महिलाओ की गुदीय शिराओ में खून जम कर फूल जाने को ही महिला बवासीर कहा जाता है। जिससे महिलाओं को गुदा में खुजली, जलन और भारीपन इत्यादि का अनुभव हो सकता है। जो आमतौर पर महिला बवासीर के लक्षण कहे जाते है।
हालांकि महिलाओं में बवासीर के लक्षण की प्रकृति पुरुषो के समान व इनसे अलग भी देखी जा सकती है। जिसके आधार पर महिला बवासीर की दवा में पुरुषो की तुलना में कुछ अंतर पड़ जाता है। जिसमे मुख्य रूप से महिला बवासीर के लक्षण और उपाय शामिल है।
अमूमन बवासीर रोग में गुदा की शिराओ में मांस के मस्से या कील निकल आते है। जो फूलकर गुद मार्ग को बंद कर देते है। जिससे गुदा में या उसके आस – पास अत्यधिक दर्द होता है तो उसे महिला बवासीर ( bawasir in female ) कहा जाता है।
इनसे प्राप्त होने वाले लक्षणों को महिला बवासीर के लक्षण कहते है। जो अलग – अलग महिला में अलग प्रकार से हो सकते है। जिनको उपचारित करने में बवासीर के घरेलू उपाय अत्यंत उपकारी है। महिला बवासीर के शुरुआत में कुछ ऐसे लक्षण देखे जा सकते है, जो पुरुष बवासीर के लक्षण के समान होते है।
लेकिन रोग की तीव्रता के बढ़ते ही इनके कारण में भेद होने से इनमे भी भेद हो जाता है। जिसको समाप्त करने के लिए बवासीर की गारंटी की दवाई इस्तेमाल की जाती है। जिसका प्रभाव न केवल गुदा तंत्र पर पड़ता है, बल्कि यह शरीर को भी सुडौल बनाता है। जिससे रोगी को सुगमतापूर्वक रोग से छुटकारा मिलने का मार्ग प्रशस्त होता है।
महिला बवासीर के कारण ( causes of piles in female in hindi )
आयुर्वेदानुसार गुदा में प्रवाहणी, संवरणी और विसर्जनी नामक तीन वलिया पायी जाती है। जिसमे बवासीर नामक रोग पाया जाता है। क्योकि यह बड़ी आंत का अंतिम हिस्सा होता है। जिसे मलाशय के नाम से जाना जाता है।
जिसमे पाचन क्रिया के उपरान्त पोषक तत्व और जल का अवशोषण हो जाने के बाद बचा हुआ अवशिष्ट पदार्थ यहाँ आकर जमा होता है। जिसमे अतिसार ( दस्त ) आदि में प्रवाहण ( दाब डालकर काखने ) करने के दौरान शिराओ में आया हुआ रक्त वापस नहीं जा पाने आदि कारणों से महिलाओ में बवासीर ( piles in women ) हो जाती है।
इनके अतिरिक्त महिलाओ में बवासीर होने के विशेष कारण भी है। जैसे – अपरिपक्व गर्भ के गिर जाने ( गर्भपात ) या गिराये जाने और विकृत प्रसवो के कारण भी बवासीर की समस्या हो सकती है।
महिलाओ में होने वाली बवासीर को चार ग्रेड में बांटा गया है –
- ग्रेड 1 : इसमें महिला की गुदा में हल्की सूजन और दर्द होता है।
- ग्रेड 2 : इसमें महिलाओ की गुदा में मस्से निकलना शुरू हो जाते है। जो खुजली और दर्द आदि पैदा करते है।
- ग्रेड 3 : इस श्रेणी की बवासीर के मस्से निकलकर गुदा के बाहर आ जाते है। जिससे गुदा द्वार पूरी तरह से बंद हो जाता है।
- ग्रेड 4 : यह महिलाओ में होने वाली आख़िरी और सर्वाधिक पीड़ा देने वाली बवासीर है। जिसके मस्से गुदा की शिराओ से निकलकर बाहर तक आते है। जिससे गुदा में भ्रंस हो सकता है। जिसके कारण शौच के समय गुदा का अंतिम भाग बाहर निकल आता है।
महिलाओ में होने वाली विभिन्न श्रेणी की बवासीर को ऊपर महिला बवासीर images के द्वारा समझा जा सकता है। जो रोग की तीव्रता को बतलाता है। जिनको महिला की बवासीर चित्रों ( piles in women’s images ) में देखा जा सकता है।
महिलाओ में बवासीर के शुरआती लक्षण ( early symptoms of piles in female )
महिलाओ में बवासीर होने के पूर्व निम्न लक्षण पाए जा सकते है –
- खाना खाने का मन न करना
- पाचन शक्ति का कमजोर होना
- खट्टी – कहती डकारे आना
- पेट में जलन और दर्द होना
- पेट में गैस बनना
- पेट फूलना
- अत्यधिक प्यास लगना
- थकावट महसूस होना
- पेट में मरोड़ होना
- मल बहुत सूखा और कठिनाई से निकलना
- आँखों में सूजन होना
- खांसी का बने रहना
- आलस बने रहना
- नींद बहुत आना आदि।
महिलाओं में बवासीर के लक्षण ( female hemorrhoids symptoms in hindi )
महिलाओ में होने वाली बवासीर रोग में निम्न लक्षण पाए जाते है –
- मलद्वार में भारीपन होना
- मलद्वार में खुजली होना
- खट्टी डकार आना
- गुदा द्वार पर मांस के कील या मस्से निकलना
- मस्सो से खून निकलना
- मल के साथ खून आना
- गुदा का बाहर निकलकर लटक जाना
- मस्सों में दर्द होना
- गुदा द्वार का फूल जाना
- मस्सों में जलन होना
- मल और मूत्र निकलने में कठिनाई होना आदि।
महिलाओ में बवासीर कितने प्रकार के होते है ( how many types of piles in female )
आयुर्वेदोक्त त्रिवलियो एवं त्रिदोष को मिलाकर कुल छ प्रकार की बवासीर महिलाओ में पायी जाती है। जिसमे वात, पित्त और कफ दोष से तीन, सन्निपातिक एक, रक्त दोषो से एक और स्वाभाविक नामक छ प्रकार है। जिनका आधुनिक विधा से समावेश प्रकांतर से चार में कर लिया जाता है।
बाहरी महिला बवासीर ( external hemorrhoids in females )
ये गुदा के बाहर चारो और पहिये नुमा आरे की भाँती रहते है। जिसके प्रत्येक मस्से के बीच में एक शिरा होता है। जिसके चारो ओर सौत्रिक तंतु होते है। जो त्वचा से ढके रहते है। ये सूखे रहते है। जिसके कारण इन्हे शुष्क बवासीर कहते है। लेकिन जब इनमे रगड़, शीत, अधिक देर बैठना या तीव्र मलावरोध होता है। तब ये सूजकर फूल जाते है। जिससे रोगी को चलने – फिरने में तकलीफ होती है। जिसमे पाए जाने वाले ज्यादातर लक्षण बादी बवासीर के लक्षण से प्रायः मिलते है।
अंदरूनी महिला बवासीर ( internal hemorrhoids in females )
ये प्रायः गुदा के भीतर पाए जाते है। जिनके मस्से बीच में अधिक शिराओ से युक्त होते है और इनके चारो सौत्रिक तंतु होते है। तथा सबसे ऊपर श्लैष्मिक कला का आवरण चढ़ा रहता है। जो शुरू में नरम और बाद में रगड़ आदि लगने के कारण कड़े हो जाते है। जिसमे श्लेष्मा अथवा रक्त का स्राव होता रहता है। जिनके कारण यह परिस्रावी अथवा खूनी बवासीर कहलाते है।
प्रोलैप्स महिला बवासीर ( prolapse hemorrhoids in females )
जो बवासीर शौच करते समय ये बाहर आ जाते है। जिनको गुदा से बाहर निकलने वाली बवासीर कहा जाता है। इसमें भी श्लेष्मा ( मवाज ) और रक्त का स्राव होता है। जिस पर भी श्लैष्मिका कला का आवरण मौजूद रहता है। यह महिलाओ की बवासीर ( piles in women’s ) बहुत तकलीफ देह होती है।
थ्रोम्बोस्ड ( घनस्रावी ) महिला बवासीर ( thrombosed hemorrhoids in females )
ऐसी परिस्रावी बवासीर जिनके मस्से अत्यंत पास – पास हो। जिनसे हमेशा कुछ न कुछ रक्त का स्राव होता रहे। उनको ही घनस्रावी बवासीर कहा जाता है। जो एक प्रकार की खूनी बवासीर ही है। जिनमे पाए जाने वाले लक्षण और कारण खूनी बवासीर के लक्षण से मिलते – जुलते है।
बवासीर मस्से का इलाज ( bawasir masse ka ilaj )
महिलाओ को होने वाले बवासीर रोग में जो लक्षण प्राप्त होते है। उन्हें महिला बवासीर के लक्षण कहा जाता है। जिनको ख़त्म करने के लिए महिला बवासीर के उपाय अपनाए जाते है। जिन्हे महिला बवासीर मस्से का इलाज ( treatment of piles in female ) कहते है। इसलिए बवासीर के उपचार में बवासीर के लक्षण और इलाज की महत्वपूर्ण भूमिका है। आयुर्वेद आदि में महिला बवासीर का इलाज करने की चार विधिया बतलाई गई है। जिनका प्रकारांतर से दो में समावेश किया गया है –
- औषधि चिकित्सा
- सर्जरी ( ऑपरेशन )
आजकल शल्य क्रिया के आ जाने से बवासीर को असाध्य रोग नहीं कहा जा सकता। परन्तु आयुर्वेदादी शास्त्रों में सभी प्रकार के रोगो की चिकित्सा में औषधि चिकित्सा को श्रेष्ठकर बताया गया है। जबकि आचार्य सुश्रुत शल्य क्रिया पर अधिक बल देते है। अर्थात चरक और सुश्रुत दोनों में तालमेल है, न कि विरोधभास जैसा आजकल देखने और सुनने को मिलता है।
महिला बवासीर लक्षण को हटाने में प्रथम वरीयता औषधि को ही देना चाहिए क्योकि औषधि दोषगत चिकित्सा है। जो बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय है। जबकि शल्य चिकित्सा अंग विशेष की शल्यात्मक क्रिया है। जिसके द्वारा अंग विशेष में हुए विद्रधि ( फोड़े आदि ) को काट या फाड़कर रोगित अंग से अलग किया जाता है।
परन्तु रोग का मूल तो शरीरगत दोष है। जिसको संतुलित करने पर ही हमें सभी रोगो से हमेश के लिए छुटकारा मिल सकता है। इसलिए बुद्धिमान महिलाओ को बवासीर में मस्से का इलाज ( bawasir me masse ka ilaj ) औषधि चिकित्सा से ही शुरू करना चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर ही शल्य क्रिया को अपनाना चाहिए। महिला बवासीर के मस्से का इलाज में निम्नलिखित दवाएँ उपयोगी है।
महिला बवासीर की दवा ( mahila bavasir ki dava )
आयुर्वेद में बवासीर के दर्द से मुक्ति दिलाने के लिए औषधि, लेप और धूप का प्रयोग किया जाता है। जिनका प्रयोग महिलाओ में होने वाली बवासीर के लक्षण और इलाज ( bawaseer ke lakshan aur ilaj ) को आधार बनाकर किया जाता है। जिसमे प्रयोग होने वाली बवासीर के दर्द की दवा ( medicine for piles pain ) निम्नलिखित है –
- पुराने गुड़ को करछी ( कलछुल ) या कटोरी में डालकर आग पर रख देवे। जब गुड़ पिघने लगे तब कड़वी तरोई के फल अथवा पत्तो, किंवा जड़ का चूर्ण मिलाकर लकड़ी से चलाकर यव के प्रमाण की लम्बी – लम्बी वर्तिया बना ले। जिनको ठंडाकर गुदा पर धारण करने से बवासीर नष्ट हो जाती है।
- काले तिल और शुद्ध भिलावों का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर, नित्य आधा से एक तोला मठ्ठे, गुनगुने दूध या शीतल जल के साथ सेवन करने से मंदाग्नि बढ़ती है। जिससे सभी प्रकार की बवासीर नष्ट हो जाती है।
- एक तोले भर पुराने गुड़ में आधा तोला हरीतकी चूर्ण मिलाकर गरम अथवा ठन्डे पानी से लेने पर कमर, जांघ, वातवेदना के सहित सभी प्रकार के बवासीर को नष्ट कर देती है। यह बवासीर में दर्द की दवा है।
- हल्दी के चूर्ण में थूहर का दूध मिलाकर बवासीर के मस्सो पर लगाने से बवासीर नष्ट हो जाता है।
- कड़वी तोरई की जड़ को लेकर उसकी मिट्टी आदि को साफकर थोड़े सा पानी लेकर लेप बना ले। जिसको गुदा में होने वाले बवासीर के मस्सो पर लगाने से बवासीर का मस्सा ठीक हो जाता है।
महिला बवासीर की दवा घरेलू उपचार ( mahila bawasir gharelu upay )
आयुर्वेद वर्णित बवासीर की देशी दवाई ( bawaseer ki desi dawai ) बवासीर को नष्ट करने का बढ़िया उपाय है। जो महिला बवासीर के घरेलू उपाय भी कहे जाते है। जिनके कुछ उपाय इस प्रकार है –
- चार तोला काले तिल के चूर्ण को खा कर पीछे से शीतल जल पीने से बवासीर नष्ट हो जाता है। जिसका एक अतिरिक्त लाभ यह होता है कि यह दांतो और शरीर को भी मजबूत बना देता है।
- काला तिल, शुद्ध भिलांवा, हर्रा और गुड़ सबको सामान भाग में लेकर, कूट पीस कर सेवन करने से बवासीर के मस्से नष्ट हो जाते है।
- कफ दोषो से होने वाले बड़े आकार के मस्सो में सोंठ के चूर्ण को गुड़ के साथ लेने पर बवासीर को नष्ट कर देता है।
- बवासीर के लिए छाछ ( buttermilk for piles ) बहुत अच्छा माना गया है। यह पेट की जलन को दूरकर पाचन क्रिया को बढ़ता है। जिससे कब्ज आदि की समस्या दूर होकर बवासीर में राहत पहुंचाता है। परन्तु यदि केवल कुछ दिनों तक इसका सेवन किया जाय तो यह बवासीर को समूल हमेशा के लिए नष्ट कर देता है।
- बवासीर के लिर निरंजन फल ( niranjan phal for piles ) को उपकारी माना गया है। जो बवासीर के दर्द को दूर करने में सहायक है। जिसके लिए इसको रात को पानी में भिगोकर, सुबह पानी में निचोड़कर पीया जाता है।
बवासीर की होम्योपैथिक दवा ( homeopathy piles treatment in hindi )
होम्योपैथी में बवासीर के उपचार में जिन दवाइयों का प्रयोग किया जाता है। उन्हें पाईल्स होम्योपैथी रेमिडीज ( piles homeopathy remedies ) कहा जाता है। जिसकी कुछ प्रचलित दवाइया इस प्रकार है –
एसिड म्यूर : बवासीर के मस्से का रंग नीला, बहुत अधिक दर्द – हाथ नहीं लगाया जाता। कपड़ा लग जाने से भी तकलीफ होती है। थोड़ा सा ठंडा पानी लगते ही तकलीफ बढ़ जाती है। गर्मी और ताप से तकलीफ घटती है।
मर्क्यूरियस : जब पेट में बहुत अधिक कूथन और मरोड़ के साथ बवासीर हो तब बढ़िया काम करती है।
हैमामेलिस : मलद्वार में बहुत अधिक अकड़न का दर्द और जलन के साथ मलद्वार से बहुत अधिक मात्रा में रक्त बहे तो हैमामेलिस के टिंचर का बाहरी और भीतरी प्रयोग करने से बहुत अधिक लाभ होता है। बवासीर रोग के साथ कमर में दर्द रहने पर यह और अधिक फायदा करती है।
वेर्बेस्कम : इसके 1 ड्रम मदर टिंचर के साथ 8 ड्रम वैसलीन या नारियल तेल मिलाकर बवासीर के मस्सो पर लगाने से बवासीर की तकलीफ और दर्द घट जाता है।
डायस्कोरिया : इसकभी उपरोक्त प्रकार से मलहम बना कर लगाने से बवासीर में फायदा मिलता है।
प्लान्टेगो : हमेशा ही मलत्याग की इच्छा बनी रहती है। जिसके कारण बार – बार मलत्याग के लिए जाता है। मलद्वार में मिर्चा लग जाने के जैसी जलन, प्रदाह और दर्द होता है। यह बहुत ही तकलीफ देह बवासीर होता है। जिसमे रोगी खड़ा नहीं रह सकता तथा उसे किसी भी अवस्था में आराम नहीं मिलता।
उपरोक्त वर्णित सभी बवासीर की होम्योपैथिक दवा ( bawasir ka homeopathic medicine) है। जो महिला बवासीर के लक्षण से छुटकारा दिलाकर, बवासीर का उपचार करने में सहायक है।
महिला बवासीर की दवा पतंजलि
बवासीर की समस्या होने पर अक्सर पेट साफ न होने के लक्षण दिखाई पड़ते है। जिसके लिए लोग अनेको तरह की तरकीब लगाते है। जिससे कुछ समय के लिए पेट की समस्या कम हो जाती है, और कुछ समय बाद फिर से खड़ी होती है। जिसको स्थाई रूप से खत्म करने के लिए पेट साफ कैसे करे को भी जानना चाहिए। वही पतंजलि बवासीर दवा ( bawaseer ki dawa patanjali ) भी पेट को साफकर बवासीर से छुटकारा दिलाने में हमारी मदद कर सकती है –
दिव्य त्रिफला गुगुल : आयुर्वेद में त्रिफला को उत्कृष्ट कोटि की रेचक औषधि कही गई है। जिसके द्वारा शरीर में जमे हुए मल का निक्षेपण करने में मदद मिलती है। यह सूखे हुए मल को पलटा और ढीला कर बाहर निकालने का काम करती है।
दिव्य अर्शकल्प वटी : सभी तरह की बवासीर को मिटाने में इसका इस्तेमाल किया जाता है। जिसके सेवन से बवासीर का दर्द और अन्य तकलीफो में भी लाभ होता है।
इसबगोल भूसी : यह पेट में जमे सूखे मल को ढीला और ढीले एवं पतले मल को सामान्य बनाकर बाहर निकालता है। जिससे सही प्रकार के पेट की समस्याओ में लाभकारी है।
दिव्य उदरकल्प चूर्ण : यह पेट की तकलीफो के साथ बवासीर को जड़ से मिटाने में उपयोगी है।
दिव्य शुद्धि चूर्ण : असंतुलित दोषो के संतुलन में यह विशेष रूप से उपयोगी माना जाता है। जिसका सेवन करने से बवासीर रोग में लाभ मिलता है।
बवासीर के लिए एक्यूप्रेशर ( piles acupressure points )
बवासीर में एक्यूप्रेशर ( acupressure for piles ) करने से भी लाभ मिलता है। जिसका कारण एक्यूप्रेशर नशो को सक्रिय कर खून के दौरे को बढ़ाता है। जिससे बवासीर में खून जमाने वाली शिराओ पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जिससे बवासीर के फूले हुए मस्से सुखाने में मदद मिलती है।
एक्यूप्रेशर चिकित्सा के सिद्धांत के अनुसार हमारे शरीर में, अंगो को विशेष रूप से संचालित करने वाले मर्म होते है। जो सीधे नशो के माध्यम से नाड़ियो से जुड़े होते है। जिसमे दाब डालने पर अंग विशेष में खून की गति को बढ़ाने में सहायता मिलती है। जिससे अंगो में जमा हुआ हानिकारक द्रव्य खून में मिलकर बाहर आने लगता है। जिससे धीरे – धीरे रोग क्षीण होने लगता है।
एक्यूप्रेशर चिकित्सा विशेषज्ञ बवासीर के उपचार के लिए SP६, SP8 और UB60 आदि बिंदु को विशेष रूप से उपकारी मानते है। जबकि बाबा राम के द्वारा बवासीर के लिए एक्यूप्रेशर पॉइंट ( acupressure points for piles by baba ramdev ) बताये गए है। जिसमे ऊपर के बिन्दुओ के साथ हाथ की कोहनी के नीचे के बिंदु को दबाने से बवासीर में लाभ मिलता है।
बवासीर के लिए योग ( bawasir ke liye yoga )
आजकल लोग परिश्रम का विकल्प योग को मानने लगे है। जिसका लाभ हमें यह मिलता है कि बीमारियों को दूर रहते है। जिससे हम स्वस्थ बने रहते है। जिसके कारण आजकल योग को रोग उपचारक माने की प्रथा चल पडी है। जबकि योग दर्शन के अनुसार योग केवल रोगापचारक नहीं। बल्कि यह मोक्ष प्राप्ति का साधन है। जहाँ तक आज किसी की बुद्धि जाती ही नहीं। कुछ भी हो योग का दूसरा और व्यवहारिक पक्ष स्वास्थ्य प्राप्ति है। जो रोग विवृत्ति के बिना संभव नहीं।
इन्ही विशेषताओं के कारण ज्यादातर लोग योग की सहायता से, बवासीर से कैसे बचे ( bawaseer se kaise bache ) की बात करते है। जिसके लिए योग में बहुत से ऐसे आसन और प्राणायाम बातये गए है। जो हमारे शारीरिक अंगो को ठीक से क्रियान्वितकर, शरीर की क्रियाओ को सुव्यवस्थित करते है। जिनके प्रभाव से रोग स्वतः दूर होने लगते है। फिर चाहे वो महिलाए हो या पुरुष, बालक हो या वृद्ध, किशोर हो या वयस्क सभी के लिए हितकारक है।
महिलाओ में एक विशेष अंग पाया जाता है। जिसको जननांग के नाम से जाना जाता है। जिसके कारण कुछ ऐसे आसान है, जो महिलाओ को नहीं करना चाहिए। यह उनके स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर बताया गया है। इन सब पर विचार करते हुए निम्न आसान महिला बवासीर में उपकारी हो सकते है –
- पवनमुक्तासन
- सर्वांगासन
- बलासन
- वज्रासन आदि।
बवासीर में परहेज किये जाने वाले भोजन ( avoid food for piles )
शास्त्रों में महिलाओ को चंचल स्वभाव और चित्त वाली माना गया है। जिनके कारण इनमे तरह – तरह का स्वाद लेने की लालसा बनी रहती है। जिसके कारण इन्हे खट्टा, तीखा और चटपटा स्वाद अत्यंत प्रिय होता है। जिसके लिए न केवल इनकी जीभ बल्कि मन भी चटखारे मारता है। जिसके कारण इनको स्वयं पर नियंत्रण रखना पुरुषो से थोड़ा कठिन होता है। कुछ भी हो बवासीर रोग की निवृत्ति के लिए निम्न वस्तुओ का सेवन हानिकारक माना गया है।
- सभी तरह के भारी, अभिष्यंदी और चिकने पदार्थ। जिनको आजकल की भाषा में चॉकलेट, पेस्टी, कुकीज, केक, पैटीज आदि कहा जाता है।
- चाय, काफी ( हॉट और कोल्ड ) आदि।
- सभी प्रकार के बिस्किट और कन्फेक्शनरी वस्तुए।
- कोई भी बासी भोजन
- फ्रिज का ठंडा पानी
- सॉफ्ट ड्रिंक और कोल्ड ड्रिंक आदि।
- प्रिजर्वेटिव मिश्रित पेय पदार्थ
- सफ़ेद चीनी ( white sugar )
- सभी प्रकार के फास्ट फ़ूड और जनक फ़ूड जैसे -ब्रेड, पिज्जा और बर्गर आदि।
- रिफाइंड और जला हुआ तेल
- किसी भी प्रकार का मादक द्रव्य, आदि।
प्राकृतिक रूप से बवासीर को कैसे रोके ( how to prevent piles naturally )
प्राकृतिक जीवशैली को अपनाकर हर कोई आजीवन स्वस्थ बना रह सकता है। जिसका जीता जागता उदाहरण आयुर्वेदोक्त नियमो का संयम और विधि पूर्वक पालन करने वाला आज भी स्वस्थ है। जिसके कारण आज भी आयुर्वेद अपने स्वरूप पर बना हुआ है। यह बात दूसरी है कि इसका पालन करने वाले बहुत कम लोग है।
परन्तु ध्यान यह रखना चाहिए कि व्यापक प्रचार – प्रसार और पाठ्यक्रम आदि में स्थान न मिलने की कारण लोगो को इन सिद्धांतो का ज्ञान ही नहीं हो पाता अथवा होने से रोका जाता है। आइये जाने कि आयुर्वेदवर्णित निषेधाज्ञा का पालन कर महिलाए पाइल्स से कैसे बचे ( how to avoid piles )?
- भोजन में तीखे, चटपटे, मिर्च – मसाले से युक्त पदार्थो का सेवन न करे।
- रात्रि में दही, कुनुरू, सत्तू और कोई भी फल न खाये।
- कच्चे और पकाये गए भोजन को एक साथ न खाये।
- अधारणीय वेगो को धारण न करे। जैसे – भूख, प्यास, मल – मूत्रादि।
- रात्रि जागरण और दिन में सोने से बचे।
- सुबह और शाम का भोजन जल्दी करे।
- अपनी दिनचर्या निर्धारित करे।
- प्रतिदिन परिश्रम अथवा व्यायाम करे।
- भोजन से पहले और भोजन की तुरंत बाद अधिक मात्रा में पानी न पिए।
- रात्रि में अधिक भोजन करने से बचे।
- किसी से बात करते हुए या टी बी देखते हुए भोजन न करे।
- दिन के भोजन के बाद छाछ और रात्रि के भोजन के बाद दूध का प्रयोग करें।
- प्रतिदिन एक जैसा भोजन न करे।
- मौसमी फल और सब्जियों का सेवन अधिक करे।
पाइल्स और बवासीर में अंतर ( difference between piles and hemorrhoids )
पाइल्स और बवासीर दोनों ही एकार्थक शब्द है। जो अलग – अलग स्थान पर बोले जाने वाले है। जिसके कारण इनसे प्राप्त होने वाले सभी लक्षणों में समानता है। आंग्लभाषी बवासीर को हेमोर्रोइड्स कहते है, तो हिंदी भाषी इसको बवासीर के नाम से जानते है। जो विभिन्न देशो में अलग – अलग प्रकार से अभिव्यक्त होती है। जिससे इनके लक्षणों में भेद दिखाई पड़ता है। जबकि दोनों के उपचार की विधि लगभग सामान है।
उपसंहार :
महिला बवासीर के लक्षण को ठीक करने में महिला बवासीर की दवा अत्यंत गुणकारी है। परन्तु महिला बवासीर के उपचार में आहार, दिनचर्या और मानसिक स्थिति का भी अमूल्य योगदान है। जिनका पालन किये बिना महिला बवासीर के लक्षण और उपाय अधिक दिनों तक फलदायी नहीं होते। कहने का आशय पुनः रोग होने की गुंजाइस सदैव बनी रहती है।
महिलाए भारतीय समाज की धुरी है। जिनमे रोग होने पर पूरा समाज प्रभावित होता है। इसलिए महिलाओं में बवासीर के लक्षण की जानकारी होने पर, रोग को दूर करने में सहायक उपायों का दृढ़ता से पालन करना चाहिए।
ध्यान रहे : किसी भी दवा के सेवन के पूर्व चिकित्सीय सलाह अवश्य ले। बिना चिकित्सीय सलाह के किसी भी दवा का सेवन हानिकारक हो सकता है।
सन्दर्भ :
चरक संहिता चिकित्सा अध्याय 14
भैषज्यरत्नावली अर्श चिकित्सा प्रकरण
सुश्रुत संहिता चिकित्सा अध्याय 6
कॉपरेटिव मैटेरिया मेडिका द्वारा एन सी घोस पृष्ठ – 464, 714,
FAQ
बवासीर के लिए कौन सा मांस अच्छा है ( which meat is good for piles )?
बवासीर रोग में भारी और देर से पचने वाले सभी भोज्य पदार्थो का प्रतिकार किया गया है। जबकि आयुर्वेद में अनूप देश में पाए जाने वाले सभी पशुओ के मांस भक्षण का निरोध है। जिसके कारण बवासीर में मांस न खाना ही बेहतर है।
पपीता बवासीर के लिए अच्छा है ( papaya is good for piles )?
हाँ। पपीता बवासीर के लिए ( papaya for piles ) अच्छा माना गया है। यह शरीर को पोषण देने के साथ – साथ पेट को साफ़ एवं मल को ढीला करता है।
क्या मठ्ठा बवासीर के लिए अच्छा है ( is buttermilk good for piles )?
हाँ। मठ्ठा या छाछ बवासीर के लिए रामबाण है, बशर्ते बवासीर वात और कफ दोष के कारण हो। जबकि छाछ सभी प्रकार की पाचन क्रिया में सहायक है। जिससे यह पित्त दोष में भी लाभकारी है।
क्या प्रेगनेंसी के दौरान महिलाओ को बवासीर हो सकती है?
प्रेगनेंसी के समय ज्यादातर महिलाओ में बवासीर की समस्या देखी जाती है। जिसका मूल कारण महिलाओ के गुदा में पड़ने वाला दबाव है। जो गर्भावस्था में गर्भाशय के बढ़ने पर अक्सर देखा जाता है।
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