की त्वचा भी प्रभावित हो जाती है।
- क्षार सूत्र का धागा कई दिनों तक, बवासीर के मस्से पर बंधा रहता है। जिससे इसमें हमेशा खिचाव का दर्द बना रहता है।
- उपचार के दौरान मलत्याग में समस्या होती है, आदि।
उपसंहार :
क्षार सूत्र बवासीर से छुटकारा पाने के उपायों में से एक है। यह बहुत ही सहजता और सावधानी से होने वाली विशेषज्ञीय प्रक्रिया है। जिसमे असावधानी होने पर, गंभीर परिणामो की भी प्राप्ति हो सकती है। इस विधि के अनुकूल उपचारित होने वाले, बवासीर के ज्यादातर मस्से नष्ट हो जाया करते है। फिर भी इनकी पुनरावृत्ति को रोकने के लिए जीवनशैली में बदलाव अपेक्षित है।
ध्यान रहे : भीरु, दुर्बल, वात एवं पित्त रोगी, ज्वर, अतिसार, पाण्डु, शिरो रोग, ह्रदय रोग, प्रमेह, तिमिर, अक्षिपाक, अरोचक, वमन – विरेचन लिए रोगी, ऋतुमती, गर्भवती, जिसका रज और योनी उदृत्त हो गई हो, सर्वांगशूल, विष और मद्य पिए हुए में नहीं बरतना चाहिए।
मर्म, सिरा, स्नायु, संधि, तरुणास्थि, सेवनी, धमनी, गला, नाभि, नखों के अंदर, शुष्क, मेहन के स्रोतों, अल्पमांस वाले प्रदेशों में, वतर्मरोग को छोड़कर, अक्षिरोग में क्षार नहीं बरतना चाहिए।
इसी प्रकार शीत – उष्ण – वर्षा – बादल से घिरे दुर्दिन और प्रवात में क्षारकर्म नहीं करना चाहिए।
सन्दर्भ :
- अष्टांग संग्रह सूत्र स्थान अध्याय – 39
- अष्टांग संग्रह निदान अध्याय – 07
- अष्टांग संग्रह चिकित्सा अध्याय – 10
- अष्टांग ह्रदय निदान अध्याय – 07
- अष्टांग ह्रदय चिकित्सा अध्याय – 08
FAQ
धागे से बवासीर का इलाज कैसे होता है?
आयुर्वेदीय औषधियों से युक्त क्षार सूत्र को, बवासीर के मस्सों पर बांधकर। ऊपर से इनमे क्षार को छुपन दिया जाता है। जिससे बवासीर में मस्से पिचककर, सूख जाया करते है।