सामान्यतः मानव गुदा की शिराओ का फूल जाना ही बवासीर कहलाता है। जिन पर लगातार सौत्रिक धातु का आवरण बनते रहने से, खून से फूला हुआ भाग दुखदायी होता जाता है। जिनसे स्थायी रूप से छुटकारा पाने के लिए लोग बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय ढूढ़ते है। जिसमे बवासीर के मस्से सुखाने की दवा का प्रयोग होता है। लेकिन बवासीर क्यों होती है आदि के साथ, बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय प्रायः नहीं करते। जिससे बवासीर का मस्सा और दर्द, धीरे – धीरे दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ता है। इससे छुटकारा पाने के लिए आइये जाने कि बवासीर को जड़ से खत्म कैसे करें?
आमतौर पर दो प्रकार की बवासीर देखने में आती है। ऐसी बवासीर जिसमे से रक्तस्राव हुआ करता है। जो मुख्य रूप से पित्तादि दोषो के कारण होती है। उसे खूनी बवासीर कहते है। जबकि वो बवासीर जिसमे खून नहीं निकलता, नीले रंग के छोटे – छोटे टेड़े – मेढ़े मस्से होते है। जिसमे बहुत ज्यादा अनेक प्रकृति के दर्द होते है। बादी बवासीर कहलाती है। आइये अब जानते है कि बवासीर के मस्से सुखाने के लिए क्या करें?
आयुर्वेदादी शास्त्रों में बवासीर को अतिसार और ग्रहणी रोग की अग्रिम अवस्था बताई गई है। इन दो रोगो की पूर्वावस्था की बात करे तो पाचन अवस्था या मंदाग्नि है। जिसके कारण कब्ज या पेट साफ़ न होना भी बवासीर के कारण हो सकते है। इसलिए पेट साफ करने का उपाय भी बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय कहा जा सकता है। परन्तु चिकित्सीय सिद्धांतो का अनुपालन करते हुए, न कि किसी अन्य विधा से।
बवासीर क्या होती है ( bawasir kya hoti hai )
साधारणतः बवासीर मलाशय की शिराओ ( veins ) का रोग कहलाता है। मतलब मानव गुदा के चारो ओर की शिराएं जो श्लेष्मकला के अंदर पायी जाती है। उनके फूल जाने को ही बवासीर या बवासीर के मस्से कहते है। जिसमे विभिन्न प्रकार का दर्द, भारीपन और खुजली होती है। जिनको व्यवहार में मुख्य रूप से बवासीर का लक्षण माना जाता है।
आयुर्वेदीय चिकित्सीय ग्रंथों के अनुसार शरीर शुद्धि में, उपयुक्त मल निष्काशन से सम्बंधित अंगो में बवासीर हो सकती है। जिसे वहां अर्श की संज्ञा दी गई है। जबकि अक्सर गुदा में होने वाली बवासीर को ही बवासीर ( पाइल्स ) कहते है। जिसको मिटाने के तरीके बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय कहलाते है।
बवासीर क्यों होती है ( bawaseer kyu hoti hai )
मानव मलाशय (rectum) की शिराएं गुदनलिका (anal canal) की दीवारों में, लम्बाई की ओर फैली रहती है। और उसमे कपाट (valve) नहीं होने से विबंध रोग से पीड़ित व्यक्ति दस्त के समय अधिक प्रवाहण करता है। जिससे उसी समय शिराओं में आया हुआ खून वापस लौटकर नहीं जाता। ऐसा इसी तरह प्रतिदिन हर बार करने से, इन शिराओ में खून आकर इकठ्ठा होता रहता है। इसी प्रकार यकृत आदि में विकार ( सिरोसिस ) होने पर, इस स्थान के रक्तप्रवाह में बाधा उत्पन्न होकर रक्त एकत्रित होने लगता है।
इनके साथ शराब पीने वाले ( मद्यपी ) और अधिकतर बैठकर काम करने वालो में भी बवासीर होने अधिक सहायता मिलती है। इन्ही कारणों से गुदा की शिराओं के अंतिम भाग खून से भरकर फूल जाते है और उनमे सौत्रिक धातु का आवरण बनते रहने से खून भरकर फूला भाग अधिक दुखदायी हो जाता है। जिनको आयुर्वेद में बवासीर होने के कारण कहा गया है। जिनको स्थायी रूप से समाप्त करना, बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय कहा जाता है।
बवासीर के लक्षण इन हिंदी ( bawaseer symptoms in hindi )
बवासीर को न जानने वाले, बवासीर के लक्षणों से अनभिज्ञ होते है। जिसके कारण इससे ग्रस्त व्यक्ति भी बवासीर से अनजान होता है। जिसका दूरगामी परिणाम यह होता है कि रोग शुरुआती दौर में पता नहीं चल पाता। जिससे रोग जीर्णावस्था में पहुंचकर रोगी को अधिक कष्ट देने लगता है। साथ ही चिकित्सा भी दुरूह होती जाती है, तो आइये जानते है कि बवासीर के लक्षण क्या है?
- मलद्वार में दर्द होना
- मलद्वार में खुजली होना
- मलद्वार का भारी लगना
- मल त्याग करते समय दर्द होना
- पेट में गैस बनना
- पेट साफ न होना
- गुदा में जलन होना
- मलत्याग के दौरान खून आना
- गुदा में गाँठ या मस्से होना
- उठने – बैठने से गुदा में तीव्र दर्द होना
- गुदा से रक्तस्राव होना
- गुदा से मवाज अथवा पस आना आदि।
बवासीर कितने प्रकार का होता है ( bawasir kitne prakar ki hoti hai )
स्थानिक विकृति और व्यवहारिक दृष्टि से बवासीर के दो भेद माने गए है। पहला – वाह्यार्श ( बाहरी बवासीर ) और दूसरा आभ्यन्तरिकार्श ( भीतरी बवासीर )। जबकि आधुनिक चिकित्सा में इनको चार ग्रेड ( डिग्री ) में बांटा गया है।
- फर्स्ट ग्रेड
- सेकेण्ड ग्रेड
- थर्ड ग्रेड
- फोर्थ ग्रेड
वाह्यार्श – यह गुदा के चारो ओर पडी हुई लाल सिकुड़नों के जैसे होते है। सामान्यावस्था में जब इनमे खून नहीं भरा होता तब प्रतीत नहीं होते, किन्तु प्रकुपित होकर खून से भरने पर अंगूर की तरह फूल जाते है। इसमें प्रायः शिरा का अंतिम भाग ही मस्सो की भाँती निकला रहता है। जिसके बीच में एक शिरा और शिरा के चरों ओर सौत्रिकतंतु रहते है। जिसकी शनैः शनैः वृद्धि होती रहती है।
जिससे बवासीर एक कठोर ग्रंथि की भाँती कठिन हो जाता है। शिराए जब तक कुपित नहीं होती तब तक बवासीर के स्थान पर केवल कण्डू और भारीपन बना रहता है। जिनके कुपित होने या दब जाने पर रोगी को भयंकर पीड़ा होती है। जिससे रोगी चल – फिर, उठ – बैठ नहीं सकता। इस तरह के अर्श नीले रंग के छोटे – छोटे अर्बुद की तरह दिखाई देते है। ये प्रायः चर्म से ढके रहते है और इनमे रक्तस्राव कम या नहीं होता। जो बादी बवासीर के लक्षण है।
आभ्यन्तरिकार्श – ये अधिकतर गुदनलिका के भीतर रहते है और श्लेष्मकला से ढके रहते है। इनके मध्य में भी एक शिरा और इसके चारो ओर सौत्रिकतंतु रहते है। धीरे – धीरे यह तंतु बढ़ते रहते है, जिससे बवासीर में कठोरता आ जाती है। इसमें भी प्रकोप के पूर्व खुजली और भारीपन रहता है। प्रकुपितावस्था में प्रायः शौच या प्रवाहण ( काखने ) से बवासीर के मस्से बाहर आ जाते है। जिससे रोगी को चलने – फिरने, बैठने में अधिक कष्ट होता है। इन बवासिरो से खून रिसा करता है।
बवासीर को जड़ से खत्म कैसे करें ( bawasir ko jad se kaise khatam kare )
चिकित्सीय सिद्धांतो के अनुरूप कोई भी रोग एक दिन में नहीं होता। इसलिए बवासीर भी कोई एक दिन में होने वाला रोग नहीं। जिसका पूर्ण उपचार शीघ्र किया जा सके, तो बवासीर का इलाज 3 दिन में कैसे हो सकता है?
दूसरी ओर आयुर्वेदादी ग्रंथो में बवासीर को महारोग कहा गया है। अर्थात विकृतियों से रोग और अनेक रोगो से मिलकर महारोग बनता है। जिसको समझने के लिए अनुभवी चिकित्सा विशेषज्ञों को भी बहुत सावधानी की आवश्यकता पड़ती है। तो चिकित्सा के लिए कितनी साावधानी रखनी पड़ती होगी। अर्थात अत्यंत सावधानी से ही बवासीर की चिकित्सा की जा सकती है। फिर सामान्य व्यक्ति के बस की बात ही क्या?
महारोगो के शमन के लिए चिकित्सा उपचारक और रोगी दोनों को ही धैर्य पूर्वक चिकित्सीय सिद्धांतो का पालन निषिद्ध कर्मो का त्याग करते हुए करना पड़ता है। तब जाकर रोगी को रोग से छुटकारा मिलता है। अर्थात बवासीर को जड़ से इलाज कर मिटाने पर ही इससे छुटकारा मिल सकता है, अन्यथा नहीं।
जिसके लिए आयुर्वेदगत दोष चिकित्सा ही परम फलदायी है। जिसका अनुशरण करने पर किसी भी रोग के निदान और उपचार में सफलता मिलती है। जिनको व्यवहारिक रूप से बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय भी कहा जाता है।
बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय ( bawasir ke masse sukhane ke upay )
आयुर्वेद में बवासीर के उपचार के लिए चार प्रकार की विधिया बतलाई गई है –
- क्षार कर्म
- अग्नि कर्म
- शस्त्र ( शल्य ) कर्म और
- औषधि चिकित्सा
उपरोक्त विधियों में आयुर्वेदानुसार एक दुसरे को उत्तरोत्तर श्रेष्ठ माना गया है। जिसके आधार पर बवासीर की जड़ी बूटी चिकित्सा सर्वोपयोगी सिद्ध है। फिर भी लोगो के मन में बवासीर का उपचार किस विधि से कराए और बवासीर के मस्से कैसे हटाएँ ( bawasir ke masse kaise hataye ) की बहस चलती रहती है।
आयुर्वेद के अतिरिक्त विधाओं में भी बवासीर का सफलतापूर्वक उपचार होता है। परन्तु आयुर्वेदीय दृष्टि से औषधि चिकित्सा ही बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय है। जिसमे रोगी के दोषगत लक्षणों का तुलनात्मक अध्ययन कर, औषधि का चयन रोगी के अनुकूल मात्रा और उसकी आवृत्ति का निर्धारण आवश्यक परहेज के साथ किया जाता है।
जिसमे बवासीर के उपचार की विभिन्न विधिया समाहित है। जिसमे बवासीर के आयुर्वेदिक इलाज आदि है। जिनका अधिगम करने से बवासीर समेत सभी रोगो से छुटकारा पाया जा सकता है। जिसके द्वारा बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय जानकार, आप अपनी बवासीर को हमेशा के लिए अलविदा कह सकते है। जिसको जानने के लिए लोग बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय बताइए की बात भी करते है।
बवासीर के मस्से हटाने की विधि
गुदा के बाहर की बवासीर को निकालने के उपायों को, बाह्य बवासीर को निकालने का तरीका कहते है। जिसमे बुद्धिमान चिकित्सा जानकार बवासीर रोग में निम्न प्रयोगो को अपनाते है। जो बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय भी कहे जाते है।
स्वेदन ( अभ्यंग ) : इसमें औषधि मिश्रित कल्क बनाकर। इससे तेलपाक विधि के अनुसार तेल को पकाकर, बवासीर के मस्सो पर मालिस करते है।
स्नेहन : इसके उपरान्त विविध औषधियों से मिलकर बने, पोटलियों से बवासीर के मस्सो की सिकाई की जाती है।
अवगाहन : यह उपरोक्त दोनों विधियों के बाद, बवासीर के दर्द को दूर करने की प्रक्रिया है। जिसमे औषधियों से मिलकर बने गर्म काढ़े को, किसी बड़े धातुपात्र में डालकर रोगी को बैठाया जाता है। इससे बवासीर के मस्सो का स्वेदन होने से, दर्द शांत हो जाता है।
धूपन : यह बवासीर के मस्सो को सुखाकर, गिराने ( झाड़ने ) की क्रिया है।
लेपन : इसमें विभिन्न प्रकार की औषधियों को कूट पीसकर, लेप तैयार किया जाता है। जिसको दर्दनाक बवासीर के मस्सो पर लगाया जाता है।
रक्तमोक्षण : रक्तमोक्षण चिकित्सा में, जिन बवासीर के मस्सो में जमा हुआ खून नहीं निकलता या निकल पाता। जिसमे जोंक लगाकर, सुई चुभोकर अथवा शस्त्र से चीरा लगाकर विकारयुक्त रक्त बाहर निकाल दिया जाता है। जिससे बवासीर के मस्से सूखने लगते है।
बवासीर के मस्से झड़ने के उपाय ( bawasir ke masse jhadne ke upay )
ऐसा करने से मल शोधन की प्रक्रिया पूर्ण होकर, असंतुलित दोष के संतुलित होने का मार्ग प्रशस्त होता है। जिसमे निरंतरता और धैर्य बनाये रखने पर, बवासीर के मस्से सूखकर गिर जाते है। इसी विशेषता से विशेषित होने के कारण ज्यादातर रोगो में, औषधिगत चिकित्सा को अधिक महत्व दिया जाता है।
जबकि शल्य चिकित्सा में विश्वास करने वाले, बवासीर के ऑपरेशन आदि पर बल देते है। परन्तु दोनों चिकित्साओं में व्यहारिक दृष्टि से तो भेद है ही। लेकिन दार्शनिक दृष्टि में भी अंतर है। काय ( औषधि ) चिकित्सा में असंतुलित दोष का अपनोदन सार्वभौमिक रूप से किया जाता है। इसके कारण इनको बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय भी माना गया है।
लेकिन असंतुलित दोष को कहा ले जायेंगे। उसको संतुलित किये बिना तो बार – बार रोग का आक्रमण होगा ही। जिसमे दोषापनोदन में प्रयुक्त एकमात्र उत्कृष्ट औषधि चिकित्सा का आलंबन लेना ही होगा। अर्थात थक – हार कर दोष से निवृत्ति दिलाने वाली, सनातन चिकित्सा को अपनाना ही पडेगा। अर्थात आंतरिक बवासीर के उपचार में तो ऑपरेशन ( शस्त्र कर्म ) भी प्रायः नहीं होता। जिसमे यह एकमात्र शेष चिकित्सा है।
आयुर्वेदादी शास्त्रों की उपचार की पद्धति में, सिद्धांत और प्रक्रिया ( क्रम ) दोनों पर बल दिया गया है। जिसमे तालमेल बिठाने पर, असाध्य से दिखने वाले रोग भी साध्य हो जाते है। फिर नवीन रोग तो सुखसाध्य है ही, अर्थात आसानी से ठीक होने वाले है। परन्तु ऐसा तभी संभव है, जब दोनों ( सिद्धांत एवं प्रक्रिया ) में तारतम्यता बनी रहे।
बवासीर के मस्से सुखाने की दवा ( bawasir ke masse sukhane ki dawa )
सहज बवासीर को छोड़कर लगभग सभी बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय आयुर्वेदादी शास्त्रों में वर्णित है। जिसमे मुख्य औषध के साथ अथवा बाद पेयादि के रूप में, खाया – पिया जाने वाला क्वाथ, स्वरस, छाछ, आरिष्ट आदि की व्यवस्था की गयी है। जिनको औषधि – अनुपान भी कहा गया है। जो रोग – दोष को मिटाने में महत्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत करने के साथ बवासीर के मस्से सुखाने का इलाज भी करते है।
बवासीर में उपयोग होने वाले सभी द्रव्य अपनी अपनी विशेषताओं से, विशेषित होने के कारण अपनी विषेश उपयोगिता दिखाते है। जिनमे से कुछ रोग को मिटाने का काम करते है, तो कुछ रोगी के बल को बढ़ाने के लिए प्रयोग किये जाते है। जिनसे यह बवासीर के मस्से को खत्म करने का उपाय कहलाते है। जिसमे कुछ बवासीर के मस्से हटाने के घरेलू उपाय है, और कुछ बवासीर का जड़ी बूटी से किये जाने वाले आयुर्वेदिक उपचार है। जल्दी या हल्दी बवासीर के मस्से सुखाने की दवा नीचे बतायी गई है।
बवासीर अक्सर कब्ज के कारण होता है। जिसके लिए कब्ज का इलाज कराना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। जिसमे नारियल पानी के फायदे भी है। जबकि बवासीर को जड़ से ख़त्म करने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीना भी जरूरी है। लेकिन पेट के सभी रोगो में गरम पानी पीने के फायदे है। जिनका नियमित प्रयोग करने से सभी रोगो में लाभ होने की संभावना होती है।
बवासीर के मस्से सुखाने की आयुर्वेदिक दवा ( bawasir ke masse ka ayurvedic ilaj )
आयुर्वेद में बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय बताया गया है। जिसको हम बवासीर का इलाज भी कहते है। इससे ग्रस्त लोग ही बवासीर का इलाज बताइए जैसी बाते करते है। जो इस प्रकार है –
- थूहर के दूध में हल्दी का चूर्ण मिलाकर। बवासीर में लगाने से बवासीर नष्ट हो जाता है। या केवल कडुई तरोई की जड़ का चूर्ण बवासीर के मस्सों पर रगड़ने से बवासीर में मस्से गिर जाते है।
- करंज की छाल, आक का दूध, थूहर का दूध, कड़वी तुम्बी के पत्ते इन सभी को बराबर – बराबर लेकर बकरे के मूत्र के साथ पीसकर बवासीर के मस्सो पर लगाना श्रेष्ठ है।
- 4 तोला ( 40 – 50 ग्राम ) काले तिल के चूर्ण को खाकर, पीछे से शीतल जल पीने से बवासीर नष्ट हो जाती है। इसके साथ यह दांतो और शरीर को भी मजबूत बनाता है।
- कफजन्य बवासीर में रोग सोंठ खाने के फायदे और हितकर है।
- बवासीर में कोष्ठबद्धता होने पर अजवाइन चूर्ण 3 चुटकी और 5 – 6 ग्राम विडलवण मठ्ठे में डालकर भोजन के बाद पीना हितकारी है। कफ और वात के कारण उत्पन्न हुई बवासीर में मठ्ठे से बढ़कर उपयोगी अन्य कोई औषधि नहीं है। परन्तु ध्यान रहे कफ जनित बवासीर में स्नेह रहित ( घृत निकलकर ) और वातजन्य बवासीर में स्नेह – सहित ( बिना घृत निकाले ) मठ्ठे का ही प्रयोग करना चाहिए। मठ्ठे का प्रयोग करने से नष्ट हुए बवासीर के मस्से पुनः उत्पन्न नहीं होते। जिसके कारण मठ्ठे को बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय कहा गया है।
बवासीर के मस्सों का होम्योपैथिक इलाज
होम्योपैथी में भी बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय है। जिसमे बवासीर के मस्से सुखाने की होम्योपैथिक दवा प्रयोग होती है। जिसे बवासीर का इलाज होम्योपैथिक कहा जाता है। जो बहुत ही आसानी से सफलतापूर्वक बवासीर के मस्सो को जड़ से निकाल देती है। यदि होम्योपैथिक सिद्धांतो का धैर्य पूर्वक पालन किया जाय। बवासीर मस्से का होम्योपैथिक इलाज में निम्न दवाई उपयोगी हो सकती है –
सल्फर : इसमें मलद्वार में डंक मारने की तरह दर्द, जलन, कुटकुटाहट जैसे न जाने कितने लक्षण होते है। बवासीर में सल्फर के धातुगत लक्षण रहने पर ठीक हो जाती है। लेकिन यदि बवासीर से खून निकलना बंद होकर सर दर्द होने लगे तो इस अवस्था की यह रामबाण दवा है। खासकर तब जब रोग बहुत पुराना हो।
कॉलिन्सोनिया : यह बवासीर से लगातार खून निकलना और खून न निकलने पर भी लाभकारी है। इसमें रोगी के मल द्वार में ऐसा मालूम होता है। जैसे – कांच का चूरा व धारदार कांटी गड़ी हुई है। इसके रोगी को जबरजस्त कब्जियत रहती है। जिसमे मल कडा और गेंद की तरह गोल होता है। इसकी तकलीफ रात में बढ़ती है।
इस्क्युलस : इसमे मलद्वार में कुछ गड़ते रहने की तरह दर्द, अकड़न जैसा दर्द, कमर दर्द और भार मालूम होता है। मलद्वार भीगा मालूम होना, मलद्वार में जलन होना, खुजली होती है। मस्सा ( भीतरी और बाहरी ) में अत्यधिक दर्द, यकृत की जगह पर भार मालूम होना, पाखाना हो जाने के बाद बहुत देर तक मलद्वार में जलन रहना, पाखाना रुका हुआ लगना आदि इसके विशेष लक्षण है। इसके बवासीर में प्रायः रक्तस्राव नहीं होता। लेकिन बीमारी पुराणी होने पर रक्तस्राव भी होता है। जिसका दर्द कमर और पीठ तक भी फ़ैलता है।
सामन्यतया डॉ reckeweg r13 बवासीर बूँदें सभी तरह के बवासीर में अच्छा काम करती है, आदि।
बवासीर और भगंदर में अंतर ( Difference between piles and fistula in hindi )
बवासीर और भगंदर दोनों गुदा रोग है। जो अपशिष्ट पदार्थो को खाने आदि कारणों से होते है। हालांकि चिकित्सीय दृष्टि से दोनों को अलग – अलग माना गया है। बवासीर मुख्य रूप से गुदा के अंदर या गुदा द्वार पर होता है। जबकि भगंदर गुदा से कुछ दूरी पर होता है। जिसमे से मवाज, खून आदि रिसता रहता है। परन्तु यह जरूरी नहीं कि बवासीर में ऐसा हो ही। अर्थात वादी बवासीर में पस – रक्त नहीं निकलता, और खूनी बवासीर में निकला करता है।
बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने में उपयोगी व्यायाम ( exercise to cure piles permanently in hindi )
नियमित परिश्रम करना स्वस्थ रहने के लिए उतना ही आवश्यक है। जितना भूख लगने पर भोजन। परन्तु हम भोजन को तो महत्व देते है। लेकिन व्यायाम को भोजन जैसा उपयोगी नहीं समझते है। जिससे हमारी आदत में परिश्रम को कोई स्थान नहीं प्राप्त होता। जिसका दुष्परिणाम यह होता है कि हमारे शरीर में जमी हुई गंदगी बाहर नहीं निकल पाती और नश, मांसपेशियां आदि कमजोर होने लगती है। जिसके परिणाम स्वरूप हमे रोग घेरने लगते है।
नियमित पैदल चलना, दौड़ना – भागना, हल चलाना, खेल – खेलना, कसरत (व्यायाम) करना आदि। विवक्षावसात इन सभी को व्यायाम कह दिया जाता है। जो बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय भी है। जिसमे अधिक भार उठाने वाले कार्य निषिद्ध है। जैसे – कुए से पानी भरना, जात पीसना ( चलाना ), धान कूटना आदि।
उपसंहार :
किसी भी रोग को जड़ से ठीक करने में 80% योगदान आहार और दिनचर्या आदि का होता है। 16 % सामान्य चिकित्सा का और 4% विशेष चिकत्सा का होता है। जिसमे आपेक्षित सुधार कर हम किसी भी रोग पर विजय प्राप्त कर सकते है। जो बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय भी है।
बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने में हमारा लगभग 80% योगदान है। जिसमे सुधार लाकर हम वर्तमान और भविष्य में होने वाले रोगो से छुटकारा पा सकते है। यदि थोड़ा और प्रयास कर सामान्य चिकित्सा को अपनाये तो 16% तक हमारी पहुंच और हो सकती है। अर्थात 80+16=96% रोगो का उपचार हम स्वयं कर सकते है। जिसके लिए हमे केवल सामान्य जानकारी अपेक्षित है।
परन्तु रोग का सूक्ष्म से सूक्ष्म भाग भी यदि शेष रह गया तो भीषण उपद्रव को भी जन्म दे सकता है। जिसके लिए हमे बचे हुए 4% रोग की चिकित्सा भी चिकित्सा सिद्ध व्यक्ति से ही करवाना चाहिए। इस प्रकार शास्त्रानुकूल परिवर्तन कर हम आसानी से आजीवन स्वस्थ बने रह सकते है और सुख भोगते हुए अपने परम लक्ष्य को भी प्राप्त कर सकते है।
ध्यान रहे : चिकित्सीय सलाह के बिना किसी भी दवा का प्रयोग न करे।
FAQ
बवासीर का ऑपरेशन में कितना खर्चा आता है?
सामान्य बवासीर के ऑपरेशन का खर्च लगभग 10 – 15 हजार रूपये है।
क्या बवासीर जड़ से खत्म हो सकती है?
सही विधि और समय से उपचार करने पर, जन्मोपरांत होने वाली बवासीर पूर्णतया आरोग्य हो सकती है। जबकि सहज ( आनुवांशिक ) बवासीर में सावधानी रखकर, केवल इसके दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है।
बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय क्या है?
चिकित्सीय सिद्धांतो का धैर्य पूर्वक अनुपालन करते हुए, औषधि के साथ आहार, दिनचर्या के आपेक्षिक सुधार कर हमेशा के लिए इससे छुटकारा पाया जा सकता है।
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