फिसर गुदा में होने वाला बहुत ही भीषण रोग माना जाता है। जिसमे रक्तवाहिनियों के फूलने से, फट ( चटक ) कर दरार बनने लगती है। जिसे गुदा में दरार आना या बनना कहा जाता है। जिसके कारण मलत्याग के समय बहुत भयानक दर्द और रक्तस्राव होता है। जिसमें एनल फिशर की होम्योपैथिक दवा से, फिशर का होम्योपैथिक इलाज फायदा पहुंचाता है। इसलिए गुदा फिशर ट्रीटमेंट इन होम्योपैथी को उपयोगी बताया जाता है।
गुदा में होने वाले रोग शिराओ की गड़बड़ी से होते है। जिसमे पाचन आदि की समस्या भी अहम योगदान देती है। जिससे गुदा रोगो में, आमतौर पर पेट रोगो का होना पाया ही जाता है। जिसमे पेट में मरोड़ और दर्द आदि का होना पाया जाता है। जिसकी मुख्य वजह पेट साफ न होने के लक्षण का खासतौर पर पाया जाना है। जिसके कारण पेट में मल का संचय होने लगता है। जिसके लिए फिशर का होम्योपैथिक इलाज भी लाभदायी है।
पेट में मल के संचय होते रहने से, दोषो का आनुकूल संतुलन बिगड़ जाता है। जिससे पेट में गैस बनने की समस्या होने लगती है। जिसके कारण मल – मूत्रादि का वेग समय पर नहीं आता। यदि आता भी है तो इनको निकालने के लिए बहुत काँखना पड़ता है। जिससे गुदा नली में लम्बाई की ओर फैली, गुद शिराओ में गया हुआ खून वापस नही आ पाता। जिसके कारण गुद शिराओ में ही भरने लगता है। जिसकी वजह से मलद्वार में सूजन और दर्द होने लगती है। जिसके बढ़ जाने पर गुदा में फिशर की समस्या हो जाती है।
फिशर रोग का लक्षण
इस रोग में बवासीर के लक्षण से, मिलते – जुलते लक्षण पाए है। जिसमे कुछ गुदा से सम्बन्ध रखते है, और कुछ पाचक अंगो से सम्बंधित होते है। जैसे –
- मलत्याग के समय गुदा में दर्द होना
- मलत्याद के दौरान या बाद गुदा में जलन होना
- गुदा में दरार बन जाना
- गुदा से खून गिरना
- पेट में मरोड़, कूथन और दर्द होना
- नाभि पर पत्थर रखा हुआ होने का एहसास होना
- पेट में गड़गड़ाहट होना
- मल – पेशाब – वायु आदि का वेग का बढ़ / घट या रुक जाना, आदि।
फिशर रोग का कारण
बवासीर और फिसर दोनों एक ही स्थान पर होने वाले रोग है। जिसके कारण इनके कारणों में भी समानता देखी जाती है। जैसे –
- मल त्याग के समय जोर लगाकर काँखना
- मल मूत्रादि को जोर लगाकर, बाहर निकालने का प्रयास करना
- मल – मूत्रादि के वेग को रोकना
- टेड़े – मेढे और कठोर आसान पर अधिक देर तक बैठना
- अधिक समय तक स्त्री / पुरुष का भोग करना
- रात्रि में जगना और दिन में सोना
- अनावश्यक तनाव लेना
- मलत्याग के बाद मिट्टी के ढेले से गुदा पर रगड़ लगना
- महिलाओ में गर्भावस्था का पाया जाना
- गर्भस्राव होना, आदि।
एनल फिशर को कैसे ठीक करें ( how to heal anal fissure in hindi )
फिशर गुद वलियो में होने वाला ऐसा रोग है। जिसमे गुदा की दूषित रक्तशिराए, दूषण प्राप्त रक्त से भर कर फूल जाया करती है। जिसके कारण गुदा में, खूनी बवासीर के लक्षण दिखाई पड़ने लगते है। जिसके कारण कभी – कभी खूनी बवासीर और फिशर को पहचानने में भी त्रुटि हो जाती है। इस कारण दोनों में विभेद करना भी आवश्यक हो जाता है। जिसके कारण फिशर का होम्योपैथिक इलाज में इसका ध्यान रखना आवश्यक है।
खूनी बवासीर और फिशर रोगो में, जलन और खून जाने की प्रवृत्ति आमतौर पर होती है। जिसमे लगभग सामान दोष भी पाए जाते है। जिसको दूर करने के लिए होम्योपैथी में बहुत सी दवाइया है। जो स्वाभाविक रूप से रोग लक्षणों के अनुसार ही गुण रखती है। जिसका मेल होते ही रोग का समूल नाश हो जाता है। जिसके कारण फिशर रोग में, होम्योपैथिक उपचार को कारगर माना गया है।
फिशर ट्रीटमेंट इन होम्योपैथी ( fissure treatment in homeopathy )
होम्योपैथी रोग लक्षणों के अनुसार काम करने वाली चिकित्सा प्रणाली है। जिसमे उपचार के लिए कोई विशेष दवा का प्रयोग नहीं किया जाता। बल्कि रोग से प्राप्त होने वाले लक्षणों को परखा जाता है। जिसके बाद रोग लक्षण जैसे गुण रखने वाली दवा चुनी जाती है। यह वही बात हुई जैसे लोहा लोहे को काटता है। जिसको फिशर का होम्योपैथिक इलाज में हर बार दोहराया जाता है।
फिशर की होम्योपैथिक दवा ( homeopathy medicine for fissure in hindi )
फिसर का इलाज ( fissure ka ilaj ) करने के लिए, बहुत सी दवाइया है। जिनका रोगी से प्राप्त लक्षणों के आधार प्रयोग होता है। बेस्ट होम्योपैथिक मेडिसिन फॉर फिशर ( best homeopathic medicine for fissure ) निम्न है। जिनके द्वारा फिशर का होम्योपैथिक इलाज किया जाता है।
फिशर के लिए एस्कुलस : गुदा रोगो की यह बहुत ही लाभदायक होम्योपैथिक दवा है। इसमें मल द्वार में अकड़न और कुछ गड़ते रहने की तरह का दर्द होता है। गुदा भीगी हुई एवं भारी मालूम होती है। मलद्वार में भयंकर जलन और खुजली होती है। कमर में हमेशा दर्द बना रहता है। मलत्याग के बाद बहुत देर तक गुदा में जलन आदि बनी रहती है। प्रायः इसमें खून नहीं आता, लेकिन रोग पुराना होने पर खून भी आ सकता है। इसमें मल त्याग के काफी समय बाद जलन होती है।
फिशर के लिए रैटान्हिया ( ratanhia 200 for fissure ) : फिशर से राहत दिलाने में यह दवा बहुत ही कारगर है। यदि रोगी में इसका लक्षण मिले। इसमें मलद्वार में कांच के टुकड़े गड़ने की तरह दर्द होता है। लेकिन इसमें एस्कुलस से दर्द कम और जलन अधिक होती है। इसमें जलन इतनी तीव्र होती है कि जैसे किसी ने लाल मिर्च का पाउडर छिड़क दिया हो। इसमें मलत्याग के ठीक बाद ही जलन होने लगती है। इसके फिशर में स्पर्श सहन न होने वाला दर्द होता है। इसलिए फिशर का होम्योपैथिक इलाज में, इस दवा को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है।
फिशर के लिए लैकेसिस : इसके फिशर में टपक का दर्द अधिक रहता है। खांसने पर ऐसा लगता है जैसे गुदा पर काँटा गड रहा हो। और कोई चीज अड़ी हुई है। जिससे रोगी लगातार काँखा करता है। मलत्याग के समय इतनी तकलीफ होती है कि रोगी उठ खड़ा होता है। रोग बढ़ने के साथ इसका मलद्वार बंद सा हो जाता है।
फिशर के लिए प्लेंटेगो : इसमें हर वक्त मलत्याग की इच्छा होती है। जिसके कारण रोगी बार – बार मलत्याग के लिए जाता है, पर तकलीफ के कारण नहीं। गुदाद्वार में मिर्च लग जाने के समान जलन, प्रदाह और दर्द होता है। जिससे रोगी खड़ा नहीं रह सकता। किसी भी अवस्था में रोगी को आराम नहीं मिलता।
एनल फिशर में खून निकलना कैसे रोके ( how to stop anal fissure bleeding in hindi )
एनल फिशर ब्लीडिंग ( anal fissure bleeding ) को रोकने में, बेस्ट होम्योपैथी मेडिसिन फॉर फिशर ( best homeopathy medicine for fissure ) उपयोग में लाई जाती है। जिसका उपयोग करने से फिशर से निकलने वाला खून रुक जाता है। इसको भी एक तरह का फिशर का होम्योपैथिक इलाज कहा जाता है। जिसमे निम्न दवाइयों की आवश्यकता पड़ती है।
हैमामेलिस : होम्योपैथी में रक्तस्राव के लिए प्रयोग की जाने वाली श्रेष्ठ दवा है। जिसका सेवन करना तब लाभदायी होता है। जब गुदा में अकड़न का दर्द और जलन के साथ, मल्डद्वार से बहुत अधिक परिणाम में रक्तस्राव होता रहे।
नक्स वोमिका : इसमें अक्सर गुदा से खून जाने की समस्या बनी रहती है। इसमें मल का वेग तो आता है पर होता नहीं। इसके मलद्वार का दर्द और कमर दर्द एस्कुलस से बहुत कम रहता है। जो विश्राम करने से घट जाता है, और परिश्रम करने से बढ़ जाता है।
कोलिनसोनिया : इसके फिशर में लगातार खून जाने की समस्या होती है। इसमें ऐसा एहसास होता है जैसे मलद्वार में कांच का चूरा या कोई धारदार काटी गाड़ी हो। इसके लक्षण रात को बढ़ते है।
बवासीर और फिसर की होम्योपैथिक दवा ( best homeopathy medicine for piles and fissure in hindi )
बवासीर और फिशर दोनो ही गुदा रोग है। जिसको दूर करने के लिए होम्योपैथिक सिद्धांत के अनुसार, चुनी गई दवा बहुत लाभ करती है। इसके अनुसार रोग लक्षणों को मूल आधार माना गया है। इस कारण होम्योपैथी में रोग होने के स्थान और उनसे प्राप्त होने वाले लक्षण को मुख्य माना जाता है। जिसके कारण बवासीर और फिसर में, लगभग – लगभग एक जैसी होम्योपैथिक दवा का प्रयोग होता है। जैसे – एस्कुलस, इग्निसिया आदि है।
फिशर के लिए जर्मन की होम्योपैथिक दवा ( german homeopathic medicine for fissure in hindi )
फिशर के इलाज के उपयोग में लाई जाने वाली दवाइया, बवासीर के इलाज में भी उपयोग होती है। जिसके कारण इनको भी फिशर की दवा कहा जाता है। जिसका कारण इनका निर्माण होम्योपैथिक दवाइयों से किया जाना है। यह फिशर रोग में पाए जाने वाले लक्षणों को मिटाने में सहायता करती है।
डा रेग्वेज R 13 : यह गुदा फिशर के इलाज की बहुत ही बढ़िया दवा है। जिसका सेवन करने से फिशर के कारण होने वाली समस्याओ और दर्द से छुटकारा मिलता है। जैसे – फिशर की चुभन, जलन, खुजली और खून जाने की समस्या आदि।
क्या होम्योपैथी बवासीर को स्थायी रूप से ठीक कर देती है ( can homeopathy cure fissure permanently in hindi )
होम्योपैथी पूर्णतया लक्षण आधारित आधुनिक चिकित्सा पद्धति है। जिसमे रोगी के रोग से प्राप्त होने वाले लक्षण के सामान, गुण रखने वाली औषधि का चयन किया जाता है। तदुपरांत रोग की तीव्रता और रोगी के बलाबल को परख कर, दवा की मात्रा और आवृत्ति ( दोहराव ) को अपनाया जाता है।
जिससे भीषण से भीषण रोग भी सदा के लिए शांति को प्राप्त होते है। इसलिए गुदा फिशर का होम्योपैथिक इलाज बहुत ही चमत्कार पूर्ण है। लेकिन तभी तक जब तक रोगी रोग के कारणों, को पुनः प्राप्त होने वाला व्यवहार न करे। जैसे – खान – पान, दिनचर्या आदि में गड़बड़ी न लावे। इसलिए फिशर में क्या नहीं खाना चाहिए और क्या खाना चाहिए।
उपसंहार :
उचित सिद्धान्तानुसार किया गया फिशर का होम्योपैथिक इलाज फिशर का नामोनिशान मिटा देता है। इसलिए एनल फिशर की होम्योपैथिक दवा, फिशर ट्रीटमेंट का अच्छा विकल्प माना गया है। होम्योपैथिक दवा की क्रिया लम्बे समय तक बनी रहती है। जिसके कारन फिशर जैसे भीषण रोगो के इलाज में भी होम्योपैथी कारगार है।
ध्यान रहे : फिशर गुदा में होने वाला जीर्ण रोग है। जिसमे किसी भी दवा का प्रयोग करने से पहले, चिकित्सीय सलाह लेना आवश्यक है।
सन्दर्भ :
डा नारायण चंद्र घोष द्वारा लिखित कॉपरेटिव मैटेरिया मेडिका