फिशर गुदा की शिराओ के फटने से होने वाला रोग है। जिसमे गुदा के बाहर दरार बन जाती है। जिसके कारण गुदा में भयंकर दर्द और जलन के साथ, खून भी रिसने लगता है। जिसे रोगी का उठना बैठना तक दूभर हो जाता है। जिसके लिए फिशर का आयुर्वेदिक इलाज अत्यंत फलदायी है। जिसमे फिशर की आयुर्वेदिक दवा बैद्यनाथ आदि का भी प्रयोग किया जाता है। जबकि पतंजलि फिशर की दवा के माध्यम से होने वाला उपचार, फिशर का इलाज बाबा रामदेव कहलाता है।
यह गुदा में पायी जाने वाली पेशियों ( वलियो ) का रोग है। जिसमे लम्बाई में फ़ैली शिराए कुपित होकर फट जाया करती है। जिसके कारण गुदा में दरार और सूजन होने लगती है। जिसे फिशर के लक्षण कहा जाता है। यह बहुत ही वेदना दायक रोग है। जिसके कारण हमारी जीवनशैली अस्त व्यस्त हो जाया करती है। जिससे इस रोग का प्रभाव हमारे रोज की दिनचर्या के साथ, हमारे काम पर भी पड़ता है।
फिशर में खूनी बवासीर के लक्षण से, मिलते – जुलते लक्षण पाए जाते है। जिससे इसका उपचार खूनी बवासीर के उपचार जैसे किया जाता है। जिसमे बवासीर की गारंटी की दवाई बहुत ही गुणकारी है। जिसका सेवन करने से गुदा की समस्त तकलीफो के साथ, पेट में होने वाली समस्याए भी दूर हो जाया करती है।
एनल फिसर मीनिंग ( anal fissure meaning in hindi )
गुदाद्वार पर बनने वाली दरार को ही आंग्ल भाषा में, एनल फिसर कहा जाता है। यह गुद नलियों में लम्बाई की ओर फैली शिराओ की विकृति है। जिसमे मलत्याग के समय कब्जादि होने के कारण जोर – जोर से कांखने पर, इन शिराओ में गया हुआ रक्त वापस नहीं आ पाता। जिससे इनमे रक्त जमा होने लगता है। जो धीरे – धीरे बढ़ता हुआ मांस के मस्सों का रूप ले लेता है। जो आमतौर पर बवासीर के लक्षण कहे जाते है।
लेकिन जब इन्ही शिराओ में, खून जमने से यह फूलने लगती है। तब मलद्वार में सूजन ( मलाशय शोथ ) होने लगती है। जिसमे भयंकर दर्द, जलन और गुदा में कुछ अड़े हुए का अनुभव होता रहता है। परन्तु जब इन शिराओ में जमा दूषित रक्त अधिक कुपित हो जाता है। तब यह शिराए फट जाया करती है। जिससे गुदा में सूजन और दरार बन जाती है। जो फिसर कहलाता है।
फिशर कैसे ठीक होता है ( how to cure fissure permanently in hindi )
गुदीय शिराओ के सूजकर फटने से ही गुदा में दरार बनती है। गुदा में सूजन होने के कारण अधोमार्ग बंद हो जाता है। जिससे अपानवायु वापस ऊपर की ओर आकर सामान – व्यान – उदान और प्राण वायु एवं पित्त – कफ को कुपित करता हुआ अग्नि को मंद कर देता है।
जिससे मलद्वार और पेट की बीमारियों का जन्म एक साथ होता है। जिसके कारण रोगी कमजोर, दुबला – पतला, दीन – हीन हो जाता है। जिसके अंदर अपानवायु – मूत्र – मल की मात्रा बढ़ जाती है, या रुक जाती है। इसके साथ इसके मल में अनेक परिवर्तन देखने को मिलते है। जैसे मल – अनिश्चित, कभी बंधा, कभी ढीला, कभी कच्चा, कभी पका, कभी पानी जैसा पतला और कभी सूखा होता है। इसी तरह रोगी बीच – बीच में कभी कच्चा – सफेद – पांडुवर्ण – हरा – पीला – लाल – अरुण – पतला – घट्टा – चिकना मलत्याग करता है।
इसके नाभि और सीने में चुभने और कुतरने वाला दर्द, गुदा में भयानक चुभन का दर्द, प्रवाहिका – प्रहर्ष – चक्कर आना, थोड़ा खाने वाला, सारे शरीर और सर में दर्द, हाथ – पैर – मुख – आँखों के नीचे सूजन, छींक – कम्पन्न और उल्टी, धीरे – धीरे और टूटे – फूटे सब्द बोलने लगता है, आदि। जिसके उपचार के लिए आयुर्वेद में बहुत से उपाय बताये गये है। परन्तु फिशर का घरेलू नुस्खा अत्यंत फलदायी है।
हालांकि बवासीर और फिसर दोनों एक ही स्थान पर होने वाले रोग है। जिससे इनके उपचार में प्रयोग होने वाली दवाई भी एक जैसी है। जिसके कारण बवासीर में उपयोग होने वाली दवाई, फिशर की दवा भी कही जाती है।
फिशर का आयुर्वेदिक इलाज ( fissure ayurvedic treatment in hindi )
आयुर्वेदादी शास्त्रों में फिसर के उपचार की विधि बतलाई गयी है। जिसे फिशर का आयुर्वेदिक इलाज ( fisher ka ayurvedic ilaj ) कहा जाता है। जिसमे त्रिदोषज चिकित्सा को प्रधनता दी गई है। जिसमे वात, पित्त और कफ दोषो के पूरक और अनुपूरक वचनो की विधि संहिता बनाई है। जिसके आधार पर फिशर के लिए आयुर्वेदिक उपचार ( ayurvedic treatment for fissure ) करना लाभदायी है।
दोष की प्रधानता और रोग की तीव्रतानुसार, अलग – अलग रोगियों में फिशर की दवा में भेद हो जाता है। फिर भी फिसर के इलाज ( fishar ka ilaaj ) में उपयोगी, फिशर की आयुर्वेदिक दवा ( best ayurvedic medicine for fissure ) इस प्रकार है –
- वात और कफ प्रधान फिसर के लिए मठ्ठा परम गुणकारी है। यह पेट विकारो और गुदा संक्रमण को एक साथ मिटाने में उपयोगी है। यह बवासीर में अत्यंत उपयोगी है। जिसके कारण बवासीर के घरलू उपाय के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है।
- कफ रोगियों को मठ्ठे से घी निकालकर प्रयोग करना चाहिए। वही वात रोगियों को मठ्ठे से बिना घी निकाले ही प्रयोग करना चाहिए।
- फिसर रोग में अधिक रक्त स्राव होने पर, प्याज की सब्जी खाना बहुत लाभकारी है।
- घी में भूनी हरड़ को पीपली के साथ खाने से, मलाशय में फसा मल बाहर निकलता है। जिससे गुदा में आयी सूजन और दर्द दोनों कम होते है।
- त्रिफला काढ़े के साथ निसोथ का चूर्ण खाने से, आँतों में जमा मल बाहर निकल आता है। जिससे फिसर की तकलीफे घटने लगती है।
फिशर की आयुर्वेदिक दवा बैद्यनाथ ( baidyanath ayurvedic medicine for fissure in hindi )
फिसर का इलाज करने के लिए, वैद्यनाथ आयुर्वेद ने बहुत सी दवाईयां बनाई है। जो एनल फिशर की आयुर्वेदिक दवा कही जाती है। जो बवासीर के उपचार में भी प्रायः प्रयोग में लाई जाती है। जिससे इसे बवासीर फिशर की दवा ( medicine for piles and fissure ) भी कहा जाता है। जैसे –
वैद्यनाथ त्रिफला गुग्गुल : आयुर्वेद ने त्रिफला को विरेचन की उत्कृष्ट दवाइयों में से एक माना है। जिसके उपयोग से पेट की सफाई होती है। जिसके कारण प्रतिकूलित वायु अनुकूल होती है। जिससे पेट से कब्ज की समस्या का नाश होता है। इस कारण गुदा पर पड़ने वाला दबाव कम हो जाता है। जिससे सूजन और दर्द में कमी आती है।
वैद्यनाथ आरोग्यवर्धिनी वटी : वरुण छाल, बबूल छाल और गंधक से बनी हुई दवा है। जिसका उपयोग करने से बवासीर और फिसर की समस्या में लाभ होता है। वैसे तो बहुत सी बीमारियों में काम में लाई जाती है। यह पेट की विषम वायु को सम करने में मदद करती है। जिसके कारण फिसर के दर्द में आराम मिलता है।
वैद्यनाथ चंद्रप्रभावटी : यह फिसर में होने वाले जलन और दर्द को दूर करने में मददगार है। इसके सेवन से त्वचा विकारो में लाभ मिलता है। यह शरीर को ठंडा रखती है। विशेषकर पित्त विकारो में।
वैद्यनाथ इसबगोल : यह फिसर में निकलने वाले सभी प्रकार के मलो को, उपयुक्त कर बाहर निकालने में मदद करता है। अर्थात सूखे, कड़े और लम्बे मल को ढीलाकर बाहर निकालता है। वही पतले, पानी जैसे, झागदार और बदबू करने वाले मल को बांध कर बाहर निकालता है। जिसके कारण सभी तरह के रोगो में यह लाभदायी है।
पतंजलि फिशर की दवा ( patanjali medicine for fissure in hindi )
फिसर को मिटाने के लिए पतंजलि में बहुत सी दवाईयां है। जिन्हे फिशर की दवा पतंजलि भी कहा जाता है। जिसमे फिशर में मिलने वाले लक्षणों को कम करने वाले, औषधियों का प्रयोग किया गया है। जिसकी प्रमुख दवाईयां इस प्रकार है –
दिव्य कायाकल्प वटी : यह गुदा से सम्बंधित समस्याओ के उपचार में, उपयोग की जाने वाली आयुर्वेदिक औषधि है। जो सूजनकारी, जीवाणु संक्रमण, फंगस को मारने और मस्से को दूर करने वाले गुण पाए जाते है। जिसको बनाने में आवला, हरिद्रा, बाकुची, नीम, गिलोय, बहेड़ा, हरण और मंजिष्ठा जैसी औषधियां डाली गयी है।
दिव्य अर्शकल्प वटी : यह बवासीर और फिशर का इलाज करने वाली, बहुत ही बढ़िया दवा है। जिसका उपयोग करने से गुदा में होने वाली तकलीफो में फायदा होता है। जिसके कारण इसको फिशर का इलाज बाबा रामदेव कहा जाता है।
एलोवेरा जेल : गुदा में आयी दरारों की खुजलाहट और चुभन को दूर करने के लिए, इसका उपयोग किया जाता है। गुदा में होने वाली बाहरी जलन को कम करने में यह बहुत ही लाभकारी है। जिसके कारण इसका इस्तेमाल गुदा की परेशानियों में किया ही जाता है।
फिशर के लिए हिमालया की दवा ( himalaya medicine for fissure )
हिमालय आयुर्वेद में भी फिशर की समस्याओ को, मिटाने की बहुत सी औषधीय है। जिनका उपयोग करने से गुदा रोगो में बहुत लाभ होता है। यह भोजन को पचाने और मल के निष्कासन में होने वाली समस्या को दूर करता है। जिससे फिशर रोगो में कमी आना स्वाभाविक है।
फिशर के लिए पिलेक्स टेबलेट ( pilex tablets for fissure in hindi )
हिमालया पिलेक्स टेबलेट गुदा रोगो की जानी मानी टेबलेट है। इसलिए यह बवासीर और फिशर दोनों की लाभकारी औषधि मानी जाती है। जिसके कारण बवासीर और फिसर के आयुर्वेदिक उपचार ( piles and fissure ayurvedic treatment ) के रूप में प्रयोग भी की जाती है।
हिमालया हर्बोलेक्स टैबलेट ( himalaya herbolax tablet in hindi )
यह पाचन और मलबद्धता की समस्या पर काम करती है। इसके सेवन से पाचन की तकलीफ दूर होती है। इसके साथ मल के सूखने और कड़े होने पर, उन्हें गीला और ढीला करने का भी काम करती है। जो फिसर रोग में मुख्य रूप से देखा जाता है। जिसके कारण इसको फिसर रोग में बहुत ही लाभदायक माना जाता है।
उपसंहार :
फिशर का आयुर्वेदिक इलाज फिसर में बहुत लाभकारी है। जिसको विधि पूर्वक अपनाने पर, गुद चीर में होने वाली सूजन और दर्द में बहुत फायदा होता है। जबकि फिशर की आयुर्वेदिक दवा बैद्यनाथ भी इसमें बहुत लाभ करती है। वही पतंजलि फिशर की दवा गुदा की दरारों के जख्म आदि को दूर करती है।
आयुर्वेदानुसार सदैव के लिए, रोग मुक्ति का अमोघ उपाय रोग के कारण को समाप्त करना है। जिसके लिए आहार – विहार, दिनचर्या के साथ आहार आदि की विसंगति को दूर करने की आवश्यकता पड़ती है। जिसका मूल कारण इनके बिना दोषानुगमन की संभावना का बने रहना है।
ध्यान रहे : यहां बताये गए सभी उपाय और सुझाव चिकित्सीय जानकारी है, न कि चिकित्सा। इसलिए किसी भी उपाय अथवा दवाई लेने के पूर्व विशेषज्ञीय सलाह अवश्य ले।
सन्दर्भ :
- सुश्रुत संहिता निदान अध्याय – 02
- अष्टांग संग्रह निदान स्थान अध्याय – 07
- अष्टांग संग्रह चिकित्सा स्थान अध्याय – 10
FAQ
फिशर की आयुर्वेदिक दवा क्या है?
50 ग्राम काला तिल खाकर गुनगुना पानी पीने से, फिशर में होने वाली समस्याओ में लाभ होता है।
फिशर का आयुर्वेदिक इलाज क्या है?
फिशर के इलाज में स्नेहन, स्वेदन, विरेचन आदि विधियों की आवश्यकता पड़ती है। जो हमारे शरीर के भीतर पाए जाने वाले दोषों का निवारण करती है। जिसके बाद आयुर्वेदिक औषधियों से फिसर का उपचार किया जाता है। जैसे – त्रिफला चूर्ण को मठ्ठे में मिलाकर लेना आदि।