कब्ज के लक्षण, कारण, प्रकार, इलाज, परहेज और नुकसान : constipation in hindi

आमतौर पर मल त्यागने में कठिनाई, गुदा में दर्द आदि, कब्ज के लक्षण माने जाते है। जिसमे मल सूखकर सख्त और कठोर हो जाता है। जिससे मलत्याग के समय बिना जोर लगाए, मल बाहर नहीं निकलता। जिसके लिए सुबह उठते ही पेट साफ करने के उपाय करने पड़ते है। परन्तु कब्ज का इलाज करते समय कब्ज क्यों होता है? अर्थात कब्ज होने के कारण का पता लगाया जाता है। फिर कब्ज में परहेज रखते हुए, कब्ज का उपचार किया जाता है।  

कब्ज के लक्षण

हालाकिं अलग – अलग लोगो में कब्ज के लक्षण भी, अलग – अलग देखे जा सकते है। जिसमे किसी को मल का वेग न आना, तो किसी को मल का सूखा और कडा होना देखा जाता है। जो कब्ज के प्रकार और शरीर दोष के कारण होता है। बहुत दिनों तक कब्ज के बने रहने से, बवासीर के लक्षण आदि दिखलाई पड़ते है। जिनको कब्ज के नुकसान कहा जाता है।   

आमतौर पर एक हफ्ते में तीन बार से कम मल त्याग होना। कब्ज का लक्षण माना जाता है। परन्तु कब्ज से पीड़ित व्यक्ति में प्रतिदिन नियमित मल त्याग होता है। फिर भी पेट साफ नहीं होता। इसलिए पेट साफ न होने के लक्षण को भी कब्ज में शामिल कर लिया जाता है। जिसमे कितनी भी बार मल त्याग करने पर, हमेशा मल त्याग की भावना बनी ही रहती है। जिसके लिए कब्ज का परमानेंट इलाज करना आवश्यक हो जाता है।

कब्ज क्या है ( constipation kya hai )

मानव देह में अन्न आदि को पचाने के लिए एक अग्नि होती है। जिसे जठराग्नि अथवा उदराग्नि के नाम से जाना जाता है। जो उचित खान – पान और दिनचर्या का पालन करने पर संतुलित रहती है। अर्थात जठराग्नि के सम रहने पर, यह शरीर को स्वस्थ और पुष्ट बनाये रखती है। वही सम न रहने की दशा में, दोषो की प्रधानता से विषम, तीक्ष्ण और मंद अग्नि को पैदा करती है। जिससे मल के वेग, रंग और कठोरता में बदलाव आने लगते है। जिनकी गिनती कब्ज के लक्षणों में की जाती है।  

अक्सर मल के सूखे और कड़े होने को कब्ज के लक्षण में सुमार किया जाता है। जो तीनो विकृत अग्नियों में देखने को मिलता है। जिसमे मुख्य योगदान हमारे द्वारा ग्रहण किये जाने वाले आहार, पालन की जाने वाली दिनचर्या और ऋतुचर्या आदि को माना गया है। अर्थात जठराग्नि की विसंगति के कारण, भोजन का पाचन प्रभावित होता है। जिसमे मुख्य योगदान बड़ी आंत और गौड़ योगदान हमारी गुदा का होता है। जिससे कब्ज बनने पर पेट में मरोड़ की समस्या होती है। 

जब हम किसी ऐसी चीज का सेवन कर बैठते है। जिसके पाचन में अधिक जल की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन किसी कारण वश भोजन पचने के लिए, आपेक्षित जलापूर्ति नहीं कर पाते। तब छोटी आंत द्वारा बड़ी आंत में प्रवृत्त हुए मल से, जल का अवशोषण हो जाता है। जो कि बड़ी आंत का स्वाभाविक कार्य है। जो किसी विशेष दवा के सेवन, आयु के बढ़ने और बड़ी आंत में रोग होने पर देखा जाता है। जिसमे मल में उचित जल की मात्रा न रहने और बड़ी आंत के द्वारा, जल को सोख लेने से मल सूखा और कडा हो जाता है। जिससे न तो मल का वेग आता है और न पेट साफ होता है। 

कब्ज क्यों होता है ( constipation causes in hindi )

कब्ज उदर ( पेट ) में होने वाला रोग है। आयुर्वेद में प्रायः सभी रोग मंदाग्नि के होते है। फिर कब्ज के लक्षण तो वृहदांत्र ( बड़ी आंत ) और गुदा में पाए जाते है। जिसमे बड़ी आंत तो उदर का अंग होने से, पेट के भीतर ही पायी जाती है। इसलिए कब्ज होने का मुख्य कारण मंदाग्नि ही है। जिसके मुख्य दो मूल है। पहला बहुत बड़ी मात्रा में सब प्रकार के दोषों का संचय होना। दूसरा स्रोतों के मुखों का बंद होना। इनके कारण पेट में वायु अनेक रूपों में स्थित होने लगती है। जिससे कब्ज नामक बीमारी पैदा होती है। 

कब्ज क्यों होता है

जबकि कब्ज होने के आधुनिक कारण भी माने गए है। जैसे –

  1. तनाव, भय और दबाव जैसी गतिविधियां बड़ी आंत में, पायी जाने वाली मांसपेशियों संकुचन की क्रिया प्रभावित करती है।      
  2. भोजन में रेशे ( फाइबर ) की कमी और भोजन करते समय पर्याप्त पानी न पीना। 
  3. अधिक पुराने और खराब अन्न का सेवन करना 
  4. कृत्रिम डेयरी उत्पादों का अधिक इस्तेमाल करना 
  5. अधिक समय तक यात्रा करना
  6. उचित परिश्रम न करना
  7. मल – मूत्रादि के वेग को रोकना
  8. गर्भावस्था का होना
  9. असमय में भोजन करना
  10. नियमित चिकने, रूखे, चटपटे और जायकेदार खाद्य पदार्थों का सेवन करना 
  11. मात्रा से अधिक भोजन करना
  12. अधिक मात्रा में जुलाब लेना
  13. आंतो ने रुकावट होना। जैसे – इरीटेबल बोवेल सिंड्रोम, आदि।  

कब्ज के लक्षण ( kabj ke lakshan )

आमतौर पर कब्ज में निम्न लक्षण दिखाई पड़ते है –

  • शरीर में जलन होना
  • नाक बहना और छीकें आना
  • बार – बार प्यास लगना 
  • भूख न लगना
  • खांसी आना 
  • पैरों में ढीलापन आना
  • सिर में दर्द होना
  • नाभि प्रदेश में दर्द होना
  • ह्रदय और इसके आस – पास दर्द होना
  • गुदा में दर्द होना
  • मल का वेग न आना
  • उल्टी होना
  • पेट में अधिक वायु भरी रहना, आदि। 

कब्ज के प्रकार ( constipation types )

ज्यादातर कब्ज के लक्षण में वात दोष की प्रधानता देखी जाती है। जिसके कारण यह वायु के संग्रहण और संकुचन को पीड़ा करती है। कब्ज अपने आप में बहुत ही परेशानी करने वाला रोग है। परन्तु जब यह दोषो में अनुबंध को अथापित कर लेता है, तब अत्यंत विघातक सिद्ध होता है। इसमे वात दोष प्रधानता से अवस्थित रहता है। जबकि पित्त एवं कफ दोष, इसमें आकर आलिप्त होते है। जिसे कब्ज द्विदोषज और त्रिदोषज गुणों से युक्त हो जाता है। जिससे यह बहुत ही जटिलता को प्राप्त होता है। जिसमे निम्न तीन प्रकार के दोषानुबन्ध देखने को मिलते है –

  1. वात दोष ( आवरक ) के द्वारा कफ के घिर ( आवृत्त ) जाने से
  2. वात दोष के द्वारा पित्त के घिर जाने से
  3. वात दोष के द्वारा पित्त और कफ के घिर जाने से

हालाकिं वास्तव में आवृत्त दोष, आवरक दोष से कमजोर होता है। फिर भी कब्ज की चिकित्सा में, दोनों को दूर करने के उपाय किये जाते है। लेकिन आधुनिक दृष्टि से कब्ज को दो प्रकार से बांटा गया है – 

गंभीर कब्ज ( Serious / Acute constipation )

यह नवीन कब्ज रोग है। जिसमे मल बिलकुल ही नहीं निकलता, लेकिन दर्द बहुत होता है। जिसके कारण यह बहुत ही खतरनाक कब्ज के लक्षण पैदा करता है। जिसमे इतनी भीषण गैस बनती है। जो न गुदा से निकलते है और न मुँह से। जिसके कारण ऐसी स्थिति में तुरंत चिकित्सा समाधान लेना चाहिए। 

जीर्ण अथवा पुरानी कब्ज ( chronic constipation )

यह बहुत दिनों से बनी रहने वाली कब्ज है। जिसमे बहुत प्रयास करने पर, कठिनाई से बहुत थोड़ा मल निकलता है। इसके बाद भी ऐसा एहसास होता है। मानो और मल त्याग होगा। लेकिन मलत्याग के लिए घंटो बैठने पर भी परिणाम में बहुत ही कम मल निकलता है। लेकिन इसमें मल त्याग से संतुष्टि कभी नहीं मिलती। 

कब्ज का इलाज ( kabj ka ilaj )

ज्यादातर लोग पेट में गैस बनने को ही कब्ज समझने लगते है। जो कि एक प्रकार का कब्ज का लक्षण है। परन्तु कब्ज पेट में होने वाला बहुत ही जीर्ण रोग है। जिस पर ध्यान न देने से असाध्य रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। जिसका मुख्य कारण आयुर्वेद ने पेट को सभी रोगों का मूल कहा है। जिसमे सबसे विकट समस्या मंदाग्नि को माना जाता है। इसलिए कब्ज से निदान पाने के लिए, कब्ज क्या है क्यों होता है को जानना ही नहीं समझना भी आवश्यक है। 

आयुर्वेदानुसार कब्ज के लक्षण को मिटाने के लिए, दो प्रकार की चिकित्सा का वर्णन है –

  1. उदावर्त : यह भी एक प्रकार का भीषण उपद्रव कारी रोग है। जिसमे मूंग, ज्वार, रुक्ष और मल को बांधने वाले खाद्य पदार्थों को खाने से मलाशय में कुपित और बलवान वात दोष गुडवाही स्रोतों को रोककर। नीचे की ओर मल को सुखाता हुआ मल – मूत्र एवं अपानवायु के निकलने में रुकावट पैदा करता है। जिसके कारण पेट, पीठ, ह्रदय तथा छाती के भीतर भयानक पीड़ा होती है। जो गंभीर कब्ज के लक्षण में दिखलाई पड़ते है। जैसे – पेट में अफरा, ऐंठन आदि। 
  2. वात नाशक उपचार : कब्ज के लक्षण मुख्यतः वायु के बढ़ने से पैदा होते है। जिसके कारण कब्ज के उपचार में वात नाशक औषधियों और उपायों की आवश्यकता पड़ती है। जिससे प्रतिकूलित अपानवायु को अनुकूलित किया जा सके। जिसका इस्तेमाल कब्ज का रामबाण इलाज में किया गया है। 

कब्ज का उपचार करने के लिए, कब्ज के लक्षण को मिटाने वाली वात नाशक औषधियों का प्रयोग किया जाता है। परन्तु इससे पहले स्वेदन और बस्ती कर्म ( निरुह और अनुवासन ) की आवश्यकता पड़ती है।  

कब्ज की आयुर्वेदिक दवा ( ayurvedic constipation remedies in hindi )

कब्ज के लक्षण को दूर करने में आयुर्वेदिक दवा बहुत उपकारी है। जिसमे स्वेदन और स्नेहन, विरेचन और बस्ती कर्म के लिए उपयुक्त और आवश्यक औषधियों की आवश्यकता पड़ती है। 

स्वेदन और स्नेहन : कब्ज के लक्षण को मिटाने के लिए स्वेदन के रूप में, स्नेहक द्रव्य सामाग्रियों का उपयोग किया जाता है। जिसमे तैल के रूप में एरण्ड तेल और घी का प्रयोग किया जाता है।

बस्ति कर्म : यह मल के निरूहण और अनुवासन के लिए प्रयोग की जाती है। जिसमे गौमूत्र, तीक्ष्णौषध तेल और नमक का उपयोग किया जाता है। जो बरती के रूप में गुदा के भीतर डाला जाता है। जिससे मलाशय में एकत्रित और सूखा मल ढीला होकर बाहर निकलता है। जिससे पाचनांगों में घूर्णन करने वाली अधोवायु बाहर निकलती है। जिससे पेट का तनाव और दर्द दोनों घटते है। 

जबकि वायु को बाहर निकालने के लिए, रेचक द्रव्य का प्रयोग किया जाता है। जो इस प्रकार है – 

अरण्डी का तेल कब्ज के लिए ( castor oil for constipation )

अरण्डी का तेल कब्ज के लिए

कब्ज के लक्षण को मिटाने में एरंड का तेल बहुत ही गुणकारी है। लेकिन यह प्रयोग बलवान रोगियों पर, अधिक प्रभावी रूप से कारगार है। यह प्रयोग वात और वातानुबन्धित कब्ज को मिटाने में भी उपकारी है। जिसके कारण सभी प्रकार के कब्ज में एरंड तेल का उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग करने से आवरणकारक, उन – उन दोषो का नाश करने वाले औषधद्रव्यों से युक्त एरंड तेल का प्रयोग हितकारी है। अर्थात वात दोष के साथ पित्त और कफ दोष को दूर करने वाली औषधियों के साथ, एरण्ड तेल का प्रयोग लाभदायक है।

इसलिए यह वात दोष द्वारा कफ के घिर जाने पर, और वात दोष के कारण पित्त के घिर जाने पर भी उपयोगी है। जिसका इस्तेमाल रेचक औषधि के रूप में भी किया जाता है। जिसके लिए इसकी कुछ बूंदो को दूध में मिलाकर लिया जा सकता है। इसके साथ इसका इस्तेमाल गौमूत्रादि के साथ करना भी प्रशस्त है। 

कब्ज में इसबगोल कैसे ले ( how to use isabgol for constipation )

कब्ज में इसबगोल कैसे ले

पेट में गैस की समस्या हो या कब्ज के लक्षण, सभी को दूर करने में इसबगोल का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जहाँ यह कड़े और सूखे मल को ढीला करके निकालती है। वही गीले और पतले मल को कुछ ठोस बनाकर, सामान्य रूप से निकालती है। यह पेट की सभी समस्याओ की रामबाण दवा है। 

कब्ज के लक्षण को मिटाने के लिए, इसबगोल को गुनगुने दूध और पानी के साथ लिया जाता है। इसके साथ इसको किसी भी फल के जूस के साथ ले सकते है। जबकि बच्चे दूध अथवा पानी में चीनी या मिश्री मिलकार ले सकते है। जिसमे वयस्कों के लिए इसबगोल की 10 ग्राम मात्रा का प्रयोग किया जा सकता है। वही बच्चों और किशोरों के लिए अधिकतम 5 ग्राम की मात्रा पर्याप्त है।  

कब्ज में परहेज ( precaution for constipation in hindi )

कब्ज के उपचार में निम्नलिखित परहेज लाभदायक है –

  • मल – मूत्रादि के वेग को रोंके नहीं
  • रात्रि में देर रात तक न जगे
  • अधिक समय तक बैठे या खड़े न रहे
  • नियमित व्यायाम और योग करे
  • खाने में सूखे, गरिष्ट और अधिक पानी सोखने वाले आहार लेने से बचे 
  • शुद्ध जल को पर्याप्त मात्रा में पिए
  • भोजन के साथ पानी अवश्य पिए
  • तनाव, दबाव आदि से बचे
  • मौसमी फल और सब्जियों का सेवन करे
  • अन्न के रूप में मिलेट का प्रयोग करे
  • कब्ज में दलिया बहुत लाभकारी है। जो मिलेट आदि के द्वारा भी बनाई जा सकती है।

कब्ज के नुकसान ( constipation side effects in hindi )

कब्ज के नुकसान

शरीर में रोग होने पर, उसके जो दुष्परिणाम होते है। उन्हें ही उस रोग का नुकसान कहा जाता है। वैसे ही कब्ज के कारण भी निम्नलिखित दोष पाए जाते है –   

उपसंहार :

कब्ज के लक्षण प्राप्त होने पर, समय पर कब्ज का इलाज करना आवश्यक है। जिससे कब्ज के नुकसान से बच सके। लेकिन कब्ज का उपचार करते समय, कब्ज में परहेज का धैर्य पूर्वक पालन करना चाहिए। जिसके लिए आवश्यक और उचित जीवनचर्या में, बदलाव करने की आवश्यक हो तो उसमे देरी नहीं करनी चाहिए। 

कब्ज होने का सबसे बड़ा कारण, जानकारी का अभाव और स्वयं पर नियंत्रण न रख पाना है। जिसके कारण हम विभिन्न प्रकार के व्यजनो का स्वाद, विपरीत और विरुद्ध आहार का विचार किये बिना कर लेते है। जिसके कारण इनको पचाने के लिए अधिक पानी की आवश्यकता है। जिसके विकल्प के रूप में हम कार्बोनेटेड या सोडा वाटर का प्रयोग कर बैठते है। जिससे पाचन के दौरान बड़ी आंत अवशोषित कर लेती है।

वही आजकल मिलने वाले बाजारू खाने में फाइबर की कमी होती है। जिसके कारण मल मलाशय से आगे प्रवृत्त नहीं हो पाता। जिससे बड़ी आंत उसे और सुखा देती है। जिसके कारण यह भीषण कब्ज को जन्म देती है। जिससे बचने के लिए इसके विपरीत आचरण करना अति आवश्यक है।  

सन्दर्भ :

  • चरक चिकित्सा अध्याय – 13
  • सुश्रुत उदर निदान अध्याय – 07
  • सुश्रुत उदर चिकित्सा अध्याय – 14
  • माधव निदान अध्याय
  • अष्टांग ह्रदय उदर निदान अध्याय – 12 
  • अष्टांग ह्रदय उदर चिकित्सा अध्याय – 15
  • अष्टांग संग्रह उदर निदान अध्याय – 12
  • अष्टांग संग्रह उदर चिकित्सा अध्याय – 17
  • योग रत्नाकर उदर निदान पृष्ठ – 102
  • योग रत्नाकर उदर चिकित्सा पृष्ठ – 107
  • भैषज्य रत्नावली उदर रोग चिकित्सा प्रकरण – 40

FAQ

कब्ज तुरंत निकालने के लिए कैसे करें?

पेट के कब्ज के लक्षण पाए जाने पर, मठ्ठे में पिप्पली के चूर्ण को सेंधा नमक में मिलाकर पीना लाभकारी है। 

कब्ज की सबसे अच्छी दवा कौन सी है?

एरण्ड तेल कब्ज की सबसे बढ़िया दवाइयों में से एक है। जिसकी 4 – 6 बूंदो को कुछ दिन ताल दूध में मिलाकर लेने से लाभ होता है। 

कब्ज में त्रिफला चूर्ण कैसे खाये?

कब्ज के त्रिफला चूर्ण को 10 ग्राम की मात्रा में, गुनगुने दूध या पानी से लिया जा सकता है। 

कब्ज कितने प्रकार के होते हैं?

नई और पुरानी दो तरह की कब्ज होती है। जिसे एक्यूट और क्रोनिक कॉन्स्टिपेशन कहा जाता है।

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