ऐसे बवासीर के मस्से जिनमे से स्राव ( मवाज, खूनादि ) हुआ करता है। उन्हें स्रावी अर्श या खूनी बवासीर कहते है। इनमे सदैव रक्त आदि दर्द अथवा बिना दर्द के भी स्रावित होते रहते है। यह खूनी बवासीर के लक्षण है। इसमें खून के अधिक निकलने से प्राण जाने की भी संभावना होती है। जिससे खूनी बवासीर की गारंटी की दवा आवश्यकता पड़ती है। परन्तु खूनी बवासीर का रामबाण इलाज ही इस समस्या से छुटकारा दिला सकता है। जिसमे खूनी बवासीर की दवा पतंजलि आदि का भी प्रयोग है। आधुनिक प्रचलित चिकित्सा में खूनी बवासीर की अंग्रेजी दवा का भी प्रयोग है।
आयुर्वेद में अतिसार, संग्रहणी एवं अर्श को एक दुसरे का कारण माना गया है। जिसके कारण लैट्रिन ( latrine ) के रास्ते में दर्द खुजली हो सकती है। जिसको अधिक समय तक अनदेखा करने पर, लैट्रिन बहुत कड़ी होने लगती है। जिस पर ध्यान न देने से, बवासीर उग्र होने लगती है। जिससे टॉयलेट से खून आना, पेट में गैस बनना आदि देखा जाता है।
खूनी बवासीर होने पर टॉयलेट रूम में अजीब घटना घटती है। जिससे हमारे रोगटे खड़े हो जाते है। टॉयलेट सीट पर खून के छीटें दिखाई पड़ते है अथवा मल के साथ गुदा से खून टपकता है। जिसकी पुष्टि के लिए हम यदि टॉयलेट पेपर को गुदा पर रखते है, तो उस पर भी खून लगा हुआ दिखाई पड़ता है। जिससे टॉयलेट ( toilet ) जाना तो दूर, सोचकर भी डर लगने लगता है। जिनको दूर करने में बवासीर का रामबाण आयुर्वेदिक इलाज बहुत ही गुणकारक है।
सभी खूनी बवासीर आंतरिक बवासीर ( internal piles ) होती है। जो गुदा के आंतरिक गुदबलियो में छिपी होती है। जिसके कारण इसे ब्लाइंड पाइल्स ( blind piles ) भी कहा जाता है। जबकि सभी बादी बवासीर बाहरी बवासीर ( external piles ) हुआ करती है। जिससे बादी बवासीर के लक्षण खूनी बवासीर के लक्षणों से अलग है।
खूनी बवासीर क्या है ( khooni bawaseer kya hai )
इनको परिस्रावी, आंतरिक या रक्तार्श ( internal piles or bleeding piles ) आदि नामो से जाना जाता है। ये गुदौष्ठ में भीतर तथा मध्य में अधिक शिराओ से युक्त होते है। तथा चारो ओर सौत्रिक तंतु होते है। जिसमे सबसे ऊपर श्लैष्मिक कला का आवरण चढ़ा रहता है। जो प्रारम्भ में कोमल तथा बाद में रगड़ आदि लगने से कठोर हो जाते है। जो पुराने होने पर शौच करते समय जोर लगाने या बिना जोर लगाए ही बाहर भी आ जाते है। तथा इनमें से श्लेष्मा ( Mucus ) और रक्त का स्राव भी हो सकता है। जिनको खूनी बवासीर के लक्षण कहा गया है।
बवासीर मलाशय की शिराओ की विकृति है। मलाशय की सिराएं लम्बाई की ओर होती है, और उनमे कपाट नहीं होते। अतः प्रवाहण कारणों से इनमे रक्त भर जाता है। जिससे ये सिरे फूलकर मस्से बनकर, निकल आते है। जिनसे रक्तादि का स्राव हुआ करता है। उन्हें खुनी बवासीर कहते है। जिसमे अक्सर पेट की समस्याए बनी रहती है। जैसे – पेट में मरोड़ होना आदि। जिनको खूनी बवासीर के लक्षणों और चेतावनी संकेत के रूप में देखा जाता है।
बवासीर में कब्जियत आदि की समस्या होती है। जो लैट्रिन सूखने का कारण भी है। जिसमे रोगी को आसानी से मल का त्याग नहीं होता। अर्थात पेट साफ़ नहीं होता। परन्तु जब रोगी बड़ी सख्ती से मल का त्याग करता है। तब उसके मल की रगड़ से बवासीर का मस्सा घर्षित होता है। जिससे अत्यधिक मात्रा में दूषित रक्त का सहसा स्राव होने लगता है। जिससे कभी पेट के राइट साइड में दर्द होने लगता है, तो कभी पेट के निचले हिस्से में दर्द होता है।
खूनी बवासीर क्यों होती है ( khooni bawaseer kyu hoti hai )
विरुद्ध भोजन अध्यशन, तीखे, गर्म, नमकीन, क्षारीय पदार्थो का अधिक मात्रा में सेवन, सामर्थ्य से अधिक परिश्रम, अग्नि और धूप का अधिक सेवन करना, अत्यधिक स्त्री सम्भोग, उकड़ा आसान लगाकर बैठना, घोड़े, बैल और ऊंट के पीठ पर सवारी करना, अधारणीय वेगों को धारण करना, उष्ण ( गर्मी ) प्रधान देश और काल का अधिक सेवन, अत्यधिक क्रोध करना, अत्यंत तीक्ष्ण मद्य का सेवन, जलन करने वाले, तीक्ष्ण, उष्णगुण वाले सभी प्रकार के पेय पदार्थो, भोजनों तथा औषधद्रव्यों का सेवन आदि खूनी बवासीर होने का कारण है।
खूनी बवासीर के लक्षण ( khooni bawaseer ke lakshan )
आमतौर पर मस्सा बवासीर के लक्षण को इंगित करता है। जो खूनी बवासीर का चेतावनी संकेत हो सकता है। जिसके ज्यादातर मस्से छिपे रहते है। जिससे खुनी बवासीर को छिपी हुई बवासीर भी कहते है। जिसमे पाए जाने वाले लक्षण को, ब्लाइंड पाइल्स सिम्पटम्स ( blind piles symptoms ) कहा जाता है। खूनी बवासीर का लक्षण ( piles ke lakshan ) निम्न है –
- लैट्रिन में खून आना
- लैट्रिन के रास्ते में गांठ होना
- लैट्रिन के रास्ते में दर्द होना
- लैट्रिन में बलगम आना
- लैट्रिन के रास्ते से पानी आना
- लैट्रिन के रास्ते में जलन होना
- शौच के बाद जलन होना ( गुदा में जलन होना )
- शौच के बाद गुदा से खून आना
- लैट्रिन में ब्लड आना
- लैट्रिन की जगह पर खुजली होना
- लैट्रिन के बाद जलन होना
- खुल के लैट्रिन नहीं आती
- लैट्रिन में चिपचिपा पदार्थ निकलना
- लैट्रिन करते समय जलन होना
- काली लैट्रिन आना
- लैट्रिन में झाग आना
- जिन मस्सो से मांस की गंध आती हो
- जिन बवासीर के अंकुरों का रंग लाल, पीला, नीला एवं काला हो
- जिन अर्शांकुरो में दाह, खुजली, शूल, चुभने की पीड़ा हो रही हो
- जो पक गए हो
- जिनमे शीतस्पर्श अच्छा लगता हो
- जिन्हे पतला, पीला और हरे रंग का मल हो रहा हो
- नाभि के नीचे पेट दर्द होना आदि।
खूनी बवासीर का इलाज ( khooni bawaseer ka ilaj )
आयुर्वेद में रक्तज बवासीर को दो दोषो से युक्त माना गया है। जिनमे प्रथम संसर्गज ( द्वन्दज ) दोष है। जिसकी प्राप्ति दो दोषो के सम्मिलन से होती है। जिसमे हर रोगी के देह का एक स्वाभाविक दोष है। जो उनको परम्परा से माता – पिता ( रज – वीर्य ) से प्राप्त है। वही ऋतुकाल आदि के परवर्तन से, वाह्य आरोपित दोष का आगमन हो जाने से, इनका युग्मन होते ही द्वन्दज नामक रोग की प्राप्ति हो जाती है। इस सिद्धांत का प्रयोग ब्लाइंड पाइल्स ट्रीटमेंट ( blind piles treatment ) में, सिद्धांतानुरूप होता है।
जबकि दूसरा सन्निपातिक है। जिसकी सम्प्राप्ति तीन दोषो से युक्त मानी जाती है। जिसमे उपरोक्त कारण तो है ही, साथ ही अन्य कारण भी है। जिसके प्रभाव में आकर दोष अपना प्रभाव दिखाने लगते है। जिनको असंतुलित दोषो के नाम से जाना जाने लगता है। इसलिए खुनी बवासीर का इलाज ( khuni bawasir ka ilaj ) में, इनका ध्यान रखना आवश्यक है। वही रक्तज बवासीर में, रक्त नामक विकृति सार्वभौम रूप में देखी जाती है। जिसमे कभी – कभी पेट के निचले अथवा पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द होना देखा जाता है।
आयुर्वेदीय चिकित्सा में खूनी बवासीर को आर्द्र ( गीला ) अर्श कहा जाता है। जिसका मूल कारण इनमें से निरंतर रक्त का स्राव हुआ करता है। जिसमे रक्तज या पित्तज या रक्त – पित्तज दोषों की प्रधानता होती है। फिर भी इनमे सामान्य रूप से वात और कफ का भी अनुबंध बना रहता है। जिससे इनके दो प्रभेद हो जाते है –
- वातानुबन्धी खूनी बवासीर ( रक्तार्श )
- कफानुबन्धी खूनी बवासीर ( रक्तार्श )
खूनी बवासीर के लक्षण और उपचार में, दोषानुबन्धन का विचार आयुर्वेदीय चिकित्सीय प्रणाली के अनुरूप है। जबकि आधुनिक विधा में खूनी बवासीर के उपचार को, ब्लीडिंग पाइल्स ट्रीटमेंट ( bleeding piles treatment ) का नाम दिया जाता है।
खूनी बवासीर के मस्से सुखाने के उपाय
जिसमे मुख्य तौर पर बवासीर के ऑपरेशन आदि पर बल दिया जाता है। जिसमे आमतौर पर बवासीर के ऑपरेशन के बाद सावधानियों का विशेष महत्व है। खूनी बवासीर के मस्सो को सुखाने के लिए, वातानुबन्धी और कफानुबन्धी में प्राप्त होने वाले लक्षणों की पहचान आवश्यक है। खूनी बवासीर के उपचार ( bleeding piles treatment in hindi ) में लक्षणों का विशेष महत्व है।
वातानुबन्धी खूनी बवासीर के लक्षण : बवासीर रोगियों का मल यदि गहरे भूरे रंग का, कडा और सूखा निकलता हो, अपानवायु नीचे की ओर न खुलती हो, बवासीर के मस्सो से पतला, ईट के रंग का लाल झागदार खून निकलता हो, कमर, जांघ और गुदा प्रदेश में दर्द होता हो, रोगी दिन ब दिन कमजोर होता जा रहा हो, यदि रुक्ष आहार – विहार का सेवन ही बवासीर की उत्पत्ति में कारण हो तो उस बवासीर में निश्चित रूप से वात दोष का अनुबंध समझना चाहिए।
कफानुबन्धी खूनी बवासीर के लक्षण : यदि बवासीर रोगी का मल शिथिल ( जो बंधा न ) हो, सफेदी लिए, पीला, चिकना, वजन में भारी, शीतल निकलता हो, बवासीर के मस्सो से गाढ़ा, रेशेदार, काले रंग का चिपचिपा खून का रिसाव हो रहा हो, गुदा लिसलिसी हो, रोगी को गीला वस्त्र ओढ़े हुए के सामान अनुभव होता हो, गुरु एवं स्निग्ध कारणों से बवासीर की उत्पत्ति हुई हो तो विद्वानों को रक्तार्श में कफ का अनुबंध समझना चाहिए।
जिससे इनकी चिकित्सा – सूत्र में विभेद है। जैसे – वातानुबन्धी खूनी बवासीर में स्निग्ध, शीतवीर्य आहार – विहार तथा औषधो का प्रयोग हितकर है। तो कफानुबन्धी रक्तार्श में रुक्ष, शीतवीर्य आहार – विहार एवं औषधयोगो का प्रयोग हितकर माना गया है। जिनको ध्यान में रखकर दोनों प्रकार की, खूनी बवासीर की चिकित्सा करनी चाहिए।
खूनी बवासीर का रामबाण इलाज ( khuni bawasir ka ramban ilaj )
प्रायः वात प्रकृति प्रधान रोगियों के, मस्सो से ही रक्तस्राव नहीं हो पाता। अर्थात वात दोष से होने वाली बवासीर बादी बवासीर ही होती है। इसमें खून तभी निकलता है जब किसी अन्य दोष से मिल जाता है। जिसको उपचारित करने के लिए, उपरोक्त दोनों विकृतियों पर ध्यान देना चाहिए। जिसके साथ मुख्य रूप से पित्तकफाधिक खूनी बवासीर की चिकित्सा करनी आवश्यक है। जिसको समझने के लिए खूनी बवासीर का चित्र दिखाइए की बात प्रायः होती ही है।
इस प्रकार की खूनी बवासीर में पित्त और कफ दोष की, अधिकता को लक्षणों के अनुसार परखकर। सबसे पहले वमन – विरेचन आदि माध्यमों से शोधन करना चाहिए। अथवा यदि बवासीर के मस्सों से रक्त का स्राव हो रहा हो तो उसकी उपेक्षा की जाती है। अर्थात रक्त को रोकने वाले उपायों का प्रयोग न करके, रोगी को लंघन कराना चाहिए। जिससे दूषित रक्त बाहर निकल जाए। परन्तु जानकारी और प्रशिक्षण के अभाव में, रोगी या चिकित्सक प्रारम्भ में ही बवासीर से होने वाले रक्त स्राव को रोकने का प्रयास करते है।
जिसके कारण रुका हुआ दूषित रक्त और वातदोष दोनों मिलकर बुखार, अग्निमंदता, कामला, सूजन, फुंसिया, पांडुरोग, मल – मूत्र में रुकावट, गुद और वक्षण प्रदेश में दर्द और खुजली आदि को पैदा करते है। इसलिए दूषित रक्त के स्वयं निकल जाने तक, प्रतीक्षा करनी चाहिए। यदि रक्त न निकल रहा हो तब रक्तस्रावण कराना आवश्यक हो जाता है। जिसके बाद ही रक्त को रोकने का उपाय करना चाहिए।
ध्यान रहे : यहाँ चिकित्सा की दो विधिया वर्णित है। शोधन और लंघन। जिसमे बलवान या आत्मवान पुरुष पर ही, शोधन विधियों का प्रयोग किया जाता है। क्योकि ये दोनों ही कष्टकारक है। जबकि बलहीन पुरुष पर लंघन देकर ही, शोधन का कार्य लिया जाता है। ऐसा करने से रोगी को प्राथमिक लाभ मिलने लगता है।
बवासीर में खून रोकने के उपाय
खूनी बवासीर में दूषित खून का निकल जाना, स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम है। परन्तु दुष्टरक्त के निकलने के उपरान्त, उस मार्ग के बंद न होने से जीवरक्त ( शुद्ध रक्त ) निकलने की आशंका होती है। अतः उसे रोकना अत्यंत आवश्यक है। जिसके लिए खूनी बवासीर के कारण लक्षण और काल को जानने वाला, रोगी की शक्ति का ज्ञान रखने वाला तथा दुष्टरक्त एवं शुद्धरक्त के रंग को पहचानने वाला चिकित्सा विशेषज्ञ अपेक्षित है।
जिससे खूनी बवासीर में तब तक दूषित खून को निकलने दे, जब तक कोई संकट की संभावना न प्रतीत हो। अर्थात मृत्युसंकट की संभावना के पहले ही, बवासीर के रक्तस्राव को रोक देना ही उपयुक्त है। जिसके लिए शास्त्रों में अनेको व्यवस्था दी गई है। जैसे –
तिक्तद्रव्य प्रयोग : जब रक्तार्श रोगी का गंदा खून निकल जाए। तब जठराग्नि को उद्दीप्त करने और खून को रोकने के लिए तथा दोषों को पचाने के लिए तिक्तरसप्रधान औषधद्रव्यों द्वारा उसकी चिकित्सा की जानी चाहिए।
स्नेह प्रयोग : वातप्रधान एवं ऐसे रोगी जिनके दोष क्षीण हो गए हों। ऐसे रोगियों के मस्सों से होने वाला रक्तस्राव स्नेहसाध्य होता है। जिसमे रोगी को पीने के लिए स्नेह ( औषध सिद्ध घृत ), अभ्यंग ( मालिस ) तथा अनुवासनवस्ति आदि का प्रयोग अत्यंत उपकारी है।
जबकि भौतिक रूप से खून कपड़ो आदि में, न लगे इसके लिए रुई आदि का प्रयोग गुदा पर होता है। जोकि अस्थाई होता है, और निरंतर रूप से इसे बदलना पड़ता है। अधिक समय तक इसको लगाए रखने से, संक्रमण होने की संभावना होती है। इसलिए इसे निश्चित अवधि में इनको बदलना अनिवार्य होता है।
खूनी बवासीर में खून रोकने का समय ( काल )
खूनी बवासीर की मेडिसिन ( khooni bawaseer ki medicine ) में, समय का बहुत महत्व है। जिसके कारण ग्रीष्मकाल में पित्तप्रधान रक्तार्श से खून का स्राव हो रहा हो और वात तथा कफ का अनुबंध न हो तो उस रक्तस्राव को निश्चित रूप से तत्काल रोक देने का शास्त्रीय प्राविधान है। यह खूनी बवासीर के लक्षण में ध्यान रखना बहुत ही अनिवार्य है। जिसमे बवासीर के मस्से को जड़ से खत्म करने का उपाय अत्यंत लाभकारी है।
जिसको चिकित्सा विशेषज्ञ आवश्यकता पड़ने पर, अपनाकर लाभ उठाते है। इसलिए खूनी बवासीर में रक्त रोकने के योग को, रक्त रोधकयोग कहा गया है। जिनका उपयोग खूनी बवासीर के रोगियों के मस्से से, निकलने वाले खून को रोकने में होता है। जिनको बवासीर में खून रोकने की दवा भी कहा जाता है। जिनके कुछ योग इस प्रकार है –
खूनी बवासीर की दवा ( khooni bawaseer ki dawa )
खुनी बवासीर का इलाज हिंदी में ( khooni bawaseer ka ilaj hindi mein ), करने के लिए खूनी बवासीर की दवाई ( khooni bawaseer ki dawai ) की आवश्यकता पड़ती है। जिसके लिए लोग खूनी बवासीर की दवा क्या है ( khooni bawaseer ki dawa kya hai ) आदि पूछते है। खूनी बवासीर में खून के स्राव को रोकने की प्रसिद्द, खुनी बवासीर की दवा ( khuni bawasir ki dawa ) निम्नलिखित है। जो पूर्णतया खूनी बवासीर की दवा आयुर्वेदिक ( khooni bawaseer ki ayurvedic dawa ) है –
- कुटज की छाल तथा सोंठ इन दोनों को, समभाग में लेकर क्वाथ तैयार करे। इसमें गाय का घी मिलाकर रोगी को पिलाने से, बवासीर के मस्सों से निकलता हुआ खून रुक जाता है।
- अनार का छिलका, सोंठ और लालचन्दन को समान भाग में लेकर काढ़ा बनाये। जिसको गाय के घी के साथ मिलाकर पीने से बवासीर से रक्त का जाना रुक जाता है।
- लालचन्दन, चिरायता, धन्वयवास ( धमासा ) और सोंठ सबको सामान भाग में लेकर क्वाथ बनाये। जिसमे गाय का घी मिलाकर पीने से बवासीर का रक्तस्राव बंद हो जाता है।
- दारुहल्दी, दालचीनी, नीम की छाल और खस को संभाग लेकर क्वाथ निर्मित करे। इसमें गाय का घी मिश्रितकर पीने से, बवासीर से रिसने वाला खून बंद हो जाता है।
- अतीस, कुरैया की छाल, इन्द्रजौ, रसौत इन सबको बराबर – बराबर मात्रा में लेकर यथाविधि बने क्वाथ में गाय का घी मिलाकर पीने से रक्तार्श का रक्तस्राव बंद हो जाता है। यह सभी खूनी बवासीर का दवा ( khooni bawaseer ka dawa ) है।
बवासीर में खुजली का उपाय
यदि खूनी बवासीर के रोगी को प्यास अधिक लगती हो तो उपरोक्त योगो में से किसी एक योग का सेवन कराकर अनुपान का शास्त्रीय विधान है। जिसमे तण्डुलोदक में मधु मिलाकर पीने को दे।
तण्डुलोदक : चार तोला चावलों को आठ गुने पानी में भिगो दे। 1 – 2 घंटे के बाद जल को निथार ले। यही तण्डुलोदक है। जिसे लोग चावलो का धोवन भी कहते है।
जैसा की ऊपर वर्णन किया गया। खूनी बवासीर में कफ का अनुबंध पाया जाता है। जिससे रक्तज बवासीर में पित्त, वात और कफ नामक दोषो की विद्यमानता देखी जाती है। परन्तु जब रक्तज बवासीर में, कफानुबन्धन पाया जाता है तब। अथवा केवल कफ के कारण बवासीर के मस्सो में, खुजली होती देखी जाती है। जिससे निरंतर हल्का पीला, सफ़ेद, खून मिला कुछ लाल रंग का चिपचिपा स्राव निकलता है।
जिसको सुखाने के लिए उपचार की विधिया बताई गई है। जिसमे विभिन्न प्रकार के औषध योग, लेप, धूप आदि का प्रयोग बताया गया है। जिनसे बवासीर की खुजली शांत हो जाती है। जैसे – सोंठ, पिप्पलीमूल, पिप्पली, चव्य, चित्रकमूल – इन पांचो द्रव्यों को 5 – 5 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण बना ले। मात्रानुसार इस चूर्ण को मठ्ठे में घोलकर पीने से बवासीर की खुजली आदि में लाभ मिलता है।
खूनी बवासीर की दवा घरेलू उपचार ( khooni bawaseer ke gharelu upay )
भारत आदि देशो में बवासीर के घरेलू उपाय की प्रशस्त मान्यता है। जिन पर आज भी लोगो का अटूट विश्वास है। जिसके कारण खूनी बवासीर का घरेलू इलाज क्या है जानने के लिए लोग जिज्ञासु रहते है। यह सभी उपाय आयुर्वेदादी शास्त्रों से समन्वित है। जिससे खूनी बवासीर का घरेलू इलाज ( khooni bawaseer ka gharelu ilaj ) फलकारक सिद्ध है।
यह उपाय देखने – सुनने में जितने सरल है, उनका प्रभाव उतना ही अधिक आश्चर्यजनक है। जिससे कोई कोई घरेलू नुस्खे खुनी बवासीर का रामबाण इलाज ( khooni bawaseer ka ramban ilaj ) माने गए है। जैसे –
- चिरायता, लालचन्दन, दारुहल्दी, सोंठ, दालचीनी, दुरालभा, खस और नीम की छाल को बराबर – बराबर मात्रा में मिला ले। जिसको 2 तोला ( 24 ग्राम ) लेकर 32 तोला ( 384 ग्राम ) जल में धीमी आंच पर उबाले। जब 8 तोला ( 96 ग्राम ) शेष रह जाए, तब आंच से उतारकर छान ले। इसको गुनगुना पीने से खूनी बवासीर को नष्ट कर देती है। यह उत्कृष्ट कोटि की खूनी बवासीर की दवा ( khuni bawasir ki dawa in hindi ) है।
- चित्रक की जड़, पूतिकरंज की छाल या फल की गिरी, सेंधा नमक, सोंठ, इन्द्रयव और सोनापाठा की छाल इन सबको बराबर – बराबर लेकर महीन कूट – पीस छान के शीशी में भर देवें। इस करंजादि चूर्ण को प्रतिदिन मठ्ठे में डालकर पीने से रक्तस्राव युक्त बवासीर के मस्से नष्ट हो जाते है।
- काले तिल, शुद्ध भल्लातक फल, हरीतकी इनका चूर्ण पृथक – पृथक 44 ग्राम एवं सर्व चूर्ण से द्विगुण ( 288 ग्राम ) पुराना गुड़ लेकर विधिपूर्वक लड्डू बना ले। जिसका तीन माशा ( लगभग 3 – 5 ग्राम ) में सेवन करने से पित्तजन्य बवासीर नष्ट हो जाती है।
खूनी बवासीर में उपयोगी विशेष दवा
काली मिर्च का चूर्ण 1 तोला, सोंठ चूर्ण 2 तोला, चित्रक की जड़ का चूर्ण 4 तोला, शुद्ध सूरनकंद का चूर्ण 8 तोला और पूरे चूर्ण के बराबर ( 15 तोला ) पुराना गुड़ लेकर। सबको अच्छी तरह मिलाकर लडडू ( मोदक ) बना ले। आधे से एक तोले की मात्रा में यह मोदक प्रतिदिन सेवन करते रहने से जठराग्नि को प्रदीप्त करता हुआ सभी प्रकार की बवासीर को नष्ट कर डालता है। इसलिए इसको खूनी बवासीर की अचूक दवा कहते है।
उपरोक्त सभी उपाय खूनी बवासीर की आयुर्वेदिक दवा ( khooni bawasir ayurvedic dawa ) है। जबकि खूनी बवासीर नागदोन का पौधा भी उपयोगी माना जाता है। वही झंडू पंचारिष्ट सिरप भी बवासीर में उपयोगी है। जो कब्जियत आदि को मिटाने का कार्य करता है।
खूनी बवासीर का एलोपैथिक इलाज ( khooni bawaseer ka alopathic ilaaj )
बवासीर के एलोपैथिक उपचार में, शस्त्र विधि अधिक प्रचलित है। जिसमे प्रायः बवासीर के मस्से को काटकर निकाल दिया जाता है। जिसको ऑपरेशन आदि नामो से सम्बोधित करते है। जिसकी दो विधिया है –
- बवासीर का सामान्य ऑपरेशन : इसमें सामान्यतः धारदार औजार की सहायता से, बवासीर के मस्से को काटकर निकाल दिया जाता है।
- बवासीर का लेजर ऑपरेशन : अत्याधुनिक यांत्रिक मशीन आदि का आलंबन लेते हुए, बवासीर के मस्सो को विच्छेदित करते है। जिसको बवासीर का लेजर ऑपरेशन video आदि कहते है।
अब तो, बवासीर का ऑपरेशन लाइव यूट्यूब पर देख सकते है। जिसमे सामान्य बवासीर का ऑपरेशन का वीडियो और बवासीर का लेजर ऑपरेशन वीडियो आदि है। जिसको लोग बवासीर का ऑपरेशन दिखाओ या बवासीर का ऑपरेशन कैसे होता है वीडियो में दिखाएं की बात करते है। परन्तु बवासीर के ऑपरेशन के बाद की सावधानी बहुत ही आवश्यक पहलू है।
परन्तु बवासीर के घाव को सुखाने और दर्द आदि में, बवासीर के घाव का इलाज किया जाता है। जिसमे खूनी बवासीर के लिए टेबलेट का प्रयोग होता है। जिसके लिए लोग खूनी बवासीर की अंग्रेजी दवा बताएं की बात भी करते है। जिनको बेस्ट टेबलेट फॉर पाइल्स ब्लीडिंग ( best tablet for piles bleeding ) भी कहते है। इंडियन गप्पा के अनुसार कुछ प्रसिद्द खूनी बवासीर की अंग्रेजी दवा निम्न है। जिसको खूनी बवासीर की एलोपैथिक दवा ( khooni bawaseer ki allopathic medicine ) आदि भी कहा जाता है।
- Xylox
- Alocaine
- Fubac
- Mahacal
- Throatsil
- Daflon
- Doxycycline
उपरोक्त दवाओं में से कुछ दवाई ऐसी है। जो बवासीर के खून को रोकने की टेबलेट ( piles bleeding stop tablet name ) भी है। जिनका प्रयोग विशेषज्ञीय सलाह पर ही किया जाना चाहिए।
खूनी बवासीर का होम्योपैथिक इलाज ( khooni bawaseer ka homoeopathic ilaaj )
खूनी बवासीर का इलाज पतंजलि ( khooni bawaseer ka ilaj patanjali )
खूनी बवासीर का इलाज करने के लिए पतंजलि में अनेको दवाइया है। जिनको खूनी बवासीर की दवा पतंजलि भी कहा जाता है। जिनमे प्रायः निम्न दवाइया का उपयोग होता है –
दिव्य अर्शकल्प वटी : यह विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियों से बनी आयुर्वेदिक टेबलेट है। जो सभी प्रकार के बवासीर में सामान्यतया प्रयोग होती है। यह बवासीर की वेदना को शांत करने के साथ मल को भी ढीला करती है। जिससे इसको खूनी बवासीर की अचूक दवा पतंजलि कहते है।
दिव्य अभयारिष्ट : यह पेट की समस्त पाचन समस्याओ की अमोघ औषधि है। जिसके कारण यह बवासीर में भी लाभकारी है। क्योकि बवासीर की समस्या में कब्ज आदि देखा ही जाता है। जिस पर ध्यान न देने से ही बवासीर आदि पैदा होती है।
दिव्य त्रिफला गुग्गुल : आयुर्वेद आदि में त्रिफला को उत्कृष्ट कोटि का रेचक माना गया है। जिसके द्वारा बढे हुए दोष को शरीर से बाहर निकाला जाता है। जिसमे यह बहुत बढ़िया काम करता है।
दिव्य हरीतकी चूर्ण : हरीतकी शरीर की अग्नि को बढ़ाता है। जिससे यह असंतुलित मल को शोधित कर, संतुलित करने में सहायता करता है।
इसबगोल भूसी : इसमें फाइबर पर्याप्त रूप में पाया जाता है। जिससे यह आंतो की सफाई करने में विशेष रूप से उपयोगी है। जो बवासीर रोग में सबसे बड़ी रुकावट है।
दिव्य उदरकल्प चूर्ण : पेट की सभी समस्याओ पर यह कारगार औषधि मानी जाती है। जिससे अधिकाँश रोग के साथ – साथ बवासीर में भी इसका उपयोग किया जाता है।
दिव्य शुद्धि चूर्ण : शरीर की शुद्धि में इस चूर्ण का प्रयोग किया जाता है। जिससे इससे असंतुलित दोष का संतुलन करने में सहायता मिलती है।
खूनी बवासीर की क्रीम ( bleeding piles cream )
खूनी बवासीर के मस्सो उपचारित करने के लिए, मलहम आदि का प्रयोग किया जाता है। जिसको बवासीर की ट्यूब ( bawaseer ki tube ) भी कहते है। जिसमे निम्न मलहम उपयोगी है –
- हमदर्द हेमोरोइड ऑइंटमेंट ( hamdard hamdoroid ointment )
- हिमालया पिलेक्स ऑइंटमेंट ( himalaya pilex ointment )
- ओमयो पाइल्स ऑइंटमेंट ( omeo piles ointment )
- एस बी एल एफ पी ऑइंटमेंट ( SBL FP ointment )
खूनी बवासीर में क्या खाना चाहिए ( khuni bawasir me kya khaye )
खूनी बवासीर में ऐसे आहार – विहार को अपनाने की बात बताई गई है। जो वात दोष का अनुलोमन करने के साथ, पाचकाग्नि ( जठराग्नि ) की शक्ति को बढ़ाने में सक्षम हो। अर्थात पाचन में लघु और अग्निउद्दीपक हो। जिसका ध्यान रखकर ही खूनी बवासीर में, भोजन और दिव्यौषधियो का सेवन करना स्वास्थ्य उपकारी है। जैसे –
अन्नो में – जौ, गेहूँ, पुराने लाल शाली चावल और साठी चावल आदि लाभकारी है।
सब्जियों में – परवल की पत्ती और फल, लहसुन, बथुआ, पुनर्नवा के पत्ते, चित्रक, शरणकंद, जीवंती का शाक, जंबीरी नीबू, सोंठ, हरड़ और मक्खन हितकारी है।
अन्य पथ्य पदार्थो में – सरसो का तेल, सौवीर, गोमूत्र, काला नमक, आंवला, तुषोदक, शीतलचीनी, शुद्ध भिलावा, कैथ का फल, बकरी का दूध, मठ्ठा, ऊंट का दूध, घी और मूत्रादि हितकारी है।
खूनी बवासीर में परहेज ( bleeding piles precautions )
- अत्यधिक तीखा, तला – भुना और जलनकारी भोजन न करें।
- अत्यधिक मादक द्रव्य मदिरा, तम्बाकू आदि का प्रयोग न करे।
- अत्यधिक गरिष्ट और भारी भोज्य पदार्थो के सेवन से बचे। जैसे – मांशाहारी भोजन आदि।
- सामर्थ्य से अधिक परिश्रम व्यायाम आदि न करे।
- अधिक मात्रा में धूप एवं अग्नि का सेवन न करें।
- अधिक समय तक उष्ण स्थान में निवास न करे।
- अमात्रात्मक स्त्री संयोग से बचे।
- अनावश्यक घोड़े, ऊंट या द्रुत गति के वाहन का प्रयोग न करे।
- अधिक उष्ण पेय और भोज्य पदार्थो के सेवन से बचें।
- अनावश्यक क्रोध न करें।
खूनी बवासीर के नुकसान ( side effects of piles )
खूनी बवासीर बहुत ही विकट महारोग है। जिसका समय पर उपचार न होने से अनेको प्रकार के विश्मयकारी, रोगो के होने की संभावना बढ़ जाती है। जैसे – जठराग्नि का अत्यंत मंद पड़ जाना, आरोचक, गंभीर कब्जियत, शरीर में चककत्तों का बनने लग जाना, मल – मूत्र में रुकावट हो जाना, सिर में दर्द होना, शरीर में भारीपन का बने रहने जैसी समस्याए हो सकती है।
निष्कर्ष :
खूनी बवासीर के लक्षण और चेतावनी संकेतो में चार दोषो की प्रशक्ति पायी जाती है। जिसमे वातादि दोषो के साथ रक्त की विकृति निश्चित रूप में विद्यमान रहती है। जिसके कारण खूनी बवासीर के मस्सों से रक्तस्राव हुआ करता है। जिसका रक्त दूषित होने के कारण अत्यंत तीक्ष्ण गंध वाला होता है। जिससे लोगो के बीच बैठने में भी शर्म महसूस होता है। साथ ही इसका दर्द गुदा को पार करता हुआ कमर, जांघ, पेट, पीठ और सिर तक पहुंच जाता है। जिससे खूनी बवासीर का रोगी बेहाल सा रहता है। खैर यह दर्द सभी रोगियों में नहीं पाया जाता।
जिसके लिए आयुर्वेद में खूनी बवासीर का रामबाण इलाज सुझाया गया है। जबकि खूनी बवासीर की दवा पतंजलि भी खूनी बवासीर में अत्यंत उपकारक है। जिसमे अनेको प्रकार के क्वाथ, चूर्ण आदि का प्रयोग है। जिससे थोड़े ही समय में खूनी बवासीर से आराम मिल जाता है। किन्तु खूनी बवासीर के स्थायी निदान में, खूनी बवासीर की गारंटी की दवा की आवश्यकता पड़ती है। जबकि आधुनिक प्रचलित चिकित्सा में, खूनी बवासीर की अंग्रेजी दवा आदि का भी प्रयोग किया जाता है।
परन्तु सभी प्रकार के रोग निदानो में, भोज्य पदार्थो की उपयोगिता को नहीं नकारा जा सकता। शास्त्रों में भोजन का सीधा प्रभाव हमारे मन पर होता है। जिसका समर्थन आज का विज्ञान भी अब करने लगा है। जिसको वैज्ञानिक भाषा में पोषण आदि कहा गया है। पोषण के अभाव में रोग की अनुगति देखी भी जाती है। जिसको स्वीकारना अब हमारी लाचारी है। जिसके लिए शास्त्र वर्णित भोज्य पदार्थो का सेवन, शारत्रीय विधा का अनुशरण करते हुए। शास्त्रीय सीमा में करना ही उपकारी है।
ध्यान रहे : बेहतर परिणाम पाने हेतु क्वाथ ( काढ़ा ) बनाने के लिए लोहे के बर्तन का ही प्रयोग करे। साथ किसी भी दवा का प्रयोग करने से पहले चिकित्सीय सलाह अवश्य लें।
उद्धरण ( रिफ्रेंस ):
चरक चिकित्सा अध्याय 14
सुश्रुत निदान अध्याय 02
सुश्रुत चिकित्सा अध्याय 06
अष्टांग हृदयम निदान अध्याय 07
अष्टांग हृदयम चिकित्सा अध्याय 08
अष्टांग संग्रहम निदान अध्याय 07
अष्टांग संग्रहम चिकित्सा अध्याय 10
भैषज्यरत्नावली अध्याय 9
comprative materia medica by Dr N C Ghos
FAQ
खूनी बवासीर क्यों होता है
अनियमित खान – पान, रहन – सहन आदि के कारण दोषो का असंतुलन होने से पाचकाग्नि मंद पड़ जाती है। जिससे खूनी बवासीर जैसे रोग हो जाते है।
बवासीर में लैट्रिन कैसे करते हैं
बवासीर में शौच के बाद सफाई विशेष रूप से उपयोगी है। जिसके लिए मलत्याग के उपरान्त गुदा में उगली डालकर फसे हुए मल को निकाला जाता है। साथ ही साथ स्नेह ( स्निग्ध ) पदार्थ का गुदा के भीतर और बाहर लेपन किया जाता है। जिससे गुदा की बलिया में मल नहीं रह जाता। ऐसा हर बार शौच जाने पर करने से, सभी बवासीर में लाभ होता है।
बवासीर का पौधा कैसा होता है
नागदन्ति को बवासीर का पौधा कहते है। जो बवासीर और भगंदर के लिए काल माना जाता है।
बवासीर का ऑपरेशन कैसे होता है
शस्त्र के द्वारा बवासीर के मस्सो को काटकर निकाल दिया जाता है। जिससे उस स्थान पर घाव हो जाता है। जिसके लिए उस स्थान पर पट्टी आदि की व्यवस्था की जाती है। साथ ही दर्द निवारक दवाइयों का प्रयोग भी किया जाता है।
बवासीर का ऑपरेशन कब होता है
चिकित्सा विशेषज्ञ को जब आवश्यक लगता है, तब बवासीर का ऑपरेशन किया जाता है।
बवासीर लेजर ऑपरेशन खर्च कितना है
बवासीर का लेजर ऑपरेशन खर्च लगभग 30 – 40 हजार के आस- पास है।
बवासीर का लेजर ऑपरेशन कैसे होता है
लेजर मशीन के द्वारा बवासीर के मस्से को, काटकर बाहर निकाला जाता है। तदुपरंत घाव आदि पर मलहम पट्टी की जाती है। जिससे बवासीर के मस्से नष्ट हो जाया करते है।
बवासीर में खुजली क्यों होती है
बवासीर के मस्सो में गंदा खून जमने से, संक्रमण के कारण खुजली होती है।
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