व्यवहारिक जगत में मस्से वाली बवासीर को, बादी बवासीर कहा जाता है। यह विभिन्न आकारों में गुदमार्ग, गुदा या उसके आस – पास होती है। जिसकी पहचान मस्से वाली बवासीर के लक्षण अथवा बादी बवासीर के लक्षण से होती है। परन्तु चिकित्सा कर्मो में बादी बवासीर के लक्षण और उपचार दोनों आवश्यक है। जिसमे बवासीर का देसी इलाज पौराणिक प्रचलित है। जबकि आधुनिक चलन में बवासीर का एलोपैथिक इलाज आदि है।
बादी बवासीर को चरक आदि ने शुष्क अर्श की संज्ञा दी है। जिनको अयुर्वेदगत दोषो के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है। जिसमे मुख्य रूप से वातज, कफज एवं द्वंदज ( वात – कफज ) का वर्णन है। अर्थात सनातन चिकित्सीय अनुगात्मक प्रणाली में उपरोक्त दोषों से मंडित, बवासीर को शुष्क ( सूखे ) अर्श के नाम से जाना जाता है। जिसके कारण इसको सूखी बवासीर भी कहा जाता है। जिनमे बवासीर के घरेलू उपाय बहुत कारगर है।
इस प्रकार के बवासीर से ग्रस्त रोगियों में, दो प्रकार की परिस्थिति देखी जाती है। पहली ऐसे रोगी जिनमे मल पतला होता है। दूसरे ऐसे रोगी जिनको मल सूखा, सख्त, गांठदार हो जाता है। जिससे कब्ज की समस्या होने लगती है। जिसमे बहुत प्रयत्न करने के बाद भी मल का वेग ही नहीं आता या आता भी है तो बहुत कम। जिससे रोगी 4 दिन से लैट्रिन नहीं हो रहा है बताते है। इसलिए पेट में लैट्रिन सूखने का कारण कब्ज, बवासीर आदि भी हो सकते है।
बादी बवासीर क्या है ( badi bawaseer kya hai )
बादी बवासीर प्रायः गुदा के बाहर पहिये के आरे जैसी मस्सों वाली बवासीर है। जो गुदा के चारो ओर होती है। जिसके प्रत्येक मस्से के बीच में एक सिरा होता है। जिसके चारो ओर सौत्रिक तंतु होते है। जो त्वचा से ढके रहते है। ये अर्श ( bawaseer ) आर्द्र न होकर सूखे रहते है। अतः इनको शुष्कार्श कहते है। आम जनमानस में इसे सूखी बवासीर के नाम से जाना जाता है। इन बवासीरो से मवाज ( स्राव ) आदि नहीं निकलता, परन्तु पीड़ा अत्यधिक होती है।
यह प्रायः गुदौष्ठ ( ऐनस ) के बाहर पैदा होते है। जिससे इसको बाहरी बवासीर या वाह्यार्श ( external piles ) भी कहते है। जिसमे मल त्याग का वेग नहीं आता। जिसको आजकल की भाषा में लैट्रिन नहीं आना कहते है। यदि आती भी है तो लैट्रिन बहुत टाइट होती है। जिससे लैट्रिन साफ नहीं होती है, और लैट्रिन के रास्ते में दर्द होता है। जिसमे चुभन, गड़न, टपकन, धमक आदि प्रकृति के दर्द होते है। जिन्हे निदानात्मक कार्यवाहियों में पेट साफ न होने का लक्षण बताया गया है।
जब ये रगड़, शीतस्पर्श, अधिक बैठे रहने, तीव्र मलावरोध आदि से प्रकुपित होकर शोथयुक्त हो जाते है। तब रोगी को चलने – फिरने, उठने – बैठने में कष्ट होता है। विशेषकर तब जब शौच जाना पड़ता है। इस रोग से व्यथित व्यक्ति मल को प्रवृत्त करने के लिए जोर लगाता है। फिर भी लैट्रिन ( मल ) नहीं आती। बवासीर में पेट साफ होना अत्यंत आवश्यक है। जिसके लिए पेट साफ करे तो कैसे ?
बादी बवासीर के प्रकार ( badi bawasir ke prakar )
सभी प्रकार की बादी बवासीर बाहरी बवासीर का उदाहरण है। जो आयुर्वेदानुसार तीन प्रकार की होती है –
- वातात्मक बादी बवासीर
- कफात्मक बादी बवासीर
- संसर्गज ( वात – कफ मिश्रित या द्वंद्वज ) बादी बवासीर
- सन्निपातिक वादी बवासीर
जबकि बादी बवासीर को आकार के आधार पर भी विभाजित किया जाता है –
- पतले मल वाली बादी बवासीर
- कब्ज अथवा कठोर मल वाली बादी बवासीर
वात आदि दोषो से निबद्ध बवासीर नवीन होने पर छोटी होती है। जब इसके उपचार में देरी अथवा उचित चिकित्सा नहीं होती। तब दोषो के लगातार बढ़ने आदि कारणों से, यह फूल कर बड़ी हो जाती है।
सामान्यतः वात दोष की विकृति से होने वाली बादी बवासीर के मस्से काले रंग के, सूखे हुए, मुर्झाये, छूने में खुरदरे और कठोर मालूम पड़ते है। जिनका आगे का भाग सुई की नोक की तरह नुकीला हो, जिनके मुख टेढें – मेढ़े, फटे हुए एवं इधर – उधर फैले रहते है। जिसमे अत्यधिक दर्द, आक्षेप ( दर्द का खिचाव ), सुई चुभने की तरह दर्द, भीतर से फड़कन, चिनचिमाहट बनी रहने के कारण शरीर में रोमांच हो रहा होता है।
वही कफ प्रधान बादी बवासीर के मस्से आकार में बड़े, मांस के कारण मोठे, चिकने, कोमल, छूने से दर्द न करने वाले और काले – पीले ( मटमैले ) रंग के, चिपचिपे, जकड़े, जिले कपडे से ढके अनुभव होने वाले, शून्यता युक्त एवं एक सामान रूप से फूले हुए होते है। इनके मस्सो में अत्यधिक खुजली हुआ करती है। इसका दर्द कैची से काटने के सामान होता है।
बादी बवासीर होने के कारण ( badi bawasir hone ke karan in hindi )
आयुर्वेद वर्णित त्रिदोषात्मक चिकित्सा प्रणाली में, बादी बवासीर को वात और कफ दोषो के अंतर्गत रखा गया है। जिनके आधार पर इनके कारणों में विभेद ( अलगाव ) और सामजस्य ( तालमेल ) है।
वातज बवासीर का कारण
कषैले, कड़वे, तीखे रसो का अत्यधिक सेवन, लघु, शीत एवं रुक्ष गुण रखने वाले अन्नो का आहार के रूप में सेवन, एकदम नपा तुला और मात्रा से कम भोजन करना, अत्यधिक सांद्र मद्य तथा मैथुन का निरंतर सेवन, अधिक व्रत – उपवास, ठन्डे देश और समय ( ऋतु ) का सेवन, शारीरिक शक्ति से अधिक परिश्रम, शोक – संतप्त रहना अधिक वायु और धूप का सेवन करना आदि वातज बवासीर की उत्पत्ति के कारण है।
कफज बवासीर का कारण
मीठे, चिकने, शीत वीर्य, खट्टे, नमकीन, मात्रा और पाक में भारी पदार्थो का सेवन, व्यायाम न करना या मात्रा से कम व्यायाम करना, बिस्तर पर पड़े रहना, दिन में सोना, आसन पर बैठे रहना अथवा सुख से जिन्हे प्रेम हो अर्थात जो कोई भी काम नहीं करना चाहते। अधिक पुरवईया हवा का सेवन करना, शीत – प्रधान मौसम और स्थान का सेवन, कभी किसी प्रकार का सोच – विचार न करना ( सदैव निश्चित रहना ) आदि कफज बवासीर के कारण बताये गए है।
वात – कफज बवासीर का कारण
किन्ही दो दोषो के आपसी समन्वय को आयुर्वेद में, द्वंदज रोगो की श्रेणी प्राप्त है। जिससे प्रभावित ववासीर में दोनों दोषो का मेलजोल पाया जाता है। फिर चाहे इसके कारण हो या लक्षण। इसलिए कफ – वातज बवासीर में दोनों कारणों की साम्यता देखी जाती है।
बादी बवासीर के लक्षण ( badi bawaseer ke lakshan in hindi )
बादी बवासीर को मस्सा बवासीर या मस्से वाली बवासीर, और सूखी बवासीर आदि नामो से जाना जाता है। जिसमे पाए जाने वाले लक्षण को मस्सा बवासीर के लक्षण कहते है। जोकि मस्से वाली बवासीर के लक्षण भी है। जिसमे निम्न लक्षणों की अनुगति देखी जाती है –
- लैट्रिन के रास्ते में दर्द होना
- लैट्रिन साफ नहीं आना
- लैट्रिन न आना
- लैट्रिन में खुजली होना
- शौच के बाद थकान होना
- शौच के बाद कमजोरी आना
- खांसी आना
- बार – बार जी मिचलाना
- बार – बार थूकने की इच्छा होना
- शरीर भारी मालून पड़ना
- जुकाम होना
- भोजन से अरुचि होना
- उल्टी होना
- मूत्र कठिनाई से होना
- हाथ पैर में सूजन होना
- मुखमंडल का सूखना
- मल – मूत्र का रुक – रुक कर होना एवं इनका रंग बदल जाना
- पेट में गैस बनना
- जांघ, कमर, पीठ, कंधो के पीछे, पसलियों, और कुक्षि आदि में दर्द होना
- अंगो में मसलने के सामान दर्द और ह्रदय दुर्बल महसूस होना
- मुख का फीका पड़ जाना आदि।
बादी बवासीर का इलाज ( badi bawaseer ka ilaj )
मस्से वाली बवासीर का इलाज ( masse wali bawaseer ka ilaj in hindi ) के सम्बन्ध में अनेक मत है। शल्य चिकित्सक बवासीर को शस्त्र से काटकर निकाल देने को उत्तम चिकित्सा मानते है। तो क्षार – प्रयोग प्रवीण चिकित्सक क्षार – सूत्रों के प्रयोग से बवासीर को जलाकर निर्मूल कर देने को अच्छा मानते है। वही अग्निकर्म – निपुण चिकित्सक बवासीर की अग्निदाह को श्रेष्ठ चिकित्सा कहते है।
ये सभी अपने – अपने तंत्रानुसार उपयोगी और प्रभावी है। परन्तु ये सभी बड़े सावधानी से होने वाले उपाय है। जिसमे असावधानी होने पर भीषण दुष्परिणाम की पूर्ण संभावना है। जैसे – नपुंसकता, मृत्यु इत्यादि। जबकि आयुर्वेदीय औषध चिकित्सा में चूक हो भी जाए, तो प्रायः कोई बड़ी हानि नहीं होती। यदि होती भी है तो बहुत न्यून।
जिसको परखकर औषधि या उसकी मात्रा में बदलाव कर, सुगमता पूर्वक भयावह दुष्परिणाम से बचा जा सकता है। इसलिए बादी बवासीर की दवाई द्वारा बवासीर का उपचार सर्वोत्तम उपाय है। इसी कारण दवा द्वारा बादी बवासीर का उपचार, सुखद चिकित्सा बतलाई गई है। वही शस्त्र, क्षार और अग्नि चिकित्सा को आसुरी चिकित्सा का दर्जा दिया गया है।
बवासीर के मस्से का इलाज के लिए वात, कफ और वात – कफज दोष की निवृत्ति आवश्यक है। न कि बवासीर का मस्सा, क्योकि दोष बादी बवासीर की उत्पति का कारण है। जोकि वाह्य और आंतरिक दोनों में से कोई एक या दोनों हो सकता है। कारण का नाश होते ही कार्य ( कारण का परिणाम ) स्वतः नष्ट हो जाता है। यह शास्त्रीय शाश्वत सिद्धांत है।
कहने का आशय बादी बवासीर के मस्से का हेतु असंतुलित दोष है। जिसका परिणाम ( कार्य ) बवासीर का मस्सा है। इस कारण बवासीर के इलाज की प्रक्रिया में, बवासीर के मस्से की दवा की आवश्यकता पड़ती है। यह शास्त्रीय विधानों के अनुरूप और हमारी मान्यतानुसार भी है।
बादी बवासीर की दवा ( badi bawaseer ki dawa )
जिनका अनुशरण करते हुए आयुर्वेदीय संहिताओं में, अनेक मस्से वाली बवासीर की दवाई बताई गई है। जिसको लोग मस्से वाली बवासीर की दवा ( masse wali bawaseer ki dawa ) भी कहते है। इन दवाओं के उपयोग का मुख्य आधार पर, रोगी की देह प्रकृति और रोग की तीव्रता है। जिनके आधार पर जिसमे जहा तक, जिस चरण की आवश्यकता होती है। उसमे उन चरणों में उपयुक्त दवाइयों का प्रयोग सिद्धान्तानुसार होता है। यह आवश्यक नहीं कि हर किसी में, प्रत्येक चरण की आवश्यकता पड़े ही।
परन्तु अधिकतर मामलो में जीर्ण रोगो के उपचारण हेतु, नए रोगो की अपेक्षा अधिक चरण का प्रयोग होता है। जिससे इनके साध्य होने में समय भी अधिक लगता है। इसकारण रोग का उपचार करने में, देरी करना घातक हो सकता है। जैसे – धन, समय और शारीरिक तीनो का क्षय होने के साथ मृत्यु भी हो सकती है। जिसके विविध उपाय इस प्रकार है –
बादी बवासीर की दवा पतंजलि ( badi bawaseer ki dawa patanjali )
पतंजलि आयुर्वेद की दिव्य फार्मेसी से बनी अनेक दवाईयां है, जो दोनों प्रकार के बवासीर में लाभ पहुँचाती है। जिससे इन्हे बवासीर के मस्से की दवा patanjali भी कहते है। जिनका उपयोग बादी बवासीर के उपचार में प्रायः होता है। इनका मुख्य कार्य मल ( टॉक्सिन ) को, शरीर से बाहर निकलना है। जिससे बवासीर के मस्से और इसके दर्द में सुधार होता है।
दिव्य अर्शकल्प वटी : यह हरड़, शुद्ध रसोट, बकायन, निमोली, देशी कपूर मकोय, रीठा, घृतकुमारी आदि से निर्मित है। जिसके कारण बवासीर के दर्द और सूजन से छुटकारा दिलाने की सामर्थ्य रखती है। इसके कारण यह बवासीर के मस्से की दवा पतंजलि है।
दिव्य अभयारिष्ट : यह एक प्रकार का पाचन सिरप है। जो बवासीर का इलाज और पाचन की समस्या में लाभदायी है। यह महुआ, गुड़, निसोथ, धनिया, सोंठ, दंतीमूल, हरड़, मुनक्का, वायविडंग, धायफूल, चव्या, इन्द्रायणमूल आदि से मिलकर बना है।
दिव्य हरीतकी चूर्ण : यह हरीतकी से बना आयुर्वेदिक चूर्ण है। जिसका मुख्य गुण डाइजेस्टिव एंजाइम को बढ़ाकर, एसिडिटी को निर्मूलकर पोषक तत्वों के अवशोषण में सुधार लाना। जिससे पाचन की क्षमता का विकास हो सके, और कब्ज एवं बवासीर आदि को पनपने का अवसर न मिले।
ईसबगोल की भूसी : इसमें सर्वाधिक मात्रा में फाइबर पाया जाता है। यह पानी भीगकर फूलकर जेल बनाता है। जो लैक्सेटिव दवाओं के जैसा व्यवहार करता है।
दिव्य उदरकल्प चूर्ण : यह बवासीर के दर्द को कम करने में सहायक है।
दिव्य शुद्धि चूर्ण : यह उत्कृष्ट कोटि का पेट साफ करने वाला चूर्ण है। जिसके सेवन से आंतो में फसा मल बाहर निकल जाता है।
उपरोक्त सभी दवाई मस्से वाली बवासीर की दवा patanjali है। जिनका उपयोग बवासीर को निर्मूल करने में प्रायः होता है।
बादी बवासीर का देसी इलाज ( badi bawaseer ka desi ilaj )
देसी इलाज बवासीर का बवासीर के मस्से का घरेलू इलाज ही है। जिनका प्रयोग प्रायः नए रोगो में किया जाता है। भारतीय जनमानस में इनकी अत्यधिक प्रचलिति है। जिससे अक्सर व्यक्ति पूछ ही बैठता है कि बवासीर का देशी इलाज बताएं। कुछ प्रचलित बवासीर की दवा घरेलू उपचार निम्न है –
- भोजन करने से पूर्व दो माशा हरीतकी का चूर्ण, दो माशा गुड़ में मिलाकर लेने से रोगी की मंदाग्नि प्रबल हो जाती है। जिससे पेट साफ और पाचन क्रिया सुपुष्ट होती है।
- हरड़ के चूर्ण को मठ्ठे के साथ सेवन करने से बवासीर के मस्सो में लाभ होता है।
- त्रिफला ( बहेड़ा, आंवला और हरण ) के चूर्ण को, छाछ के साथ लेने पर बवासीर में फायदा होता है। को खिलाये।
- सूखी मूली का जूस बवासीर में लाभकारी है।
बादी बवासीर का आयुर्वेदिक इलाज ( badi bawaseer ka ayurvedic ilaj )
बवासीर के कारण और उपाय ( bawasir ke karan aur upay ) की विस्तृत चर्चा है। जिसमे वातादि दोषो को सम करने का विधान निर्धारित है। बादी बवासीर इलाज ( badi bawasir ilaj hindi ), बादी अथवा सूखी बवासीर के लक्षण आदि का उपयोग करते हुए होता है। आयुर्वेद में बवासीर को उपचारित करने के लिए, मालिस, धुँआ और लेप आदि का प्रयोग है। जिनमे पतले और सख्त मल के साथ होने वाली, बवासीर में अलग – अलग दवाइयों का इस्तेमाल किया जाता है –
नरम या पतले मल वाली बवासीर की दवाई
- काले सांप की चर्बी से मालिस एवं सांप की केचुल की धुप, बादी बवासीर के मस्सो पर करने से लाभ होता है।
- हरिद्राचूर्णादि लेप : हल्दी के चूर्ण को सेहुड़ के दूध में मिलाकर लगाना, अत्यंत फलप्रद है।
- तक्रारिष्ट : बादी बवासीर की उत्कृष्ट औषधि है।
- बादी बवासीर में चित्रकमूल, पिप्पलीमूल, पिप्पली, गजपिप्पली, सोंठ, जीरा, मंगरैल, धनिया, तुम्बुरु ( तिमूर के बीज ), बेल की गिरी, काकड़ासिंगी, ग्वारपाठा इन सब को सामान भाग में लेकर पीसकर चटनी बना ले। जिससे विधिपूर्वक पिया को पकाकर घी और तेल दोनों से इसे छौंककर, अनार के रस से इसे कुछ खट्टा कर ले। अब इसको बवासीर के रोगी को पीने के लिए दें। यह सभी प्रकार के बादी बवासीर का रामबाण इलाज है।
कड़े ( गाढ़े ) मल वाली बवासीर की दवाई
- इन बवासिरो मे मल को पतला करने की आवश्यकता होती है। जिसमे जवाखार और गुड़ को, गाय के घी में मिलाकर चाटने से लाभ होता है।
- अजवाइन और ग्वारपाठा का प्रयोग, बवासीर के दर्द में लाभ पहुंचाता है।
बादी बवासीर का होम्योपैथिक इलाज
मस्से वाली बवासीर का उपचार, होम्योपैथिक सिद्धांतो के अनुरूप किया जाता है। जिसमे बादी बवासीर की होम्योपैथिक दवा का इस्तेमाल होता है। जैसे – पिलेक्स होम्योपैथिक मेडिसिन आदि। जबकि समग्र लक्षणों को समायोजित कर, समायोजन के उपयुक्त औषधि का चयन होम्योपैथिक उपचार है। जिसका यथाविधि पालन करने पर, बादी बवासीर की चिकित्सा हो जाती है। इसमें निम्न असरकारक दवाओं का उपयोग होता है –
इस्क्युलस : इसमें गुदाद्वार में कुछ गड़ते रहने की तरह दर्द, अकड़न का दर्द, कमर में दर्द, मलद्वार में भार और गीला मालूम होना, गुदाद्वार में जलन, खुजली, मस्से ( बाहरी और भीतरी ) में बहुत दर्द, दाहिनी छाती के नीचे भारीपन लगना, मलत्याग के बाद मलद्वार में बहुत देर तक जलन रहना, पाखाना हो जाने के बाद मलद्वार रुका हुआ मालूम होना विशेष रूप से पाया जाता है।
ब्रायोनिया : इसकी बवासीर का दर्द इस्क्युलस से मिलता जुलता है। परन्तु इसका दर्द शांत स्थिर रहने पर घटता है और हिलने डुलने पर बढ़ता है।
एलो : इसका दर्द ब्रयोनिया और इस्क्युलस से मेल खाता है। परन्तु ठन्डे पानी का प्रयोग करने पर इसकी तकलीफ घटती है। साथ ही इसमें मल वायु निकलने के साथ ही अथवा पेशाब के वेग से अनजाने में ही निकल जाती है। पेट में वायु ( गैस ) भरी रहती है।
रैटानहिया : इसमें मलद्वार में कांच के टुकड़े गड़ने के जैसा दर्द होता है। परन्तु इस्क्युलस की अपेक्षा दर्द कम रहने पर भी, जलन इतनी होती है कि जैसे किसी ने लाल मिर्च का पाउडर दाल दिया है। मलत्याग के बाद मलद्वार में असह्रा दर्द और बहुत देर तक जलन रहती है। की
इस्क्युलस ग्लैबरा : ऐसे रोगी जो आलसी हो, काम – काज करने की इच्छा नही होती, शराब आदि का सेवन करते हो। उनमे लाभदायक है।
बादी बवासीर का एलोपैथिक इलाज
प्रिस्टीन केयर आदि के अनुसार, badi बवासीर की अंग्रेजी दवा में निम्न का उपयोग है –
Alocaine : बवासीर के दर्द की पेनकिलर है। जिसका इस्तेमाल बवासीर के मस्सो में होने वाले, दर्द को कम करने में किया जाता है।
Fubac : इसका प्रयोग बवासीर के ग्रेड के अनुसार होता है। यह भी बवासीर के दर्द को कम करने में सहायक है।
ऐसे ही अनेक प्रकार की अन्य दवाई है। जिनका प्रयोग बवासीर के उपचार में होता है। हमदर्द हब्बे बवासीर बादी ( hamdard habbe bawaseer badi / habb e bawaseer badi ) बवासीर में लाभकारी है। यह पेनफुल पाइल्स ( painful piles ) के दर्द को, कम करने में सहायता करती है। जिसको लोग हब्बे बवासीर बादी के फायदे ( habbe bawaseer badi ke fayde in hindi ) कहते है।
मस्से वाली बवासीर में क्या खाना चाहिए
बिना स्राव वाली बवासीर रोगी के लिए, चावलों का उपयोग हितकारी है। जिसमे मुख्य रूप से लाल धान, बासमती, कलमी ( रोपकर उगाये गए ) और सफेद चावल है। जिसमे साठी चावल का भात, पिया आदि का निर्माण विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियों से मिश्रित कर रोगी को खिलाना चाहिए। परन्तु चिकित्सा में अनिषेध के साथ निषेध का पालन भी करना पड़ता है। जैसे –
- बहुत अधिक तले भुने मिर्च मसाले से युक्त भोज्य पदार्थो का सेवन न करे।
- दिन में सोने से बचे।
- रात्रि विश्राम से दो घंटे पूर्व भोजन करे।
- मद्यपान और धूम्रपान से बचे।
- रात्रि जागरम न करें।
- अत्यधिक मीठे द्रव्यों के सेवन से बचे।
- पचने में भारी भोजन को खाने से बचे।
सारांश ( उपसंहार ) :
मानव गुदीय शिराओ का फूलकर चारो ओर अंकुरों ( मस्सो ) से, घिर जाना ही बवासीर रोग है। जिनके मस्सो से प्रायः किसी प्रकार का स्राव नहीं होता, उसे बादी बवासीर अथवा मस्से वाली बवासीर कहा जाता है। इसलिए बादी बवासीर के लक्षण और मस्से वाली बवासीर के लक्षण में समानता है।
सम्पूर्ण आयुर्वेद दोष प्रधान निदान और चिकित्सा पर आधारित है। जिससे आज भी इसकी अद्वितीयता सिद्ध है। जिसके अनुसार रोगी में रोग होने पर, दोषो की असमानता देखी जाती है। जिसके प्रभाव से रोगी में अनेकानेक लक्षणों की अनुगति होती है। जिस पर विशेषज्ञ विश्लेषण कर, असमान दोष की पहचान करते है। जिसको आयुर्वेदीय ग्रंथो में निदान कहा गया है। जबकि आधुनिक तंत्रो में इसे डाइग्नोसिस कहा जाता है।
तद्वत सिद्धांत की रक्षा करते हुए, बिगड़े ( असंतुलित ) हुए दोष को समत्व पर लाने का उपक्रम चिकित्सा कहलाती है। जिसमे दोषो को व्यवस्थित ( सम ) करने के लिए, अनेक शास्त्रीय उपायों का आलंबन लिया जाता है। जिनमे रोगी की देह प्रकृति, बलाबल ( शारीरिक सामर्थ्य ), देश – काल और औषधि के गुण – दोष आदि का विचार शामिल है। इस अड़िग नियम का अनुपालन करते हुए, रोगी को रोग से मुक्त किया जाता है।
साथ ही साथ पुनः रोग की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए आहार दिनचर्या आदि की विसंगति को दूर किया जाता है। तब जाकर रोगोपचार की प्रक्रिया पूर्ण होती है। जब तक मनुष्य इन तारतम्यक नियमो का विधि पूर्वक श्रद्धा से पालन करता है। तब तक रोग और दोष के चपेट से मुक्त बना रहता है।
ध्यान रहे : किसी भी दवा को लेने से पहले, चिकित्सीय सलाह लेना न भूले।
उद्धरण ( रेफरेंस ) :
- चरक संहिता चिकित्सा अध्याय 14
- सुश्रुत संहिता नि अ और सुश्रुत संहिता चि अ
- अष्टांग संग्रह नि अ और अष्टांग संग्रह चि अ
- अष्टांग ह्रदय नि अ और अष्टांग ह्रदय चि अ
- comprative materia medica by Dr N C Ghos
FAQ
बादी बवासीर का इलाज क्या है?
बादी बवासीर बहुत हठ पूर्वक जाती है। जिसके कारण धैर्य पूर्वक विधिवत चिकित्सा खान – पान, और शास्त्रोचित दिनचर्या की आवश्यकता होती है।
बवासीर के लिए होम्योपैथिक दवा कौन सी है?
होम्योपैथी में pilex गोलियाँ 120 बवासीर उपचार मे प्रयोग की जाती है।
बवासीर की अंग्रेजी दवा कौन सी है?
सिटकॉम forte बवासीर के लिए गोली है। जो आवश्यकता पड़ने पर प्रयोग की जाती है।
बवासीर के ऑपरेशन में कितना खर्च आता है?
बवासीर का सामान्य ऑपरेशन खर्च लमसम 10 हजार के लगभग है।
बवासीर का लेजर ऑपरेशन खर्च कितना है?
लेजर द्वारा बवासीर का ऑपरेशन होने में, लगभग 35 से 45 हजार का खर्च आता है।
बवासीर का ऑपरेशन के बाद दर्द कितने दिन होता है?
बवासीर के ऑपरेशन में अमूमन जब तक घाव रहता है। तब तक दर्द बना रहता है। जिसको ठीक होने में एक – दो सप्ताह का समय लग सकता है।
बवासीर ऑपरेशन के बाद क्या सावधानी रखनी चाहिए?
बवासीर ऑपरेशन के बाद सावधानियों में आराम, परहेज, समय पर भोजन आदि आवश्यक है।
26 thoughts on “बादी बवासीर : badi bawaseer in hindi”