शादी के बाद माँ बनने का एहसास, हर महिला के सबसे सुखद क्षणों में से एक होता है। लेकिन माँ बनने के लिए महिलाओं के पास कुछ विशेष और सीमित दिन होते है। जो हर महीने मासिक धर्म चक्र के दौरान आते है। इस समय महिला का शरीर गर्भ धारण करने के लिए सबसे अधिक उर्वर होता है। जिसमे सम्बन्ध बनने पर महिला आसानी से प्रेग्नेंट हो सकती है। लेकिन पीरियड में प्रेगनेंसी हो सकती है।
जिसे आधुनिक चिकित्सा में ओवुलेशन अथवा ओवुलेशन पीरियड के नाम से जाना जाता है। जिसके दौरान महिलाओं का शरीर कुछ अलग ढंग से प्रतिक्रिया करता है। जिसे ओवुलेशन या ओवुलेशन पीरियड के लक्षण कहा जाता है। यह महिला के पीरियड का वह समय होता है। जिसमे महिला – पुरुष में असुरक्षित यौन सम्बन्ध बनने पर, महिला में गर्भ ठहरने की प्रायिकता सबसे अधिक पाई जाती है।
यह लड़कियों में मासिक धर्म शुरू होने से लेकर, महिलाओं की रजोनिवृत्ति होने तक हर माह चलता रहता है। परन्तु अधिकतर महिलाए प्रेगनेंसी के इस सुनहरे को नहीं जान पाती, क्योकि यह पीरियड के बीच का समय होता है। जिससे माँ बनने की आकांक्षा रखने वाली महिला सोचती है कि आखिर पीरियड के कितने दिन बाद ओवुलेशन होता है?
किन्तु ज्यादातर मामलों में महिलाए ओवुलेशन होने के लक्षण और ओवुलेशन न होने के लक्षण नहीं जान पाती। जिससे कभी – कभी बच्चा न चाहने पर भी गर्भवती हो जाती है। ऐसे में महिलाओं को यह जानना आवश्यक है कि पीरियड के कितने दिन पहले ओवुलेशन होता है?
ओव्यूलेशन किसे कहते हैं ( what is ovulation in hindi )
ओवुलेशन महिला प्रजनन तंत्र का वह खास समय है। जिसमे सम्बन्ध बनने पर महिला के गर्भवती होने के अवसर सबसे अधिक होते है। जिससे एक ओर यह प्रेग्नेंट होने का स्वर्णिम समय होता है। जिसके दौरान महिला अंडाशय ( ओवरी ) गर्भ ठहराने के लिए परिपक्व अण्डों का उत्सर्जन करती है।
जिसको ओव्यूलेशन कहा जाता है। जो हर महिला में अलग – अलग दिनों का हो सकता है। जिसकी पहचान ओवुलेशन पीरियड के लक्षण द्वारा आसानी से हो सकती है। इसलिए गर्भ धारण की इच्छा रखने वाली वाली महिलाए यह जानने के प्रयास में लगी रहती है कि पीरियड के कितने दिन पहले प्रेग्नेंट हो सकते हैं?
महिला के प्रजनन अंग के तीन मुख्य भाग है। पहला गर्भाशय दूसरा अंडाशय और इन दोनों को आपस में जोड़ने वाला फैलोपियन ट्यूब। महिलाओं में होने वाला ओवुलेशन मासिक धर्म चक्र का तीसरा चरण होता है। जिसके दौरान महिला में दो जोड़ी पाए जाने वाले अंडाशय से, प्रति मास ओवुलेशन के समय निषेचन के लायक अंडा निकलता है।
महिला ओवरी से फैलोपियन ट्यूब से जुड़ा रहता है। जिसके कारण यह अंडे ओवरी से निकलकर, सीधे फैलोपियन ट्यूब में चले जाते है। जिसके दौरान महिला – पुरुष में शारीरिक संबंध बनने पर, पुरुष स्खलित होकर महिला गर्भाशय में वीर्य छोड़ता है। जो संख्या में अधिक और गतिशील होने के कारण, फैलोपियन ट्यूब में महिला अंडाशय द्वारा निकाले गए अंडे से जा मिलते है।
ओवुलेशन पीरियड के लक्षण ( ovulation period in hindi )
जिससे वीर्य में पाए जाने शुक्राणुओ के बीच, अंडे को निषेचित करने की जद्दोजहद शुरू हो जाती है। जिसमे जीत केवल उसी की होती है। जो सबसे मजबूत और ताकत वर होता है, अर्थात अंडे के भीतर प्रवेश कर पाता है। इस पूरी प्रक्रिया को ही निषेचन अथवा फर्टीलाइजेशन कहते है। जिसके बाद महिला में गर्भ रुकने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इस कारण जो महिलाए प्रेग्नेंट होना चाहती है। उन्हें यह समझना जरूरी हो जाता है कि गर्भ धारण करने के लिए पीरियड के कितने दिन बाद संबंध बनाना चाहिए?
वही दूसरी ओर प्रेगनेंसी के बचने का भी सबसे सही समय होता है। लेकिन जो विवाहित जोड़े महिला के ओवुलेशन समय को समझे – बूझे बिना सहवास करते है। उन्हें अनचाही प्रेगनेंसी की समस्या से गुजरना पड़ सकता है। जो कोई नहीं चाहता अर्थात हर कोई अनचाही प्रेगनेंसी से बचता है। इसलिए लोगो के मन में सवाल उठता है कि आखिर महिला प्रेग्नेंट कब नहीं होती है? तो इसका सीधा और सटीक उत्तर है, ओवुलेशन पीरियड के बाद।
आमतौर पर महिलाओं में ओवुलेशन के लक्षण कुछ दिन तक बने रहते है। जिससे कुछ लोग इसको ओवुलेशन पीरियड के लक्षण कहा करते है। जो महिला को उसके गर्भ धारण करने के अनुकूल लक्षणों की ओर इशारा करते है। हालाकिं प्रत्येक महिला में एक जैसे लक्षण नहीं पाए जाते। फिर भी कुछ ऐसे सामान्य संकेत है, जो आपकी ओव्यूलेशन अवधि को बतलाते हैं। जिन्हे सामान्यतया ओवुलेशन के लक्षण कहा जाता है।
ओवुलेशन होने के लक्षण ( ovulation ke lakshan in hindi )
जिस समय महिला अंडाशय से अंडे निकलने शुरू होते है। उसी समय को महिला का ओव्युलेट करना कहा जाता है। जो नियमित और अनियमित पीरियड में अलग ढंग के लक्षणों से युक्त हो सकते है। आमतौर पर महिलाओं के ओवुलेशन के दौरान निम्नलिखित लक्षण देखे जाते है –
- महिला के स्तनों में दर्द अथवा मुलायम होना
- महिला की कामेच्छा बढ़ी हुई होना
- सिर में दर्द होना
- पेट में दर्द होना खासतौर से निचले हिस्से में
- शरीर का तापमान बढ़ जाना ( जिसको आजकल बेसल बॉडी टेम्प्रेचर कहते है )
- गर्भाशय ग्रीवा का मुलायम होकर खुल जाना
- योनि का फूल जाना
- FSH ( फॉलिकल स्टिमुलेटिंग हार्मोन्स ) और LH ( लुटेइनीज़िंग हार्मोंस ) का बढ़ जाना
- ओवुलेशन में वाइट डिस्चार्ज होना
- ओवुलेशन में कमर दर्द होना
- गर्भाशय स्राव का अंडे की सफेदी जैसा पारदर्शी, पतला और चिकना होना
- स्राव का गंधहीन होना और हाथ लगाने पर तार बनना
- मिजाज में बदलाव आना, आदि।
ओवुलेशन के बाद के लक्षण ( after ovulation symptoms in hindi )
हर माह महिलाओं को उनके मासिक धर्म चक्र के दौरान, ओव्यूलेशन के लक्षण दिखाई पड़ते है। लेकिन जिन लड़कियों का नया – नया विवाह हुआ होता है। उनमे ओवुलेशन के लक्षण दिखाई पड़ने पर भी नहीं जान पाती। जिससे इनके दिमाग में लड़कियां प्रेग्नेंट कब हो सकती है का प्रश्न बना रहता है।
अब यदि लड़की या महिला अपने ओवुलेशन पीरियड के दौरान, गर्भवती हो जाती है। तब उसमे निम्नलिखित लक्षण देखे जा सकते है –
- ओवुलेशन के बाद कमर दर्द होना
- शरीर भारी लगना
- आलस और थकान होना
- पैरों में दर्द होना
- शरीर के ताप में थोड़ी – बहुत वृद्धि होना
- भूख न लगना
- खाने में गंध आना
- सिर में दर्द होना
- स्तनों में कसाव आना
- संबंध बनाने से अनिच्छा
- मिजाज गड़बड़ाना, आदि।
परन्तु यदि किसी कारण वश महिला गर्भ धारण नहीं कर पाती। तब उनमे गर्भ रुकने से अलग ढंग के लक्षण दिखाई पड़ते है। जो गर्भ रुकने के पहले जैसे लक्षणों से मेल खाते है। जैसे –
- शरीर के ताप में किसी तरह का बदलाव न आना
- थकान न होना
- पैर दर्द न होना
- सर में दर्द नहीं होना
- मिजाज में किसी तरह का अंतर न आना, आदि।
जब महिला में ऐसे लक्षण दिखाई पड़ते है। तब स्पष्ट हो जाता है की महिला प्रेग्नेंट नहीं है। परन्तु महिलाओं को ओवुलेशन में कमर दर्द की समस्या हो सकती है। जोकि एक प्रकार से ovulation ke lakshan है।
ओवुलेशन के बाद पेट में दर्द क्यों होता है?
ओवुलेशन के दौरान महिला गर्भाशय में अनेक तरह के बदलाव आते है। जिसके कारण ओवुलेशन में कमर दर्द और पेट दर्द की समस्या महिलाओं को हो सकती है। हालाकिं सभी महिलाओं में यह समस्या नहीं होती। जिन महिलाओं को ओवुलेशन स्राव ( ovulation discharge ) अधिक होता है। उनमे यह समस्या देखी जाती है।
ओवुलेशन के दौरान होने वाले रक्तस्राव को ओवुलेशन ब्लीडिंग या ओवुलेशन स्पॉटिंग कहा जाता है। जिसके दौरान महिलाए पेट के निचले हिस्से में दर्द महसूस करती है। जो गर्भाशय ग्रीवा का मुँह खुलने से हो सकता है। इसलिए कुछ महिलाए को ovulation bleeding होती है। जो पीरियड ब्लीडिंग से बिलकुल अलग होती है। इसमें सेनेटरी पैड अथवा पैंटी लाइनर बदलने की जरूरत नहीं पड़ती। यह केवल खून के धब्बे जैसे ही ब्लीडिंग होती है। जोकि एक तरह से ovulation period ke lakshan माने गए है।
ओवुलेशन पीरियड के लक्षणों के दौरान महिलाओं की योनि में सूजन हो जाया करती है। जो गर्भाशय ग्रीवा के बड़े होने का परिणाम है। जो महिलाओं में ओवुलेशन के लक्षण की ओर इशारा करता है। महिला की योनि दोनों जाघों के बीच में और नाभी के ठीक नीचे होती है। जिसके कारण महिला को ओवुलेशन के बाद पेट में दर्द का अनुभव होता है।
मासिक धर्म चक्र और ओवुलेशन की गणना कैसे करे ( how to calculate menstrual cycle and ovulation in hindi )
ओवुलेशन महिला को कंसीव कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जिसको ओवुलेशन होने के लक्षण को जाने बिना नहीं समझा जा सकता। परन्तु महिलाओं में होने वाले ओवुलेशन का समय, उनके मासिक धर्म चक्र की अवधि पर निर्भर करता है। जो हर माह महिलाओं में ब्लीडिंग के रूप में दिखाई पड़ता है। जिससे इसकी गणना करने में अक्सर महिलाओं से भूल हो जाया करती है।
जबकि नैचुरल बर्थ कंट्रोल कर पाना ओवुलेशन को समझे बिना संभव नहीं है। क्योकि कंसीव न करने के लिए ओवुलेशन पीरियड के लक्षण पाए जाने तक, सम्भोग से दूरी बनाये रखना आवश्यक है। किन्तु इसमें कठिनाई यह है कि पीरियड की तरह इसका भी भी कोई हार्ड एंड फ़ास्ट रूल नहीं है। जिसके कई कारण है। जिसमे मुख्य रूप से महिला कि देह प्रकृति, आहार और दिनचर्या के साथ मानसिक तनाव आदि को शामिल है। जो महिला के पीरियड और ओवुलेशन के लक्षण में बदलाव लाने के लिए जिम्मेदार है।
फिर भी प्रेग्नेंट होने और प्रेगनेंसी से बचाव करने के लिए, ओवुलेशन को समझना ही पड़ता है। क्योकि इसके अलावा हमारे पास कोई हानिरहित उपाय ही नहीं है। यदि हम तकनीकी उपाय अपनाते है तो उनका दुष्प्रभाव उलट – पुलट कर हमारे ऊपर ही पड़ता है। जो आगे चलकर रोगों के रूप में दिखाई पड़ता है।
आमतौर पर महिलाओं में ब्लीडिंग बंद होने के लगभग सप्ताह भर बाद ओवुलेशन का समय होता है। जो लगभग उतने ही दिन का होता है। जितने दिन महिला को उसके मासिक धर्म चक्र में रक्तस्राव होता है। इसके साथ जिस दिन महिला का पीरियड आता है। उस दिन को पीरियड का पहला दिन माना जाता है। जिसके ठीक चौदहवे दिन महिला का ओवुलेशन डे होता है, अर्थात इसी दिन महिला के अंडाशय से अंडे निकलते है।
ओवुलेशन के दौरान कितने अंडे निकलते है
लेकिन जब महिला के पीरियड के अवधि 4 सप्ताह से अधिक होती है। अर्थात 35 दिन के ओवुलेशन चक्र ( 35 days cycle ovulation ) में भी पीरियड की ब्लीडिंग समाप्त होने के लगभग हफ्ते भर बाद ओवुलेशन होता है। जिसको ओवुलेशन पीरियड के लक्षण से पहचाना जा सकता है।
अमूमन महिलाओं में एक जोड़ी अंडाशय पाया जाता है। जो फैलोपियन ट्यूब से जुड़ा होता है। यह फैलोपियन ट्यूब गर्भाशय और अंडाशय को जोड़ने का माध्यम है। जिसमे ज्यादातर समय अंडे का फर्टीलाइजेशन होता है। जिसके बाद ब्लास्टोसिस्ट आदि में बदल जाता है और लुढ़ककर गर्भाशय की दीवारों में प्रत्यारोपित होने का प्रयास करने लगता है।
आमतौर पर हर ओवुलेशन के दौरान, हर माह महिला के एक अंडाशय से एक ही अंडा ( फॉलिकल ) निकलता है। जो फैलोपियन ट्यूब में लगभग एक दिन तक जीवित रहता है। जबकि पुरुष शुक्राणु लगभग सप्ताह भर जीवित रहते है। इसलिए ओवुलेशन के सप्ताह भर पहले से ओवुलेशन तक सम्बन्ध बनाने से, महिला के गर्भवती होने की संभावना पाई जाती है।
क्या आप ओवुलेशन के तीन दिन बाद प्रेग्नेंट हो सकती है ( can you get pregnant 3 days after ovulation in hindi )
अमूमन महिलाओं में जब तक ओवुलेशन होने के लक्षण पाए जाते है। तभी तक उनके गर्भ धारण करने की संभावना बनी रहती है। जिसके बीत जाने में महिला असुरक्षित यौन सम्बन्ध बनाने पर भी गर्भ धारण नहीं करती। जिसकी पहचान ओवुलेशन में कमर दर्द आदि से महिलाए कर सकती है।
ओवुलेशन के बाद महिला के गर्भ धारण न कर पाने के दो कारण है –
- गर्भाशय का मुँह बंद हो जाना : महिलाओं में ओवुलेशन पीरियड के समाप्त होते ही, गर्भशय ग्रीवा सिकुड़ जाती है। जिसके परिणामस्वरूप गर्भाशय का मुँह बंद हो जाता है। जिसके कारण सम्बन्ध बनाने के दौरान पुरुष द्वारा निकाला गया वीर्य, महिला के गर्भाशय तक नहीं पहुंच पाता।
- महिला के अंडाशय से अण्डोत्सर्ग होना बंद हो जाना : महिला अंडाशय ओवुलेशन पीरियड के लक्षण पाए जाने तक ही, अण्डों का उत्सर्जन करती है। जिसके समाप्त होते ही अंडाशय से अंडे निकलने बंद हो जाते है।
इन दोनों ही परिस्थियों में महिला के अंडे का निषेचन होना संभव नहीं। इसलिए ओवुलेशन के लक्षण मिलने के तीन दिन बाद, महिला प्रेग्नेंट नहीं हो सकती। यदि महिला के ओवुलेशन को परखने में कोई भूल नहीं हुई है। तो ओवुलेशन के बाद अमूमन महिला गर्भवती नहीं होती।
उपसंहार :
प्रेग्नेंट होने की चाह रखने वाली महिलाओं को, ओवुलेशन पीरियड के लक्षण को जानना आवश्यक है। जिसको आमतौर पर ओवुलेशन के लक्षण भी कहा जाता है। यह प्रेगनेंसी के लिए सबसे बहुमूल्य समय होता है। जिसमे सम्बन्ध बनने पर महिला के गर्भ धारण करने की प्रबल संभावना पाई जाती है। जबकि अनचाहे गर्भ ठहरने से बचने के लिए, ओवुलेशन होने के लक्षण पर विशेष ध्यान रखना चाहिए अर्थात महिला – पुरुष को इस समय सम्बन्ध बनाने से परहेज करना चाहिए।
आमतौर पर महिलाओं को माहवारी आने पर ही ओवुलेशन होता है। लेकिन कुछ महिला को ओवुलेशन न होने पर भी माहवारी आती है, और कुछ को मासिक धर्म न आने पर भी ओवुलेशन होता है। हालांकि यह बहुत ही कम मामलो में देखने को मिलता है। जिसमे पीरियड की ब्लीडिंग बंद होने के एक हफ्ते बाद से लगातार दो हफ्तों तक नियमित सम्बन्ध बनाने पर ज्यादातर महिलाए प्राकृतिक रूप से गर्भ धारण कर लेती है। वही अनुभवी महिलाए ओवुलेशन में कमर दर्द होने की बात बतलाती है।
सन्दर्भ :
भाव प्रकाश – गर्भ प्रकरण
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