पुरुषो के गुदस्थ अथवा गुदमार्ग में होने वाली, अधिमांस ( मांसवृद्धि ) पुरुष बवासीर के लक्षण है। जो एक प्रकार से मलाशय की शिराओ का विकार कहलाता है। जिसमे गुदा के चारों ओर की रक्त शिराएं जो श्लेष्मकला के अंदर पायी जाती है। उनके बढ़ जाने को ही बवासीर कहते है।
यह बवासीर के मस्से बहुत कष्ट देते है। जिसके उपचार में पुरुष बवासीर के लक्षण और बचाव दोनों की आवश्यकता पड़ती है। जिसको पुरुष बवासीर का इलाज कहा जाता है। जिसमे पुरुष बवासीर के घरेलू उपाय बहुत उपकारी और प्रचलित है।
आयुर्वेदानुसार दस्त ( अतिसार ), ग्रहणी ( संग्रहणी ) और बवासीर ( अर्श ) इन तीनो के होने में जठराग्नि का हीन ( कम ) होना प्रधान कारण माना गया है। जिसके कारण पुरुष बवासीर के इलाज में अधिक सावधानी अपेक्षित है।
पुरुष बवासीर ( male hemorrhoids ) को स्थायी रूप से नष्ट करने में बवासीर की गारंटी की दवाई अत्यंत लाभकारी है। जो पुरुषो में होने वाली लगभग सभी प्रकार के बवासीर को मिटाती है। बवासीर गुदा का ऐसा रोग है। जिसमे अत्यधिक दर्द होता है और बहुत ही कठिनाई से ठीक होते है।
जिसके लिए शास्त्रो मे दुर्नाम शब्द का प्रयोग होता है। जिसके कारण बवासीर को महारोगों में गिना जाता है। जिसको पूर्णतः समाप्त करने के लिए बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय करना पड़ता है। तब जाकर कही बवासीर से छुटकारा मिल पाता है।
हेमोर्रोइड मीनिंग इन हिंदी ( hemorrhoid meaning in hindi )
बवासीर को ही आंग्ल ( अंग्रेजी ) भाषी हेमोर्रोइड या हेमोर्रोइड्स कहते है। जिसमे गुदीय शिराओ में खून के जमने से सूजन हो जाती है। जिसे बवासीर के मस्से ( hemorrhoidal warts ) कहते है। जो गुदा के आस – पास कई तरह से दिखाई पड़ते है।
किसी में यह गुदा के अंदर पाए जाते है, तो किसी में गुदा के बाहर दिखाई देते है। अनेक लोगो में यह गुदा के चारो ओर पडी लाल सिकुड़नों के रूप में देखे जाते है। सामान्य अवस्था में खाली रहने से अनुभव नहीं होते।
किन्तु जब यह प्रकुपित होकर खून से भर जाते है। तब फूलकर मूग, मटर या अंगूर के जैसे या इनसे बड़े भी हो जाते है। जिसमे होने वाला दर्द सहना भारी होता है। जिससे उठना – बैठना, चलना – फिरना सब दूबर हो जाता है। यह बादी बवासीर के लक्षण हो सकते है। जिसको जानने के लिए हेमरॉयड क्या है आदि प्रश्न पूछे जाते है।
बवासीर की शुरुआत कैसे होती है
देह की प्रकृति के अनुरूप अलग – अलग लोगो में बवासीर की शुरुआत भी अलग ढंग से होती है। जिसको बवासीर होने की पूर्व अवस्था या बवासीर के शुरुआती लक्षण भी कहा जाता है। जिसमे निम्न पुरुष बवासीर के लक्षण दिखाई दे सकते है –
- भोजन करने की इच्छा न होना
- बहुत कठिनाई से अन्न पचना
- अत्यधिक प्यास लगना
- खट्टी डकारे आना
- पेट में जलन और दर्द होना
- पेट फूलना व पेट में गैस बनना
- पैरो में थकावट होना
- पेट में गुड़गुड़ाहट होना
- अधिक डकारे आना
- शरीर का नित्य कमजोर होते जाना
- आँखों में सूजन होना
- आंतो में कूजन होना
- गुदा में कैची से कतरने जैसी पीड़ा होना
- इन्द्रियों का दुर्बल पड़ते जाना
- अनिद्रा और भ्रम होना
- नींद न आना आदि।
बवासीर क्यों होता है ( bawasir kyu hota hai )
मलाशय की शिराओ में कपाट नहीं होने और गुदनलिका की दीवारों में लम्बाई की और फ़ैली रहने से विबंध से पीड़ित रोगी को दस्त के समय जोर से काखता पड़ता है। जिससे उसी समय इन शिराओ में आया खून कपाट नहीं होने से वापस नहीं जा पाता।
इस तरह प्रतिदिन ऐसा करने से इन शिराओ में खून इकठ्ठा होने लगता है। इसी प्रकार यकृत विकार ( सिरोसिस ) हो जाने पर भी इस स्थान के रक्तप्रवाह में रुकावट होती है। जिससे गुदा की शिराओ में खून इकठ्ठा होने लगता है। जिससे इन मस्सों में दर्द बर्दाश्त नहीं होता।
इसके साथ अधिक मद्यपान ( शराबी ) और ज्यादा देर तक बैठकर, काम करने वालो में भी गुदा की शिराओ में जोर पड़ने से बवासीर होने में सहायता मिलती है। जिसके कारण गुदा की शिराओ के अंतिम भाग खून से भरकर फूल जाते है और उनमें एक सौत्रिक धातु का आवरण बनते रहने से खून भरकर फूला भाग अधिक दुःखदायी हो जाता है।
जो पुरुष बवासीर के लक्षण को पैदा कर सकता है। जिनको पुरुषो में बवासीर क्यो होता है के नाम से जाना जाता है। जब इनसे रक्तस्राव होने लगता है, तब यह खूनी बवासीर के लक्षण कहलाने लगते है।
पुरुष बवासीर के कारण ( causes of piles in male )
पुरुषों में बवासीर होने के शास्त्रों में उपरोक्त कारण बताये गए है। जबकि आधुनिक चिकित्सा में बवासीर ( haemorrhoids ) के कुछ और कारण माने गए है –
- पर्याप्त फाइबर से युक्त भोजन को आहार के रूप में शामिल न करना
- मल – मूत्रादि लगने पर इनको रोके रहना
- कसैले, कड़ुए, तीखे, गरम, लवण, मीठे, खट्टे, चिकने और देर से पचने वाले पदार्थो का अधिक सेवन करना
- मात्रा से कम या अधिक भोजन करना
- अत्यधिक सान्द्र शराब पीना
- मैथुन का निरंतर सेवन करते रहना
- सामर्थ्य से कम या अधिक परिश्रम करना
- रात में जागना और दिन में सोना
- अधिक यात्रा करना
- अत्यधिक धूप ( आतप ) में रहना आदि।
पुरुष बवासीर के लक्षण ( purush bawasir ke lakshan in hindi )
बवासीर जीवनशैली से जुडी हुई बीमारी कही जाती है। जो महिला और पुरुष दोनों में पायी जा सकती है। जब यह पुरुषो में होती है तो इससे मिलने वाले लक्षण को पुरुष बवासीर के लक्षण कहते है। जो अन्य बवासीर के लक्षण इन हिंदी से मिलती जुलती है। आमतौर पर पुरुष में बवासीर के लक्षण ( symptoms of hemorrhoids in males ) इस प्रकार देखे जाते है –
- गुदा द्वार पर अलग – अलग रंग और आकार के मस्से होना
- गुदा में खिचाव होना
- गुदा द्वार में दर्द होना
- मल अत्यधिक सूखा और कडा होना
- बवासीर के मस्सों में सुई चुभने की पीड़ा होना
- मल और मूत्र का रुक – रुक होना
- गुदा में सूजन होना
- शरीर में कमजोरी आना
- पेट में अत्यधिक गैस बनना
- आँखों के सामने अन्धेरा छा जाना
- गुदा द्वार पर होने वाले मस्सो में जलन होना
- गुदा पर होने वाले मस्सो से खून निकलना
- लैट्रिन में मवाज और खून आना
- बार – बार जी मिचलाना
- शरीर में भारीपन का अनुभव होना आदि।
पुरुष बवासीर के प्रकार
अन्य बवासिरो की तरह पुरुष बवासीर भी कई प्रकार की हो सकती है –
बाहरी बवासीर : प्रायः यह गुदा के चारो ओर पडी लाल सिकुड़नों के रूप में देखा जाता है। सामान्य अवस्था में खून न भरने से खाली रहने पर प्रतीत नहीं होता। लेकिन जब यह प्रकुपित होता है, तब इनके मस्सों में खून भरने के कारण फूल आते है। यह बवासीर मस्से होने का कारण भी है। इन अंकुरों के मध्य में एक शिरा होता है। जिसके चारो ओर सौत्रिक तंतु पाए जाते है। जिससे इनके अंकुरों में निरंतर वृद्धि होती रहने से बवासीर कठोर होता जाता है।
आंतरिक बवासीर : यह बवासीर प्रायः गुदनलिका के अंदर पायी जाती है। जो श्लेष्मकला से ढकी रहती है। इन बवासिरो के मध्य में भी एक शिरा पायी जाती है। जिसको सौत्रिक तंतु चारो ओर से घेरे रहते है। धीरे – धीरे इन तंतुओ के बढ़ते रहने से इनमे कठिनता आ जाती है। इसमें प्रकोप के पूर्व खुजली और भारीपन का अनुभव होता है। लेकिन इनके प्रकुपित होते ही मलत्याग या मल को बाहर निकालने के लिए काखने पर बवासीर के मस्से गुदा से बाहर निकल आते है। जिससे रोगी को चलने, फिरने, उठने और बैठने में दर्द होता है।
खूनी बवासीर : जिन बवासीर से खून निकलता या रिसता है। उसे खूनी बवासीर के नाम से जाना जाता है। जो एक प्रकार से अंदरूनी बवासीर ही होती है। लेकिन इनमे रक्तस्राव होने से इनको अलग समझा जाता है।
पुरुष बवासीर का इलाज ( purush bavaseer ka ilaj )
बवासीर की बीमारी का इलाज बवासीर के लक्षण शुरू होने वाले के आधार पर दोष की पहचान कर करने से होती है। जिसके कारण अलग – अलग रोगी की अलग तरह की चिकित्सा में हो जाता है। इसलिए पूर्णता से बवासीर का कारण जाने बिना पुरुष बवासीर के लक्षण को दूर नहीं किया जा सकता।
पुरुषो में अमूमन शुष्क, मवाज ( स्राव ) और खून सभी तरह की बवासीर पायी जाती है। जिससे अलग – अलग पुरुषो में पुरुष बवासीर के लक्षण में भिन्नता देखी जाती है। जिससे बवासीर का उपचार ( bavasir ka upchar ) होने में कठिनाई होती है। जिसके लिए पुरुष बवासीर के लक्षण का गंभीरता पूर्वक आकलन और संकलन करना पड़ता है।
तदनुसार रोगी के देह और रोग लक्षण से मेल खाती हुई औषधि का चुनाव होता है। जिसकी पुष्टि रोगी के रोग निवारण से होता है। अस्तु चिकित्सा जगत में हर व्यक्ति की अभिव्यक्ति अलग ढंग की मानी गयी है। जिसका सार्वभौमिक प्रभेद आयुर्वेदादी शास्त्रों में निबद्ध है।
इसलिए बिना पुरुष बवासीर के लक्षण को ठीक – ठीक जांचे परखे, पुरुष बवासीर का इलाज नहीं हो सकता। जिसको समझने के लिए पुरुषो में बवासीर कैसे होता है ( purusho me bawasir kaise hota hai ) आदि पर विचार आवश्यक है।
जिसका मूल कारण बवासीर रोग की साध्यता और असाध्य की परख करना है। क्योकि दोषगत वैलक्षणो के आगमन से रोगी के रोग प्रबल होकर प्राण ले डालता है।
परन्तु शस्त्र ( सर्जरी ) के आ जाने से लगभग सभी प्रकार की बवासीर ( bavaseer ) का उपचार हो जाता है। केवल सहज बवासीर को छोड़कर। अन्य पुरुष बवासीर के लक्षण को शांत करने के उपाय निम्न है –
पुरुष बवासीर के घरेलू उपाय ( purush bawasir gharelu upay )
बवासीर के सभी घरेलू उपाय निसंदेह बवासीर आयुर्वेदिक इलाज ( bawaseer ayurvedic ilaj ) है। जिनके द्वारा पुरुष बवासीर के लक्षण को मिटाने में सहायता मिलती है। यह निस्खे इतने कारगार है कि लोग बवासीर के घरेलू उपाय बताएं ( bawaseer ka gharelu upay batao ) की बात करते है। पुरुषों में बवासीर के लक्षण ( symptoms of piles in male ) उपाय निम्न है –
- खूनी बवासीर में कत्थे का उपयोग बहुत ही लाभकारी है। जिसके लिए नीबू को बीच से काटकर 5 ग्राम कत्था को पीसकर दोनों टुकड़ो पर डालकर रातभर ओस में खुला छोड़ दीजिए। सुबह शौच जाने के बाद दोनों टुकड़ो को चूस ले। ऐसा कुछ दिन लगातार करने से बवासीर में आराम मिलने लगता है।
- बवासीर में वैसलीन के फायदे है। यह रूखे और कड़े बवासीर के मस्सो को सौम्य और नरम बनाता है। जिससे इनसे होने वाले दर्द में राहत मिलती है।
- नींबू और दूध बवासीर में बहुत उपयोगी है। जिसके लिए नींबू के रस में दूध मिलाकर पीने से लाभ मिलता है। यह बढे हुए मल को खोलने के साथ मल को ढीला करता है। जिससे मलत्याग में आसानी होती है।
- बड़ी इलायची बवासीर में फायदेमंद है। इसके लिए 50 ग्राम बड़ी इलायची को तवे पर भून ले। फिर इसको पीसकर चूर्ण बना ले। जिसको नित्य सुबह गर्म पानी से खाने पर लाभ होता है।
- बवासीर के लिए पोटैसियम परमैग्नेट ( potassium permanganate for piles ) भी उपयोगी है। जिसे लाल दवाई के नाम से भी जाना जाता है। बवासीर के मस्सों को इससे साफ़ करने से संक्रमण आदि का ख़तरा नहीं होता। जिससे बवासीर के मस्सो को सुखाने में सहायक है।
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बवासीर की एलोपैथिक दवा ( piles allopathic medicine in hindi )
बिना सर्जरी बवासीर का इलाज करने के लिए लोग बवासीर की अंग्रेजी दवा आदि का प्रयोग करते है। जिसमे अनेको प्रकार की दवाई शामिल है। आधुनिक चिकित्सा के अनुसार बवासीर के उपचार में, तीन प्रकार की दवाइयों का प्रयोग होता है –
- स्टेरॉयड : यह बवासीर के मस्सों में होने वाले दर्द ओर जलन आदि को दूर करने में मदद करता है। जिससे बवासीर के मस्सों को सुखाने में सहायता मिलती है। इन दवाओं का इस्तेमाल बहुत सीमित मात्रा में ही करना चाहिए, क्योकि अधिक मात्रा में इसका सेवन करने से इसके दुष्परिणाम भी हो सकते है।
- दर्द निवारक : यह बवासीर में होने वाले दर्द से राहत पाने के लिए उपयोग में लाई जाती है। जैसे – एस्पिरिन, इबुप्रोफेन आदि।
- स्टूल सॉफ्टनर : बवासीर में होने वाला मल बहुत कडा होता है। जिससे बवासीर के मस्सों पर रगड़ लगती है। इस रगड़ को बचाने के लिए मल को ढीला करना पड़ता है। जिसके लिए लैक्सेटिव दवाइयों का प्रयोग किया जाता है। जो बवासीर के मस्सो को सुखाने में सहायक है। जिसके कारण इन दवाओं को बवासीर सुखाने की दवा कहते है।
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बवासीर की होम्योपैथिक औषधि ( homeopathic medicine for piles in hindi )
पुरुष बवासीर के लक्षण को मिटाने में बवासीर की होम्योपैथिक दवा बहुत ही उपयोगी है। जिसके लिए लोग बवासीर की होम्योपैथिक दवा बताओ पूछते है। बवासीर के मस्से झड़ने के उपाय में बवासीर की दवा होम्योपैथिक बहुत ही लाभकारी है। जिसकी लाभकारक दवाइया निम्न है –
इस्क्युलस हिपोकैस्टेनम : यह बवासीर और बवासीर के मस्सो की बहुत बढ़िया दवा है। यह बवासीर, मलद्वार में सूखापन, खुजली, जलन, गर्मी और भार मालूम होने आदि लक्षणों में उपयोगी है। इसमें ऐसा मालूम होता है जैसे मलद्वार में किले ठोकी हुई है।
लैकेसिस : यह भीतरी और बाहरी बवासीर के मस्सों की बढ़िया दवा है। इसमें बहुत अधिक टपकने का दर्द रहता है। इसमें खांसने के समय ऐसा लगता है, जैसे बवासीर की जगह पर काँटा गड रहा है। और कोई चीज मलद्वार पर अड़ी हुई है। जिसके कारण रोगी लगातार काखना पड़ता है। मलत्याग के समय इतनी तकलीफ होती है की रोगी उठकर खड़ा हो जाता है। इसमें मलद्वार बंद – सा होता जाता है। इसके मल में बहुत अधिक बदबू होती है।
नक्स वोमिका : इसमें शौच का वेग और चेष्टा लगातार बनी रहती है। लेकिन खुलकर नहीं होतीं। यह कुचला के नाम से भी जानी जाती है। कुचला 200 बवासीर के लिए खुराक सुबह और शाम ली जा सकती है।
लाइकोपोडियम : इसमें मलद्वार में सिकुड़ने का भाव अधिक रहता है। जिससे थोड़ा सा मल निकलकर फिर नहीं निकलता या बिलकुल ही नहीं निकलता। इसमें तकलीफ बहुत ज्यादा रहती है। यह बाहरी और भीतरी दोनों प्रकार के बवासीर की अच्छी दवा है।
कैल्केरिया fluorica 12x : शिराओ पर इसकी प्रधान क्रिया होती है। जिसके कारण बवासीर के लिए कैल्केरिया fluorica 12x बढ़िया काम करती है।
बवासीर के लक्षण और बचाव को ध्यान में रखकर, इन दवाओं का उपयोग बहुत ही लाभकारक है। इसलिए इनको बवासीर के मस्से सुखाने का उपाय भी कहते है।
बवासीर के लिए योगासन ( yoga for piles in hindi )
योग न केवल हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को स्थिर रखता है। बल्कि देहगत दोषो को भी दूर करता है। जिसके कारण यह पुरुष बवासीर के लक्षण को दूर करने में भी सहायक है। परन्तु बवासीर होने पर चलने – फिरने, बैठने – उठने में परेशानी होती है। जिसके कारण अक्सर लोग पूछ लेते है कि बवासीर के लिए कौन सा योग करे?
पुरुष बवासीर के लक्षण पाए जाने पर निम्न आसनो से लाभ होता देखा गया है –
- सर्वांगासन
- पादहस्तासन
- बलासन
- वज्रासन
- पवनमुक्तासन
यह सभी योगासन पेट की विभिन्न तकलीफो को दूर करते है। जिसमे प्रमुख रूप से गैस, एसिडिटी, कब्ज आदि है। जिनके होने पर अक्सर बवासीर आदि रोगो को बल मिलता है। एक प्रकार से ये सभी रोग बवासीर का कारण है। जिनके दूर होते ही बवासीर धीरे – धीरे समाप्त होने लगती है।
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बवासीर में न खाये जाने वाले भोजन ( foods to avoid in piles )
पुरुष बवासीर के लक्षण को दूर करने में बवासीर के दौरान परहेजी भोजन ( foods to avoid during piles ) औषधियों से भी अधिक उपकारक है। जिससे बवासीर में प्रतिबंधित भोजन ( piles food to avoid ) की अत्यंत महिमा आयुर्वेद आदि में बताई है। जिसका पालन करने पर हमें पुरुष बवासीर के लक्षण से छुटकारा पाने में सहायता मिलती है। जिसमे निम्न को न खाने से शीघ्र ही लाभ मिलता है।
- पशु – पक्षियों के मांस
- मछली
- तिल की खली व इनसे बने पदार्थ
- दही
- पिठ्ठी ( पीठी ) से घृत या तेल में बने हुए खाद्य पदार्थ
- उड़द की दाल
- मटर या मटर की दाल
- बेल का फल
- तुम्बी
- पोइ का शाक
- पका हुआ आम
- सभी प्रकार के विषाक्त जलीय कन्द
- अत्यधिक गैस करने वाले और देर से पचने वाले पदार्थ जैसे तीखे, चटपटे और विष्टम्भक वस्तुए
- अधिक पानी पीना
- रस वीर्य और विपाक में विरुद्ध द्रव्य जैसे गही के साथ पराठा आदि।
- वातादि दोषो को प्रकुपित करने वाले आहार – विहार आदि।
बवासीर में परहेज क्या करना चाहिए ( precautions in piles in hindi )
आयुर्वेद में न करने योग्य कर्मो को परहेज कहा गया है। अर्थात निरुद्ध कर्मो का सर्वथा त्याग बवासीर से बचने का उपाय है। जो पूर्णतया प्राकृतिक और स्थायी है। जो पुरुष बवासीर के लक्षण को स्थायी तौर पर मिटाने में सक्षम है।
- धूप में घूमना
- आग के पास बैठना
- वमन ( उल्टी ) और वस्ति कर्म ( गुदा में औषधि निर्मित बत्ती डालना )
- पूर्व दिशा की वायु का सेवन
- अधारणीय वेगो का धारण जैसे – भूख, प्यास, मल – मूत्रादि
- स्त्री – प्रसंग
- घोड़ा – ऊंट आदि की पीठ पर बैठना
- उत्कटासन
- कठोर और विषमासन ( टेढ़ा – मेढ़ा ) की स्थिति में बैठना आदि।
बवासीर और पाइल्स में अंतर ( difference between hemorrhoids and piles in hindi )
पुरुष बवासीर के लक्षण के अनुसार बवासीर और पाइल्स में केवल नाम का ही भेद है। जोकि गुदा की शिराओ में खून के जमने से सूजन होने के कारण होता है। जिसको आमतौर पर बवासीर के मस्सो के रूप में जाना जाता है। जो गुदा के अंदर होने से अभ्यंतर और बाहर होने से बाहरी बवासीर कलाता है।
उपसंहार :
पुरुष बवासीर के लक्षण और बचाव को जानकार, सुगमतापूर्वक बवासीर से छुटकारा और बचा जा सकता है। जिसमे पुरुष बवासीर के घरेलू उपाय उत्तम परिणाम देते है। जबकि पुरुष बवासीर का इलाज बहुत ही सावधानी से किया जाना चाहिए। जिसकी मुख्य वजह बवासीर रोग की पुनरावृत्ति है।
देहगत दोष में असंतुलन के कारण बवासीर जैसे भीषण रोग होते है। जिसमे हमारा भोजन, क्रियाकपलाप और परिश्रम मुख्य रूप से है। जिसमे संगति साधने पर शरीरगत दोष में संतुलन आ जाता है। जिसके कारण हम आजीवन रोग और दोष से बचे रहकर, सुखपूर्वक अपने एकमात्र लक्ष्य ( मुक्ति ) की प्राप्ति करते है।
ध्यान रहे : इन सभी दवाओं का मनमाना उपयोग न करे। बल्कि इनके उपयोग से पूर्व चिकित्सा विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य ले। यदि फिर भी इनसे किसी तरह की समस्या जैसे गुदा के आसपास रूखी त्वचा या दाने निकले तो अतिशीघ्र सलाह ले। जिससे समय रहते गंभीर समस्या से बचा जा सके।
सन्दर्भ :
चरक संहिता चिकित्सा अध्याय 14
भैषजीरत्नावली अर्श चिकित्सा प्रकरण
सुश्रुत संहिता निदान अध्याय 02
कंपरेटिव मटेरिया मेडिका द्वारा नारायण चंद्र घोस
FAQ
बवासीर में लैट्रिन बहुत कड़ी हो तो क्या करें?
बवासीर की समस्या होने पर लैट्रिन कड़ी हो जाना देखा जाता है। जिसको दूर करने के लिए आयुर्वेद में विरेचक औषधिया और एलोपैथी में लैक्सेटिव दवाइयों का प्रयोग किया जाता है। जो मल को पतला और ढीलाकर बाहर निकालने में मदद करता है।
लैट्रिन की जगह दर्द हो तो क्या करना चाहिए?
लैट्रिन की जगह अर्थात गुदानली या गुदा द्वार में दर्द होने पर, योग्य और अनुभवी चिकित्सा विशेषज्ञ से जांच करानी चाहिए। जिससे समय पर बवासीर आदि का इलाज किया जा सकें।
बवासीर में लैट्रिन नहीं लगने पर क्या करें?
भीषण कब्ज के कारण बवासीर होने पर बहुतो को अनेक दिनों तक मल का वेग ही नहीं आता। जिससे बवासीर के मस्सो में जलन और मरोड़ होने की संभावना अधिक हो जाती है। जिसमे आयुर्वेदानुसार विरेचन में प्रयक्त दवाइया ली जाती है। जैसे – एरंड का तेल दूध में मिलाकर, ईसबगोल की भूसी आदि लिया जाता है।
बवासीर के कीड़े कैसे होते हैं?
बवासीर एक ऐसी समस्या है। जिसमे पीड़ित व्यक्ति के गुदा के आसपास और मलाशय की नशे खूनभर कर सूज जाती है। जिसके कारण विभिन्न प्रकृति के कष्टदायक दर्द और रक्तस्राव हो सकते है। जिसमे कुछ लोगो को ऐसा एहसास होता है जैसे कि गुदा की सूजी हुई नशों में कीड़े चल रहे हो। यह केवल बवासीर के दर्द की प्रकृति है। जिसके एहसास होने से ऐसा होता है। जबकि वास्तव में बवासीर के कीड़े आदि प्रायः नहीं होते।
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